महारानी देवरानी 087

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युद्ध
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Part 87 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 87

युद्ध

शमशेरा के पास बलदेव और देवरानी पहुच जाते हैं । वह उसे पूरी बात बता देते हैं कि कैसे उसकी दादी जीविका घाटराष्ट्र को बचाने के लिए मान गई और बलदेव और देवरानी के विवाह के लिए सहमत हो गयी ।

शमशेर: चलो ठीक है अब तुम दोनों हमारा साथ दोगे।

बलदेव: हाँ हम कहीं नहीं जाएंगे। अब ये राज्य को और अपनी माँ को जीत कर ही सांस लूंगा।

शमशेरा: सही है तुम्हें तो जोरू मिलेगी और मेरे अब्बू सुल्तान को जो उनका ख्वाब था कुबेरी का खजान मिलेगा । मुझे क्या?

ये कह कर शमशेरा मायुस हो जाता है जिसे देख कर देवरानी को बुरा लगता है।

देवरानी: सब समय पर छोड़ दो और अपने दिल की सुनो। अपना प्यार कम मत होने दो। क्या पता कब कहीं कोई चमत्कार हो जाए और तुम्हें भी...!

शमशेरा बात काटते हुए कहता है।

शमशेरा: आह छोडो भी! ऐसा ख्वाब क्या देखना जो पूरा होना नामुमकिन हो देवरानी खाला । आप तो जानती है ही हो अम्मी कितनी पाक साफ़ है और उन्हें कितना खुदा का खौफ है।

देवरानी: शमशेरा! प्यार करना गलत नहीं हैं । आगे भविष्य की गॉड में क्या छिपा है किसको पता है! अगर सच्चे दिल से चाहते हो तो वही खुदा न सिर्फ उनके दिल में नरमीयत डालेगा बल्कि तुम्हारा आगे का रास्ता भी बनाएगा । बुरा मत मानना, जहाँ तक मैं समझ पाई हूँ दीदी हुरिया छुपाती है, उनको भी पति का प्यार पूरा नहीं मिल पाता।

शमशेरा: अब खुदा जाने आगे क्या है...छोड़िए. अब मैं जा रहा हूँ फौजियो को बता दूं कैसे जंग की शुरुआत करनी है।

शमशेरा ये कह कर वहाँ से अपनी फौजियों के पास चला जाता है।

बलदेव देवरानी को देख रहा था और बिना पलक झपके ऊपर से नीचे तक निहारता है।

देवरानी: इतना ज्यादा मत देखो!

बलदेव: क्यू ना देखु अब तो तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी!

देवरानी मुस्कुरा देती है ।

"शादी के लड्डू अभी से मन में फूटने लगे!"

बलदेव: अभी तो लड्डू है फूटे है, कल जब हम विवाहित पति पत्नी होंगे। तब तुम्हारे क्या-क्या टूटेंगे तुम्हें पता नहीं है क्या?

देवरानी नखरा दिखाती है ।

देवरानी: अगर मैं ना कहूँ तो?

बलदेव: तब भी तुझे उठा के ले जाऊंगा मां! तब तक छोड़ूंगा नहीं जब तक चार बच्चे ना पैदा कर दूं।

देवरानी: हह बड़ा आया!

कह कर देवरानी घूम के जाने लगती है।

बलदेव: देवरानी कहा?

देवरानी को चलते हुए देख बलदेव का लंड खड़ा हो जाता है । देवरानी को हिलते हुए बड़े दूध एक सुर में थिरकते जा रहे थे।

अपनी मतवाली माँ की चाल देख कर बलदेव फ़ौरन अपना जिभ निकल कर अपने होठ पर फेरता है ।

"गजगामिनी" (हाथी के समान मंद गति से चलने वाली नायिका।)

बलदेव: (मन में) : "गजगामिनी" (हाथी के समान मंद गति से चलने वाली नायिका।) 34 साल की है पर लगती तो 20 की भी नहीं है। इतनी सुंदर त्वचा है और गदराये चिकने बदन की है।

थोड़े दूर चलने पर पलट कर देवरानी मुस्कुराती है।

देवरानी: देखते रहोगे...इधर आओ!

