मेरी रूम मेट के पिताजी

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रूममेट के जवान पापा के गोद में झूला झूलती हुई में....
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मेरा नाम श्रुति गंगवार है.

मैं उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की रहने वाली हूं.

वर्तमान में मैं पुणे में भारत की एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हूं.

मेरी कंपनी में इस वर्ष आए नए लोगों में पूर्वी नाम की लड़की भी शामिल थी जो अपने माता-पिता के साथ यहां एक होटल में ठहरी हुई थी और पुणे में ही अपने रहने के लिए कोई आवास ढूंढ रही थी।

ऑफिस में बातचीत के दौरान जब उसने मुझे अपनी आवश्यकता बताई तो मैंने उसे अपने फ्लैट में शिफ्ट होने के लिए कहा क्योंकि मेरे फ्लैट में भी एक कमरा खाली था तय हुआ कि हम दोनों एक एक कमरे में रह लेंगी और फ्लैट का किराया आधा-आधा बांट लेंगी.

उसी दिन शाम को पूर्वी अपने माता पिता के साथ अपना सामान लेकर मेरे फ्लैट में आ गई।

पूर्वी के माता पिता अर्थात राजीव अंकल और शशि आंटी काफी व्यवहारिक और मिलनसार थे.

मैंने उन सभी का स्वागत किया और पूर्वी का कमरा लगाने में भी उसकी मदद की।

पूर्वी ने बताया कि अभी 7 दिन और उसके माता-पिता यहीं उसके साथ रुकेंगे उनकी वापसी की फ्लाइट एक सप्ताह बाद की है।

बस यही एक सप्ताह मेरे जीवन को परिवर्तित कर गया।

सारा दिन मैं और पूर्वी ऑफिस रहती हैं और अंकल आंटी के साथ फ्लैट पर ही रहते थे या कहीं घूमने निकल जाते थे.

अंकल हम दोनों का बहुत ख्याल रखते थे.

वे जितना स्नेह पूर्वी से करते हैं, उतना ही मुझसे भी।

वैसे तो अंकल और आंटी का यहां रहना हमारे लिए फायदेमंद था क्योंकि वो दिनभर हमारे फ्लैट का ख्याल भी रखते थे और उनके रहने से हमें सुबह शाम ताजा घर का बना खाना भी मिल रहा था।

परंतु फिर भी ना जाने क्यों मुझे उन लोगों के साथ हल्की सी बंदिश महसूस हो रही थी क्योंकि अकेले रहने के कारण मैं थोड़ा सा बिंदास रहती थी.

खुले अथवा अधनंगे कपड़े पहनना मेरी आदत में था परंतु जब से अंकल और आंटी आए थे, मुझे सोच सोच कर कपड़े पहनने पड़ते थे।

फोन पर भी हल्की आवाज में बात करनी पड़ती थी।

हालांकि अंकल और आंटी ने कभी मुझे नहीं टोका था पर फिर भी अंदर से वही फीलिंग होती थी कि उनको बुरा ना लग जाए।

फिर भी आदत अनुसार मैं शाम को ऑफिस से आते ही चेंज करती थी।

अपने सभी वस्त्र उतारने के बाद मैं अक्सर छोटी निक्कर और टॉप पहन लेती है ताकि मुझे खुला खुला महसूस हो।

आप सब लोगों को मालूम है कि पुणे के मौसम में गर्मी ज्यादा होती है.

ऐसे में कम और खुले वस्त्र पहनना ही सेहत के लिए अच्छा होता है।

हालांकि अंकल ने कभी इन सब चीजों को नोटिस नहीं किया और अगर किया भी हो तो मुझे अहसास नहीं होने दिया।

परंतु मुझे खुद अजीब सा महसूस होता था।

अंकल और आंटी अक्सर अपने आप में मस्त रहते थे।

दोनों एक दूसरे के प्रति काफी रोमांटिक थे और छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से चुहलबाजी करने का और एक दूसरे को छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे।

हमारे फ्लैट की तीन चाबियां थी एक चाबी मेरे पास रहती है, दूसरी पूर्वी के पास और तीसरी चाबी हम अंकल को दे जाते हैं ताकि अगर उनको कहीं जाना हो तो फ्लैट को बंद करके जा सकें।

उस दिन सोमवार था, मैं और पूर्वी सुबह सुबह तैयार होकर अपने ऑफिस के लिए निकल गई.

