महारानी देवरानी 056

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देवरानी ये सुन कर लज्जा जाती है। क्यू के अपने बेटे द्वारा अपने पति के सामने ऐसे मसले जाने पर उसे एक अलग, उत्तेज़ना का एहसास हुआ था।

"पर बलदेव!"

"पर वर कुछ नहीं माँ उसकी पत्नी नहीं हो अब तुम और उस बुधु राजपाल को बताना है कि तुम अब मेरी हो उसकी नहीं।"

"बड़े आया मजनू कहीं का! "

"अरी रे मेरी छमिया! वह तो मैं बताऊंगा तुम्हें, कि ये मजनू अपनी लैला को कैसे प्यार करता है।"

"देखूंगी कि ये बादल गरजने वाले हैं या फिर सच में या बरसने वाले हैं..."

बलदेव ये सुन कर देवरानी पर झपट्टता है। देवरानी उससे बच निकलती है।

देवरानी: बेटा संयम रखो! ज्यादा प्रेम दिखागे तो हमारी यात्रा अभी खत्म हो जायेगी।

बलदेव: हम्म्म माँ संयम और नहीं रख पा रहा हूँ!

देवरानी: चलो जाओ और अपने मित्रो को बुला लाओ ।

बलदेव: क्या कहु...मौसी ने बुलाया है। या भाभी ने?

देवरानी: पागल हो तुम...!

बलदेव: हाँ वह तो हूँ तुम्हारे प्यार में और वैसे भी वह दोनों मेरे दोस्त हैं। श्याम और बद्री तुम्हें आज नहीं तो कल तो तुम्हे भाभी ही कहेंगे।

देवरानी: भाभी नहीं मौसी कहो

बलदेव: तो तुम क्या चाहते हो मुझे वह मौसा कहे!

और बलदेव हसने लगता है।

देवरानी: चुप कर कमीने बातो में तुम से भला कौन जीत सकता है।

बलदेव: माँ वह मेरे मित्र पहले है। बाद में तुम उनकी मौसी हो । मुझे तो पक्का यकीन है वह लोग तुम्हें मौसी नहीं कहेंगे।

देवरानी: तुम्हें ऐसा लगता है तो ऐसा ही होना चाहिए पर बलदेव ये भी हो सकता है। के सच जानने के बाद वह हमारा मुँह भी देखना पसंद न करे।

बलदेव: तो ना करे मुझे किसी का परवाह नहीं जो हमें स्वीकार करे तो ठीक, नहीं करे तो वह मेरा कोई नहीं।

देवरानी: चल जा बाद में बड़ी-बड़ी बात करना । अभी जा कर मित्रो को खिलाओ कुछ।

बलदेव निकल कर अपनी कक्ष में जाता है और कमला से कह कर नाश्ता ऊपर ही मंगवा लेता है। फिर तीनो मित्र मिल कर खाने लगते है।

बलदेव: तो कहो बद्री आज ही पारस के लिए निकले या कल सवेरे?

बद्री: वैसे बलदेव आज ही जाना सही होगा क्यू के महाराज ने कहा है के हमे जल्दी वापस आना है। अन्यथा घाटराष्ट्र के लोग सोचेंगे कि उन्हें लड़ने के लिए कह दिया गया है और खुद अपने परिवार को चुपचाप पारस भेज दिया गया है घुमने के लिए।

बलदेव: हम्म सही कह रहे हो बद्री!

श्याम: भाई. इसका मतलब इन हालात में हम ज्यादा दिन पारस नहीं रुक पाएंगे।

बद्री: 2 से 3 दिन श्याम उससे ज्यादा नहीं।

श्याम: इतने दिन में हम पूरा पारस कहाँ घूम पाएंगे

बद्री: श्याम तुम्हें बस घुमना और खाना सूझता है। यहाँ राष्ट्र पर आक्रमण की आशंका है।

बलदेव: श्याम चिंता मत करो फिर कभी हम जाएंगे तो घूम आएंगे वैसे भी पारस तो मेरा ननिहाल है।

(मन मैं: और अब तो ससुराल भी पारस ही है।)

और मुस्कुराता है।

ऐसे ही दोपहर का समय हो जाता है । चारो अपनी यात्रा पर साथ ले जाने वाला हर समान अच्छे से त्यार कर एक जगह रखने लगते हैं और फिर दोपहर के भोजन का समय हो जाता है।

श्याम, बद्री, राजपाल, जीविका, सृष्टि, और बलदेव सब आसन पर बैठ भोजन की प्रतीक्षा कर रहे थे। देवरानी कमला और राधा मिल कर हर तरह के व्यंजन परोसती है।

श्याम: मुझसे तो रहा नहीं जा रहा! देवरानी मौसी के हाथों का व्यंजन खाने के लिए बहुत भूख लग रही है!

