मोहन लाल के कारनामें

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रगींले मोहन लाल की अपनी सलहज के साथ मस्ती.
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इस बार मैं आप को मोहन लाल जी की एक और कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो उन की सलहज से संबंधित है। मोहन लाल जी का अपनी नौकरानी से काम चल रहा था। वह उनका घर भी संभाल रही थी और उन की सेक्स का मजा भी दे रही थी। कुछ महीनों बाद एक दिन उन की सलहज का जिसका नाम सविता था फोन आया कि वह अगले दिन कुछ दिनों के लिये उनके साथ रहने आ रही है। सविता के साथ मोहन लाल जी ने जवानी में मस्तियां की थी इस लिये उस के साथ संबंध सहज थे। यह खबर सुन कर मोहन लाल खुश और चिन्तित दोनों एक साथ हुये क्योंकि उन्हें जवान शरीर का मजा मिल रहा था, उसे छोड़ कर अपने उम्र की औरत के साथ संबंध बनाना वह समझ नही पा रहे थे। सविता को आने से मना नहीं कर सकते थे इस लिये उन्होंने कुछ समय के लिये अपने को और आशा को समझाना ही उचित समझा।

वह आशा से बोले कि आशा मेरी एक रिस्तेदार कुछ दिन के लिये रहने के लिये आ रही है इस कारण से कुछ दिनों तक हम दोनों एक दूसरे से मिल नहीं पायेगे और तुम ध्यान रखना की मुझ के कोई ऐसी बात ना करो कि उन को हम दोनों पर कोई शक हो। आशा ने बात समझ कर सर हिला दिया। आशा की तरफ से निश्चत हो कर मोहल लाल अपने कमरे में आ कर सविता के आने से होने वाले घटना क्रम के लिये अपने को तैयार करने के लिये सोचने लगे। उन्हें पता था कि उन की सहलज उन की मुँह लगी है। वह कुछ भी बोल सकती है। उन्हें इसी बात का डर था कि वह कहीं उन का सारा राज जमाने के सामने ना खोल दे। वह इस बारें में कुछ कर भी नहीं सकते थे।

अगले दिन वह स्टेशन पर जा कर सविता को ले आये। सविता की उम्र पचास से अधिक थी लेकिन शरीर कसा हुआ था, मोटी भरी हुई छातियाँ, पतली कमर और 38 साईज के कुल्हें। इस लिये पचास के कम की नजर आती थी। बच्चे बड़े हो कर बाहर निकल गये थे पति व्यवसाय में व्यस्त रहते थे इस लिये सविता अकेली पड़ गयी थी ऐसे में उन्हें अपने ननदोई मोहल लाल का ध्यान आया वह भी अकेले थे। जवानी में दोनों की बहुत बनती थी सो सोचा कि कुछ दिन उन के पास बिता कर आती है। उन को देख कर यह पता चलता था कि उन पर जवानी में बहुत लोग मरा करते होगे। मोहल लाल से मिल कर वह बोली कि जीजा जी आप तो एकदम फिट नजर आ रहे है। मोहन लाल बोले कि जैसी तुम हो वैसा ही मैं भी हूँ। फिर वह सविता को लेकर घर आ गये। घर आ कर उन्होनें आशा का परिचय सविता से कराया और कहा कि अब यहीं मेरी देखभाल करती है। सविता नें आशा को गहरी नजर से देख कर नजरें फिरा ली।

आशा ने सविता को पानी ला कर दिया और उसके बाद सविता मोहन लाल के साथ उन के कमरे में चली गयी। कुछ देर बाद मोहन लाल के आवाज देने पर आशा ने कमरे में आ कर पुछा तो मोहन लाल बोले कि चाय के साथ कुछ बना कर ले आयो। आशा सर हिला कर वापस चली गयी। उस के जाने के बाद सविता बोली कि जीजा जी आप को तो मेरी याद ही नहीं आयी है। यह सुन कर मोहन लाल बोले कि याद तो बहुत आयी लेकिन तुम अपने परिवार में लगी हो यही सोच कर तुम्हें परेशान नहीं किया। मैं तो अपने अकेलेपन को झेलने का आदी हो गया हूँ। तुम्हें क्यों अपनी परेशानी बता कर परेशान करुँ। सविता बोली कि आप और मैं दोनों ही अकेले है। बच्चें बड़े हो कर बाहर निकल गये है पीछे से हम बड़ें अकेले रह गये है। साथ के लिये कोई बचा ही नहीं है या है भी तो वह अपनी परेशानियों से घिरा है।

