महारानी देवरानी 090

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माँ बेटे का शुभ विवाह!
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Part 90 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 90

माँ बेटे का शुभ विवाह!

शाम के 4 बज रहे थे बलदेव भी उठ कर तैयार हो रहा था कि देवरानी को भी कमला ने उठा दीया था । महल के बीचो बीच खाली जगह पर पंडित जी अपनी तैयारी में व्यस्थ थे।

कमला: जल्दी चलो महारानी हमारे पास तयारी के लिए केवल एक घंटा है।

देवरानी: हम्म चलो।

देवरानी कमला को ले जाने लगती है स्नान घर में तभी वह शुृष्टि आ जाती है।

शुरष्टि: अरे ये क्या दुल्हन को क्या हम नहीं नहलायेंगे?

देवरानी: धत्त!

शुरष्टि: पीछे देखो महारानी देवरानी!

देवरानी शुृष्टि के पीछे देखती है तो उसे औरतों का झुंड दिखाई देता है।

शुरुआत: मेरी बन्नो दुल्हन बनेगी तो गीत तो होगा ही।

देवरानी लज्जा कर अपना सर झुका लेती है।

शुरुआत: लज्जा तो ऐसे रह रही है जैसे इसे बलदेव बेटे की दुल्हन नहीं बनना है?

देवरानी झट से बोलती है।

देवरानी: बनना है।

और ये सुन कर कमला सहित सब हस पढ़ते हैं।

शुरुष्टि: चल अब हम तुम्हें तैयार करें।

सभी औरते अंदर आती है और मंगल गीत गाने लगती है।

" दुल्हन तोरा मरद बड़ा रसिया,

रात भर तोड़े है खटिया।

दुल्हन तोरा मरद जाने सब खेल,

ऐसा झटका मारे जैसे हो बेल।"

ये गाते हुए सब औरतें हस रही थीं और ये सुनते ही देवरानी लज्जा कर अपनी आँख बंद कर लेती है, कमला सब से पहले देवरानी के अंगो पर लगी हल्दी को पानी से धोती है फिर शुृष्टि केसर मिले दूध से देवरानी को नहलाती है।

थोड़े देर में स्नान करा कर देवरानी बाहर आती है और उसे देख कर सब औरतें ताने मारने लगती है।

कमला: महारानी तो दूध से भी गोरी लग रही है।

शुृष्टि: लगेगी क्यू ना? मेरे बेटे की पसंद जो है।

देवरानी फिर लज्जा जाती है।

अब देवरानी ने एक पेटीकोट को अपने दूध तक चढ़ाया हुआ था तभी कमला देवरानी को ब्लाउज देती है।

कमला: महारानी इसे पहन लो!

देवरानी: मेरे अन्दर से पहन कर आती हूँ मुझे यहाँ पर पहनने शर्म आती है।

कमला: बड़ी शर्मीली दुल्हन है।

देवरानी अपना वस्त्र ले कर स्नान घर में घुस जाती है और उसके अंदर आने का दूसरा कारण भी था उसे अंदर ब्रेज़ियर और जंघिया पहनना था ।

देवरानी सब से पहले अपने जंघिया को हाथ में लेती है और अपनी भारी भरकम पैरो को उठा कर जंघिये में दाल देती है फिर अपने हाथ नीचे ले जाकर हाथो से उसे ऊपर खिसकाने लगती है । जब जंघिया घुटने पर आ जाती है तो देवरानी अपने को ऊपर उठा कर पेटीकोट को ऊँचा उठा कर जंघिया को ऊपर से पकड़ के ऊपर खींचती है और अपनी मांसल चिकनी जांघो से खीचते हुए जनघिये को अपने भारी गांड में फसा लेती है।

