दुबारा जवानी का अनुभव

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पति-पत्नी में लड़ाई और पति का अपना आत्मविश्वास पुन: पाना
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शादी के बाद संबंधों में ठंड़ापन

यह कहानी एक औसत भारतीय शादीशुदा व्यक्ति की हो सकती है। शादी के कई वर्ष बीत जाने और पत्नी के परिवार और बच्चों में व्यस्त हो जाने के बाद हमारी कहानी के नायक विनोद की सेक्स लाईफ खत्म हो गयी थी। उस की पत्नी रात को उसे अपने पास आने नहीं देती थी। हर रात कोई ना कोई बहाना बना कर वह संबंध बनाने से मना कर देती थी। विनोद मन में उठी भावनाओं को मार कर सो जाने की कोशिश करता था, जब कभी मन नहीं मानता था तो हस्थमुथैन कर के तन की इच्छा पुरी कर लेता था। इस में उस के तन को तो सन्तुष्टी मिल जाती थी लेकिन मन असंतुष्ट रह जाता था। इस का प्रभाव उन दोनों के संबंधों में भी परिलक्षित होने लगा था दोनों जब तब लड़ पड़ते थे। एक दूसरे को ताना मारने के अवसर देखते रहते थे। विनोद इस को लेकर बहुत चिंतित रहता था लेकिन वह कुछ कर नहीं पाता था। उस के मित्र मंड़ली में भी ऐसी ही बातें सुनने को मिलती थी। एक दो मित्रों नें तो अवैध संबंध भी बना लिये थे लेकिन इस से भी उन्हें शान्ति नहीं मिली थी। मन में अवैध संबंधों को लेकर एक प्रकार की पाप भावना भरी रहती धी। सबको पता था कि अवैध वैवाहिक संबंधों का अंत बड़ा दुखदायी होता है। विनोद ने इस बात को सुलझाने के लिये पत्नी से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उस का व्यवहार सहयोगपूर्ण नहीं था। वह कुछ सुनने या समझने को तैयार नहीं थी। हार कर विनोद नें इस विषय पर बात करना ही बंद कर दिया। उस ने सेक्स को अपने दिमाग से निकालने की भी भरपुर कोशिश करनी शुरु कर दी ताकि इस का प्रभाव उस के जीवन के अन्य पक्षों पर ना पड़ें। इस बारें में वह कुछ हद तक सफल भी हुआ था।

आदमी का प्रेम के लिये तड़पना

एक दिन रात में जब विनोद का प्रेम करने का मन हुआ तो उस ने पास सोई बीवी को किस करने की कोशिश की तो उस नें उसे हाथ से धक्का दे दिया। विनोद को लगा कि शायद गल्ती से हाथ लग गया होगा जब उस ने दूबारा कोशिश की तो पत्नी बोली कि तुम्हारें मुँह से बदबू आती है इस लिये किस नहीं करा करों। यह बात सुन कर विनोद को बहुत दुख हुआ क्योंकि उसे पता था कि उस के मुँह से कोई बदबु नहीं आ रही थी लेकिन पत्नी नें किस ना करने के लिये ऐसा बेहूदा बहाना बनाया था। उसे इस बात से इतना धक्का लगा कि उस से सोचा कि वह अपना जीवन ही खत्म कर लेता है, उस की अब किसी को जरुरत नहीं है। लेकिन कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा कम हुआ तो उस ने कुछ और विकल्पों के बारें में विचार किया, एक विकल्प यह था कि वह अपनी पत्नी को तलाक दे दे। यह सोच कर उसे लगा कि ऐसा करके वह अपने बच्चों का जीवन खराब कर देगा, जबकि उनकी कोई गल्ती नहीं है। पत्नी के ऐसे व्यवहार से उसे बहुत धक्का लगा था और उस को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस अपमान का कैसे बदला ले या क्या करें? रात को सोते समय उसे लगा कि अब पत्नी के साथ सोना भी सही नहीं है बेकार में उस के मन में सेक्स की इच्छा जागती रहती है, यहीं सोच कर वह उठा और दूसरें कमरें में जा कर सोफे पर सो गया।

