महारानी देवरानी 065

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पारस का बाज़ार
2.1k words
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Part 65 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 65

पारस का बाज़ार

बलदेव अपनी माँ अपने प्यार के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता था और बद्री का बलदेव और देवरानी के प्रेम को वासना बताने भर से बलदेव का खून खोल गया था और बद्री और श्याम को चेतावनी दे कर चला जाता है।

बद्री: श्याम देखा तुमने! इसे हमारी बात पर कितना गुस्सा आया था । उल्टा चोर कोतवाल को डांटे!

श्याम: मैं तुम्हारी हर बात समझ रहा हूँ मित्र, पर तुम भी परिस्थिति समझो! इस समय हम अपने देश से बहुत दूर हैं, पराए राज्य में हैं और वह भी मौसी देवरानी के भाई के राज्य में! अगर तुम्हारी बात को किसी ने सुन लिया तो...?

बद्री: तो क्या होगा? श्याम ज्यादा ज्ञान मत दो। तुमने बलदेव का नहीं सुना कैसे मौसी को नाम ले कर कहता है वह जैसे कहीं का बड़ा महाराज हो। "मेरे और देवरानी के बीच वासना नहीं प्यार है।" इसकी को...!

श्याम: शांत हो जाओ मित्र! अपनी बुद्धि का इश्तमाल करो! तुम तो जानते हो बलदेव का गुस्सा! वह लाल हो गया था पर वह मित्र समझ कर...!

बद्री: चुप कर श्याम मैं चूड़ियाँ पहन कर नहीं बैठा हुआ इसकी सब अकड़ मैं अकेले ही निकाल सकता हूँ।

उधर महल के अंदर तैयार हो कर देवरानी हुरिया के कक्ष में जाती है।

देवरानी: दीदी मैं आ जाऊँ!

हुरिया: हाँ हाँ! आजाओ छोटी!

देवरानी कक्षा में आती है और अपने आप को छोटी कहे जाने से झूठा नखरा दिखाती हैं!

देवरानी: मैं कहाँ से छोटी हूँ दीदी!

हुरिया: मोहतरमा तुम मेरे से तक़रीबन 10 साल छोटी हो!

देवरानी: हम्म! वह तो है! आप बड़ी हो, आप को मुझे मर्जी से जो चाहो सो बुलाऔ!

हुरिया: अरे! आओ बैठो!

देवरानी: जी! दीदी! बैठ रही हूँ। दीदी पर बुरा ना मानो तो एक बात कहू!

हुरिया: कहो ना!

देवरानी: आप हमेशा ये पहनती रहती हैं! दिन रात गर्मी नहीं लगती आपको?

हुरिया: नहीं पगली! हिजाब की आदत हो गई है!

देवरानी: पर आप मुझे जब से आई हूँ तब सेआप को ऐसे ही इसे पहने हुए देख रही हूँ!

हुरिया: तुम कहना चाहती क्या है?

देवरानी: आप इतनी सुंदर हो! आप तो पूरी दुनिया की मल्लिका हैं। खूब सजी सवर कर रहो ना।

हुरिया: देवरानी तुम्हें पता है दुनिया वाले जो सोचे पर मैं कभी भी ऐसा महसुस नहीं कि मैं पूरी दुनिया की मल्लिका जहाँ हूँ।

देवरानी: आपको पता भी है कि आप के सुल्तान का कितने राज्यो में राज है।

हुरिया: मुझे नहीं पता वह भी बस इतना पता है कि पारस से ले कर अफ्रीका तक सुल्तान की सल्तनत है।

देवरानी: आपको जरा भी अकेला पन मेहसूस नहीं होता? इतने बड़े महल में आप अकेली रहती हैं।

हुरिया मुस्कुराती हुई!

हुरिया: अकेली...नहीं देवरानी हमारा खानदान बहुत बड़ा है।

देवरानी: तो सब कहाँ है।

हुरिया: अगर दो दिन पहले तुम आते तो सब से मिल लेती वह सब एक जलसे के लिए अरब गए हैं।

देवरानी: अच्छा कौन-कौन है आपके परिवार में?

हुरिया: सास, ससुर और मेरी तीन सौतन है, उनके बच्चे है। मेरी ननद है!

देवरानी: ओह तो सब यात्रा पर गए हैं!

हुरिया: हाँ! वह लोग कुछ दिनों बाद आएंगे और तुम्हारे खानदान में?

देवरानी: दीदी हमारा छोटा परिवार है मेरी सास और एक सौतन है मेरे बलदेव के पिता हैं या मेरे पति...!

देवरानी पति बोल रुक जाती है!

