तलाकशुदा महिला मित्र से प्यार

Story Info
तलाकशुदा महिला से लगाव होना और उसके साथ मिलन की कहानी
7.2k words
4.5
27
00
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

इस कहानी की शुरुआत वैसे तो काफी समय पहले हुई थी, लेकिन इस में गम्भीर मोड़ अभी हाल में ही आया। एक वॉटसअॅप ग्रुप, जिस में, मैं काफी सक्रिय था, उस की एक महिला सदस्य से जान पहचान थी, जिन का नाम निशा था। वह अपने जीवन में काफी उथल-पुथल का सामना कर रही थी। मुझे अंदाजा तो था लेकिन किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना मुझे पसन्द नहीं था इस लिये कभी उन से इस बारें में कुछ पुछा नहीं।

एक दिन दोपहर में उन का फोन आया कि क्या आप से मिलना हो सकता है? तो मैंने हाँ में जवाब दिया। वह और मैं एक ही शहर में नौकरी करते है। यह मुझे पता था। पांच बजे के बाद मिलने का बोला तो वह बोली कि आप 14 सेक्टर की मार्किट में मिल जाना। मैंने इस के लिये हाँ कर दी।

ऑफिस से निकल कर मैं सेक्टर 14 के मार्किट में गाड़ी पार्क ही कर रहा था कि वह महिला आती दिखाई दी। पास आ कर बोली कि आप समय के बड़े पाबन्द है। मैंने कहा कि जब किसी से वायदा किया है तो उस को पुरा करना ही पड़ता है। फिर आप तो परीचित है। वह मेरी बात सुन कर मुस्करा दी। इस के बाद हम दोनों एक रेस्तरा में जा कर बैठ गये। कॉफी ऑडर करने के बाद दोनों आराम से बैठे तो मैंने प्रश्नवाचक नजरों से उन को देखा तो वह बोली की आप से कुछ राय लेनी थी। मुझे आपका जिन्दगी के प्रति नजरिया पसन्द है। मैं उनकी तरफ देख कर मुस्कराया तो वह बोली कि यह बात सब के सामने नहीं की जा सकती है, इस लिये आप को यहाँ बुलाया हैं।

कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली कि मेरा वैवाहिक जीवन सही नहीं चल रहा है, तलाक का केस चल रहा था। अब मुझे तलाक मिल गया है। अब मेरे ऊपर कई फैसले लेने का बोझ आ गया है। समझ नहीं आया कि क्या करुँ तो यही सोचा कि आप से राय ले कर देखती हूँ। मैं चुप रहा, समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलुं? मुझे चुप देख कर वह बोली कि कुछ ज्यादा ही तो नही माँग रही हूँ आप से। मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि सोचती हूँ लड़के को किसी बोर्डिग स्कूल में डाल दूँ। लड़की अभी छोटी है उसे कुछ समय बाद अपने से दूर भेजने की सोचुँगी। मैंने कहा कि बात तो सही सोची है। लेकिन आप के ऑफिस जाने के बाद लड़की की देखभाल कौन करेगा? वह बोली कि ज्यादातर तो मेरी माँ मेरे साथ रहती ही है। वही उस की देखभाल करेगी।

आप को मेरे साथ बेटे को छोड़ने नैनीताल चलना पड़ेगा। मैं कोई निर्णय करने वाला ही था कि वह बोली कि आप की हाँ समझु। मैंने कहा कि आप मुझे पहले बता देना। वह बोली कि हाँ यह तो मैं करुँगी ही। वेटर कॉफी रख कर चला गया। दोनों कॉफी पीने लगे। कॉफी खत्म होने के बाद मैंने पुछा कि कुछ और लेना है तो वह बोली कि आज नहीं, आज तो आपकी हाँ ने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। बाद में कभी आराम से कुछ खायेगे पीयेगे। यह सुन कर मैं मुस्कराया तो वह बोली कि क्या मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है। मैं चुप रहा तो वह बोली कि ऐसा मौका नहीं दूंगी आप को की आप मुझे झुठा समझे। मैंने हाथ के इशारे से उन्हें आश्वस्त किया। हम दोनों रेस्तरा से निकल कर अपने अपने रास्ते पर चल दिये।