देवरानी एक बड़े पत्थर के पीछे जाती है।

बलदेव तेजी से अपनी माँ के पीछे भागता है।

जैसे हे बलदेव पत्थर के पीछे जाता है देवरानी बलदेव को जोर से गले लगा लेती है और उसके गले पर चूमने लगती है।

देवरानी: बलदेव मेरे पति मेरी जान!

बलदेव: देवरानी मेरी जान मेरी पत्नी!

देवरानी: आज मैं बहुत खुश हूँ बलदेव, काश आज मेरे माता पिता जीवित होते ।

बलदेव: तो क्या वह हमारे रिश्ते को मन लेते? तुम ये सोचो अपने भाई का क्या करोगी?

देवरानी: आआह मुझे उनसे कुछ लेना देना नहीं है । अब हम बस जल्दी से बंधन में बंध जाते हैं।

बलदेव देवरानी को बेटाहाशा चूमने लगता है।

"गैलप्पप गैलप्प-गैलप्प उम अह्म्म्म गैलप्प-गैलप्प गैलप्प!"

देवरानी" आह!

बलदेव देवरानी के होठ को अपने होठ में भर देवरानी के मधुर रस को चूस कर मजा ले रहा था और अपने हाथ को आगे बढ़ा कर एक दूध को जोर से पकड़ कर जोर से दबाता है।

देवरानी: आउच...!

बलदेव: क्या हुआ?

देवरानी: ऐसे भी कोई दबाता है क्या?

तभी शमशेरा की आवाज़ आती है।

"बलदेव बलदेव!" "देवरानी खाला!"

देवरानी: चलो शमशेरा बुला रहा है।

बलदेव: नहीं ना।

बलदेव दूध एक हाथ से दबाते हुए दूसरा हाथ देवरानी की गांड पर रख देता है और उसे सहलाते हुए उसे चूमता है ।

"उम्म्म्म क्या माल हो माँ तुम। मुझे ये खजाना चाहिए!"

देवरानी बलदेव की बात समझ कर बलदेव का हाथ अपनी गांड से हटा कर उसके चुंबन का जवाब देती है ।

"यहाँ जाना शुभ माना जाता है । अभी इस खजाने का मत सोचो दूल्हे राजा । जल्द ही किले में प्रवेश करने का अवसर मिलेगा बस कुछ देर धैर्य रखो!"

"मुझे नहीं पता है क्या शुभ अशुभ है । मुझे चाहिए तो चाहिए!"

बलदेव देवरानी की गांड की दरार में अपना हाथ घुमाता है।

देवरानी: हट बदमाश!

देवरानी अपना होठ पर लगा बलदेव का थूक साफ करती है और अपना ब्लाउज और पल्लू ठीक कर के पत्थर के पीछे से निकलती है।

देवरानी: हाँ शमशेरा बोलो!

शमशेरा: कहा हो तुम दोनों? हमारे पास समय नहीं है, हम अब महल की ओर कूच करेंगे।

तभी बलदेव मुस्कुराता हुआ पत्थर के पीछे से निकलता है, जिसे देख शमशेरा समझ जाता है कि क्या चल रहा था।

शमशेरा: बलदेव थोड़ा तो सबर कर लो । थोड़ा आराम करने दो भाभी को । बस ये जंग जीत जाए फिर जो करना है दिन रात करते रहना।

ये सुन कर देवरानी का शर्म से बुरा हाल हो जाता है और वह अपने सर को नीचे कर लेती है और उसका चेहरा लज्जा के मारे लाल हो जाता है।

शमशेरा देवरानी और बलदेव अपनी सेना को ले कर शाहजेब जिसने पहले से घाटराष्ट्र पर कब्ज़ा कर लिया था और सबको बंदी बना लिया था, उससे युद्ध करने के लिए निकल जाते हैं।

::::कुबेरी::::

वही पड़ोस के राज्य कुबेरी में राजा रतन सिंह आराम कर रहे थे और उसके राज्य के खजाने में लालच में एक तरफ शाहजेब की फौज खड़ी थी या दूसरी तरफ सुल्तान और देवराज अपनी फौज के साथ खड़े थे ।

देवराज: सुल्तान अब सब बात करना ख़तम करे । शाहजेब की सेना के लिए रुकने से अच्छा है, हम पहले ही धावा बोल दे और पहले ही राजा रतन की सेना को धूल चटा देते हैं। फिर शाहजेब की सेना को देख लेंगे।

सुल्तान: जैसी आपकी मर्जी देवराज जी!

