बरसात की यादगार रात

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बरसात में पड़ोसन को लिफ्ट देना और बाद में उस के साथ मस्ती
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बरसात की यह रात मेरी जिंदगी की सबसे यादगार रात कैसे बन गयी आज मैं यह बता रहा हूँ। मेरी पत्नी कुछ दिनों के लिये अपनी बहन के यहां गयी हुई थी और मैं घर पर अकेला था। इस कारण ऑफिस से लेट ही आता था, खाना भी बाहर ही खा लेता था। शनिवार को जब शाम को ऑफिस से निकला तो आकाश काला हो रहा था ठंड़ी हवा चल रही थी लगता था कि रात में शायद बारिश होगी। ऑफिस से निकल कर रोड़ पर आया तो बारिश शुरु हो गयी। इस वजह से दोपहिया वाहन भीगने से बचने के लिये सड़क के किनारे खड़ें हो गये थे, रोड़ पर केवल चार पहिया वाहन ही दिखायी दे रहे थे। मुझे लगा कि आज तो बारिश के कारण खाना भी नहीं मिल पायेगा।

यही सोचता हुआ मै चला जा रहा था कि मुझे कोई परिचित बस स्टैंड़ पर खड़ी दिखायी दी। बारिश की वजह से साफ तो नहीं दिख रहा था लेकिन मुझे लगा कि यह मेरी पड़ोस में रहने वाली रत्ना जी है। मैंने कार रोकी और फिर पीछे कर के बस स्टैंड़ पर आ कर शीशें नीचे करे की मैं उन्हें ध्यान से देख सकुं तो मेरा शक सही निकला वह रत्ना जी ही थी मैंने उन्हें आवाज दी तो पहले तो वह मुझे पहचानी नहीं फिर मुझे पहचान कर गाड़ी की तरफ आ गयी मैंने दरवाजा खोल दिया वह सीट पर आ कर बैठ गयी उन के बैठते ही मैंने कार के शीशें ऊपर कर दिये। वह मेरी तरफ देख कर बोली कि अच्छा हुआ आप मिल गये नहीं तो ऐसी बरसात में बुरा हाल होना तय था। फिर वह बोली कि आप ने मुझे कैसे पहचाना? तो मैंने उन्हें बताया कि जो गुलाबी साड़ी वह पहने हुई है उसी की वजह से मेरी नजर आप पर पड़ी नहीं तो बरसात में अगल बगल में नजर पड़ना मुश्किल काम है।

उन्होनें मुस्करा कर पुछा कि आप नें मुझे इस साड़ी में कब देखा तो मैंने उन्हें बताया कि वर्मा जी की लड़की की शादी में वह यही साड़ी पहन कर गयी थी। यह सुन कर वह बोली कि आप की नजर बड़ी तेज है। मैंने कहा हाँ सो तो है। एक फोटोग्राफर की नजर है एक बार जो देख लेती है वह याद रखती है। वैसे भी उस दिन आप इस साड़ी में गजब ढ़ा रही थी। यह सुन कर वह मेरी तरफ तिरछी नजरों से देख कर बोली कि मुझे तो लगता था कि आप अपनी पत्नी के सिवा किसी और की तरफ नजर उठा कर नहीं देखते है। मैंने शरारत से कहा कि हुस्न को जो ना देखे वह बेवकुफ है। मेरी बात सुन कर वह खिलखिला कर हँस पड़ी और बोली कि चलिये आज आप का यह रुप तो सामने आया नहीं तो सब समझते थे कि आप बहुत बोर किस्म के इंसान है जिस की दूनिया की खुबसुरत चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है।

मैंने कहा कि कभी दिलचस्पी दिखाने का मौका मिला नहीं। आज मिला तो आप को राह चलते में पहचान लिया नहीं तो मै रास्ते में किसी के लिये रुकता नही हूँ और ना ही किसी को लिफ्ट देता हूँ। बारिश अब तुफान का रुप ले चुकी थी। रत्ना जी बोली कि आज तो अगर आप ना मिलते तो ऐसे तुफान में घर पहुँचना भी मुश्किल हो जाना था। तेज बारिश के कारण कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था। इस लिये मैंने कार सड़क के एक तरफ खड़ी कर दी। वह बोली कि क्या बात है? मैंने उन्हें बताया कि तेज बारिश के कारण कुछ दिखायी नहीं दे रहा है इसी लिये कार एक तरफ खड़ी कर ली है, बारिश की रफ्तार कम होते ही चलते है।