सुबह जब उठा तो पत्नी उठ गयी थी और उसे वहाँ सोते देख कर कुछ नहीं बोली। वह भी उठ कर ऑफिस के लिये तैयार होने लगा और नाश्ता करके घर से ऑफिस के लिये निकल गया। रास्तें में भी उस का मन स्थिर नहीं हो रहा था लेकिन ड्राइव करते समय ध्यान बंटना नहीं चाहिये इसी लिये उस नें सभी विचार अपने दिमाग से निकाल दिये। ऑफिस में आ कर उस ने सोचा कि उस में ही कहीं ना कही कोई कमी है जो उस की पत्नी उस से ऐसा व्यवहार कर रही है। उसे अब सारी जिन्दगी ऐसा ही अपमान झेलना पड़ेंगा। वह अपने मन को इस बात के लिये तैयार कर रहा था। ऑफिस में सहकर्मियों के साथ बात करते में भी उस का मन रात की बात को भुल नहीं पा रहा था। वह अनमना सा अपने कार्य को करता रहा ताकि उस का मन अन्य विचारों से दूर रह सके।

युवती से परिचय

दोपहर में लन्च के लिये वह पास के पार्क में चला गया जहां धुप में बैठ कर वह खाना खाता था। कुछ देर आसपास के लोगों को देख कर उस का मन बहल जाता था। वह खाना खोल ही रहा था कि एक आवाज उस के कानों में पड़ी कि अगर मैं यहां बैठ जाऊं तो आप को कोई परेशानी तो नहीं होगी? यह सुन कर विनोद ने सर उठा कर देखा तो सामने एक युवती खड़ी थी और उस के पास की खाली जगह पर बैठनें की अनुमति मांग रही थी। वह बोला कि नहीं आप बैठिये। खाली जगह पर कोई भी बैठ सकता है। उस की बात सुन कर वह युवती उस के पास की जगह पर बैठ गयी और अपना टिफिन खोलने लगी। फिर विनोद को देख कर बोली कि आप भी खाना खा रहे है? विनोद ने उस की बात सुन कर कहा कि हां मैं भी खाना खाने ही बैठा हूँ यह कह कर वह भी अपना टिफिन खोलने लगा। टिफिन खोल कर उसने देखा कि आज खानें में चार ब्रेड पीस और अचार रखा था। वह आचार से ब्रेड खाने लगा। उसे ऐसा करके देख युवती बोली कि आप मेरे टिफिन में से कुछ ले सकते है।

विनोद नें उसे धन्यवाद कहा और बोला कि वह पेट खराब होने के कारण ब्रेड ले कर आया है। इस के बाद दोनों अपना खाना खाने लगे। विनोद नें उस युवती से पुछा कि पहले उसे यहाँ पर नहीं देखा है तो वह बोली कि वह ट्रांसफर हो कर अभी ही आयी है। आज पहली बार पार्क में आयी है। विनोद नें उसे बताया कि वह पार्क के सामनें वाले कार्यालय में काम करता है। रोज खाना खाने के लिये यहां चला आता है। युवती बोली कि धुप में खाना खाना अच्छा लगता है। शरीर भी खुल सा जाता है। खाना खत्म करने के बाद दोनों कुछ देर बैठे रहें फिर समय खत्म होने पर वापस चल दिये।

विनोद को युवती से बात करके अच्छा लगा। इस से ज्यादा कुछ सोचने की उस की सामर्थ नहीं थी। शाम को जब वह घर पहुँचा तो उस ने पत्नी से पुछा कि सुबह खाना क्यों नहीं दिया तो उस ने कहा कि उस का मन कुछ बनाने को नहीं कर रहा था। विनोद को समझ आ रहा था कि पत्नी रात को उस के अलग सोने का बदला ले रही थी लेकिन वह इस बारें में बात करके झगड़ा नहीं करना चाहता था। रात को पत्नी नें खाना बना दिया और वह चुपचाप उसे खाता रहा। उस ने सोचा कि अगर पत्नी खाना बना कर ही ना दे तो वह क्या कर सकता है। उसे इस परिस्थिति का भी कोई हल सोचना होगा। उस का सोचना सही था, वह रात को फिर पत्नी के पास नहीं सोया तो सुबह पत्नी नें खाना नहीं दिया। उसे इस बात का अंदाजा था सो वह रास्ते भर इस का कोई उपाय सोचता रहा, फिर उसे ध्यान आया कि उस के ऑफिस में टिफिन सप्लाई करने वाले भी आते है वह उन से बात करके टिफिन का इंतजाम कर सकता है।