बच्चे का बोर्डिग स्कूल में दखिला कराना

निशा को अपने लड़के का एडमीशन बोर्डिग स्कूल में कराना था। एक दिन उन का फोन आया कि आप को कष्ट दे रही हूँ आप को दो दिन के लिये मेरे साथ नैनीताल चलना है। वहाँ पर लड़के का एडमीशन करवाना है, आप का साथ चाहिये। मैंने कहा कि मैं चला चलुंगा। दो दिन बाद हम तीनों कार से नैनीताल पहुंच गये। वहां पर स्कूल में लड़के का एडमीशन करवा कर हम दोनों रात को झील के किनारे घुमने निकल गये। रात को रोशनी से चमचमाती नैनी झील बहुत रोमांटिक लगती है। मैं और निशा दोनों धुन्ध में डुबी मॉल रोड़ कर चहलकदमी करने लगे।

राह में निशा बोली कि मैं आप के साथ जबरदस्ती तो नहीं कर रही हूँ। मैंने पुछा कि ऐसा क्यों लगा आप को तो वह बोली कि मैंने आप से आप की हाँ या ना नहीं पुछी और बस आप तो चलने के लिये कह दिया। अगर मैं नहीं आना चाहता तो आप को मना कर देता। मैं स्पष्ट वादी हूँ। आप के मेरे बारे में पता है। निशा ने सर हिलाया। हम दोनों ऐसे ही घुमते रहे। हाल में ही तलाकशुदा हुई महिला के साथ मैं नैनीताल की झील के पास घुम रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं कर क्या रहा हूँ?

निशा के साथ संबंधों का गहरा होना

नैनीताल से आने के बाद कई बार निशा से मिलना हुआ लेकिन हर बार हम लोग ग्रुप के मीटअप में ही मिल पाये थे। टेलीफोन पर ही बातचीत में निशा से हालात पता चल पाते थे। निशा अपने साथ हो रही बातों को मुझ से साझा करती थी। मैं अगर कोई सहयोग होता था तो कर देता था। अगर वह कोई सुझाव माँगती थी तो वह भी फोन पर ही दे देता था। निशा से व्यक्तिगत रुप से मिलना संभव नहीं हो पा रहा था। निशा मिलने को कहती तो थी लेकिन मैं ऑफिस से शाम को बहुत देर से निकल पाता था इस लिये शाम को मिलना हो ही नहीं पा रहा था। तलाक लेने के बाद निशा अकेली हो गयी थी। सारे काम उन्हें अपने आप ही करने पड़ रहे थे।

मैं साथ होने के बावजूद हर समय उस की सहायता नहीं कर पाता था। मैं भी उन से मिलना चाहता था लेकिन समय की कमी होने के कारण ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा था। इस संबंध में अब गहराई आ रही थी, हम दोनों के बीच में लगाव बढ़ रहा था। उस का इजहार दोनों में से कोई नहीं कर रहा था। मैं अपने परिवार पर कोई असर ना पड़े इस डर से चुप था, निशा भी इसी डर से चुप थी। लेकिन इस डर के बावजूद दोनों एक-दूसरें के करीब आते जा रहे थे।

हम दोनों का अचानक बैगलुरु में मिलना

एक दिन सुबह जब ऑफिस पहुँचा तो बॉस ने अपने कमरे में बुला कर कहा कि आप को आज एक पार्टी से मिटिंग के लिये बैगलुरु जाना पड़ेगा। आपकी टिकट बुक है आप एअरपोर्ट चले जाये। मैं जैसा आया था वैसा ही एअरपोर्ट के लिये निकल गया। दो घंटे बाद बैगलुरु पहुँच गया। गाड़ी बाहर मेरा इंतजार कर रही थी। 12 बजे की मिटिंग थी क्लाइट के साथ। मिटिंग अच्छी गुजरी, दुपहर का खाना क्लाइट के साथ खा कर उस से विदा लेकर सोच ही रहा था कि अब क्या करुं, तभी निशा जी का फोन आया कि आप कहाँ पर है। मैंने कहा कि आज तो बाहर हूँ तो वह बोली कि मैं भी दो दिन से बाहर हूँ, आप कहाँ हो? मैंने बताया कि बैगलुरु आया हूँ। रात की फ्लाइट है इस लिये समय काटने की सोच रहा हूँ। वह मेरी बात सुन कर बोली कि आज तो मजा आ गया आप भी यहाँ पर आ गये है मैं भी यही पर हूँ। मुझे यह जान कर अच्छा लगा कि वह भी यहाँ पर ही थी। उन की आवाज फोन पर आयी कि आप मेरे होटल आ जाओ।

