मामा की साली से प्यार

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मामा की साली की उदासी दूर करने की कोशिश में उस से प्यार होना
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आज की कहानी की शुरुआत हुई मेरी गरमी की छुट्टियों के दौरान हुई थी। मेरे मामा जी की शादी हुये अभी दो साल ही हुये थे। उन की साली मेरी ही उम्र की थी। इस लिये मेरी उस से मामा जी की शादी के दौरान दोस्ती हो गयी थी। छुट्टियों में उसे ननिहाल में पा कर मैं बहुत खुश था। मेरी उस से अच्छी बनती थी। लेकिन इस बार मेरे मामा जी की साली जिसका नाम उषा था, कुछ अनमनी सी नजर आ रही थी।

उस के चेहरे पर उदासी की परत हर समय चढ़ी रहती थी, जिसे मैं महसुस कर पा रहा था। औरों को क्या लग रहा था मैं नहीं कह सकता था लेकिन मुझे लग रहा था कि उषा के साथ कुछ हुआ है? सदा चुलबुली रहने वाली लड़की इस बार उदास और गुमसुम सी थी। किसी से ज्यादा बात नहीं कर रही थी। किसी के साथ बातचीत में भी उस का मन नहीं लग रहा था।

इस बात को उस की बहन यानी मेरी मामी जी भी महसुस कर रही थी। उन्हें पता था कि मेरी उस से दोस्ती है तो उन्होंने मुझे इशारा किया कि उषा का ध्यान रखा करो। ज्यादा तो कुछ नहीं बताया लेकिन मुझे अपनी उम्र की क्षमता के अनुसार लगा कि कुछ तो हुआ है जिस के कारण उषा परेशान है या उस की वर्तमान अवस्था के पीछे कुछ तो है।

लड़कियों के विषय में या कच्ची उम्र के कारण अनुभव कम होने की वजह से मुझे उषा की परेशानी का कारण तो समझ नहीं आ रहा था लेकिन यह जरुर लग रहा था कि वह खुश रहे। इस लिये मैं उस के पीछे लगा रहता था और उसे खुश करने की भरपुर कोशिश भी करता था। इस सब में मेरी छुट्टीयां खत्म हो गयी। जब मैं वापस घर के लिये लौटने लगा तो मामी जी बोली कि तुम उषा को अपने साथ ले जाओ, शायद नयी जगह जा कर उस का मन लग जाये। मेरी माँ भी उन की इस बात से सहमत थी। वह भी उषा को चाहती थी। इस लिये हम उषा को जबरदस्ती अपने साथ ले आये।

घर आने के बाद मेरे कॉलेज खुल गये थे। मैं अपने कॉलेज जाने लगा। मेरी माँ पीछे से उषा को अपने साथ व्यस्त रखने की कोशिश करती थी। उसे अपने साथ बाजार वगैरहा ले कर जाती थी लेकिन उस का अनमनापन दूर नहीं हो रहा था।

एक दिन जब मेरी कॉलेज की छुट्टी थी, माँ ने मुझे अपने पास बुला कर कहा कि तुम उषा को अपने साथ कही घुमाने ले जाओ। शायद घुम कर इस का मन बहल जाये। मैं भी माँ की बात से सहमत था। इस लिये मैंने तय किया कि आज मैं उषा को शहर घुमाने ले जाता हूँ। यहीं सोच कर मैंने उषा को तैयार होने को कहा तो वह तैयार होने लग गयी। जब वह तैयार हो कर आयी तो सुन्दर लग रही थी। साँवली होने के बावजूद उसके नैननक्श बहुत तीखे है। इस समय उस के चेहरे पर उदासी नहीं झलक रही थी।

आज के जैसा जमाना नहीं था। घर में स्कूटर था लेकिन माँ मुझे दो जनों को लेकर जाने के लिये तैयार नहीं होती थी। इस लिये उषा और मैं दोनों पैदल ही बस स्टाप के लिये निकल गये। बस स्टाप कोई 700-800 मीटर दूर था। हम दोनों धीरे-धीरे चल रहे थे। रास्ते में मैंने उषा से पुछा कि तुम्हें हुया क्या है? तो उस ने मेरी तरफ देखा और पुछा कि मुझे क्या हुआ है?