हुरिया: तो सौतन तुम्हारी भी है।

देवरानी: हाँ दीदी मेरी तो एक है या आपकी तीन-तीन हैं ।

हुरिया: हाँ सुल्तान ने चार शादिया की है, पर बाकी की रनिया बहुत कम ही इस महल में रहती हैं । तुम्हारे वहा तो माने सुना है एक ही शादी का रिवाज है।

देवरानी: हाँ! दीदी, पर अब राजा तो राजा होता है कहीं का भी हो कई रानिया रख ही लेता है ।

हुरिया: हाँ बहन वैसे 4 बीवीओ के अलावा सुल्तान मीर वाहिद के हरम में 150 कनीज भी हैं।

देवरानी: हे भगवान...150 स्त्रीया है सुल्तान के हरम में। बुरा मत मानना दीदी फिर तो बहुत रंगीन मिजाज के है आपके पति!

हुरिया: अब क्या कर सकती हूँ! बहन अब हम पहले जमाने वाली मोहब्बत कहा करता है कोई और खास कर अगर खासकर रानीया हो तो राजा चार जगह तो मुंह मरेगा ही ।

देवरानी: इस प्रकार तो मेरी हुरिया जहाँ दीदी जी, उनका प्यार बंट जाता होगा। फिर तो सुल्तान आपसे एक महीने में मिलते हैं या के 6 महीने में?

देवरानी हसती हुई ताना मारती है ।

हुरिया: नहीं देवरानी! ऐसा नहीं है मैं खुश हूँ जैसा भी है। सुल्तान मेरी इज्जत और मुझे प्यार करता है। क्योंकि मैं उनकी सबसे पहली बीवी हूँ और रही बात प्यार की तो हफ्ते में एक बार तो मुझे सुल्तान याद करता ही है ।

देवरानी: इस मामले में मैं फंस गई हूँ क्यूकी में दूसरी पत्नी हूँ।

ये बात सुन कर हुरिया हँस पड़ती है।

देवरानी: दीदी एक सप्ताह में प्यार मिलता है और फिर आप पूरा सप्ताह तड़पती रहती हैं तो आपको सुल्तान पर गुस्सा नहीं आता?

हुरिया: खुदा खैर करे! में उनपर गुस्सा होकर गुनाह क्यू कमाउ?

देवरानी: दीदी! आप ये झुब्बा उतार दो ना!

हुरिया मस्कुराते हुए कहती है ।

"तू नहीं मानेगी छोटी।"

हुरिया अपना हिजाब उतार कर दूसरी तरफ रख देती है ।

हुरिया: बस खुश! देख ले अब इस बूढ़ी को!

देवरानी: वाह! आप तो बहुत सुंदर हो! आप का तो अंग-अंग सुंदरता से चमक रहा है।

हुरिया: अब इतनी भी नहीं हूँ... उमर हो गई अब मेरी!

देवरानी: अरे! कहीं से आप बूढ़ी नहीं लगती। अगर आपका ये रूप देख ले तो आज भी कोई नौजवान युवराज आप पर जान दे दे।

हुरिया: अब आधे से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर्दे में । अब क्या सजना और दिखाना!

देवरानी: दीदी आप ऐसी बात मत कीजिए जीवन में जितना हो सके खुश रहिए! और आप सच्ची अपनी उम्र से कम लगती हैं।

हुरिया: अच्छा बाबा मान लिया।

देवरानी: आप सज सवर कर रहिए और देखिए सुल्तान आपके पास आपकी तीनो सौतनो को छोड़ रोज आपके पास आएंगे!

हुरिया: अच्छा जी!

देवरानी: जी दीदी! फिर वह अपने हरम की किसी भी औरत को देखेंगे भी नहीं।

हुरिया: शुक्रिया! मेरी बहन मेरे बारे में इतना अच्छा सोचने के लिए पर तुझे देख कर मेरा मन कहता है तुम भी अपने शौहर से परेशान हो।

देवरानी: तुम भी मतलब! आप भी परेशान हो क्या?

हुरिया: नहीं नहीं!

देवरानी: मुझे अब कोई परेशानी नहीं है मुझे मेरा जीवन का उद्देश्य मिल गया है।

हुरिया: अच्छा वो! तो तुम्हारा शौहर साथ में नहीं है, इसी वजह से मैं कह रही थी।

देवरानी हसने लगती है।

"दीदी वह थोड़े डरपोक है । उनके शत्रु उनकी हर तरफ है इसलिए नहीं आये!"

