मेरी चुत का चोदू

Story Info
मेरी चुत का चोदू
5.9k words
4.25
51
1
0
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here
odinchacha
odinchacha
252 Followers

मेरा नाम आशना है. मेरा छोटा भाई अफ़रोज़ बारहवीं में पढ़ता है.

वह गोरा-चिट्टा और क़रीब मेरे ही बराबर लंबा भी है. मैं इस समय 21 साल की हूँ और वह 19 का है.

मुझे अपने भाई के गुलाबी होंठ बहुत प्यारे लगते हैं, दिल करता है कि बस चबा लूं.

मेरे अब्बू गल्फ़ में हैं और अम्मी सरकारी जॉब में हैं. अम्मी जब जॉब की वजह से जब कभी शहर से बाहर चली जाती थीं तो रात के समय घर में बस हम दो भाई बहन ही रह जाते थे.

मेरा भाई मुझे बहुत प्यार करता है.

यह हमारी भाई बहन सेक्स कहानी है.

एक बार अम्मी सरकारी काम के चलते कुछ दिनों के लिए बाहर गयी थीं. उनकी चुनाव में ड्यूटी लग गयी थी. अम्मी को एक हफ़्ते बाद आना था.

उस रात मैंने भाई के साथ डिनर किया, इसके बाद कुछ देर टीवी देखा, फिर हम दोनों अपने-अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.

क़रीब आध घंटे बाद प्यास लगने की वजह से मेरी नींद खुल गयी.

मैंने अपने बिस्तर के बगल की टेबल पर रखी बोतल को देखा, तो वह ख़ाली थी. मैं उठकर किचन में पानी पीने गयी.

लौटते समय देखा कि अफ़रोज़ के कमरे की लाइट ऑन थी और उसके कमरे का दरवाज़ा भी थोड़ा सा खुला था.

मुझे लगा कि शायद वह लाइट ऑफ़ करना भूल गया है, मैं ही बंद कर देती हूँ.

मैं उसके कमरे में जाने लगी लेकिन खुले दरवाजे की झिरी से अन्दर का नज़ारा देख कर मैं हैरान हो गयी.

अफ़रोज़ एक हाथ में मोबाइल पकड़कर उसे पढ़ रहा था और दूसरे हाथ से अपने तने हुए लंड को पकड़कर मुठ मार रहा था.

मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि इतना मासूम सा लगने वाला बारहवीं का यह छोकरा ऐसा भी कर सकता है.

दम साधे मैं चुपचाप खड़ी होकर उसकी हरकत देखती रही.

लेकिन तभी शायद उसे मेरी उपस्थिति का आभास हो गया.

उसने मेरी तरफ़ मुँह किया और दरवाज़े पर मुझे खड़ा देख कर चौंक गया.

वह बस मुझे देखता रहा और कुछ भी ना बोल पाया.

फिर उसने मुँह फेर कर मोबाइल को तकिए के नीचे छिपा दिया.

मुझे भी समझ ना आया कि क्या करूं.

मेरे दिल में यह ख़्याल आया कि कल से यह लड़का मुझसे शर्माएगा और बात करने से भी कतराएगा.

घर में इसके अलावा और कोई है भी नहीं, जिससे मेरा मन बहलता.

मुझे अपने दो साल पहले वाले दिन याद आ गए.

उस वक्त मैं और मेरा एक कजिन इसी उम्र के थे, जबसे हमने मज़ा लेना शुरू किया था, तो आज इसमें कौन सी बड़ी बात है कि आज अफ़रोज़ मुठ मार रहा है.

मैं धीरे-धीरे उसके पास गयी और उसके कंधे पर हाथ रखकर उसके पास ही बैठ गयी ... वह चुपचाप लेटा रहा.

मैंने उसके कंधों को दबाते हुए कहा- अरे यार, अगर यही करना था तो कम से कम दरवाज़ा तो बंद कर लिया होता.

वह कुछ नहीं बोला, बस मुँह दूसरी तरफ़ किए लेटा रहा.

मैंने अपने हाथों से उसका मुँह अपनी तरफ़ किया और बोली- अभी से ये मज़ा लेना शुरू कर दिया. कोई बात नहीं, मैं जाती हूँ ... तू अपना मज़ा पूरा कर ले. लेकिन ज़रा मोबाइल तो दिखा.

