बदला पति का पत्नी से

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पत्नी का सरकारी पद मिलने के बाद पति को छोड़ना, पति का बदला
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कहानी की शुरुआत एक मॉल में हुई। मैं इस शहर में नया डीएम पोस्ट हो कर आया था। प्रशासनिक सेवा में मुझे पहली पोस्टिग मिली थी। इसी लिये शहर में घुमने चला आया। मॉल में घुमते में किसी ने मुझे ऐसे नाम से पुकारा जो केवल एक ही पुकारती थी। वह अब मेरे साथ नहीं थी। पहली बार मैंने उस पुकार को सुन कर अनसुना कर दिया। दूसरी बार जब कानों में पड़ा कि सुनते हो जी तो मुझे घुम कर देखना ही पड़ा। मुझे पुकारने वाली वही थी जो मुझे इस नाम से पुकारती थी। मेरी पत्नी जो अब मेरे साथ नहीं रहती थी। उसे मुझ से अलग हुये चार साल से ज्यादा समय बीत गया था। मैं उसे भुल सा गया था। आज उस की आवाज सुन कर और उसे देख कर मुझे भुली बिसरी कितनी बातें याद आ गयी।

मेरी नई नई शादी हुई थी। मेरी पत्नी मुझे बहुत प्यार करती थी। हम दोनों अपनी शादी का मजा ले रहे थे। दोनों के धीरे-धीरे बीच सामंजस्य बैठने लगा था। हम दोनों अपने भविष्य को लेकर सपने बुनने लगे थे। सब कुछ स्वप्निल सा लग रहा था। मुझे लग रहा था कि यह सच नहीं है शायद सपना हो। मेरी बीवी सुन्दर और बुद्धिमान थी। वह पढ़ने में भी बहुत तेज थी। कुछ दिनो के वैवाहिक जीवन के बाद वह घर में बोर होने लगी। पुरे परिवार ने तय किया कि वह अपने कैरियर को आगे बढ़ा सकती है। उस से जब उस की इच्छा पुछी तो वह बोली कि मैं प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हूँ। हमें इस में कोई आपत्ति नहीं थी। वह पेपर देने के लिये पढ़ाई करने लग गयी। परिवार का उस के साथ पुरा सहयोग था। उस ने अपनी तैयारी करनी शुरु कर दी। अभी तो हम दोनों ने एक दूसरे को सही तरह से समझा भी नहीं था और हम दोनों के बीच पेपर की तैयारी आ गयी।

मैं यह सोच कर खुश था कि अगर वह सिविल सेवा में आ जाती है तो यह पुरे परिवार के लिये बहुत गर्व की बात होगी। पहली बार हमारे परिवार से कोई प्रशासनिक सेवा में जायेगा। इस सेवा में जाना इतना आसान नहीं है, बहुत तैयारी करनी पड़ती है और कुछ हद तक भाग्य भी आप के साथ होना चाहिये। हम दोनों का रात में मिलना अब कम ही हो पाता था। वह सारे दिन की थकी होती थी और मैं उसे और थकाना नहीं चाहता था। इस लिये हम दोनों शारीरिक संबंधों में भी दूर हो गये।

मैं यह सोच कर संतुष्ट था कि यह कुछ ही दिनों की बात है फिर तो सब सामान्य हो जायेगा। मुझे क्या पता था कि यह तो एक नये झगड़ें की शुरुआत थी और मैंने अपने लिये कितनी बड़ी आफत मौल ले ली थी। अपना चाहा कहाँ हो पाता है। इन सब परेशानियों के बीच मेरी पत्नी की तैयारी पुरे जोर-शोर से चल रही थी। उस ने प्रवेश परीक्षा पास कर ली थी। अब वह मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रही थी। इस के कारण हम दोनों एक-दूसरे से और दूर होते जा रहे थे। मैं सब कुछ समझता था लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा था।

मुख्य परीक्षा का समय भी आ गया। परीक्षा अच्छी गयी थी, पत्नी को पुरी आशा थी कि वह इसे पहली बार में पास कर लेगी। हुआ भी यही जब परिणाम आया तो उस ने इस कठिन परीक्षा को पहली बार में पास कर लिया था जो बहुत बड़ी सफलता थी। मैं उस की इस सफलता से बहुत खुश था। वह भी खुश थी। अब इंटरव्यू की तैयारी हो रही थी। यही अंतिम बाधा थी जिसे पार करना बाकी था। मैं मन ही मन जानता था कि वह इसे भी आसानी से पार कर जायेगी।