मैंने उन से होटल का पता लिया और बाहर आ कर कैब करके होटल पहुँच गया। शनिवार का दिन होने के कारण भीड़ काफी थी। 9वीं मंजिल पर पहुँच कर उन के कमरे का दरवाजा खटखटाया तो फौरन ही दरवाजा खुल गया। वह साड़ी पहने खड़ी थी। मुझे अंदर ले कर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया। मुझे लगा कि वह कुछ करना चाहती थी लेकिन हिचक रही थी। मैं समझ रहा था, लेकिन हम दोनो के बीच की शर्म हट नहीं रही थी। कमरे में आ कर मैं कुर्सी पर बैठ गया। वह भी सामने बेड़ पर बैठ कर बोली।

आज तो आप बहुत स्मार्ट लग रहे है। बिजनेस सुट में जंच रहे है। कितनों के दिलों पर बिजली गिरी होगी?

मिटिंगों में फोरमल सुट पहनना मजबुरी है।

आप को पहले साधारण कपड़ों में ही देखा है, आज ऐसे देख कर अचरज हुआ। फोरमल आप पर जँचते है।

आज मैं आप को याद ही कर रही थी इस लिये फोन किया, मुझे क्या पता था कि आप यहाँ ही मिल जायेगे। मैंने मुस्कराते हुए कहा कि कई बार मन की मुराद पुरी हो जाती है। वह बोली कि हाँ आज तो मन की बात पुरी हो गयी है। आप पानी पियेगे या कुछ और मगाऊं। मैंने कहा कि पानी से काम चला लुंगा तो वह मुस्कराती हूँई पानी गिलास में डालने लग गयी। फिर पानी का गिलास मुझे दे कर बोली कि खाना मगाऊं? मैंने कहा कि खाना अभी खा कर आया हूँ तो वह बोली की चलिये बैठ कर बातें करते है आज आप से बहुत सी बातें करने का मन है।

मैंने पानी पीते पीते देखा कि निशा की आँखों में अजीब तरह की चमक थी। शायद कोई प्यास थी जो आँखों से पुरी की जा रही थी। वह मुझे ही देख रही थी। मैंने यह देख कर पुछा कि क्या बात है जो मेरी याद आ रही थी। निशा बोली कि क्या मैं आप को याद भी नहीं कर सकती? मैंने कहा कि बिल्कुल याद कर सकती है मैं तो बस जानना चाहता था कि किस बात को ले कर याद कर रही थी। वह बोली कि आज मेरे को आप की याद बस ऐसे ही आ गयी। अकेलापन महसुस हो रहा था तो अपने मित्र की याद आना स्वभाविक है या नही?

हाँ सो तो है

इसी लिये आप को याद किया और आप यहाँ मेरे पास आ गये

अच्छा किया फोन किया नहीं तो मैं रात तक ऐसे ही भटकता रहता

मेरे रहते भटकने का क्या मतलब?

मुझे क्या पता था कि आप यहाँ पर है

मुझे भी तो नहीं पता था कि आप यहाँ पर है

मैं दो दिन पहले आयी थी। आज जा कर फ्री हूँई हूँ

बढ़िया है

हाँ मेरा अपनी मनमर्जी करने का मन कर रहा है

किस ने रोका है?

निशा बेड़ से उठी और मेरे पास आ कर खड़ी हो गयी और बोली कि आप उठ कर खड़े होगे। मैं उठ कर खड़ा हो गया। अब मैं और निशा एक दूसरे के सामने खड़े थे। उस ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी और उस के होंठ मेरे होंठों से जुड़ गये। अचानक हुये इस चुम्बन से मैं हड़बड़ाया तो लेकिन फिर मैंने उन का चेहरा अपने हाथों में पकड़ लिया और दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये। जब दोनों की सांस फुल गयी तब वह अलग हुई। निशा के चेहरे पर संतोष की झलक थी। वह मेरी तरफ देख कर बोली की आप से प्यार करना है। मैं यह सुन कर हड़बड़ाया तो वह बोली कि

डर रहे है?