मुझे लग रहा है कि तुम सही नहीं हो

तुम्हारें साथ चल तो रही हूँ

यह नहीं लेकिन कुछ है जो सही नहीं लग रहा है

तुम बहुत बड़े हो गये हो, बड़ी बड़ी बातें करने लगे हो

मैं तो यह जानता हूँ कि तुम पहले जैसी नहीं हो, बदल गयी हो

ऐसा कैसे लगा?

बस लगा

कोई तो बात होगी

तुम्हारा चेहरा उदासी से भरा रहता है, सारे दिन खोयी-खोयी सी रहती हो लगता है किसी की याद में डुबी हो

तुम तो कवियों की तरह से बात कर रहे हो

मेरी बात का जबाव दो?

तुम जब यह सब समझ सकते हो तो मेरी परेशानी का सबब भी जान जाओ ना?

मतलब तुम कुछ बताओगी नहीं

कुछ हो तो बताऊँ

हम दोनों के मध्य मौन पसर गया।

हम दोनों बस स्टाप पर पहुँच गये थे। कुछ देर में बस आयी तो दोनों उस में सवार हो गये। आधा घंटे के बाद अपने गंतव्य पर पहुँच गये। बस से उतर कर मैं और उषा बाजार में आ गये और हम दोनों बाजार में घुमने लग गये। कुछ देर में हम दोनों घुम कर थक गये और एक पार्क में आ कर बैठ गये। उषा का मन बाजार में नहीं लग रहा था। वह मुझ से बात भी नहीं कर रही थी।

इस लिये मैंने सोचा कि इसे किसी शान्त जगह पर ले कर जाता हूँ। यही सोच कर मैंने उस का हाथ पकड़ा और बाजार से निकल कर हम बस स्टाप पर आ गये। वहाँ से बस पकड़ कर उस में बैठ गये। शहर के कोने में एक नेता की समाधि थी, जो बहुत बड़ी जगह में फैली थी। भरपुर हरियाली उसे छोटे-मोटे जंगल का रुप दे देती थी। बहुत शान्त जगह थी। इस लिये समाधि स्थल के आते ही मैं उसे साथ लेकर बस से उतर गया।

समाधि पर रविवार होने के बावजूद ज्यादा भीड़भाड़ नही थी। हम दोनों अंदर आ गये और समधि स्थल में घुमने लगे। उषा अभी भी मौन थी। लेकिन उस के चेहरे से लग रहा था कि यहाँ की शान्ति उसे पसन्द आ रही थी। कुछ देर घुमने के बाद हम दोनों एक एकान्त स्थान पर बैठ गये।

मैंने उस से पुछा कि जगह पसन्द है तो वह बोली कि हाँ यहाँ बहुत शान्ति है इस लिये अच्छा लग रहा है। तुम्हें यह जगह कैसे पता है?

ऐसे ही पता है

पहले किसी और को ले कर आये थे?

तुम्हें कैसे पता लगा?

ऐसे ही

नहीं पहले तो हम लड़के ही आये थे, तुम्हारे साथ पहली बार, किसी के साथ अकेले आया हूँ

यह तो प्रेमियों के लिये बढ़िया जगह है

हाँ शहर से दूर एकान्त जगह है

मुझे क्यों लाये हो?

ताकि तुम जो रोती सी लग रही हो, अपने दूख से बाहर आयो

तुम्हें क्यों लगता है कि मैं उदास हूँ

यार तुम मुझ से बड़ी हो लेकिन मैं भी कुछ-कुछ समझने लगा हूँ

जब सब कुछ समझ रहे हो तो यह भी समझ जाओ कि मैं क्यों उदास हूँ?

कुछ-कुछ समझ तो आ रहा है, लेकिन कह नहीं सकता

क्यों?

बस ऐसे ही

इतनी चिन्ता करते हो मेरी

यह बात भी बतानी पड़ेगी?

नहीं इतनी तो समझ है मुझ मैं

तो समझ कर बता क्यों नहीं देती

नहीं कुछ खास नही है

जैसी तुम्हारी मर्जी

नाराज हो?