वह मेरी बात सुन कर संतुष्ट नजर आयी। कुछ देर बार बारिश कम ना होती देख मैंने ऐसे ही चलने का तय किया और कार को स्टार्ट करके चल दिया। रास्तें में ढाबे के सामने कार रोक ही रहा था कि वह बोली कि खाना आप आज मेरे साथ खाईयेगा, ये भी बाहर गये हुये है, मुझे भी साथ मिल जायेगा। उन की बात सुन कर मैंने कार आगे बढ़ा दी।

हमारी कालोनी अभी नयी बसी थी इस कारण से बसावट कम थी। मैंने उन के घर के आगे कार रोकी तो वह बोली कि कार अंदर कर लिजिये। मैंने उन की बात मान कर कार घर के अंदर ले ली। कार से निकल कर घर के अंदर जाने तक हम दोनों भीग कर तर हो गये थे। दरवाजा खोल कर हम दोनों अंदर दाखिल हुए। मैं ड्राइग रुम में ही रुक गया वह अंदर चली गयी और कुछ देर बाद तोलिया ले कर आयी और मुझे दे कर बोली कि आप पानी पोछ लिजिये, काफी भीग गये है। मैंने तोलिया ले कर उस से सर के बाल पोछे और चेहरा आदि साफ करने लगा। वह फिर कुछ लेने चली गयी। इस बार पानी का गिलास ले कर लौटी मैंने उन से कहा कि आप पहले कपड़ें बदल ले आप भी भीग गयी है पानी वगैरहा बाद में हो जायेगा तो वह बोली कि पानी तो आ गया है।

अब मैं कपड़ें बदल कर आती हूँ यह कह कर वह अंदर चली गयी। मैं वही सोफे पर बैठ गया। बाहर बारिश और तुफान के कारण बहुत तेज आवाज आ रही थी। मेज पर पड़े अखबार को उठा कर देखने लगा। एक दो पन्ने ही पलट पाया था कि रत्ना जी कपड़ें बदल कर वापस आ गयी थी इस बार वह हल्के गुलाबी रंग का सुट पहन कर आयी थी जिसमें उन की खुबसुरती और निखर कर आ रही थी। मैं उन को एकटक देखता रह गया फिर अपनी हरकत पर शर्मिदा हो कर मैंने अपनी नजरें घुमा ली। वह यह सब देख चुकी थी। उन की नजरों में शरारत की चमक मुझे दिख रही थी। मैंने कहा कि यह रंग भी आप पर खुब जमता है।

वह बोली कि अब लगता है आप फ्लर्ट करने पर आ गये है मैंने कहा कि आप जैसा भी समझे मुझे अच्छा लगा तो मैं कहने से अपने आप को रोक नहीं पाया। वह मुस्करा कर बोली कि क्या लेगे चाय या कुछ और? मैंने हैरानी से उन की तरफ देखा तो वह बोली कि रात हो गयी है ठंड़ भी बढ़ गयी है अगर हार्ड से परहेज ना हो तो? मैं उन की बात को समझ कर बोला कि, नहीं परहेज तो नहीं है वैसे भी घर पर ही है तो चिन्ता की कोई बात नहीं है जब ड्राइव करना होता है तो परहेज करता हूँ वह मेरी बात सुन कर बोली कि आज तो मौसम भी साथ दे रहा है।

मुझे उन की बात सुन कर लगा कि आज कुछ ऐसा होने वाला है जो कल्पना से परे होगा। कुछ कर नहीं सकता था। ऐसे उठ कर भी नहीं जा सकता था। मेरी हाँ सुन कर वह ड्रिक बनाने चली गयी। जब आयी तो प्लेट में दो ग्लास और प्लेट में नमकीन वगैरा था। वह उसे मेज पर रख कर चली गयी फिर जब दूबारा आयी तो स्काच और बर्फ हाथ में थी। अब महफिल सजने का सारा साधन था। उन्होनें गिलासों में स्काच डाली और बर्फ डाल कर पानी से गिलास भर दिये। फिर एक गिलास मेरे हाथ में दे कर बोली कि आज तो मेरे भाग्य में छिंका फुट गया है जो भी मांगूगी वह मिलेगा।