इंटरव्यू का समय भी आ गया। इंटरव्यू देते जाने समय वह मुझ से बोली कि मुझे डर लग रहा है, मैंने उसे समझाया कि उस के पास खोने को कुछ नहीं है जो कुछ है पाना ही पाना है। वह यह सुन कर इंटरव्यू देने चली गयी। मैं बाहर बैठा उस का इंतजार करने लग गया। काफी देर बाद वह बाहर आयी। उसका चेहरा बता रहा था कि इंटरव्यू सही निकला है। यही उस ने मुझे बताया भी। इस के बाद हम दोनों घर के लिये चल दिये।

इंटरव्यू के रिजल्ट को आने में छह महीने लगने थे। यह समय हम पति पत्नी के बीच बहुत बढ़िया गुजरा, दोनों के बीच लगाव और बढ़ गया। इंटरव्यू का रिजल्ट आ गया और मेरी पत्नी पीसीएस में प्रवेश कर गयी। इस से हमारा पुरा परिवार बहुत खुश था। मैं भी खुश था कि अब मेरी पत्नी भी उच्च सरकारी पद पर लग गयी थी। सारे मोहल्ले में माता-पिता ने मिठाई बटवाई। कुछ दिनों के बाद पत्नी अपनी ट्रेनिग के लिये चली गयी। उस की ट्रेनिग के बीच बीच में मैं उस से मिलने जाता रहा, हम दोनों भविष्य के सपने फिर से देखने लग गये थे। हमें लगने लगा कि अब हमें अपने परिवार को बढ़ाना चाहिये। विचार यह बना कि उस की ट्रेनिग के खत्म होने के बाद हम दोनों इस बारें में सोचेगे। समय बीतता गया।

पत्नी की ट्रेनिग भी खत्म हो गयी। उस की नियुक्ति हमारें शहर से कुछ दूर के शहर में हो गयी। कुछ समय तो मैं उस के पास रहा लेकिन अपनी नौकरी के कारण मुझे वापस आना पड़ा। यही से पत्नी और मेरे संबंधों के बीच समस्याऐं आनी शुरु हो गयी। इन का मुख्य कारण उस के माता-पिता थे, जो उस के पास आ कर रहने लगे थे। उन का दिमाग अपनी बेटी के उच्च पद पर आने के कारण खराब सा गया था। मैं उस के पास कम ही जा पाता था। हम सोच रहे थे कि इस समस्या का कुछ करते है लेकिन कुछ होने से पहले कुछ ऐसा हुआ कि मेरे और मेरी पत्नी के बीच अलगाव की दिवार खड़ी हो गयी।

जो पत्नी सर्विस में चयन से पहले मेरे से बहस भी नही किया करती थी, अब उस ने मुझ से बहस करना शुरु कर दिया। अब वह मेरे परिवार की बजाए अपने परिवार की चिन्ता करने लगी। मेरे को नेगलेक्ट करने लगी। मुझे इस का कोई कारण समझ नहीं आ रहा था। ऐसा लगता था कि नौकरी के बोझ के कारण वह ऐसा कर रही है लेकिन ऐसा नहीं था। कुछ और ही चल रहा था। एक दिन जब में पत्नी से मिलने गया था, तब मेरे ससुर ने मेरा अपमान किया और कहा कि आप हमारी बेटी के बराबर नहीं है। मेरी पत्नी इस पर चुप रही। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं अपने ही घर में अपमानित क्यों हो रहा हूँ? मैंने पत्नी की तरफ देखा लेकिन उस ने अपनी नजरें झुका ली। मुझे यह बहुत बुरा लगा और मैं घर से चला आया। मेरे इस तरह से घर से चले आने के बावजूद पत्नी ने मुझ से कोई बात नहीं की ना ही फोन करके कोई सफाई दी।