नही नाराज कैसे हो सकता हूँ, इतना अधिकार नहीं है मुझे, बस चिन्तित हूँ

बड़ी-बड़ी बाते करना कहाँ से सीखा?

बात तो बात है छोटी क्या बड़ी क्या?

अब तुम बोर कर रहे हो

चलों कही और चले

हम दोनों उठ गये और फिर से घुमने लग गये। रास्ते में घनी झाड़ियां थी। उन के नजदीक से गुजरे तो वहाँ से सरसराहट की आवाजें कानों में पड़ी। हम दोनों उस का कारण मन ही मन में सोच कर लाल से हो गये। झाड़ियों में प्रेमी प्रेमिका आपस में प्रेमालाप कर रहे थे। उस की आवाजे ही हमारे कानों में पड़ रही थी। दोनों शर्मा कर तेजी से आगे के लिये चल दिये। आगे भी ऐसा ही कुछ चल रहा था।

दोनों के कदमों में तेजी आ गयी और हम दोनों भी जल्दी में एक घनी झाड़ी में पहुँच गये। हमारें चारों तरफ झाड़ियों का झुरमुट फैला था। उषा रुक गयी और मेरा हाथ पकड़ कर एक तरफ हो गयी। फिर मुझे लेकर नीचे घास पर बैठ गयी। हम दोनों बिल्कुल एकांत में थे।

उषा ने मेरी तरफ देख कर कहा कि तुम्हें मेरी इतनी चिन्ता है यह जान कर अच्छा लगा। तुम चाहते हो कि मेरी उदासी दूर हो जाये। यही मैं भी चाहती हूँ लेकिन मेरा मन मेरे काबू में नहीं है।

जो बीत गया है उसे भुल क्यों नहीं जाती

क्या भुल जाऊँ

जो बीत गया है

तुमें सब पता है

कहावत है इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते

तुम तो छुप्पे रुस्तम हो

तुम्हारी ही उम्र का हूँ और उसी अवस्था से गुजर रहा हूँ

यह तो मैं भुल ही गयी थी

अब याद रखना

किसी ने धोखा दे दिया है

मुझे पता है

कैसे

तुम्हारें चेहरे पर इतने दिनों से यही लिखा हुआ है

तुम्हें पता था?

हाँ

फिर भी मेरे को खुश करने की कोशिश कर रहे थे

हाँ तुम मेरी दोस्त हो, मुझे पसन्द हो, इस लिये ऐसा करना बनता है

कभी मुझे बताया क्यों नहीं

क्या?

मुझे चाहते हो

तुम्हें कुछ दिखायी नहीं देता

नहीं

दिखायी कैसे देगा, तुम तो किसी की यादों में खोई रहती हो

तुम्हें बुरा लगा

हाँ, सदा हँसने वाली लड़की उदास रहे तो परेशानी तो होती है

पुरे बदमाश हो

क्या बदमाशी करी है?

मेरी परेशानी का मजा लिया है यह क्या कम बदमाशी है

तुम अपने सिवा कुछ देख ही नहीं रही हो

उषा ने मेरे दोनों हाथ कस कर पकड़ लिये। मेरी आँखों में आँखे डाल कर बोली कि तुम बहुत बड़े हो गये हो। मैं यही सोच कर खुश थी कि यह तो छोटा सा है इसे क्या पता होगा? उसकी आँखे डबडबा आई और उसकी आंखों से आँसु गिरने लग गये। कुछ देर मैं उसे रोते देखता रहा फिर जब रुका नहीं गया, तो मैंने हाथ बढा कर उस के चेहरे को हाथों से साफ कर दिया और सारे आँसु पोछ दिये। वह चुप हो गयी।

उस का चेहरा अपने हाथों में पकड़ कर ऊपर किया और उस की नजरों में नजरें डाल कर कहा कि तुम रोती हूई अच्छी नहीं लगती हो। उस ने मेरे हाथ अपने हाथों में लिये और उन पर अपने होंठों की छाप लगा दी। उषा कि इस हरकत से मैं आचंभित सा हो गया। उस ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और उस के होंठ मेरे होंठों से चुपक गये। मेरे पास रियेक्ट करने का मौका ही नहीं था। कुछ देर तक हम दोनों चुम्बनरत रहे। फिर अलग हो गये।