हम दोनों ने गिलास ले कर चियर्स किया और सिप लेने लगे। मैंने उन से पुछा कि पार्टी में कभी आप को ड्रिक लेते नहीं देखा तो वह बोली कि जब खास पार्टी होती है तब ही लेती हूँ। एक गिलास खत्म होने के बाद हम दोनों की शर्म चली गयी थी, दूसरे गिलास के हाथ में आते ही अंदर की बातें बाहर आने लगी। वह बोली कि आप से बात करने की इतनी इच्छा होती थी लेकिन आप किसी को घास ही नहीं डालते थे इस लिये मन मसोस कर रह जाती थी। मैं ही नहीं सारी औरतें ही आप को पसन्द करती है। मैंने यह सुन कर कहा कि यह बात सुन कर मेरी पत्नी की चिन्ता बढ़ जायेगी तो वह बोली कि उन्हें सब पता है कि आप को ले कर क्या काना-फुसिंया होती है। लेकिन वह सुन कर हँस कर उड़ा देती है।

मुझ पर भी नशा हो रहा था मैंने कहा कि आप को कई बार देखा था और लगा कि आप सब से अलग नजर आती है कुछ तो बात है आप में जो आप को सबसे अलग करती है लेकिन कभी बात करने का मौका ही नहीं मिला। लेकिन हर पार्टी में आप को ध्यान से तो देखा ही है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि चलो यह सुन कर अच्छा लगा कि कोई हमें ध्यान से देखता तो है,नही तो लगता था कि सारा सजना-सवंरना बेकार ही चला जाता है। हमारे ये तो कुछ बोल कर राजी ही नहीं होते है। मैंने कहा कि पति अपनी पत्नी को देख कर बहुत खुश होते है लेकिन कुछ कह नहीं पाते है उन्हें लगता है कि कही अपनी प्रशंसा सुन कर बीवी सर पर ना चढ़ जाये। मेरी बात सुन कर वह बोली कि वह तो पहले से ही ऊपर चढ़ी हुई होती है अब क्या करेगी।

मैंने पुछा कि मेरे में ऐसा क्या खास है जो औरों से अलग लगता है तो वह बोली कि आप सब से अलग कपड़ें पहनते है जो आप पर जंचते है। अपनी उम्र के मुताबिक कपड़ों में आप हमेशा औरों से अलग नजर आते है। व्यवहार भी अलग है, गाली वगैरहा नहीं देते ये सब बातें आप को अलग करती है। मैं उन की बात सुन कर बोला कि आप तो मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा कर मानेगी तो वह बोली कि नहीं जो सही है वही कह रही हूँ। दूसरा पैग खत्म हो गया था। वह नया पैग बनाने चली गयी। जब आयी तो उन की चाल में कंपन था।

वह आ कर मेरे सामने बैठ गयी और बोली कि खाने में क्या खायेगें? मैंने कहा कि अब खाना खाने की इच्छा नहीं हो रही है इतना सब खा लिया है। खाना आप मेरे लिये ना बनाये। वह बोली कि यह तो हो नहीं सकता खाना तो आप को खाना पड़ेगा। इसी दौरान बिजली चली गयी या बरसात के कारण काट दी गयी थी। कमरे में घना-घुप्प अंधेरा हो गया बाहर से पानी और हवा की सांय-सांय की आवाज ही आ रही थी। उन के यहाँ इंवर्टर नहीं था सो अंधेरा दूर करने के लिये कोई और साधन करना जरुरी था। मैंने पुछा कि टार्च वगैरहा है तो वह बोली कि नहीं है मोमबत्ती भी खोजनी पड़ेगी।