अपने इस अपमान से मैं बहुत आहत था। मैं भी अच्छा कमा रहा था, कंपनी में उच्च पद पर था, एक तरह से मेरी कमाई उस से ज्यादा थी, इस कारण से मैं अपनी पत्नी पर आर्थिक रुप से निर्भर बिल्कुल नहीं था। मैं तो खुश था कि मेरी पत्नी कैरियर में आगे बढ़ रही थी। लेकिन वह मुझे अपने साथ नहीं ले कर चलना चाहती थी, ऐसा मेरी समझ में उसके व्यवहार के कारण समझ में आ रहा था। मैं जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहता था इस लिये इस घटना पर चुप्पी साध गया। अपने माता-पिता को भी कुछ नहीं बताया। लेकिन मेरे पत्नी के पास ना जाने से उन्हें समझ आ गया कि हम दोनों के बीच सब कुछ सही नहीं चल रहा है। वह भी यही सोच कर चुप थे कि शायद समय के साथ सब कुछ सही हो जायेगा।

तीन महीने के बाद मैंने अपने माता-पिता को इस बारें में बता दिया। हम सब का विचार यही था कि इस पर जल्दबाजी करने की बजाए धैर्य रखने की आवश्यकता है। एक बार पिता जी ने पत्नी से बात करने की कोशिश की तो वहाँ से कोर्ट केस करने की धमकी मिली। हमें समझ आ गया कि सरकारी पद मिलने के बाद उस के दूरप्रयोग की पूरी संभावना है। मैंने अपने परिवार को कोर्ट कचहरी के चक्करों से बचाने के लिये चुप रहना ही सही समझा। मेरी चुप्पी को दूसरे पक्ष ने मेरी कमजोरी समझा और पत्नी ने मुझ से संबंध तोड़ सा लिया।

इस बात से मैं इतना परेशान हुआ कि मैंने नौकरी छोड़ दी और डिपरेशन में डुब गया। कुछ समय तक मेरी हालत बहुत बुरी रही। सारे दिन घर में पड़ा रहना और किसी बात में मन ना लगना। फिर एक दिन पिता जी ने कहा कि अगर उसे अपने पद का घमंड़ हो गया है तो क्यों नहीं तुम भी सरकारी पद की तैयारी करते? अभी तो तुम्हारी उम्र भी इस के लिये बाकी है। उन की यह बात मेरे मन में लग गयी और मैं सब कुछ छोड़ कर प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लग गया। मैं भी कभी इस में जाना चाहता था लेकिन नौकरी लग जाने और विवाह हो जाने के कारण मन की इच्छा मन में ही रह गयी थी।

समय पंख लगा कर उड़ता रहा और मैं भी प्रशासनिक सेवा में सलैक्ट हो गया। एक साल के लिये ट्रेनिग के लिये चला गया। ट्रेनिंग के बाद इस शहर में पहली नियुक्ति मिली थी। मुझे पता नहीं था कि मेरी पत्नी इसी शहर में पोस्टेड है। आज उस के मॉल में इस तरह से मिल जाने से, मैं अचंभित था। उस को क्या जबाव दूँ यह सोच ही रहा था कि उस ने मेरी बांह में अपनी बांह डाल कर मुझे अपने साथ घसीट सा लिया। हम दोनों एक रेस्टोरेंट में आ गये। एक कोने में जा कर दोनों बैठ गये। आज वह ही बोल रही थी। मैं चुप था। उस ने वेटर को कॉफी का ऑडर कर मुझ से पुछा कि

तुम यहाँ कैसे?

यहाँ पोस्टिग हुई है, अभी जॉयन करना है

अच्छा

तुम कब से यहाँ हो?