तकिए के नीचे से मैंने मोबाइल निकाल लिया.

उसमें हिंदी सेक्स कहानी की साईट अन्तर्वासना खुली हुई थी.

मेरा कजिन भी अन्तर्वासना पर बहुत सी सेक्स कहानी मुझे दिखाता था और हम दोनों ही आपस में एक दूसरे के मज़े लेने के लिए साथ-साथ सेक्स कहानी पढ़ते थे.

हम चुदाई के समय कहानी में लिखे डायलॉग बोलकर एक दूसरे का जोश बढ़ाते थे.

जब मैं मोबाइल उसे देकर बाहर जाने के लिए उठी तो वह पहली बार बोला- आपा, सारा मज़ा तो आपने ख़राब ही कर दिया, अब मैं क्या मज़ा करूंगा!

मैं- अरे अगर तुमने दरवाज़ा बंद किया होता तो मैं आती ही नहीं.

वो- अगर आपने देख लिया था तो आप चुपचाप चली भी जा सकती थीं.

अगर मैं अफ़रोज़ से बहस में जीतना चाहती तो आसानी से जीत जाती लेकिन मेरा वह कजिन क़रीब 6 महीने से नहीं आया था इसलिए मैं भी किसी से मज़ा लेना चाहती थी.

अफ़रोज़ मेरा छोटा भाई था और बहुत ही सेक्सी लगता था.

इसलिए मैंने सोचा कि अगर घर में ही अफ़रोज़ से मज़ा मिल जाए तो बाहर जाने की क्या ज़रूरत.

फिर अफ़रोज़ का लौड़ा अभी कुंवारा था. मैं अफ़रोज़ के साथ सेक्स करती, तो कुंवारे लंड का मज़ा पहली बार ले सकती थी.

इसलिए मैंने कहा- चल, अगर मैंने तेरा मज़ा ख़राब किया है ... तो मैं ही तेरा मज़ा वापस कर देती हूँ.

फिर मैं पलंग पर बैठ गयी और उसे चित लिटा दिया, उसके मुरझाए लंड को अपने हाथ में ले लिया.

उसने बचने की कोशिश की पर मैंने लंड को पकड़ लिया था.

अब मेरे भाई को यक़ीन हो चुका था कि मैं उसका राज़ नहीं खोलूंगी, इसलिए उसने अपनी टांगें खोल दी थीं ताकि मैं उसका लंड ठीक से पकड़ सकूं.

मैंने उसके लंड को बहुत हिलाया डुलाया ... लेकिन वह खड़ा ही नहीं हुआ.

अफ़रोज़ बड़ी मायूसी के साथ बोला- देखा आपा ... अब ये खड़ा ही नहीं हो रहा है.

मैं- अरे क्या बात करते हो. अभी तुमने अपनी बहन का कमाल कहां देखा है, मैं अभी अपने प्यारे भाई का लंड खड़ा कर दूंगी.

ऐसा कह मैं भी उसकी बगल में ही लेट गयी और उसका लंड सहलाने लगी.

मैंने उससे मोबाइल में सेक्स कहानी पढ़ने को कहा.

अफ़रोज़- आपा, मुझे शर्म आ रही है.

मैं- साले, अपना लंड बहन के हाथ में देते शर्म नहीं आई.

वो कुछ नहीं बोला तो मैंने उसे ताना मारते हुए कहा- ला मुझे दे मोबाइल ... मैं पढ़ती हूँ.

मैंने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया और उसमें एक कहानी निकाली, जिसमें भाई बहन के सेक्स भरे संवाद थे.

मैंने अफ़रोज़ से कहा- मैं लड़की वाला डायलॉग बोलूंगी और तुम लड़के वाला.

मैंने पहले पढ़ा- अरे राजा ... मेरी चूचियों का रस तो तुमने बहुत पी लिया ... अब अपना बनाना (केला) शेक भी तो टेस्ट कराओ.

अफ़रोज़- अभी लो बहना ... पर मैं डरता हूँ इसलिए कि मेरा लंड बहुत बड़ा है तुम्हारी नाज़ुक कसी हुई चुत में कैसे जाएगा?

बस इतना ही पढ़कर हम दोनों ही मुस्करा दिए क्योंकि यहां हालात बिल्कुल उल्टे थे.

मैं उसकी बड़ी बहन थी और मेरी चुत बड़ी थी. उसका लंड छोटा था.