ऑफिस पहुँच कर उस नें टिफिन वाले का नंबर ले कर उसे फोन कर के कहा कि वह उस के लिये आज एक टिफिन भेज दे। दोपहर के खाने के समय से पहले टिफिन वाला उस का टिफिन सप्लाई कर गया। वह टिफिन ले कर पार्क में आ कर बैठ गया। उस के दिमाग में चल रहें विचारों में खोये होने के कारण वह कल वाली युवती को नहीं देख सका, जब उस नें बैठने के लिये पुछा तो उस की तन्द्रा टुटी और वह बोला कि जरुर बैठिये। युवती के बैठने के बाद वह बोला कि आप को मुझ से पुछने की आवश्यकता नहीं है जगह होने पर बैठ सकती है।

यह सुन कर वह युवती मुस्करा कर बोली कि बैठ तो सकती हूँ लेकिन आप से बात करने के लिये कोई बहाना तो चाहिये ही। विनोद उस की स्पष्ट बात सुन कर हँसा और बोला कि मेरे से बात करने के लिये कोई बहाना बनाने की आवश्यकता नहीं है, आप ऐसे ही मेरा हाल पुछ सकती है। यह कह कर विनोद नें उसे अपना परिचय दिया और बताया कि उसे विनोद कहते है। इस पर युवती बोली कि चलों आज पता तो चला कि आप बोलते भी है नहीं तो आप को युहीं गुमसुम देख कर लगता था कि आप से बात करना मुश्किल है। विनोद बोला कि कल भी तो मैं आप से बोला था, इस पर युवती बोली कि उस बोलनें में औपचारिकता थी।

पहली मुलाकात में बेतकुल्फी कैसे हो सकती है?

लड़कियों से डर लगता है?

शादी शुदा को ऐसा कोई डर नहीं लगता

शादी शुदा ही बीवीयों से सबसे ज्यादा डरते है

हां यह तो है

मुझे लगा कि आप मुझ से नाराज से थे

आप से कैसी नाराजगी, आप को तो जानता भी नहीं हूँ

मुझे लगा

क्यों

आप नें मुझे इतनी देर तक पास में बैठे होने के बावजूद ध्यान से देखा भी नहीं

यह क्या बात हूई

यही तो बात है कि लड़की साथ में बैठी है और कोई उस पर ध्यान नहीं दे रहा

मैं अपने ही ख्यालों में खोया था,

मुझे भी ऐसा ही लगा था

आप को अनदेखा कर के जो गल्ती की थी उस के माफी चाहता हूँ

माफी कैसी, आज उस का बदला चुका सकते है

कैसे

अब यह भी बताना पड़ेगा

किसी को ध्यान से देखो तो लोग बुरा मान जाते है

हर कोई नहीं मानता, आप देख कर तो देखो

कल की कसर आज पुरी कर लेते है।

यह हुई ना कोई बात

शुरुआत आप के नाम से करते है, आप का नाम क्या है?

रचना

सुंदर नाम है

सिर्फ नाम ही सुंदर है

नहीं नाम वाली भी अपने नाम के अनुरुप है।

आप ने कब नजर मार ली

आदमी यह बात कभी बताते नहीं है

अच्छा जी

हाँ

चलिये, अब लगा कि आप से दोस्ती हो सकती है रोचक आदमी है

आप के कैसे पता लगा कि रोचक हूँ

औरतों के पास छठी इंदी होती है, वह सब पता कर लेती है

यह तो पता है लेकिन इतनी जल्दी यह नहीं पता था

चलिये आज पता चल गया।

खाना खाते है

आज क्या लाये है?

