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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 64
बलदेव देवरानी के साथ अपने प्रेम के बारे में मित्रो को बताता है
देवरानी बलदेव के स्नान घर से बाहर जाते ही वह दरवाजा बंद कर लेती है।
देवरानी: (मन में-आज तो मैं बच गई नहीं तो बलदेव ने तो आज उसने मुझे इस हालत में पकड़ कर मसल ही देना था और अपनी सोच पर शर्मा जाती है ।
फ़िर अपना आपको देख -"तू भी तो अपना हाल देख देवरानी, ऐसे हाल में तुझे देख कर कोई भी तुझे बिना मसले नहीं छोड़ेगा।"
देवरानी नहा कर बाहर आती है तो देखती है बलदेव अब भी उसका इंतजार कर रहा है।
देवरानी एक अदा से उसको देखती है।
"क्यू राजा बड़ी शिद्दत से इंतज़ार हो रहा है ।"
ज्यों ही हे बलदेव की नज़र देवरानी पर पड़ती है तो उसकी आखे चौंधिया जाति है क्यू के देवरानी इस समय छोटे से तौलिये में अपने भारी शरीर को ढके हुए थी जिसमें से उसका आदे वक्ष साफ दिख रहे थे हुए उसका तौलिया उसके मांसल और चिकनी जंघो तक ही था।
पहले से गरम बलदेव खड़ा होता है और अपना हाथ सीधा अपने तने हुए लौड़े पर ले जा कर लौड़ा मसलने लगता है।
बलदेव: मां क्या माल लग रही हो ये तौलिया भी उतार फेंको।
देवरानी देखती है कि बलदेव का धोती तन कर तम्बू बन गयी है और उसका हाथ उसके लौड़े को मसल रहा है।
देवरानी एक अदा से आह भरते हुए कहती है ।
"बलदेव तुम्हें शर्म नहीं आती मेरे सामने वह ऐसी हरकत करते हुए?"
"मां तुम्हें शर्म नहीं आती अपने बेटे के सामने आधी नंगी खड़े रहते हुए?"
बलदेव अब अपना लौड़ा पूरा ज़ोर से पकड़ आगे पीछे करने लगा!
देवरानी झेप जाती है और अपनी आंखे नीचे कर लेती है।
"मुझे क्या पता था तू यही होगा वैसे उसे ज्यादा अपने हाथ से मत तड़पाओ!"
बलदेव: इतनी दया आ रही है मेरे इस पर तो अपने हाथ से इसे शांत कर दो मेरी रानी!
देवरानी: धत्त बदमाश!
बलदेव: बस इतनी हे दया और प्रेम है मुझ पर?
देवरानी अब बलदेव के करीब आ जाती है।
"प्रेम तो इतना है मेरे राजा के मैं जान भी दे सकती हूँ।"
बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में भर लेता हूँ ।
"मेरी माँ...! "
"हा मेरे राजा! "
बलदेव अपने होठ देवरानी की गर्दन पर रख कर चूमने लगता है ।
देवरानी: आआहह राजा!
बलदेव: माँ तुम भीगी हुई बहुत सुंदर लगती हो।
देवरानी: हम्म! इसलिए मेरे कहने के बाद भी तू मुझे छोड़ स्नानागार से बाहर नहीं जा रहा था?
बलदेव देवरानी को सहलते हुए अपने हाथ देवरानी को गांड पर ले जाता है । फिर तौलिए के ऊपर से वह उसकी गांड सहलाते हुए दबाता है।
"आआआह राजा आह उम्म्म्म!"
"मां, तौलिये में तो तुम्हारी ये गांड तो पूरी गोलाई में दिख रही है।"
बलदेव: (मन में-ऐसा लग रहा है मेरी रानी नंगी ही मेरी बाहों में है ।)
बलदेव अब अपना एक हाथ से देवरानी के दूध को सहलाता है फिर धीरे-धीरे दबाता है।
" आह बलदेव धीरे करो!
"माँ एक बात पूछु?"
"हाँ पूछो मेरे राजा!"
"मां अगर मेरा कोई भाई बहन होता तो क्या आज हम ये सब कर पाते?"
"बेटा जब प्यार सच्चा हो तो भगवान जोड़ी मिला ही देता है।"
" आहह उम्म्म्म आराम से करो!
बलदेव अब देवरानी को भींच कर बाहे में कस कर ले लेता है और अपने हाथो को देवरानी की दोनों उभरे नितम्बो पर रख ज़ोर-ज़ोर से मसलता है।
"मेरी रानी अगर वह बगावत करते हमारे विरुद्ध तो?"
"बेटा तो मैं इन्हे साफ-साफ कह देती कि तू मेरा प्रेमी है और तेरे भाई बहन को तुम्हें पिता कहने के लिए कहती..!."
