एक नौजवान के कारनामे 238

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2.5.21 मधुमास (हनीमून) योनि पूजा
1.3k words
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Part 238 of the 278 part series

Updated 04/23/2024
Created 04/20/2021
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पड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे

VOLUME II-विवाह और शुद्धिकरन

CHAPTER-5

मधुमास (हनीमून)

PART 21

योनि पूजा

मैंने ताई जी को देखा, उनके सामने हम दोनों बिलकुल नग्न थे तो मुझे बहुत शर्म आयी । एक सेविका ने आकर हमे तौलिया दिया जिससे हमने खुद की सुखाया। मैंने और ज्योत्स्ना ने अपना-अपना तौलिया अपने बदन पर लपेट लिया । हालाँकि उनकी उपस्थिति ने मुझे चौंका दिया था। फिर ताई जी बोली बच्चो शर्माओ मत यहाँ आओ और आसान ग्रहण करो ।

मैंने और ज्योत्स्ना ने उन्हें शर्माते हुए प्रणाम किया तो देखा वह साडी ओढ़ कर बैठी हुई हैं । हम दोनों उनके गए । एक दासी आयी और ज्योत्स्ना को ले गयी ।

पुत्र महाराज की नयी महारानी को आपने वीर्यदान दिए हुए काफी समय हो गया है फिर भी हमे अभी तक रानी के गर्भवती होने का शुभ समाचार नहीं मिला है । हम इसके लिए बहुत चिंतित हैं इसलिए हमने गुरूजी से इसके उपाय की प्राथना की है और उन्होंने परम शक्तिशाली योनि पूजा करने का आदेश दिया है और राजमाता ताई जी बोली पुत्र तुम जानते हो हम सब एक श्राप से ग्रसित हैं और उस श्राप के उपाय के तौर पर हमे ये उपाय करना होगा की आपको परिवार में माँ समान स्त्रियों से सम्बन्ध बनाना होगा, तब ये शाप समाप्त हो जाएगा और फिर कई संताने होंगी।

मैंने धीरे से कहा ताई जी इसमें कई बार समय लग जाता है ।

ताई जी बोली पुत्र पूज्य गुरु अमरमणि जी के आदेश से हमे पहले यहाँ योनि पूजा करनी होगी । हमे शक्ति मंत्र के साथ योनी की पूजा करनी होगी यह पूजा इतनी शक्तिशाली हैं कि ये नर्क से भी मनुष्य का उद्धार करती है और बहु तुम्हे इसी काम के लिए यहाँ पर लायी है । फिर उन्होंने मुझे योनि पूजा कैसे करनी है इस बारे में बारे में विस्तार से समझाया ।

क्योंकि उसने अपने कंधे के ऊपर से मुझे देखा, उसका चेहरा अचानक लाल हो गया था और वह थोड़ी घबराई हुई और खुद को लेकर अनिश्चित लग रही थी। उसे बेचैनी में देखना प्यारा था। उन्हें इतना असहज महसूस करते हुए देखकर मुझे थोड़ा रोमांच महसूस हुआ क्योंकि हमारा ताई और भतीजे का रिश्ता पल भर के लिए बदल गया था और वह मुझसे दिशा मांग रही थी। उन्होंने शर्माते हुए इधर-उधर देखा और जिससे सभी सेवक वहाँ से चले गए और फिर वह लगभग चीखते स्वर में आगे बोली। "योनि का पूजा कर्म है। गुरु साहब ने कहा... हमें योनी पूजा अनुष्ठान करने की आवश्यकता है। गुरु ने कहा कि।"

राजमाता ताई जी ने घबराकर अपना पल्लू ठीक किया, फिर अपने बाल, फिर अपना पल्लू फिर से ठीक किया, स्पष्ट रूप से असहज और मुझसे ऐसा कुछ बोलने में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

"गुरु साहब ने कहा हैं सबसे पहले तुम्हे म... योनि की पूजा करनी है..."

मैंने उस पल के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं भी चकित था ।

उन्होंने घबराकर अपना पल्लू फिर से ठीक किया, स्पष्ट रूप से असहज और मुझसे ऐसा कुछ पूछने में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उसने मुड़कर मुझे अपनी आँखों के कोने से देखा। निस्संदेह वह यह देखने के लिए प्रतीक्षा कर रही थी कि मैं क्या कहूँगा।

"गुरु साहब ने कहा हैं सबसे पहले तुम्हे मेरी योनि की पूजा करनी है क्योंकि श्राप के अनुसार आपको परिवार में माँ समान स्त्रियों से सम्बन्ध बनाना होगा और ताई भी माँ समान होती है ।"

मैंने उस पल के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि मैंने उन्हें थोड़ा असहज महसूस करते हुए देखने का विकल्प चुना। मुझे उन्हें असहज देखना अच्छा लग रहा था और उन्हें देख कर मुझे लगा कि मातृ अधिकार के साथ जीवन जीने वाली राजमाता का इस तरह घबराये हुए मुझे चोरी-चोरी देखना मुझे थोड़ा अजीब और रोमांचकारी महसूस हुआ, वह एक सर्व शक्तिशाली राजमाता से इस कांपती हुई छोटी लड़की में इतनी आसानी से बदल गयी थी। उन्होंने मुझे चुप देखकर कहा: बेटा अब हमें गुरूजी के निर्देश का पालन करना है और आप स्मरण करो आपने इस कार्य को संपन्न करने का संकल्प लिया है और मुझे पूरी योनि पूजा की विधि समझायी और बोली पुत्र अब हमे ये अनुष्ठान करना होगा। "

