पहाड़ पर अनजान लड़की से मुलाकात

Story Info
पहाड़ पर लड़की से मुलाकात और दोनों में दोस्ती होना
9.1k words
4.33
30
00
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

मैं उन दिनों पहाड़ी स्थान पर छुट्टीयां मनाने अकेला आया हुँआ था। शांत और एकांत जगह थी। ज्यादा आबादी भी नहीं थी। सुबह और शाम का दृश्य बड़ा मनोहर होता है। शाम को ठंड़ी हवा में सैर करने का अपना अलग रोमांच है। मेरे काँटेज के बगल वाते काँटेज में एक महिला ठहरी हुई थी। सुबह दीखती थी। दुआ सलाम नहीं हुई थी। इस लिए उन के बारें में ज्यादा पता नहीं था। मुझे तो अपनी फोटोग्राफी और घुमक्ड़ड़ी से ही फूरसत नहीं थी, किसी और के बारे में सोचने का समय ही नही था।

एक दिन मैं बेकार ही सड़क पर टहल रहा तो पड़ोस में ठहरी महिला दिखी। दुआ सलाम न होने के कारण मैं उन को इग्नोर करता हुआ आगे निकल गया। थोड़ी दूर आगे जा कर थक कर सड़क के किनारे बनी दिवार पर बैठ कर आराम करने लगा, तभी मुझे लगा कि किसी के पुकारने की आवाज आई है। पहली बार तो ध्यान नही दिया लेकिन जब आवाज दूबारा आई तो उठ कर उस ओर चल दिया। क्या देखता हूँ कि वही पड़ोस वाली महिला बन्दरों से घिरी हुई थी। वह बन्दरों को भगाने का प्रयास तो कर रही थी लेकिन उस में सफल नही हो पा रही थी। इसी चक्कर में वह जमीन पर गिर गई थी।

मैं ने आसपास से पत्थर उठा कर बन्दरों पर फेंकें तो वे भाग गये। मैंने आगे बढ़ कर उन महिला को उठाने के लिए अपना हाथ दिया लेकिन उन के पैर में मोच आने के कारण वह अपने आप उठ नही पा रही थी। मैंने उनका हाथ थाम कर उठाने की कोशिश की तो सफलता नही मिली। इस पर मैंने उन के पीछे से दोनों बाहों के नीचे अपने हाथों को डाल कर उन को उठा कर उन के पैरों के बल खड़ा किया। लेकिन मोच आने के कारण वह दर्द से कराह रही थी। मैंने उन को बाहों में उठा कर किनारे की दिवार पर बिठाया।

मैंने उन से पुछा कि अगर मैं दर्द दूर करने के लिए उन के पंजों की मालिश करूँ तो उन्हें कोई आपत्ति तो नही होगी। उन्होंने सर हिला कर सहमति दी।

मैंने उन के दोनों जुतें उतार दिये। इस के बाद उन के पंजों की मालिश करना शुरु किया। वह दर्द की वजह से कराह रही थी। मालिश के बाद मैंने दोनों पंजो की एक एक ऊंगली को खिचना शुरू किया। इस से उन की जो नस अकड़ गई थी वह सुलझ सकती थी। वह दर्द से चिल्ला रही थी। मैं इस से डर गया और उन से कहा कि उन को थोड़ा दर्द सहना पडे़गा। उन्होंने सर हिलाया। अब मैंने पिडलीयों को भी सहला कर मसल को रिलेक्स कर दिया। पहले एक पंजा ठीक हुआ फिर दूसरा भी ठीक हो गया।

वह अपने पंजो पर खड़ी हो गई तथा चलने लगी।

थैक्स। आप ना होते तो आज मेरा क्या होता?