उस के स्वर की उदासी को मोहन लाल ने पकड़ लिया और कहा कि तुम सही कहती हो सब की एक जैसी कहानी है। उम्र के इस पड़ाव पर हम सब अकेले रह गये है। सविता बोली कि मैं तो यही सोच कर आप के पास आ गयी कि कुछ मेरा समय बीत जायेगा कुछ आप का मन भी लग जायेगा। मोहन लाल बोले कि तुमने अच्छा किया कि चली आयी मेरी हिम्मत तुम से आने को कहने की नहीं हो रही थी। दोनों एक ही नाव के सवार थे। यह वह दोनों जानते थे। कुछ देर बाद आशा एक प्लेट में चाय और नमकीन ले कर आ गयी और मेज पर रख कर चली गयी।

मोहन लाल ने चाय का कप सविता के हाथ में दिया और खुद भी चाय का कम उठा कर चाय पीने लगे। चाय पीते पीते मोहन लाल ने सविता के पति याने की अपने साले के बारें में पुछा तो सविता बुझे स्वर से बोली कि आप को तो उन के बारें मे पता ही है वह इस उम्र में कौन सा सुधरने वाले है। उन की यार दोस्तों की मंड़ली ही लगी रहती है। किसी और की चिन्ता करना उन के बस की बात नहीं है। यह सुन कर मोहन लाल को सविता का दर्द समझ में आ गया। जवानी में भी सविता का यही रोना था और अब बुढ़ापे में भी वही कहानी है।

वह उसे सांत्वना भी नहीं दे सकते थे। इस लिये हँस कर बोले कि अब इस उम्र में भला कोई सुधरता है तुम भी हद करती हो। सविता बोली कि मैं अब चिन्ता ही नहीं करती, मुझे तो ऐसे ही जीने की आदत पड़ गयी है। जब तक बच्चें घर पर थे उन के साथ वक्त गुजर जाता था अब उन के चले जाने से वक्त काटे नहीं कटता। बच्चों के पास भी हर समय नहीं रहा जा सकता। उन की भी अपनी जिन्दगी है। वह कब तक हमारा ध्यान रखेगे। मोहन लाल ने सहमति में सर हिला दिया। दोनों चुपचाप चाय पीते रहे।

शाम हो चली थी मोहन लाल ने सविता से कहा कि तुम कुछ देर आराम कर लो फिर बात करते है तो सविता बोली कि आराम क्या करना है। मोहन लाल ने पुछा कि नहाना तो नहीं है तो सविता बोली कि सोच रही हूँ कि नहा लूँ। यह सुन कर मोहल लाल बोले कि तुम कपड़ें निकालो तब तक मैं तुम्हारें नहाने का प्रबन्ध करता हूँ । यह कह कर मोहल लाल कमरे से निकल गये। आशा के पास जा कर बोले कि बाथरुम साफ है? आशा बोली कि हाँ सुबह ही साफ किया था। मोहन लाल जो सोच रहे थे वह कह नहीं सकते थे इस लिये स्वयं ही बाथरुम में चले गये।

वहाँ जा कर उन्होंने देखा कि आशा के कपड़ें तो वहाँ पर नहीं पड़ें है? बाथरुम आशा के कहे अनुसार साफ सुथरा पड़ा था। वहाँ किसी के कपड़ें नहीं थे। आशा से संबंधित कोई चीज मोहन लाल को बाथरुम में नहीं मिली। वह बाहर आये और आशा से बोले कि सविता के लिये नया तोलिया ला कर दे दो। यह सुन कर आशा तोलिया लेने चली गयी। उस ने तोलिया ला कर बाथरुम में टाँग दी। तब तक सविता कपड़ें हाथ में ले कर आती दिखाई दी। मोहन लाल बोले कि साफ तोलिया टाँग दी है तुम नहा लो।