यह तो टिफिन खोलने पर ही पता चलेगा

क्यों

खाना घर से नहीं लाया, टिफिन मंगाया है

घर में सब कुछ सही है?

हाँ

फिर यह टिफिन सर्विस?

सोचा इस का भी स्वाद ले लिया जाये हो सकता है कभी इस की जरुरत पड़ जाये

सच बात नहीं बताना चाहते तो ना बताये वैसे भी हम है कौन आप के?

आप तो बुरा मान गयी

बुरा मानने की बात है, आप को झुठ बोलना आता नहीं है और दनादन झुठ बोले जा रहे है।

आप को सब पता है तो मुझ से क्यों सुनना चाहती है।

क्या पता मैं गलत होऊँ

पत्नी जी नाराज है, इस लिये यह सब हो रहा है अब क्यो नाराज है यह नहीं बता सकता, शायद मुझे स्वयं भी पता नहीं है।

तो यह बात है, चिन्ता की बात नहीं है, मुझे लगा कि पत्नी बीमार है या मायके गयी है।

कल से ही बात ज्यादा खराब हो गयी है, देखते है कब उन की नाराजगी खत्म होती है

माफी माँग कर खत्म कर दिजिये।

कोई गल्ती करी हो तो माफी माँगु मुझे तो यह भी नहीं पता कि मेरी खता क्या है?

माफी तो माँग ही लिजिये, नहीं तो हालात और खराब होने के आसार है।

डरा रही है

नहीं शुभचिन्तक होने के नाते सलाह दे रही हूँ

आपकी सलाह पर विचार करना पड़ेगा।

कोई और चारा नहीं है

लगता है कि आप सही कह रही है। हम पुरुषों के पास हारने के सिवा कोई चारा नहीं है।

जल्दी समझ में आ गया, आगे के लिये सही रहेगा।

खाना खाये नहीं तो बातों में समय बीत जायेगा और खाना ठन्डा हो जायेगा

मेरी बात सुन कर वह बोली कि हाँ यही सही रहेगा, लेकिन अपना फोन नंबर दे दिजिये, आप से बात करने का मन करेगा तो बात कर सकुँगी। मैनें उन्हें अपना नंबर दे दिया। रचना नें मिस कॉल करके अपना नंबर भी दे दिया। इस के बाद हम दोनों खाना खाने लगे। खाना खत्म करने के बाद जब चलने लगे तो वह बोली कि मेरी किसी बात का बुरा लगा हो तो बता दिजियेगा। मैनें कहा कि नहीं आप नें इतने अधिकार से सब कुछ कहा कि कुछ भी बुरा नहीं लगा ना उस में कुछ बुरा लगने को था। मेरी बात पर वह मुस्कराई और चली गयी। मैं भी ऑफिस के लिये चल दिया। आज मेरा मन प्रसन्न था, मुझे कुछ मिला नहीं था लेकिन किसी नें मुझ से ढ़ग से बातचीत की थी। यहीं मेरे लिये बहुत था। मेरा सारा दिन मजे से बीत गया।

शाम को जब घर पहुँचा तो देखा कि पत्नी जाने के लिये तैयार थी, मुझे देखते ही बोली कि चलों बाजार चलना है, मुझे कुछ खरीदना है मैं उसे लेकर बाजार चल दिया। बाजार हम छुट्टी के दिन जाते थे उसे यह पता था कि मैं सारे दिन का थका हारा आया हूँ यह समय बाजार जाने का नहीं है लेकिन मुझें परेशान करने और झगड़नें के लिये वह यह कर रही थी उस की यह पुरानी आदत थी यह मुझे पता था। सो मैं बिना किसी तरह का प्रतिरोध किये उस के साथ बाजार में घुमता रहा।

रात को वापिस आते में मैनें रात के लिये खाना पैक करा लिया। घर आ कर जब खाना खाने लगे तो पत्नी नें पुछा कि आज ऑफिस में खाना कैसे खाया तो मैनें कहा कि टिफिन मंगा लिया था। काम चल गया। उसे चिढानें के लिये मैनें उसे कहा कि कल से वह मेरा खाना ना बनाये, मैं ऑफिस में टिफिन मंगा लिया करुँगा। यह सुन कर वह रोने लगी और बोली कि तुम ऐसा कैसे कर सकते हो। मैनें पुछा कि क्या कर सकता हूँ तुम नें खुद ही तो दो दिन से खाना देना बंद कर दिया है अब जब मैं खुद मना कर रहा हूँ तो तुम रो रही हो। वह बोली कि

तुम मेरे पास क्यों नहीं सो रहे?

