बरसात की यादगार रात

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चाय बना कर नाश्ता किया। इस के बाद धन्यवाद कहने के लिये रत्ना को फोन करने की सोच ही रहा था कि उस का फोन आ गया वह बोली कि मेरे हाथ के पराठें कैसे लगे? मैने उसे बताया कि पराठें बढ़िया थे और खा कर मन तृप्त हो गया है, मेरी बात सुन कर वह हँस कर बोली कि बड़ी जल्दी तृप्त हो जाते है। मैंने कहा कि हाँ ऐसे ही है। वह बोली कि लंच बना रही हूँ मैंने उसे मना किया और समझाया कि इस के बाद वह मुझ से कोई सम्पर्क नहीं रखेगी। ज्यादा संपर्क सही नहीं रहेगा। उसे मेरी बात समझ में आ गयी। मैंने कहा कि मैं उस का कैसरॉल आते-जाते में वापस कर दूंगा तो वह बोली कि वह उसे खुद ले जायेगी। हमारी बात खत्म हो गयी।

मैं सोचने लगा कि कल की बरसात की रात ना भुलने वाली रात बन गयी है। इतना बढ़िया सेक्स बहुत दिनों बाद किया था। दोनों को ही संतुष्टि मिली थी। क्या खेल है कल शाम तक दो जनें अपरिचित से थे और कुछ घंटों में उन के बीच की सब दूरियां मिट गयी। इस घटना के बाद हम दोनों को मिलन के कई मौके मिले, उस के बारे में फिर कभी।

**समाप्त**

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