जी. ताई जी! मैंने कहा, आखिर में उन्हें जवाब दे रहा था। उन्होंने मुझे नजरे उठाकर देखा और पाया कि मेरी निगाहें उन पर टिकी हैं और वह और भी शरमा गई, उसका चेहरा रमणीय गुलाबी हो गया। उन्होंने फिर से अपने आप को सचेत महसूस करते हुए अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।

मैंने बोला । " तो ताई जी जैसा गुरूजी ने बोला है हम वैसा ही करेंगे!

"लेकिन पुत्र तुमने अभी तक भोजन नहीं किया है।" राजमाता की आवाज अस्थिर थी और मुश्किल से फुसफुसा रही थी।

"हम पहले योनि पूजा कर ले। मैं बाद में खा सकता हूँ, पहले पूजा करते हैं।" मैंने स्पष्ट रूप से कहा, मैं उनपर उस नियंत्रण का आनंद ले रहा था जो उन्होंने अनजाने में मुझे सौंप दिया था। दरअसल अब मैं ही उन्हें बता रहा था कि हमें योनि पूजा अनुष्ठान अभी करना चाहिए। यह अजीब था, कुछ देर पहले वह इस बात को लेकर चिंतित थी कि उन्हें मेरे साथ योनि पूजा करनी होगी और क्या मैं ये सब करने के लिए त्यार होऊंगा लेकिन यहाँ मैं राजमाता से कह रहा था कि अब हम इसे करने जा रहे हैं। अजीब बात है कि चीजें कैसे बदल जाती हैं।

"शायद, योनी का आशीर्वाद ही हमे उस शाप से मुक्ति दिला सकता है?" मैंने तनाव को थोड़ा कम करने की कोशिश करते हुए मुस्कुराते हुए जोड़ा। राजमाता के साथ थोड़े चुटीले मजाक करना थोड़ा जोखिम भरा था। राजमाता अभी भी योनी पूजा अनुष्ठान को एक धार्मिक कार्य के रूप में देखती थीं,

पुत्र हमे ये कार्य हमे अनुष्ठान की तरह ही करना होगा। ये बोलते हुए राजमाता पहले तो घबराहट के साथ मुस्कुरायी और मुझे लगा घबराहट से उनका शरीर शिथिल होने लगा है,

मैंने कहा ताई जी आप चिंता मत करे । हम गुरूजी के आदेश का पालन कर, ये कार्य अवश्य मिल कर करेंगे और आप थोड़ा सहज हो जाईये और मुस्कुराईये ।

मैंने मजाक-मजाक में उनके नाक पर चिकोटी काटी और उन्हें गुदगुदाने का नाटक किया जिससे वह थोड़ा सहज महसूस करें। मैं उनकी आज्ञा मान कर उनके मनोरथ पूरा करने के लिए तत्पर हो गया था ये सोच कर वह अब खुश दिख रही थी । वह मेरे साथ थोड़ी खिलखिलाती हँसी में शामिल हो गई। हम कुछ देर साथ में हँसे, हम दोनों सहज हो गए और आपसी तनाव को दूर करने का आनंद लिया।

"बस, बस पुत्र" उन्होंने मुझसे निवेदन किया और उनकी प्यारी-प्यारी हँसी धीमी हो गई और उनके गर्म और सुंदर चेहरे पर एक विस्तृत मुस्कान आ गई। उन्होंने मुझसे कहा कि जाओ और अपनी आंखों में उत्साह और आराधना के मादक संकेत के साथ अपने प्रार्थना के कपड़े पहन लो।

मैंने वहीँ रखे अपने कपड़े पहने तो उस समय मेरे दिमाग में राजमाता की सेक्सी छवियों घूम रही थी मेरा लंड मेरी धोती के भीतर धड़क रहा था, कड़ा हो रहा था और दर्द कर रहा था। क्षणों में मैं तैयार हो गया था और अपनी पहले से ही योनि मुद्रा में बैठी राजमाता के पास उस गया और वह मौन प्रार्थना कर रही थी।

वहाँ एक योनि आकार का गोला बना हुआ था वह आकर उस चक्र में बैठ गयी और में उनके पास बैठ गया । जो तांत्रिक पुजारी वहाँ उपस्थित था उसने कुछ मन्त्र पढ़े और अग्नि में कुछ सामग्रियाँ डाली और उसके बाद मैंने और ताई जी ने मिल कर इस पूजा के सफल होने की प्राथना की। और फिर वह तांत्रिक और अन्य सभी लोग उस स्थान से दूर चले गए । तांत्रिक के जाने पर उस स्थान पर केवल मैं और ताईजी रह गए. मैंने ताई के माथे पर तिलक लगाया और उनहे सुंदर कपडे और गहने पहनाये । अब हम पूजा कर रहे थे और उनका राज्य के लिए वारिस का मनोरथ पूरा होने वाला था ये सोच कर वह खुश दिख रही थी ।

जारी रहेगी

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