कई महीने हो गये है

मैं चुप हो गया

वेटर कॉफी रख गया। हम दोनों कॉफी पीने लग गये। उस ने फिर पुछा कि क्या चल रहा है? मैंने कोई जबाव नहीं दिया। वह भी चुप हो गयी। उसे पता था कि मैं उससे बहुत नाराज हूँ लेकिन बाहर होने के कारण चुप हूँ। मैं उस से कुछ पुछना नहीं चाहता था। कॉफी खत्म होने के बाद मैं उठ गया फिर हम दोनों उठ कर बाहर चल दिये। वह अपने रास्ते और मैं अपने रास्तें।

दूसरे दिन शहर के डीएम का चार्ज लेगे के बाद मेरी सभी अफसरों के साथ बैठक थी। मैं जब बैठक में भाग लेने के लिये आया तो मैंने देखा कि वह दूसरी पक्ति में बैठी थी। अब तक उस की निगाह मेरे पर नहीं पड़ी थी। जैसे ही उस की नजरें मेरी नजरों से मिली वह अपना होश खो बैठी और बेहोश हो कर सीट से नीचे गिर गयी। उस के नीचे गिरने से मीटिग में हलचल मच गयी। कुछ लोगों ने उसे जमीन से उठा कर सीट पर बिठाया। मैंने यह देख कर अधिकारियों से कहा कि इन को अस्पताल ले कर जायें। मेरी बात सुन कर अधिकारी उसे ले कर चले गये। इस के बाद मैं सब लोगों से परिचय करनें में लग गया। उस की ऐसी हालत देख कर मैं अंदर से बहुत चिन्तित था लेकिन उस के व्यवहार और अपने पद की गरिमा को ध्यान रख कर कुछ कर नहीं पा रहा था।

बैठक के खत्म होने के बाद मैंने उस की हालत के बारे में पुछताछ करी तो पता चला कि अभी वह अस्पताल में है। उसके परिवार के बारें में पता किया तो पता चला कि उसके माता-पिता को सूचित कर दिया गया है। पद में उस से सीनियर होने के कारण मुझे उस का हालचाल लेना चाहिये था यही सोच कर मैंने अपने स्टाफ से कहा कि वह जिस अस्पताल में है वहाँ चलते है। हम सब लोग कुछ देर बाद अस्पताल पहुँच गये। जब मैं उसे देखने गया तो वह अकेले बिस्तर पर पड़ी थी। नींद की दवाई के कारण सोई हुई थी। डॉक्टर ने बताया कि कोई चिन्ता की बात नहीं है शायद किसी शॉक के कारण वह बेहोश हो गयी थी। अब सही है कोई चिन्ता की बात नहीं है। यह जान कर मुझे आराम मिला और मैं वहाँ से वापस आ गया। शाम हो गयी थी मुझे अब घर जाना था। घर पर कोई नहीं था जो थी वह मुझ से अलग रह रही थी। मुझे अच्छा लगा कि उस के माता-पिता से मेरा सामना नहीं हुआ था।

दूसरे दिन सुबह मैं जब ऑफिस जाने के लिये तैयार हो रहा था तभी मेरा फोन बजा। मैंने फोन उठाया, तो नंबर कुछ जाना पहचाना लगा। दूसरी तरफ मेरी पत्नी ही थी। वह बोली कि मुझे बता नहीं सकते थे कि तुम यहाँ पोस्टेड हुये हो। मैंने कहा कि तुमने कुछ सुनने का अधिकार छोड़ दिया है। वह बोली कि तुम्हें देख कर तो मेरी जान ही निकल गयी कि मेरा पति प्रशासनिक सेवा में आ गया और मुझे पता ही नहीं चला। इस शॉक से मैं बेहोश हो गयी। अस्पताल में पता चला कि तुम मुझे देखने आये थे। यह सुन कर अच्छा लगा।

तुम्हें अभी तक मेरी चिन्ता है।

अपने नीचे के अधिकारियों की चिन्ता करना मेरा कर्तव्य है

मैं कर्तव्य में नहीं आती

कर्तव्य की बातें तुम ना ही करो तो अच्छा है

तो फिर देखने क्यों आये थे?

पद की गरिमा के कारण

और कोई कारण नहीं था?

नहीं

झुठ मत बोला करों, तुम से बोला नहीं जाता

जैसा तुम सही समझो

इस खबर पर तो पार्टी होनी चाहिये

किस बात की पार्टी

तुम्हारे प्रशासनिक सेवा बनने की, मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं प्रशासनिक सेवा वाले की पत्नी बनुंगी

हाँ तुम तो एक मामुली इंजिनियर की पत्नी थी

पत्नी थी नहीं हूँ

जैसा तुम कहो

तुम से कब मिल सकती हूँ

आज तो सारा दिन बिजी हूँ

मैं तो छुट्टी पर हूँ तुम ने ही भेजा है

हाँ तुम्हारी तबियत सही नहीं है इसी कारण से ऐसा किया है जोर का झटका लगा है सही होने में समय तो लगेगा

ताना मार रहे हो?