नहीं तो

फिर घबराहट कैसी?

तुम्हें सब पता है फिर भी मुझ से पुछती हो?

अपने लिये इतना सा भी नहीं माँग सकती?

माँग कर तो देखो

आज मेरे से प्यार करो ना, मैं बहुत प्यासी हूँ

प्यासा तो मैं भी हूँ

फिर मना क्यों कर रहे हो?

जिस रास्ते पर चलने को कह रही हो, उस पर मैं तुम्हें कुछ दे नहीं पाऊँगा

मुझे कुछ नहीं चाहिये, बस मुझे अपना थोड़ा सा प्यार दे दो

देख लो बाद में कुछ और मत माँग लेना, मैं दे नहीं पाऊँगा

नहीं मुझे और कुछ नहीं चाहिये, कभी कभी मुझ से प्यार कर लिया करो

मैंने निशा को अपने आलिंगन में ले लिया वह भी लता की तरह मेरे से लिपट गयी। उस के परफ्युम की मादक सुंगंध मेरे नथुनों में घुस रही थी। वह मुझ से लिपटी खड़ी थी। उस के उरोज मेरी छाती में गड़े जा रहे थे। मादकता मुझ पर हावी हो रही थी तभी दिमाग ने कहा कि कपड़ें खराब हो जायेगे। मैंने अपनी पकड़ ढ़ीली कर दी। वह भी अलग हो गयी। मैंने कहा कि मुझे सुट उतारना पड़ेगा। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बोली कि ऐसे समय में भी इतना सब सोच पाते है।

मैंने कहा कि हाँ नहीं तो आफत हो जानी थी। तुम्हारे परफ्युम की सुंगंध घर तक पहुँच जाती और जवाब देना मुश्किल हो जाता। बताओ क्या करुँ? वह हँसी और बोली कि एक ही उपाय है अपने कपड़े उतार कर मेरा पायजामा डाल लो। मैं बोला कि यह तो सही नहीं है। वह बोली कि और कोई हल है तो बताओ।

मैंने कोट उतार कर कुर्सी पर डाल दिया, फिर शर्ट भी उतार दी। बनियान का भी नंबर आ गया। निशा मुझे कमर से ऊपर नंगा देख रही थी। उस की आँखों की चमक बढ़ रही थी। मैंने पेंट उतार कर रख दी और उसे पास ला कर कहा कि चलों बिस्तर पर चलते है। वह मुझ से लिपट गयी। हम दोनों बेड़ पर गिर गये। वह मेरे ऊपर पड़ी थी। उस के होंठों ने मेरी आँखें मेरे गाल सब को चुमना शुरु कर दिया था। मेरे हाथ उस की पीठ पर पड़े थे। मैंने उस के ब्लाउज को पीछे से खोल दिया और उस की ब्रा के हुक को भी खोल दिया। अब मेरे हाथ निशा की नंगी पीठ पर घुम रहे थे। इस से उस के शरीर में उत्तेजना की लहर सी उठ रही थी।

निशा मेरे कान में बोली कि आज तुम्हें देख कर मेरा अपने आप पर से कंट्रोल हट गया है। उस ने अपने दांतों से मेरे कान की लौ काटनी शुरु कर दी। वह बहुत उत्तेजित होती जा रही थी। मेरे होंठ भी उस की गरदन पर चुम्बन ले रहे थे। उस के बाद उस की छातियों के मध्य उतर गये। अभी ब्रा वहाँ पर थी। उस ने हाथ से ब्रा और ब्लाउज को नीचे फैक दिया। अब उस के भरे हुये उरोज मेरी छाती में समा गये। उन की गर्मी मेरे शरीर में समा रही थी। मेरा शरीर भी उत्तेजना से भरा जा रहा था।