शाहजेब के सैनिक सूर्य ढलने का इंतजार कर रहे थे और इस बात से अंजान थे कि दिल्ली की सेना को सिर्फ कुबेरी की सेना से नहीं पारसी सेना से भी लड़ना है।

देवराज: सैनिकों तैयार! हम सूर्य ढलने का इंतजार नहीं करेंगे, हम शाहजेब की सेना से कुबेरी पर पहले हमला कर देंगे ।

सुलतान: देवराज जी ठीक कह रहे हैं। सब तैयार?

सैनिक: तैयार तय्यर!

25000 फ़ौजी एक साथ बोलते हैं जैसे पूरी फ़िज़ा में आवाज़ गूंजती है ।

सुल्तान: यलगार हो!

देवराज: आक्रमण!

सुल्तान और देवराज अपने सैनिकों के साथ कुबेरी की सीमा में घुसते हैं ।उन सभी की घोड़े तेजी से भाग रहे थे। सीमा पार करते हुए कुबेरी के अनेको सैनिक आकर पारसी सेना को रोकने का प्रयास करते हैं, पर पारसी सेना कहा रुकने वाली थी वह सब को कुचलते हुए आगे बढ़ रही थी।

महल में राजा रतन अपनी पत्नी रुक्मणी सुखमनी और एलिजा के साथ था।

सैनिक: महाराज पारस के सुल्तान ने आक्रमण कर दिया है।

रतन सिंह के हाथ में मदीरा का ग्लास था वह गिलास फेकता है और अपने हाथ के तलवार ले कर आदेश देता है ।

रतन: सेना तय्यार करो और तोपो से भुन दो इन पारसियो को।

रुक्मणी: महाराज आप नशे में हैं।

रतन: चुप करो । बिलकुल होश में हूँ ।

सुखमनी: क्या एलिज़ा ने हम दोनों के जीवन को बर्बाद कर के रख दिया है । क्यों पिलायी तुमने महाराज को इतनी मदिरा?

एलीज़ा जो अंगेज़ मूल की महिला, थी जिसे राजा रतन ने जंग में जीत कर लाया था पर उसकी दो अन्य पत्नी थी रुक्मणी या सुखमनी, जो दो बहनें थी।

एलिजा: महाराज को पीना था तो मैं क्या करती?

सुखमनी: (मन में) इस चुडैल वैश्या ने हम दोनों बहनों का जीवन खराब कर दिया। जब से आई है महाराज को वैश्यऔ और शराब के अलावा कुछ नहीं सूझता।

रुक्मणी: (मन में) जब से ये एलिजा आई है तब से कुबेरी बरबाद होते जा रहा है। इसके दिल में जरूर खोट है। ये जरूर अंग्रेजों की दलाली कर के हमारे खज़ाने लूटने आई है ।

एलिज़ा: बहुत सोच रही हो तुम दोनों?

ये सुनते हैं रुक्मणी या सुखमनी एलिज़ा को देखते हैं।

एलिजा: फिक्र करने की बात नहीं है हम राजा के लिए कभी बुरा नहीं सोचेंगे।

रुक्मणी: चुप कर अंग्रेज़ की बच्ची। बुरा ही बुरा हो रहा है। हम सब मरने वाले हैं, सुल्तान ए जहाँ मीर वाहिद ने हमला किया है हममें से कोई नहीं बचेगा।

रतन: चुप करो तुम सब, नहीं तो सुल्तान से पहले मैं ही तुम सब का सर काट दूंगा।

सुखमनी: काट दो अब या क्या बाकी रह गया है या एलिजा का क्यू कटोगे हम दोनों को मार दो ।

रुक्मणि या सुखमनी इस मुसीबत से घबरा जाती हैं और अपने कक्ष में जा कर एक दूसरे से बात करने लगती हैं कि कैसे अपनी जान बचाए!