वह शर्मा गया लेकिन थोड़ी सी देर के बाद ही उसके लंड में जान भर गयी और लंड तनकर क़रीब 6 इंच का लंबा और खासा मोटा हो गया.

मैंने उसके हाथ से मोबाइल लेकर कहा- अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं. देख अब तेरा लंड खड़ा हो गया है. तू बस दिल में सोच ले कि तू किसी जवान लड़की की चुत चोद रहा है और मैं तेरी मुठ मार देती हूँ.

मैं अब उसके लंड की मुठ मार रही थी और वह मज़ा ले रहा था. बीच बीच मैं सिसकारियां भी भरता जा रहा था.

एकाएक उसने चूतड़ उठाकर लंड ऊपर की ओर किया और बोला- बस आपा ... मैं गया.

और उसी पल उसके लंड ने गाढ़ा पानी फैंक दिया जो मेरी हथेली पर आ गया.

मैं उसके लंड के रस को उसके लंड पर लगाती हुई उसी तरह सहलाती रही.

मैंने कहा- क्यों भाई मज़ा आया?

अफ़रोज़- सच में आपा, बहुत मज़ा आया.

मैं- अच्छा यह बता कि जब मैं तेरा लंड हिला रही थी तो तू अपने ख़्यालों में किसकी ले रहा था?

अफ़रोज़- आपा शर्म आती है ... मैं बाद में बताऊंगा.

इतना कह उसने तकिए में मुँह छिपा लिया.

मैं- अच्छा चल अब सो जा, नींद अच्छी आएगी ... और आगे से जब ये करना हो, तो दरवाज़ा बंद कर लिया करना.

अफ़रोज़- अब क्या करना दरवाज़ा बंद करके आपा ... तुमने तो सब देख ही लिया है.

मैं- चल शैतान कहीं के!

मैंने उसके गाल पैर हल्की सी चपत मारी और उसके होंठों को चूम लिया.

मैं अभी उसे और किस करना चाहती थी पर आगे के लिए छोड़ कर वापस अपने कमरे में आ गई.

अपनी सलवार कमीज़ उतार कर मैं नाइटी पहनने लगी ... तो देखा कि मेरी पैंटी बुरी तरह से भीगी हुई है.

अफ़रोज़ के लंड का पानी निकालते निकालते मेरी चुत ने भी पानी छोड़ दिया था.

अपना हाथ पैंटी में डालकर मैं अपनी चुत सहलाने लगी. हाथ का स्पर्श पाकर मेरी चुत फिर से सिसकने लगी और मेरा पूरा हाथ गीला हो गया.

चुत की आग बुझाने का कोई रास्ता नहीं था सिवाए अपनी उंगली के.

मैं बेड पर लेट गयी और चुत सहलाने लगी.

अफ़रोज़ के लंड के साथ खेलने से मैं बहुत उत्तेजित हो गई थी और अपनी प्यास बुझाने के लिए मैंने अपनी बीच वाली उंगली चुत की जड़ तक डाल ली.

मैंने तकिए को सीने से कसकर भींचा और जांघों के बीच दूसरा तकिया दबा आंखें बंद कर लीं.

अब अफ़रोज़ के लंड को याद करके मैं अपनी चुत में उंगली अन्दर बाहर करने लगी.

इस वक्त मुझ पर इतनी मस्ती छाई थी कि क्या बताऊं ... मन कर रहा था कि अभी जाकर अफ़रोज़ का लंड अपनी चुत में डलवा लूं.

उंगली से चुत की प्यास और बढ़ गयी थी ... इसलिए उंगली निकाल कर तकिए को चुत के ऊपर दबाया और औंधे मुँह लेटकर धक्के लगाने लगी.

बहुत देर बाद चुत ने पानी छोड़ा और मैं वैसे ही सो गयी.

सुबह उठी तो पूरा बदन अनबुझी प्यास की वजह से सुलग रहा था. लाख रगड़ लो चुत को तकिए पर ... लेकिन चुत में लंड घुसकर जो मज़ा देता है, उसका कहना ही क्या है.

बेड पर लेटे हुए मैं सोचती रही कि अफ़रोज़ के कुंवारे लंड को कैसे अपनी चुत का रास्ता दिखाया जाए.

