मेरी रूम मेट के पिताजी

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अंकल मेरी तरफ देख कर मुस्कुराए और बोले- या तो यह सब मत करो ... या प्लीज, मुझे अंकल मत कहो। खुद पर बड़ी शर्मिंदगी सी महसूस हो रही है।

मैंने जवाब दिया- अच्छा, राजीव कहूं तो चलेगा?

अंकल ने कहा- चलेगा।

मैंने कहा- ओके राजीव!

अंकल मेरी तरफ देख कर हल्का सा मुस्कुराए और फिर से बोले- प्लीज श्रुति, मैं चाहूंगा कि तुम अब रुक जाओ. तुम्हें तुम्हारी उम्र के बहुत लोग मिलेंगे. मेरे साथ यह सब ठीक नहीं है।

मैंने पलट कर जवाब देने की बजाय अंकल के उस कड़क प्रेम दंड को अपने नाजुक होठों से लगा लिया।

अब तो जैसे अंकल का विरोध सहमति में बदल गया।

अंकल लेटे-लेटे ही अपने चूतड़ ऊपर उछाल कर अपने उस प्रेम दंड को मेरे होठों के अंदर मेरे गले तक उतारने लगे।

मैं भी उस पल अपने सारे वस्त्र उतारना चाहती थी।

पर मैं एक पल के लिए भी अंकल को छोड़ना नहीं चाहती थी कि कहीं अंकल का मूड़ फिर से न बदल जाए।

मैंने एक हाथ से अंकल की दोनों गोटियों को सहलाना शुरु कर दिया।

अब तो जैसे अंकल पर मेरा जादू असर करने लगा।

अंकल ने हाथ बढ़ाकर मेरी टॉप के अंदर पीठ को सहलाना शुरू कर दिया और ऊपर हाथ पहुंचते-पहुंचते मेरी ब्रा तक पहुंच गया।

"उफ्फ ... उफ्फ ... " मेरे मुंह से सिसकारियां निकलने लगी।

अंकल बोले- यह वही ब्रा है ना जो तुमने आज दिन में खरीदी थी।

मैंने सिर हिलाकर हां में जवाब दिया।

वे बोले- मुझे उसी समय तुम्हारे इरादे समझ जाने चाहिए थे।

अंकल के लिंग के ऊपरी हिस्से को तेजी से चाटने लगी.

तब अंकल भी जोश में आ गए थे, उन्होंने मेरी टी-शर्ट को ऊपर करके मेरी ब्रा को खोल दिया और हाथ आगे बढ़ा कर मेरे दोनों निप्पल को सहलाने लगे।

हाय रे ... क्या आनंद था।

कसम से ऐसा लग रहा था जैसे बस समय यही रुक जाए।

मेरे खुद के अलावा आज पहली बार कोई दूसरा मेरे निप्पल को सहला रहा था।

मैं तो जैसे स्वर्ग में गोते लगा रही थी।

मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा।

तभी अचानक बाहर दरवाजे पर घंटी बजी.

अंकल और मैं दोनों एक दूसरे को घूरने लगे.

मैंने तेज़ी से अपने कपड़े सही किए और दरवाजे पर पहुंची।

बाहर आंटी खड़ी थी जो शायद मंदिर से प्रसाद चढ़ा कर लौटी थी।

मेरा तो मूड़ ही खराब हो गया।

आंटी जैसे ही घर के अंदर आई मैं दरवाजे से बाहर निकली।

उन्होंने पूछा- कहां जा रही हो बेटा?

मैंने जवाब दिया- आंटी, थोड़ी देर के लिए छत पर जा रही हूं।

और मैं बाहर निकल गई।

आंटी अंदर किचन की तरफ बढ़ गई।

मैंने तुरंत बाहर निकल कर अंकल को फोन किया.

"हेलो!" अंकल की आवाज आई.

इधर से मैंने जवाब दिया- प्लीज दरवाजा बंद मत रखना, मुझे सब कुछ देखना है, आंटी आ गई हैं, आप चालू हो जाना।

इतना बोल कर मैंने फोन काट दिया।

करीब 10 मिनट छत पर टहलने के बाद मैं नीचे आई।

देखा फ्लैट का दरवाजा जैसे मैं छोड़ कर गई थी, ऐसे ही खुला था.

मैं दबे पांव अंदर चली गई.

