पहाड़ों पर बरसात

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पहाड़ों पर रहने के दौरान खाना बनाने वाली लड़की से बने संबंध
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कहानी की शुरुआत पहाड़ पर मेरी छुट्टियों के दौरान हुई। मैं पहाड़ों के ऐसे क्षेत्र में था जहाँ संपर्क का कोई साधन नहीं था। बिजली भी नहीं थी। सरकारी डाक बंगला जंगल के बीचो बीच बना था। इस तक पहुँचने के लिये जंगल के बीच से सड़क जाती थी। यहाँ छुट्टियाँ बिताने कम ही लोग आते थे। डाक बंगले में सुविधा के नाम पर एक खाना बनाने वाला ही था जो चौकीदार की भुमिका भी निभाता था।

मैं वहाँ कुछ दिन रहने के लिये गया था। कुछ जंगली जानवर ऐसे थे जो इस ऊँचाई पर ही मिलते थे इस लिये इस विराने में उन की फोटो खींचने की इच्छा से आया था। मानसुन के मौसम में पहाड़ो में नहीं जाना चाहिये, लेकिन मुझे इस समय ही यहाँ पर आना था इस लिये मानसुन में ही यहाँ पर आया था।

समय सही कट रहा था, रसोईया खाना बना देता था। मेरा सारा दिन जंगल में जानवरों का पीछा करने में गुजर जाता था। शाम होने से पहले ही मैं डाक बंगले में लौट आता था। तभी रसोईया जिस का नाम बंशीधर था अपने गाँव के लिये जो तीन किलोमीटर नीचे था चला जाता था। रात को मैं इस नितांत विरान डाक बंगले में रहता था। पहले कुछ दिनों तो बहुत परेशानी हुई थी लेकिन फिर इस माहौल की मुझे आदत पड़ गयी। पहाड़ों की बारिश का पता नही चलता था कि कब आयेगी और कब तक होती रहेगी। मानसुन में ही पहाड़ों की असली खुबसुरती बाहर आती है।

चारों तरफ हरियाली और हर जगह उग आये झरनें मन को मोह लेते है। बादल बिल्कुल जमीन पर उतर आते थे। ऐसा लगता था कि आप बादलों पर तैर रहे है। सारे संसार से कटा रहना बड़ा कष्टकर लगता है लेकिन फिर उस की आदत पड़ जाती है। मैं भी इसी माहौल का मजा ले रहा था। जरुरतें सीमित थी इसी लिये ऐसी एकांत जगह पर आराम से रह रहा था। लेकिन कब क्या हो जाये यह कोई भी व्यक्ति बता नहीं सकता है। ऐसा ही मेरे साथ हुआ। अच्छी भली रुटिन से चलती जिंदगी एकदम से ढर्रे से उतर गयी।

हुआ ऐसा कि एक दिन बंशीधर रात को गया तो दूसरे दिन सुबह आया नहीं। काफी देर तक मैं उस का इंतजार करता रहा, फिर भुखा ही जंगल के लिये निकल गया। मेरा जंगल जाना जरुरी था। उसी काम के लिये मैं यहाँ आया हुआ था। दिन भर जंगल में भटकने के बाद जब शाम को डाक बंगले में लौटा तो आकाश काला हो रहा था। लगता था कि जोर का तुफान आने वाला था। जब डाक बंगले पर पहुँचा तो केयरटेकर का कमरा खुला हुआ था। उस की चिमनी से धुआ निकल रहा था जो यह बता रहा था कि वह खाना बना रहा है। उसे खाना बना कर वापस भी जाना था।

मेरे डाक बंगले में घुसते ही बारिश शुरु हो गयी। मैं कपड़ें बदलने के लिये अंदर चला गया। जब कपड़ें बदल कर बाहर आया तो बंशीधर कही दिखाई नहीं दिया। बारिश तेज हो चुकी थी। मैं केयरटेकर के कमरे में चला गया। वहाँ पर बंशीधर नहीं था बल्कि एक लड़की खाना बना रही थी। मैं उसे नहीं जानता था। मुझे आया हुआ देख कर वह खड़ी हो गयी और बोली कि बापु की तबीयत खराब थी इस लिये वह नहीं आ पाये है। उनकी जगह मैं खाना बनाने आयी हूँ। मैंने उस से उस का नाम पुछा तो उस ने बताया कि उस का नाम सीमा है। मैं कमरे से बाहर आ गया। खाने का इंतजाम होने से मन में संतोष था कि रात को भुखा नहीं सोना पड़ेगा।