चुम्बन के बाद उस के चेहरे पर छाई हुई उदासी छट गयी थी। चेहरा खुशी से चमक गया था। मुझे आज से पहले किसी लड़की ने चुमा नही था सो अपने पहले चुम्बन के कारण मेरे शरीर में अजीब सी उत्तेजना भर गयी थी। शायद जाँघों के बीच भी खुन का प्रवाह बढ़ गया था। अन्जानी सी उत्तेजना के कारण मैं चौकस हो गया था।

कुछ देर तक हम दोनों एक-दूसरे का हाथ थामें बैठे रहे। फिर मैंने ही कहा कि देर हो रही है। वह भी समझ गयी और हम दोनों उठ कर खड़े हो गये। मैंने उठ कर अपने को देखा तो पता चला कि पेंट में उभार नजर आ रहा था। ऐसे उभार को लेकर बाहर जाने में मुझे शर्म सी आ रही थी।

मुझे चलता ना देख कर उषा ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली कि यहाँ से चलते है। मैं कुछ बोलता इस से पहले ही उस की नजर मेरे पर पड़ी तो वह सब समझ गयी और मेरा हाथ पकड़ कर झाड़ी से बाहर निकल आयी। इस समय तक मैं अपने आप पर कुछ काबु पा चुका था। इस लिये उस के साथ-साथ चलने लगा।

अब वह मेरा हाथ पकड़ कर चल रहे थी। कुछ देर तक घुमने के बाद हम दोनों समाधिस्थल से बाहर आ गये और बस स्टाप पर आ कर बैठ गये। उषा बोली कि तुम छोटे नहीं हो, बड़े हो गये हो। मैंने कहा कि अब इस बात को दोहराना बंद कर दो। वह यह सुन कर वह हँस गयी और बोली कि बुरा मान गये? मैंने कहा कि तुम और मैं हम उम्र है। वह कुछ नहीं बोली और मुझे देखती रही।

तभी बस आ गयी और हम दोनों बस में सवार हो गये। घर पहुँच कर मैं कपड़ें बदलने लगा, तभी माँ ने आ कर पुछा कि कुछ खा कर आये हो या खाना बनाऊँ? मैंने माँ को बताया कि बड़ी भुख लगी है। वह खाना बनाने किचन में चली गयी। उषा मेरे कमरे में आयी और हँस कर वापस माँ के पास किचन में चली गयी। कुछ देर बाद वह आयी और मेरे सामने खाना रख कर चली गयी। मैं खाना खाने लगा। कुछ देर बाद वह वापस खाना लेकर आयी और मेरे साथ खाना खाने बैठ गयी।

हम दोनों चुपचाप खाना खाते रहे लेकिन वह बीच-बीच में मुस्करा कर मेरी तरफ देख लेती थी। हम दोनों एक-दूसरें के सानिध्य का आनंद उठा रहे थे। एक-दूसरें के प्रति हम दोनों के मन में लगाव पैदा हो चुका था। यह हम दोनों को समझ आ रहा था। महसुस दोनों कर रहे थे लेकिन पहल कोई नहीं करना चाहता था, या शर्म के कारण दोनों चुप थे।

दोनों में प्यार का गहराना

हम दोनों को आपस में अकेले में मिलने का मौका नहीं मिल पा रहा था। मैं कॉलेज जाने के कारण दिन में घर से बाहर रहता था। शाम को ही घर आ कर मैं उषा के साथ बात कर पाता था। मेरी माँ नें एक दिन मुझ से कहा कि हम उषा को घर ले तो आऐ है लेकिन तुम उसे कही घुमा नहीं रहे हो। मैंने उन से कहा कि मैं छुट्टी लेकर उषा को घुमाने ले जाता हूँ। मेरी इस बात से माँ प्रसन्न हो गयी।

मैंने अपने कॉलेज से छुट्टी ले ली और उषा को अपने साथ घुमाने ले गया। उस दिन हमने एक साथ घुमने का आनंद उठाया। दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर घुमते थे। घुमने के दौरान हम दोनों के बीच बहुत सारी बातें होती रहती थी, इस कारण से दोनों के बीच प्यार और गहरा गया था। मेरी माँ भी यह सब समझ रही थी। शायद वह भी यही चाहती थी, लेकिन भविष्य में क्या होगा यह कोई नहीं जान पाया है।