देवरानी अपने पास से ब्रेज़ियर उठा के दोनों कंधो में लेते हुए घूमा के हुक लगाती है फिर दोनों छतियो के आकार को अपने भारी दूध के पास रखती है। एक हाथ से पेटीकोट को दूधो से नीचे करती है। फिर एक दूध से अलग करती हैऔर दोनों हाथ से अपने भारी दूध को ब्रेज़ियर मैं कैद करने की नाकाम कोशिश करती है । थोड़ी मेहनत के बाद दूध ब्रासिएर में आ जाते हैं पर फिर भी दोनों दूध इतने बड़े थे की दोनों बगल से मम्मे साफ दिख रहे थे और देवरानी के दूधो के बीच की गहरी खाई इतनी गहरी दिख रही थी कि कोई भी उसमे समा कर खो जाए । उसके जंघिया भी उसकी तरबूजे-सी गांड को संभाल नहीं पा रहे थे । देवरानी के जंघिया को ज्यादा ऊपर खींचने के लिए वजह से दोनों गांड की पट नितम्ब जंघिया से साफ देखी जा सकती थी और आगे भी जंघिया ने सिर्फ चूत के भाग को छुपाया था।

देवरानी: हाय ये जांघिए मेरे नितम्बो पर कितनी कस के बैठ गई है । मेरे यौवन के लिए ये जंघिया और ब्रेज़र बहुत छोटी है।

देवरानी अब अपना ब्लाउज पहनती है फिर घाघरा पहनती है और नाडा बाँधने लगती है।

देवरानी: (मन मैं) ज़ोर से नहीं बांघूँगी नहीं तो बेटा बलदेव इसे खोल नहीं पाएगा।

फिर वह अपनी सोच पर एक तरफ जहाँ वह लज्जा जाती है वही दूसरी तरफ उसकी चूत में एक चींटी रेंगती है।

कमला: महारानी जल्दी बाहर आओ भी। सुहागरात अंदर ही नहीं मनानी है।

देवरानी बाहर आती है, सारी औरतें फिर से गीत शुरू कर देती हैं और देवरानी का शृंगार शुरू हो जाता है।

शुरष्टि: सोलह शृंगार कर के तो अप्सरा जैसी हो जाएगी मेरी बहू!

देवरानी: दीदी...!

देवरानी की आँखों में काजल लग जाता है फिर होठों पर लाली, बादाम के चुरे को देवरानी के चेहरे पर लगाया जाता है। कमला और बाकी औरतें हाथो और पैरो के नखुनो को भी लाल रंग से रंग देती हैं।

कमला: हाथ लाओ महारानी चूड़िया पहन दूं।

औरते दोनों तरफ से देवरानी के हाथो में चूड़िया पहना देती है।

उतने में देवरानी की कक्ष में जीविका आ जाती है । और सब औरते गीत गाना बंद कर देती हैं।

शुृष्टि: आइए माँजी और तुम लोग चुप क्यों हो गयी । जाती रहो। आज मेरी बन्नो का विवाह है।

जीविका चुप चाप खड़ी हो कर देखने लगती है।

देवरानी के ऊपर अब चमेली के तेल से चिढ़काव किया जाता है जिस से देवरानी के शरीर से खुशबू उठ कर पूरी कक्षा में फ़ैल जाती है।

कमला नीचे बैठ जाती है और बारी-बारी से देवरानी के पैरो में पायल पहनाती है।

और शुृष्टि उसके हाथो के चूडियो के साथ कंगन पहना रही थी ।

शुरष्टि: लाओ अब बन्नो को मैं हार पहना दूं।

शुरुआत सोने के हार से देवरानी के गले को भर देती है।

देवरानी: इतना सब!

शुरुआत: हाँ इसमें कुछ गेहने मेरे पिता जी ने दिये थे जो आज से तुम्हारे हुए।

शुरष्टि नथ निकाल कर देवरानी की नाक में डालती है।

देवरानी: उफ्फ्फ आह!

कमला: नथ घुसने से आह निकल गई । महाराज बलदेव जब अपनी माँ की नथ उतारेंगे तो क्या होगा।?

ये सुन वहा पर खड़े सब औरते हसने लगती हैं।

शुरष्टि देवरानी को खड़ी करती है और देवरानी अपना पल्लू संभालती है।

शुरष्टि के हाथ में जो सोने का कमरबंद था देवरानी के कमर पर बाँध देती है ।

शुरष्टि: अब तुम्हारा कमर बंद हुआ इसे जो खोलेगा उसकी खैर नहीं, संभलना महारानी कोई खोले नहीं!

