महारानी देवरानी 058

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राज की बात
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Part 58 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 58

राज की बात

बाज़ार में अपनी जांच पडताल करता हुआ सेनापति सोमनाथ तमाशे वाले की ओर बढ़ रहा था।

सोमनाथ: (मन में-मैंने सांप को महारानी शुश्रुष्टि के हाथ में तो देखा और वह उसे देवरानी के घोड़े पर लादे हुए सामान में रखते हुए भी मैंने देखा था पर जो आदमी महारानी से मिलने आया था, उसका पता मिले तो काम बन जाएगा ।

बाजार में बड़ा-सा घेरा बना कर लोग तमाशे वाले का तमाशा देख रहे थे।

"आपने देखा कैसे हमने ये गायब कर दिया । अब हम आप सब को सांप का नाच दिखाएंगे।"

सेनापति सोमनाथ भीड़ को चीरता हुआ आगे जाने लगता है।

"देवियो और सज्जनों डरने की ज़रूरत नहीं ये सांप जंगली तो है। पर मुझे काटेगा नहीं और मेरे रहते हुए ये किसी और को भी नहीं काटेगा।"

"ए बच्चो तुम थोड़ा दूर हो जाओ! "

भीड़ में भी लोग कहते है ।

"बच्चो दूर रहो!"

अब तमाशा वाला अपना पेटारा खोलता है और सांप को कहता है।

"नाच मेरे राजा तुझे सिक्का मिलेगा!"

सांप अपना सर उठाये सर को हवा में चारो और घुमाता है।

चारो और खड़ी भीड़ ताली बजाती है।

सोमनाथ अब सबसे आगे आकर खड़ा हो जाता है।

सोमनाथ (मन में-"ये तो वह नहीं है जो महल में आया था।)"

थोड़े देर बाद वह खेल दिखा कर तमाशे वाला अपने पेटरे को ले कर सब के पास जाने लगता है।

"भाईओ और बहनो आप सब ख़ुशी से जो भी देंगे ये संपेरा उसे रख लेगा।"

धीरे-धीरे भीड़ छंटनी शुरू ही जाती है।

और तमाशे वाला सपेरा अपने पेटारी में लोगों द्वारा दिए गए सिक्को को निकल कर गमछे में बाँधने लगता है।

तभी उसकी नज़र सामने खड़े सोमनाथ पर पड़ती है ।

तमाशे वाला: उस्ताद आप क्यू खड़े हैं। खेल तो ख़तम हो गया है।

सोमनाथ: अरे! खेल तो अब शुरू हुआ है, मैं सेनापति सोमनाथ हूँ इधर आओ।

तमाशे वाला डर के पास आता है।

"श्रीमान मैं कभी-कभी ही यहाँ पर अपना खेल दिखाता हूँ अगर आपको चाहिए तो आज की कमाई आप रख लो।"

डरते हुए सवेरा सोमनाथ से कहता हैं।

सोमनाथ: मूर्ख तुम्हे मेरे बारे में पता नहीं है ।

डरते हुए तमाशे वाला सोमनाथ के समीप आकर उन्हें प्रणाम करता है और कहता है ।

तमाशेवाला: श्रीमान कुछ सैनिक आते हैं और हम से सिक्को की मांग करते हैं और नहीं देने पर कहते हैं कि वह हमें यहाँ काम नहीं करने देंगे। मैंने सोचा आप भी इसीलिए आये हैं । इसलिए ऐसा कहा। क्षमा करे। मुझे!

सोमनाथ का मस्कुराते हुए बोलता है "ठीक है । डरो मत! तुम्हारा नाम क्या है तमाशे वाले?"

"सरकार हमारा नाम दुर्जन है।"

सोमनाथ: देखो दुर्जन! अगर मैं चाहूँ तो तुम से जो कर वसूला जाता है, सैनिको द्वारा, वह इस बाज़ार में तुमसे जीवन भर नहीं वसुला जाएगा ।

दुर्जन: सही में महाराज!

सोमनाथ: पर उसके लिए तुम्हें मेरा एक काम करना पड़ेगा।

दुर्जन: मेरा जैसा तुच्छ! भला आपके क्या काम आएगा! श्रीमान!

सोमनाथ! देखो दुर्जन मुझे जितने भी संपेरे है। उनसब से मिलना है।

दुर्जन: श्रीमान् किसलिए?

सोमनाथ: मुझसे प्रश्न मत करो! जो कहता हूँ वह करते जाओ!

दुर्जन: तो सरकार हमारी बस्ती यहाँ से 4 कोस दूर है। आप चाहे तो चले हमारे साथ।

सोमनाथ: चलो!