पास सो कर क्या करुँ?

पास सो कर क्या एक ही काम होता है?

होता तो है, वह हम करतें नहीं है तो पास सो कर अपने आप को जलाना क्यों। फिर तुम मुझे धक्का दो यह मुझे मंजुर नहीं है। मैं हर अपमान सह सकता हूं लेकिन अपने ही घर में कोई मुझे धक्का मारे यह मुझे मंजुर नहीं है। इसी सब से बचने केलिये में अलग सो रहा हूँ तो तुम्हें परेशानी क्यों है। तुम्हें सेक्स नहीं करना, मेरा चुमना तुम्हें पसन्द नहीं है तो मैं पास सो कर क्या करुँ? मेरी बात सुन कर वह चुप हो गयी। कुछ नहीं बोली। रात को मैं सोफे पर ही सो गया।

सुबह ऑफिस के लिये खाना मिल गया। दोपहर में जब रचना से मुलाकात हुई तो वह टिफिन देख कर बोली कि लगता है माफी माँग ली है। मैनें कहा कि इस के सिवा कोई चारा नहीं है। वह हँसी और बोली कि पत्नी के लिये उस का पति ही सब कुछ होता है वह प्यार भी उसी से करती है तो लड़ेगी भी उसी से। उस की बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी और मैनें कहा कि आप लगता है मेरी पत्नी की कोई छुपी रिश्तेदार है। वह बोली कि हम औरतें एक दूसरे के साथ है। फिर हम दोनों खाना खाने बैठ गये।

ऐसे ही दिन बीत रहे थे। पत्नी के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं था लेकिन मैं रचना के साथ समय बीता कर अच्छा महसुस करता था। उस से मेरी नजदीकियां बढ़ रही थी। हम दोनों यह समझतें थे लेकिन दिल के हाथों मजबुर थे। खानें के समय दोनों का मिलना तो चल ही रहा था, इस के साथ-साथ फोन पर बात करना भी शुरु हो गया था। एक दिन शाम को जब मैं घर जाने के लिये निकलने वाला था तभी रचना का फोन आया, उसने कहा कि क्या मैं उसे आज अपने साथ कार में ले चलुँगा? मैनें कहा कि मुझे कोई परेशानी नहीं है वह रोड़ पर मुझे मिल जाये, मैं निकल ही रहा हूँ तो वह बोली कि मुझे निकलनें में कुछ समय लगेगा, आप दस मिनट बाद निकलना, मैनें इस के लिये हाँ कर दी, और ऑफिस में बैठ कर ही समय बितानें लगा। दस मिनट बाद कार ले कर ऑफिस से निकल गया।

बाहर मेन रोड़ पर रचना खड़ी मिल गयी। उसे कार में बिठा कर घर के लिये चला तो राह में उस से पुछा कि उसे कहा पर छोड़ुँ तो वह बोली कि मुझे मेरे घर पर छोड़ देना, उस ने जो पता बताया तो वह मेरे घर के रास्तें में नहीं पड़ता था लेकिन रचना को छोड़ना तो था। कार में रचना नें मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और चुपचाप बैठी रही। मैनें भी कोई प्रतिक्रिया नहीं की। कुछ देर बाद मैनें पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि आज बहुत अकेलापन लग रहा था इस लिये सोचा कि तुम्हारें पास चलती हूँ लेकिन तुम तो सीधे घर चले जाते हो। फिर सोचा कि घर तक तो तुम्हारें साथ रह ही सकती हूँ सो तुम से पुछ लिया। मैनें पुछा कि कोई बात हुई है? तो वह बोली नहीं कुछ नहीं हुआ है लेकिन कभी कभी अकेलापन बढ़ जाता है।

कहीं चले?