कुछ देर बाद सीमा खाना लगा कर ले आयी। कमरे में मिट्टी के तेल की लालटेन जल रही थी। रोशनी के लिये यहाँ यही एक साधन था। ठंड़ से बचने के लिये फॉयरप्लेस में मैंने आग लगा दी थी। बारिश के कारण ठंड़ बढ़ गयी थी। मैं खाना खाने बैठ गया। तभी मुझे ध्यान आया कि इस बारिश में सीमा वापस कैसे जायेगी। मैंने सीमा से पुछा कि इतनी बारिश में तुम वापिस कैसे जायोगी? मेरी बात सुन कर वह बोली कि मैं बारिश के रुकने का इंतजार कर लुगी। उसी के बाद वापिस जा सकती हूँ। मैं खाना खाने लगा। सीमा अपने कमरे में चली गयी।

खाना खाने के बाद वह बरतन उठाने के लिये आयी। मैंने उस से कहा कि वह अपने लिये भी खाना बना ले। खाना खा कर ही वापिस जाये। हो सकता है तब तक बारिश बंद हो जाये। वह सर हिला कर वापिस चली गयी। मैं आग की गरमाहट का मजा उठाने लगा। कुछ देर बाद मैं यह देखने बाहर गया कि बारिश का क्या हाल है तो पता चला कि बारिश और जोर से हो रही थी। सीमा के कमरे में जाकर देखा तो वह खाना खाने बैठी हुई थी।

मैंने उस से कहा कि तुम आज रात यही रुक जाओ, इतनी बारिश में तुम्हारा घर जाना सही नहीं है। वह बोली कि मैं भी यही सोच रही हूँ। रात भी हो गयी है और बारिश भी जोर से हो रही है, मैं यही रुक जाती हूँ। बापु समझ जायेगें कि मैं यहाँ पर रुक गयी हूँ। मैंने सीमा से पुछा कि यहाँ कपड़ें है तो वह बोली कि ओढ़ने के लिये कुछ नही है। मैंने कहा कि मैं तुम्हें रजाई ला कर देता हूँ। मैं अंदर गया और एक रजाई ले कर वापस आ गया। उसे सीमा को दे कर कहा कि किसी और चीज की जरुरत पड़े तो मुझे जगा देना। उस ने सर हिला दिया।

मैं वापस अपने कमरे में आ गया। बारिश की आवाज अब कमरे में भी भर गयी थी। मुझे भी लग रहा था कि यह तुफान पुरी रात रुकने वाला नही था। मैं सोने की तैयारी करने लगा। फिर मैं एक बार देखने गया कि सीमा सो गयी है। सीमा का कमरा बंद था। इस का मतलब वह सो गयी थी। यह देख कर मैं भी अपने कमरे में लौट आया और सोने की कोशिश करने लगा। कुछ देर बाद मुझे नींद आ गयी। कुछ देर मेरी नींद खड़खड़ाहट सुन कर खुल गयी।

पहले तो मुझे लगा कि शायद मेरे को कोई वहम हुआ है। मैं दुबारा सोने जा रहा था तभी दरवाजा फिर से खटखटाया गया। मैं बिस्तर से निकल, शॉल लपेट कर दरवाजा खोलने चल दिया। दरवाजे पर पुछा कि कौन है? सीमा, मैंने यह सुन कर दरवाजा खोल दिया। बाहर सीमा खड़ी हुई कांप रही थी। दरवाजा खोलते ही कमरे में ठंड की लहर अंदर आ गयी। मैंने सीमा से पुछा कि क्या बात है? तो वह बोली साहब कमरे में मुझे बहुत ठंड लग रही है, इस लिये आप को जगाया है। मैं उस की परेशानी समझ रहा था। बारिश के कारण ठंड बहुत बढ़ गयी थी। केवल एक रजाई में सोना मुश्किल काम था।