"आह मेरी रानी! तुम सच में रति देवी हो।"
बलदेव देवरानी के होठों को चूमने लगता है।
"गैलप्प गैलप्प-गैलप्प स्लुरप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प्प!"
देवरानी के होठों को चूस कर छोड़ता है।
"मां मैं बचपन में हमेशा सोचता था कि मेरे कोई भाई बहन नहीं है ।"
"बेटा तुम्हारे पिता जी गिन के 10 बार भी मेरे साथ सोये नहीं, तो मैं कैसे तुम्हारे भाई बहन को जन्म देती? और तुम्हारे जन्म के बाद तो एक बार भी मेरे साथ नहीं सोये!"
"मां ये भी सही हुआ, नहीं तो आज उन्हें भी समझना मुश्किल होता ।"
"हमममम!"
देवरानी अपना आप को थोड़ा उठा कर अपने होठ बलदेव की छाती पर रख कर चूमती है।
बलदेव अपनी माँ जो अपनी एड़ी को उठाये उसके साथ चिपकी थी, अपने दोनों हाथो से उसके बड़ी गांड को मसलने लगता है।
"मां, क्या तुम्हारा कभी दिल नहीं हुआ कि तुम्हारे और बच्चे हो?"
"बेटा मेरा मन तो था कि मैं भी और बच्चे पेदा करू किसी भी औरत की तरह और खास कर मेरा सपना था कि मेरी एक राजकुमारी-सी बेटी भी हो!"
"क्या माँ आपका सपना-सपना ही रह गया।"
देवरानी अपना सर बलदेव के कंधे पर रख कहती है ।
"कोई बात नहीं है बेटा मेरा कोई सपना पूरा नहीं हुआ, ये भी नहीं हुआ तो क्या हुआ?"
"मां मेरी रानी एक बात कहू?"
"कहो मेरे राजा!"
बलदेव अपनी माँ की गांड और कमर को सहलाते हुए बोला - "माँ अगर मैं तुम्हारे सपने को पूरा करूँ तो!"
देवरानी : "मतलब?"
बलदेव अब अपनी माँ के पेट को सहलाते हुए -"मां अगर मैं तुम्हारी इस कोख को भर दूं और तुम्हारा अधूरा सपना पूरा कर दूं तो!"
देवरानी अपना सर पीछे कर बलदेव को देखती है कि वह कही मजाक तो नहीं कर रहा था और देवरानी फिर से बलदेव के गले लग जाती है।
"माँ बोलो ना!"
"बेटा ये मुमकिन नहीं...!"
"मां मैं तुम्हारा हर वह सपना पूरा करना चाहता हूँ जो अधूरा रह गया है ।"
"बेटा इतना प्यार मत कर मुझसे। तू कहीं इस प्यार की आग में जल ना जाए. मुझे डर लगा रहता है।"
"माँ मैं जलने के लिए तय्यार हूँ अपने पहली और अंतिम प्रेमीका देवरानी के लिए।"
तभी बलदेव की नज़र पलंग पर रखे कुछ वस्त्रो की ओर जाती है।
"मां वह रंग बिरंगे वस्त्र क्या है?"
"बेटा वह अंतर वस्त्र है मल्लिकाजहाँ हुरिया ने दिया है वह इन्हे फ्रांस से लाई थी।"
"फ्रांस से पर इसे कहते क्या है माँ?"
"बेटा ये ब्रेज़ियर और जांघिया है।"
देवरानी ये कह कर शर्मा कर एक मुक्का बलदेव की छाती पर मारती है।
"हाय मेरी माँ शर्मा रही है।"
बेटा ये महिला वस्त्र में नया शोध है । हमारे यहाँ तो सिर्फ एक वस्त्र की छोटी-सी पट्टी पहनी जाती है। जिसे कंचुकी कहते हैं । "
"माँ पर ये उन्होंने आपको क्यों दिए?"
"वो सब छोडो! ये सुल्तान मीर वाहिद और मल्लिका हूर ए जहाँ का राज आज पूरी दुनिया में है।"
"मां आधी धरती पर है पूरी पर नहीं!"
"बहुत बड़े सुल्तान हैं वो!"
"हाँ माँ उनका राज पारस से ले कर अरब और अरब से ले कर अफ्रीका और मैंने ये भी सुना हूँ फ्रांस तक सुल्तान मीर वाहिद ने कब्ज़ा कर लिया हैं।"
बलदेव देवरानी को फिर से अपनी बाहों में भरता है।
"मां ये उतार दो मुझे इसमें छुपे खजाने को देखना है।"
"बेटा जाओ खजाना रात भर तुम्हारे पास रहेगा मुझे हुरिया दीदी के पास जाना है अब मैं अपने कपड़े पहन लूं।"
बलदेव समझदारी दिखाते हुए देवरानी को अपनी बाहो की कैद से आज़ाद करता है और बाहर चला जाता है। वह देवरानी को कपडे पहन के लिए अकेली छोड़ देता है।
बलदेव बाहर आकर एक सैनिक से कहता है ।
"सुनो!"
