महारानी देवरानी 059

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बला टली
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Part 59 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 59

बला टली

बलदेव: भागो शत्रु हमारे पीछे आ गया है।

श्याम जल्दी से सब घोड़े खोल देता है और चारों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर भागने लगते हैं और उनके पीछे कुछ 10-15 घुड़सवार तलवार और धनुष लिये उनका पीछा कर रहे थे।

बलदेव, देवरानी, श्याम और बद्री इतने सुबह अपने ऊपर अचानक हुए इस हमले से अपनी जान ले कर भागना उचित समझते हैं। बद्री भी अचानक हुए हमले से हर बात भूल कर बलदेव के साथ भागने लगता है।

बलदेव: और तेज़ भागो, पता नहीं इन्हें हमारी खबर कैसे मिल गई?

बद्री: वह अभी भी हमारे पीछे है। बलदेव!

बलदेव: सब अपनी-अपनी तलवार निकाल लो।

"खच्च" से खीच कर बलदेव अपनी तलवार निकाल लेता है।

कुछ देर भागने के बाद।

श्याम: बद्री वह लोग हमारे पीछे नहीं हैं।

देवरानी: जान बची भगवान का शुक्र है । बला टली!

तबहि बलदेव देखता है के उसके सामने से वह घुड़सवार आ रहे थे ।

बलदेव: बला अभी टली नहीं है । सामने देखो!

देवरानी: ये तो यहीं के वासी लगते हैं इसीलिए इन्हें इस जंगल का चप्पा-चप्पा पता है। पर ये सब अपने चेहरे को ढके हुए क्यू है।

बद्री: चलो अब हो जाए दो-दो हाथ दोस्तो!

बलदेव: हाँ चलो और माँ आप यहीं रहें!

देवरानी: अपनी मर्यादा में रहो तुम सब। मैं महारानी देवरानी हूँ एक राजपूतानी। इन सबको सबक सिखाने का पहला हक मेरा है।

बलदेव: पर मौसी!

श्याम: रानी माँ आप को अगर आंच भी आ गयी तो हम महाराज को क्या मुँह दिखाएंगे।

बद्री: श्याम सही कह रहा है। मौसी!

बलदेव: बस करो! ये समय बात करने का नहीं मित्रो काम करने का है। बद्री तुम नीचे उतरो और वह पेड़ को काट सामने से बंद कर दो।

श्याम और मैं आगे जायेंगे । माँ तुम यहाँ पर रहना और तीरो से उनको धूल चटा देना।

देवरानी: मेरे पास आये तो मेरी तलवार उनका खून पीयेगी ।

बद्री झट से घोड़े से उतर एक पेड़ काट कर गिरा देता है और उसे रास्ते में बिछा कर अवरोध बना रास्ते को बंद कर देता है। बलदेव और श्याम अभी भी सामने से आ रहे हैं घुड़सवारो की ओर बढ़ रहे थे ।

बलदेव: जैसा ही मैं इशारा करू उन पर तीरो की बरसात कर देना।

बलदेव और श्याम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे, देवरानी अपना धनुष ताने खड़ी थी और बद्री पीछे धनुष ताने बलदेव के इशारे का इंतजार कर रहा था।

बलदेव: सब तैयार!

जैसे जैसे वह करीब आ रहे थे बलदेव उनके हर कदम को गिन रहा था और फ़िर इशारा करता है ।

बलदेव: आक्रमण!

घोड़े पर बैठी देवरानी अपने कमान से तीर छोड़ने लगती है और बद्री भी तेजी से तीर छोड़ रहा था।

तीर कुछ घोड़े को घायल कर रहा था। कुछ तीर घुड़सवारो को भी लगे!

और तभी एक बद्री का तीर एक घुड़सावर के सीने में लगा ।

"आआआआह!"

और वह ढेर हो गया।

दूसरा तीर देवरानी ने निशाना लगा कर मारा और अबकी देवरानी ने एक घुड़सवार को मार गिराया।

बलदेव: बहुत खूब, अब वह हमारे बिल्कुल पास है। तलवार से हमला करना बद्री!

श्याम: जय भवानी!

बलदेव: जय भवानी!

बद्री भी अपने घोड़े पर चढ़ तलवार निकाल कर तेज़ी से घोडा दौड़ाने लगता है। बलदेव और श्याम भी उतने में हमला करते है । दोनों गुटों की टक्कर होती है।

बलदेव अपने दूसरे हाथ में एक और तलवार ले लेता है।

बलदेव उनकी बीच पहुँच हमला करते हुए उन घुड़सवारों की तलवार पर अपनी तलवार मारता है। घुड़सवार दोनों तरफ से बलदेव के सर पर तलवार चलाते है। बलदेव झुक कर अपनी दोनों तलवारो से दोनों घुड़सवारों पर एक तेज प्रहार करता है और दोनों घुड़सवार गिर जाते है।

देवरानी के पास चार घुड़सावर आते हैं। जिसमें से दो नीचे बिछे पेड़ से टकरा कर गिर जाते है और अन्य दो को अपने तीर से देवरानी मार गिरा देती है।

देवरानी: अपना घोड़ा भगा कर घोड़े से गिरे दोनों व्यक्ति को अपने घोड़े से कुचलती है। फिर अपने तलवार के वार से-से उनके सर को अलग कर देती है ।

देवरानी: जय भवानी!