सविता बोली कि जीजा जी आप मेरी चिन्ता ना करों मैं सब अपने साथ लायी हूँ। यह कह कर सविता नहाने चली गयी और मोहन लाल कमरे में वापस आ गये। आशा उन के पास आ कर खड़ी हूई तो उन्होनें उस से पुछा कि घर में सब सामान है या नहीं। आशा ने हाँ में सर हिला दिया। वह आशा से बोले कि सविता का बिस्तर दूसरे कमरें में लगा देना। वह आराम से सोयेगी। आशा ने पुछा कि कोई और बात तो नहीं है। मोहन लाल ने ना में सर हिलाया। आशा उन के पास से चली गयी।

कुछ देर बाद उन्हें सविता नहा कर आती दिखायी दी। वह उन के पास आ कर बोली कि मुझे कंघा और शीशा चाहिये। मोहन लाल ने कमरे की अलमारी की तरफ इशारा कर दिया। सविता बाल काढ़ने लगी। मोहन लाल सविता को देख कर सोचने लगे कि इस पर उम्र ने ज्यादा असर नहीं दिखाया है। अभी तक उस के शरीर के तमाम खम सलामत थे। उस की चाल की मस्ती कायम थी। हथनी की चाल से उस की चाल की तुलना की जा सकती थी। वह उस की इसी खासियत के पुराने आशिक थे। अब पता नहीं वह आशिकी कायम है भी कि नहीं, उन्हें नहीं पता था। ऐसे ही अनेक विचार उन के मन में चल रहे थे।

सविता उन के पास आ कर कुर्सी पर बैठ गयी और बोली कि रात में क्या खिला रहे है? वह बोले कि जो तुम कहो? इस पर सविता बोली कि कोई दाल बनवा लो। मोहन लाल जी ने आशा को आवाज दी। वह आ कर खड़ी हो गयी। मोहल लाल उस से बोले कि आज खाने में कोई दाल बना लो और रोटी तो है ही। आशा ने पुछा कि कौन सी दाल? तो सविता ने उसे जवाब दिया कि मुंग की दाल सही रहेगी। फिर वह बोली कि कुछ मीठा है। आशा ने कहा कि मिठाई फ्रिज में रखी है तो आशा बोली कि मैं भी मिठाई लायी हूँ। तुम ऐसा करों कि थोड़ी सी खीर बना लो। रात में सही रहेगी। मोहन लाल ने सर हिला कर अपनी सहमति जाहिर की।

आशा यह सुन कर बाहर चली गयी। उस के जाते ही सविता बोली कि लगता है आप को खाना सही बना कर खिला रही है। मोहन लाल बोले कि पहले थोड़ी परेशानी आयी थी लेकिन यह जल्दी ही सब सीख गयी है। अब कोई परेशानी नहीं है। सविता बोली कि खाना सही मिलना बहुत जरुरी है। मोहन लाल बोले कि तुम बताओ जिन्दगी कैसी चल रही है। यह सुन कर वह हँस कर बोली कि मुझे देख कर आप बताओ की कैसी चल रही होगी? उस की यह बात सुनकर मोहन लाल हँस दिये और बोले कि मैं पहले भी बातों में तुम से नहीं जीत पाता था अब क्या जितुँगा। वह भी मुस्करा दी।

रात को खाना खाने के बाद मोहन लाल ने आशा से कहा कि वह भी खाना खा ले। उस ने बताया कि सविता जी का बिस्तर दूसरें कमरें में लगा दिया है। सविता बोली कि मुझे अभी जीजा जी से काफी बातें करनी है फिर सोने जाऊँगी। यह सुन कर आशा से मोहन लाल बोले कि तुम सफाई करके सोने चली जाओ। कोई काम होगा तो हम अपने आप कर लेगे।