फिर उठकर मैं तैयार हुई. अफ़रोज़ भी स्कूल जाने को तैयार था. नाश्ते की टेबल पर हम दोनों आमने-सामने थे. नज़रें मिलते ही रात की यादें ताज़ा हो गईं और हम दोनों मुस्करा दिए.

अफ़रोज़ मुझसे कुछ शर्मा रहा था कि कहीं मैं उसे छेड़ ना दूं. मुझे लगा कि अगर अभी कुछ बोलूंगी तो ये बिदक जाएगा ... इसलिए चाहते हुए भी मैं कुछ ना बोली.

घर से बाहर चलते समय मैंने कहा- चलो आज तुम्हें अपने स्कूटर से स्कूल छोड़ देती हूँ.

वह फ़ौरन तैयार हो गया और मेरे पीछे बैठ गया.

थोड़ा सकुचाता हुआ वह मुझसे अलग सा बैठा था. वह पीछे की स्टेपनी पकड़े था.

मैंने स्पीड से स्कूटर चलाया, तो उसका बैलेंस बिगड़ गया और खुद को संभालने के लिए उसने मेरी कमर पकड़ ली.

मैं बोली- कसकर पकड़ लो ... शर्मा क्यों रहे हो?

अफ़रोज़- अच्छा आपा.

उसने मुझे कसकर कमर से पकड़ लिया और मुझसे चिपक सा गया. उसका लंड कड़ा हो गया था और वह अपनी जांघों के बीच मेरे चूतड़ों को जकड़े था.

मैंने उसे छेड़ा- क्या रात वाली बात याद आ रही है अफ़रोज़?

अफ़रोज़- आपा रात की तो बात ही मत करो. कहीं ऐसा ना हो कि मैं स्कूल में भी शुरू हो जाऊं.

मैं- अच्छा मतलब बहुत मज़ा आया रात में!

अफ़रोज़- हां आपा इतना मज़ा ज़िंदगी में कभी नहीं आया. काश कल की रात कभी खत्म ही ना होती. आपके जाने के बाद मेरा फिर से खड़ा हो गया था, पर आपके हाथ में जो बात थी, वो कहां से आती. सो ऐसे ही पकड़ कर सो गया.

मैं- तो मुझे बुला लिया होता. अब तो हम तुम दोस्त हैं ... एक दूसरे के काम आ सकते हैं.

मेरी बात सुनकर अफ़रोज़ का मुंह खुला का खुला रह गया.

उसने मेरी तरफ देख कर हैरानी जाहिर की तो मैंने उसे आंख मार दी.

अफ़रोज़- तो फिर आपा ... आज रात का प्रोग्राम पक्का?

मैं- चल हट ... केवल अपने बारे में ही सोचता है, ये नहीं पूछता कि मेरी हालत कैसी है. मुझे तो किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है. चल मैं आज नहीं आती तेरे पास!

अफ़रोज़- अरे आपा आप तो नाराज़ हो गईं. आप जैसा कहेंगी, मैं वैसा ही करूंगा. मुझे तो कुछ भी पता नहीं है, अब आप ही को मुझे सब सिखाना होगा.

मैंने ओके कह दिया.

तब तक उसका स्कूल आ गया था.

मैंने स्कूटर रोका और वह उतरने के बाद मुझे देखने लगा.

लेकिन मैं उस पर नज़र डाले बग़ैर आगे चल दी. स्कूटर के शीशे में देखा कि वह मायूस सा स्कूल में जा रहा था.

मैं मन ही मन बहुत ख़ुश हुई कि चलो मैंने अपने दिल की बात का इशारा तो उसे दे ही दिया.

दोपहर को मैं अपने कॉलेज से जल्दी ही वापस आ गयी थी.

अफ़रोज़ 2 बजे वापस आया तो मुझे घर पर देखकर हैरान रह गया.

मुझे लेटा देखकर बोला- आपा आपकी तबीयत तो ठीक है न?

मैं- ठीक ही समझो, तुम बताओ कुछ होमवर्क मिला है क्या?

अफ़रोज़- आपा, कल संडे है ... वैसे कल रात का काफ़ी होमवर्क बाकी बचा हुआ है.

मैंने हंसी दबाते हुए कहा- क्यों पूरा तो करवा दिया था. वैसे भी तुमको यह सब ज्यादा नहीं करना चाहिए. सेहत पर असर पड़ता है, इससे तो अच्छा है कि कोई लड़की पटा लो. आजकल की लड़कियां भी इस काम में काफ़ी इंटरेस्टेड रहती हैं.