मैंने उसे पकड़ कर नीचे लिटा लिया और उस के बगल में आ कर उस के उरोजों के भुरे निप्पलों को चुसने लगा। वह आहहहहहह उहहहहहहहहहह करने लगी। हम दोनों इस खेल के पुराने खिलाड़ी थे। इस लिये खेल तो जोरदार होना था। वह और मैं दोनों ही बहुत दिनों से प्यासे थे। उस के उरोजों को मैं अपने मुँह में समाने की कोशिश करने लगा तो वह कराहने लगी। फिर मेरे दांत उन्हें काटने लग गये। उस के नाखुन मेरी पीठ में गड़ गये। मेरे हाथ उस की कमर से होता हुआ उसी की जाँघों के मध्य उतरने लगा लेकिन वहाँ पर साड़ी और पेटीकोट बाधा बन कर खड़े थे।

मैंने हाथ से उस की साड़ी पेटीकोट से बाहर निकाल कर एक तरफ फैक दी और पेटीकोट को नीचे खिसका दिया। यह पेटीकोट इलास्टिक वाला था जो शरीर पर कसा हुआ था। अब मेरा हाथ उस की पेंटी के ऊपर घुम रहा था। उसकी उभरी हुई योनि उत्तेजना के कारण ज्यादा ही उभर गयी थी। उसकी फलके पेंटी में दिखाई दे रही थी। वहाँ पर नमी भी थी। मैंने पेंटी में हाथ डाल कर उस की योनि को सहलाया और उसकी योनि में अपनी उँगली डाल दी। वह कसमसाई मेरी उंगली और गहराई में उतर गयी।

मैं उस के जी स्पाट को सहला रहा था। कुछ देर ऐसा करने से निशा की उत्तेजना इतनी बढ़ गयी कि उस ने मेरा चेहरा पकड़ करअपने होंठों से मेरे होंठ काट लिये। उस का सारा शरीर काँप रहा था। उस की जीभ मेरे मुँह में घुस कर कलोल कर रही थी। मेरी जीभ भी उसे छु कर सहला रही थी।

निशा बोली कि पेटीकोट उतार दो मुझे दर्द हो रहा है। मैंने हाथ पेंटी से निकाल कर उस के पेटीकोट को नीचे कर के पाँवों से बाहर कर दिया इस के बाद पेंटी का नंबर आया अब वह भी फर्श पर पहुंच गयी। निशा मेरे सामने बिल्कुल नंगी पड़ी थी। मैं उस के सामने ब्रीफ में खड़ा था उस ने मेरी ब्रीफ में उंगलियां फंसा कर उसे नीचे कर दिया। ऐसा करने से मेरा तना हुआ लिंग जो 6 इंच का पुरा साइज ले चुका था उस के सामने आ गया। उस ने उसे अपने मुँह में ले लिया और लॉलीपॉप की तरह से चुसना शुरु कर दिया।

मैं उस के पैरों की तरफ झुक गया और हम दोनों 69 की पोजिशन में आ गये। मैं उस की योनि का स्वाद ले रहा था वह मेरे लिंग का स्वाद चख रही थी। मेरी जीभ उस की योनि की गहराई में चली गयीऔर मैं उस के कसैले स्वाद को पीने लगा। मेरे हाथ उस की भरी हुई जाँघों को सहला कर उसे उत्तेजित करने लगे। हम दोनों के शरीर में वासना की आग पुरी तरह से भड़क गयी थी।

मेरा लिंग उस के मुँह की नमी और जीभ के स्पर्श से स्खलन की ओर जा रहा था। अब कुछ नहीं हो सकता था। मैं उस के मुँह में स्खलित हो गया। कुछ देर बाद उस की योनि भी पानी से भर गयी और मैं उसे पीने लगा। हम दोनों ने एक दूसरे का भरपुर स्वाद ले लिया था। स्खलन के बाद मैं उस की बगल में लेट गया। वह मेरी तरफ मुँह करके बोली कि

कैसा लगा?