आप के हाथों में तो जादू है।

मैंने कहा जादू तो नही है लेकिन इस कोशिश ने कईयों को दर्द से छुटकारा दिलाया है।

उन्होनें अकेले चलने की कोशिश की तो चल नही पाई।

मैंने कहा अभी आप मेरा सहारा ले कर काँटेज तक चले। वहाँ जा कर गरम पानी से सेकने से जल्दी आराम आ जायेगा। शायद कोई दवा भी मिल जाये। सुझाव उन की समझ मे आ गया। मेरे कंधे का सहारा ले कर धीरे-धीरे चल कर हम दोनों कांटेज आ गये। मेरे एक कंधे पर कैमरा था और दुसरे कंधे पर वो थी।

वापस आ कर उन के कमरे में गरम पानी कर के उन के पैर उस में डलवा कर मैं अपने कमरे में आ गया। दोपहर का समय था खाना खाने के लिए कहना था तभी नौकर आया और बोला कि पड़ोस वाली मेमसाहब आप को बुला रही है। मैंने कहा तुम चलो तो वह बोला कि अभी आने को बोल रही है।

मैं उठ कर उस के साथ चल पड़ा। मुझे देखते ही वे बोली कि आप खाना मेरे साथ खाना पसन्द करेगे। मैंने कहा हाँ।

तो उसने नौकर को दो आदमियों के लिए खाना आर्डर कर दिया। नौकर के जाने के बाद वह बोली की मैं दर्द के कारण आप का नाम पुछना ही भुल गई थी। मैंने कहा मुझे महेश कहते है। उन्होंने कहा मेरा नाम माधुरी है। वह राजकीय सेवा में है। मैंने कहा मैं तो फिरीलान्स फोटोग्राफर हुँ। वैसे सायबर सिक्युरीटी एक्सपर्ट हुँ। वह हँसी तो मुझे अच्छा लगा। मैंने कहा आप पर यह हँसी अच्छी लगती है।

वह मुस्करा कर बोली, बातें अच्छी बना लेते है। मैंने कहा मसाज भी अच्छा करता हूं। इस बात पर वह जोर से हँसी और बोली अगर आज आप ना आते तो मेरा क्या होता? यह सोच कर डर लगता है।

मैंने कहा जो नही हुआ उस को सोचने का क्या फायदा है।

तभी खाना आ गया और हम दोनों खाना खाने लगे। इस खटराग में बहुत जोरों की भुख लग रही थी। डट कर खाना खाया।

खाने के बाद मैंने माधुरी से पुछा कि उन के पास कोई पेन कीलर है तो खा ले। वह बोली मेरे पास तो कोई नही है मैंने कहा मैं अपने दवाईयों के डिब्बे में देखता हुँ। शायद कोई पड़ी हो। वह हँस कर बोली, कोई चीज है जो बची है आपसे। मैंने कहा मैं तो दवा कम ही खाता हूँ लेकिन जब बाहर जाता हुँ तो कुछ दवाईयां साथ रखता हूँ। ये बता दूँ कि मेरे परिवार में आधे से ज्यादा लोग डाक्टर हैं।

चलने से पहले मैंने पुछा कि किसी और चीज की जरूरत तो नही है?ं

उस ने ना में सर हिलाया। मैंने खाने के लिए धन्यवाद कहा और वहाँ से चलने लगा तो पीछे से आवाज आई, अपना मोबाइल नम्बर तो देते जाये, आप को कैसे बुलाऊंगी? आप ने तो मेरा नम्बर मांगा ही नही।

मैंने नम्बर दिया और उस ने मिस कॉल मार कर अपना नंबर भी दे दिया।

अपने कमरे में आकर मैंने शाम को घुमने का प्रोग्राम बनाया। सोचा कि दोपहर वाली जगह पर तो शाम को जाना सही नही है, पास ही कि किसी ऊँची जगह से सूर्यास्त को देखते है। पेनकिलर वाली बात मेरे दिमाग से निकल गई।

मैं भी थक गया था इस लिय आराम करने के लिए लेट गया। थकान के कारण लेटते ही नींद आ गई।

ना जाने कब तक सोता रहता अगर मोबाइल की घन्टी की आवाज मेरी नींद ना तोड़ती। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मुझे यहाँ कौन जानता है जो फोन कर रहा है, फोन उठाया तो आवाज आयी, आप तो पेनकीलर देने वाले थे। मैं नींद में था बोला कौन सी पेनकीलर? यह सुनकर फोन कट गया। नींद तो खुल गई लेकिन खुमारी अभी बाकी थी। फोन उठा कर देखा तो माधुरी लिखा आ रहा था। सब कुछ याद आ गया, उछल कर बिस्तर से निकला बैग खोल कर दवा के डिब्बे से पेन कीलर की स्टिप निकाती और कपड़ें सही कर के दरवाजा बन्द करके भाग कर माधुरी के कमरे पर पहुँचा और दरवाजा खटखटाया।

