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Click hereपड़ोसियों के साथ एक नौजवान के कारनामे-259
VOLUME II-विवाह और शुद्धिकरन
CHAPTER-5
मधुमास (हनीमून)
PART 42
कुंवारी की दीक्षा का जश्न
"और अब," गुरुजी ने घोषणा की, "हम अनुष्ठानिक समूह सेक्स के साथ एक कुंवारी की दीक्षा का जश्न मनाएंगे!"
मैं देख सकता था कि सभी पुरुष दौड़ पड़े और अपने सामने वाली महिलाओं को चोदने के लिए पकड़ लिया। मेरी नज़र खूबसूरत अनुराधा पर थी लेकिन मेरा लंड अभी भी अभिजिता में दबा हुआ था।
गुरुजी अभिजिता की ओर बढ़े "उन्होंने उसे चूमा और कहा" अब मैं भी तुम्हे पवित्र करता हूँ। " मैंने अपने लंड निकाला तो गुरूजी ने तुरंत अपना लंड अभिजिता के अंदर सरका दिया और कई क्षणों तक अभिजिता को ठोकता रहा। एक के बाद एक लंड को अपने अंदर महसूस करना अभिजीत को बहुत अच्छा लग रहा था। गुरूजी का लंड मुझसे छोटा था। उसने अभिजिता को पलट दिया जिससे वह अपने हाथों और घुटनों पर थी। वह गुरुजी के सामने कुतिया की तरह अपने हाथों और घुटनों के बल झुकी हुई थी। गुरूजी ने मेरे बीज के साथ डुबकी लगाते हुए उसके छेद को करीब से देखा। अपने विशाल लंड को उसकी कुंवारी गांड में डालने से पहले उन्होंने मेरे बीज को उसके दूसरे छेद पर रगड़ा और चिकनाई प्रदान की और अपना लिंग दही धीरे उसकी गांड में दबा दिया।
अभिजिता को ऐसा लगा जैसे वह उसे फाड़ रहा है और दर्द से चिल्लाने लगी, लेकिन इससे उसके शरीर में असहनीय आनंद की एक और कंपकंपी दौड़ गई। उसकी दर्द भरी चीख मेरे लिए अद्भुत आनंद की कराह बन गई।
गुरुजी ने उसके कान में कहा, "मेरी बच्ची, मेरी प्यारी।" "मम्म, अपने गुरु को अपने अंदर अपना बीज उगलने दो! उसे तुम्हारी गांड चोदने दो!"
आराम के इन पलों के लिए, मुझे असहनीय रूप से खालीपन महसूस हुआ लेकिन अभिजीत की कराहो और आसपास हो रहे सेक्स और चुंबन के देख जल्द ही मैं पहले से भी अधिक उत्तेजित महसूस कर रहा था और मेरा लिंग कड़ा हो गया था। अनुराधा ने एक बार फिर मेरे लिंग पर पिघला हुआ मक्खन डाला तो मैं अनुराधा को ऊपर उठाते हुए उसके कान में फुसफुसाया। "हैलो, खूबसूरत औरत।"
तभी एक और युवक मेज पर चढ़ गया। उसने अभिजिता का चेहरा पकड़ लिया और उसे चूमने लगा। वह उसके नीचे सरक गया और खुद को उसके पैरों के बीच में खड़ा कर लिया और अपने लंड को अभिजिता की भीगी हुई योनि में धकेल दिया।
अब दो पुरुष अभिजिता को चोद रहे थे, उन्होंने उसे दोनों छेदों में चोदा और आनंद उसके शरीर पर हावी हो गया। वह कराह रही थी और रो रही थी और उसे बहुत गंदा और इस्तेमाल महसूस हो रहा था, लेकिन वह इसका विरोध नहीं कर सकती थी। उसकी देह चिल्ला उठी कि वह किसी लंड का साथ चाहती थी। कुछ ही देर में, उसे हाथों से पकड़कर ऊपर उठाया जा रहा था और लंड पर जोर डाला जा रहा था। उसने अपने शरीर पर सारा नियंत्रण खो दिया था और वह लंगड़ा कर रह गई थी, सिवाय इसके कि उसके शरीर पर और अधिक कामोत्तेजना आ गई थी। गुरुजी का एक और शिष्य मेज पर चढ़ गया। हमारे बगल में घुटनों के बल बैठ गया और अपना लंड अभिजिता के गले में उतार दिया।