नीचे आकर जब हम ऑटो बुक करने लगी तो बैग में हाथ डालते ही मुझे याद आया कि मैं अपना मोबाइल तो अपने कमरे में चार्जिंग पर लगा कर ही छोड़ आई थी.

मैंने पूर्वी को बोला कि मैं मोबाइल लेकर आती हूं.

और वापस ऊपर अपने फ्लैट पर चली गई.

फ्लैट अंदर से बंद था तो मैंने बैग से चाबी निकालकर फ्लैट का दरवाजा खोला।

जैसे ही दरवाजा खुलने की आवाज हुई, अंदर से आंटी की आवाज आयी- कौन है?

मैंने जवाब में कहा- मैं हूं आंटी!

तब तक मैं तेज़ी से अंदर पहुंची तो देखा आंटी बिल्कुल नंग धड़ंग बिस्तर पर लेटी हुई थी.

मुझे देखते ही उन्होंने अपना बदन चादर से ढक लिया और अंकल बिल्कुल नग्न अवस्था में बाथरूम की तरफ चले गए।

उन दोनों को इस अवस्था में देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

बाथरूम की तरफ भागते राजीव अंकल से एक सेकंड को मेरी नजरें भी मिली पर एक सेकंड बाद ही वे बाथरूम के अंदर घुस चुके थे।

मैंने भी अपना मोबाइल उठाया और मुस्कुराती हुई तेरी से बाहर आ गई।

ऑफिस पहुंचकर मेरा मन काम में नहीं लग रहा था, बार-बार नजरों के सामने अंकल और आंटी का नग्न बदन आ रहा था।

किसी तरह मैंने आधा दिन ऑफिस में बिताया और फिर पूर्वी को बोली- मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं घर जा रही हूं.

और ऑटो बुलाकर वहां से घर के लिए निकल गई।

मेरे मन में यही इच्छा थी कि जो दृश्य सुबह देखने को मिला, काश घर पाहुचते ही फिर से वही दृश्य देखने को मिले.

इसीलिए मैंने पहले से घर आने की सूचना अंकल आंटी को भी नहीं दी।

मैं बहुत तेजी से अपनी बिल्डिंग में पहुंची।

लिफ्ट से अपने फ्लैट तक पहुंची और बिना कोई शोर किए बहुत सावधानी से फ्लैट का दरवाजा खोला.

अंदर का दृश्य देखकर मैं हैरान थी।

लॉबी में ही फर्श पर अंकल बिल्कुल आदमजात नग्न अवस्था में लेटे हुए थे और आंटी उनके ऊपर बैठी हुई जोर-जोर से कूद रही थी साथ ही हांफ भी रही थी।

वह दृश्य देखकर मैं हतप्रभ थी.

बहुत हल्के से बिना कोई आवाज किये ही मैंने फ्लैट का दरवाजा फिर बंद किया और कुछ देर बाहर ही खड़ी रही।

मैं सोचती रही कि क्या करूं ... मुझे अंदर जाना चाहिए या नहीं?

2 मिनट सोचने के बाद मैंने निर्णय लिया और अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोलने की बजाय फ्लैट की घंटी बजाई।

तीन बार घंटी बजाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खोला तो मैंने बैग से अपनी चाबी द्वारा निकाली।

तभी अंदर से फ्लैट का दरवाजा खुला और आंटी ने मुस्कुराते हुए मेरा स्वागत किया.

मैंने देखा कि आंटी ने नाइट गाउन पहना हुआ था।

"अरे श्रुति बेटा, अचानक कैसे, तबीयत तो ठीक है?" आंटी ने पूछा।

"नहीं आंटी, कुछ अजीब अजीब सा महसूस हो रहा है, सिर में भारीपन है, काम नहीं हो रहा था इसलिए मैं घर वापस आ गई।" बोलती हुई मैं लेट के अंदर आई और सीधे अपने कमरे में आ गई।

करीब 5 मिनट बाद बिल्कुल साधारण वस्त्रों में अंकल और आंटी मेरे सामने खड़े थे।

दोनों काफी स्नेह पूर्वक व्यवहार कर रहे थे।

आंटी ने बैठकर मेरा सिर दबाना शुरू कर दिया.