आशा यह सुन कर चली गयी। सविता और वह दोनों बेड पर बैठ कर बातें करने लगे। दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे इस लिये उन के पास बातें करने के लिये बहुत कुछ था। कुछ देर बाद सविता बोली कि आप को पिछला कुछ याद है या सब कुछ भुल गये। मोहन लाल बोले कि मुझे सब कुछ याद है ऐसी यादें कही भुली जाती है। यह सुन कर सविता बोली कि हाँ सुहानी यादें ही अब हमारे पास बची है। दोनों को अपनी पिछली बातें याद आ रही थी जिस पर वक्त की धुल चढ़ चुकी थी। दोनों उस को झाड़ना चाहते थे।

मोहन लाल ने यह महसुस किया कि सविता दूखी है। उस के दूख का कारण वह जानते थे, लेकिन पुछ कर उसे दूखी नहीं करना चाहते थे। काफी देर तक बातें करने के बाद मोहन लाल सविता से बोले कि तुम आज बहुत थक गयी होगी, अब जा कर आराम से सो जाओ। यह सुन कर सविता बोली कि आप को लगता है कि मुझे नींद आयेगी। यह सुन कर मोहन लाल बोले कि आज आराम करना ही तुम्हारे लिये सही रहेगा। कल देखेगे। यह सुन कर सविता मुस्कराती हूई अपने कमरे में चली गयी। मोहन लाल को भी रात में नींद काफी देर बाद आयी।

सुबह आशा ने उन के कमरे का दरवाजा खटखटाया तब उन की नींद खुली। वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गये। बाहर आशा ने पुछा कि आप के लिये चाय बनाऊँ या सविता जी के उठने का इंतजार करुँ। तभी सविता भी आती दिखायी दी। वह बोली कि मेरी चाय भी बना लो। आशा चाय बनाने चली गयी। सविता बोली कि आज तो नींद बहुत देर में खुली है। मोहन लाल बोले कि कल तुम सोई भी तो बहुत देर से थी। वह बोली कि हाँ यह तो आप सही कह रहे है। उस की आँखों में चिरपरिचित चमक देख कर मोहन लाल बोले कि नींद पुरी करनी चाहिये। वह शरारत से बोली कि नींद तो आप को भी रात को नहीं आयी होगी। यह सुन कर मोहन लाल मुस्करा दिये लेकिन बोले कुछ नहीं। सविता की आँखें शरारत से चमक रही थी। उसे समझ आ गया कि मोहन लाल का भी उसी तरह का हाल है। दिन सामान्य रुप से गुजर गया। रात को सोते समय आशा को सोने के लिये विदा कर दिया गया।

सविता इठला कर बोली कि मैं तो आज आप के पास सोना चाहती हूँ। मोहन लाल बोले कि किसने मना किया है। तुम्हारा घर है जहाँ मर्जी सोओ। यह कह कर मोहन लाल ने सविता को आँख मार दी। सविता का मन खुश हो गया। वह मोहन लाल के पास रहने आयी ही इस लिये थी। आज उस के मन का होने को था। मोहन लाल भी खुश थे उन्हें केवल आशा को पता चलने की चिन्ता थी। वह इस में कुछ कर नहीं सकते थे। सविता और उन के पहले से शारीरिक संबंध थे। वक्त के साथ वह कम हो गये फिर खत्म हो गये। आज मौका था कि उन्हें फिर से जीवित किया जाये। उन की तरफ से कोई परेशानी नहीं थी, उन्हें लगा कि सविता की तरफ से भी कोई परेशानी नहीं आनी चाहिये। वह उठे और सविता के कमरे का दरवाजा बंद कर आये और आशा के कमरे का दरवाजा भी देख आये।

अपने कमरें में आ कर वह दरवाजा बंद करके बोले कि देखते है हम दोनों में अब कितनी गर्मी बची है? सविता बोली कि यह तो जाँचने से ही पता चलेगा। मोहन लाल बेड पर आ कर बैठ गये। सविता उन के पास खिसक आयी और बोली कि मैं बहुत दिनों से प्यासी हूँ जीजा जी आज आप को मेरी प्यास बुझानी होगी। मोहन लाल ने उस का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उस के माथे पर चुम्बन ले लिया। इस से सविता का चेहरा लाल हो गया। उस के शरीर में करंट दौड़ गया। सविता के होंठ मोहन लाल के होंठों से चुपक गये। दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये।