और शुरष्टि एक कातिल मुस्कान देती जिसे देख कर सब हस पड़ते हैं इस बार तो जीविका के चेहरे पर भी मुस्कान आती है।

जीविका: (मन में) आखिर इन दोनों ने अपनी जिद पूरी कर ली।

देवरानी की नज़र जीविका पर पड़ती है और अपने होने वाली दादी सास को खुश देख कर उसे बहुत खुश होती है।

देवरानी अब ऊपर से नीचे तक तैयार थी।

शुरष्टि: इधर आयने के पास आओ महारानी।

देवरानी जा कर आयने के सामने बैठ जाती है।

शुरष्टि: अपने आप को देख कर कहो कि हम से कहि कोई कमी तो नहीं रह गई।

देवरानी अपनी आप को आईने में देखती है और खुद को देख उसे खुद विश्वास नहीं होता के वह इतनी सुंदर लग सकती है।

कमला: महारानी तो चाँद-सी खिल रही है।

उधर बलदेव तैयार हो रहा था।

बलदेव: शमशेरा तुमने मेरे लिए ये सब लाए हो मुझे विश्वास नहीं हो रहा को तुम इतने जिम्मेदार हो।

शमशेरा: भाई मुझे जिम्मेदारी लेना आता है पर वह बात अलग है मुझे लेता नहीं हूँ।

शमशेरा बलदेव के लिए शादी का नया जोड़ा और जूती लाया था जिसे नहा धो कर महाराज बलदेव पहन लेता है।

शमशेरा: ये लो कस्तूरी!

बलदेव: ये क्या है।

शमशेरा: मल लो अच्छे से इसे । बीवी कभी तुमसे दूर नहीं भागेगी।

बलदेव: ऐसा है मेरी माँ नहीं भागे मुझे छोड़ कर बस। अच्छा लगा लेता हूँ।

बलदेव इत्र ले कर लगा लेता है और उसके जिस्म से फूलो की खुशबू आने लगती है।

शमशेरा: तैयार हो ना शादी करने के लिए!

बलदेव: हम अब पूरे तैयार है।

तभी वहा सोमनाथ आजाता है।

सोमनाथ: महाराज वह राजा राजपाल कारागार से भागने की कोशिश कर रहे थे।

बलदेव: उन्हें बाँध कर मेरे पास लाओ।

सोमनाथ: बाँध के?

शमशेरा: अरे हा! मुझे याद है ही नहीं रहा, कमला ने कहा था कि देवरानी खाला कह रही थी कि नियम अनुसार शादी में उन्हें छोड़ देना चाहिए.

बलदेव: देवरानी ने कहा ऐसा?

बलदेव: (मन में) ये नियम जरूर दादी जीविका ने बताया होगा।

सोमनाथ: महाराज ये बात भी है कि किसी भी कैदी को घाटराष्ट्र के किसी भी उत्सव या विवाह में हम कारागार से बाहर रखते हैं और घाटराष्ट्र में बहुत पहले से ऐसा ही होता आ रहा है।

बलदेव: पर अगर वह हाथो से निकल गया तो?

सोमनाथ: मुझे उसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ मैं कहीं भागने न दूँगा।

बलदेव: नहीं, मेरा विवाह होने वाला है, मैं अब कतई विश्वास नहीं कर सकताउस तुच्छ व्यक्ति पर । तुम एक काम करो, उसके हाथ बाँध कर मेरे सामने लाओ।

सोमनाथ: महाराज वह आपके मित्रो को भी हमने खबर भेजवा दी है पर वह लोग शायद ही आज पहुँच पाए ।

बलदेव: कोई बात नहीं तुमंने अच्छा किया । अगर उन्हें देर भी हो जाए तो भी कल तक तो हमारा भंडारा कार्यक्रम चलता रहेगा।

सोमनाथ: जो आज्ञा महाराज!

कह कर सोमनाथ चला जाता है।

शमशेरा: तुमने अपने मित्रो को क्यों नहीं बुलाया?