बलदेव: माँ सबसे पहले श्याम को दो इसे बहुत भूख लगी है।

देवरानी कमला से पनीर की सब्जी ले कर श्याम के थाली में रखती है और फिर बलदेव को पूछती है।

"खाओगे क्या पनीर"

देवरानी का पल्लू सरक जाता है और उसके दूध साफ दिखने लगते हैं।

बलदेव जैसे देवरानी के स्तनी के बीच की गहरी घाटी में खो जाता है।

बलदेव देवरानी के वक्ष को देखते हुए कहता है ।

"दो ना माँ मुझे खाना है।"

देवरानी पनीर की सब्जी रख देती है उसकी थाली में और एक अदा से मुस्कुराती है और फिर सबको बांटने लगती है।

बद्री जो बगल में बैठा भोजन कर रहा था। अपने चतुराई से दोनों का नैन मटक्का देख लेता है और सोच में डूब जाता है।

बलदेव: पिता जी हमें तय किया है। के हम अभी भोजन के तुरंत बाद पारस के लिए यात्रा पर निकल जाएंगे।

राजपाल: हाँ ठीक है। जाओ पर जल्दी वापिस आना है। इस बात का भी ध्यान रखना बलदेव की इस समय राष्ट्र पर आक्रमण की आशंका है ।

जीविका खाने की कोशिश कर रही थी पर उसके हलक से खाना अंदर नहीं जा रहा था।

जीविका: (मन में-बता दू क्या राजपाल को...पर कैसे बताऊ?

देवरानी: आप चिंता मत करें महाराज हम सही समय पर लौट आएंगे!

जीविका: बहु तुम्हें कब से सही गलत की पहचान हो गई और एक घूरती हुई नजर से बलदेव की ओर देखती है।

बलदेव को समझ में नहीं आता है। के दादी क्यों अंदर से इतना गुस्सा है।

बलदेव: दादी मैंने वह बात माँ को बताई है जो आपने मुझे सिखायी थी।

जीविका: क्या?

बलदेव: हाँ दादी आप ने बहुत दुनिया देखी है और आपने समझाया था।की जब दिल और दिमाग में द्वन्द हो तो अपनी खुशी के लिए हमे हमेशा अपने दिल की सुननी चाहिए...अब जब भी मुझे निर्णय लेना होता है तो मैं हमेशा अपने दिल की सुनता हूँ। आपका धन्यवाद दादी।

जीविका को अपनी कही हुई बात याद आती है और कहीं ना कहीं उसका दिल अपने पोते, जिसको वह जान से ज्यादा चाहती थी उसकी बात मानने लगता है ।

बलदेव आदि आज अब आप चल कर आकर हमारे साथ भोजन कर रही हैं तो मैं बहुत खुश हूँ।

जीविका: (मन में-बलदेव सही तो कह रहा है। आज बलदेव के कारण से ही मेरे पैर थोड़े ठीक हुए हैं नहीं तो बलदेव के आने से पहले मुझे कोई पूछता भी नहीं था और मैं एक जगह अकेली चुपचाप सोयी रहती थी।

जीविका बहुत कठिन परिस्थिति का अनुभव कर रही थी । एक तरफ उसके बेटे राजपाल का घर उजड़ रहा था। दूसरे ओर उसके पोते का घर बस रहा था।

जीविका एक बार राजपाल को देखती है। फ़िर बलदेव को देखती है। बलदेव के आखो में उसे देवरानी के लिए बेशुमार प्यार दिखता है।

जीविका देवरानी को देखती है। देवरानी अपना सारा झुकाये दुखी मन के साथ बैठी थी । उसकी आँखों में आसु भरे हुए थे और जैसे जीविका को कह रहे हो के "कृपया कर के हमारा साथ दीजिए. मैं बहुत दुखी हूँ।"

बलदेव चुप्पी तोड़ते हुए बोलता है

बलदेव: दादी खुशी पाने के लिए कभी-कभी कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ता है।

जीविका फिर देवरानी की ओर देखती है। जो अपने आखो में आसु भरे हुए जीविका की ओर एक आस से देख रही थी।