हुरिया: मैंने तो पहली बार तुम्हारे बेटे को ही तुम्हारा शौहर समझ लिया था, क्यू के देवराज ने कहा था के तुम शौहर के साथ आ रही हो।

देवरानी (मन में: तुम सही समझो दीदी!)

देवरानी: होता है दीदी! कोई बात नहीं!

हुरिया: और तुमने वह ब्रेज़ियर पहना या नहीं और हा उसमें जंघिया भी था मैं तुम्हे बताना भूल गई!

देवरानी शर्मा कर!

देवरानी: जी दीदी! अभी पहना है ।

हुरिया: इसलिये तुम्हारा सामान कम हिल ड़ुल रहा है ।

हुरिया ठहाके के साथ हसती है।

देवरानी: दीदी आप भी ना!

तभी दोनों के कानों में ढोल की आवाज गूंजती है।

"खामोश रहना देवरानी कुछ ऐलान हो रहा है।"

"सुनो सुनो सुनो! आज पारस में सुल्तान ने फनकारो की मंजलिस रखी है और पारस की मशहूर फनकार आज रात अपना हुनर दिखाएंगे! सुनो-सुनो सुनो!"

देवरानी: दीदी क्या कह रहे हैं?

हुरिया: आओ बाहर चले!

दोनों बाहर आकर अपने कान लगाकर सुनने लगती है।

"सुनो सुनो सुनो! ये जश्न महाराज देवराज जी की बहन के आने की खुशी में मनाया जा रहा है।"

तभी वहा से शमशेरा तेजी में चलते हुए आ रहा था और अपनी माँ को देख रुक जाता है ।

शमशेरा: अरे माँ आप और खाला देवरानी आप भी यहाँ है?

देवरानी: बेटा वह ऐलान सुनने आये थे ।

शमशेरा: खाला वह अब्बा हुजूर ने जश्न मनाने का एलान किया है।

हुरिया: अच्छा तो कौन-कौन फनकार आ रहा है शमशेरा!

शमशेरा: अम्मी आज की महफ़िल में पारस के जितने भी फनकार हैं शायर कव्वाल सब आ रहे हैं ।

हुरिया ख़ुशी से झूम उठती है और उसके साथ ही उसका चेहरा भी खिल जाता है। जिसे गौर से देख रहा था शमशेरा।

देवरानी: (मन में: बड़ा खुश है और अपनी माँ को गौर से देख भी रहा है)

शमशेरा: मैं अभी आया अम्मी! थोड़ी जल्दी मैं हूँ।

हुरिया: कहा चले बेटा?

शमशेरा बिना कुछ बताए चल देता है।

देवरानी: कहाँ गये युवराज शमशेरा?

हुरिया: कहा जायेंगे अपने पीने का बंदोबस्त करने गया होगा । दोनों बाप बेटे एक जैसे हैं ।

देवरानी: तो दीदी आप मना नहीं करतीं?

हुरिया: क्या मना करु बहन! मेरे मना करने से इसके बाप नहीं माने, ये कहाँ मान जाएगा।

फिर वह लोग वापस कमरे में जा कर बात चीत में लग जाती हैं।

इधर बलदेव गुस्सा हो कर अपने मामा को ढूँढते हुए शमशेरा से टकराता है।

बलदेव: आपने मामा को कहीं देखा है क्या?

शमशेरा: देखा तो है बराबर!

बलदेव: कहा है वो?

शमशेर: आगे तो सुनो पर मुझे नहीं पता है वह अभी कहा है!

बलदेव मज़ाक समझते हुए एक गुस्से की निगाह से देखता है।

शमशेरा: अरे बच्चा गुस्सा हो गया!

बलदेव: ये क्या बदतमीजी है!

शमशेरा: दोस्त मुआफ़ करना। वैसे मैं मज़ाक कर रहा था । मुझे क्या पता की इस समय मामा आपके कहाँ है! वैसे अगर कोई काम न हो तो चलो मेरे साथ।

बलदेव: कहाँ युवराज?

शमशेरा: चलो भाई तुम्हें पारस के मशहूर बाज़ार में घुमा कर लाता हूँ।

बलदेव के पास कोई काम नहीं था वह भी शमशेरा के साथ अपना घोड़ा निकाल लेता है और दोनों बाज़ार की ओर चल देते हैं ।

कुछ दूर घुड़सावरी करने के बाद बाज़ार शुरू हो जाता है । भीड में भी शमशेरा अपना घोड़ा दौड़ाते हुए जा रहा था।

बलदेव: युवराज घोड़ा यहीं बाँध दीजिये, भीड़ में औरतें और बच्चे हैं, किसी को भी चोट लग नहीं लगनी चाहिए ।

शमशेरा: कैसी बात करते हो भाई मैं शमशेरा पारस का होने वाला सुल्तान हों और मैं जल्द ही पूरी दुनिया पर हुकूमत करने वाला हूँ।

शमशेरा: हट जाओ मेरे रास्ते से!