सेनापति दुर्जन को ले कर उस सपेरे- (जिसे उसने महल में देखा था) की खोज में निकल जाता है। सेनापति और दुर्जन दोनों संपेरो की बस्ती में पहुँचते है।

सोमनाथ: गाँव में ढिंढोरा पीट दो के जितने तमाशे वाले पुरुष हैं। उन्हें बाहर आना है।

दुर्जन: कौन पीटेगा ढिंढोरा?

सोमनाथ: तुम! ये कोई बड़ी बस्ती नहीं हो। तुम हर घर जा कर सबको बाहर बुलाओ!

दुर्जन: ठीक है! सरकार!

दुर्जन जा कर हर घर में कह देता है कि सेनापति आप सब से मिलना चाहते हैं।

देखते देखते कुल मिला कर 35 से 40 लोग इकट्ठा हो जाते हैं।

सोमनाथ: दुर्जन कोई रह तो नहीं गया?

दुर्जन: नहीं सरकार सभी आगये हैं।!

सोमनाथ एक-एक को बड़े गौर से देखता है पर उनसे कोई भी वह नहीं था जो उस दिन महल में आया था।

तभी सोमनाथ की नज़र एक अधेड़ उम्र की व्यक्ति पर पड़ती है।

दुर्जन: श्रीमान ये हमारे सरदार हैं। आलोक!

सोमनाथ एक मुस्कान के साथ -"सुनो! सिर्फ आलोक का छोड कर, तुम सब जा सकते हो"

आलोक जैसे वह भीड छटते हुए देखता है और सेनापति को अपनी ओर आये हुए देखता है और उलटा हो भागने लगता है।

सेनापति उसके पीछे दौड़ने लगता हैं।

दुर्जन: ई का हो रहा है?

"रुक जाओ आलोक!"

आलोक भागा ही जा रहा था और गाँव की गलियों से दूर निकल जाता है। सोमनाथ उसका पीछा नहीं छोड़ता आख़िर कर थोड़ा दौड़ने के बाद आलोक हाफने लगता है और सोमनाथ उसे दबोच लेता है।

सोमनाथ: सोमनाथ की चुंगल से बच नहीं पाओगे। आलोक!

आलोक: आप मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैंने कुछ नहीं किया1

सोमनाथ दुर्जन मेरा घोड़ा खोल कर लाओ!

दुर्जन घोड़ा खोल कर लाता है।

सोमनाथ ने आलोक की गर्दन को पकड़ कर रखा था और आलोक छूट भागने का अपना प्रयास कर रहा था।

भीड जो लौट रही थी वही रुक जाती है और कुछ घरो से बच्चे और औरतें भी बाहर आ जाती है।

भीड़ से एक संपेरा पूछता है- "महाराज इनहोने क्या किया है जो आप इन्हें पकड़ रहे हैं? ये हमारे सरदार हैं।"

"ऐ हम तुम्हारी जिभ पकड़ कर खींच लेंगे। हम सेनापति सोमनाथ हैं और राष्ट्रहित में ये काम किया जा रहा है। अगर ज्यादा चतुराई दिखाई देगी। तो ये तुम सब के लिए अच्छा नहीं होगा ।"

सब डर जाते हैं।

सोमनाथ दुर्जन! आलोक के बदले में तुम्हें तुम्हारा उपहार मिल जाएगा ।

आलोक: मुझे छोड़ दो महाराज! मैंने कुछ नहीं किया!

सोमनाथ आलोक को बाँध कर घोड़े पर लाद देता है और उसको लिए हुए महल की ओर जाने लगता है।

सोमनाथ: (मन में-आलोक तुम मेरे घटराष्ट्र का राजा बनने के बरसों के सपने, की कुंजी हो! अब राजपाल से राजगद्दी छीनने का सही समय आ गया है ।)

सोमनाथ आलोक को अपने कक्ष में ला कर रस्सी से बाँध देता है।

सोमनाथ: बोलो आलोक तुम उस दिन महारानी श्रुष्टि से मिलने क्यों आये थे?

आलोक: मैं तो बस कुछ समान पहुँचाने आया था।

सोमनाथ पास रखा कौड़ा उठा कर खीच कर एक बार कौड़ा आलोक को मारता है।

आलोक अह्ह्ह! मर गया!

सोमनाथ: बताएगा नहीं तो तुझे आज मैं जान से मार दूंगा। आलोक मुझे झूठ नहीं सुनना!

आलोक: महाराज आप महारानी श्रुष्टि से ही पूछ लीजिये मैं किस काम से आया था।

सोमनाथ: तेज़ बनने की कोशिश! वह भी सोमनाथ के सामने!