अफ़रोज़- आपा आप तो ऐसे कह रही हैं ... जैसे लड़कियां मेरे लिए सलवार नीचे और कमीज़ ऊपर किए तैयार हैं कि आओ पेंट खोलकर मेरी ले लो.

मैं- नहीं यार, ऐसी बात नहीं है. लड़की पटानी आनी चाहिए.

फिर मैं उठकर नाश्ता बनाने लगी.

मैं मन में सोच रही थी कि कैसे इस कुंवारे लंड को लड़की पटाकर चोदना सिखाऊं.

नाश्ता बनाने के बाद मैंने उसे टेबल पर सजा दिया, अफ़रोज़ को आवाज दी और वो मेरे साथ नाश्ता करने लगा.

मैंने नाश्ते के दौरान ही उससे पूछा- अच्छा यह बता तेरी किसी लड़की से दोस्ती है?

अफ़रोज़- हां आपा ... अपनी फूफी की बेटी नफ़ीसा से.

मैं- कहां तक?

अफ़रोज़- बस बातें करते हैं और स्कूल में साथ ही बैठते हैं.

मैंने सीधी बात करने के लिए कहा- कभी उसकी लेने का मन करता है!

अफ़रोज़- आपा आप कैसी बात करती हैं!

वह शर्मा गया था तो मैं बोली- इसमें शर्माने की क्या बात है. मुठ तो तो रोज़ ही मारता है. ख़्यालों में कभी नफ़ीसा की ली है या नहीं ... सच सच बताना.

अफ़रोज़- लेकिन आपा ख़्यालों में लेने से क्या होता है?

मैंने कहा- तो इसका मतलब है कि तू उसकी असल में लेना चाहता है.

अफ़रोज़- उससे ज़्यादा तो और एक लड़की है ... जिसकी मैं लेना चाहता हूँ. वो मुझे बहुत ही अच्छी लगती है.

मैं- जिसकी कल रात मैंने ख़्यालों में ली थी?

उसने सर हिलाकर हां कर दिया.

पर मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने नाम नहीं बताया. इतना ज़रूर कहा कि उसकी चुदाई कर लेने के बाद ही उसका नाम सबसे पहले मुझे बताएगा.

मैंने भी ज़्यादा नहीं पूछा क्योंकि मेरी चुत फिर से गीली होने लगी थी.

मैं चाहती थी कि इससे पहले कि मेरी चुत लंड के लिए बेचैन हो ... वह ख़ुद मेरी चुत में अपना लंड डालने के लिए गिड़गिड़ाए.

और मैं चाहती थी कि वह लंड हाथ में लेकर मेरी मिन्नत करे कि आपा बस एक बार चोदने दो.

मगर मेरा दिमाग़ ठीक से काम नहीं कर रहा था कि किस तरह से अफ़रोज़ को अपने साथ सैट करूं.

अब तक नाश्ता खत्म हो गया था.

मैं उठ गई और अफ़रोज़ से बोली- अच्छा चल ... कपड़े बदल कर आ जा ... मैं भी बदल लेती हूँ.

वह अपनी यूनिफार्म चेंज करने गया और मैंने भी प्लान के मुताबिक़ अपनी सलवार कमीज़ उतार दी. फिर ब्रा और पैंटी भी उतार दी क्योंकि पटाने के मदमस्त मौकों पर ये सब कपड़े दिक्कत करते हैं.

अपना देसी पेटीकोट और ढीला ब्लाउज ही ऐसे मौक़े पर सही रहते हैं. जब बिस्तर पर लेटो, तो पेटीकोट अपने आप आसानी से घुटनों तक आ जाता है और थोड़ी कोशिश से ही और ऊपर आ जाता है.

जहां तक ब्लाउज का सवाल है, तो थोड़ा सा झुको, तू सारा माल छलक कर बाहर आ जाता है. बस यही सोचकर मैंने पेटीकोट और ब्लाउज पहना था.

वह सिर्फ़ पजामा और बनियान पहनकर आ गया.

उसका गोरा-चिट्टा चिकना बदन मदमस्त करने वाला लग रहा था.