"जी हुजूर!"
"ये मेरे मित्र कहा है?"
"हुजूर वह बागीचे की तरफ गए हैं।"
बलदेव समझ जाता है और सैनिक के बताए हुए रास्ते की तरफ जाने लगता है ।
बलदेव देखता है श्याम और बद्री टहलते हुए आपस में बद्री बात कर रहे थे ।
बलदेव: अरे तुम लोग इधर हो मैं तुम दोनों को कब से ढूँढ रहा हूँ!
श्याम: आओ बलदेव!
बद्री: सच में हमें ढूँढ रहे थे या कहीं और व्यस्त थे?
बद्री को गुस्से में देख बलदेव पूछता है ।
बलदेव: तुम्हें क्या हुआ बद्री तुम पहले जैसा नहीं हो?
बद्री: पहला जैसा कौन नहीं रहा? अपने दिल से पूछो मैं झूठ नहीं कहता हूँ तुम्हारी तरह।
बलदेव: सच कहूँ तो तुम दोनों को माँ की कक्षा से निकलने के बाद ढूँढ़ा पर तुम दोनों महल में दिखे नहीं।
बद्री: माँ ह्ह्ह!
बलदेव गुस्सा हो जाता है।
"बद्री तुम मेरे मित्र हो इसलिए कह रहे हो कभी माँ शब्द इस तरह उच्छरण मत करना।"
बद्री: मूर्ख मुझे मत सिखाओ माँ के शब्द की पवित्रता और श्याम! अब मुझे वह धर्म सिखाएंगे जो खुद अपनी माँ को ले कर सोते हैं।
बद्री भी गुस्से में आग बबुला हो कर अपनी भड़ास निकलता है ।
बलदेव ये सुन कर -"श्याम इसको समझा दो और बोलो अपनी जिह्वा को लगाम दे। सब बच्चे अपनी माँ के साथ सोते हैं इसमें गलत क्या है?"
बद्री: पर तुम तो वह करते हो जो एक पत्नी के साथ करना चाहिए।
बलदेव ये सुन कर अचंभित था कि बद्री ये कैसे जानता है?
"बेटा बलदेव तुम हमारे साथ बचपन से रहे हो और तुम्हारे अंदर बदलाव आना हमारे साथ कम समय व्यतीत करना। हमे इसी तरफ इशारा कर रहा था । मुझे तो शक बहुत पहले था कि तुम्हारे जीवन में कोई आ गया है ।"
श्याम: तुम दोनों झगड़ा मत करो। कोई सुन लेगा तो बदनामी हमारी ही होगी। एक तरफ चलो, हम बैठ कर समाधान निकालेंगे।
बद्री: हाँ! मैंने सोचा था कि किसी के साथ तो तुम्हारा टंका भिड़ा है पर तुमने तो अपनी माँ को ही अपनी वासना का शिकार बना लिया।
बलदेव का जैसा अंग-अंग गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपनी दोनों मुट्ठी बंद करता है।
"बद्री अगर तुम मेरे मित्र न होते तो आज मैं तुम्हें इसी समय जिंदा ही इस धरती में गाड़ देता।"
"कैसी मित्रता तुमने हम से हर बात छुपाई है और अब तो तुम्हारे जीवन में तुम्हारी वासना की पूर्ति करने वाली भी आ गई है, तो मार दो हमें।"
"श्याम इस बद्री को समझाओ! अपनी सीमा में रहे!"
श्याम: तुम दोनों गरम दिमाग के हो! शांत रह के भी बात क्या जा सकती है। शांत हो जाओ तुम दोनों!
श्याम: सुनो बात ये है कि हमने तुम्हें जंगल में मौसी के साथ तम्बू में...!
श्याम अपना सर नीचे कर लेता है।
बद्री: बलदेव हमे तुम से ये उम्मीद नहीं थी। तुम तो सबको ज्ञान देते थे।
बलदेव: सुनो अपना कान खोल कर मेरा तथा देवरानी का प्रेम सच्चा है। इसे कभी भी वासना का नाम मत देना, मैं इस बात को मानता हूँ कि मुझे तुम दोनों को पहले ही सब बता देना चाहिए था । पर बता नहीं पाया । उसके लिए मुझे क्षमा कर दो पर मेरे प्यार को गलत शब्द मत देना।
ये कह कर बलदेव वहा से गुस्से में चला जाता है।
जारी रहेगी