अंकल के कमरे का दरवाजा भी पूरा खुला था.

मैं समझ गई कि यह अंकल ने मेरे बोलने पर ही खुला छोड़ा है.

मैंने झांक कर अंदर का दृश्य देखने की कोशिश की।

अंदर अंकल और आंटी दोनों ही मादरजात नंगे खड़े थे.

आंटी की पीठ मेरी तरफ थी और अंकल का मुंह।

अंकल बिस्तर पर सीधे खड़े थे और आंटी घुटनों के बल बैठकर अंकल का बहुत खूबसूरत कड़क साँवले से लिंग को, जो कुछ देर पहले मेरे मुंह में था, अब चूस रही थी।

मुझे आंटी से बहुत जलन हो रही थी।

पर मैं क्या कर सकती थी।

तभी अंकल की निगाह मुझ पर पड़ी.

वे मेरी तरफ देख कर मुस्कुराए और मुझे चिढ़ाने के लिए अंदर आने का इशारा किया.

पर मैं वहां से वापस अपने कमरे में लौट गई।

कमरे में आते ही मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और नंगी होकर अपने पूरे बदन पर हाथ फेरने लगी।

मेरा मन कर रहा था कि बाहर जाकर उन दोनों की कामक्रीड़ा का आनंद लूँ।

पर डर यह था कि कहीं आंटी ने देख लिया तो पूरा खेल बिगड़ जाएगा।

काफी देर तक खुद को समझाती रही।

पर जब मन नहीं माना तो मैंने अपने कमरे का दरवाजा हल्के से खोला।

बाहर की तरफ झांक कर अंकल के कमरे में देखने की कोशिश तो पाया कि आंटी नीचे लेटी हैं।

उनका सिर मेरी तरफ है और अंकल उनके ऊपर सवार थे।

अंकल की नजरें लगातार बाहर दरवाजे की तरफ थी।

वे शायद मुझे ही ढूंढ रहे थे।

जब मैं आश्वस्त हो गई कि आंटी मेरी तरफ नहीं देख पाएँगी तो मैं झांकते हुए अंदर की तरफ देखने लगी।

अंकल ने जैसे ही मुझे नग्न अपने सामने खड़ा देखा, उनकी तो धक्के मारने की गति एकदम बढ़ गई।

आंटी को लगने वाले झटके पहले से ज्यादा तेज हो गये।

अब आंटी की मोटी मोटी चूची झूलती हुई मुझे दिखाई दे रही थी।

मैंने महसूस किया कि आंटी की चूचियां मेरे से दुगने से भी ज्यादा बड़ी थी. वे झूलती हुई इतनी सुंदर लग रही थी कि मन कर रहा था कि आगे बढ़कर आंटी की चूचियाँ ही खा जाऊं।

पर मैं कुछ नहीं कर सकती थी।

अंकल मुझे देखकर लगातार मुस्कुरा रहे थे और मैं उनके सामने खड़ी होकर अपने ही बदन को सहला रही थी।

कुछ देर बाद अंकल ने एक जोरदार झटका मारा और आंटी पर निढाल होकर गिर गए।

मैं भी वहां से दबे पांव अपने कमरे में आई और बाथरूम में शावर चला कर उसके नीचे खड़ी हो गई.

कुछ ही सेकंड में मेरे बदन को भी आराम मिल गया.

और अब मुझे अंकल से वही चाहिए था जो उन्होंने कुछ दिन पहले आंटी को दिया था।

सोचते सोचते मैं नहा धोकर बाहर निकली तो पूर्वी भी आ चुकी थी।

आंटी बाहर खाना लगा रही थी।

पूर्वी ने मुझे आवाज लगाई- दीदी, तबीयत कैसी है? आ जाओ, खाना खा लो।

मैं भी उन लोगों के साथ बैठकर खाना खाने लगी।

उसके बाद सब अपने अपने कमरे में चले गए.

पर मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी।

मैं चाहती थी कि अंकल मेरे कमरे में आ जाएँ।

लेकिन मैं यह भी जानती थी कि यह संभव नहीं है।

मुझे नींद नहीं आ रही थी।

थोड़ी देर बाद मैं उठकर ऊपर छत पर टहलने चली गई.

और देखो मेरी किस्मत ... जैसे भगवान जी तो पूरी तरह से मेरा साथ दे रहे थे.