और फिर सोमनाथ बंधे हुए आलोक पर कौडों की बारिश कर देता है पर आलोक कुछ भी उगलने के लिए तैयार नहीं था।

सोमनाथ अपनी तलवार निकालता है।

"आलोक मुझे जो जानना है वह तो मैं जान ही लूंगा, मुझे जानन है कि तुम महारानी शुष्टि के साथ क्या षड़यंत्र कर रहे हो और तुमने महारानी को विषधर सांप क्यों दिया है ।"

ये सुन कर आलोक की आखे फटी की फटी रह जाती है।

"क्यू आलोक तुम्हारे आँखे क्यों फट गई?"

"देखो आलोक अगर मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ, तो भी राज्य में षड्यंत करने के जुर्म में तुम आज नहीं तो कल फांसी पर चढ़ा दिए जाओगे उससे अच्छा है मैं तुम्हे आज ही मार देता हूँ।"

अब आलोक डर जाता है कहीं वह उसे मार ही ना दे।

"नहीं महाराज!"

सोमनाथ अपना तलवार उठा कर अपनी एक उंगली तलवार पर फेरता है।

"एक झटके में ही तुम्हारा सर धड से अलग होगा।"

सोमनाथ जैसे ही तलवार को ऊपर उठाता है।

आलोक अपना आँखे बंद कर लेता है।

"महाराज मत मारो मुझे । मैं सब बताता हूँ।"

सोमनाथ मुस्कुराते हुए अपनी तलवार नीचे करता है और कहता है।

"तो शुरू हो जाओ आलोक!"

रात में उस बंद कमरे में इधर सोमनाथ आलोक से पूरा षड्यंत्र जान रहा था। उधर दिल्ली के पास देवरानी बलदेव के साथ तंबू में सोई हुई थी।

कुछ 4 बजे बलदेव की नींद टूट गई है तो वह देखता हैकी देवरानी उसके कांधे पर सर रखे सोई हुई है।

बलदेव (मन में: कितनी मासूम लग रही है माँ देवरानी सोते हुए. मैंने माँ को इतने चैन से सोते हुए कभी नहीं देखा हैं ।

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा का देवरानी के बाल जो उसके चेहरे पर आ गए थे उनको सवारता है और देवरानी के सर पर सहलाने लगता है।

थोडे देर ऐसे ही सहलाने से देवरानी की भी आँख खुलती है और वह पाती है कि बलदेव उसे देख रहा था और उसे प्यार से सहला रहा था।

"उठ जाऔ मेरी रानी! हमें जाना भी है।"

"सोने दो ना बलदेव!"

बलदेव देवरानी के सर को सहला रहा था। देवरानी फिर आखे बंद कर लेती है।

दस मिनट बाद।

"उठ जाओ मेरी माँ! हमें चलना है।"

"बलदेव तुम्हारे बाहो में मुझे थोड़ी देर और सोने दो!"

"मां तुम्हारे नखरे बढ़ते हे जा रहे हैं।"

"हाँ तो और कौन करेगा मेरे नखरे बर्दाश्त, बड़ी-बड़ी बातें करते हो कि पत्नी बनाऊंगा ये वो!"

देवरानी की बात सुन कर बलदेव मुस्कुराता है।

"मां अभी बनी तो नहीं हो ना और अभी से हक जता रही हो।"

"और तूने जो रात भर मेरे साथ किया है। तू भी तो मेरा पति नहीं है। ना!"

देवरानी धीमी आवाज में कहती है।

"अरी मेरी रानी!"

बलदेव देवरानी को अपने से चिपका लेता है।

"महारानी जी उठो! हमें जाना है। समय रहते हमे शत्रु की क्षेत्र से निकलना है।"

"हाँ तो अगली बार मत कहना कि मैं हक जता रही हूँ।"

"बिल्कुल नहीं मेरी रानी! मेरा सब कुछ आपका ही है। मैं तो ऐसे ही बोल रहा था।"

देवरानी मुस्कुराती हुई।

"मुझे पता है। मेरा राजा! कभी मेरे से तंग नहीं आ सकता, मैं भी मज़ाक कर रही थी मेरे रोम-रोम पर सिर्फ मेरे बलदेव का हक है।"

देवरानी उठ खड़ी होती है।

"बेटा तुम बाहर जाओ मुझे कुछ काम है।"

"क्या काम है। माँ आप मेरे सामने कर लो ना! "

"नहीं बेटा वह मुझे कपड़े बदलने है।"

"क्यू माँ ये जो आपने अभी पहने हुए है वह अच्छे भले तो है ।"

"वो बेटा! गंदे... हो..।."