मरी सी आवाज आयी, दरवाजा खुला है। दरवाजा खोल कर अन्दर पहुँचा तो देखा कि माधुरी बिस्तर पर पड़ी सुबक रही है। मुझे अपने पर बड़ा गुस्सा आया, फौरन एक गोली निकाली और गिलास में पानी भर कर माधुरी के हाथ में दे दिया। वह बोली मैं आप को परेशान तो नही कर रही हूँ? मैंने कहा नही तो, मैं जरा देर के लिए सोया था लेकिन आँख ही नही खुली। तुम्हारी दवाई की बात भी भूल गया मेरी गलती है। मैंने जबरदस्ती उस के मुँह में गोली डाली और पानी पिलाया। उस की हालात देख कर मुझे अपने पर गुस्सा आ रहा था। मैंने पुछा चाय चलेगी, वह वोली हां, मैंने फोन कर के दो चाय लाने को कहा।

मैंने दूबारा माधुरी से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी, इस पर वह बोली, आप के माफी मांगने का कोई कारण नही है। मैंने कहा कि मैं या तो कोई वायदा करता नही हूँ और अगर करता हूँ तो उसे पुरा अवश्य करता हूँ। इस लिए मैं शर्मिन्दा हूँ।

इस पर बोली की मेरा आप पर कोई अधिकार नही है तो माफी कैसी। आप भी तो काफी थक गये होंगे ये तो मेरे दिमाग में आया ही नही, मैं तो सिर्फ अपने दर्द की सोच रही थी।

मैंने उस से कहा कि इसी बात पर एक हँसी तो बनती है तो वह दर्द में भी मुस्करा दी।

लगता है मेरी माफी मंजुर हो गई

अर्जी तो लग ही गई है।

तब तक चाय आ गई।

चाय पीने के बाद मैंने कहाँ कि अगर मैं तुम्हें उठा कर बाहर बिठा दूँ तो वहाँ से सूर्यास्त का नजारा कर सकोगी। अब तक पेनकीलर ने भी अपना असर करना शुरु कर दिया था। दर्द कम महसुस हो रहा था। माधुरी अपने आप खड़ी हो कर बाहर गई और हम दोनों ने सूर्यास्त का आनंद लिया। शाम के घिरते ही हवा में ठन्ड़ बढ गई थी। हम दोनों कमरे में आ गये। माधुरी को ठन्ड लग रही थी। मैंने पुछा कि शाल वगैरहा कहाँ है तो वो बोली मैं शाल नही लेती। मैंने कहा तो कोई जैकेट ही डाल लो, वह बोली कि मेरे बैग मे रखी है। मैंने बैग उठा कर उस के पास रखा दिया और कहा कि खोल कर पहन लो।

उसे अनमना देख कर मैंने पुछा कि क्या समस्या है?

अब वह बोली कि वह तो जैकेट लायी ही नही है।

उसे ठन्ड का अन्दाजा नही था। कोई स्वेटर वगैरह भी नही था।

मैंने कहा अभी तो तुम रजाई मे बैठो। इस का भी कोई हल निकालते है। मेरी इस बात पर वह जोर से हँसी। मुझे उस की हँसी सुन कर अच्छा लगा।

उसे कमरे में छो़ड़ कर मैं अपने कमरे में लौट आया। जैकेट तो मेरे पास भी एक ही थी, लेकिन स्वेटर दो तीन थे। दो ईनर भी थे। ज्यादा सर्दी में इनर बहुत गर्मी देता है। मैंने सोचा कि मैं एक इनर और एक स्वेटर माधुरी को दे सकता हूँ। एक हॉफ जैकेट भी उस के काम आ सकती है।

मैंने तीनों चीजे हाथ में लेकर सुंघ कर देखी कि कोई स्मेल तो नही आ रही है, ऐसा कुछ नही था।

तीनों चीजो को लेकर मैं माधुरी के कमरे पर गया वह रजाई लपेट कर बैठी थी। उसे देख कर मेरी हँसी निकलने को हुई पर मैंने अपने का काबु पाया।