उन की बात सुन कर मैं खड़ा हुआ तो वह भी खड़ी हो कर अंदर जाने लगी, मैंने रोशनी के लिये मोबाइल की टार्च ऑन कर ली और उन को रास्ता दिखाने के लिये उन के पीछे-पीछे चल दिया। नशे के कारण हम दोनों के कदम लड़खड़ा रहे थे। अंदर बेडरुम में घुसते समय रत्ना जी लड़खड़ा कर गिरने को हुई तो मैंने उन्हें दोनों बाहों से थाम लिया। उन्हें पकड़ कर बेड पर बिठा दिया। वह बेड पर बैठी थी और मैं उन के सामने खड़ा था। उन को थामने के कारण मेरा शरीर भी उत्तेजित हो रहा था। उसी के असर के कारण पेंट के सामने का हिस्सा तन कर उभर गया था। तभी रत्ना की बाहें मेरी कमर पर लिपट गयी और उन्होंने मुझे कस कर अपने चेहरे से चिपका लिया। मेरा उभरा लिंग उन के चेहरे से टकरा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मै क्या करुँ?

रत्ना के हाथ मेरे को उस के चेहरे से सटा रहे थे और उस की गरम सांसे मुझे अपने उभार पर महसुस हो रही थी। मैंने अपने आप को छुड़ाने की आधी-अधुरी कोशिश की तो वह बोली कि

डर लग रहा है?

नहीं तो

फिर कहाँ भाग रहे है

कहीं नहीं

आप को खा नहीं जाऊँगी?

कोशिश कर के देख लिजिये

धमकी दे रहे है

नहीं बता रहा हूँ

देखते है कौन किस को खाता है

हाँ

यह कह कर रत्ना नें पीछे की तरफ गिरते हुए मुझे अपने ऊपर गिरा लिया। अब मेरा सारा वजन उस के ऊपर था। टार्च बंद हो गयी थी इस वजह से अंधेरा हो गया था। उस के भरे स्तन मेरी छाती में गढ़ रहे थे। मेरा लिंग उस की जाँघों के बीच उसे दबा रहा था। अब उस की बाहों नें मेरा चेहरा पकड़ कर उसे अपने चेहरे के पास कर लिया उस की गरम गरम सांसे मेरे चेहरे पर लग रही थी, फिर उस के लरजते होंठ मेरे होंठों से चिपक गये। कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद उस ने होंठों से मेरे होठों को चुसना शुरु कर दिया। उस के होंठों की मधुरता मुझे भी अच्छी लग रही थी सो अब इस चुम्बन में मैं भागीदार बन गया।

चुम्बन का दौर लम्बा चला, दोनों की जीभ एक दूसरें के मुँह में जा कर दूसरे की जीभ का स्वाद चख कर आयी और जब सांसें फुल गयी तब जा कर दोनों अलग हुये। अब तो गरमी दोनों के शरीर में चढ़ गयी थी। वासना का ज्वार जोश मार रहा था नशे के कारण कुछ और सोचने की अवस्था भी नहीं रही थी। अब तो सब कुछ काम के हाथ में था। मेरे उस के ऊपर होने के कारण वह हांफ रही थी सो मै उठ कर उस की बगल में लेट गया। अब वह उठ कर मेरे ऊपर आ गयी और मेरे हाथ उस की पीठ को सहलाने लगे।

हम दोनों इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे सो अब दोनों पुरे रंग पर आ गये थे और खेल पुरे उत्साह से खेला जाने लगा। मेरे हाथों नें उस की ऊँचाइयों को सहला कर उन की गहराई में जाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर दोनों हाथ उस की मांसलता को दबाने लगे। एक हाथ उस के कुर्ते को ऊपर करने में सफल हो गया और हाथ उस के चिकने शरीर पर फिरने लगा। आग तो दोनों तरफ लगी थी इस लिये उसे बुझाना जरुरी था। मैंने उस के कुर्ते को ऊपर कर के सर के ऊपर से बाहों से निकाल कर उतार दिया।