दोनों की उम्र भले ही बढ़ गयी थी लेकिन दिल तो जवान था। उस में वही अरमान दौड़ रहे थे जो पहले दौड़ते थे। कुछ देर बाद दोनों सांस फुलने के कारण अलग हो गये। दोनों की सांस धोकनी की तरह चल रही थी। कुछ देर बाद सयंत होने पर मोहन लाल बोले कि तुम इतनी उदास सी क्यों लग रही हो। वह बोली चलों किसी को तो मेरी उदासी पता चलती है आप के साले को तो कुछ दिखायी नहीं देता। मोहन लाल बोले कि वह तो पहले से ही ऐसा था। उस ने क्या बदलना है। सविता बोली कि मेरे पास आने का भी उन्हें समय नहीं मिलता। जब आते भी है तो नशे के कारण कुछ कर नहीं पाते।

मोहन लाल ने सविता को अपने से चिपका लिया। सविता ने अपना चेहरा उनकी छाती में छुपा लिया। उन के हाथ सविता की पीठ को सहलाने लगे। सविता उन के हाथों से पिघलती सी गयी। वह भी मोहन लाल की पीठ सहलाने लगी। दोनों के शरीर में काम की आग लगनी शुरु हो गयी थी। मोहन लाल ने उस के ब्लाउज को पीछे से खोल कर आगे खिसका दिया। उम्र के साथ सविता के उरोज ढ़लक भले गये थे लेकिन उन की पुष्टता कम नहीं हुई थी। मोहन लाल के हाथों द्वारा सहलाये जाने से वह उत्तेजित हो कर कठोर हो गये थे। निप्पल फुल कर लंबें हो गये।

मोहन लाल निप्पलों को अपनी ऊंगलियों के बीच लेकर दबाते रहे। सविता आहहहहहहहहहहहह करने लग गयी। इस के बाद मोहन लाल ने गरदन झुका कर निप्पलों को अपने होंठों के बीच दबोच लिया और उन को चुसने लगे। इस से सविता की उत्तेजना और बढ़ गयी। पहले एक निप्पल चुसा गया और फिर दूसरे का नंबर आया। इस से सविता का सारा शरीर अकड़ने लगा। उस ने मोहन लाल का कुर्ता उतार दिया। अब उस के हाथ मोहल लाल के नंगें शरीर पर घुम रहे थे। मोहन लाल के निप्पल भी उस की ऊंगलियों में आ गये। वह उन्हें मसलने लगी। इस से मोहल लाल के शरीर में उत्तेजना की लहरें उठने लग गयी। काफी देर तक दोनों एक दूसरे के शरीर में वासना की आग भड़काते रहे।

जब आग भड़क गयी तो मोहन लाल ने सविता के कपड़ें उतार दिये। वह भी अपने कपड़ें उतार कर नंगें हो गये। सविता का शरीर अभी भी उम्र को छुपाने में सफल हो रहा था। शरीर में भरपुर कसाब मौजूद था। कही पर फालतु मांस नहीं था। मोहन लाल ने उस की जाँघों पर हाथ फिरा कर उसे और उत्तेजित करना शुरु कर दिया। इस के बाद वह उसे लिटा कर उस के सारे शरीर को चुमने लग गये। स्तनों को दबाने और चुमने के बाद वह उस की कमर को चुम कर उस की नाभी को गिला कर के उस की जाँघों के मध्य में उतर गये। वहाँ पर बाल नहीं थे। मादक सुगंध उन की नाक में आने लग गयी। उन की ऊंगली सविता की योनि में घुस गयी, वहाँ नमी तो थी लेकिन कम थी। उम्र के साथ ऐसा हो जाता है यह वह जानते थे उन्होनें अपनी ऊंगली को योनि के अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। सविता आहहहह उहहहहहहहह करने लग गयी। कुछ देर बाद ही सविता ने उत्तेजित हो कर उन के होंठ अपने होंठों में ले कर काटना शुरु कर दिया।