सही था

सफर तो अभी शुरु हुआ है

तुम बहुत बदमाश हो, बहुत काटते हो

तुम कितना नौचती हो

निशा ने अपने होंठों से मेरा मुँह बंद कर दिया। उस के हाथ मेरी छाती पर फीर रहे थे। उस की उंगलियों नें मेरे चुचकों को मसलना शुरु कर दिया। उसे पता था कि आदमी को कैसे भड़काया जाता है वह यहीं अब मेरे साथ कर रही थी। मेरी उँगली उस की योनि में दुबारा घुस गयी और अंदर-बाहर होने लगी। थमी आग फिर से जोर से भड़क गयी। निशा आहहहहहहहहहहह......... उहहहहहहहहहह........ करने लगी।

मैंने उठ कर उस के ऊपर आ कर उसकी जाँघों को चौड़ा किया और बीच में बैठ कर उस की योनि पर अपने लिंग को दो तीन बार रगड़ा। योनि का स्पर्श पा कर लिंग में दूबारा से तनाव आ गया। मैंने लिंग को योनि के मुँह पर रख कर दबाया तो लिंग निशा की योनि में प्रवेश कर गया। निशा ने आहहहहहहहहहहह....... की

मैंने और जोर से दबाया तो आधा लिंग उस की योनि में समा गया। अब मुझ से रुका नहीं गया। अंदर योनि की नमी से जरा सा दबाव डालने से पुरा लिंग निशा की योनि में चला गया। मैं धीरे-धीरे धक्कें लगाने लगा। निशा के दोनों हाथ मैंने उस के सर के ऊपर अपने हाथों से पकड़ रखे थे और नीचे से मेरे कुल्हें उस के अंदर समाने के लिये प्रहार कर रहे थे।

निशा उत्तेजना के कारण अपना सर इधर-उधर पटक रही थी। वह कराह रही थी। मेरे धक्कें उस की कराह को सुन कर और तेज हो गये। फिर एक आदिम शक्ति मेरे में समा गयी और मैं उत्तेजना के वशीभुत हो कर उस में समाने लगा। वह नीचे से आहहहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहह करती रही। मेरी गति बढ़ती गयी। कुछ देर बाद मेरी आँखों के सामने तारे झिलमिला गये और मैं निशा के ऊपर लेट गया।

निशा की बांहे मेरी पीठ पर कस गयी और उस के पैर मेरी कमर पर कस गये। अब मैं पुरा उस में समाया हुआ था। हम दोनों के शरीर एक दूसरे से इस तरह से चिपके हुये थे कि बीच में हवा भी नहीं जा सकती थी। कुछ देर बाद में निशा के ऊपर से उठ कर उसकी बगल में लेट गया। वह अभी भी आँखें बंद किये पड़ी थी। मैंने उसे हिलाया तो वह बोली कि मैं हवा में उड़ रही हूँ मुझे उड़ने दो। उस ने आँखें खोली और मुझे देख कर कहा कि तुम ने आज क्या किया है? मेरा सारा शरीर हल्का हो गया है। मैंने कहा कि तुम इस चीज से बहुत दिनों से दूर थी आज जब वह मिली है तो तुम उस का पुरा मजा ले रही हो। वह बोली कि तुम्हें मजा नहीं आया? मैंने उसे बताया कि मुझे भी बहुत मजा आया है।

निशा बोली कि तुम्हें देख कर मैंने बहुत बार कल्पना करी थी, कि कब तुम मुझे अपनी बाँहों में भरोगे? लेकिन तुम से इस का इजहार करने में डर लगता था कि कही तुम मुझे छोड़ ना दो। इसी डर से इतने समय तक मैंने तुम से अपनी इच्छा का इजहार नहीं किया। लेकिन आज तुम्हें यहाँ पर देख कर मुझ से रहा नहीं गया और मन की बात जुबा पर आ ही गयी। बुरा तो नहीं लगा। नहीं बुरा नहीं लगा लेकिन हैरानी जरुर हुई थी।

तुम को अपने पास देख कर मुझ से रहा ही नहीं गया। नहीं तो इतने वर्षों से मैंने अपने पर रोक लगाना ही तो सीखा है।

यह क्या बात हुई?