ऐसा ही समझ लो

पहले तो ऐसे ना थे

काश पहले से ऐसा होता

तो मैं तुम से लड़ लेती

किसी ने रोका था

नहीं तो, लेकिन तुम से लड़ने का मन ही नहीं किया कभी

छोड़ने का मन किया तो छोड़ दिया

मैंने कब छोड़ा, तुम ने एक फोन भी नहीं किया

'मैंने कितने फोन किये तुम्हें लेकिन तुम्हारें पिता ने तुम तक जाने ही नहीं दिये'

मुझे तो नहीं पता कि तुम ने फोन भी किये थे?

तुम भी तो कर सकती थी?

हाँ मेरी गल्ती है, मैं कमजोर पड़ गयी थी

अब क्या चाहती हो?

तुम से मिलना

मेरे से मिलना सही नहीं रहेगा

क्यों अपने पति से मिलना कैसे सही नहीं है?

पति से नहीं, सीनियर से मिलना सही नहीं है

दूनिया गई भांड़ में, मुझे तुम से मिलना है, समय बताओ

शाम को 6 बजे उसी मॉल में

हाँ वही मिलती हूँ

मैं ऑफिस चला गया। सारा दिन काम को समझने में लगा रहा। शाम को ऑफिस से निकला तो लगा कि ऑफिस में पता चला तो क्या होगा? फिर दिमाग में आया कि किसी और से नहीं अपनी पत्नी से मिल रहा हूँ। किसी को इस से क्या परेशानी होगी। सरकारी गाड़ी को घर भेज दिया और पैदल ही मॉल के लिये निकल गया। मुझे पता था कि सादी वर्दी में पुलिस वाले मेरे पीछे होगे। मॉल में पहुँच कर खड़ा हुआ ही था कि आवाज आयी कि सुनते हो, मैंने पलट कर देखा तो वह खड़ी थी। आज बहुत सुन्दर लग रही थी। मुझे घुरते देख कर बोली कि किसी की बीवी को घुरना सही नहीं है। उस की इस बात पर मैं हँस गया और उस के साथ रेस्टोरेंट में चल दिया। कोने की एक मेज पर दोनों बैठ गये। बैठ कर मैंने उसे देखा और पुछा कि अब तबीयत कैसी है? वह बोली कि तुम्हारें सामने खड़ी हूँ। उस की इस बात पर मैं मुस्करा दिया। वेटर को ऑडर करके वह मुझे देख कर बोली कि तुम इतने छुपे रुस्तम निकलोगे मुझे पता नहीं था।

कल से बहुत परेशान हूँ, सुबह तुम ने जो बताया वह जान कर जब पुछा तो बहुत खतरनाक बात पता चली कि पापा ने तुम्हें दहेज के मुकदमें में फँसाने की धमकी दी थी। तुम मुझे बता नहीं सकते थे। जो व्यक्ति मुझे आगे बढ़ाने के लिये जी जान लगा रहा था उसे ऐसी धमकी, मेरे लिये मर जाने की बात थी। मुझे पता नहीं है कि यह सब क्यों हुआ। तुम नें इतने सालों तक कुछ नहीं बताया। मैंने जो माता-पिता ने बताया वही सही माना यह मेरी गल्ती थी। क्या कहुँ मेरे पास तुम से क्षमा माँगने के लिये भी शब्द नहीं है। मेरे कानों में डाला गया कि तुम ने दहेज में गाड़ी माँगी है, इस बात पर तो मुझे विश्वास नहीं हूआ कि जो आदमी अपनी कमाई की गाड़ी चलाता है वह मेरे से गाड़ी क्यों माँगेगा?

मुझे पता नहीं मेरे भाग्य में क्या लिखा है? इतने बड़े पद के मिलने की खुशी थी लेकिन जिस व्यक्ति के साथ खुशी बाँटनी थी वह ही मेरे साथ नहीं था?