बलदेव: उनको आने में समय लगता और मेरे पास ज़्यादा समय नहीं था क्यूकी माँ का प्रिय भाई कभी भी यहाँ टपक (आ) सकता है।

शमशेरा, तो क्या उसने अपनी मंजूरी नहीं दी है?

बलदेव: भाई भला एक भाई अपनी बहन को कैसे कह दे, कर लो अपने बेटे से विवाह।

शमशेरा: हाँ वह भी है!

बलदेव: मैंने कहने की हिम्मत तो जुटाई थी पर उन्होंने मुझे उत्तर थप्पड़ से दिया था ।

शमशेरा: ठीक है वह सब भूल जाओ, अभी तुम खुश रहो और शादी करो!

बलदेव: तुम ठीक कहते हैं चलो!

शमशेरा और बलदेव नीचे आते हैं और सीढ़ियों से महल के बीचो बीच खाली जगह पर मंडप लगा हुआ था, जहाँ पंडित अपनी तयारी कर चुके थे और यज्ञ के लिए यज्ञ की वेदी में आग में घी डाल रहे थे।

पंडित: महाराज की जय हो!

पंडित बलदेव को देख उठ खड़ा होता है और हाथ जोड़ कर नमन करता है।

बलदेव: अरे पंडित जी आप बैठिये । कृपया आप अपना काम करें!

पंडित बैठ जाता हैऔर फिर अपने काम में लग जाता है।

तभी सोमनाथ राजपाल के हाथों को बाँधे हुए बलदेव के पास ले आता है।

बलदेव: सोमनाथ उसके मुंह पर पट्टी बाँधो।

पंडित अपने पिछले राजा को इस तरह बंधा हुआ देख भयभीत हो जाता है।

सोमनाथ झट से कपडे से राजपाल का मुंह बाँध देता है।

बलदेव: शमशेरा कोई मेरी कक्ष में तो नहीं है ना अभी?

शमशेरा: नहीं पहले मैंने दासियों को सुहागरात का सेज सजाने भेजा था और मेंने खुद खड़ा रह कर काम करवाया है । अब वह सब बाहर भंडारा बना रहे हैं।

बलदेव: ठीक है...सोमनाथ तुम इसे मेरे कक्ष के बगल के कक्ष में जो हमारे अतिथियो के लिए है, उसमें इसे ले जा कर कुर्सी पर रस्सी से बाँध दो।

राजपाल गुस्से से अपनेआँखे तरेरे बलदेव को देखता है।

बलदेव: गुस्सा आ रहा है हाहाहा! देखो सामने पंडित है अब मैं और माँ देवरानी विवाह के लिए मंडप में बैठ जाएंगे और फिर तुम ऊपर कक्ष में बंद रहोगे।

सोमनाथ झट से राजपाल को खीचता हुआ सीढ़ियों से ऊपर ले जाता है और बलदेव के बगल वाले कक्ष में कुर्सी पर बैठा के राजपाल को अच्छे से बाँध देता है।

सोमनाथ बाहर आकर कक्ष का दरवाजा बाहर से बंद कर देता है।

पंडित: आइए महाराज आकर बैठिए.

बलदेव: हम तो कब से बैठने को तैयार हैं।

वैध जी बाहर से अंदर आते हैं ।

वैध: बेटा बलदेव! दूल्हा बन के बहुत जच रहे हो ।

बलदेव; प्रणाम, धन्यवाद वैध जी.

पंडित: महाराज कन्या को बुलाए 5 बज गए।

बलदेव शमशेरा को इशारे से कहता है।

शमशेरा देवरानी की कक्षा के पास जा कर कमला को पुकारता है ।

शमशेरा: कमला जल्दी करो पंडित जी बुला रहे हैं।

कमला: रानी साहिबा! ये कौन है?

शुरष्टि: कमला! ये शमशेरा है बलदेव का मित्र।

कमला: मेरे बन्नो अब जाने का समय आ गया है।

शमशेरा कमला को आने के लिए बोल कर दरवाजे बंद पर कर वापस आ जाता है।

शुरष्टि और कमला नजर उतार कर देवरानी को पकड़ कर उठाती है। देवरानी घूंघट करती है।

देवरानी अंदर ही अंदर कांप रही थी जिसे कमला भांप जाती है।

कमला: चलिए महारानी हिम्मत कीजिए!