एलिजा (मन में) : यहीं अच्छा मौका है इस राजा से छूटकारा पाने का। उधर राजा लडने जाएगा इधर में यहाँ से निकल बंगाल की खाडी पहुँच जाऊंगी । जहाँ से ईस्ट इंडियन कंपनी के जहाज पर अपने देश ब्रिटेन चली जाउंगी।

ये सोवह एलिज़ा मुस्कुराती है।

राजा रतन: जितने सैनिक आस पास सीमा पार तैन्नत है सबको इकट्ठा करो।

सैनिक भाग कर पूरे कुबेरी में जा कर ढिंढोरा पीटवा देता है और धीरे-धीरे कुबेरी के सैनिक चारो ओर से महल को घेर लेते हैं ।

रतन: सैनिक कुबेरी के खजाने के लिए में हमपे हमला करने आये उस पारसी के बच्चे को ऐसा हाल करो कि उसके मरने के बाद उसकी आत्मा भी खजाना भूल जाए!

इधर उत्तरी छोर से कुबेरी सीमा को लांघते हुए सुल्तान की सेना आगे बढ़ रही थी । सूर्य का हल्का प्रकाश अब भी फेला हुआ था ।

अपने तलवार को चलाते हुए सामने आने वाले हर कुबेरी सैनिक को मौत के घाट उतारते हुए पारसी सेना महल के उत्तरी छोर पर पाहुच जाती है। किले के ऊपर भाग पर खड़ा रतन सिंह सब देख रहा था ।

रतन: सुल्तान तुम से यही उम्मीद थी कि तुम कायरो की तरह रात में ही हमला कर सकते हो ।

देवराज आमने अपने घोड़े पर बैठा ललकारते हुए कहता है।

देवराज: राजा रतन सिंह हम कुबेरी पर हमला नहीं करने आये हैं।

ये सुन कर कुबेरी के सैनिक या पारसी सेना भी अचंभित हो जाती है।

रतन: तो क्या यहाँ तीर्थ यात्रा पर आये हो देवराज और तुम्हारे सुल्तान की जबान नहीं है क्या?

देवराज: हम हमला करने नहीं...हम कुबेरी जीतने आए हैं...आक्रमण!

ये कहते ही पारसी सेना महल की ओर भाग कर हमला करती है।

रतन: सैनिको जाओ इन पारसियो के खून का मजा ही अलग है ।

कुबेरी के सैनिक आगे बढ़ते इस से पहले उनके ऊपर पीछे से तीरों की बौछार हो जाती है।

फिर कई सैनिक घायल हो कर गिरने लगते है।

रतन: ये पीछे से अपने ही सैनिको को कौन मार रहा है?

सैनिक: महाराज वह देखिए पश्चिम से एक और सेना आ रही है।

रतन: अब ये कौन है?

रत्न सिंह झल्लाते हुए कहता हैं।

सैनिक: महाराज इनके झंडे से लगता है कि ये दिल्ली की सेना है।

रतन: हरामी शाहजेब को भी आज ही आना था।

रतन: सैनिको शाहजेब की सेना पर गोले दागो और उन्हें जला कर राख कर दो और मेरे साथ उत्तर की ओर तुम सब चलो । क्योंकि शाहजेब अभी हम से दूर है।

राजा रतन अपने घोड़े पर बैठ अपने सैनिकों के साथ जो अच्छी खासी सेना थी उन्हें उतर की और चलने को कहता है । फिर रत्न सिंह अपनी सेना में से लगभाग 20000 सेना को लिए देवराज की ओर बढ़ता है।

रतन: आक्रमण वीरो!

सुल्तान: यलगार हो!