बलदेव श्याम और बद्री बचे हुए घुड़सवारों के साथ तलवार से लड़ रहे थे।

बलदेव फिर से दो लोगों को अपनी तलवार से मार गिराता है।

बद्री और श्याम एक से लड़ते हुए जा रहे थे बद्री अपने तलवार से उसका सर धढ़ से अलग कर देता है।

अब बस एक घुड़सवार ही बच गया था।

देवरानी बद्री श्याम बलदेव के पास आ जाते है।

वो व्यक्ति अपने आप को अकेला जिंदा देख डर जाता है और उसके हाथ से तलवार छूट जाती है।

श्याम: क्यू बहादुर फट गई? तलवारबाजी में तुम हम से कभी जीत नहीं सकते, चाहो तो अपने राजा शाहजेब से पूछ लो ।

बलदेव: श्याम रुको उसे मारना मत!

श्याम तलवार का एक वार उस घुड़सवार के हाथ पर देता है। वह घुड़सावर नीचे गिर जाता है।

"महरबानी कर के मुझे जाने दो!"

बलदेव बद्री देवरानी अपने घोड़ों से उतर कर हमें व्यक्ति के पास ले जाते है।

बलदेव: हमलावार अपनी पहचान बताऔ! कौन हो तुम?

देवरानी: कही तुम शाहजेब दुवारा तो नहीं भेजे गए हो?

श्याम घोड़े से उतरता हुआ।

"इसका पता ये खुद कहेगा । क्यू के मरना तो शायद इसे भी पसंद नहीं हो।"

श्याम उतार कर वह व्यक्ति जो अपना हाथ जोड़े पीछे खिसक रहा था, उसके पास जाता है।

बलदेव: बताओ किसने भेजा है, तुम्हे?

हमलावार: नहीं नहीं!

बद्री अपनी तलवार के लिए उसके पास जाता है और चिल्ला कर!

"आआआआआह" अपनी तलवार के वार से उसकी गर्दन को अलग कर देता है।

बलदेव: ये क्या किया बद्री? वह हमे बता सकता था कि उसको किसने भेजा था ।

बद्री चुप चाप अपना तलवार में लगे खून को अपने अंगुठे से पूछते हुए बोलता है ।

"श्याम चलो हम अपने तलवारे पास वाली नदी में साफ कर आएं!"

बद्री और श्याम पास ही नदी के किनारे पर जाने लगते हैं।

बलदेव: श्याम सुनो ये हमारे भी तलवार धो लाओ!

श्याम कुछ नहीं बोलता और उनकी तलवार ले कर जाने लगता है।

श्याम और बद्री नदी पर अपने तलवार धो कर साफ़ कर रहे थे।

बलदेव देवरानी के पास जाता है ।

बलदेव: कही तुम्हें चोट तो नहीं आई ना, मां!

देवरानी देखती है। बलदेव उसकी कितनी चिंता कर रहा है।

देवरानी: जब मेरे पास इतना बुद्धिमान और इतना वीर बेटा है तो नुझे कैसे खरोच आ सकती है।

देवरानी आ कर बलदेव से गले लग जाती है।

बलदेव धीमे स्वर में: देवरानी!

बलदेव: बला टली!

देवरानी: हाँ मेरे राजा! बला टली!

देवरानी फुसफुसाते हुए बलदेव को भींच कर पकड़ती है।

देवरानी: बेटा तुम्हें तो नहीं लगी ना, मुझे तो डर लग रहा था, कहीं मेरे राजा बेटे को कुछ नहीं हो जाए.!

बलदेव: जब तक आप मेरे साथ हो मुझे कुछ नहीं हो सकता। माता! वैसे आपने भी अच्छी युद्ध कला दिखायी।

देवरानी अपनी प्रशंसा सुन मुस्कुराती है।

नदी तट पर बैठे श्याम से बद्री बोलता है ।

बद्री: देखो इन बेशर्मो को फिर से चालू हो गए!

श्याम: हाँ पर अब हमें क्या करना चाहिए मुझे समझ नहीं आ रहा है ।

दोनों तलवारे साफ़ कर नदी से वापस आते हैं।

बलदेव: अच्छा हुआ तुम लौट आये! हमें अब चलना चाहिए!

बद्री: सुनो बलदेव!