एकाएक मुझे एक आईडिया आया. मैं बोली- अफ़रोज़, मेरी कमर में थोड़ा दर्द हो रहा है ... ज़रा बाम लगा दे.

उसके साथ बेड पर लेटने का यह परफ़ेक्ट बहाना था.

मैं बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी. मैंने पेटीकोट थोड़ा ढीला बांधा था इसलिए लेटते ही वह नीचे को खिसक गया और मेरे चूतड़ों के बीच की दरार दिखाई देने लगी.

लेटते ही मैंने हाथ भी ऊपर कर लिए ... जिससे ब्लाउज भी ऊपर को हो गया. उसे मालिश करने के लिए ज़्यादा जगह मिल गयी.

वह मेरे पास बैठकर मेरी कमर पर बाम लगाकर धीरे धीरे मालिश करने लगा.

उसका स्पर्श बड़ा ही सेक्सी था. मेरे पूरे बदन में मस्त सिहरन सी दौड़ गयी.

थोड़ी देर बाद मैंने करवट लेकर अफ़रोज़ की ओर मुँह कर लिया और उसकी जांघ पर हाथ रखकर ठीक से बैठने को कहा.

करवट लेने से मेरी चूचियां ब्लाउज के ऊपर से आधी से ज़्यादा बाहर निकल आई थीं.

उसकी जांघ पर हाथ रखे रखे ही मैंने पहले की बात आगे बढ़ाई- तुझे पता है कि लड़की को कैसे पटाया जाता है?

अफ़रोज़- अरे आपा, अभी तो मैं छोटा हूँ. ये सब आप बताएंगी, तब तो मालूम होगा मुझे.

बाम लगाने के दौरान मेरा ब्लाउज ऊपर को खिंच गया था, जिसकी वजह से मेरी गोलाइयां नीचे से भी झांक रही थीं.

मैंने देखा कि वह एकटक मेरी चूचियों को घूर रहा है. उसके कहने के अंदाज़ से भी मालूम हो गया था कि वह इस सिलसिले में और ज़्यादा बात करना चाह रहा है.

मैं- अरे यार, लड़की पटाने के लिए पहले ऊपर ऊपर से हाथ फेरना पड़ता है. ये मालूम करने के लिए कि वह बुरा तो नहीं मानेगी.

अफ़रोज़- पर कैसे आपा!

उसने पूछा और अपने पैर ऊपर को कर लिए.

मैंने भी थोड़ा सा खिसक कर उसके लिए जगह बनाई और कहा- देख जब लड़की से हाथ मिलाओ, तो उसको ज़्यादा देर तक पकड़ कर रखो, देखो कब तक नहीं छुड़ाती है ... और जब पीछे से उसकी आंख बंद करके पूछो कि मैं कौन हूँ ... तो अपना केला धीरे से उसके पीछे लगा दो. जब कान मैं कुछ बोलो, तो अपना गाल उसके गाल पर रगड़ दो. वो अगर इन सब बातों का बुरा नहीं मानती है ... तो ही आगे की सोचो.

अफ़रोज़ बड़े ध्यान से ये सब सुन रहा था.

वह बोला- आपा नफ़ीसा तो मेरी इन सब बातों का कोई बुरा नहीं मानती जबकि मैंने कभी ये सोचकर नहीं किया था. कभी कभी तो मैं उसकी कमर में हाथ डाल देता हूँ, पर तब भी वह कुछ नहीं कहती है.

मैं- तब तो यार ... छोकरी तैयार है और अब तू उसके साथ दूसरा खेल शुरू कर!

अफ़रोज़- कौन सा आपा?

मैं- बातों वाला. यानि कभी उसके संतरों की तारीफ़ करके देख, क्या कहती है ... अगर मुस्कराकर बुरा मानती है, तो समझ ले कि पटाने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी.

अफ़रोज़- पर आपा, उसके तू बहुत छोटे-छोटे संतरे हैं ... तारीफ़ के काबिल तो आपके हैं.

अफ़रोज़ इतना बोला और उसने शर्माकर अपना मुँह छिपा लिया.

मुझे तो इसी घड़ी का इंतजार था.

मैंने उसका चेहरा पकड़कर अपनी ओर करते हुए कहा- साले मैं तुझे लड़की पटाना सिखा रही हूँ और तू मुझ पर ही नज़रें जमाए हुए है!