दोनों तरफ की सेना आपसे में भिड़ती और सब एक दूसरे को मारने लगते है । फिर एक भारी युद्ध शुरू हो जाता है । उधर पश्चिम ओर से आ रहे शाहजेब के सैनिकों को आग के गोलो से कुबरी के सैनिक उन्हें महल के पास आने से रोक रहे थे । जवाबी हमले मैं दिल्ली की सेना तीरो की बौछार कुबेरी की सेना पर कर रही थी।

राजा रतन सिंह की अंग्रेजी मूल की पत्नी एलिज़ा इस मौक़े का फ़ायदा उठाती है और अपने साथ महल के ख़ज़ाने में से जितना हो सकता है उठा कर घोड़े पर रख भागने लगती है।

अंदर कक्ष में रुक्मणी सुखमनी आपस में विचार विमर्श कर रही थी की अब क्या किया जाए और बाहर कुबेरी की सेना अपने राज्य और कीमती खज़ाने को बचाने के लिए युद्ध कर रही थी । धीरे-धीरे अँधेरा होता है पर पूरे चांद की रोशनी में भी दोनों सेनाये रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

:::: घटराष्ट्र ::::

उधर घाटराष्ट्र में शाहजेब अपनी सेना को इकठ्ठा करता है।

शाहजेब: फौजियों जितनी औरतें और खजाना मिला है उसे उठा लीजिए । ले चलो इन्हे । अब तक हमारी फौज ने कुबेरी पर हमला कर दिया होगा। हमने घाटराष्ट्र को जीत कर राजा रतन की कमर तोड़ दी हैं, अब हमें जल्द ही कुबेरी जाना होगा।

शमशेरा बलदेव अपनी सेना के साथ चांद की रोशनी में आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहे थे ।

शमशेरा: हम शाहजेब की फौज को कुबेरी नहीं जाने देंगे उन्हें यहीं रोके रखेंगे।

बलदेव: शमशेरा तुम शाहजेब का पीछा करो, मुझे शाहजेब द्वारा क़ैद की गयी महिलाओ को बचाना है।

शाहजेब अपने रथ में महारानी शुरष्टि को बंधवा कर रखवा देता है।

शुरष्टि: मुझे कहा ले जा रहे हो?

शाहजेब: हरामज़ादी का मुँह पर पट्टी लगाओ।

शुरष्टि: देखो मैं कह रही हूँ मुझे मत ले जाओ. तुम्हारे साथ अच्छा नहीं होगा...मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूँ।

शाहजेब: उस राजा राजपाल का गला काट दो और उसके सेनापति का भी।

शाहजेब के सैनिक राजपाल या सोमनाथ जहाँ पर बंधे थे उनको मारने लगता है तभी तीरो की बौछार आती है जिस से कुछ समय के लिए चांद की रोशनी भी छुप जाती है । इससे शाहजेब के काफी सैनिक मारे जाते हैं और काफी घायल हो गिर जाते हैं। ।

शाहजेब: ये कौन कम्बख्त है?

सैनिक: जी ये पारसी फौज है सुल्तान मीर वाहिद की।

शाहजेब देखता हैऔर 25000 सेना देख कर चौंक जाता है ।

शाहजेब: ये तो फौज की समुंदर है।

शाहजेब रथ छोड़ कर अपने घोड़े पर बैठ जाता है।

शाहजेब: पुराना हिसाब भी चुकाना है इस सुल्तान मीर वाहिद से।

शाहजेब: हम कुबेरी नहीं जा रहे हैं पहले हम इनसे निपटेंगे।

तभी एक सैनिक भागते हुए आता है।

शाहजेब: क्या हुआ?

सैनिक: बादशाह सलामत! सुल्तान की फौज ने कुबेरी पर भी हमला कर दिया है। वहाँ भी हमारी फौज खतरे में आ सकती है।

शाहजेब: आआआह मतलब ये के सुल्तान जानता था हम दोनों राज्य पर हमला करने वाले हैं।

शाहजेब: जाओ, लड़ो हम पारसियों से नहीं डरते!

बलदेव अपनी माँ देवरानी के साथ घोड़े से शाहजेब के सैनिकों को मारते हुए उस तरफ जाता है जहाँ पर घाटराष्ट्र की महिलाओ को बंदी बना कर शाहजेब की सेना ले जा रही थी ।

बलदेव: माँ तुम उन सब महिलाओं को आज़ाद करो। मैं बाकी सब को देखता हूँ।

बलदेव अपने दोनों हाथों में तलवार लिए घुमाने लगता है।

बलदेव: जय घटराष्ट्र जय राजपूताना!