मोहन लाल 69 की पोजिशन में आ गये और उन का लिंग अब सविता के चेहरे पर लहरा रहा था। सविता ने उसे अपने मुँह में ले लिया। मुँह की नमी और जीभ का स्पर्श पा कर मोहल लाल का लिंग और तनाव लेने लगा। सविता उसे अपने मुँह से अंदर बाहर करने लगी। कुछ देर बाद मोहन लाल को लगा कि वह सविता के मुँह में ना स्खलित हो जाये यही सोच कर वह सविता के ऊपर से उठ गये और उस की जाँघों को चौड़ा करके उनके बीच में बैठ गये। सविता ने भी अपनी टाँगें फैला ली। मोहन लाल ने अपने तने लिंग को सविता की योनि पर रख कर दबाया तो लिंग अंदर तो गया लेकिन वहाँ पर नमी की कमी होने के कारण आगे नहीं खिसका। मोहन लाल ने दूबारा प्रयास किया, लेकिन कुछ हुआ नहीं। मोहन लाल जी सविता के ऊपर से उठ गये और बेड की दराज में से कुछ ढुढने लगे। सविता उन्हें देख कर बोली कि क्या ढुढ़ रहे है। मोहन लाल बोले कि तुम्हारी समस्या का समाधान ढुढ़ रहा हूँ। उन्हें जैल की टयूब मिल गयी। उसे ले कर उन्होनें उस में से जैल ले कर अपने लिंग पर लगाया और कुछ सविता की योनि में लगा दिया। इस के बाद वह फिर से सविता की जाँघों के बीच आ गये।

उन्होंने अपने लिंग को सविता की योनि के मुँह पर लगाया और जोर डाला तो लिंग आसानी से योनि में समा गया। दूसरी बार धक्का देने से मोहन लाल का लिंग अंडकोष तक योनि में समा गया। सविता दर्द से कराही। मोहन लाल रुके और फिर उन्होंने धक्कें लगाने शुरु कर दिये। सविता के हाथ मोहन लाल की पीठ पर पहुँच गये। सविता की भरी जाँघों के बीच मोहन लाल का लिंग पुरा समा रहा था। सविता इस का पुरा आनंद उठा रही थी। आनंद के कारण उन की आँखें बंद हो गयी थी। काफी देर तक मोहन लाल धक्कें लगाते रहे फिर थक कर सविता के ऊपर से उतर कर बगल में लेट गये। कुछ देर आराम करने के बाद वह फिर से सविता में समा गये और उस की योनि पर प्रहार करने लगे। सविता ने अपनी बांहें मोहन लाल की गरदन में डाल कर उसे झुकाया और उन के होंठ चुम कर कहा कि तुम्हारा दम अभी कायम है।

सविता ने अपनी योनि को कसना और मथना शुरु कर दिया था। मोहन लाल समझ गये थे कि वह अब स्खलित होने वाले है। सविता भी स्खलित हो चुकी थी उस की टाँगें मोहन लाल की पीठ पर आ गयी। मोहन लाल बड़े जोर से स्खलित हुये और सविता के ऊपर लेट गये। उन की सांस बड़े जोर से चल रही थी। वह लुढक कर सविता की बगल में आ गये।

सविता की छातियाँ जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी। वह भी चरम के आनंद में डुबी हुई थी। कुछ देर तक दोनों अपनी सांसों को सहेजते रहे। जब दोनों कुछ संयत हुये तो सविता बोली कि आप पर तो उम्र का असर दिखायी नहीं देता है। आज भी मेरी कमर का दम निकल गया है। मोहन लाल ने उस का चेहरा चुम कर कहा कि तुम तो मुझे पहले से जानती हो। उम्र का असर मन पर नहीं पड़ता है लेकिन शरीर तो थकता ही है। सविता ने पुछा कि आप ने क्या लगाया था। मोहन लाल बोले कि उम्र के कारण तुम्हारें अंदर नमी कम हो गयी थी। लिंग अंदर जा नहीं रहा था। जोर जबर्दस्ती से लिंग को और योनि में चोट लगने का डर था। इस से बचने के लिये जैल लगाया था जिस के कारण चिकनाई बढ़ गयी और संभोग बिना दर्द के हो पाया। सविता ने कुछ नहीं कहा।