अंकल ने मुझसे पूछा- बेटी, क्या तकलीफ है मुझे बताओ, मैं तुम्हारे लिए दवाई ले जाता हूं।

मैंने कहा- नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं है।

फिर भी अंकल नहीं माने और मेरी तकलीफ पूछ कर मेरे यह दवाई लेने चले गए।

आंटी मेरे लिए चाय बनाने लगी।

10 मिनट बाद अंकल मेरे लिए दवाई लेकर आए।

आंटी ने चाय दी, मैंने चाय के साथ एक खुराक खा ली।

अंकल और आंटी मेरे कमरे में ही बैठे रहे।

उन्हें मेरी चिंता थी।

परंतु मैंने कहा- आप दोनों अपने कमरे में आराम कीजिए। मैं भी थोड़ी देर आराम करना चाहती हूं।

मेरे ऐसा कहने पर वे दोनों पूर्वी के कमरे में चले गए।

उनके जाते ही मैंने अपना कमरा अंदर से बंद किया और अपने बिस्तर पर आ गई.

मेरे सिर में भयंकर भारीपन था।

पूरे शरीर में अजीब से गर्मी महसूस हो रही थी और मुझे बार-बार अंकल और आंटी का नंगा बदन दिखाई दे रहा था।

मैं सोने की कोशिश कर रही थी पर नींद तो शायद मुझ से कोसों दूर थी।

मुझे इतनी गर्मी लग रही थी कि ऐसा लगा जैसे मेरा पूरा बदन उसमें झुलस जाएगा।

मैं बिस्तर से उठी और नहाने के लिए अपने बाथरूम की तरफ बढ़ गई।

बाथरूम में जाते ही मैंने अपने सारे कपड़े उतार फेंके और शावर चला दिया।

मैं बिल्कुल आदमजात नंगी शावर के ठंडे पानी के नीचे खड़ी थी.

मुझे फिर भी अपने बदन में से आग निकलती महसूस हो रही थी।

शावर के नीचे खड़े खड़े मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे खुद के हाथ मेरे बदन पर चलने लगे और अपने एक हाथ से मैं अपनी चूचियों और दूसरे हाथ से अपनी टांगों के बीच में अपनी गीली हो चुकी मुनिया को सहलाने लगी।

वैसे तो खाली समय में मैं अक्सर अपने मोबाइल पर ब्लू फिल्म देखा करती थी इसलिए मेरे लिए यह सब नया नहीं था.

परंतु अपने इतने करीब अपने किसी जानकार को इस तरह नग्न अवस्था में कामुक गतिविधि करते हुए मैंने अपनी 21 साल के जीवन में पहली बार देखा था।

मेरे बदन की आग मुझे झुलसाने लगी।

शावर का पानी भी मेरे ऊपर गिरने के बाद शायद गर्म हो रहा था।

मैं पागलों की तरह अपने दोनों हाथों से अपने शरीर को, अपने बदन को सहला रही थी।

मुझे याद नहीं कि मैं कितनी देर शावर के नीचे अपने ही नंगे बदन के साथ खेलती रही और कुछ देर बाद जब मेरी प्यारी मुनिया की गुदगुदी शांत हुई और उसमें से कुछ गीला गीला सा निकलने लगा।

अब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर का सारा बोझ निकल गया हो।

मुझे बदन में हल्कापन महसूस होने लगा।

तब मैंने तौलिए से अपना शरीर पौंछा और उसी नग्न अवस्था में अपने बिस्तर पर सोने चली गई।

कुछ ही पलों में मुझे नींद आ गई।

नींद भी इतनी गहरी जैसे मैं आज कई वर्षों बाद सोई हूं।

शाम को जब पूर्वी ऑफिस से आई तो उसने मेरा दरवाजा खटखटाया।

अचानक मेरी खुली और मुझे आभास हुआ कि मैंने तो एक भी कपड़ा नहीं पहना है.