अफ़रोज़- नहीं आपा ... सच मैं आपकी चूचियां बहुत प्यारी हैं. वो करने का बहुत दिल करता है.

ये कह कर उसने मेरी कमर में एक हाथ डाल दिया.

मैं- अरे वो क्या करने को दिल करता है ये तो बता?

मैंने इठलाकर पूछा, तो वो बोला- आपा इनको सहलाने का और इनका रस पीने का.

इसका मतलब साफ़ था कि उसके हौसले बुलंद हो चुके थे और उसे यक़ीन था कि अब मैं उसकी बात का बुरा नहीं मनूंगी.

मैं- तो कल रात बोलता. तेरी मुठ मारते हुए इनको तेरे मुँह में लगा देती. मेरा कुछ घिस तो नहीं जाता. चल आज जब तेरी मुठ मारूंगी ... तो उस वक़्त अपनी मुराद पूरी कर लेना.

इतना कह मैंने उसके पजामा में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया जो पूरी तरह से टनटना रहा था.

मैं- अरे ये तो अभी से तैयार है!

तभी वह आगे को झुका और उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपा लिया.

मैंने उसको बांहों में भरकर अपने क़रीब लिटा लिया और कसके दबा लिया. ऐसा करने से मेरी चुत उसके लंड पर दबने लगी.

उसने भी मेरी गर्दन में हाथ डाल कर मुझे अपने सीने से दबा लिया. तभी मुझे लगा कि वो ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी चूची को चूस रहा है.

मैंने उसके कान में कहा- अरे ये क्या कर रहा है ... मेरा ब्लाउज ख़राब हो जाएगा.

उसने झट से मेरा ब्लाउज ऊपर किया और एक निप्पल को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.

मैं उसकी हिम्मत की दाद दिए बग़ैर नहीं रह सकी.

वह मेरे साथ पूरी तरह से आज़ाद हो गया था. अब यह मेरे ऊपर था कि मैं उसको कितनी आज़ादी देती हूँ.

अगर मैं उसे आगे कुछ करने देती, तो इसका मतलब था कि मैं चुदवाने के लिए ज़्यादा बेकरार हूँ ... और अगर उसे मना करती तो उसका मूड ख़राब हो जाता और शायद फिर वह मुझसे बात भी ना करता.

इसलिए मैंने बीच का रास्ता लिया और बनावटी ग़ुस्से से बोली- अरे ये क्या ... तू तो ज़बरदस्ती करने लगा. तुझे शर्म नहीं आती.

अफ़रोज़- ओह आपा, आपने तो कहा था कि मेरा ब्लाउज मत ख़राब करो. रस पीने को तो मना नहीं किया था ना ... इसलिए मैंने ब्लाउज को ऊपर उठा दिया.

मैंने देखा कि उसकी नज़र अभी भी मेरी चूची पर ही थी जो कि ब्लाउज से बाहर थी.

वह अपने को और नहीं रोक सका और फिर से मेरी चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा. मुझे भी मज़ा आ रहा था और मेरी प्यास बढ़ रही थी.

कुछ देर बाद मैंने ज़बरदस्ती उसका मुँह चूची से हटाया और दूसरी चूची की तरफ़ लाते हुए बोली- अबे साले ये दो होती हैं ... और दोनों में बराबर का मज़ा होता है.

उसने मेरे दूसरे मम्मे को भी ब्लाउज से बाहर किया और उसका निप्पल मुँह में लेकर चुभलाने लगा.

साथ ही वो अपने एक हाथ से मेरी पहली चूची को सहलाने मसलने लगा.

कुछ देर बाद मेरा मन उसके गुलाबी होंठों को चूमने को करने लगा तो मैंने उससे कहा- कभी किसी को किस किया है?

अफ़रोज़- नहीं आपा ... पर सुना है कि इसमें बहुत मज़ा आता है.

मैं- बिल्कुल ठीक सुना है पर किस ठीक से करना आना चाहिए.

अफ़रोज़- कैसे?

उसने पूछा और मेरी चूची से मुँह हटा लिया.

अब मेरी दोनों चूचियां ब्लाउज से आज़ाद खुली हवा में तनी थीं लेकिन मैंने उन्हें छिपाया नहीं बल्कि अपना मुँह उसके मुँह के पास ले जाकर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.

फिर धीरे से अपने होंठों से उसके होंठ खोलकर उन्हें प्यार से चूसने लगी.