पहला मिलन

एक दिन मैं दोपहर में घर पर सो रहा था। घर में और भाई-बहन भी थे। मुझे लगा कि किसी ने मेरे माथे पर चुमा है, होंठों की नमी से मेरी नींद टुट गयी। आँखें खोली तो देखा कि उषा मुझ पर झुकी हुई थी। मुझे जगा देख कर वह हड़बड़ा कर सीधी हो गयी। मैं बिस्तर पर उठ कर बैठ गया। मैंने उस का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ बिस्तर पर बिठा लिया। वह मेरे पास बैठ गयी। मैंने उस की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया। हम दोनों एक-दूसरे से चिपक गये। मैं इससे आगे बढ़ता तभी मेरे दिमाग में आया कि घर में सब लोग कहाँ है?

मैंने उषा से पुछा कि सब लोग कहाँ है? उस ने बताया कि माँ तो बाजार गयी हूँई है और भाई-बहन भी बाहर गये हुये है। मैं भी बाजार चली जाती लेकिन क्योंकि तुम सोये हुये थे और घर में कोई नहीं था इस लिये मैं घर पर रुक गयी। यह सुन कर मैं आस्वस्त हुआ कि हम दोनों घर में अकेले हैं।

मैंने उषा को आलिंगन में ले लिया वह भी मेरी बाँहों में समा गयी। हम दोनों एक-दूसरे के शरीर की गर्मी को महसुस कर रहे थे। दोनों के शरीर एक-दूसरे में समा जाने को आतुर हो रहे थे। मैंने उषा का चेहरा पकड़ा और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिये। उषा के गरम, लरजते होंठ मेरे होंठों से चिपक गये। दूसरी बार के चुम्बन के कारण मेरे शरीर में खुन का दौरा एकदम तेज हो गया। कुछ देर तो हम दोनों ऐसे ही एक-दूसरे को होंठों का स्वाद लेते रहे। फिर उषा की जीभ मेरे मुँह में घुस गयी। उस ने मेरी जीभ को छेड़ना शुरु कर दिया।

हम दोनों गहरें चुम्बन में डुब गये। हमारा चुम्बन काफी लम्बा चला। जब दोनों की सांस फुल गयी तभी दोनों अलग हुये। चुम्बनों के कारण दोनों के शरीर में वासना की आग पुरी तरह से भड़क गयी थी। मेरा यह किसी लड़की के साथ अतरंग होने का पहला अवसर था, इस कारण से मैं कुछ सहमा सा, डरा सा था लेकिन उषा के व्यवहार नें मेरे संकोच को दूर कर दिया। उस के व्यवहार के कारण पहली बार होने के बावजूद मैं अपने संकोच को दूर करने में सफल रहा।

इसी कारण से मैं प्रेम करने में आगे बढ़ने लगा। मैंने उषा को अपने से चिपका लिया और हम दोनों बिस्तर पर लेट गये। आलिंगन के कारण उषा के कठोर स्तन मेरी छाती में चुभ रहे थे। उषा पतली थी इस कारण से उस के उरोज मांसल ना हो कर कठोर थे। उन के निप्पल उत्तेजना के कारण तन कर कठोर हो गये थे और ब्रा के बाहर उभर कर मेरी छाती में चुभे जा रहे थे।

उषा की गर्म सांसे मेरे चेहरे पर लग रही थी।

उषा ने अपने होंठों को मेरी गरदन पर लगा लिया और अब मैं अपनी गरदन पर उस की गरम सांसे महसुस कर रहा था। उस के होंठ मेरी गरदन पर जोरदार चुम्बन ले रहे थे।

मेरे हाथ उस की पीठ को सहला रहे थे। इस दौरान मेरा हाथ उस की ब्रा के हुक से टकरा गया। इस से मेरी उत्तेजना और बढ़ गयी और मैंने उस का कुर्ता ऊपर कर दिया। उस की सफेद ब्रा के हुक को खोल कर सामने से ब्रा को हटा दिया, अब मेरे सामने उषा के पत्थर के समान कठोर उरोज थे जिन के काले निप्पल तन कर आधे इंच के हो गये थे।