कह कर अपने घोड़े से रास्ता बनाता हुआ भीड़ को चीरता हुआ जाता रहता है और बाज़ार में हाहाकार मच जाती है।

"हट जाओ सब! शहजादे हैं।"

या पूरी भीड़ छट जाती है बलदेव मजबूरन शमशेरा के पीछे अपने घोड़े को लिए जा रहा था।

आख़िर कर शमशेरा अपनी मंजिल में पहुँच कर घोड़े के लगाम को खींचता हुआ रुक जाता है।

वही पास दुकान वाले आवाज देते हैं।

दुकानवाला: शहजादे आइ! ए ये मेरी कालीन ले लीजिए इसका काम देखिए! इसकी खुबसूरती का कोई सानी नहीं है।

बलदेव: युवराज सही हैं में ये बहुत खूबसूरत कालीन है ।

शमशेरा: इसे छोडो बलदेव! अगर तुम्हें चाहिए होगा तो इसे हम महल बुला लेंगे। अभी चलो।

शमशेरा । सीढ़ियों से उतरकर वह एक अंधेरे से बड़े घर में पहुँचता है जहाँ पर अँधेरा था। लालटेन की रोशनी में ये पता चल रहा था कि ये बड़ा तहखाना था।

बलदेव: युवराज ये तो...!

शमशेरा: शशश! और ये बार-बार युवराज कहना बंद करो । तुम मुझे नाम से पुकारो!

बलदेव: शमशेरा ये तो सही जगह नहीं है।

शमशेरा: तुम अभी बच्चे हो। अभी यहाँ पर हर किस्म की मदीरा मिलती है और इसके ऊपर माल!

बलदेव: कैसा माल?

शमशेरा हसता है।

शमशेरा पास रखे मिट्टी की सुराही में रखी मदीरा बेच रहे आदमी के पास जा कर कहता है ।

शमशेरा: इधर लाओ एक!

और कुछ सिक्के उसको दे देता है, फिर मदीरा गटकते हुए!

शमशेरा: तो सुनो माल के माने ये है कि यहाँ ऊपर कोठा है और पूरी दुनिया भर से यहाँ तवायफे आती है। यहाँ तुम्हे जर्मन, फ्रांसिसी, मिश्र, अरबी हर देश को सुंदर तवायफे मिलेगी।

बलदेव: शमशेरा! क्या बात कर रहे हो?

शमशेरा एक आँख मारता है।

शमशेरा: भाई यहाँ पर ऐश करने लोग दुनिया भर से आते हैं । तुम्हें चाहिए तो बोलो ।

बलदेव: नहीं, ये पाप है, तुम ये सब कैसे करते हो? सुल्तान को पता चला तो...!

शमशेरा: सुल्तान को बताएगा कौन? हाहाहा! मेरा जब मन करता है मैं मजे कर के जाता हूँ। तुम बच्चे ही रहोगे।

बलदेव: शमशेरा! नहीं ऐसी बात नहीं है, पर मैं किसी से प्रेम करता हूँ। उसे धोखा दे नहीं सकता ।

शमशेरा: भाई बड़े इमानदार हो। लगता है अपनी मेहबूबा को दिल से चाहते हो!

बलदेव: वो मेरे रोम-रोम में बसती है उसे धोखा देना अपने आप को धोखा देने जैसा होगा।

शमशेरा: अब बस करो! ज्यादा मजनू ना बनो। लो मदीरा तो पियो!

बलदेव: नहीं यार उसने मुझे मना किया है।

शमशेरा: भाई वह पारस में तुम्हें देखने थोड़ी आ रही है ।

बलदेव: नहीं, फिर भी!

शमशेरा: भाई तुम्हारी मेहबूबा कहाँ है? हिंद में है ।

बलदेव: हम्म!

शमशेरा: और तुम हो यहाँ पारस में हजारों मील दूर। क्या वहाँ तक उसको इसकी खुशबू आएगी? हाहाहाहा

बलदेव: ठीक है तो लाओ एक घूँट पी लू।

बलदेव भी दो घूंट पी लेता है।

शमशेरा: कैसा लगा इसका स्वाद? मजा आया?

बलदेव: अच्छा है।

बलदेव ने पहले भी मदीरा ही थी कई बार। इस बार उसे लगता है जैसे वह किसी और दुनिया में ही पहुँच गया हो!

जारी रहेगी

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