देवरानी: बलदेव तुम्हारे पास तो दादी थी जो तुम्हें ज्ञान दे रही थी पर मेरे पास ना दादी थी ना माँ बाप जिन्होंने मेरी परवरिश की उनका भी देहांत हो गया था ।

जीविका को ये बात सुई की तरह चुभती है।

जीविका का दिमाग दुखने लगता है के आखिर वह किस मोड़ पर फंस गई है। वह अपना सर नीचे कर के खाने लगती है।

सब भोजन समाप्त कर के उठते है।

जीविका अपनी कक्ष में जाने लगती है।

बलदेव: रुको दादी हम अब निकलेंगे आशीर्वाद नहीं दोगी?

बलदेव और देवरानी दोनों साथ में जीविका के पैर पकड़ कर आशीर्वाद लेते हैं।

जीविका को ना चाहते हुए भी आशीर्वाद देना पड़ता है।

"सदा ख़ुश रहो!"

जीविका अपना बैसाखी को लिए अपने आंखो में आसु के लिए अपने कक्ष में चली जाती है।

जीविका अपने कक्ष में जा कर

"हे भगवान ये कैसी स्थिति है। मैं अपने बेटे का साथ नहीं दे सकती हूँ कहीं ये देवरानी को जो जीवन भर दुख हुआ है वह तो नहीं रोक रहा मुझे।"

और उसके आँखों से आसु गिरने लगते हैं।

सेनापति सोमनाथ चार घोड़ों को तैयार कर चारो पर सैनिकों से सामान बंधवा रहा था। अंदर बलदेव देवरानी और श्याम और बद्री त्यार र हो रहे थे।

शुरष्टि अपने कक्ष में आकर अपना रखा पिटारा खोलती है। तो उसमे अब भी सांप अपने जहर के साथ मौजुद था।

सृष्टि: देवरानी तेरी ये अंतिम यात्रा होगी और उसके बाद मैं तेरे बेटे को भी मारवा दूंगी। हाहाहाहा!

सृष्टि त बड़ी चालाकी से पीटारी छुपाये बाहर आती है। तो देखती है। दो सैनिक और सेनापति सोमनाथ घोड़े पर समान बाँध रहे थे और घोड़े को उसका चारा दे रहे थे।

शुरुष्टि: उफ़ अब क्या करु

फिर कुछ सोचते हुए

शुरुष्टि: सेनापति सोमनाथ!

सेनापति सोमनाथ: जी महारानी

शुरष्टि: आपको महाराज ने बुलाया है। कुछ काम से!

सेनापति सोमनाथ: जी महारानी

सोमनाथ अपना काम छोड़ महल के अंदर चला जाता है।

शुरुष्टि: सैनिको ये किस किसके घोड़े है।

सैनिक: महारानी ये भूरा वाला युवराज श्याम का है। ये काला घोड़ा पर युवराज बलदेव जायेंगे और ये वाले काले घोड़े पर युवराज बद्री

शुरष्टि आर ये सफ़ेद घोड़े पे?

सैनिक: महारानी ये सफ़ेद घोड़े पर रानी देवरानी जायेंगी।

सृष्टि एक कातिल मुस्कान देते हुए

शुरुष्टि: आह! मेरा गला सुख रहा है। सैनिको जरा पानी लाना।

सैनिक पहला: तुम जाओ ले आओ पानी!

सैनिक दूसरा: नहीं मेरा काम अब होने वाला है। तुम ले आओ!

शुरष्टि: गधो दोनों जाओ एक साथ और पानी लाओ अन्यथा।

दोनों सैनिक डर जाते है और भागने लगते हैं। श्रुष्टि मौका देख पीटारा खोल सांप को देवरानी के घोड़े पर बंधे झोले में रख देती ह और पीटारा छुपा लेती है।

दोनों सैनिक भाग कर पानी लाते हैं।

सैनिक: ये लीजिये महारानी पानी

सृष्टि: तुम दोनों ने इतनी देर कर दी की मेरी प्यास ही ख़त्म हो गई

और सृष्टि वापस महल में जाने लगती है।

सैनिक: अरे इतनी जल्दी तो ले आये फिर भी महारानी के नखरे देखो!

