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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 89
विवाह की तयारी
सुबह 9 बजे
घाटराष्ट्र
बलदेव अपने कक्ष में जा कर सो जाता है क्यूकी रात भर युद्ध कर के वह थक गया था । शमशेरा अपने मित्र बलदेव के लिए पंडित और अन्य कामो का ब्यौरा निकाल कर उनको निपटाता है।
देवरानी को ले कर कमला और श्रुष्टि उसके कक्ष में जाती है।
कमला: चलो पहले महारानी को मेहंदी लगा दू।
शुरष्टि: नहीं कमला पहले हल्दी लगती है।
देवरानी: बाबा ऐसा करो हाथो और पैरो पर श्रुष्टि दीदी मेहंदी लगा देगी और तब तक तुम हल्दी लगाओ।
श्रुष्टि: देखो कितनी जल्दी है बन्नो को । वैसे मुझे दीदी कह रही हो पर आज से तो तुम मेरे बेटे बलदेव की पत्नी बनने जा रही हो...देवरानी बहू!
श्रुष्टि के ये बोलते ही जहाँ कमला खिल खिलाती है वही देवरानी लज्जा जाती है।
देवरानी: दीदी...!
देवरानी तुनक कर मनी करती है, इशारे से कहती है ऐसा ना कहो!
श्रुष्टि: भाई बात तो सही है अब हम सौतन नहीं रही अब तो तुम इस घर की बहू बंनने वाली हो!
देवरानी अपना सर निचे कर के अपनी अपने आप पर गर्व करती है।
श्रुष्टि पहले देवरानी की पैरो पर मेहंदी लगाती है और कमला मेहंदी वाला हिस्सा छोड़ कर देवरानी के अंग-अंग में हल्दी और चंदन की मालिश करने लगती है।
देवरानी: धीरे कमला!
कमला: ओह! अब मेरा छूना क्यू पसंद आएगा । जब दूल्हा जो मिल रहा है।
देवरानी: री चुप कर, एक बात भूल गई.।
कमला: क्या महारानी?
देवरानी: इनके मित्र तो ही नहीं और उनको भी याद नहीं रह रहा उन्हें बुलाना!
कमला: ओह हो! उनके! किन्के मित्र?
कमला हल्दी ले कर अब देवरानी के सुंदर चेहरे पर मलती है।
देवरानी: पगली...राजा बेटे के मित्र! बद्री और श्याम!
शुरुष्टि: वो तो बलदेव को सोचना था ना।
देवरानी: अब वह नहीं याद रख पाये तो मेरी ज़िम्मेदारी है उनको अमंत्रित करना...श्रुष्टि दीदी आप कुछ कर सकती हैं।
शुरष्टि: ठीक है मैं सोमनाथ से बात कर किसी को भेजती हूँ। उनको निमंत्रण भेजवा देते हैं।
देवरानी: धन्यवाद दीदी!
शुरष्टि: बस धन्यवाद मत कहो । मैंने जितना तुम लोगों का दिल दुखाया उसके बदले में तो ये कुछ भी नहीं...और तुम लोगों ने मेरी जान बादशाह शाहजेब से बचा ली, तुमने मेरी इज्जत बचाई जिसका एहसान मैं जीवन भर याद रखूंगी ।
ये कह कर आत्म ग्लानि से श्रुष्टि का चेहरा उतर जाता है।
देवरानी: छोडीये दीदी । सुबह का भुला शाम को वापस आ जाए तो उसे भुला नहीं कहते।
श्रुष्टि भी अब देवरानी को दो पत्तों को मदद से हल्दी लगाती है।
श्रुष्टि: ठीक है अब तुम मेहंदी को सुखा देना फिर सोना, मैं जा कर बद्री और श्याम को निमंत्रण भेजवा देती हूँ।
कमला: रानी श्रुष्टि फेरे आज 5 बजे ही होंगे ना?
श्रुष्टि: हाँ बाबा 4 बजे बन्नो को उठा देना!
कमला अब श्रुष्टि को महारानी नहीं बुला रही थी जिसे सुन श्रुष्टि को अटपटा लगता है पर वह बदलते समय का भाव समझ रही थी।
देवरानी: आप भी आराम कर लीजिये दीदी!
श्रुष्टि: अब मुझे कहाँ आराम मिलेगा, जिसके बेटे का विवाह हो वह आराम नहीं कर सकती ।
इतने में जीविका वहाँ आती है।
कमला: आइए महारानी जीविका!