मैंने अनुराधा को अपने से लिपटा लिया और उसके मुँह से मुँह चिपका कर उसके होंठ चूसने लगा। उसने भी अपनी जीभ मेरे मुँह में दे दी जिससे उसका मुख़रस मेरे मुँह में आना शुरू हो गया।
उसने मेरे सिर को पकड़ लिया और बड़े प्यार से चुम्मी देती रही। उसके मुँह की सुगंध कामाग्नि भड़काने वाली थी और उसके मुख रस का स्वाद बहुत मज़ेदार था तो लंड खड़ा हो गया और टनटनाने लगा।
फिर मैंने उसकी चोली में हाथ डालकर उसे खोला उसके चूचुक सहलाये। मदमस्त मम्मे थे, बड़े-बड़े अनारो की भांति गोल सुडोल चुचकों को देख कर मज़ा आ गया। बड़े-बड़े दायरों वाली बड़ी-बड़ी निप्पल वाले गोल स्तन। गहरे काले रंग के निप्पल और निप्पलों के दायरों का रंग हल्का भूरा था। दबाया तो बहुत ही आनन्दायक चूचुक लगे, नर्म-नर्म लेकिन पिलपिले नहीं, लगा इनको निचोड़ने और चूसने में बेतहाशा मज़ा आयेगा। कुल मिला कर गोल मम्मे भारी थे, लेकिन तने हुए।
वो अपनी चूत में अपनी ऊँगली ले गयी और जब उसने चूत से उंगली निकाली। वह उसके सेक्स रस से सनी हुई थी। उसने आहिस्ते से अपनी उंगली को मुँह में लिया और अपना रस चूसने लगी। उसे अपनी चूत का रस बहुत टेस्टी लगता था। मैंने झुककर एक-एक करके उसके हाथ की सब उंगलियाँ चूसीं, बहुत स्वादिष्ट! फिर उसके पैर का अंगूठा और सभी उंगलिया और तलवे चूसे और एड़ी पर जीभ घुमाई।
फिर मैंने अनुराधा के हाथों का मुआयना किया, बड़े सुन्दर, सलोने और सुडौल हाथ थे। मखमल-सी मुलायम, लम्बी मांसल उंगलियाँ, सलीकेदार और लम्बे आयताकार सुन्दर नाखून जो बस ज़रा से ही उंगलियों से बढ़े हुए थे, त्वचा एकदम रेशम जैसी चिकनी! पैर भी बहुत खूबसूरत थे, अंगूठा साथ वाली उंगली से ज़रा-सा छोटा। सभी उंगलियाँ ऐसा लगता था किसी मूर्तिकार ने तराश कर बनाईं हैं। नाखून साफ और सुन्दर, थोड़े-थोड़े ही आगे निकले हुए। तलवे मुलायम जैसे किसी छोटी बालिका के हों।
फिर मैंने अनुराधा की साडी में हाथ घुसा के चूत में उंगली थोड़ी-सी घुसाई। चूत गर्म और गीली थी। उंगली बाहर निकल के मैंने मुँह में डाल के चूतरस का स्वाद चखा। मैंने ज़ोर से दोनों चूचुक निचोड़े और निप्पलो को कस के उमेठा। मैंने उसकी साडी खोल कर निकाल दी। अब वह पूरी नग्न थी।
वो-सी-सी करने लगी तो मैंने लपक कर एक चूची मुँह में लेकर चूसनी शुरू कर दी और दूसरी चूची को पूरे ज़ोर से दबाता रहा।
'हूउऊऊऊऊँ। हूउऊऊऊऊँ......हूउऊऊऊऊँ' मैंने खुश होकर हुंकार भरी। इसके साथ वाकयी में खूब मज़ा आयेगा।
मैं बारी-बारी से दोनों चूचियाँ चूसता गया, एक चूची चूसता तो दूसरी को दबा-दबा कर निचोड़ता।
फिर पहली चूची दबाता और दूसरी को चूसता।
मैं अपना हाथ नीचे ले गया और चूत और गांड पर पूरा हाथ फेरा। बिल्कुल मक्खन जैसी चूत और गांड देख कर कहा-ओह, वाह... मज़ा आ गया और अनुराधा ने इसके साथ ही अपने रस भरे होंठ, मेरे लबों पर रख दिये और मैं उसके ओंठ चूसने लगा।