तुम्हारें पिता ने मुझे और मेरे माता-पिता को जेल भिजवाने की धमकी दी थी। अपने परिवार को इस अपमान से बचाने के लिये मैंने चुप रहना ही सही समझा। काफी दिनों तक परेशान रहा। नौकरी छोड़ दी। डिपरेशन में चला गया। वह तो एक दिन पिता ने राय दी कि अपनी लकीर बड़ी खीचों। उसे मान कर प्रशासनिक सेवा की तैयारी शुरु की, और परिणाम तुम्हारे सामने है। मैं और मेरा परिवार किस बुरी अवस्था से गुजरा है वह हम ही जानते है।

मैं समझ सकती हूँ

मुझे तो यह आश्चर्य था कि तुम ने अब तक तलाक क्यों नहीं लिया?

सब कहते तो थे लेकिन यह कैसे संभव था।

इतने बड़े पद पर हो कर भी अपने हित का नहीं सोच सकी आश्चर्य है

क्या बताऊँ, गल्ती मेरी ही थी, नये काम की परेशानी फिर तुम से दूर हो जाना, यह सब कैसे झैला है, मैं ही जानती हूँ

लेकिन कुछ करा नहीं

कल तुम मिले तो तुम्हें पुकारा नहीं

अगर नहीं मिलता तो

शायद एक दिन मैं ही मर जाती

लेकिन पति से सम्पर्क नहीं करती

मेरी गल्ती की जो भी सजा देनी हो दे देना लेकिन मुझे अपने पास तो आने दो

मैंने कब दूर किया था?

कल दूसरों को मुझे उठातें देखते रहे?

हाँ बहुत मजबुर महसुस किया, लेकिन पद की गरिमा के कारण चुप रहना पड़ा

मेरे से बड़ा पद और उसकी गरिमा?

नहीं तुम से बड़ा कुछ भी नही है, लेकिन कल बहुत मजबुर था। मुझे पता नहीं था कि तुम ने यहाँ मेरे बारे में क्या बता रखा है?

किसी को कुछ पता नहीं है

कॉफी खत्म हो गयी थी। वेटर से सैडविच मँगा लियें। उस के बाद जब बाहर निकले तो वह बोली कि तुम अपनी गाड़ी नहीं लाये हो?

नहीं, उसे वापस भेज दिया था, किसी को पता ना चले इस लिये ऐसा किया।

कब तक छुपा सकते हो?

पता नहीं

घर कैसे जाओगे?

कुछ पकड़ लेता हूँ

मैं छोड़ दूँ

नहीं तुम जाओ, मैं कुछ करता हूँ

वह चली गयी

मैं टेक्सी कर के घर वापस आ गया। खाना खाने के बाद माता-पिता से फोन पर बात करी और उन्हें अपने पास बुला लिया। वह बोले कि हम कल आ जाते है। उन की इस बात से मन को शान्ति मिली।

रात भर यही सोचता रहा कि अब आगे क्या होगा। जो कुछ मेरे और मेरे परिवार के साथ बिता था उसे भुला पाना बहुत मुश्किल था। पत्नी ने भी जो कुछ बताया था वह बहुत विश्वसनीय नहीं लग रहा था। जब कोई हल नहीं सुझा तो उसे भाग्य के सहारे छोड़ कर सो गया।

सुबह ऑफिस जाने से पहले मैंने अपने स्टाफ को दोपहर में माता-पिता को स्टेशन से ले कर आने के बारे में बता दिया। सारा दिन काम में निकल गया। स्टाफ ने दिन में बता दिया था कि माता-पिता आराम से घर पहुँच गये थे। घर के लिये चला तो पत्नी का फोन आया कि आज क्या विचार है तो उसे बताया कि आज मिलना नहीं हो सकेगा। वह चुप हो गयी। घर पर पहुँच कर माता-पिता से मिला और उन्हें यहाँ के समाचार बताये। पत्नी से मिलने की बात उन से छुपा ली। लगा कि अभी पहले मैं तो निश्चित हो लूँ उस के बाद माता-पिता को बताता हूँ।