मुझ से रुका नहीं गया और मैंने अपने होंठों से एक को चुम लिया। उषा के मुँह से आह निकली लेकिन उस ने मुझे रोका नहीं। मेरे दिमाग में अब तक पढ़ी सारी मस्तराम की किताबें घुम गयी और मैं पहली बार के संसर्ग होने के बावजूद उषा के उरोजों पर टूट पड़ा। दूसरे उरोज को मेरे हाथ ने मसलना शुरु किया और उस के बाद पुरा उरोज मेरे मुँह में समा गया।

आहहह... उईई... उहह...

आराम से करो, उषा की आवाज मेरे कानों में पड़ी, तो मैं ख्यालों से बाहर आया।

मैंने उषा के दोनों उरोजों को भरपुर मसला और उन का रसपान किया। उषा भी इस का मजा ले रही थी। उस के हाथ भी मेरे कुर्ते के अंदर से मेरी पीठ को सहला रहे थे। इस के बाद उस के हाथों नें मेरी छाती सहलाई और उषा ने मेरा कुर्ता और बनियान ऊपर कर दी।

अब उषा के होंठ मेरे निप्पलों को मुँह में लेकर चुसने लगे। इस के कारण मेरे शरीर में उत्तेजना की तरंगें सी उठने लगी। मैं इस सब का पहली बार अनुभव कर रहा था। उस के हाथ मेरे पेट से होकर मेरी जाँघों के मध्य पहुँच गये थे। लेकिन शर्म के कारण वह कुछ कर नहीं रही थी।

मैंने उस के उरोजों से होंठों को हटा कर फिर से उषा के होंठों को अपने होंठों में ले लिया और मेरी जीभ उस के मुँह में घुस गयी। वहाँ उस की जीभ मेरी जीभ के साथ अढ़खेलियाँ करने लगी। इन सब हरकतों से मेरा शरीर बहुत गर्म हो गया था। मेरे कान लाल से हो गये थे और उन में से भाप सी निकल रही थी। उषा फिर से मेरे आलिंगन में थी, हम दोनों के शरीर के मध्य में कही भी कोई जगह नहीं रह गयी थी दोनों शरीर मानों एक हो गये थे।

चुम्बनों के बाद मैंने उस के कुल्हों को सहलाया और फिर से उस के पेट पर हाथ फिराया, इस के बाद हाथ नीचे ले जाकर उस की सलवार के ऊपर से जाँघों के मध्य भाग को सहलाया। हाथों को उसकी उभरी हुई योनि का आभास हो रहा था। अब मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। मैंने उस की सलवार का नाड़ा खींच कर खोल दिया और हाथ से उसे कुल्हों से नीचे कर दिया। उषा अभी भी मेरे हाथ को नीचे नहीं जाने दे रही थी।

वह मुझ से इतना कस कर चिपकी हुई थी कि मैं हाथ उसकी जाँघों के मध्य नहीं ले जा पा रहा था। मैंने उस के कुल्हों में अपने नाखुन गढ़ा दिये। इस वजह से उषा को मेरे तने हुये लिंग का अनुभव हुआ। उसे शायद समझ आ गया था कि अब हम दोनों इतने आगे आ गये थे कि पीछे मुड़ कर नहीं जा सकते थे।

मैंने उस के कान में पुछा कि आगे चलना है? तो उस ने अधखुली आँखों से मुझे देख कर कहा कि रुका नहीं जा रहा है, कोई आ ना जाये?

मैंने उस को आलिंगन से मुक्त किया और अलग हो कर अपना पजामा उतार कर रख दिया। उस की सलवार भी खींच कर उतार दी। अब वह पेंटी में थी। उस की जवानी भरी जाँघें देख कर मेरा मुँह सुख रहा था। मैं पहली बार किसी जवान लड़की का शरीर नीचे से नंगा देख रहा था। अब रुका नहीं जा सकता था। मैंने उस की पेंटी भी उतार दी।