बलदेव: हाँ बोलो मित्र आज तुम दोनों ने बहुत अच्छा युद्ध किया । आज अगर आचार्य जी होते तो बहुत खुश होते।

बद्री: (मन में-अब कैसे बोलू इसको?)

बद्री: भाई. मुझे वापस जाना है।

बलदेव को जैसे झटका लगता है।

बलदेव: पर तुम इतने दूर हो और दुश्मनो से घिरे हुए हो।

देवरानी: बेटा बद्री अकेले कही जाओगे तुम? तुम्हारा ऐसे अकेले जाना खतरे से खाली नहीं है ।

बलदेव: हमने इन सभी को मौत के घाट उतार दिया है पर जिसने इन्हें भेजा है उसे हमारे बारे में सब पता है और वह फिर से हमला कर सकता है।

श्याम: (मन में-बात तो बलदेव की ठीक है।

बद्री: नहीं मुझे कुछ नहीं सुनना।

बलदेव: बद्री! सुनो तुम्हें क्या परेशानी है? बोलो तो! तुम्हें अगर सही में घर जाना है। तो पहले हमारे साथ पारस चलो, हम आते समय तुम्हें तुम्हारे राज्य में छोड़ देंगे।

देवरानी: हाँ बद्री बेटा! बलदेव सही कह रहा है । अकेले जाने में खतरा है।

बद्री: पर मौसी (झुझलाते हुए!)...!

श्याम: बलदेव ठीक कह रहा है। अकेले जाने में तुम्हारी जान को खतरा है। अकेला जाना वैसे भी उचित नहीं है और हम दोनों जे महाराज को वचन दिया है माता देवरानी को सुरक्षित घाटराष्ट्र वापिस पहुँचाने का।

बद्री: पर...!

श्याम: पर वर कुछ नहीं। हमारे साथ चलो! नहीं तो कल महाराज को क्या मुंह दिखाओगे और तुम्हारी जो भी दुविधा है उसपर हम बात करेंगे।

श्याम आश्वासन देते हुए कहता हैं।

बद्री भी सब कुछ समझते हुए और खतरे का आकलन करने के बाद बलदेव के साथ जाने को तैयार हो जाता है और चारो अपने-अपने घोड़ो पर बैठ जाने लगते है।

श्याम: मौसी! ये धनुष बाण आप अपने झोले में रख दीजिए.

देवरानी: ठीक है। बेटा लाओ!

श्याम और बद्री अपने घोड़ो पर बैठ जाते हैं।

बलदेव देवरानी के पास खड़ा था।

देवरानी धनुष बाण अपने घोड़े पर लगे हुए झोले में रखने जाती है।

देवरानी: अरे ये तो सामान से भरा है।

श्याम: तो मौसी कुछ जगह बना लो।

देवरानी ऊपर के सामान को निकलने की कोशिश करती है और अपना दाया हाथ अंदर डालती है और वह सामान जो ओढ़ने के लिए था उसे बाहर निकल ही रही थी के देवरानी की नज़र उसके हाथ के पास अपना फैन उठाये सांप पर जाती है और वह सांप उड़के एक डंक मारता है। देवरानी का हाथ थोड़ा-सा उठ जाता है और सांप का डंक घोड़े की पीठ पर लग जाता है।

"आआआहह बलदेव!"

बलदेव भागती हुआ देवरानी के पास आता है। देवरानी सांप को देख अपने आप को संभाल नहीं पाती और गिरने लगती है। बलदेव आकर पीछे से उसे पकड़ लेता है।

देवरानी इशारे काले रंग सांप दिखाती है को झोले से निकल कर जा रहा था।

देवरानी को सीधा खड़ा कर बलदेव अपनी तलवार निकाल कर सांप की तरफ जाता है।

ये सब देख बद्री और श्याम भी आ जाते हैं।

देवरानी: छौड दो उसे ।

बलदेव: इस सांप ने मेरी माँ पर हमला किया है । इसकी तो...!

पर सांप तेजी से पास के जंगल में भाग जाता है।

बलदेव वापिस आता है और देवरानी उसके गले लग जाती है।

देवरानी: बलदेव ये क्या था। कौन हमारे पीछे पड़ा है।

बलदेव: जो भी है। उसको इसका उत्तर मैं दूंगा।

श्याम: ये जंगली सांप नहीं पालतू था।

तभी धप्प की आवाज आती है। सबकी नज़र उधर जाती है।

घोड़ा गिर गया था।

और थोड़े देर में वह उसकी जीभ बाहर आ जाती है मुँह से झाग निकलती है और घोड़ा मर जाता है।

देवरानी बलदेव के बाहो में सुरक्षित थी ।

"बलदेव अगर आज ये मुझे काट लेता तो।"

"ऐसा नहीं हुआ । घबराओ मत! हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है। जो भगवान हमारे साथ कभी ऐसा कुछ करेगा।"

"भगवान ने मेरी जान बचा ली बलदेव अगर मैं घोड़े पर बैठी होती तो...?"