देवरानी: आइये माँजी!
देवरानी अपना पल्लू ठीक करती हुई कहती है।
जीविका के पास वह रखे एक आसन पर बैठ जाती है और एक लंबी सांस लेते हुए कहती है ।
जीविका: तुम सबको निमंत्रण दे रही हो और मेरे बेटा वहा कारावास में बंद है।
शुरष्टि: माँ जी आपको पता है बलदेव के निर्णय के विरुद्ध कोई नहीं जा सकता है ।
जीविका: परंतु घर में बेटे का विवाह है और बाप करवास में रहे, क्या ये ठीक लगेगा और वैसे भी उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनायी है।
ये कह कर जीविका की आँखे नम हो जाती है।
कमला: ये बात तो है महाराज राजपाल परिवार के सदस्य हे । अगर वह विवाह का समय नहीं होंगे तो बुरा तो लगेगा ही ।
देवरानी: माँ जी आप रोये नहीं, मैं महाराज बलदेव से बात करती हूँ, मुझे विश्वास है मेरा राजा बेटा मान जायेगा।
जीविका: तुम्हारी मानेगा क्यों नहीं जब उसकी माँ इतने महीने से उसे पत्नी का सुख दे रही है। तुम दोनों को विवाह की ऐसी भी क्या पड़ी थी । वैसे भी कर सब कुछ कर ही रहे हो।
देवरानी: महारानी जीविका...ये आपकी गलतफहमी है । मैं ऐसी नारी नहीं की प्रेम के भाव में आकर बहक जाऊँ । मैंने बलदेव को कभी सीमा से आगे नहीं बढ़ने दीया क्यूकी हमेशा मेरा दिल भगवान को साक्षी माने बिना विवाह से पहले के सम्बंध या सहवास करने से डरता रहा। पर अब लगता है कि मैं गलत थी । जब ऐसे अरोप मुझ पर लग ही रहे हैं तो मुझे लग रहा है मुझे बलदेव को रोकना नहीं चाहिए था।
शुरष्टि: माँ जी रहने दीजिए ना । आप दोनों बाद में लड़ लीजिएगा । आज इनका विवाह है। देवरानी बुरा मत मानो इनकी बात का । हमें पता है तुम कितनी पवित्रा हो।
कमल: महारानी देवरानी! दुनिया वाले कुछ भी बोले पर हमें पता है ना आप अपनी मान मर्यादा का कितना पालन करती रही हैं।
शुरष्टि: चलिए सासु मां! देवरानी तुम जल्दी सो जाओ. फिर तुम्हारे उठने के बाद मैं तुम्हें तैयार करती हूँ।
श्रुष्टि जीविका को ले कर चली जाती है।
कमला: अब आप मत सोचिए कुछ, मेहंदी सुखने के बाद सो जाए. मैं भी जाती हूँ 4 बजे आउंगी फिर आपको तैयार करती हूँ।
देवरानी: कमला सुनो ना "धन्यवाद!"
कमला: क्या महारानी?
देवरानी: आज जो ख़ुशी मुझे और बलदेव को मिलने जा रही है । या जो भी सुख औअर ख़ुशी अब तक मिली है वह सब तुम्हारे कारण ही है और तुम ही उस कठिन समय में मेरा सहारा थी ।
कमला: छोडो भी महारानी! तुम्हारे मदक शरीर और सुंदर मुखरे ने ही बलदेव को लुभाया है और फिर हस देती है।
देवरानी: कामिनी! जाओ यहाँ से।
कमला चली जाती है देवरानी हल्दी लगाने से और खिल रही थी । साथ ही उसके हाथो और पैरो पर मेहंदी बहुत जच रही थी।
देवरानी, देखती है कि मेहंदी का रंग कैसा आ रहा है।
बाहर शमशेरा सैनिकों से कह कर पंडित और भंडारे का इंतेज़ाम करवा रहा था।
देवरानी जैसी ही देखती है उसके हाथों की मेहंदी अब सुखने लगी तो वह बिस्तर पर पड़ जाती है।
देवरानी: तो अब मैं जाति हूँ । बेटा बलदेव आज अपनी माँ को पत्नी बना कर थका तो देगा ही ।
ये सोच कर देवरानी मुस्कुरा कर सो जाती है।
महल को फूलो से सजाया जाता है । चारो तरफ मंडप लगाया जाता है जहाँ पर भंडारा होगा । शमशेरा बाज़ार से फूलो के साथ हजारो दिये ले आता है और सेवको को आज्ञा देता है कि जैसे ही पूरे महल में अँधेरा हो है हज़ारो दियो को जला कर महल को जगमगा दिया जाए ।
शाम 4 बजे
"बलदेव उठ जाओ! "
ये शमशेरा था जो बलदेव को उठा रहा था।
बलदेव: अभी-अभी तो सोया था भाई!