छत पर जाकर देखा तो अंकल पहले से छत पर टहल रहे थे।

मुझे देखते ही वे मेरे पास आए और बोले- क्या हुआ श्रुति, इस टाइम छत पर क्यों आई?

मैंने भी पलट कर सवाल पूछा- आप रात को 11:00 छत पर क्या कर रहे हैं?

तो अंकल बोले- यार, नींद नहीं आ रही थी। तेरा ही ख्याल आ रहा था। तेरी आंटी और पूर्वी सो गई तो मैं ऊपर आ गया।

मैंने हंसते हुए कहा- क्योंकि शायद भगवान भी यही चाहते थे।

अंकल ने तुरंत अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये।

मैंने अंकल की पकड़ से छूटते हुए कहा- राजीव, बस छत का दरवाजा बंद दो।

अंकल ने कहा- तू रूक, मैं 2 मिनट में आता हूं।

मैं वहीं रुक कर अंकल का इंतज़ार करने लगी और अंकल दबे पांव नीचे चले गए।

दो मिनट बाद ही अंकल जब ऊपर आए तो उनके हाथ में एक तकिया और एक दरी थी।

छत पर आते ही उन्होंने बाहर की तरफ से दरवाजा बंद कर दिया।

तकिया और दरी देखते ही मैं समझ गई कि अब अंकल पूरे मूड में हैं।

मैंने अंकल को गले से लगा लिया।

अंकल ने बिना समय गवाएं फर्श पर दरी बिछाई और मुझे उस पर बिठा लिया।

उन्होंने एक ही झटके में मेरा टॉप उतार दिया साथ ही मेरी ब्रा भी!

मैंने कहा- धीरे करो अंकल!

उन्होंने फिर से मुझे टोका- या तो यह सब मत करो या अंकल मत कहो।

मैंने मुस्कुराते हुए कहा- ओके जानू, प्लीज धीरे धीरे करो।

अंकल बोले- यार, जब से यह छोटी-छोटी निंबोली जैसी चूचियां देखी, खुद पर नियंत्रण नहीं होता।

तो मैंने पलट कर कहा- और जब से मैंने आंटी की मोटी मोटी चूचियां देखी है मेरा भी खुद पर नियंत्रण नहीं है। दिल तो कर रहा था कि आंटी की चूचियां खा जाऊं!

अंकल बोले- अगर तेरा मन है तो वो भी खिला देंगे।

तब तक मैं भी अंकल की बनियान उतारकर अपनी नादान सी चूचियों को अंकल की मजबूत छाती पर रगड़ने लगी।

अंकल बहुत आराम से और शातिर तरीके से मेरे होठों का रसपान कर रहे थे.

तभी उन्होंने अपने हाथों से मेरे निक्कर भी पेंटी के साथ एक ही झटके में उतार दी।

अब मैं अंकल की बाहों में बिल्कुल नंगी थी।

अंकल ने मुझे वहां बिछाई गई दरी कर सीधा लिटा लिया और मेरे पूरे बदन को पैर के अंगूठे से लेकर ऊपर तक अपनी जीभ से चाटने लगे।

उस समय मुझे मिलने वाले आनंद की अनुभूति अकल्पनीय थी जो शायद जीवन में कभी नहीं हुई थी।

चांदनी रात में चंद्रमा दूधिया रोशनी मेरे गोरे बदन और भी चमका रही थी।

छत पर मैं अंकल के साथ उसी चांदनी रात में अपने जीवन के पहले कामानंद की अनुभूति कर रही थी।

मैंने अपने दोनों हाथों में फंसा कर अंकल के बरमूडा को पूरा नीचे कर दिया था.

अंकल का काला लिंग नाग की तरह फुंफकारता हुआ अब मेरे पेट को छूने लगा था.

मैं अपने एक हाथ से पकड़ कर उसे ऊपर कर रही थी पर अंकल का मजबूत बदन उसकी इजाजत नहीं दे रहा था.

लेकिन शायद अंकल मेरी बात को समझ गए थे, उन्होंने अपना एक पैर मेरे गर्दन के दूसरी तरफ घुमाया और उनका लिंग बिल्कुल मेरे मुंह के पास आ गया।

मैंने उसको अपने मुंह में पकड़ कर चूसना शुरू कर दिया।

अंकल बोले- रुक, ऐसे नहीं, मैं बताता हूं।

और अपना लिंग मेरे मुंह से निकाल दिया।

अब अंकल उल्टे हो गए।

उनके चूतड़ मेरे मुंह की तरफ थे और उनका मुंह मेरी टांगों की तरफ!