अब वह ब्रा में थी। उस की पेडिड ब्रा मेरी छाती में चुभ रही थी। कुछ देर तो मैं हाथ को ब्रा के ऊपर से ही छातियों को दबाता रहा फिर मैंने ब्रा के हुक खोल कर उसे भी अलग कर दिया। उन की तनी हुई निप्पलें मेरी छाती में चुभने लगी। एक हाथ उस के स्तनों को दबाने में लग गया और दूसरा कमर से होकर नाभी को छु कर नीचे की तरफ चल दिया। रास्तें में सलवार का नाड़ा बाधा डाल रहा था सो उसे खोल कर सलवार को ढ़ीला कर दिया। पेंटी के ऊपर से योनि को सहलाया। अब मुझ से रुका नहीं जा रहा था सो उठ कर अपने कपड़ें कमीज और पेंट उतार कर फर्श पर डाल दिये।

अंधेरे में कुछ पता नहीं चल रहा था। इस के बाद रत्ना की सलवार उतारी और उसकी पेंटी को भी नीचे खिसका कर पंजों से होकर निकाल दिया। अब मेरे हाथ उस के सारे शरीर पर फीर रहे थे। चिकने शरीर पर हाथ फेरने से उस के रोगटें से खड़ें हो गये थे। मेरे शरीर में भी रक्त का संचार तेज हो गया था।

अब मैं उस की जाँघों के बीच अपना मुँह कर के उस की योनि की सुगंध का स्वाद ले रहा था। मैंने योनि के नीचे से जीभ को ऊपर तक घुमाया तो उत्तेजना के कारण रत्ना नें मेरे बाल पकड़ कर मेरा सिर जाँघों के मध्य सटा दिया यही तो मैं चाहता था मेरी जीभ ने योनि की फांकों के बीच प्रवेश करके योनि का स्वाद लेना शुरु कर दिया। योनि पानी से भरी थी, कसैले नमकीन पानी का स्वाद जीभ को भाने लगा और वह गहरे और गहरे जाने की कोशिश करने लगी। मेरी इस कोशिश से रत्ना के शरीर में तरगें सी उठ रही थी। मैं अपने मनपसन्द काम में लगा हुआ था। फिर मुझे लगा कि मैं ही मजा ले रहा हूँ वह तो मजा नहीं ले रही है सो मैं उठ कर उल्टा बैठ गया मेरा लिंग अब उस के चेहरे के ऊपर था।

कुछ देर तो वह उसे सहलाती रही फिर उस ने उसे जीभ से चाटना शुरु किया और कुछ देर बाद सारा लिंग उस के मुँह में समा गया था। हम दोनों इस का मजा ले रहे थे। मेरे लिंग से पानी सा निकल गया। यह प्रीकम था। मैं स्खलित नहीं हुआ था ना होना चाहता था। अभी तो मुझे रत्ना के सारे अंगों का सर्वक्षेण करना था उन्हें चुमना था, चाटना था, मसलना था। इसी वजह से मैं उस के ऊपर से हट कर उस के बगल में साथ में लेट गया। फिर उस की गरदन पर किस करता हुआ उस के तने निप्पलों को जोर से चुसने लगा। रत्ना की आहहहहहह उहहहहहहहहहहह निकलने लगी। मुझे इस की कोई परवाह नही थी इतनी जोरदार बारिश में इसे कोई सुनने वाला नहीं था।

दोनों स्तनों को जो ज्यादा मोटे नहीं थे मुँह में भर कर चुसने के बाद कमर पर चुम्बन देते हुये मैं उस की जाँघों को चाटता हुआ उस के पंजों तक पहुँच गया और दूसरें पंजें को चुमता हुआ ऊपर की तरफ चल दिया फिर उसे पेट के बल लिटा कर उस की गरदन के पीछे चुम्बन लिये। उस की पीठ पर अपने होठों की छाप लगाते हुये कमर से होते हुये उस के कुल्हों को दांतों से काटा और कुल्हों की गहराई में ऊंगली फिराई तो रत्ना चिहुक गयी और बोली कि यहाँ से नहीं करना है, मैंने कहा कुछ नहीं अपनी ऊंगली नीचे उस की योनि में डाल कर अंदर बाहर करनी शुरु कर दी। रत्ना भी अपने कुल्हें ऊपर नीचे करने लगी। हमें फोरप्ले करते काफी समय हो गया था अब संभोग करने के लिये दोनों तैयार थे सो मैंने रत्ना को पीठ के बल किया और उस की जाँघों के बीच बैठ गया, किसी तरह के प्रोटेक्शन की बात करने का समय नहीं था।