शमशेरा: भाई! देखो आज तुम्हारी शादी है, अगर नहीं करनी है तो सोते रहो।
ये सुनते हे बलदेव झट से दोनों पैरो पर उठ खड़ा होता है।
बलदेव: सब तैयारी हो गयी?
शमशेरा: भाई तुम्हारी माँ तुमसे शादी करने के लिए तैयार है, बाकी कुछ त्यार हो ना हो क्या फर्क पड़ता है?
बलदेव: जलो मत, बड़े भाई! ।बोलो ना पंडित भंडारे सब की तयारी हो गयी?
शमशेरा: हाँ बस तुम माँ बेटे के लिए सुहागरात की सेज सजानी है । इसलिए उठो और जाओ यहाँ से।
बलदेव: ठीक है भाई1
शमशेरा: वैसे सुहागरात तुम्हारी माँ के होज़रे में मनाओगे या बाप के?
बलदेव: भाई हम नया रिश्ता शुरू कर रहे हैं और मैं नहीं चाहता कि मेरी माँ को कुछ पुराने बुरे दिन याद भी रहें, मैं उनके साथ अपने कक्ष में ही सुहागरात मनाऊंगा।
उधर देवरानी अंगड़ाई ले कर उठती है और उसी समय ही कमला देवरानी के कक्ष में घुसती है।
देवरानी: आगयी तुम कमला क्या समय हो गया?
कमला: अंगड़ाई ले रही हो...घबराओ नहीं महारानी अभी 1 घंटा और बाकी है। फिर तुम्हारी रात भर कुटाई होगी...वैसे नींद पूरी हुई की नहीं?
देवरानी: सुबह से तो सो रही हूँ नींद तो पूरी होगी ही ना।
कमला: हाँ भाई, कोई बात नहीं आज रात भर जगना जो है।
देवरानी: चुप कर बेशरम...पंडित जी आये के नहीं?
कमला: हाँ वह हवन कुंड लगा कर अपनी तयारी कर रहे हैं ।
देवरानी: मुझे राजपाल के लिए बलदेव से बात करने थी ।
कमला: तुम क्यू उस बूढ़ी के दर्द को समझ रही हो, जब वह कभी तुम्हारी तकलीफ तुम्हें नहीं समझी ।
देवरानी: कमला में आज एक नया रिश्ता बनाने जा रही हूँ। अब वह मेरी सांस नहीं मेरे बेटे मेरे पति की दादी है और मुझे सब को जोड़ना है, तोड़ना नहीं है। एक परिवार बनाना है।
कमला: कितने सुंदर विचार हैं आपके महारानी, पर अब आपको हल्दी लग गई है। अभी आप सुहागरात से पहले अपना चेहरा बलदेव को नहीं दिखा सकते।
देवरानी: तो क्या करूँ...अगर माँ जीविका चाहती है, की एक दिन के लिए ही सही, राजपाल को घर में रखा जाए तो क्या उन्हें कारागार से निकाल लेना ठीक होगा?
कमला: अब मैं कैसे कहू पर अगर वह आकर इस विवाह में कुछ बाधा बने तो?
देवरानी: ऐसा नहीं होगा कमला क्यूकी अब मेरा बेटा महाराज है । उसके निर्णय को सबको मानना पड़ेगा।
कमला: तो ऐसा करो युवराज शमशेरा से बुला कर बलदेव से बात करने के लिए उसे कह दो ।
देवरानी: नहीं देवरानी, मैं इस हाल में बलदेव को छोड़ के किसी गैर मर्द से नहीं मिल सकती। ऐसा करो तुम शमशेरा को कह दो वह समझ जाएगा मैं क्या चाहती हूँ। फिर वह बात कर लेगा बलदेव से।
कमला: ठीक है मैं कह दूंगी चलो अभी आपको स्नान कराना है तैयार भी करना है। समय कम है...!
जारी रहेगी...