मैंने उसे कमरे में अंदर ले कर दरवाजा बंद कर दिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उस के लिये मैं क्या करुँ? जवान लड़की का मेरे साथ एक कमरे में सोना सही नहीं है। यह मैं समझ रहा था लेकिन मुझे क्या करना चाहिये यह मुझे समझ नहीं आ रहा था। मैंने उसे कहा कि वह फॉयरप्लेस के सामने बिस्तर बिछा ले और यही सो जाये, उसे ठंड नही लेगेगी। मैं एक और रजाई देखने गया लेकिन दूसरी रजाई नहीं थी। आग के कारण कमरा गरम था। हम दोनों आराम से सो सकते थे।

सीमा बेड के पास बिस्तर बिछा कर लेट गयी। एक रजाई ही उस के ऊपर पड़ी थी। रात ज्यादा नहीं हुई थी लेकिन बरसात और रोशनी ना होने के कारण रात गहरी लग रही थी। कुछ देर मैं लेटा रहा और सोने की कोशिश करने लगा। आँख लगी ही थी कि मुझे किसी के कांपने की आवाज आयी। मुझे लगा कि हवा की आवाज होगी लेकिन कुछ देर बाद कमरे के सन्नाटे में कंपकपी की आवाज आने लगी। कुछ देर तो मैं चुपचाप पड़ा रहा और सोचता रहा कि इस का क्या करुँ? ठंड़ के कारण सीमा कांप रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का क्या करुँ। जब कुछ समझ नहीं आया तो मैं बेड से उतरा और सीमा के पास चला गया। कुछ सोच कर मैंने उस की ओढ़ी हुई रजाई हटाई और उसे बांहों में उठा कर अपने बेड पर लिटा दिया और उसके बाद सारी रजाईयां उस के ऊपर डाल दी।

इस के बाद नीचे पड़ी रजाई भी उस के ऊपर डाल दी। गरमी लगने के कारण सीमा की कंपकपी बंद हो गयी थी। मैं नीचे खड़ा सोच रहा था कि अब क्या करुँ? जवान लड़की के साथ सोना सही नहीं लग रहा था लेकिन इस सर्दी में सीमा को सर्दी से बचाना ज्यादा जरुरी था, और सब बातें बाद की थी।

मुझे भी ठंड़ लग रही थी इस लिये मैं भी बेड पर सीमा की बगल में लेट गया। सीमा आराम से लेटी हुई थी। दोनो चुपचाप एक-दूसरे की बगल में लेट गये थे। शरीर को गर्मी मिलने से अच्छा लग रहा था। सुबह क्या होगा यह मेरा दिमाग नहीं सोच रहा था। बाहर बारिश का शोर अंदर कमरे में भी भर रहा था। कुछ देर बाद सीमा ने करवट बदली और उस के हाथ मेरी छाती पर आ गये। इसके बाद उसके पैर भी मेरे पैरों पर आ गये। मैं चुपचाप पड़ा रहा। मुझे पता था कि इस के बाद अब क्या होगा लेकिन मैं उसे रोक नहीं सकता था। अब जो होना है वह हो कर ही रहेगा।

सीमा के हाथ मेरी छाती पर फिरने लग गये। मैंने उसे आज पहली बार ही देखा था कोई पुर्व परिचय नहीं था। शायद ध्यान से देखा भी नहीं था। नारी शरीर की सुंगंध मेरे नथुनों में भरने लगी थी। सीमा के शरीर की गर्मी भी मैं महसुस करने लग गया था। उस का हाथ मेरी छाती को गर्म कर रहा था। धीरे-धीरे मेरे शरीर में वासना की आग जलने लग गयी थी। स्त्री के संसर्ग से मैं काफी दिनों से दूर था।