किस तो मैंने पहले भी बहुत सारी लड़कियों को किए थे लेकिन आज का आलम कुछ और था... ज़बरदस्त। मैं उसके मुँह में मुंह डाल कर वह किस नहीं कर रहा था बल्कि उसका रस पी रहा था। फिर जब मैंने नीचे हाथों से चूत मसली और अपनी एक उंगली जब अनुराधा की भीगी चूत में डाली तो वह हिल गयी। उसे एकदम बहुत तेज़ दर्द हुआ और वह अगले ही पल मैं कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगी और मेरे साथ चिपट गयी। यह देखकर मैंने अपनी उंगली का अगला हिस्सा चूत में घुसा दिया। होंठ अभी होंठों में थे और मैं उसी तरह उसके अधरों का रस पी रहा था।
उसने कुछ देर बाद अपने ओंठो को हटाया और हाफने लगी तो-तो मैंने उसे कहा रानी पीने पर तेरा रस कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ता गया है और फिर से होंठो से ओंठो को चिपका कर उसे चूसने और रस पीने लगा। मैंने एक पल भी उसके मुँह को अलग नहीं होने दिया और फिर उसके होठों पर कब्ज़ा कर लिया।
यह करके मैंने अचानकअपनी उंगली, जो उसके चूत रस से तर-बतर थी, बाहर निकाल ली और गांड के द्वार को अच्छी तरह मेरे ही रस से गीला कर अपनी आधी उंगली उसकी गांड में डाल दी।
गांड में उंगली डाले ही अपना मोटा अँगूठा अनुराधा की लपलपाती चूत में डाल दिया। मोटा अँगूठा अंदर गया तो अनुराधा के मुंह से एक तेज़ 'ऊंहहहहहह...' निकली क्योंकि उसके होठ मेरे लबों के शिकनजे में थे। मैं अपना अँगूठा और आधी उंगली उसकी गांड और चूत में आगे पीछे कर रहा था। जल्द ही दर्द एक असीम आनंद में बदल गया। वह मेरी मज़बूत बांहों में लेटी रही क्योंकि उसे अब अहसास हो गया था कि किसी भी तरह का प्रतिरोध एकदम व्यर्थ है। उसने अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और असीम आनंद में गुम होने लगी।
कुछ पलों बाद अनुराधा बड़ी तेज़ी से झड़ने की कगार पर पहुँची ही थी कि मैंने अचानक अपना अँगूठा और उंगली एकदम बाहर निकाल ली और होंठों को भी आज़ाद कर दिया और जल्दी से दो बड़े तकिये उठा के अनुरादः की कमर के नीचे रख दिये और उसके ऊपर चढ़ के उसके होठों का रस पीने लगा और नीचे से अपना लंड पकड़ कर उसकी चूत पर ऊपर से नीचे तक फिराने लगा।
मैंने अनुराधा की बिलबिलाती चूत पर अपना लंड रख और बड़े सलीके और तेज़ी से एक झटका मारा, लंड का टोपा अंदर घुस गया था, चूत अपनी पूरी हदों तक फैल गयी। अनुराधा ने चादर को मुट्ठियों से भींच लिया था, मैंने उसकी टाँगें मोड़ लीं, अब चूत छत की तरफ पूरी तरह उठ चुकी थी और मेरा सुपारा उसकी चूत में अटका हुआ था।
लण्ड चूत के मुहाने पर जमा के मैंने एक ज़ोर का धक्का दिया, मेरा लौड़ा चूत में घुस गया। चूत क्योंकि बहुत रसा रही थी, इसलिये लण्ड घुसने में बिल्कुल भी दिक्कत न हुई, हालांकि उसकी चूत बहुत कसी थी जिससे चूत में खूब पिच-पिच मच गई जबकि लण्ड को तो बड़ा मज़ा आया उबलते उफनते रस की बौछार में भीग के! मैंने एक तेज़ घस्सा मारा और मेरा लंड 8 इंच तक अंदर धस गया। अनुराधा कराहने लगी और रोते-रोते बोली-अह्ह्ह उह्ह्ह्ह!...हाय...हाय... बहुत दर्द हो रहा हे... उई माँ...