दोनों सैनिक एक दूसरे का मुंह देख अपना बाकी का काम करने लगते हैं।

सब तैयार हो कर महल के बाहर आते हैं। जहाँ पर उनका घोड़ा त्यार खड़ा था। देवरानी सब से विदा लेती है।

सृष्टि हल्का रोने का नाटक करती है।

"देवरानी अपना ख्याल रखना।"

सृष्टि: (मन में: वापस मत आना कलमुही देवरानी)

देवरानी: हाँ दीदी आप भी अपना ध्यान रखना।

राजपाल: देवरानी साले साहब से मेरा प्रणाम कहना मत भूलना।

देवरानी (मन में असल जीजा को तो मैं साथ ले जा रही हूँ तुम्हारे प्रणाम का क्या करूं।)

सृष्टि (मन में: बुधु राजपाल देवरानी ने देवराज का जीजा ही बदल दिया है। अब भी भ्रम में हो तो रहो ।)

कमला: महारानी अपना ख्याल रखना!

देवरानी: तुम भी अपना ख्याल रखना!

बलदेव अपने पिता के चरण छू कर आशीर्वाद लेता है और फिर सब बारी अपने घोड़े पर बैठने लगते हैं और सब अपने घोड़े को लगाम खींचते हैं।

राजपाल और श्रुष्टि अंदर चले आते है।

शुरष्टि: आख़िर बला टली!

राजपाल: पर मुझे तो अब भी उनके ऊपर हमारे शत्रु के हमले का डर है।

शुरुआत: तो मर जाने दो माँ बेटे को वह कौन-सा आपकी बात माने!

राजपाल: तुम सही कह रही हो सृष्टि वह मुझे नहीं समझती तो मैं क्यू उसके बारे में सोचु!

इधर बलदेव अपनी माँ और मित्रो के साथ तेज गति से घोड़े पर सवार होकर देश की सीमा पार कर लेता है। घोड़े को दौड़ाते हुए शाम हो जाती है।

बलदेव अपना हाथ दिखा कर सबको धीरे होने का इशारा देता है। सब रुक जाते हैं।

बलदेव: बद्री अँधेरा हो गया है। अब हमें मशाल जला लेनी चाहिए

बद्री: ठीक है। बलदेव

बद्री मशाल जलाने लगता है।

बलदेव: अब हम सब आगे पीछे चलेंगे । सबसे आगे बद्री मशाल के लिए चलेगा उसके पीछे श्याम उसके पीछे माँ और उसके पीछे मैं!

देवरानी घोड़े पर बैठी अपने बेटे की बुद्धिमानी पर गर्व महसुस कर रही थी।

बद्री मशाल जला कर आगे आता है।

बलदेव: ध्यान रहे हम दिल्ली के पास हैं। हमें आबादी से बच कर जंगल से हो कर आगे बढ़ना है और ये पूरे चंद्रमा की रोशनी भी आज हमारे साथ है।

अब बद्री हाथ में मशाल लीए हुए था घोड़े की लगाम उसके दूसरे हाथ से थी। वह घोड़े को भगाता है। उसके पीछे श्याम उसके पीछे देवरानी और बलदेव अपने घोड़ो को दौड़ा देते हैं ।

रात 10 बजे बलदेव की आवाज से बद्री अपना घोड़ा रोकता है।

बलदेव: बद्री आधी रात होने को है। हमें अब कुछ खा कर आराम करना चाहिए.

श्याम: हाँ मैं भी थक गया । अब कुछ खाना चाहिए.

बलदेव: क्या कहती हो माँ?

देवरानी एक मुस्कान के साथ "खिला दो मुझे भी।"

बद्री: महल में भी मौसी कुछ अलग अंदाज से बलदेव को अपना पल्लू हटा कर दिखा रही थी और मुस्कुरा रही थी और अब भी । क्या मैं जो सोच रहा हूँ वह सही है?

बद्री: मौसी खाने का झोला मेरे पास है। आ जाओ सब भोजन करते हैं।

बलदेव: यहाँ पास ही झरना है और हम किसी गांव् के करीब हैं। तुम सब गौर से देखो खेत के उस पार द्वारा पर दिये जल रहे हैं।

देवरानी: हाँ यहाँ ठण्ड भी बहुत अधिक है।

बलदेव: बद्री यही अपना रात का पसंदीदा शिविर घर बनाया जाए.

बद्री: हाँ क्यू नहीं!

देवरानी: शिविर घर और यहाँ क्या कह रहे हो तुम लोग?