बलदेव: बस माँ! शुभ-शुभ बोलो! तुम खुद कहती हो शुभ-शुभ बोलना चाहिए!

बद्री ये सब घूर-घूर के देख रहा था।

बद्री: वह सब तो ठीक है। आगे जाने के लिए मौसी के लिए घोड़ा कहा से लाये?

बलदेव: आपकी मौसी मेरे घोड़े पर बैठेगी!

बलदेव: क्यू रानी माँ बैठोगी?

देवरानी: हाँ बैठूंगी!

देवरानी लज्जा रही थी।

श्याम और बद्री जो दोनों का खेल जान गए थे पर अंजान बने हुए थे और दोनों के बातचीत को भली भांति समझ रहे थे।

बद्री: तो चलो हमें जल्दी निकलना चाहिए।

बलदेव माहौल को थोड़ा ठीक करते हुए कहता है ।

"मां अब ये मत कहना के भगवान ने जान बचा ली, तो एक बार यहाँ भी पूजा करनी है।"

श्याम: वैसे वह सुबह की पूजा के वजह से हम पहले ही देरी से निकले थे।

देवरानी: तुम लोगों को क्या पता? हो सकता है, भगवान ने मेरी भक्ति देख मेरी जान बक्श दी है आज और मेरी पूजा से ही हम सब आज सुरक्षित हैं।

बलदेव: हाँ माँ! तुम ठीक कह रही हो।

देवरानी: इसलिये भगवान को कभी भूलना नहीं चाहिए, वही जीवन देता है, वही मृत्यु!

बद्री (मन में: अभी ज्यादा पूजा कर रही हो मौसी! संसार को इस बात का क्या पता तुम असल में कितनेी संस्कारी हो?)

श्याम: देवी माँ! अब चलो भी। यहाँ पर पूजा पाठ शुरू मत कर देना।

श्याम और बद्री वापस अपने घोड़ों पर बैठ जाते हैं।

बलदेव मरे हुए घोड़े से बंधा सामान निकाल कर अपने घोड़े पर और कुछ श्याम के घोड़े पर लाद देता है।

बलदेव: माँ आप बैठो घोड़े पर!

देवरानी: अब क्या करू मुझे इस पर ही बैठना पड़ेगा।

बलदेव: हाँ! अब हमारे पास दूसरा कोई चारा भी नहीं है ।

देवरानी झट से अपने दोनों लम्बी टाँगे उठा कर घोड़े के पीठ पर बैठ जाती है और उसके बाद बलदेव भी उसके पीछे बैठ जाता है।

बलदेव: माँ थोड़ा पीछे आओ!

देवरानी मुस्कुराते हुए पीछे आती है।

बलदेव: माँ अब थोड़ा उठो और फिर बैठो!

बलदेव अपने बाये हाथ से घोड़े की लगाम पकड़े थे और बाएँ हाथ से अपनी धोती में अपने लौड़े को सही करते हुए कहता हैं।

देवरानी सब कुछ समझ रही थी और एक मादक मुस्कान के साथ बैठ जाती है।

देवरानी को अपने पिछवाड़े में हथोड़े जैसा महसूस होता है और वह उचक जाति है।

हे भगवान! "

"मां बैठो ना क्या हुआ?"

"बेटा मेरे ध्यान में सांप आ गया था।"

और अपने बेटे को पीछे मुड़ कर देखती है।

देवरानी: (मन में;-अगर बद्री और श्याम नहीं होते तो ये सांप मेरे अंदर चला जाता में कोई बच्ची नहीं हूँ जो ये सब न समझू।!

बलदेव: (मन में-कितनी गरम और गद्देदार गांड है माँ की!)

बलदेव अपना दोनों हाथ आगे ले जा कर देवरानी के पेट पर रख कर उसे अपनी और खीचता है।

देवरानी हल्की सिस्की छौड देती है ।

"आह!"

बलदेव: म्मह!

"अच्छे से बैठो नहीं तो गिर जाओगी माँ!"

और फिर हिम्मत कर के देवरानी अपनी भारी भरकम गांड बलदेब के लंड पर टिका कर बैठ जाती है।

बलदेव: आह!...चलो साथियो पारस की ओर चले!

देवरानी के नरम और अंदर से कठौर चूतडो के बीच लंड फसते ही उसकी आह निकल जाती है।

श्याम: हाँ चले दोस्तो हमें सूर्योदय से पहले पारस की सीमा तक पहुँचना है।

बद्री: हाँ चलो रास्ता मुश्किल है और हमने पहले ही समय बर्बाद कर दिया है।

सब घोड़ों को पारस की ओर भगाने लगते हैं।

जारी रहेगी...

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