अपने लिंग को हाथ से पकड़ कर योनि के मुँह पर लगा कर एक दो बार उसे सहलाया और सुपाड़े को फांकों के बीच घुसेड़ दिया, सुपाड़ा अंदर चला गया। नीचे बहुत नमी थी सो किसी अवरोध का सवाल ही नहीं उठता था जैसे ही जोर लगाया लिंग योनि में प्रवेश कर गया। नमी के बावजूद योनि का कसाब सही था। दूबारा धक्का दिया तो रत्ना के मुँह से कराह निकली लगा कि लिंग ने बच्चेदानी के मुँह पर टक्कर मारी थी। मैं रुक गया नीचे से रत्ना ने अपने हाथों से मेरे कुल्हों पर दबाव बढ़ा कर इशारा किया की मैं रुकु नहीं। मैं जोरदार धक्कें लगाने में लग गया नीचे से वह भी अपने कुल्हों को ऊपर उठा कर मेरा साथ दे रही थी। फच फच की आवाज आने लगी। फचा फच होने लगा। रत्ना के नाखुन मेरी पीठ की खाल में घुस रहे थे। लेकिन हम दोनों पर उस समय वासना का ऐसा भुत सवार था कि अपने को हो रहे कष्ट की कोई चिन्ता नहीं थी।

10 मिनट बाद मैं थक कर बगल में लेट गया। शरीर जल सा रहा था जब तक स्खलन नहीं होगा इस जलन से छुटकारा नहीं मिलना था। तभी रत्ना मेरे ऊपर आ गयी और उस के कुल्हों नें हिलना शुरु कर दिया उस ने हाथ से लिंग को योनि में लगाया और उस के कुल्हों ने हिल कर पहली बार में ही पुरा अंदर समा लिया। उस के कुल्हों को प्रहार इतना जोरदार था की मेरी कमर हिल सी गयी। उस के धक्कों में बड़ी ताकत थी। मेरे हाथ उस के लटकते उरोजों को मसलने का काम करने लगे। रत्ना बुरी तरह से कराह सी रही थी लेकिन उसे इस में मजा आ रहा था। चार पांच मिनट बाद वह थक कर उतर गयी और बगल में लेट गयी। उस ने मुझ से पुछा कि तुम डिस्चार्ज हुये या नहीं तो मैंने उस से ही पुछा कि उसे पता चला तो वह बोली कि नहीं। मैंने कहा कि अभी नहीं हुआ हूँ।

यह कह कर मैंने उसे पेट के बल लिटा कर उस के कुल्हों को उठा कर पीछे से उस की चूत में लंड़ को डाल दिया इस से रत्ना को बड़ा दर्द हुआ लेकिन वह कुछ नहीं बोली लेकिन जब मैंने पीछे से धक्कें लगाने शुरु किये तो वह कराहने लगी उस ने आहहहहहहहहहह उहहहहहहहह उईईईईईई करना शुरु कर दिया। लेकिन मैं धक्कें लगाता रहा। हाथों से उस के उरोजों को भी सहलाता रहा। इस से उसे दर्द में राहत मिल रही थी। कुछ देर बाद मैं पीछे से हट गया और उसे पीठ के बल कर दिया। उस की टांगों को अपने कंधों पर रखा तो पुछा कि दर्द तो नहीं हो रहा है तो वह बोली कि नहीं तुम करते रहो। अब उस की कसी हुई चूत में मैंने लंड़ पेल दिया। वह दर्द से बिलबिलायी लेकिन फिर उस का मजा लेने लगी। मुझे अब स्खलित होना था सो उस की टागों को नीचे कर के अपने शरीर की एक लकीर में सीधा करके धक्कें लगाने शुरु कर दिये।

फिर अचानक मेरी आंखें मुंद गयी और मेरे लिंग के मुह पर आग सी लग गयी मैं स्खलित हो गया। लावा जैसा मेरा वीर्य उस की योनि में भर गया। कुछ देर तक तो मैं उस के ऊपर पड़ा रहा फिर होश सा आने पर उस के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया। वह मेरे से लिपट गयी और बोली कि अंदर क्या हुआ है आग सी लग गयी है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। इतना लम्बा मैंने कभी नहीं किया है। मैं कुछ नहीं बोला और उसे अपने से चिपका कर चुमने लगा। वह भी मेरी पीठ को अपनी हाथों से सहलाने लग गयी।