हम दोनों 69 की पोजीशन में आ गए थे।

अब अंकल ने अपना लिंग मेरे मुंह में डाला और अपने चूतड़ हिला हिला कर मेरा मुखचोदन करने लगे।

साथ ही अंकल ने अपने दोनों हाथ बढ़ाकर मेरी दोनों टांगों को फैला लिया और मेरी प्यारी सी छोटी सी मुनिया को ऊपर से ही चाटने लगे.

"आह ... हाय ... रे ..." ये कैसी सीत्कार खुद-ब-खुद मेरे मुंह से निकाल रही थी।

ऐसा लगा जैसे पूरे बदन में करंट दौड़ गया।

दिल कर रहा था आज अंकल मेरे उस कमीनी मुनिया को खा ही जायें।

जैसे ही अंकल की जीभ मेरी मुनिया के होठों को सहलाती, मेरे पूरे बदन में झुरझुरी दौड़ जाती।

शायद 4 बार ही अंकल ने ऐसा किया हो.

मेरी मुनिया तो बिल्कुल पानी पानी हो गई और मैं बिल्कुल निढाल सी।

अंकल ने पूछा- क्या हुआ?

मैं बोली- अरे जानू, आपकी तो जीभ भी कमाल है। ऐसा करेंट पैदा कर दिया कि मैं टिक नहीं पाई, खलास हो गई।

अंकल ने कहा- कोई बात नहीं, तू तो कामदेवी है, दोबारा तैयार हो जाएगी।

मैंने कहा- जानू, कामदेवी तो मुझे आंटी लगती हैं। मेरे दिमाग में अब भी उनकी मोटी मोटी चूचियाँ घूम रही हैं। जब मैं आंटी और आप की प्रेम लीला देखती हूँ तो खुद पर काबू नहीं कर पाती हूँ।

अंकल हंसने लगे और वे फिर से मेरी मुनिया को चाटने लगे.

मेरी मुनिया से निकलने वाले बूंद-बूंद रस को वे पूरा चाट गए।

अंकल का लिंग अभी मेरे होठों को सलामी दे रहा था।

अचानक अंकल ने अपनी पोजीशन बदली।

अब वे मेरे बराबर मे आ गए और मेरे कान, मेरे होंठ, मेरे निप्पल, मेरे हाथ, शरीर के एक-एक अंग को अपने गीले हो चुके होठों से चाटने लगे।

अंकल अपने होठों और उँगलियों से मेरे बदन के साथ छेड़छाड़ कर उसका मजा ले रहे थे; ऊपर से चाटते चाटते धीरे-धीरे नीचे आ रहे थे।

नीचे आकर अंकल ने मेरी दोनों टांगों को फैलाया और मेरी मुनिया के दोनों लब खोल दिए और अपने सीधे हाथ की तर्जनी उंगली से मेरी मुनिया के अंदर के भाग को सहलाने लगे।

मेरी आंखों में तो फिर से नशा चढ़ने लगा।

मैं जैसे समुंदर में गोते लगा रही थी और अंकल मुझे वो आनंद दे रहे थे।

मेरे हाथ-पैर फिर से अकड़ने लगे; मेरे भूरे निप्पल फिर से कड़क हो गए।

अंकल लगातार अपनी उंगली मेरी मुनिया के अंदर बाहर रहे थे.

अचानक से मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे धीरे धीरे उनकी पूरी उंगली मेरी मुनिया के अंदर घुस रही है.

मुझे हल्का सा दर्द महसूस हुआ।

"उई ..." मेरे मुंह से सिसकी निकली।

अंकल ने पूछा- क्या हुआ?"

"जानू, हल्का सा दर्द हो रहा है।" मैंने कहा।

अंकल बोले- प्लीज जोर से मत चिल्लाना, हम लोग छत पर हैं।

मैंने कहा- आप चिंता मत करो, अब मेरी आवाज नहीं आएगी। लेकिन आप चालू रहो।

अंकल फिर से मेरी गीली हो चुकी मुनिया के साथ खेलने लगे।

मैंने महसूस किया अंकल के दोनों हाथ अब मेरी दोनों चूचियों को मींझ रहे थे।

तो फिर यह मेरी प्यारी सी मुनिया के साथ कौन खेल रहा था?