देवरानी: जय राजपूताना!

बलदेव के पास शाहजेब के सैनिक आते हैं और बलदेव अपने युद्ध कौशल और सैनिक कला से सबको गाजर मुली की तरह काट रहा था।

बलदेव: आआआह ये ले!

: खचाक खट! कट! खच्च! "

की अव्वज के साथ दिल्ली के सैनिको का गला कट जाता है।

उधर शमशेरा शाहजेब की ओर बढ़ता है।

शमशेरा: यलगार हो! जीत हमारी है!

सैनिक: जीत हमारी है!

शमशेरा की सेना शाहजेब की सेना से भिड़ जाती है और युद्ध शुरू हो जाता है।

इस तरह दोनों राज्यो एक ही समय पर युद्ध चल रहा था । घटराष्ट्र में जहाँ शाहजेब और शमशेरा की सेना एक दूसरे से लड़ रही थी, वही कुबरी में रतन सिंह की सेना शाहजेब और सुल्तान और देवराज की सेना के साथ दोनों और से युद्ध कर रही थी।

::::कुबेरी ::::

आधी रात हो रही थी । युद्ध अब भी चल रहा था । सुल्तान मीर वाहिद और देवराज सैनिको की मदद से युद्ध के मैदान से बाहर आते हैं।

सुल्तान: देवराज हम पर तीरों से भी हमला हो रहा है और फौज भी ज़मीन पर लड़ रही है।

देवराज: हाँ हम चाह कर भी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं और उधर शाहजेब की फौज को भी रतन सिंह संभाल ले जा रहे हैं । उसकी युद्ध नीति अच्छी है।

सुल्तान: इसका क्या तोड़ है ऐसे तो हम रात दिन लड़े तो भी हम...!

देवराज: सुल्तान जी एक रास्ता है हमारे पास। हमे अपने कुछ सैनिकों को कैसे भी महल में प्रवेश करवाना होगा। उनको तीरंदाजों को हटाने के लिए हमे महल पर आक्रमण करना ही होगा । वहाँ से तीरो का हमला रुकने के बाद ही हम आगे बढ़ सकते हैं।

सुल्तान: पर ये हम पर उल्टा भी पड़ सकता है।

देवराज: हमारे पास और कोई चारा नहीं है। एक बार हम महल की के दीवारों के अंदर चले गए तो हमारी सेना चुटकियों में उनकी सेना को ख़तम कर देगी।

देवराज कुछ सैनिकों को पूर्व की ओर भेज कर महल में जाने के लिए कहता है। सैनिक आगे बढ़ कर पूर्व की दिशा में जा कर फिर महल की ओर आकर, महल के ऊपर रस्सी फेक एक-एक कर सब ऊपर चढ़ते हैं । देखते ही देखते सैनिक तीरंदाजों तक पहुँच जाते हैं।

सैनिक: तीनदाज़ो अब महल पर बैठ के लड़ने का वक़्त नहीं है ।

तीरन्दाज़ी रुकते ही रतन सिंह बौखला जाता है।

सैनिक: महाराज सुल्तान की सेना ने हमारे महल में प्रवेश कर लिया है।

राजा रतन सिंह अपने तलवार लिए महल के दीवारों पर चढ़ने लगता है और सुल्तान के सैनिकों को मार गिराता है।

उधर तीरंदाजी बंद होते ही महल की दोनों और से सैनिक महल में घुस जाते हैं। एक तरफ से शाहजेब के सैनिक दूसरे तरफ से सुल्तान के सैनिक हमला कर देते हैं । कुबरी की सेना दोनों तरफ से आक्रमण देख घबरा जाती है और भगदड़ मच जाती है।

अब शाहजेब की सेना सुल्तान की सेना आपस में युद्ध में लग जाती हैं और कुबेरी की सेना अपनी जान बचाने के लिए यहाँ से वहाँ भागने लगती हैं।