मेरा हाथ भी सीमा की छातियों पर पहुँच गया और फिर मैं उस की कसी छातियों को सहलाने लग गया। सीमा की छातियाँ आकार में ज्यादा बड़ी नहीं थी लेकिन कसी हुई थी। उत्तेजना के कारण वह तन गयी थी। मुझे उन पर हाथ फिराने से अच्छा लग रहा था। कुछ देर तक ऐसा होता रहा फिर मुझ से रहा नहीं गया और सीमा को अपनी तरफ पलट कर उस के होंठों पर होंठ रख दिये। गरम होंठो की मीठी छुअन मन को भा रही थी। सीमा भी चुम्बन को लालायित थी उस के होंठ खुल गये और मेरी जीभ उस के मुँह में प्रवेश कर गयी। कुछ देर तक वह मेरी जीभ को अपनी जीभ से छुती रही। इस के बाद उस की जीभ मेरे मुँह में आ गयी और घुमने लग गयी। इस चुम्बन के कारण हम दोनों के शरीर में काम की ज्वाला भड़क गयी। दोनों एक दूसरें को जोर-जोर से चुम रहे थे।

जब मन चुम्बन से भर गया तो मेरे होंठ सीमा की गरदन से होकर उस के स्तनों के बीच आ गये। उरोजों के मध्य में चुम्बन ले कर वह नीचे जाने की कोशिश करने लगे लेकिन कपड़ों के कसे होने के कारण नीचे नहीं जा पाये। ब्याउज के नीचे ब्रा नहीं थी। इसी लिये मेरे होंठ उसके ब्लाउज के ऊपर से ही कठोर निप्पलों को चुसने लग गये। निप्पल बहुत कठोर थे होठों के बीच आ पा रहे थे। सीमा आहहह उहहह कर रही थी। उस का हाथ मेरी छाती पर मेरे निप्पलों को मसल रहा था। इस कारण से मेरे शरीर में भी करंट सा दौड़ रहा था।

सीमा की छातियों से हो कर मेरा हाथ उस के कसे पेट से होता हुआ उस के पेटीकोट पर पहुँच गया। पेटीकोट कसा होने के कारण हाथ कपड़ें के अंदर नहीं जा पा रहा था। कपड़ों के उपर से ही हाथ ने उस की जाँघों के मध्य का जोड़ ढुढ़ लिया। हाथ उसे सहलाने लग गया। इसी दौरान उंगलियों में पेटीकोट का नाड़ा आ गया और पेटीकोट का नाड़ा खुल गया।

इस के बाद हाथ सीमा की कच्छी के अंदर चला गया। वहाँ पर हल्के बालों के बीच उभरी हुई योनि का अहसास हुआ। हाथ उसे सहलाने लग गया। योनि बहुत कसी हुई थी, इस कारण से उंगली योनि के अंदर नहीं जा पा रही थी। उंगलियों से योनि को सहलाया और उसकी भग को दबाना शुरु कर दिया। सीमा उहहह आहहहह करने लग गयी। अब मुझ से रुका नहीं जा रहा था।

मैंने अपनी उंगलियों से योनि के होंठों को खोला और एक उंगली को योनि के अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। योनि में नमी थी। कुछ देर बाद मेरी उंगली आराम से अंदर बाहर होने लग गयी। सीमा की योनि के अंदर उसका उभरा हुआ जीस्पाट उंगली को मिल गया और मैं उसे रगड़ने लगा। कुछ देर में ही सीमा मुझे जोर-जोर से चुमने लगी और आहहहहह उहहहहह करने लग गयी। जीस्पाट को रगड़ने के कारण सीमा की उत्तेजना बहुत बढ़ गयी थी अब मुझे लगा कि देर करना सही नहीं है। मेरा लिंग भी उत्तेजना के कारण ब्रीफ में कस गया था उसे भी मुक्त करना जरुरी था।

अपना हाथ नीचे कर के मैंने अपनी ब्रीफ को कमर से नीचे करा और पायजामें को नीचे खिसका दिया। अब मैं नीचे से नंगा था मेरा लिंग आजाद था मैं जल्दी से जल्दी सीमा में समाना चाहता था इसी लिये उस के ऊपर आ कर मैंने उस के पेटीकोट को घुटनों पर खिसका कर उस की जाँघों के बीच बैठ कर अपना लिंग उस की योनि पर लगा दिया। सीमा की कसी योनि में लिंग का जाना आसान नहीं था। पहली बार में वह योनि में नहीं जा पाया। नीचे से सीमा ने मेरे लिंग को हाथ से पकड़ कर योनि के मुँह पर लगाया और जब मैंने जोर लगाया तो लिंग का सुपाड़ा योनि में घुस गया।