क़रीब दो मिनट तक मैं उसके होंठ चूसती रही फिर बोली- ऐसे!

वह बहुत उत्तेजित हो गया था.

इससे पहले कि मैं उससे कुछ बोलूं, वह भी एक बार किस करने की प्रेक्टिस कर ले, वह ख़ुद ही बोला- आपा मैं भी करूं आपको एक बार?

मैंने मुस्कराते हुए कहा- हां कर ले.

हम दोनों भाई बहन इस वक्त सेक्स की मस्ती में एक दूसरे को गर्म कर रहे थे.

अभी तक चुदाई होने की बात खुली नहीं थी. लेकिन मेरा मन तो बन चुका था कि आज अपने भाई से चुत चुदवानी ही है.

अब अफ़रोज़ ने मेरी ही अदा में मुझे किस किया. मेरे होंठों को चूसते समय उसका सीना मेरे मम्मों पर आकर दबाव डाल रहा था, जिससे मेरी मस्ती दोगुनी हो गयी थी.

उसका किस खत्म करने के बाद मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और बांहों में लेकर फिर से उसके होंठ चूसने लगी.

इस बार मैं थोड़ा ज़्यादा जोश से उसे चूस रही थी.

उसने भी मेरी एक चूचि पकड़ ली थी और उसे कस कसकर दबा रहा था.

मैंने अपनी कमर आगे करके चुत उसके लंड पर दबाई. भाई का लंड तो एकदम तनकर लोहे की रॉड हो गया था.

चुदवाने का एकदम सही मौक़ा था पर मैं चाहती थी कि वह मुझे चोदने के लिए मुझसे भीख मांगे और मैं उस पर अहसान करके उसे अपनी चुत चोदने की इज़ाज़त दूं.

मैं बोली- चल अब बहुत हो गया, ला अब मैं तेरी मुठ मार दूं!

अफ़रोज़- आपा, एक दरख्वास्त करूं?

मैंने पूछा- क्या ... लेकिन तेरी दरख्वास्त ऐसी होनी चाहिए कि मुझे बुरा ना लगे.

ऐसा लग रहा था कि वह मेरी बात ही नहीं सुन रहा था ... बस अपनी कहे जा रहा था.

वह बोला- आपा, मैंने सुना है कि अन्दर डालने में बहुत मज़ा आता है. डालने वाले को भी और डलवाने वाले को भी. मैं भी एक बार अन्दर डालना चाहता हूँ!

मैं- नहीं अफ़रोज़ तुम मेरे छोटे भाई हो और मैं तुम्हारी बड़ी बहन.

अफ़रोज़- आपा मैं आपकी लूंगा नहीं ... बस अन्दर डालने दीजिए.

मैं- अरे यार अन्दर डाल दिया ... तो फिर लेने में क्या बचा.

अफ़रोज़- आपा, मैं बस अन्दर डालकर देखूँगा कि कैसा लगता है ... मैं आपको चोदूंगा नहीं ... प्लीज़ आपा!

मैंने उस पर अहसान करते हुए कहा- तुम मेरे भाई हो इसलिए मैं तुम्हारी बात को मना नहीं कर सकती पर मेरी एक शर्त है. तुमको बताना होगा कि अक्सर ख़्यालों में तुम किसकी चुत चोदते हो?

ये कहती हुई मैं बेड पर पैर फैलाकर चित लेट गयी और उसे घुटने के बल अपने ऊपर बैठने को कहा.

वह बैठा तो मैंने उसके पजामे के इजारबंद को खोलकर पजामा नीचे कर दिया.

उसका लंड तनकर खड़ा था. मैंने उसकी बांह पकड़ कर उसे अपने ऊपर कोहनी के बल लिटा लिया, जिससे उसका पूरा वज़न उसके घुटनों और कोहनी पर आ गया.

वह अब और नहीं रुक सकता था.

उसने मेरी एक चूची को मुँह में भर लिया जो कि ब्लाउज से बाहर थी.

मैं उसे अभी और छेड़ना चाहती थी- सुन अफ़रोज़, ब्लाउज ऊपर होने से चुभ रहा है ... ऐसा कर इसको नीचे करके मेरे संतरे ढांप दे.

अफ़रोज़- नहीं आपा, मैं इसे पूरा खोल देता हूँ.

odinchacha
odinchacha
252 Followers
12