रतन: भागो मत कायरो! इनके एक लाख के बराबर तुम एक हो! डरो मत इन हरामियो से।

राजा रतन देखता है सुल्तान एक सैनिक के साथ तलवारबाजी कर रहा था और डोनो लड़ रहे थे। रतन अपना तीर कमान निकलता है और निशाना लगा कर सुल्तान मीर वाहिद की पीठ पर मारता है।

सुलतान: आआआह...नामर्द पीठ पर हमला करता है।

सुल्तान का गिरना था कि सुलतान की सेना में हड़कंप मच जाता है।

पारसी सैनिक: महाराज देवराआआअज।!...सुल्ताआंन को तीर लग गया है ।

देवराज भाग कर आता है और सुल्तान मीर वाहिद के सामने खड़े दो सैनिकों को मार गिराता है और सुल्तान को उठा कर एक कोने में जा कर बिठाता है।

पारसी सैनिक: सबको को जहन्नम में पहुँचा दो, सुल्तान को मार दिया।

"पारस जिंदाबाद...पारस जिंदाबाद!"

पारसी सैनिक अपने सुल्तान को तीर लगाने का सुनते ही आग बबूला हो जाते हैं और जोरदार तलवार की कला दिखाते हुए, शाहजेब की सेना पर हमला कर रहे थे । शाहजेब की सेना धीरे-धीरे युद्ध कर रही थी ।

देवराज: सुल्तान आप ठीक हैं ना!

सुलतान: ये नामर्द रतन सिंह पीठ पर वह हमला कर सकता है। तुम जाओ उसे छोड़ना नहीं।

देवराज सुलतान को सैनिको के हवाले करराजा रतन के पीछे जाता है। राजा रतन देवराज को अपने पीछे आता हुआ अपने महल में घुसता है।

रतन: रुक्मणी सुखमणि एलिज़ा! भागो हमें जाना होगा।

देवराज अंदर आते हुए कहता है।

देवराज: जहाँ जाना है हम तुम पहुँचा देंगे।

रतन सिंह अपने तलवार को घुमा कर देवराज पर जोर से हमला करता है। देवराज अपने कवच को आगे कर रतन के पेट पर एक लात मारता है तो राजा रतन के पीछे जा कर गिरता है।

रतन वापस उठ कर आता है और तलवार से देवराज से लडने लगता है । अंदर कक्ष में रुक्मणी सुखमणि कक्ष का दरवाजा बंद कर लेती है।

रतन: मुझे जाने दो देवराज मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?

देवराज तलवार ले कर आगे बढ़ता है और तलवार की नोक इस बार रतन के सीने पर चिपक जाती है।

रतन: तू ऐसा नहीं मानेगा देवराज!

रतन इस बार नीचे झुक कर देवराज के पीछे जाता है और देवराज की पीठ पर तलवार का वार करता है। देवराज अपने आप को बचाता है पर तब तक उसकी तलवार क्षति पहुचा चूकी थी ।

देवराज भड़क जाता है और अपनी तलवार से रतन सिंह से तलवार के साथ युद्ध करने लगता है और तेजी से उस की तलवार पर वार करता है जिस से रतन सिंह की तलवार उसके हाथ से छूट जाती है और रतन नीचे गिर जाता है।

रतन: मुझे जाने दो इसके बदले में तुम मेरा सारा खजाना ले लो।

देवराज: रतन सिंह बात खजाने की होती तो तुझे छोड़ देता, पर बात सम्मान की और प्रतिष्ठा की है।

देवराज रतन सिंह को एक लात मरता है।

रतन: तुम क्या बके क जा रहे हो?

देवराज: हरामी रतन सिंह तू मेरी जाति में कैसे पैदा हो गया। एक नीच जो एक स्त्री के साथ जबरदस्ती करे।

रतन सिंह हंसने लगता है।

देवराज: पागल हो गया है क्या तू रतन सिंह। मेरी बहन देवरानी पर गंदी नजर रख कर ।तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी ।

देवराज रतन सिंह को एक और लात मारता है और इस बार रतन सीधा जा कर दीवार पर टकराता है पर हसना बंद नहीं करता।

रतन: तुम्हारी बहन देवरानी...हाहाहाहा

देवराज: तुमने उससे जबरदस्ती करने की कोशिश की?