मैंने उस पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। मैंने होंठ गीले कर-कर के उस बार-बार पलकों पर, होंठों पर, गालों पर और माथे पर चुम्मियाँ लीं, उसके स्तनों को मसला, मैंने ज़ोर से दोनों चूचुक निचोड़े और निप्पलो को कस के उमेठा। कान की लौ चूसी, दोनों गाल बारी-बारी से चूसे, फिर मैंने उसके कंधों के ऊपरी भाग पर जीभ फिराई, उसके बाज़ू ऊंचे करके बगलें चाटीं।
इतना प्यार भरे मधुर चुम्बन पा के उसकी घबराहट फौरन कम हो गई और उसे भी मज़ा आने लगा।
इस दौरान मैंने लण्ड एकदम शांत रखा हुआ था, कोई धक्का नहीं मारा, जल्द ही अनुराधा भी चुंबन के जवाब में मुझे चूमने लगी। अब मैंने हल्के-हल्के धक्के भी देने शुरू कर दिये। अनुराधा ने भी मज़े लेते हुए अपने नितम्ब हिला कर धक्के के जवाब में धक्के लगाये।
मैंने फिर उसके होंठों को चूसते-चूसते धक्के थोड़ा तेज़ शुरू किये। उसने अपनी बाहें कस के मेरे बदन से लिपटा ली थीं और उसने अपनी मुलायम-मुलायम टांगें चौड़ा कर मेरी फैली हुई टांगों में लपेट रखी थीं, उसके पैर मेरे फिर मैंने दोनों हाथों से उसके स्तन पकड़ लिये और उन्हें मसलते हुए धक्के पर धक्का लगाने लगा।
धक्के के साथ-साथ चूचुको का मर्दन भी खूब ज़ोरों से हो रहा था। मैं लौड़ा पूरा चूत के बाहर निकलता और फिर धीरे से जड़ तक बुर के अंदर घुसेड़ देता। उसकी चूत दबादब रस छोड़े जा रही थी। मैंने खूब तगड़े धक्के मारे, तो वह मुझ से पूरी ताक़त से लिपट गई, वह चरम सीमा पर पहुँच गई, उसने मेरा सिर कस के भींच लिया और अपनी कमर उछालते हुए कुछ धक्के मारे।
वो झड़े जा रही थी। अब तक कई दफा चरम आनन्द पा चुकी थी, झड़ती, गरम होती और ज़ोर का धक्का खा के फिर झड़ जाती। अब तक मैं भी झड़ने को हो गया था, मैंने उसके स्तन मसलते हुए उसके ओंठ चूसते हुए कई ताक़तवर धक्के मारे और स्खलित हो गया। हमारी साँसें बहुत तेज़ चल रही थीं।
कहानी जारी रहेगी