योनि बहुत कसी हुई थी। लगता था कि किसी कुँवारी योनि से वास्ता पड़ा था। दूसरी बार जोर लगाया तो आधा लिंग सीमा की योनि में घुस गया। सीमा की चीख निकल गयी। यहाँ कोई उस की चीख सुनने वाला नहीं था। तीसरी बार में मेरा 6 इंच लम्बा लिंग उस की योनि में समा गया। सीमा आहहहह उहहहहह करने लग गयी। दर्द के कारण कराह रही थी। मुझे लगा कि कही यह कुँवारी तो नहीं है लेकिन अब रुका नहीं जा सकता था।

कुछ देर बाद सीमा के हाथ मेरे कुल्हों पर कस गये और मैं धीरे-धीरे कुल्हों को ऊपर नीचे करने लगा। पहले तो सीमा के मुँह से कराह निकलती रही। फिर वह नीचे से अपने कुल्हें ऊछालने लग गयी। उस के नाखुन मेरे कुल्हों की खाल में चुभ रहे थे। धीरे-धीरे मेरे धक्कों की गति बढ़ गयी। एक आदिम ताकत के वशीभुत हो कर मैं धक्कें लगा रहा था। मेरे शरीर में आग सी जल रही थी। काफी देर हो गयी थी मुझे संभोग करते हुए लेकिन स्खलित होने की अवस्था नहीं आ रही थी।

सीमा के हाथ मेरी पीठ पर कसे हुये थे कुछ देर बाद उस के पैर मेरी कमर पर कस गये यह इस बात को दर्शा रहे थे कि वह स्खलित हो गयी थी। मैं भी अब स्खलित होना चाहता था। सीमा की योनि मेरे लिंग को कस कर मथ सा रही थी। लेकिन लिंग सुन्न सा हो गया था। इस कारण वह सीमा की योनि की गर्मी महसुस नहीं कर रहा था। कुछ देर बाद मेरी आँखों के सामने तारें झिलमिला गये। मैं स्खलित हो गया। लिंग से इतनी जोर से वीर्य निकला कि लगा कि लिंग के मुँह पर आग सी लग गयी हो।

कुछ देर बाद मैं सीमा के ऊपर से उठ कर उस की बगल में आ गया। मेरी सांस बुरी तरह से फुली हुई थी। कुछ देर बाद जब मैं सामान्य हुआ तो करवट बदल कर सीमा को देखा, वह सीधी लेटी हुई थी। उस का शरीर भी गरम था। मैंने उसे अपने से लिपटा लिया। वह भी लता की तरह मेरे से लिपट गयी। इसी अवस्था में ही कब दोनों सो गये पता ही नही चला।

सुबह जब मेरी आँख खुली तो सीमा मेरे से लिपट कर सो रही थी उस के कपड़ें अस्तव्यस्त थे। मेरे भी कपड़ों का ऐसा ही हाल था। बाहर से बारिश की आवाज अभी भी आ रही थी। मैंने अपने कपड़ें सही किये और बेड से उतर गया। घड़ी देखी तो सुबह के पांच बज रहे थे। बाहर अंधेरा था। मैंने सीमा को सोने दिया और गर्म कपड़ें डाल कर दरवाजा खोल कर बाहर आ गया। बाहर अंधेरा था और बारिश जोर शोर से हो रही थी। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

कुछ देर बाद रोशनी होने वाली थी। यहाँ कोई आने वाला नहीं था लेकिन सीमा का मेरे कमरे में होना सही नहीं था। यही सोच कर मैं कमरे में वापस आ गया और सीमा को जगा दिया। उस ने आँखें खोल कर मुझे देखा और फिर अपने आप को देखा। शर्मा कर रजाई अपने ऊपर कर ली। मैंने कहा कि सीमा अपने कपड़ें सही कर लो और अपने कमरें में जा कर सो जाओ। वह मेरी बात समझ गयी और बेड से उतर कर अपना बिस्तर उठा कर बाहर अपने कमरे में चली गयी। मैं उस की रजाई उसे दे आया।