मैंने उसे तीनों कपड़ें दिखा कर कहा कि मेरे पास यह कपडे़ं निकले है अगर उसे किसी और के कपडे़ं पहनने में कोई हर्ज ना हो तो वे इन्हें पहन सकती है। उस ने इनर को देख कर कहा कि ये क्या है। मैंने पुछा कि तुम्हें नही पता तो उसने सर हिलाया। मैंने बताया कि यह इनरवियर की जगह पहनते है। सर्दियों में इस से बडी़ गरमी मिलती है।

चाहो तो अभी पहन कर देख लो, गरमी मिलेगी। कल सुबह चल कर कुछ नया खरीद लेगें। उस ने सहमति में सर हिलाया।

माधुरी उठ कर कपड़ें उठा कर बाथरूम में चली गई तथा थोड़ी देर में बाहर आयी। मैंने देखा कि उस ने तीनों कपड़ें पहन रखे थे। आ कर वह वोली कि इनरवियर में तो बड़ा आराम मिल रहा है।

अब ठंड नही लग रही है।

मैंने कहा अब क्या प्रोग्राम है? वह बोली अब क्या?

मैंने कहा अभी तो शाम शुरु हुई है।

मैं कुछ समझी नही।

बाहर बैठ कर शाम का नजारा देखते है। और क्या?

तुम्हारी ठंड का तो इन्तजाम हो गया है। मैं भी गरम कपड़ें डाल लेता हूँ।

तुम्हारा दर्द अब कैसा है?

दर्द तो अब नही हो रहा है। अब मैं सही फिल कर रही हूँ। महेश तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद मेरी हैल्प करने के लिए।

मैंने कहा धन्यवाद की कोई बात नही है। मैं भी एकेलापन महसुस कर रहा था तुम्हारी वजह से मेरे को भी कम्पनी मिल गई। माधुरी बोली कि कहीं मैंने तुम्हारे प्रोग्राम को खराब तो नही कर दिया। मैंने कहा नही तो। चिन्ता की कोई बात नही है। मैं तो शहर की भीड़ से भागने के लिए आया हूँ। तुम्हारें मिलने से तो ये और यादगार बन गया है। मेरी चिन्ता छोड़ों। अपनी बताओ। वह बोली कि मैं भी शान्ति के लिए ही निकली हूँ। लगता है कि अब मजा आयगा।

मुझे उस की इस बात में शरारत दिखायी दी।

हम दोनों बाहर आ कर कुर्सियों पर बैठ कर पर्वतों पर उतरती शाम का आनंद उठाने लगे। बड़ा रोमान्टिक माहौल था दो अन्जानें लोग एक साथ बैठ कर ढलती शाम का मजा ले रहे थे। माधुरी धीरे से अपनी कुर्सी खिसका कर मेरे पास खिसक आई। पास आ कर बोली की कुछ गरम होना चाहिए। मैंने सर हिलाया तो वो हँसने लगी। मैं कन्फियुज था कि क्या जवाब दूँ। उस ने धीरे से अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास किया और मुझे गाल पर चुम्बन दे दिया। मेरी अब समझ आया कि गरम क्या है। मैंने भी जवाब दिया और उस के गाल को चुम लिया। मैंने आसपास देखा कि कोई हमें देख तो नही रहा है।

गरमी अभी कम है। अब की बार उस को होंठों ने मेरे होंठों पर अपनी छाप लगा दी। मैंने भी अपने को घुमा कर उस के चेहरे को हाथों से थाम कर उस के होंठों को अपने होंठों से कस लिया। वह कसमसाई पर यह दिखावटी था। यह चुम्बन काफी देर तक चला। फिर हम अलग हो गये।

फिर काफी देर तक दोनो चाँदनी रात मे चाँद और सितारों का आन्नद उठाते रहे।

काफी रात होने के बाद हम दोनों उठ कर कमरे में आ गये। माधुरी फिर से मेरे को आलिंगनबंध करके चुम्बन लेने लगी। मैंने भी उसका फेंच किस लिया। काफी देर तक एक दुसरें को कस कर पकड़ें रहें। मैंने कहा कि खाना आर्डर कर देते है। या कहो तो रेस्टोरेंट में चले। वह बोली की रेस्टोरेंट में चलते है।