बद्री: हम दो शिविर बना सकते हैं।

बद्री हथौड़ी निकाल कर अपने हाथ से तम्बू बनाने लगता है।

अब सब समझ जाते हैं। के उनको क्या करना है और देवरानी भी हाथ बटाने लगती है। और देखते ही देखते दो तंबू बन के तैयार हो जाते हैं।

देवरानी: वाह ये शिविर तो हुबहू घर जैसा बन गया।

बद्री: मौसी ये सब हमारे गुरु ने सिखाया है।

फ़िर सब वही बैठ कर चटाई पर खाना खाते है और घोड़ो को भी चारा देते हैं और छोटा-सा लालटेन जला कर दोनों तंबू में रख लेते हैं।

खाना खाने के बाद सब इधर उधर की बातें करने लगते हैं।

बलदेव पास के एक वृक्ष से सूखी लकड़ीया तोड़ लेता है और उसे जला देता है।

बलदेव: अब इनसे हमें गर्मी महसूस होगी और रात में जानवरों से भी बचाव होगा

ये सब करते हुए 11 बज जाते है।

देवरानी: मेरा बदन टूट रहा है। वर्षो बड़ी घुड़सावरी की है मुझे सोना है और बलदेव की और देखती है।

बलदेव समझते हुए

तो मित्रो अब हमें सोना चाहिए फिर हमें भौर होते ही फिर पारस की ओर जाना है।

बद्री: हाँ सो जाते हैं। भाई. अब दो तंबू है। पर दोनों छोटे हैं।, मौसी एक तंबू में सो जाएगी और हम तीनो एक तंबू में सो जाते हैं। ऐसे भी हम आचार्य जी के वहाँ भी साथ ही सोते थे।

देवरानी ये सुन कर बलदेव की ओर निराशा से देखती है।

बलदेव: बद्री बात ये है। ना मित्र के माँ को अकेला डर लगेगा अकेले में । तो मैं माँ के पास सो जाता हूँ।

बद्री (मन में: कुछ तो गड़बड़ है।)

श्याम: हाँ चलेगा मैं और बद्री इस तंबू में सो जाते हैं।

देवरानी: हाँ मैं बलदेव के साथ सो जाती हूँ।

बद्री: ठीक है। ठीक है।

सब अपने घोड़े को अच्छे से बाँध कर बिस्तर लगा कर तंबू में घुस कर परदे से तंबू बंद कर लेते हैं।

श्याम और बद्री अपने राज्य की कहानी बता रहे थे वही देवरानी के बगल में बलदेव ऊपर की तरफ देख रहा था।

"बलदेव क्या सोच रहे हो राजा?"

"मां मैं यही सोच रहा हूँ कि कभी सोचा नहीं था। तुम मेरी हो जाओगी आज ऐसा लग रहा है जैसे कि हम दुनिया से दूर हैं। आजाद बिना किसी बंधन के!"

"हाँ बलदेव मुझे भी वर्षों बाद सुकून मिल रहा है।"

बलदेव और देवरानी अपने अतीत से जुड़ी हर बात कर रहे थे

आधे घंटे बाद

"बलदेव क्या हुआ आज मौका है। तो हाथ नहीं मारोगे"

बलदेव तंबू से बाहर आता है और देखता है। बद्री और श्याम सो रहे

बलदेव फिर तंबू में आकर देवरानी से चिपक जाता है।

"महारानी देवरानी बोलो ना मेरी पत्नी बनोगी?"

"बना पाओगे तो मेरी हाँ है। मैं इस चंद्रमा को साक्षी मान कर कह रही हूँ।"

बलदेव की आंखो में दिखती है।

बलदेव उसको आलिंगन में लेते हुए देवरानी के होठों पर चूमता है।

बद्री जिसके दिमाग में शक हो गया था। उसने बलदेव की आहट सुन लिया था और जब बलदेव आया था। तो नकली खर्राटे लेने लगा था।

बद्री श्याम को सोता हुआ छोड़ बाहर निकलता है और जैसा वह देवरानी के तंबू की ओर देखता है। उसके पैरो से ज़मीन निकल जाती है। लालटेन की रोशनी से परछाई बनी हुई साफ़ दिख रहा था कि बलदेव और देवरानी क्या कर रहे हैं।

परछाई से साफ़ पता चल रहा था को दोनों एक दूसरे को चूम रहे हैं। बद्री का दिमाग कम करना बंद करने लगता है और वही बूत बना खड़ा उन्हें चुंबन करते देख रहा था...

जारी रहेगी

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