मैंने नजरें उठाकर देखा तो अंकल का वो काला नाग और मेरा सबसे प्रिय खिलौना मेरी मुनिया को ऊपर से चुम्मी दे रहा था।

वह सुखद अनुभूति मैं आज भी महसूस करती हूँ तो सिहर जाती हूं।

अंकल ने मेरी दोनों टांगें खींच कर मुझे अपनी तरफ खींचा और तकिया मेरी पीठ के नीचे लगा दिया।

अच्छा तो अब समझ में आया कि अंकल तकिया किस लिए लाए थे.

अंकल वास्तव में मंझे हुए खिलाड़ी थे।

उन्होंने मेरे नितंबों के नीचे तकिया लगा कर मेरी मुनिया को थोड़ा सा ऊपर कर दिया और अपने लिंग से मेरी मुनिया को सहलाने लगे.

अब अंकल पूरी तरह से मेरे ऊपर आ गए और उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिया.

एक हाथ से वे मेरी चूचियाँ सहला रहे थे, अपने होठों से मेरे होठों को चूस रहे थे और दूसरे हाथ से अपने लिंग को पकड़कर मेरी मुनिया को सहला रहे थे.

अचानक उन्होंने ऐसा झटका मारा जैसे उनके लिंग का अगला हिस्सा मेरी मुनिया के अंदर चला गया।

"उह ... उह ... " मेरे मुंह से आवाज निकली।

लेकिन अंकल ने अपने होठों से मेरे होठ दबा रखे थे।

इसलिए मेरी आवाज भी दब गई और अंकल का वह कामुक दंड मेरी कोमल देह में प्रवेश कर गया।

अंकल कोई जल्दी नहीं कर रहे थे.

सिर्फ उतने ही हिस्से को जितना अंदर गया था, उन्होंने एक दो बार अंदर बाहर करने के बाद पूरा बाहर निकाल दिया और फिर से मेरी मुनिया को सहलाने लगे.

अब मुझे बहुत मजा आ रहा था।

अचानक अंकल ने फिर से एक तेज झटका मारा और उनका लिंग मेरे भीतर प्रवेश कर गया।

मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।

चीख निकली और वह भी गले में फंस गयी।

मेरी आंखों से आंसू निकलने लगे.

ऐसा लगा जैसे किसी ने चाकू से मेरी मुनिया को चीर दिया हो।

पर अंकल के अंदर अब शायद जानवर प्रवेश कर चुका था.

पहले वे जितने प्यार से मेरे बदन को सहला रहे थे, अब उतने ही वहशी तरीके से वह मेरे ऊपर धक्के मार रहे थे.

मेरा पूरा बदन नीचे की दरी पर रगड़ रहा था।

लेकिन अंकल को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था।

उन्होंने मेरी दोनों टांगों को ऊपर उठा कर अपने कंधों पर रख दिया और मेरे दोनों कंधे पकड़ लिये.

उसके बाद बहुत तेज गति से अंकल लगातार धक्के मार रहे थे।

मेरा पूरा बदन उनके कब्जे मे था।

अब मेरा दर्द धीरे धीरे कम होने लगा था।

मुझे अब उनके जोरदार मर्दाना धक्के अच्छे लगने लगे।

कुछ जोरदार धक्कों के बाद अचानक अंकल रुक गए.

1-2 सेकंड रुकने के बाद उन्होंने फिर से एक जोरदार धक्का मारा और उसके बाद निढाल होकर मेरे बराबर में लेट गए।

मेरी मुनिया दर्द से कराह हुई थी।

पर मेरी मुनिया के अंदर से उमड़ उमड़ कर प्रेम रस निकल रहा था।

अंकल और मैं एक दूसरे से कुछ नहीं बोल रहे थे।

कुछ मिनट हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे।

उसके बाद बराबर में लेटे-लेटे ही अंकल ने फिर से मेरे बदन को सहलाना शुरु कर दिया।

मेरे बदन में फिर से स्फूर्ति आने लगी और मैं वह दर्द को भूलने लगी।

धीरे-धीरे अंकल की उंगलियां मेरे बदन पर फिर से पहले की तरह थिरक रही थी जैसे मेरे बदन पर कोई काम गीत बजा रही हों।

जैसे-जैसे बदन की कामाग्नि बढ़ रही थी, मेरी मुनिया के दर्द का अहसास कम होने लगा।

अंकल के हाथों में पता नहीं क्या जादू था जो मेरी मुनिया बार बार कुलबुला रही थी।

कुछ ही मिनटों के बाद अंकल ने मेरा हाथ पकड़ कर फिर से अपने लिंग पर रख दिया।

"अरे बाप रे, क्या खाते हैं अंकल?"