दोनों रेस्टोरेंट पहुचे तो पता चला कि रेस्टोरेंट बंद ही होने वाला था। हमें समय का पता ही नही चला था। खाना खाया और वापस आ कर कमरे में हीटर के आगे बैठ गये। मुझे समझ में नही आ रहा था कि इस बात को कितना आगे बढाया जाये। मैंने माधुरी से पुछा की वह आराम से सो पायेगी। उस से सर हिलाया। मैं अपने कमरे में लौट आया। कपड़ें बदल कर जब मैं बिस्तर पर लेटा तो मैंने आज दिन की सारी घटनाओं का लेखा जोखा लेना शुरु किया। कुछ समझ में नही आ रहा था। दिल से आवाज आई कि इसे अब यही छोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी तो और कुछ होना बाकी था।

रात को अचानक फोन की आवाज से आँख खुली फोन उठा कर देखा तो माधुरी का फोन था। उठाया तो माधुरी ने कहा कि उसे बहुत ठंड लग रही है। मैंने सोचा कि अब क्या करुँ। रात में तो और रजाई का इन्तजाम किया नही जा सकता था। एक ही चारा था कि मैं अपनी रजाई ले जा कर उसे उढ़ा दूँ। लेकिन मेरा क्या होगा? मैंने सोचा कि मैं सारे कपड़ें पहन कर रात काट लुगा। मैंने अपने कपडे़ं पहने। उन के ऊपर जैकेट डाली और रजाई ऊठा कर अपना कमरा बंद करके माधुरी के कमरे में चला गया। कमरे का दरवाजा खटखटा कर माधुरी को आवाज दी उसने मेरी आवाज सुन कर दरवाजा खोल दिया।

मैंने कमरे मे आ कर अपनी रजाई उस की रजाई के ऊपर डाल दी। मैं वापस लौटने के लिए मुड़ा तो देखा कि माधुरी ने दरवाजा बंद कर दिया था। मैंने कहा कि वह आराम से सोये मैं अपने कमरे में जा कर सोता हूँ। हम दोनों का एक कमरे मे सोना सही नही है। मैंने दरवाजा बंद किया और अपने कमरे मे आ कर माधुरी को फोन कर के कहा कि वह आराम से सो जाए। सुबह मैं उसे उठा दुंगा।

अपना हीटर अपने पास खिसका कर सोने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर में नींद आ गई।

सुबह मोबाइल की घंटी ने नींद खोली लगा कि अलार्म बजा है लेकिन अलार्म नही था माधुरी का फोन था वह पुछ रही थी कि नींद आई कि नही? मैंने कहा कि उस ने मेरी नीद तोड़ी है यह सुन कर वह फोन पर हँस दी। मैंने फोन पर टाईम देखा तो पांच बजने वाले थे। मैंने फोन पर कहा कि उठ कर तैयार हो जाओ। सूर्योदय देखते है। वह बोली की तैयार होती हूँ। मैं भी उठ कर तैयार हो गया। तब तक माधुरी भी तैयार हो कर मेरे कमरें में आ गई। हम दोनों पीछे जाकर खड़े हो गये मैं अपने केमरे से फोटो लेने लगा। माधुरी भी मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गई। मुझे नही पता था कि वह मेरे पीछे खड़ी है मैं जैसे ही फोटो के लिए पीछे हटा माधुरी मेरे से पीछे से टकरा गई। उस के कठोर उरोज मुझे लगे।

मैं फौरन आगे की तरफ हो गया लेकिन माधुरी पीछे से मेरे से चुपक गई। उस के उरोज मेरे संयम की परीक्षा ले रहे थे। मैंने अपना ध्यान आगे लगाया और फोटो लेने लगा। सुबह की फोटो खिचने के लिए काफी कम समय मिलता है इस लिए जल्दी करनी पड़ती है। मेरे ध्यान न देने से वह पीछे से हट गई। मैंने उस का हाथ पकड़ कर उसे आगे आने को कहा वो आगे कि तरफ आ गई। उगते सुरज की बैक ग्राउड में मैंने उस की कई फोटो खीची, वो बोली की कोई सही नही आयेगी। मैं अपना काम करता रहा। थोड़ी देर बाद मैंने कैमरा उठा कर एक तरफ रख दिया और माधुरी की तरफ देखा। मैडम का मुड कुछ खराब था।

रात को नींद आई, माधुरी ने पुछा।

हां आई थी।

सच बोल रहे हो या बहादुरी दिखा रहे हो?