देवराज इस बार अपने तलवार को तेजी से चलाता है और रतन सिंह का एक हाथ काट देता है।

रतन: आआआआआआआआआआआआआआआआहहहहह!

देवराज: इतनी वैश्यों के साथ तो तेरा मन नहीं भरा, जो अपनी बेटी जैसी मेरी बहन पर बुरी नज़र डालता है।

रतन: देवराज तुम मुझे ये सब कह रहे हो हाहाहा! जिसकी बहन देवरानी हाहाहा तुम्हें जब इतना क्रोध है तो यह बात का क्या?

"तुम्हारी बहन देवरानी को तो तुम्हारा भांजा बलदेव पेलता है?" क्या पर क्या कहोगे देवराज हाहाहा?

देवराज रतन सिंह के मुँह पर अपना पैर रख देता है।

रतन सिंह: हम्म मेरा मुंह रोक दोगे, पर दुनिया का कैसे रोकोगे और ये मत कहना कि तुम्हें ये बात पता नहीं है ।

देवराज अपना पैर ज़ोर से रतन के मुँह पर मारता है।

रतन: मारो मुझे...हाहाहाहा! तुम्हें तो तुम्हारी भांजे और बहन करतूत पाप नहीं लगेगी, पुण्य लगी होगी हाहाहा!

देवराज इस बार तलवार उठा कर वार से रतन सिंह का दूसरा हाथ कट देता है।

देवराज: हरामी! तेरे ही कहने पर पिता जी ने मेरी बहन का विवाह करवा दिया और तुम ही वह सांप थे जिसकी वजह से हमारे राज्य पर मंगोलो ने तबाही मचाई।

रतन: अच्छा तो तुम्हें ये पता चल गया। तो सुनो तुम्हारे पिता को मरवाने में मैंने हे मंगोलो की मदद की थी । मैंने ही राजपाल से जान बुझ कर तुम्हारी कमसिन बहन का विवाह करवाया हाहाहाहा!

देवराज नीचे बैठ जाता है और रतन सिंह की गर्दन अपने हाथ में ले लेता है।

देवराज: क्यू किया तूने ऐसा? क्यू खेला हमारे जीवन से?

देवराज रतन सिंह की गर्दन को ज़ोर से दबाये जा रहा था । रतन सिंह छतपटा रहा था । कुछ देर बाद सैनिक आता है।

सैनिक: महाराज ये मर गया!

देवराज को होश आता है और रतन सिंह को छोड देता है ।

देवराज: इसका क्रियाकर्म करवा दो।

सैनिक: महराज! हमने कुबेरी फतेह कर लिया है पर सुल्तान की हालत बिगडती जा रही है।

इस युद्ध में-में हजारो सैनिक मारे जाते हैं और शाहजेब की फौज और कुबेरी की फौज तितर-बितर हो कर भाग जाती है।

सुल्तान के सैनिक कुबेरी के महल पर अपना पारसी झंडा लगा देते हैं।

सुल्तान को लिटा कर सैनिक उनके तीर को निकल रहे थे और हकीम की मदद कर रहे थे।

देवराज जाता है देखता है सुल्तान आख बंद किये हुए लेटे हुए थे।

देवराज: वैध जी इनका उपचार कीजिए!

हकीम: बेटा हमारा काम यहीं है, पर इन्हे जो तीर लगा है वह काफी जहरीला था । उसमे जहर लगा हुआ था ।

सुल्तान आख बंद किये अपना हाथ उठाते हैं जिसे समझ कर देवराज उनके पास जा कर बैठ बोलता है ।

देवराज: जी सुल्तान!

सुल्तान: मेरा ख्वाब पूरा हुआ...मुझे कुबेरी का खजाना दिखा दो एक बार।

देवराज: आप हिम्मत रखो सुल्तान आपको कुछ नहीं होगा...!

इधर घटराष्ट्र में बलदेव और देवरानी बंदियो को छुटाने में कामयाब होते हैंऔर फिर वह शाहजेब की सेना से लड़ रहे थे...!

जारी रहेगी

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