रात को जब हम सब एक साथ बैठे तो माँ बोली कि बेटा एक बार फिर से बहु से बात करके देख। अब तो तुम उस से बड़े ऑफिसर हो गये हो अब उस को तुम्हारें साथ रहने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये। मैंने माँ की बात से सहमति जताई। वह बोली कि उसे फोन करके देख। मैंने कहा कि माँ जब समय मिलता है तो उस से बात करता हूँ। मेरी इस बात से वह चुप हो गयी। पिता जी कुछ नहीं बोले। उन्हें भी इस घटना क्रम से बहुत धक्का लगा था। समाज में बहुत अपमानित होना पड़ा था। वह सब तो मैं वापस नहीं ला सकता था लेकिन प्रशासनिक सेवा में आकर उन का नाम रोशन कर दिया था। इस से वह खुश थे। आज मेरे घर आ कर उन का मान बढ़ गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उन्हें पत्नी से मिलने और उस की बताई बातें कैसे बताऊँ?

सुबह फिर से मेरा वही रुटिन शुरु हो गया। नया था इस लिये कई चीजों को समझना जरुरी थी वहीं कर रहा था, इसी कारण से अपने बारे में सोचने का समय नहीं मिल रहा था। दिन में पत्नी ने फोन किया कि क्या सोचा है तो उसे बताया कि उससे शाम को मिलता हूँ। शाम को हम दोनों पहली वाली जगह पर ही मिले। पत्नी बोली कि अब मेरे से तुम से दूरी बर्दास्त नहीं हो रही है। तुम कुछ करो नहीं तो मैं अपने आप तुम्हारें घर आ जाऊँगी। मैंने उस से कहा कि जब इतना समय तक दूर थी तो कुछ समय और इंतजार कर लो। वह बोली कि मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ कि मेरे साथ क्या हो रहा है? मैं अपने माता-पिता के साथ एक पल भी नहीं रहना चाहती लेकिन तुम कुछ कर ही नहीं रहे हो?

यह बात सुन कर मैं उस की शक्ल देखने लगा तो वह बोली कि मैं इतना चुप रह ली हूँ कि अब चुप नहीं रहा जा रहा है। तुम कुछ करो। मैंने उसे बताया कि मेरे माता-पिता आये हुये है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि उन्हें तुम्हारें बारे में कैसे समझाऊँ? अपने पिता को कैसे बताऊँ कि उन का जो अपमान हुआ है वह उसे भुल जाये। तुम बताओ मैं क्या करुँ? वह बोली कि मैं उन सब से क्षमा माँग लुँगी और आशा है कि वह मुझे माफ भी कर देगे। वह बोली कि मुझे लगता है कि तुम ने अभी तक मुझे माफ नहीं किया है। मैं बोला कि हाँ यही बात है मुझे अभी समझ नहीं आ रहा कि मैं तुम्हें कैसे माफ करुँ?

तुम मुझे माफ मत करो, मुझे अपने पास रख कर मेरी गल्तियों की सजा दो, मैं उफ भी नहीं करुँगी। मुझे मेरे किये कि सजा तो मिलनी ही चाहिये। यह तुम ही कर सकते हो। मैं तुम्हें लिख कर दे सकती हूँ कि मैं जरा भी बुरा नहीं मांनुगी। उस की यह बात सुन कर मैंने मुस्करा कर कहा कि तुम इतना ही मुझे समझती हो?