अब कैसे साबित करुँ

तुम अपनी सुनाओ

मैं तो सो गई थी।

फिर समय पर कैसे जग गई?

अब इस का कैसे जबाव दुँ?

सवाल तो सवाल है

ज्यादा बहादुरी के चक्कर में बीमार न पड़ जाओ

अब रात के एक बजे और क्या करुँ तुम ही बताओ?

लेकिन एक बात ने दिल जीत लिया

कौन सी?

मेरे कमरे मे ना सो के

वो तो करना ही था जो गलत है वो गलत है तुम्हारे सम्मान की चिन्ता पहले है। मैं ऐसा ही हूँ इस लिए हर किसी की समझ में नही आता हूँ।

तुम्हारी इसी बात से मुझे नींद आ गई। अगर कोई ऐसा मेरे पास है तो मेरी चिन्ता खत्म है।

मैं चुप रहा।

तुम्हारा दर्द कैसा है और दवाई दूँ।

दर्द नही हो रहा है लेकिन एक बार की दवा तो ले लेती हूँ।

चलो अन्दर चल कर के दवा ले लेते है। फिर चाय पीते है। फिर नहा कर तैयार हो कर नाश्ता करते है। इनरवियर उतार कर नहाना वह कई दिन तक पहनते है। वह हँसी और बोली मैं बच्ची नही हूँ।

हम दोनो नहाने के लिए चले गये। मैं तो गरम पानी से नहाने का मजा लेने लगा। रात को ठंड ने बढा परेशान किया था। गरम पानी से शरीर को बढ़ा आराम आ रहा था। नहा कर बाहर आ कर कपड़ें बदले।

आज ऐसे ही घुमने का मन कर रहा था। माधुरी को ऊँनी कपडे़ं भी दिलवाने थे। हम दोनों ने नाश्ता कमरे पर ही मगंवा लिया था। पेट भर कर हम अपना अपना सामान उठा कर घुमने के लिए निकल पड़ें। पहाड़ों पर घुम्मकड़ी करने का अपना ही मजा है। मैं तो इस का आदी हूँ। माधुरी का पता नही।

पैदल-पैदल घुमना चलना एक अलग ही मजा देता है। मौसम सही था धुप खीली हुई थी। आसमान साफ था। हम दोनों बातें करते हुए पहाड़ों पर चले जा रहे थे। बाजार में दुकानों पर पता किया तो गरम कपड़ें की दुकान खुली नही थी। पास के शहर ही जाना पड़ेगा ऐसा लग रहा था। अभी तो माधुरी का काम चल रहा था कल देखेंगे ऐसा मैंने सोचा।

पास की पहाड़ी पर शिव का मन्दिर था, मन्दिर जा कर पुजा करी। यहां से आसपास का नजारा बहुत शानदार था। पहाड़ी से नीचे की घाटी का नजारा बहुत सुन्दर लग रहा था। मैं तो फोटो लेने में लग गया। माधुरी भी अपने मोबाइल से फोटो खीचँ रही थी। जब मेरा मन करता मैं उस के भी फोटो खीच लेता था। उसे कोई आपत्ति नही थी। लड़कीयाँ वैसे फोटो खिचवाने में बड़ी नाज-नुकुर करती है। ऐसा मेरा अनुभव था। दोपहर का खाना भी हम ने रास्ते में पड़े एक ढाबे पर खा लिया था। खाना स्वादिष्ट था। दोपहर बाद अचानक मौसम खराब होना शुरु हो गया। काले काले बादल छा गये। जोर की हवा चलने लगी। हम लोग वापिस हो लिए, लेकिन रास्ते में ही थे कि बारिश शुरु हो गई।

मैंने अपनी जैकेट उतार कर माधुरी को दे दी। काँटेज तक आते आते मैं पानी से बुरी तरह से भीग गया था। जैकेट न पहनने के कारण ठंड लग रही थी। सोचा कि कपड़ें बदलने से ठंड चली जायेगी। कपड़ें भी बदल लिए लेकिन ठंड नही जा रही थी। बारिश घनघोर हो रही थी इस कारण ठंड और बढ़ गई थी। माधुरी भी कपड़ें बदल कर आ गई थी। उस की हालत सही थी, मेरी ही खराब थी ठंड के कारण कंपकपी हो रही थी। बारिश के कारण बिजली भी चली गई थी। और अब उस के आने का कोई भरोसा नही था।