कहाँ

जहाँ जाना चाहों, रेस्तरा और कही एंकात में

इन जगह कहाँ एंकात मिलेगा, इस से तो घर बढ़िया है।

मेरा तुम्हारें घर जाना सही रहेगा?

वहाँ कौन देखने को बैठा है

यही तो परेशानी है।

फ्लैट में अकेली रहती हूँ।

कहीं खाना खाने चले?

घर चल कर कुछ पीते है।

क्या लूं

घर पर व्हिस्की पड़ी है। चाहों तो बियर ले सकते हो।

बियर ही सही रहेगी, कुछ खाने को ले ले।

हां,

क्या लूँ

जो तुम्हें पसंद हो

रास्तें में शराब की दूकान से दो बीयर की बोतलें खरीदी, फिर एक ढाबें से खाना पैक करा लिया। रचना के घर पहुँच कर अपने घर फोन करके पत्नी को खाना ना बनाने के लिये बोल दिया और उसे बता दिया कि रात को देर से आऊँगा। रचना का फ्लैट एंकात में था, वह अकेली रहती थी, फ्लैट सुरुचिपूर्ण ढ़ग से सजा था। पहले हम दोनों नें बैठ कर बीयर पी, मुझे लग रहा था कि आज की यह मुलाकात कहाँ जा कर रुकेगी, शायद शारीरिक संबंधों तक जाये लेकिन वहाँ तो मेरे फेल होने का खतरा था, समझ नहीं आ रहा था कि इस से बचने के लिये क्या करुँ? बीयर खत्म होने के बाद हम दोनों नशे में आ गये थे। दोनों काफी खुल कर बातें कर रहे थे। रचना नें पुछा कि कुछ और चलेगा तो मैं बोला कि नहीं गाड़ी ड्राइव भी करनी है। वह यह सुन कर खाना लगाने चली गयी। कुछ देर बाद हम दोनों खाना खाने बैठ गये। नशे के कारण दोनों सारा खाना खत्म कर गये। खाना खा कर सोफे पर बात करने बैठ गये। रचना मेरी बगल में बैठी थी।

मैनें पुछा कि परिवार कहाँ है तो वह बोली कि मां-बाप तो गांव में है। शादी नहीं की है, पहले बहन साथ में रहती थी लेकिन शादी के बाद वह दूसरे शहर चली गयी है। अकेले रहने की आदत पड़ गयी है। लेकिन तुम से मिलने के बाद अकेलापन काटने लगा है। मैनें कहा कि मैं तो शादी शुदा हुँ तुम्हारा अकेलापन कैसे दूर कर सकता हूँ तो वह बोली कि यह बात तो मैं पहले दिन से जानती हूँ लेकिन मन का क्या करुँ? वह तुम से दूर नहीं जाना चाहता, तुम पास आना नहीं चाहते। मैनें कहा कि मैं क्या करुँ, तुम्हें कुछ दे नहीं सकता। बड़ा मजबुर हूँ। तुम सब समझती हो। वह बोली कि मुझ से प्यार तो कर सकते हो, मुझे तुम से और कुछ नहीं चाहिये। कभी शादी के लिये या साथ रहने के लिये नहीं कहुँगी। यह वायदा है।

मैनें उस के हाथ अपने हाथ में ले कर कहा कि रचना जो तुम चाहती हो वह भी मेरे पास नहीं है, मैं बड़ा मजबुर हूँ। मेरी बात सुन कर वह बोली कि तुम बहाना कर रहे हो। मैनें उसे समझया कि मैं अपनी परेशानी की वजह से उस की कोई सहायता नहीं कर सकता लेकिन उस का दोस्त तो रह सकता हूं। वह मेरी बात सुन कर चुप रही। चुपचाप मुझे घुरती रही। उस की सुनी आंखें मुझे घुर रही थी। मैं उन्हें देख कर बड़ा परेशान था। मैं उसे धोखा नहीं देना चाहता था इस लिये इस संबंध में आगे बढ़ना नहीं चाहता था। उस के हाथों को होठों से चुमा और फिर छोड़ दिया। नशे के कारण मेरा सर घुम रहा था, शायद रचना की हालत भी ऐसी ही थी उस का सर मेरे कंधे पर आ कर टिक गया। फिर वह मेरी गोद में लुढ़क गयी।