मैंने तुरंत रोज की तरह अपनी वह निक्कर और एक सैंडो पहनी।

मैं कमरे से बाहर निकली।

आंटी खाना बना चुकी थी.

हम चारों ने एक साथ बैठकर खाना खाया.

पर पता नहीं क्यों, आज अंकल के प्रति मेरी नजर बदल चुकी थी।

मैं जैसे ही अंकल की तरफ देखती, उनके पहने हुए कपड़ों के अंदर का बदन मुझे दिखाई देता।

अंकल के प्रति एक अजीब सा आकर्षण मुझे महसूस हो रहा था।

हालांकि अंकल मुझे बिल्कुल बच्चों की तरह ही व्यवहार कर रहे थे परंतु मेरी नजरें अंकल के प्रति बदल चुकी थी.

मैं बार-बार अंकल को ही घूर रही थी।

मैंने तेज़ी से खाना खाया और अपने कमरे में जाने लगी।

पूर्वी ने मुझसे पूछा- दीदी, आप की तबीयत ठीक नहीं है क्या? कहो तो डॉक्टर को बुला दूँ?

मैंने कहा- नहीं, बस मुझे आराम करना है।

ऐसा बोलकर मैं अपने कमरे में आई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

पता नहीं क्यों, मुझे फिर से अपने बदन मैं वही गर्मी महसूस होने लगी, एक अजीब सा परंतु बहुत मीठा मीठा सा दर्द मुझे अपने बदन में महसूस हो रहा था।

मैंने तुरंत ए सी चलाया।

फिर भी गर्मी के मारे बुरा हाल था।

मैंने अपनी सैंडो और निक्कर उतार दी।

मैं फिर से नंगी हो गई और जाकर अपने बिस्तर पर लेट गई.

मुझे बार-बार अंकल के नंगे बदन पर बैठे आंटी कूदती हुई नजर आ रही थी।

मैंने उस तरफ से ध्यान हटाने के लिए अपने हाथ में मोबाइल उठा लिया पर मेरा ध्यान तो बार-बार वहीं जा रहा था।

मैं मोबाइल में कोई ब्लू फिल्म ढूंढने लगी.

तभी मेरे सामने एक ब्लू फिल्म खुली जिसमें बिल्कुल वही दृश्य था जो मैंने आज दिन में देखा था।

एक पुरुष फर्श पर लेटा हुआ था और उसकी महिला साथी बहुत प्यार से उसके मोटे काले लिंग को अपने हाथ से पकड़ कर अपनी मुनिया के मुहाने पर लगा कर उस पुरुष के ऊपर बैठ गई और जोर-जोर से कूदने लगी.

मुझे ऐसा लगा जैसे ये दोनों वही अंकल और आंटी हैं।

बार-बार उस ब्लू फिल्म में मुझे अंकल और आंटी की दिखाई देने लगे।

अचानक से मुझे महसूस हुआ कि मेरे चूचुक बहुत कड़े हो गए हैं.

मैंने एक हाथ से अपने एक निप्पल को सहलाया।

"आहह ह ह ..." कितना मीठा अहसास था।

सच में मजा आ गया और मुझे पता ही नहीं चला कि तब मैं ब्लू फिल्म देखते देखते अपने ही बदन के साथ खेलने लगी।

कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि मेरी मुनिया में से कुछ गीला गीला चिकना सा पदार्थ टपक रहा है और मेरा शरीर अपने आप ही ढीला हो गया।

ऐसा लगा जैसे जीवन के सबसे बड़े सुख की प्राप्ति हो गई हो।

मैं वहां से उठी बाथरूम में जाकर अपनी मुनिया को धोकर साफ किया और फिर से अपने बिस्तर में आकर लेट गई।

मैंने पुनः वही ब्लू फिल्म चलाई जो थोड़ी देर पहले देख रही थी.

फिर से वही सब दृश्य मेरे सामने थे अंकल जैसा दिखने वाला व्यक्ति फर्श पर लेटा हुआ था और आंटी जैसी दिखने वाली महिला उस व्यक्ति के मोटे काले लिंग को पकड़ कर उसके ऊपर अपनी मुनिया रखकर ऊपर बैठ गई।

पूरा लिंग आंटी की मुनिया में चला गया।

मैं कल रात और आज दिन वाले अंकल आंटी के दृश्य को याद करने लगे सोचने लगी कि अंकल का लिंग कैसा है, मैं उसको देखना चाहती थी.