ऐसे हालात पहाड़ पर सामान्य बात थी। मैं दोनो रजाई लेकर बिस्तर में लेटा था लेकिन मेरी ठंड नही जा रही थी। ठंड के कारण मेरे दांत कटकटा रहे थे। थोडी देर तक तो मैं लेटा रहा कि, शायद ठंड लगनी कम हो जायेगी लेकिन जब ठंड लगनी कम नही हुई तो डरते हुऐ माधुरी से पुछा कि कुछ गरम का इन्तजाम है मेरा आशय शराब से था। उस ने कुछ समझा नही और सर हिला दिया।

ऐसे मौसम में होटल से भी कुछ चाय-काफी मिलने की आशा नही थी। समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ? मैंने माधुरी से कहा कि वह मेरे बेग में देखे कि कोई और गरम कपड़ा तो नही है जिसे मैं पहन सकुँ। उस ने मेरे बेग को अच्छी तरह से खंगाला लेकिन कोई गरम कपड़ा नही मिला।

मेरे दांत अब ठंड की वजह से बज रहे थे। मैंने अपने जीवन में ऐसी ठंड आज तक महसुस नही की थी। ऐसा लग रहा था कि मुझें हाईपोथरमिया हो गया था। ऐसे में शरीर के अंग काम करना बंद कर देते है।

अचानक माधुरी मेरे बगल में आ कर लेट गई और बोली कि दो के होने से दूसरे शरीर की गरमी मिलती है। मुझें कुछ समझ नही आया। अंधेरा था बारिश होने का शोर कान फाड़ रहा था। वह पलट कर मुझ से लिपट गई। उसने भी सारे कपड़ें पहन रखे थे। बोली अब यही तरीका बचा है गरमी लाने का। उसने लिपट कर मुझें चुमना शुरु कर दिया। यह ऐसी क्रिया है कि शरीर में फौरन उर्जा का संचार कर देती है। मुझें महसुस हुआ कि कुछ फर्क पड़ा है। मैंने भी उसे सहलाना शुरु कर दिया कपड़ों के ऊपर से शरीर सहलाना कुछ सही नही है लेकिन इस समय अक्ल भी काम करना बंद कर देती है। उस के चुमने और सहलाने से मेरे दांत बजना बंद हो गये। अब मैंने भी उसे चुमना शुरु कर दिया।

यह चुमा-चाटी का दौर काफी देर चलता रहा बाहर हवा और पानी का वेग जोरों पर था और कमरे के अन्दर हम दोनों की सांसों का वेग भी कम नही था। अब हमारे हाथ कपड़ों के अन्दर चले गये थे। हाथों को शरीर की गरमाई महसुस हो रही थी, गरमी अच्छी लग रही थी। कल तक मैं जिस के साथ सोने को राजी नही था आज खुद ही उस के साथ एक बिस्तर में था। मैंने कोशिश की कि मैं अपनी हद में रहुँ। लेकिन अन्दर तुफान तो आने ही वाला था। बाहर तो तुफान चल ही रहा था।

मैंने माधुरी के कपड़ों में हाथ डाल कर उसके उरोजों को मसलना शुरु कर दिया ज्यादा तो कुछ हो नही सकता था लेकिन अपनी गरमी बढ रही थी।

माधुरी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख कर फैन्च किस करना शुरु कर दिया था। उस की जीभ मेरे मुँह में घुस कर खिलवाड कर रही थी। मैंने भी उस की जीभ की नोक को चुसना शुरु कर दिया। फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी वो तो इस की ताक में ही बैठी थी। उस ने मेरी जीभ को काटना शुरु कर दिया।