लम्बी कहानी है फिर कभी बताऊंगी

जैसी तुम्हारी मर्जी

अभी मन भरा नहीं है

कुछ देर आराम करो फिर दूबारा करते है।

निशा उठी और मुझे चुम कर बाथरुम चली गयी। मुझे भी प्रेशर बन रहा था। जब वह आयी तो मैं भी बाथरुम चला गया।

हम दोनों की प्यास अभी बुझी नहीं थी इस लिये कुछ देर बाद फिर से वही सनातन खेल शुरु हो गया। अब की बार निशा मेरे ऊपर थी और मैं नीचे से उस के उरोजों को चुम रहा था। उस के कुल्हें जोर जोर से मेरे लिंग को समाने के लिये प्रहार कर रहे थे। कुछ देर में निशा थक कर बगल में आ गयी। अब की बार मैंने उसे डोगी स्टाइल में करा और पीछे से उस की योनि में अपना लिंग डाला। निशा आहहहहह......... उहहहहहहहहहह..... करने लगी।

मेरा लिंग उसके कुल्हों के बीच से योनि में घुस रहा था। मेरे प्रहारों के कारण उस के कुल्हों का रंग लाल हो गया। कुछ देर बाद मैंने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उस की योनि में अपना लिंग डाल दिया वह अपने कुल्हों को हिला हिला कर लिंग को अंदर समा रही थी। मैं उस के उरोजों का रसपान कर रहा था। हमारा संभोग आधा घंटा चला और जब हम दोनों स्खलित हुये तो हमारे शरीर थकान से चुर चुर हो गये थे। कुछ देर हम दोनो ऐसे ही लेटे रहे, फिर मैंने कहा कि मैं नहाने जा रहा हूँ इस के बाद तैयार हो जाता हूँ निशा ने भी सर हिला कर मेरा समर्थन किया।

मैं बाथरुम में चला गया। नहा कर तन से थकान निकल गयी। बाहर आ कर कपड़ें पहन कर तैयार होने लगा तो निशा बोली कि तुम्हारी फ्लाइट मेरे साथ ही है इतनी जल्दी क्या है? मैंने कहा कि तुम्हारें पास और कपड़ें है मेरे पास तो यही है इस लिये तैयार हो गया हूँ। वह बोली कि चलों मैं भी नहा लेती हूँ। यह कह कर वह भी नहाने चली गयी। नहा कर जब आयी तो गीले बालों में सुन्दर लग रही थी। मुझे अपने को घुरता पा कर बोली कि पहले तो नजर भी नहीं मिलाते थे अब क्या नजरों से खाने का इरादा है।

मैंने कहा कि पहले तुम दोस्त थी उस की मर्यादा का पालन करना था,अब कुछ और बात है।

तुम इतने शरीफ नहीं हो जितने उपर से दिखते हो?

अब ऐसा क्या किया है मैंने

जैसे तुम्हे पता ही नहीं

तुम्हारें मन का करा है

दो बार में सारा शरीर तोड़ दिया है

अभी मन भरा नही है

वाह क्या बात है

दूबारा जब मौका मिलेगा तो बताऊंगा प्यार कैसे होता है?

अभी कुछ और भी बाकी है

अभी तो शुरुआत है

बड़े खतरनाक आदमी हो तुम से बच कर रहना पड़ेगा

अब तो चाह कर भी मुझ से बच नहीं सकती

बचना कौन चाहता है

निशा ने अपने गीले बालों से गिरता पानी मेरे पर छिड़का और कपड़ें पहनने लग गयी। रात के नौ बजे हम होटल से निकल गये। 11 बजे की फ्लाइट पकड़ कर दोनों वापस अपने शहर आ गये। वह अपने रास्ते चली गयी और मैं अपने रास्ते।

दोनों का वापस आना

हम दोनों वापस आ कर अपने-अपने कामों में डुब गये। आपस में मिलना हुआ ही नहीं। फोन पर ही बात हो पाती थी। ग्रुप के साथ दो बार मिलना हुआ। वहाँ पर कुछ कहा नहीं जा सकता था। इसी तरह कई महीनें बीत गये। निशा ने फोन पर कहा कि तुम से प्यार किये कितना समय हो गया है।मन कर रहा है कि कहीं चले या तुम कुछ करो। मैंने उसे बताया कि मेरा बाहर जाना संभंव नही है। कुछ देर इंतजार तो करना ही पड़ेगा। वह मेरी बात समझ गयी।