मैं चाहता था कि वह अभी कुछ देर और सो ले लेकिन कुछ देर बाद वह उठ कर आयी और बोली कि मैं आप के लिये चाय बना देती हूँ फिर आप का खाना बना कर चली जाऊँगी। मैंने कहा कि तुम बारिश रुकने तक नहीं जा सकती । बारिश के रुकने का इंतजार करो। जब रुक जाये तभी जाना। मैं भी आज कहीं नहीं जा सकता हूँ। वह मेरी बात समझ गयी। सीमा कमरे से बाहर चली गयी।

सीमा मुझे चाय बना कर दे गयी। उस के बाद वह नाश्ता बनाने की तैयारी करने लग गयी। मैं भी नित्यक्रम करने लग गया। कुछ देर बाद सीमा नाश्ता देने आयी तो मैंने उस से पुछा कि वह अपना नाश्ता भी बना ले। मेरा खाना बना कर अगर बारिश रुक जाये तो चली जाये। वह कुछ नहीं बोली और चाय का कप लेकर चली गयी। कुछ देर बाद उस ने आ कर मुझे बताया कि खाना बना कर रख दिया है अब वह अपने घर जायेगी।

मैंने कहा कि बाहर बारिश रुक नहीं रही है तो वह बोली कि रात को घर नहीं गयी, इसी लिये बापु मेरी चिन्ता करते होगे। मैं धीरे-धीरे चली जाऊँगी। मैंने उस से कहा कि आज मैं कही नहीं जा रहा हूँ इस लिये तुम्हें तुम्हारे गाँव तक छोड़ देता हूँ, वह बोली कि यह सही रहेगा अगर बारिश कम हो गयी तो वह शाम को वापस आ जायेगी।

मैं ने गाड़ी निकाली और उस को साथ लेकर गांव के लिये चल दिया। कुछ देर बाद उसे गांव के पास छोड़ कर मैं वापस डाक बंगले पर आ गया। बारिश के कारण जंगल जाना संभव नहीं था। इसी लिये कुछ काम करने बैठ गया। दोपहर में बारिश थोड़ी कम हो गयी। दोपहर को खाना खा कर मैं सोने चला गया। ठंड़ के कारण नींद आ रही थी। रात की वजह से भी थकान सी थी। कोई दो घंटे सोने के बाद मेरी नींद खुली तो मैं उठ कर बैठ गया। बाहर आ कर देखा तो बारिश रुक गयी थी।

यह देख कर मुझे खुशी हुई कि आज सीमा शाम को आ सकेगी। हुआ भी यही कुछ देर बाद सीमा आ गयी। उस ने बताया कि बापु की तबीयत सही नहीं है इस लिये अगले कुछ दिनों तक वह ही खाना बनाने आयेगी। मैं भी मन ही मन यही चाहता था, मुझे लगा कि सीमा भी शायद यही चाहती थी। हम दोनों के मन की हो रही थी।

बाहर मौसम फिर खराब हो रहा था। मैंने सीमा से पुछा कि वह घर में बता कर आयी है कि अगर बारिश की वजह से ना आ पाये तो यही रुक जायेगी। वह बोली कि मैं बता कर आयी हूँ कि मैं रात को वही रुक जाऊँगी। ऐसे मौसम में बापु ने भी मुझे आने से मना कर दिया था। आज सुबह आप छोड़ने चले गये नहीं तो मैं शाम को वापस नहीं आ पाती। मैंने कहा कि आज मैं खाली था जंगल नहीं जा पाया इस लिये उसे छोड़ने चला गया था। वह मुस्करा कर मुझे देखती हुई चली गयी। शाम के घिरते ही बारिश शुरु हो गयी, और फिर जोरदार तुफान में बदल गयी। बाहर भी तुफान आ रहा था और मुझे लग रहा था कि कमरे के अंदर भी तुफान आने वाला था।

बरसात के कारण ठंड़ बड़ गयी तो मैं गरम कपड़ें पहने लग गया। मुझे लग रहा था कि आज मेरा और सीमा का मिलन सही तरीके से होना चाहिये। इस के लिये मुझे कुछ करना होगा, लेकिन क्या यह मैं सोच नहीं पा रहा था। सीमा ने मुझ से पुछा कि साहब खाना लगा दूं तो मैंने हाँ कर दी। कुछ देर में वह खाना ले कर आ गयी। मैंने उस से पुछा कि अपना खाना बना लिया है तो वह बोली कि हाँ जब रात को यही रुकना है तो खाना तो खाना पड़ेगा। मैं चुपचाप खाना खाता रहा। सीमा भी खाना खाने चली गयी।