देवरानी के मन में हजारो ख्याल आ रहे थे और वह धीरे-धीरे कदमो से शुरष्टि और कमला के साथ चल रही थी।

देवरानी (मन में) : हाय! मुझे ऐसा क्यों लग रहा है के ये मेरा पहला विवाह है। आज से मेरा पति बलदेव होगा, जो मेरा बेटा भी है । सब क्या कहेंगे । हम कैसे एक दूसरे के साथ आगे का जीवन व्यतीत करेंगे, क्या मुझे बलदेव जीवन भर ऐसा ही प्रेम करेगा । लोग क्या कहेंगे? आज से रोज़ बलदेव के कक्ष में सोना होगा मुझे।

ये सोच कर देवरानी को एक सिहरन-सी होती है और एक क्षण के लिए अपनी आँख बंद कर लेती है।

कमला: महारानी हम सब आप के साथ हैं और वैसे भी आपका पति आपका बेटा है, तो आप घबराएँ नहीं सुहागरात अच्छी होगी ।

कमला परेशान देवरानी का ध्यान भटकाने के लिए कहती हैं जिसे सुन कर सब हस पढ़ते हैं।

देवरानी भी अब हल्का मेहसूस कर रही थी । उसके पीछे राधा और जीविका भी चल रही थी पर जीविका के चेहरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह खुश नहीं है।

जीविका (मन में) : आखिर इन दोनों माँ बेटे ने अपने मन की कर ही ली ।

सब महल के बीचो बीच पहुचते है। तभी श्रुष्टि की नज़र सीढ़ियों से उतर रहे सोमनाथ पर पड़ती है और वह पूछती है ।

शुरुष्टि: शमशेरा ये सेनापति ऊपर से क्यू आ रहा है?

शमशेरा बात पलट कर के उत्तर देता है।

शुरष्टि: वो बलदेव ने किसी काम से भेजा था...आप उसे छोडीए! ये शादी का वक्त है।

शुरुष्टि: हम्म!

कमला: पंडित जी कन्या को लाएँ क्या?

पंडित: हाँ जजमान जल्दी करो। अब और समय नहीं है।

बलदेव अब भी बैठा था वह पलट गया तो उसकी नज़र सोमनाथ पर पड़ती है और सोमनाथ इशारे से कहता है कि वह काम कर दिया। बलदेव फिर देवरानी को देखता है।

देवरानी को देखते हे बलदेव देवरानी की सुन्दरता में खो जाता है पल्लू किये हुई देवरानी का चेहरा चाँद-सा चमक रहा था।

बलदेव: (मन में) मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो ऐसी सुंदर पत्नी मिली है मुझे, माँ देवरानी मैं तेरा धन्यवाद कैसे करु?

पंडित: महाराज देखते ही रहिएगा । या कन्या को बैठने के लिए जगह देंगे।

बलदेव चुपचाप खिसक जाता है और देवरानी का हाथ पकड़कर शुरष्टि बलदेव के पास बैठा देती है।

पंडित विवाह की पूजा के मंत्र पढ़ना शुरू कर देता है।

सोमनाथ, शुरष्टि, कमला, राधा, जीविका वैध जी सब खड़े रहे और कुछ औरतें जो देवरानी को सवारने आयी थे सब विवाह देख रहे थे । पंडित जी मंत्रो का उच्चारण तेजी से कर रहे थे। बलदेव और देवरानी की धड़कन भी उतनी ही तेजी से धक-धक कर रहे थे।

बलदेव: (मन में) माँ अंदर से घबराई हुई है। शायद उनको अजीब लग रहा होगा अपने बेटे से जो सात फेरे लेने वाली है, थोड़े दिन मान को इन सब की आदत हो जाएगी ।

बलदेव (मन में) : सच में ऐसी पतिव्रता पत्नी पर कर में धन्य हो गया । भगवान ने ऐसी माँ को मेरी पत्नी के रूप में दिया । उनका लाख-लाख धन्यवाद! जरूर मैंने पिछले जन्म में अच्छे कर्म किए होंगे।