जवान लड़की मेरी गोद में पड़ी थी उस की छातियां उठ-उठ कर मुझे ललचा रही थी कि हमें मसलों। उस का बालों से ढ़का चेहरा उदास लेकिन सुन्दर लग रहा था। मुझ से रहा नहीं गया और मैनें झुक कर उस के माथे को चुम लिया। वह ऐसे ही पड़ी रही। फिर मेरे होंठ उस के होंठों से चिपक गये। उस की बाहें उठ कर मेरी गरदन से लिपट गयी। हम दोनों लंबें चुम्बन में लग गये। मेरी प्यास ना जाने कितने समय बाद बुझी थी। अब कोई और प्यास जग गयी थी। शरीर उसे भी बुझाना चाहता था लेकिन मन उस और जाने के लिये तैयार नहीं था। पहली मुलाकात में शारीरिक संबंध कुछ सही नहीं था।

उस की छातियों की गर्मी मेरी छाती पर महसुस हो रही थी। मैनें भी उसे आंलिगन में ले लिया अब तो हम दोनों के शरीर एक दूसरे से चिपक गये थे, दोनों के शरीरों के बीच में हवा भी नहीं जा सकती थी। हम फिर से चुम्बन में रत हो गये। मैं बहुत प्यासा था सो आज ही अपनी महीनों की प्यास बुझा लेना चाहता था। उस की जीभ मेरे मुँह में आ गयी थी मेरी जीभ अपनी नोक से उसे चाट रही थी, इसके बाद मेरे होंठों नें उसे चुसना शुरु कर दिया। मेरी बांहों का कसाब बढ़ता जा रहा था, रचना बोली कि मेरा दम निकल जायेगा। उस की बात सुन कर मैनें अपना कसाब कम किया।

मेरे हाथ चाहते थे कि वह उस के कठोर उरोजों को मसलें लेकिन मेरा मन उन को रोक रहा था। कुछ देर तक चुम्बन रत रहने के बाद मैनें उसे अपने आंलिगन से मुक्त कर दिया और उसे पकड़ कर बिठा दिया। वह आगे बढ़ने के लिये पुरी तरह तैयार थी उस की आंखों में वासना के डोरे तैरते मैं देख रहा था। लेकिन मेरा मन आगे बढ़ने के लिये तैयार नहीं था। रचना यु हीं बैठी रही। सेक्स को मैनें इतनी बुरी तरह से दबा कर रखा था कि उस का दूबारा उभरना मुश्किल काम था।

जब मैं चलने लगा तो मैनें उस से पुछा कि क्या वह शनिवार को मेरे साथ पिक्चर देखने चलेगी तो वह बोली कि हाँ बोलों कहाँ चलना है। मैनें कहा कि कल बताता हूँ। यह कह कर मैं उठ गया वह ऊठी और बोली कि आज के लिये तुम्हारा धन्यवाद कैसे करुँ? मैनें कहा कि धन्यवाद किया तो दूबारा नहीं आऊँगा, यह सुन कर वह हँसी और बोली कि चलों धन्यवाद नहीं करती, लेकिन फिर आने का वायदा तो ले सकती हूँ मैनें कहा कि कल मिलते है। यह कह कर मैं उस के घर से निकल गया। रात गहरा गयी थी। कार में मुझे लगा कि मेरे जाँघों के बीच में तनाव सा था।

फिर घर पहुँचने के बाद देर से आने का कारण की तलाश में मेरा ध्यान इस से हट गया। घर पर पहुँचा तो बीवी सोने जा रही थी। वह दरवाजा खोल कर चली गयी। मैं दरवाजा बंद कर के कपड़ें बदल कर सोफे पर सो गया। सुबह उठ कर तैयार हो कर ऑफिस चला गया। ऑफिस में ध्यान आया कि रचना से पिक्चर का वायदा किया था सो नेट पर बैठ कर फिल्म की टिकट बुक कर ली। कोने की दो टिकट बुक की थी ताकि दोनों को भरपुर एकांत मिल सके। खाने के समय रचना से मिला तो उसे फिल्म के बारें में बताया तो वह बोली कि मैं समय पर हॉल पर पहुँच जाऊँगी।