पर शायद मैं वह नहीं देख पाई थी.

तो मैं जुगत लड़ाने लगी कि अंकल का लिंग कैसे देखा जाए.

यह तो मुझे आभास हो गया था कि अंकल और आंटी बहुत रोमांटिक हैं और हम लोगों की अनुपस्थिति में सारा दिन हमारे फ्लैट में फ्लैट में बस इन दोनों की काम क्रीड़ा ही चलती है।

परंतु यह भी मुझे मालूम था कि अगर मैं कल ऑफिस नहीं गई और घर रुक गई तो ये लोग यह सब बिल्कुल नहीं करेंगे।

सोचते सोचते मैं कब सो गई पता भी नहीं चला।

सुबह उठने के बाद मैंने ऑफिस थोड़ी देर से जाने का निर्णय किया और पूर्वी के जाने का इंतजार करने लगी।

9:00 पूर्वी मेरे कमरे में आई और पूछा- दीदी, ऑफिस नहीं चलना क्या?

मैं बोली- बाबू, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है, पहले डॉक्टर के पास जाऊंगी, वहां से ऑफिस आऊंगी। अभी तू चली जा, हम सीधे ऑफिस में ही मिलते हैं।

पूर्वी मुझे बाय बोल कर चली गई।

अब मैं अपने दिमाग से कुछ अजीब अजीब जुगत लगा रही थी।

थोड़ी देर बाद मैंने एक बहुत छोटी सी निक्कर निकाली, जिसमें मेरी पूरी टांगें दिखाई दें.

और ऊपर बहुत झीना सा सेंडो पहना जिसमें मेरे दोनों निप्पल दिखाई दें.

मैं जानबूझकर बाहर निकल आई।

अंकल और आंटी अपने कमरे में थे.

मैं सोचने लगी कि कैसे उन दोनों से मिला जाए।

कुछ देर इंतजार करने के बाद मैंने उन लोगों का कमरा खटखटाया तो आंटी वही नाइटी पहने हुए बाहर आई।

अंदर की तरफ झांक कर मैंने देखा अंकल बिस्तर में पड़े थे, उन्होंने चादर ओढ़ रखी थी।

जहां तक उन्होंने चादर ओढ़ रखी थी, वहाँ से ऊपर का बदन उनका आज भी नग्न था।

अब चादर के नीचे उन्होंने कुछ पहना था या नहीं उसका मुझे आभास नहीं था।

पर सोचकर ही मेरे निप्पल फिर से कड़े होने लगे।

आंटी ने जैसे ही दरवाजा खोला, मैं जानबूझकर दरवाजे को धक्का देते हुए उनके कमरे में चली गई और उनके बिस्तर पर ही बैठ गयी।

अंकल ने मुझसे पूछा- बेटा, तबीयत कैसी है? अगर डॉक्टर को दिखाना है तो मेरे साथ चलो।

मैंने जवाब दिया- अंकल, कल से बहुत बेहतर है, पर आज मैं ऑफिस नहीं जाऊंगी। कहीं बाहर घूमकर आऊंगी तो मूड फ्रेश हो जाएगा।

आंटी ने कहा- ठीक है, मैं भी तेरे साथ चलती हूं।

अंकल बोले- तुम लोग जाओ, मैं तो आराम करूंगा।

अंकल की यह बात सुन जैसे मेरी तो योजना फुस्स हो गई।

आंटी ने कहा- तुम तैयार हो जाओ, मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूं।

और वे किचन की तरफ चली गई।

इधर मैं देखना चाहती थी कि अंकल ने चादर के नीचे कुछ पहन भी रखा है या वे आज भी बिल्कुल नंगे ही हैं।

मैंने अंकल को बोला- चलो अंकल, आप तैयार हो जाओ, डॉक्टर के पास चलते हैं।

तो अंकल ने मुझसे कहा- तुम अपने कमरे में चलो, मैं तैयार होकर आता हूं।

मैंने कहा- अरे अंकल, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी। आपके साथ ही चलूंगी। आप जल्दी से उठ जाओ। बिस्तर छोड़ दो और तैयार हो जाओ।

पर अंकल मुझे मेरे कमरे में भेजना चाहते थे.