माधुरी ने अपने ऊपर के कपड़ें उतार कर रजाई के ऊपर डाल दिये और मेरे भी कपड़ें उतार दिये। अब हम कमर के ऊपर से नंगे थे। मुझें अब सर्दी तो नही लग रही थी। लेकिन अब सर्दी की चिन्ता किसे थी अब तो जो तुफान रजाई के अन्दर आने को था उस के लिए तैयारी हो रही थी। हम दोनों एक दुसरे से बुरी तरह से चिपक गये और एक दूसरे को चुमने चाटने लगे। मैं उस के छोटे मगर कठोर उरोजों को मुँह से चुमने लगा। एक हाथ से एक को मसल रहा था और दुसरें को होठों से चुम रहा था। मसलने से उरोजों में और तनाव आ गया था। मैं तो निप्पल को होठों से दबा के चुस रहा था। माधुरी भी मेरे निप्पल को चुम रही थी। मैंने उस के कन्धे पर उत्तेजना के कारण काट लिया उस ने भी अपने दाँतों से ऐसा ही किया।

मैंने माधुरी की जाँघों के बीच हाथ ले जा कर कपड़ों के ऊपर से सहलाना शुरु किया, उस का हाथ भी मेरे लिंग को ऊपर से सहलाने और मसलने लगा। मैंने उस के पायजामें को कुल्हों से नीचे कर दिया और अपने हाथ को उसकी योनि पर ले गया। नीचे के हिस्से में कोई बाल नही था। लगता है कि उस ने एक दो दिन पहले ही सफाई की थी। योनि के मुँख पर नमी थी। मैंने अपनी ऊंगली योनि में डाल दी, और उसे अन्दर बाहर करने लगा। माधुरी के मुह से आह उहहह आहहहहहहह आहहहह उहहहहहहहह की आवाज निकलने लगी। उसे इस में मजा आ रहा था। मैं उस की योनि को चुमना चाहता था लेकिन ऐसा संभव नही था। हमारा रजाई के अन्दर रहना जरुरी था। बाहर जोरदार बारिश हो रही थी। ठंड और बढ़ गई थी। रजाई से बाहर निकलने की हिम्मत नही कर सकते थे। हम दोनों ऐसी डगर पर चल दिये थे कि अब रूक भी नही सकते थे। माधरी मेरे लिंग को हाथों से मसल रही थी और उसे उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी।

लिंग में अब तनाव आ रहा था। लेकिन अभी कसर बाकी थी। हम दोनों नंगे थे और एक दूसरें को बदन को चुम कर सहला कर गरम कर रहे थे। इस में सफलता मिलनी शुरु हो गई थी। लिंग अब पूरे तनाव में आ गया। मैंने माधुरी को पीठ के बल लिटा दिया और उठ कर उस के ऊपर लेट गया, मैंने लिंग को उस की योनि में डालने की कोशिश करनी शुरु कर दी थी। योनि बहुत टाईट थी, लिंग का सुपारा बाहर टकरा रहा था लेकिन अन्दर नही जा रहा था। माधुरी ने हाथ से पकड़ कर उसे रास्ता दिखा दिया। एक बार अन्दर जाते ही चिकनाई की वजह से गहराई में चला गया। उस की योनि बहुत टाईट थी लेकिन अन्दर नमी होने के कारण लिंग को आगे जाने में कठिनाई नही हुई। लिंग पुरा जाने के बाद मैंने धक्कें लगाना शुरु कर दिया। माधुरी ने भी थोड़ी देर में मुझें नीचे से धक्कें लगाना शुरु कर दिया। चार रजाई का बोझ इतना था कि मैं अपने कुल्हों को ज्यादा ऊपर नही उठा पा रहा था।

मैं लिंग को निकाल कर माधुरी की बगल में लेट गया। फिर मैंने माधुरी का मुँह अपनी तरफ कर लिया अब हम दोनों एक दुसरे के आमने-सामने लेटे थे। मैंने माधुरी की टागों को मोड़ कर अपने कन्धों पर रख लिया और अपने लिंग को उस की योनि में डाल दिया। धीरे धीरे लिंग को धक्का देना शुरु किया लिंग सीधा बच्चेदानी के मुख पर टक्कर मार रहा था। माधुरी दर्द के कारण करहाने लगी। मैंने उस के होठों को चुमना शुरु कर दिया। माधुरी को अब इस आसन में मजा आ रहा था। वो भी धीरे-धीरे हिलने लगी। काफी देर तक ऐसे रहने के बाद मैंने लिंग को निकाल लिया। पावों को कन्धे से उतार दिया। रजाई का तुफान थोड़ी देर के लिए टहर गया था, लेकिन बाहर का तुफान जोरों पर था।