उस की योनि हल्कें बालों से ढ़की थी। उभरी होने के कारण योनि के फलक दिखायी दे रहे थे लेकिन वह दोनों बहुत कस का बंद थे। मैंने हाथ से उस की योनि को सहलाया और उंगली को अंदर डालने की कोशिश की लेकिन योनि बहुत कसी हुई थी। मेरा प्रयास बेकार गया। मैंने हाथों से उस की जाँघों को सहलाया और अपनी ब्रीफ उतार दी।

ब्रीफ के उतरते ही मेरा छ इंच का चार इंच मोटा लिंग सीधा तन कर खड़ा हो गया। वह वार करने के लिये तैयार था। मेरा लिंग बिल्कुल 90 डिग्री के कोण पर खड़ा था। अपने लिंग को इतना कठोर मैंने पहले नहीं देखा था। हस्तमैथुन करते समय भी इतनी कठोरता नहीं देखी थी। उषा का हाथ पकड़ कर लिंग पर लगाया तो उसने चौंक कर अपना हाथ दूर कर लिया।

मैंने उषा की दोनों टांगों को अपने हाथों से दोनों तरफ फैला दिया और उन के बीच बैठ गया। तभी मेरी बुद्धि ने मुझे रोका और मैंने उषा से पुछा कि करे? तो वह बोली कि हाँ।

मैंने अपने लिंग से उस की योनि को दो-तीन सहलाया और लिंग के सुपारे को उस की योनि के मुँह पर रख कर दबाया लेकिन लिंग फिसल गया। मुझे किताबों में पढ़ा ध्यान आया और मैंने अपने मुँह से थुक हाथ पर ले कर अपने लिंग के सुपारे पर मला और दूबारा से उसे उषा की योनि पर रख कर दबाया। इस बार लिंग का सुपारा योनि में अंदर चला गया।

पहली बार मेरे लिंग को योनि में प्रवेश का मौका मिला था। योनि के अंदर कसाव के साथ-साथ बहुत गर्मी भी थी। उषा के चेहरे पर दर्द के भाव दिख रहे थे।

आहहह ओहहह उहहहहहहहहह...

मेरा सारा ध्यान इस बात पर था कि मैं पहली बार में सब कुछ सही तरह से कर पाऊँ। इसी लिये मैंने उषा की चिन्ता ना कर के अपने कुल्हों को जोर से दबाया और लिंग को आधा उषा की योनि में धकेल दिया।

मर गयी, निकालो इसे, मेरी फट जायेगी, तुम्हारा बहुत मोटा है

उषा ने अपनी बाँहों से मुझे धकेलने की कोशिश की।

मैं उस की कोई बात नहीं सुन रहा था। मैंने दूबारा जोर लगाया और इस बार मेरा पुरा लिंग उस की योनि में समा गया। दोनों की जाँघों के जोड़ एक-दूसरे से चिपक गये।

आहहहहहहह... उहहहहहहह... उईईई...

दर्द हो रहा है?

आग लगी है

मैं कुछ क्षण के लिये रुक गया। लेकिन वासना का उफान शरीर में भरा हुआ था, इस लिये फिर से अपने कुल्हों को उठा कर लिंग को अंदर बाहर करने लगा। आदिम प्यास और वासना के वशीभुत मैं जोर-जोर से उषा की योनि पर प्रहार कर रहा था। लगता था कि मेरा शरीर अब मेरे काबु में नहीं रह गया था।

उहहहह... आहहहहहहह... ओहहहह...

उषा ने अपने नाखुन मेरी पीठ के मांस में गढ़ा दिये थे। इस कारण से हुआ दर्द मुझे महसुस नहीं हो रहा था। सारा शरीर गर्मी से मानों जल सा रहा था और लग रहा था कि जल्दी ही इस से छुटकारा मिलना चाहिये। मेरा लिंग उषा की कसी हुयी योनि में मथा जा रहा था। जब भी वह योनि के अंदर या बाहर आता, योनि उसे कस कर मसल देती थी। लिंग पर बहुत अधिक घर्षण हो रहा था।

नीचे से उषा भी अब मेरा साथ देने लग गयी थी। उस के कुल्हें भी उछल-उछल कर मेरे कुल्हों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे।