दोनों के नीजि अंग पानी छोड़ रहे थे। यह दर्शा रहा था कि दोनों संभोग के लिये भरपुर तैयार थे। शरीर अपना काम कर रहे थे। मोहन लाल ने सविता को अपने से लिपटा कर कहा कि तुम तो आज भी वैसी ही हो। वह बोली कि इस शरीर का क्या करुँ इसे भोगने वाला इस में कोई रुचि ही नहीं लेता। मोहन लाल बोले कि तुम ने कारण पता नहीं किया। वह बोली कि बाहर का कोई चक्कर नहीं है उन्हें मुझ में कोई दिलचस्पी नही है। तुम्हें तो पहले से पता है। बच्चें पैदा हो गये यही क्या कम है।

दोनों एक दूसरे से लिपट गये। उन के शरीर की उर्जा खत्म हो गयी थी। इस लिये वह दोनों नींद के आगोश में चले गये।

सुबह जब मोहन लाल की आँख खुली तो वह उठ कर खड़े हो गये। उन्होनें सविता को हिला कर उठाया। वह भी आँख खोल कर उठ गयी। दोनों ने अपने कपड़ें पहनने शुरु कर दिये। कपड़ें पहन कर जब तैयार हो गये तो मोहन लाल सविता से बोले कि तुम अपने कमरे में जा कर लेट जाओ। इस के बाद मैं आशा को उठाता हूँ। यह सुन कर सविता कमरे में चली गयी। मोहन लाल ने कमरे से बाहर आ कर आशा के कमरे का दरवाजा खटखटाया और आशा को आवाज दे कर उठा दिया। कुछ देर बाद आशा बाहर आ गयी। मोहन लाल बोले कि तुम चाय बनाओ मैं सविता को उठाता हूँ। वह सविता को उठाने उस के कमरे में गये और जोर से बोल कर सविता को उठाने लगे। सविता तो उठी बैठी थी उन की आवाज सुन कर कमरे से बाहर आ गयी। दोनों बाहर बैठ कर चाय का इंतजार करने लगे। कुछ देर बाद आशा चाय ले कर आ गयी। दोनों धुप में बैठ कर चाय का आनंद उठाने लगे। सविता का चेहरा रात के मिलन के कारण चमक रहा था। उस पर छायी हुई उदासी छट गयी थी।

नाश्ता करने के बाद मोहन लाल जी बाजार जाने लगे तो सविता से पुछा कि तुम्हें बाजार से कोई काम तो नहीं है तो उस ने मना कर दिया। मोहन लाल जी बाजार आ गये और मेडिकल स्टोर से कुछ लेने के लिये उस के अंदर चले गये। वहाँ जा कर उन्होंने कंड़ोम के पैकेट और एक जैल का टयूब लिया और बाहर आ गये। बाजार से घर का कुछ सामान खरीद कर वह वापस घर आ गये। दोपहर का खाना खा कर सब आराम करने लगे तो सविता मोहन लाल से बोली कि आप क्या लाये है? मोहन लाल बोले कि कुछ लाया हूँ रात को बताऊँगा। उन की बात सुन कर सविता मुस्करा दी।

दोनों दूनिया जहान की बातें करने लग गये। उन के पास बातें करने के कई विषय मौजुद थे। उन की बातें शाम तक चलती रही। शाम को आशा ने चाय बनाने की पुछा तो मोहन लाल ने उसे चाय के साथ पकोड़ी बनाने के लिये कहा। सविता बोली कि मैं पकौड़ी बनाती हूँ यह कह कर वह आशा के साथ किचन में चली गयी। कुछ देर बाद वह आशा के साथ चाय और पकौड़ी ले कर आ गयी। तीनों लोग चाय और पकौडियों का आनंद उठाने लगे। सविता ने पकौड़िया बढ़िया बनाई थी।