समझती हूँ तभी तो बोलती हूँ, मुझे पता है तुम मुझे सता नहीं सकते

फिर यह सब क्यों कह रही हो

ताकि तुम कुछ कहो या करो, मुझे डाँटों मारो जैसा मन करे वैसा करो

ऐसा कुछ भी मैं नहीं कर सकता

मुझे पता है तभी तो कह रही हूँ

सोचते है

सोचते नहीं है, तुम अभी मेरे साथ मेरे घर चल रहे हो, मुझे अपने घर ले जाने

सही रहेगा

कब तक सही गलत के चक्कर में पड़े रहेगे, चार साल तो बिता दिये है

तो फिर चलो, तुम्हें तो मैं बाद में देख लुँगा

यह हुई ना पति वाली बात

उस ने मेरा हाथ पकड़ा और उठ कर मेरे साथ बाहर आ गई। उस की गाड़ी में उस के घर पहुँच गये। घर के अंदर गया तो मैंने उस के माता-पिता को प्रणाम किया। वह दोनों मुझे देख कर हैरान थे। मैंने उन से कहा कि मैं इसे लेने आया हूँ। वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे। पत्नी ने अपने स्टाफ को बुला कर कहा कि वह अपने घर जा रही है पीछे से उसके माता-पिता का ध्यान रखे। फिर वह अपने कपड़ें लेने अंदर चली गयी। कुछ देर बाद वह एक सुटकेस ले कर आ गयी। उस ने मेरा हाथ पकड़ा और अपने माता-पिता से कहा कि वह अपने घर जा रही है आप दोनों यहाँ आराम से रहे। उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी। हम दोनों उस की कार में घर के लिये चल दिये। वह कार चला रही थी। मैंने घर पर फोन कर के माँ से कहा कि वह अपनी बहु के स्वागत की तैयारी करे, मैं उस की बहु को ले कर आ रहा हूँ। माँ के कुछ कहने से पहले ही मैंने फोन काट दिया।

घर पर जब हम दोनों पहुँचे तो मेरा स्टाफ हैरान सा हम दोनों को देख रहा था। माँ ने घर में घुसने से पहले अपनी बहु और बेटे की आरती उँतारी और उस के बाद हम दोनों को अंदर आने दिया। घर के अंदर आ कर मेरी पत्नी ने अपना सर माता-पिता के पांवों पर टिका दिया। माँ ने उसे उठा कर गले से लगा लिया। इस के बाद उस ने मेरे चरणों में भी सर टिका दिया। मैंने औचक हो कर उसे कंधों से पकड़ कर उठा दिया। उस की आँखें गीली थी। माँ ने उसे पकड़ा और अपने साथ अंदर ले गयी। मैं पिता जी के पास बैठ गया। वह बोले कि यह क्या हुआ है? मैंने कहा कि आप को आराम से सब कुछ बताता हूँ। बहु के आने की प्रसन्नता उन के चेहरे पर झलक रही थी।

रात का खाना सास बहु दोनों ने मिल कर बनाया। सालों बाद आज मेरे घर में रौनक दिख रही थी। खाना खाते में माँ नें मेरी तरफ आँखों में प्रश्न पुछा तो मैंने उन्हें बताया कि आप विश्वास नहीं करेगी, आप की बहु यहाँ पर पोस्टेड है। जॉयन करने से पहले यू ही मॉल में घुम रहा था। तभी इस की आवाज सुनाई दी। इस से बात हुई। दूसरे दिन जब इस ने मुझे मीटिंग में देखा तो बेहोश हो गयी थी। इस को अस्पताल भिजवायाँ और शाम को इस को देखने गया लेकिन यह उस समय सो रही थी। किसी को अभी तक बताया नहीं है कि हम दोनों पति-पत्नी है।

दूसरे दिन जब यह मिली तो इस ने सारी बात बतायी। पहले तो मुझे इस की बात पर यकीन नहीं आया। अगले दिन भी यह मुझ से मिली थी। तभी मैंने आप को यहाँ बुला लिया था। सोचा था कि इस बारें आप से बात करुँगा लेकिन आप ने ही कहा कि बहु को फोन कर लूँ। समझ नहीं आ रहा था कि आप से क्या कहुँ? उहापोह में फसाँ हुआ था। आज जब इस से मिला तो यह बोली कि इसे अपने घर चलना है तो बात साफ हो गयी कि यह अब यहाँ ही रहेगी। इस के माता-पिता को बता कर मैं इसे वहाँ से विदा करवा लाया हूँ।

मेरी बात सुन कर माँ बोली कि यही बात अगर तुम दोनों पहले कर लेते तो जवानी के इतने साल यु ही बेकार ना चले जाते। पिता जी बोले कि सुनो जी जो हुआ सही हुआ, अगर यह नहीं होता तो तुम्हारा बेटा और बहु का पति प्रशासनिक सेवा कैसे बनता? ईश्वर जो करता है सही करता है लेकिन हम मनुष्यों की अक्ल में यह बात नहीं आती है। माँ ने सर हिला कर सहमति जताई। हम दोनों चुप रहे। पिता जी बात तो सही कह रहे थे।

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