तीन-चार मिनट बाद मैंने पुछा कि अच्छा लगा तो वह बोली कि ऐसा मजा तो आज तक नहीं आया, तुमने तो सारा शरीर तोड़ दिया है नीचे का हाल तो बुरा है शायद सुज गयी है। मैंने उस की योनि पर हाथ फिरा कर कहा कि अभी तो एक बार ही हुआ है रात भर में कई बार सुजेगी। वह बोली कि इतना दम है? मैंने कहा कि तुम देखना कितना दम है? उस ने मुझे चिकुटी काट कर कहा कि एक बार में ही कसर निकालनी है। मैंने कहा कि जैसी तुम्हारी मर्जी। हम दोनों को भी पता था कि ऐसा मौका हमें दूबारा नहीं मिलेगा। मैंने अपने लिंग को हाथ लगाया तो वह वीर्य और योनि द्वव्य से लिपटा हुआ था वीर्य अभी भी निकल रहा था। रत्ना की योनि पर हाथ लगाया तो वह भी रसों से सनी थी और उस में से भी पानी निकल रहा था। दोनों नें भरपुर सेक्स का आनंद लिया था इस लिये शरीर भी भरपुर द्वव्य उगल रहे थे। इस से वह बता रहे थे कि वह अभी और मिलन के लिये तैयार है।

ऐसा ही हुआ कुछ देर बाद मेरा लिंग फिर से तन गया और मैंने रत्ना के पीछे बगल से होकर योनि में लिंग डाल दिया और उस की गरदन अपनी तरफ मोड़ कर उसे चुमना शुरु कर दिया और उस के स्तनों को दबाना। उस के स्तन मासंल नहीं थे इस लिये उन्हें दबाने में मजा नहीं आता था लेकिन उत्तेजना के कारण अब वह भी तन कर फुल गये थे। कुंचाग को ऊंगलियों के बीच मसलने में आनंद आ रहा था। उस के कुल्हें धीरे-धीरे हिल रहे थे। यह संभोग भी काफी देर तक चला। रत्ना के चुतड़ और मेरे कमर के नीचे का हिस्सा वीर्य और रस से चिपचिपे हो गये थे। हमें उन्हें पोछने का होश नहीं था।

कुछ देर बाद हम सो गये। बाहर बारिश कम नहीं हुई थी, कमरे का तुफान तो गुजर गया था लेकिन बाहर का तुफान अभी भी गरज रहा था। आधी रात के बाद बिजली के कौधनें की आवाज से मेरी नींद खुल गयी। रत्ना बगल में सोई पड़ी थी। मुझे अब घर जाने की चिन्ता हो रही थी, इस लिये मैंने झकझोर कर रत्ना को जगाया तो वह बोली कि क्या बात है? मैंने कहा कि बारिश कम नहीं हो रही है मैं अब जाता हूँ यह सुन कर वह बोली कि मैं अंधेरें में क्या करुगी? मैंने कहा कि ज्यादा देर करना अच्छा नहीं रहेगा। वह बोली कि मोमबत्ती भी नहीं मिल रही है। मैंने कहा कि चलो चल कर उसे ढुढ़ते है। वह बेड से उठ कर बोली कि अपना मोबाइल दो मै ढुढ़ कर लाती हूँ मैंने उसे मोबाइल की टार्च ऑन करके दे दी वह कुछ देर बाद दों मोमबत्ती ले कर आ गयी।