गर्मी की छुट्टियों में उसकी माँ बेटी को लेकर निशा के मायके चली गयी। अब वह घर पर अकेली थी। मेरी पत्नी भी कुछ दिनों के लिये मायके बच्चों के साथ चली गयी। बच्चें नाना के घर जाने के लिये मरे जा रहे थे। मैं भी घर पर अकेला रह गया। मैंने यह बात निशा को बतायी तो वह बोली कि ऐसे तो मैं तुम्हारें घर नहीं आ सकती हूँ। तुम ही कुछ उपाय सोचों। बुधवार को यह बात हुई।

अगले दिन मेरे दिमाग में आइडिया आया कि शुक्रवार की रात को निशा मेरे साथ मेरे घर आ सकती है। फिर हम दोनों शनिवार और रविवार एक साथ मना कर सोमवार को ऑफिस जा सकते है। मैंने यह बात निशा को बतायी तो वह बोली कि आइडिया तो सही है लेकिन मैं तुम्हारें साथ आऊंगी तो किसी को पता नहीं चलना चाहिये। मैंने कहा कि इस बारे में कुछ सोचता हूँ लेकिन तुम अपने कपड़ें एक बैग में रख कर तैयार रहना।

शुक्रवार की शाम को ऑफिस से निकल कर मैंने निशा को उस के घर से पिक किया और उस के बाद हम दोनों ने रेस्टारेट में जा कर डिनर किया और उस के बाद कार में घर के लिये निकल गये। रास्ते में मैंने निशा को कहा कि उसे मेरे घर से पहले कार की पिछली सीट के नीचे लेटना पड़ेगा ताकि कोई उसे देख ना सके। घर पहुँच कर मैं उसे कार से निकाल कर घर में ले लुँगा।

वह यह सुन कर बोली कि कुछ ज्यादा नहीं हो रहा है। मैंने उसे समझाया कि मेरे घर में कार घर के अंदर खड़ी होती है। कार के खड़ी करने की जगह पर अंधेरा होता है। रात में घर में भी अंधेरा होगा। इस लिये मैं तुम्हें अंधेरे में घर के अंदर ले लुँगा, किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा लेकिन कुछ देर के लिये तुम्हें सीट के नीचे लेटना पड़ेगा, कपड़ें भी खराब हो सकते है।

वह बोली कि तुम्हारें साथ समय बिताने के लिये मैं कुछ भी कर सकती हूँ। जयदेव की विरहिणी नायिका की तरह मेरी हालात है। उस की इस बात पर मेरी हँसी निकल गयी। वह बोली कि अभी तो हँस रहे हो, लेकिन मेरी तरह सोचों तो हँस नहीं पायोंगे। मेरे सहमति में सर हिला दिया।

रात को घर पहुँचते काफी देर हो गयी थी। घर में अंधेरा था, सड़क भी अंधेरे में डुबी थी। मैंने दरवाजे का ताला खोल कर घर के अंदर कार खड़ी करी और घर के अंदर जा कर सारा घर देखा उस के बाद कार के पास आ कर उस का पिछला दरवाजा खोल कर निशा को हाथ से इशारा किया। वह सीट पर बैठ गयी और उस के बाद कार से निकल गयी। मैंने कार का गेट बंद किया और घर के अंदर आ गया।

निशा सोफे पर बैठी थी। मुझे देख कर बोली कि मेरी पीठ का हाल बुरा है। मैंने उस के कंधें थपथपाये और दरवाजा खोल कर बाहर आ गया। कार की डिक्की खोल कर निशा का बैग निकाला और उसे लेकर कमरे में आ गया। निशा आराम से सोफे पर लेटी थी। मुझे देख कर बोली कि आगे क्या करना है। मैंने कहा कि मैं घर को बंद करके आता हूँ जब तक तुम चाहों तो हाथ मुँह धो लो। चाहों तो कपड़ें बदल लो। यह सुन कर वह बोली कि पहले तुम अपने काम से फ्री हो लो। मैं घर को बंद करने चला गया। कुछ देर बाद वापस आया तो वह सोफे पर ही लेटी थी।

12