बलदेव देवरानी को देखा है जो अपने हाथ को हाथ पर रख कर बैठी थी। देवरानी के हाथ को बलदेव देखता है तो उसके सुंदर मेहंदी लगे हुए हाथ के साथ उसकी नजर देवरानी के मखमली पेट पर जाती है।

बलदेव: (मन में) माँ आज तो कुछ ज्यादा ही खिल रही है।

पंडित: महाराज कन्या के हाथ से ये उठा कर प्रसाद चढ़ाये।

बलदेव: हं हं!

देवरानी पल्लू के अंदर से तिरछी नजर से बलदेव को देख रही थी।

देवरानी: (मन में) बेटा अपनी माँ से विवाह कर रहा है। आज से तेरी ही होने वाली हूँ फिर भी जब से आयी हूँ सब के सामने मुझे कैसे प्यार देख रहा है।

ये सोच कर की बलदेव उसे कितना चाहता है, देवरानी थोड़ा खुश हो जाती है और उसके चेहरे पर मुस्कान फेल जाती है।

देवरानी झट से प्रसाद उठा लेती है। बलदेव भी अपना हाथ बढ़ा कर देवरानी के हाथ को नीचे से पकड़ता है और दोनों प्रसाद चढ़ा देते हैं।

देवरानी अपने हाथ के पीछे ले जा रही थी कि बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ाता है तो देवरानी अपना हाथ रोक लेती है, फिर बलदेव अपना हाथ देवरानी के हाथ को ऊपर रख देता है।

देवरानी का हाथ हल्का कांप रहा था बलदेव उसके हाथ को पकड़कर बैठ जाता है।

पंडित कुछ देर तक मंत्र जप करते हुए कहता है ।

पंडित: अब कन्या को घूंघट से हटा दो और अग्नि के फेरे ले लो।

बलदेव पंडित की ओर देखता है।

शुरष्टि: क्या हुआ बलदेव कुछ पल की ही तो बात है और वैसे भी यहाँ पर पराया कौन है सब अपने हैं, चेहरा खोल दो देवरानी। घूंघट हटा दो ।

देवरानी भी नहीं चाह रही थी अपना चेहरा खोलना पर शुृष्टि की बातों से अपना मन बदल लेती है।

बलदेव अपने बाये हाथ से देवरानी का घूंघट ऊपर करता है और देवरानी अपना घूंघट ऊपर कर पल्लू सर पर रख लेती है और एक मुस्कान देती है जिससे वह घबराई हुई है ये किसी को पता ना चले।

पंडित: वाह बेटी बड़ी सुंदर हो! महाराज अब आप दोनों अग्नि के फेरे ले लीजिए । बलदेव देवरानी का हाथ पकड़ कर खड़ा होता है और दोनों अग्नि के फेरे लेने लगते हैं ।

पंडित: विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं जिनका दांपत्य जीवन में काफी महत्त्व होता है। पंडित फेरो के समय मन्त्र बोलता जा आरहा था और साथ में बलदेव और देवरानी को मंत्रो का अर्थ और फेरो का महत्त्व समझा रहा था। कन्या अग्नि को साक्षी मान कर वर से वचन मांगती है ।

पंडित पहले फेरे पर कहता है-प्रथम वचन-किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्त्व को स्पष्ट किया गया है।

पंडित: (यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

दुसरे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित: दूसरा वचन-यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपर्युक्त वचन को ध्यान में रखते हूए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए। (कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

तीसरे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित: (तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

चौथे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित: चौथा वचन-इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।

(कन्या चौथा वचन ये मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

सब बड़ी गंभीरता से फेरे देख रहे थे और पंडित की बात सुन रहे थे तभी कमला कहती है ।

कमला: अब पांचवा फेरा है । भगवान महाराज और महारानी को संतान का सुख दे। पंडित जी मंत्र जरा ढंग से पढ़िएगा। हा।