उसी से मैं समझ गई अंकल आज भी चादर के नीचे बिल्कुल नंगे पड़े हैं।

हे भगवान, कितना उत्साह है इन दोनों में!

मैं सोचने लगी।

मैंने भी जिद कर ली- नहीं अंकल, मैं नहीं जाऊंगी। आप उठ जाओ!

ऐसा बोलकर मैं जानबूझकर अंकल की तरफ इस तरह झुकी कि मेरी झीनी सी सैंडो के अंदर के निप्पल अंकल को दिखाई दें।

हालांकि मुझे भी यह नहीं समझ आ रहा था कि मैं जो कर रही थी वह सही था या गलत!

और मैं ऐसा क्यों कर रही थी.

पर अंदर से मेरा मन था कि जैसे मैंने अंकल के नग्न बदन को देखा है, ऐसे अंकल भी मेरे बदन को देखें।

मैं जानबूझकर अंकल की तरफ इस अंदाज से झुकी ... और अंकल की नजरें मुझ पर पड़ी भी ... उनकी निगाहें सीधे मेरे निप्पल तक भी गई।

पर उन्होंने वहां से तुरंत नजरें घुमा ली और वे बाथरूम जाने के लिए बिस्तर से उतरने लगे।

उन्होंने अपना एक पैर नीचे रखा, तभी उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने कुछ नहीं पहना है और उनके कमरे में मैं बैठी हूं।

तो उन्होंने तुरंत वह पैर फिर से चादर के अंदर कर लिया।

अब अंकल ने बिस्तर पर बैठे-बैठे ही चादर को अपनी कमर के चारों तरफ लपेटा और उठकर वॉशरूम चले गए।

मैं अपने द्वारा की गई शरारत पर खुद ही हंस पड़ी।

आंटी किचन में नाश्ता बना रही थी।

मैं भी उठ कर अपने कमरे में गई और बहुत तेजी से तैयार होकर बाहर आ गई क्योंकि मुझे अंकल के साथ डॉक्टर के पास जाना था।

मैंने जानबूझकर मिनी पहनी थी.

मुझे अंकल के साथ जाना अच्छा लग रहा था।

हम दोनों ने जल्दी से नाश्ता किया और नीचे आकर डॉक्टर के पास चले गए.

ऑटो में भी मैं अंकल से चिपक कर बैठी थी।

हालांकि अंकल बड़े संतुलित तरीके से बैठे थे और वे कोई भी ऐसी हरकत नहीं कर रहे थे जिससे मैं यह समझ सकूँ कि उनका झुकाव मेरी तरफ कुछ है।

डॉक्टर के यहां से दवाई लेने के पश्चात मैंने अंकल से कहा- अंकल, आज बाहर तो निकले हुए हैं, मुझे अपने लिए कुछ सामान भी लेना है, अगर आपके पास थोड़ा सा समय है तो चलिए, कुछ शॉपिंग भी कर लेते हैं।

अंकल ने कहा- हां बेटा, तुमको जो लेना है ले लो।

मैं वहीं पास के एक लायेंज़री शोरूम में चली गई।

अंकल बाहर ही खड़े हो गए।

मैंने अंकल को कहा- अंकल, इतनी गर्मी में बाहर क्यों खड़े हैं? अंदर आ जाइए!

पर अंकल शायद मुझसे एक संयमित दूरी बना कर रखना चाहते थे।

वे बोले- बेटा, जो तुमको लेना है ले लो, मैं बाहर भी ठीक हूं।

लेकिन पता नहीं क्यों आज मुझ पर एक अजीब सा जुनून सवार था, मैं अंकल का हाथ पकड़ के शोरूम के अंदर ले गई और वहीं अंकल को बिठा दिया और अंकल के सामने ही शोरूम के मालिक से अपने लिए ब्रा मांगी।

अंकल ने एक पल को मेरी तरफ नजरें उठाकर घूरा और उठ कर तुरंत शोरूम से बाहर चले आए.