मैंने उठ कर कपड़ें पहननें शुरु कर दिये। वह भी कपड़ें डालने लगी। फिर मेरे पास आयी और बोली कि अभी मन भरा नहीं है। मैंने कहा कि चलों एक बार और कर लेते है यह कह कर मैंने उसे उठा लिया और उस की सलवार की नीचे कर के अपनी पेंट खोल कर उस में से लिंग निकाल कर उस को गोदी में उठा कर दिवार के सहारे टिका कर उस की योनि में घुसेड़ दिया और उस के पैर मेरी कमर से लिपट गये थे। हम दोनों जोर जोर से एक दूसरे में समाने की कोशिश करने लगे। उस की बांहें मेरी गरदन से लिपटी हुई थी। मै अपनी पुरी ताकत से धक्कें लगा रहा था कुछ देर बाद मैं स्खलित हो गया। मैंने उसे गोद से नीचे उतार दिया। वह खड़ी हो कर अपने कपड़ें सही करने लगी। मैं भी कपड़ें सही करने में लग गया। इस क्विवक संभोग में दोनों को मजा आया था।

बाहर बारिश अपने रोद्र रुप में थी। मैंने उस से कहा कि वह बाहर ना आये मैं भी चुपचाप गाड़ी बाहर निकाल कर चला जाऊँगा। वह घर का दरवाजा अंदर से बंद कर ले और कोई बात हो तो मुझे फोन कर ले। यह कह कर मैं धीरे से दरवाजा खोल कर बाहर आया और अपनी पेंट में हाथ मार कर देखा कि पर्स और चाभी वगैरहा सब है या नहीं। फिर गेट खोल कर के गाड़ी बिना बत्ती जलाये, बाहर निकाली और घर के गेट को बंद करके चुपचाप गाड़ी ऐसे ही लेकर घर की तरफ चल दिया इतनी देर में ही बारिश की वजह से पुरा भीग गया था। घर पहुँच कर चाभी से गेट खोला और गाड़ी अंदर कर के गेट को बंद कर दिया। घर में आ कर घर का दरवाजा खोला और अंदर आ गया। हमारे यहाँ इन्वर्टर होने के कारण बिजली आ रही थी।

मैं पानी में पुरा तरबतर था सो कपड़ें उतारने के लिये अंदर बेडरुम में चला गया। रोशनी में जब कपड़ें उतारें तो पता चला कि आज शरीर की क्या हालत हुई है। सारा शरीर चिपचिपा रहा था। कमर से नीचे सारा गिला गिला था। बाथरुम में जा कर शॉवर के नीचे खड़ें हो कर सारे शरीर को धोया और तोलिया लपेट कर बाहर आया तभी बिजली भी आ गयी। बेडरुम में पड़ें अपने गंदें कपड़ों को उठा कर वॉशिग मशीन में डाल कर कपड़ें पहन कर घर में घुम कर देखने के बाद बेड पर आ कर बैठ गया। इतनी मेहनत करने के बाद अब भुख लग रही थी, लेकिन खाने को कुछ नहीं था।

कोई फल भी नहीं था। पानी पी कर पेट भरा। तभी फोन बजा उठाया तो दूसरी तरफ रत्ना थी वह बोली कि अब तो बत्ती आ गयी है मैं नहाने जा रही हूं, मैंने उसे बताया कि मैं भी नहा कर आया हूँ । वह बोली कि दो बज रहे है देखते है नींद कब आती है मैंने कहा कि मेरे पेट में तो चुहें कूद रहे है लेकिन कुछ खाने को नहीं है वह बोली कि खाना तो हम भुल ही गये। मैंने उसे कहा कि वह चिन्ता ना करें आराम करें। अब सुबह ही कुछ देखेगें। यह कह कर मैंने फोन रख दिया। मुझे भी नींद आ रही थी सो मै भी सो गया।

सुबह रविवार था सो देर तक सोने का विचार था लेकिन फोन के अलार्म नें जगा दिया। उठ कर बैठा तो देखा कि आठ बज रहे थे। तभी घर की घंटी बजी, उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कि रत्ना खड़ी थी, उस के हाथ में कैसरॉल था, वह बोली कि नाश्ता बना कर लाई हूँ कर लिजियेगा। यह कह कर वह कैसरॉल हाथ में थमा कर चली गयी। मैं हैरान सा खड़ा रहा कि यह क्या हो रहा है? फिर दरवाजा बंद करके कैसरॉल किचन में रख कर चाय बनाने लगा। चाय पी कर नित्यक्रम कर के नहाने चला गया। नहाने के बाद कैसरॉल खोल कर देखा तो उस में आलु के पराठें थे।

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