उनका शेर अब फिर से मेरा शिकार करने को तैयार हो चुका था।

मैं समझ गई कि अंकल फिर से मेरी सवारी करेंगे।

अब मैं भी पूरा साथ देने के लिए तैयार थी।

मैंने अंकल के छाती को चाटना शुरू कर दिया।

हम दोनों के शरीर फिर से एक दूसरे से गुत्थम गुत्था हो गए।

मैंने एक हाथ से अंकल के लंबे मोटे लिंग को पकड़ कर आगे पीछे करना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से कल की गोटियों को सहलाने लगी।

अंकल भी मेरे चूतड़ों को सहला रहे थे।

अब मैं अंकल का पूरा साथ दे रही थी ... या यूं कहूँ कि अंकल के साथ काम संबंध का पूरा मज़ा ले रही थी।

कुछ मिनटों की कामक्रीड़ा के बाद अंकल ने मेरे कान में पूछा- तुझे दर्द तो नहीं है?

मैंने भी पूरे उत्साह में जवाब दिया- नहीं, बिल्कुल भी दर्द नहीं है और मैं दूसरी पारी खेलने को तैयार हूँ। आप तो बस मेरे ऊपर चढ़ जाओ।

मेरा इशारा पाते ही अंकल मेरी टांगों के बीच में आ गए।

उन्होंने फिर से मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया लगाया और मेरी मुनिया के गुलाबी होठ खोल कर अपना लिंग उसके बीच रख दिया।

मैं अंकल के अगले प्रहार का इंतजार करने लगी।

अंकल ने मेरी दोनों टाँगें पकड़ी और एक ही झटके में पूरा लिंग मेरी देह में उतार दिया।

उनके धक्के बहुत जोरदार थे तो मैं भी क्यों कम रहती।

इस बार मैं भी अपने चूतड़ उछाल उछाल कर अंकल का सहयोग करने लगी।

मैं अंकल के हर प्रहार का उसी अंदाज़ में पलट कर जवाब दे रही थी।

अंकल अपने दोनों हाथों से मेरी छातियां मींझ रहे थे तो मैं भी अपने दोनों हाथों से उनके निप्पल को खींच खींच कर मजा ले रही थी।

कुछ सेकंड के प्रेमयुद्ध के बाद हम दोनों ही परास्त हो गए.

अंकल ने अंतिम प्रहार किया और मेरे बराबर में आ गिरे।

मैंने अंकल की छाती चूम ली।

करीब 10 मिनट हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे।

मैंने घड़ी में टाइम देखा, रात के 1:30 बज चुके थे.

मैं फिर से अंकल की छाती से खेलने लगी।

अंकल ने मेरी तरफ देखा और बोले- डेढ़ बज गया है। अब हमें चलना चाहिए।

मैं अभी और खेलना चाहती थी।

पर अंकल शायद थक चुके थे क्योंकि वे तो दिन में आंटी के साथ भी बहुत खेल चुके थे।

उन्होंने मुझसे कहा- तुम पहले नीचे जाओ, मैं कुछ मिनट के बाद आऊंगा।

मन मार कर मैं अपने कपड़े पहन कर अपने कमरे में चली गई।

कुछ मिनट बाद अंकल भी नीचे आ गए और हम दोनों अपने अपने कमरे में सो गए।

दोस्तो, यह हॉट गर्ल और अंकल सेक्स कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, अभी भी बताने को बहुत कुछ है।

इस कहानी पर आप लोगों की प्रतिक्रिया देख कर ही आगे कुछ लिखूँगी।

अंकल और मेरे बीच का प्रेमालाप मुझे आज भी बदन में गुदगुदी कर देता है।

अभी के लिए इतना ही!

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