हम दोनों नें करवट बदली और इस बार उषा मेरे ऊपर आ गयी। उस के हिलते कुल्हें धीरे-धीरे मेरे लिंग को अंदर बाहर कर रहे थे। मैं अपने चेहरे के सामने आये उस के उरोजों को जीभ से चाँट रहा था। फिर एक उरोज को मैंने पुरा मुँह में भर लिया और उसे निगलने की कोशिश की।

उषा ने अपनी उंगलियों से मैंने सिर के बालों को पकड़ लिया। मैंने उस के उरोज को मुँह से आजाद कर दिया। मैंने उषा को बाँहों में कस लिया। नीचे से हम दोनों के शरीर हिल-हिल कर एक-दूसरें का साथ दे रहे थे।

कमरे में फच-फच की आवाज आने लगी। मुझे पता नहीं था कि यह किस चीज की आवाज है मैंने आज से पहले यह आवाज नहीं सुनी थी। हम दोनों एक बार फिर पलटे और मैं उषा के ऊपर आ गया। मैंनें अपने आगे के शरीर को बाँहों के सहारे ऊपर उठाया और नीचे से प्रहार जारी रखे।

उषा कराह रही थी। कराहने की आवाज मेरे मुँह से भी निकल रही थी। मेरे लिंग पर बहुत घर्षण हो रहा था। योनि में नमी तो थी लेकिन कसाव अधिक होने के कारण लिंग को अंदर बाहर करना कठिन हो रहा था।

तभी अचानक मेरी आँखों के सामने सितारे नाच गये और मेरे लिंग के मुँह पर आग सी लग गयी। मेरा सारा शरीर भी जलने लगा। मैं बेहोश सा हो कर उषा के ऊपर गिर गया। जब होश आया तो उस के ऊपर से उठ कर बगल में लेट गया। सारा शरीर अभी भी जल सा रहा था।

पहला संभोग होने के कारण ही शायद ऐसा हो रहा था। दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा था। सुन्न सा हो गया था। करवट बदल कर देखा तो उषा भी कांप सी रही थी उस की पसीने से भीगी छातियाँ ऊपर-नीचे हो रही थी। कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे। फिर मुझे ध्यान आया कि कोई भी, कभी भी आ सकता है तो मैं झटके से बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया और अपने कपड़ें पहनने लगा।

उषा भी उठ कर कपड़ें पहन रही थी। वह भी कपड़ें पहन कर मेरे साथ खड़ी हो गयी। उस ने बिस्तर को देखा, वहाँ पर कोई दाग नहीं था। उस ने चैन की सांस ली। मैं अपनी सांसों को संभालने की कोशिश कर रहा था। उषा ने मुझे देख कर पुछा,

सही हो?

हाँ, तुम?

सही हूँ, लेकिन तुम बहुत बदमाश हो, सारा बदन तोड़ दिया है

मेरा भी बुरा हाल है, बदन जल रहा है और दर्द भी कर रहा है

किसी को पता तो नहीं चल जायेगा?

चलो चल कर चाय पीते है, उस से ताकत आ जायेगी

हाँ यही सही रहेगा

मैंने दूबारा बिस्तर को देखा, वहाँ पर कोई दाग मुझे दिखायी नहीं दिया। मैं संतुष्ट हो कर उषा के पीछे चल दिया।

चाय पीने से शरीर में कुछ फुर्ती सी आयी और मैं बाथरुम में चला गया। वहाँ आ कर मैंने कपड़ें उतार कर देखा कि मेरे नीचे के हिस्से का क्या हाल है? सारी जाँघें चिपचिपी हो रही थी। लिंग से अभी भी वीर्य निकल रहा था। इसी वजह से मैंने अपने लिंग को साबुन लगा कर मल-मल कर साफ किया और पानी से धो कर पोछ लिया। इस के बाद मुझे चैन आया।

बाथरुम से बाहर आ कर मैंने उषा से कहा कि वह भी जा कर अपने शरीर को साफ कर ले। उसे मेरी बात समझ में आ गयी और वह बाथरुम में घुस गयी। कुछ देर बाद जब वह बाहर आयी तो बोली कि अब सही लग रहा है। उस का चेहरा एक अलग तरह से चमक रहा था। यह चमक आज मैंने पहली बार उस के चेहरे पर देखी थी।

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