मैं भी अंकल के पीछे पीछे बाहर आ गई और अंकल से फिर से शोरूम के अंदर बैठने की जिद करने लगी।

अंकल ने मुझसे गुस्से में कहा- बेटा, अपनी हद में रहो और जो भी खरीदना है जल्दी से खरीद कर बाहर आओ। मैं यहीं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।

मैंने खुद को संयमित करते हुए कहा- चलिए कोई बात नहीं, मुझे जो लेना होगा मैं बाद में ले लूँगी। अभी कुछ नहीं लेना, चलिए चलते हैं।

अब अंकल ने अनमना सा मुंह बनाते हुए मेरी तरफ देखा और कहा- यह कोई तरीका नहीं है, जो भी लेना है, अंदर जाकर ले लो।

मैंने भी मना कर दिया।

अंकल ने फिर से मेरी तरफ अजीब सी नजरों से घूरा और बोले- अच्छा चल अंदर ही बैठता हूं और जो भी लेना है, जल्दी लेना।

वे मेरे साथ फिर से शोरूम के अंदर आ गए।

मैंने वहां से अपनी पसंद की दो ब्रा खरीदी और अंकल के साथ बाहर आ गई.

बाहर आते ही अंकल ने गुस्से में मुझसे पूछा- श्रुति बेटा, तू इस तरह की हरकत क्यों कर रही है?

मैंने भी बिंदास जवाब दिया- बस अंकल, मुझे आपका साथ अच्छा लग रहा है। दो-तीन दिन में आप चले जाएंगे तब तक सोच रही हूं कि आपके साथ को एंजॉय करूँ।

अंकल ने जवाब दिया- बेटा, किसी का भी साथ इंजॉय करना अच्छी बात होती है ... पर लिमिट में, लिमिट क्रॉस करना ठीक नहीं है।

मैंने भी पलट कर कहा- अंकल, आप चिंता मत कीजिए, मेरी तरफ से ऐसा कुछ नहीं होगा।

मैंने अंकल को आश्वस्त करने की कोशिश की और बाहर से अपने लिए ऑटो देखने लगी।

पर मेरा घर जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था।

मैं अंकल के साथ थोड़ा और समय बिताना चाहती थी। मैं यह भी चाहती थी के घर जाने से पहले मेरे प्रति अंकल का मूड बिल्कुल ठीक हो जाए।

मैंने अंकल को पास के ही एक मॉल में चलने को कहा।

थोड़ी ना नुकुर के बाद अंकल तैयार भी हो गए।

हमने उस मॉल में जाकर हल्का फुल्का खाना खाया और कुछ शॉपिंग भी की।

मैंने अंकल के लिए अपनी तरफ से एक कमीज भी खरीदी.

जब अंकल का मूड अच्छा महसूस हुआ तो हम वहां से घर को चल दिए.

घर जाने के बाद मैं तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गई।

पर मेरे दिमाग पर तो जैसे अंकल के नंगे बदन का नशा चढ़ चुका था।

ऑफिस में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था.

हालांकि पूर्वी का काम अभी नहीं निपटा था।

परंतु मैंने अपना काम तेजी से निपटाया और घर पहुंच गई।

मैंने अपनी चाबी से दबे पाँव दरवाजा खोला और अंदर पहुंची तो देखा आंटी घर पर नहीं थी.

अंकल वही नग्नावस्था में बिस्तर पर लेटे हुए थे और सामने टीवी में कोई ब्लू फिल्म चल रही थी।

जैसे ही मुझे आभास हुआ कि आंटी घर पर नहीं हैं, मैं सीधे झटके से दरवाजा खोलकर अंकल के कमरे में चली गई।

अंकल मुझे देखकर अवाक रह गए और टीवी का रिमोट ढूंढने लगे.

मेरी नजरें टीवी पर पड़ी और बिस्तर पर लेटे अंकल पर।

मैं मुस्कुराई और आगे बढ़ कर मैंने टीवी का स्विच बंद कर दिया।

अंकल मुझसे बोले- अचानक आ गई? तबीयत तो ठीक है ना?

मैं कोई जवाब दिये बिना बिस्तर में अंकल की चादर में घुस गई।

अंकल काफी असहज से हो गए पर चूँकि वो चादर के अंदर बिल्कुल नंगे थे तो एकदम भाग भी नहीं सकते थे।

उन्होंने चादर को अपने चारों तरफ लपेट लिया.