रात को सोते समय सविता अपने कमरे में सोने चली गयी। आशा भी अपने कमरे में सोने चली गयी। मोहन लाल भी बेड पर लेट गये। उन्हें पता था कि कुछ देर बाद सविता उन के पास आयेगी। ऐसा ही हुआ कुछ देर बाद ही उन के कमरे का दरवाजा खुला और सविता ने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर दिया। वह उन के पास आ कर लेट गयी। मोहन लाल बोले कि क्या हुआ सो गयी थी? वह बोली कि मैं इंतजार कर रही थी कि तुम्हारी नौकरानी सो जाये। मोहन लाल कुछ नहीं बोले। उन्होनें सविता को अपने साथ चिपका लिया। उस के बदन की खुशबु उन्हें मदहोश कर रहे थे। सविता आज भी किसी भी जवान स्त्री को मात दे सकती थी। उस ने बड़ी मादक निगाहों से मोहन लाल को देखा और कहा कि रोज करने से कोई परेशानी तो नहीं होगी? मोहन लाल बोले कि अगर होगी तो रुक कर कर लिया करेगें। उन की बात सुन कर सविता बोली कि एक दिन रुकना मुश्किल होगा। मोहन लाल बोले कि शरीर की भी सुननी पड़ेगी नही तो कुछ नहीं कर पायेगे।

मोहन लाल के हाथ सविता को बदन को सहलाने लग गये। वह सेक्स का लम्बा करना चाहते थे। फोरप्ले ही वो चीज थी जो लंबी की जा सकती थी। उन के होंठ सविता के होंठों को चुम कर उस की वक्षस्थल के मध्य आ गये और वहाँ अपनी गरम सांसे छोड़ने लगे। उन्हों के एक हाथ ने सविता के ब्लाउज में हाथ डाल कर उन का भरा हुआ स्तन बाहर निकाल कर उसे चुसना शुरु कर दिया। सविता को दर्द तो हो रहा था लेकिन अच्छा भी लग रहा था। यह मोहन लाल जानते थे। कुछ देर बाद सविता ने ब्लाउज खोल कर उतार दिया। अंदर उस ने ब्रा नहीं पहन रखी थी। उस के भरे स्तन चुमने और चुसे जाने के लिये मोहन लाल को ललचा रहे थे। मोहन लाल उन का रस पीने लग गये। उत्तेजना के कारण सविता का मुँह खुल गया था और वह आहहहहहहहह करने लगी। काफी देर तक मोहन लाल सविता के स्तनों का मर्दन करते रहे फिर मन भर जाने पर उस की कमर पर चुम्बन लेने लग गये। इस के बाद उन का हाथ उस की साड़ी के अंदर चला गया। वह पेंटी के ऊपर से उस की योनि को सहलाने लगे। पेंटी पानी के कारण गिली हो गयी थी। सविता काफी उत्तेजित हो गयी थी।

मोहन लाल ने उस की साड़ी उतार कर फैंक दी और नाड़ा खोल कर उस का पेटीकोट भी उतार दिया। उसकी केले के समान भरी जाँघों को हाथों से सहला कर उसे उत्तेजना देने लगे। सविता ने मोहन लाल के कपड़ें उतार दिये थे। दोनों पेंटी और ब्रीफ में थे। दोनों की सांसे तेज चलने लग गयी थी। मोहन लाल बेड के सिराहने पर तकिया लगा कर लेट गये। उन्होनें सविता को अपने ऊपर आने को कहा सविता ने अपनी कच्छी उतार दी और वह अपनी योनि मोहन लाल के मुँह पर रख कर बैठ गयी। मोहन लाल उस की योनि को जीभ से चाँट रहे थे।

सविता की सांसे गरम हो रही थी। उस का बदन कांप रहा था। मोहन लाल ने सविता की योनि की परतों को खोल कर अपनी जीभ योनि में घुसेड़ दी। अंदर भरपुर नमी थी। जीभ के योनि को चाटने के कारण सविता बहुत अधिक उत्तेजित हो गयी थी। उस के हाथ मोहन लाल के बालों में घुम रहे थे। उस ने मोहन लाल का चेहरा अपनी योनि से चिपका लिया। कुछ देर बाद उस की योनि से पानी निकल कर मोहन लाल के चेहरे को भिगोने लगा। मोहन लाल को समझ आ गया कि अब संभोग करने का समय आ गया था। मोहन लाल ने सविता को पीठ के बल लिटाया और अपने लिंग पर कंड़ोम निकाल कर चढ़ा लिया।

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