और सब हसने लगते हैं

देवरानी: (मन में) हे भगवान ये कमला भी ना मुँह बंद नहीं रख सकती अभी से मेरे बच्चे पैदा करवा रही है।

बलदेव: (मन में) माँ का मुँह उतर गया कमला की बात सुन कर और बलदेव हल्का मुस्कुरा देता है।

पांचवे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित: पांचवा वचन-यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

(इस वचन में कन्या कहती जो कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्त्व रखता है। वह कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

छठे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित-छठा वचन- (कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्‍त्रियों के बीच बैठी हूँ, तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

सांतवे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित-सातवा वचन- इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।

(अंतिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

ऐसे ही 7 फेरे पूरे होते हैं पंडित जी इशारा करते हैं और दोनों बैठ जाते हैं।

पंडित कुछ देर बाद एक सिन्दूर की डिब्बी ले कर फ़िर मंत्र पढ़ने लगता है ।

पंडित: महाराज कन्या को सिन्दूर दान कीजिए!

देवरानी ये सुन कर सिहर जाती है।

बलदेव: (मन में) क्यू नहीं पंडित जी! इस समय के लिए मैं बहुत तड़पा हूँ। माँ की मांग अपने नाम के सिन्दूर से भरने के लिए मैं ततपर हूँ।

देवरानी: (मन में) मेरे बेटे बलदेव भर दो मेरी मांग । बना दो इस अभागन को सुहागन । मेरे बेटे बन जाऔ मेरे पतिदेव। मेरे स्वामी!

शुृष्टि पीछे से देवरानी के पल्लू को सरका कर उसकी मांग खोलती है । बलदेव डिब्बी से सिन्दूर ले कर देवरानी की मांग भर देता है तो देवरानी अपनी आख बंद कर लेती है।

देवरानी: धन्यवाद भगवान तूने इतना चाहने वाला पति दिया!

बलदेव: (मन में) आज से माँ जीवन भर बस मेरे नाम का सिन्दूर लगाएगी ।

पंडित: महाराज अब कन्या को मंगलसूत्र पहनाइये।

बलदेव नीचे से मंगलसूत्र उठा कर देवरानी की तरफ बढ़ता है।

देवरानी उसे देख रही थी।

देवरानी (मन में) : मेरे राजा! कितना बेसबर हो रहा है।

देवरानी के गले में डाल कर मगल सूत्र बाँध देता है।

बलदेव: (मन में) मेरी माँ अब तुम मेरी पत्नी हो।

देवरानी: (मन में) पतिदेव तो आज शादी के जोड़े में, 30 वर्ष के पुरुष लग रहे हैं । कौन कहेगा ये 18 वर्ष का है... शरीर से घोड़े जैसा जो हो गया है मेरा बेटा।

।बलदेव: (मन में) माँ तो 34, 35 साल की बिलकुल नहीं लग रही, ऐसा लग रहा है जैसे कोई 17 साल की कुंवारी स्त्री हो।

पंडित: अब आप दोनों पति पत्नी है।

ये सुनते ही वह पर उपस्थित सब लोग दोनों पर फूलों की बारिश कर देते हैं।

पंडित: अब एक दूसरे को वरमाला पहनाएँ।

देवरानी बलदेव को वरमाला पहनती है फ़िर बलदेव भी देवरानी को वरमाला पहनाता है।

शुरष्टि सब से पहले आकर देवरानी से गले लगती है।

शुरष्टि: मेरी बन्नो बधाई हो!

शमशेरा आकार बलदेव से गले मिलता है।

शमशेरा: शादी मुबारक हो दोस्त!

देवरानी देखती है कमला की आंखो में आसु थे और वह दरवाजे पर खड़ी देख रही थी।

देवरानी: कमला...!

कमला दौड़ के आती है और देवरानी से लिपट जाती है।

देवरानी: तू रो क्यू रही है पगली?

कमला: ये तो खुशी की बात है महारानी बधाई हो! आप को। सदा खुश रहो सुहागन रहो।

शुरुष्टि: बलदेव क्या अपनी माँ से नहीं मिलोगे।

बलदेव आकर श्रुष्टि के चरण छूता है और देवरानी को इशारा करता है।

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