पर मैंने भी सोच लिया था कि इतना अच्छा मौका दोबारा नहीं मिलेगा.

मैंने जबरदस्ती खींच कर चादर को उठाया और अंकल के बराबर में ही घुस गई।

जैसे ही मेरा हाथ चादर के अंदर गया, मेरा हाथ अंकल के पूरे कड़क कामुक लिंग से टकराया।

अंकल ने चादर के अंदर अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ हटाने की कोशिश की लेकिन तब तक मैं अपने हाथ की मजबूत पकड़ से उनके प्रेम यंत्र को पकड़ चुकी थी।

अंकल ने मेरी तरफ देखा और बोले- श्रुति, तुम बच्ची हो और मैं तुम्हारा अंकल! हम दोनों के बीच यह सब ठीक नहीं है। हाँ मैं मानता हूं कि तुम्हारी भी उम्र है। पर अपनी उम्र के लड़के ढूंढो। मेरी उम्र तुमसे बहुत अधिक है।

मैंने अंकल की नंगी छाती पर हाथ फेरते हुए कहा- अंकल, मुझे आपका साथ अच्छा लग रहा है। दो दिन बाद आप वापस जाने वाले हैं। क्या आप नहीं चाहते कि मुझे कुछ खुशियां देकर जाएँ। और ऐसा नहीं है कि मेरे उम्र के लोगों की कमी है पर जो सुख आपके साथ में मिल रहा है, वह मुझे आप के बाद नहीं मिलेगा।

लेकिन अंकल शायद इस सब के लिए तैयार नहीं थे।

वे बिस्तर से हटना चाहते थे.

मैंने अपने हाथ से अंकल के काम दंड को सहलाना शुरू कर दिया।

अंकल की मनोदशा कैसी थी, मैं महसूस कर रही थी.

वे उस समय का सुख-आनंद छोड़ना भी नहीं चाहते थे और मेरे साथ कुछ करना ही नहीं चाहते थे।

अंकल बार-बार मुझसे बचकर वहां से उठने की कोशिश करने लगे।

मैंने अपनी जीभ से अंकल की छाती और उनकी चूचुक को चाटना शुरू कर दिया.

अंकल का विरोध पहले के मुकाबले काफी कम गया था।

वे अंकल बार-बार यही कह रहे थे- श्रुति, समझा करो, यह सब ठीक नहीं है।

मैंने तो जैसे अपने कानों में रुई डाल रखी थी।

मैं कुछ सुनने की स्थिति में ही नहीं थी। मैं लगातार अंकल के बदन को सहला रही थी।

धीरे-धीरे अंकल का विरोध खत्म होने लगा और फिर भी अंकल मेरा साथ नहीं दे रहे थे।

वे सिर्फ आंख बंद करके उस बिस्तर पर पड़े हुए थे।

जब मैंने देखा कि अंकल बिल्कुल विरोध नहीं कर रहे हैं तो मैंने अंकल के ऊपर से चादर को हटा दिया।

वाह ... क्या बेहतरीन लिंग था अंकल का!

सीधा तना हुआ कमरे की छत को ताक रहा था मुआ।

बिल्कुल झंडारोहण की अवस्था में सीना ताने खड़ा था।

उसको देखने की मेरी 2 दिन पुरानी तमन्ना पूरी हो गई।

अंकल आंख बंद करके बिस्तर पर ही लेटे हुए थे।

मैंने उनके लिंग के ऊपरी हिस्से पर बने छोटे से मुंह को खोला और अपनी एक उंगली से उसको सहलाना शुरु कर दिया।

अंकल को जैसे बहुत जोरदार करंट लगा, उनका पूरा शरीर हिल गया और उन्होंने आंखें खोलकर मेरी तरफ बहुत निरीह हालत में देखा।

वे मुझसे बोले- श्रुति, तुमने ये सब कहां से सीखा?

मैंने भी बेशर्म होकर जवाब दिया- अंकल ऐसा नहीं है कि ब्लू फिल्म देखना सिर्फ आपको ही आता है।

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