तुफान की गति बढ़ गयी थी। बिजली जोर-जोर से चमक कर गिर रही थी। पहाड़ के ऊपरी छोर पर होने के कारण दूर घाटियों में गिरती बिजली वातावरण को डरावना बना रही थी। और कुछ करने नहीं था सो मैं सोने की तैयारी करने लगा। तभी सीमा कमरे में आ कर खड़ी हो गयी। मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा तो वह मुझे घुर रही थी कि मैं कुछ कहुँ। मैंने उसे कहा कि आज वह मेरे साथ सो जाये। रजाईयाँ कम है। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बिस्तर लेने चली गयी। अपने कमरे और दरवाजों को बंद करके वह मेरे कमरे में आ गयी।

मैंने उस से पुछा कि शराब पीती है तो उस ने सर हिला दिया। मैंने बोतल में से शराब निकाल कर दो गिलासों में डाली और एक गिलास उस के हाथ में थमा दिया। उस ने गिलास संभाल कर पकड़ लिया। हम दोनों कुर्सियों पर बैठ कर शराब पीने लगे। शराब का नशा चढ़ने कारण मुझ में और सीमा में थोड़ी हिम्मत आ गयी थी। मैंने उस से पुछा कि कल कैसा लगा था तो वह बोली कि सही लगा था। इस के बाद वह चुपचाप शराब पीती रही। दो पैग लगाने के बाद हम दोनों के शरीर में भरपुर गर्मी आ गयी थी और उसे अब निकालने का मौका आ गया था।

मैंने सीमा से कहा कि वह अपने ऊनी कपड़ें उतार दे रात में सोने में आसानी होगी तो वह बोली कि साहब ठंड़ तो नहीं लग जायेगी। मैंने कहा कि जब उस दिन ठंड़ नहीं लगी थी तो आज कैसे लग जायेगी। वह मेरी बात समझ गयी। उस ने अपने उनी स्वेटर और कपड़ें उतार कर रख दिये। आज वह वैसे भी अलग कपड़ें पहन कर आयी थी। इन कपड़ों में उस का शरीर उभर कर आ रहा था। पहाड़ पर औरतों के काम करने के कपड़ें उन की शारीरिक बनावट को छुपा देते है। सभी एक जैसी लगती है। उन्हें देख कर मन में कोई भाव उत्पन्न नहीं होतें है। लेकिन आज सीमा को देख कर मन में भाव आ रहे थे। वह भी सब कुछ समझ रही थी।

पहले मैं रजाई में घुसा फिर पीछे से सीमा भी रजाई में आ गयी। हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहें। जब शरीर रजाई के आदी हो गये तो मैंने उस की तरफ मुँह किया और उस से पुछा की मेरे साथ सोने में कोई परेशानी तो नहीं है तो वह बोली कि नहीं कल मुझे अच्छा लगा था। मैंने उस के होंठों पर चुम्बन दे दिया ताकि वह थोड़ी गरम हो जाये। आज मैं चाहता था कि वह भी सेक्स में साथ दे तभी खेल में मजा आयेगा। वह भी मन ही मन इस के लिये तैयार थी। मैंने उस की गरदन पर चुमा और अपने हाथ से उस की छाती को सहलाया, मुझे पता था कि उस के उरोज छोटें लेकिन कसे हुये थे। शारीरिक काम करने वाली का शरीर था जिस में मांसपेशियां ही थी कहीं फालतु मांस नहीं था।

कपड़ें के ऊपर से उस के तने हुये निप्पल मुझे महसुस हो रहे थे। मैं उन्हें मसलना और चुसना चाहता था इस लिये मैंने उस के ब्लाउज को बटन खोल के उतार दिया और उस के एक उरोज के कुचाग्र को मुँह में ले लिया और उसे चुसने लगा। सीमा के मुँह से कराह निकली। दूसरे उरोज को हथेली में दबा कर मसलना शुरु कर दिया। फिर उस की निप्पल को चुसने का नंबर आया और पहले वाला उरोज मसला जाने लगा।