देवरानी अपना सर नीचे झुका लेती है।

बलदेव की नज़र देवरानी के घाघरे पर जाती हैऔर देवरानी की चूत के ठीक ऊपर उसे एक धब्बा दिखता है।

बलदेव अंजान बनते हुए।

"माँ मुझे समझ नहीं आया।"

देवरानी फिर बलदेव को देखते हुए-"पगले वह रात में मेरा घाघरा भीग गया था।"

ये कह कर अपने आँखे तरेर कर बलदेव को देखती है और अपने पैरो की उंगली से जमींन कुरेदने लगती है।

माँ की बात सुन और उसे शर्माता देख बलदेव मुस्कुरा देता है।

"तो माँ आप इन्हे पारस जा कर भी बदल सकती हैं।"

"पर बेटा सुबह होने को है और मैं पूजा कर के ही निकलूंगी यहाँ से और ऐसे गंदे वस्त्र में आगे नहीं जा सकती..।."

देवरानी अब पानी-पानी हो गई थी वह अपने बेटे को कैसे बताये की उसकी चूत के पानी ने उसका घाघरा खराब कर दिया है।

"हम्म माँ! तो बदल लो।"

"और वैसे बेटा दिन में अगर कहीं गलती से बद्री या श्याम की नज़र इस पर पड़ी तो वह क्या सोचेंगे"

"क्या सोचेंगे माँ यही सोचेंगे कुछ गिर गया होगा और वैसे भी समझ गए तो आपको तो कुछ नहीं बोलेंगे ।"

"पर वह दोनों मुझे माँ जैसी समझते है और इसीलिए मौसी कहते है और मैं भी उनको अपना बेटे जैसा प्यार देती हूँ।"

"देवरानी जी तो कह देना अपनी बेटो से कि ये दाग तुम्हारे होने वाले पति के कारण है।"

देवरानी: हट बदमाश कमीने!

"अगर तुम नहीं कहोगी तो मैं अपने मित्रो से कहूंगा कि मित्रो! तुम दोनों की भाभी देवरानी ही है।"

और बलदेव हसता है।

"तू सुधरेगा नहीं बलदेव!"

"तुम्हारे जवानी ने मुझे बिगाड़ दिया है। मेरी रानी!"

"अब जाओ ना बाहर और तुम भी अपनी धोती बदल लो।"

और देवरानी भी हसती है।

" मां तुम मेरे सामने नहीं बदल सकती हो, कहती है पत्नी बनूंगी! और झूठा गुस्सा दिखाते हुए बलदेव बाहर जाता है।

इधर बद्री और श्याम भी उठ जाते हैं। बलदेव देखता है। दोनों बैठ कर दातुन कर रहे थे।

बलदेव: शुभ प्रभात भाईयो! उठ गये तुम लोग!

दोनो चुप रहते है । कोई कुछ नहीं कहता।

"मैं माँ के लिए भी दातून बना देता हूँ।"

बद्री और श्याम की नज़र बलदेव की धोती पर लगे दाग पर जाती है और वह समझ जाते हैं दाग किस चीज का है और कैसे लगा।

कुछ देर बाद बलदेव दतुन ला कर माँ को देता है। धीरे-धीरे सब तैयार होते हैं।

देवरानी तैयार हो कर अपने साथ लाए छोटी-सी मूर्ति की पूजा करती है।

बलदेव: माँ आपकी पूजा हो गई हो तो बाहर आ जाओ हमेंआगे जाना है। बहुत सफर बाकी है ।

बद्री (मन में-सुबह सुबह पूजा कर रही है और रात में क्या कर रही थी। कैसे लोग होते हैं।)

देवरानी बाहर आती है।

बलदेव अब तंबू में जा कर अपनी धोती बदल लेता है और सब मिल कर सब समान इकट्ठा कर घोड़े पर बाँध देते हैं।

बलदेव: अरे तुम दोनों चुप क्यू हो सांप सूंघ गया क्या?

बद्री और श्याम चाहते थे के वह बलदेव से पूछे, पर देवरानी के सामने उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

बद्री हिम्मत कर के बोलता है ।

"सुनो बलदेव!"

बद्री बलदेव को ले कर देवरानी से दूर जाता है।

"बलदेव मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी थी।"

"हाँ कहो बद्री!"

"बलदेव हम तुम्हारे साथ और आगे नहीं जा सकते।"

तभी बलदेव देखता है कि बद्री के पीछे कुछ घुड़सावर आ रहे थे और उनमें से एक ने अपने धनुष से तीर खींच दिया था ।

फिर बलदेव देखता है के तीर बद्री की ओर तेजी से आ रहा है।

"बद्री बचो!"

बलदेव बद्री को ले कर नीचे गिर जाता है।

श्याम और देवरानी घोड़ों के पास खड़े थे।

बलदेव: भागो शत्रु हमारे पीछे आ गया है।

श्याम जल्दी से सब घोड़े खोल देता है और चारों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर भागने लगते हैं और उनके पीछे कुछ 10-15 घुड़सवार तलवार और धनुष लिये उनका पीछा कर रहे थे।

जारी रहेगी...

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