दूसरे दिन बारह बजे मैं भी हॉल पहुँच गया। दोनों एकांत में जा कर फिल्म देखने लगे। पुरी फिल्म में हम दोनों एक दूसरें का हाथ थामें रहें। हम दोनों नें कोई बात उस रात के बारें में नहीं की। फिल्म खत्म होने के बाद रचना बोली की घर चलते है। मैनें कहा कि चलों किसी मॉल में चलते है कुछ खरीदारी करते है वह इस बात के लिये तैयार हो गयी।

मॉल में दोनों काफी देर तक बेमतलब घुमते रहें, फिर रचना बोली कि मुझे कुछ खरीदना है तुम यही इंतजार करों, यह कह कर वह चली गयी। मुझे लगा कि वह जो खरीदना चाहती है शायद मुझे नहीं दिखाना चाहती। मैं भी ऐसे ही विंड़ों शॉपिग करके वक्त काटता रहा। कुछ देर बाद रचना आ गयी उस के हाथ में एक भारी सा बैग था। मॉल से निकल कर हम दोनों उस के घर की तरफ चले तो मैनें रास्ते में उस से पुछा कि कुछ खाना ले चले तो वह बोली कि हाँ कुछ ले चलते है जा कर खाना बनाने का मन नहीं कर रहा है।

रास्तें में रुक कर होटल से खाना पैक करा कर हम उस के घर आ गये। घर आ कर वह तो कपड़ें बदलने चली गयी और मैं उस का इंतजार करने लगा। वह कपड़ें बदल कर आ गयी थी, उस ने गुलाबी रंग का ट्रेक सुट पहन रखा था जो उस पर जंच रहा था, मैनें उस से कहा कि सुट तो जंच रहा है तो वह बोली कि आज ही खरीदा है। फिर वह मेरे करीब आ कर बैठ गयी। उस नें सेंट भी लगाया था जिस की भिनी महक मेरी नाक में घुस रही थी। कुछ देर वह ऐसे ही बैठी रही फिर बोली कि आज पिक्चर दिखाने का मन कैसे कर गया?

कुछ खास नहीं, तुम्हारें साथ समय बिताने का बहाना था।

मेरे साथ समय बिताने के और भी तरीके है

और कौन से तरीके?

यह भी अब तुम्हें बताने पड़ेगें

मैं कुछ समझा नहीं

अब इतने नादान भी मत बनों

क्या चाहती हो?

प्यार करना चाहती हूँ

किस ने रोका है

तुम करने कहाँ देते हो, बीच में भाग जाते हो

ऐसा क्या

हाँ

यार तुम कुछ समझती नहीं हो ना मैं तुम्हें समझा सकता हूँ

बता कर दो देखो

क्या, जो परेशानी है

तुम मजाक उड़ाओगी

ऐसी क्या बात है जो तुम्हें लगा कि तुम्हरा मैं मजाक उड़ाऊँगी

बात ही कुछ ऐसी है

मत बताओं अगर नहीं बताना चाहते

यह कह कर उस नें मेरा चेहरा अपने दोनों हाथों में ले कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये। उस के होंठों की नरमाहट मेरे कंट्रोल को खत्म कर रही थी, फिर मैनें भी उस के चेहरें पर चुम्बनों की बारिश कर दी। वह यही चाहती थी, हम दोनों नें एक दूसरें के चेहरे को चुम चुम कर गिला कर दिया। फिर हम दोनों के हाथ एक दूसरें के बदन पर फिरने लगे। उसे सहलाने लगे। इस के कारण दोनों के शरीर में गरमी भर गयी। चुमाचाटी काफी देर तक चलती रही, उस के कारण दोनों के शरीर में वासना की आग पुरी तरह से भड़क गयी थी। मैनें रचना के पुलोवर को बाहों से ऊपर करके उतार दिया। अब वह ब्रा में थी।

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