सीमा के मुँह से हल्की कराहें निकल रही थी। काफी देर उस के उरोजों का रस पीने के बाद मेरे होंठ उस की कमर पर आ गये और नाभी को चुम कर नीचे जाँघों के जोड़ पर पहुँच गये। मेरी गरम सांसे उस की योनि पर बरस रही थी। कपड़ें होने के कारण नीचे नहीं जा पा रहा था। बैठ कर उस की साड़ी अलग की और पेटीकोट उतार दिया। नीचे पेंटी पहने थी। उसे भी उतार कर रख दिया। उस की चूत पर हल्के बाल थे। चूत से आ रही हल्की सुगंध मुझे मदमस्त कर रही थी।

मुझ से अब रुका नहीं जा रहा था सो उस की चूत की तरफ बैठ कर 69 की पोजिशन में आ कर होंठों को उस की चूत पर लगा दिया। वहाँ पर हल्की सी नमी थी। सीमा भी अब तक गरम हो चुकी थी। उस की चूत भी पानी निकाल रही थी। मेरे होंठों ने उस की चूत के पानी का स्वाद लेना शुरु कर दिया। फिर मेरी जीभ उस की चूत के अंदर जा कर उसे चाटने लगी। सीमा की कराहें बढ़ गयी। कुछ देर बाद उस ने अपना हाथ मेरे पायजामें में डाल कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। कुछ देर बाद पायजामा उतार कर उस ने लंड़ को हाथ से मसलना शुरु कर दिया।

मुझे यह अच्छा लग रहा था। वह अच्छे से मेरे लंड़ को मथ रही थी। कुछ देर बाद मेरा प्रीकम निकल गया। मैंने उसे पेट के बल लिटाया और उस की पीठ को सहला कर उस के कसे चुतड़ों को सहलाता हूआ उस की भरी जाँघों को सहलाता हूआ उस के पंजों तक गया और फिर वापस आ कर उस की पीठ पर चुम्बन लेकर उसकी गरदन को चुमने लग गया। वासना की आग हम दोनों के शरीर में भड़क चुकी थी अब समय था उस को बुझाने का।

इस लिये मैंने उसे पीठ के बल किया और उस की जाँघों के बीच बैठ कर अपना लंड़ जो अब 6 इंच हो गया था और लोहे जितना कठोर हो गया था। उसे सीमा की चूत पर लगा कर जोर लगाया तो लंड उस की चूत में घुस गया। सीमा ने आहहह......... भरी। मैंने दूसरी बार जोर लगाया तो लंड़ पुरा सीमा की चूत में चला गया। सीमा अपने गरदन इधर-उधर पटकने लगी। मैं जोर-जोर से धक्कें लगा रहा था। कुछ देर बाद सीमा ने नीचे से अपने कुल्हें उठा कर मेरा साथ देना शुरु कर दिया। हम दोनों एक ही गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे। नशे के कारण वैसे ही हमारे शरीर गर्मी से जल रहे थे। पसीने से शरीर भीग गये थे। काफी देर तक मैं धक्कें लगाता रहा फिर थक कर सीमा की बगल में लेट गया।

कुछ देर सांस लेने के बाद मैंने सीमा को उलटा किया उसे डोगी स्टाइल में कर के पीछे से उस की चूत में अपना लंड़ घुसेड़ दिया। सीमा ने उहहहहहहहहह करा। मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया और पीछे से उस की चूत पर प्रहार करता रहा। इस आसन में भी कुछ देर बाद थक गया। शराब के कारण देर लग रही थी। सीमा को मजा आ रहा था। यह मुझे उस की कराहों से पता चल रहा था। मैंने उसे पीठ के बल लिटाया और उस के अंदर प्रवेश कर गया। अब मैंने अपने शरीर को एक लकीर में सीधा किया और जोर से धक्कें लगाना शुरु कर दिया। नीचे से सीमा जोर जोर से कराहने लगी। उस की चूत पर जोर जोर से धक्कें लग रहे थे। अब हम दोनों ही इस गर्मी से छुटकारा पाना चाहते थे। इतनी ठंड़ में भी हम दोनों के शरीर चल रहे थे। लेकिन हम दोनों में से कोई रुक नहीं रहा था।

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