मामा की साली से प्यार

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एक महीने से ज्यादा से वह मेरे घर पर थी, लेकिन पहली बार आज उस का चेहरा उदासी की बजाए खुशी से दमक रहा था। उस के चेहरे की यह दमक मुझे अच्छी लग रही थी।

कुछ देर तक हम दोनों एक-दूसरे के साथ बैठे रहे, फिर मैंने ही बात शुरु की और उषा से पुछा कि दर्द तो नहीं हो रहा है तो मुझे देख कर वह मुस्करा कर बोली कि हाँ दर्द तो हो रहा है लेकिन यह दर्द अच्छा लग रहा है।

तुम्हारा क्या हाल है?

सारा शरीर दर्द कर रहा है लग रहा है कि दूबारा से सो जाऊँ।

अगर नींद आ रही है तो सो जाओ

नहीं मैं तुम्हारें पास बैठना चाहता हूँ

तो बैठों किसने मना किया है

किसी नें नहीं

क्या बात है, कुछ कहना है?

नहीं

मैं उस की तरफ छुका और उस का चेहरा अपने हाथों में लेकर उसका चुम्बन ले लिया। उसके हाथ भी मेरी गरदन पर लिपट गये औह हम दोनों गहन चुम्बन में डुब गये। जब मन भर गया तभी अलग हुये। इस चुम्बन से दोनों का मन भर गया था। इस कारण से दोनों के चेहरे दमक रहे थे।

मुझे कुछ याद आया तो मैं उषा से बोला कि मैं अपनी पढ़ाई करता हूँ, तुम अगर सोना चाहों तो सो जाओ। वह बोली कि नहीं अब नहीं सोना। तुम पढाई करों। मैं गाने सुनती हूँ।

वह कमरे से बाहर चली गयी और मैं किताब उठा कर उसे पढ़ने लग गया। किताब तो दिखाने के लिये खोली थी, मेरी आँखों के सामने तो कुछ देर पहले हुई घटना फिल्म की तरह चल रही थी। पढ़ाई में मन ना लगने के कारण मैंने किताब रख दी और आंगन में आ गया।

वहाँ उषा कैसेट रिकार्डर पर गाने सुन रही थी। मैं भी खड़ा होकर गाने सुनने लगा। कुछ देर बाद ही मेन गेट की घंटी बजी। शायद माँ बाजार से आ गयी थी। मैं लपक कर गेट खोलने चला गया। मुझे देख कर माँ बोली कि सो लिया? मैंने उन्हें बताया कि अभी आपके आने से पहले ही उठा हूँ। आप को मुझे उठा कर जाना चाहिये था। माँ बोली कि मैं तो उठा रही थी, लेकिन उषा ने कहा कि इन्हें मत उठाईये। मैं रुक जाती हूँ। मुझे बाजार में कोई काम नहीं है, इसी लिये मैं अकेली ही चली गयी थी।

माँ घर में अंदर आ गयी और उषा और माँ बाजार से लाये सामान को देखने लग गई। मैं अपने कमरे में चला आया।

उषा का वापस जाना

हम दोनों के बीच संबंध बनने के दो दिन बाद ही उषा के भाई आ कर उसे वापस ले गये। उस के चले जाने के बाद मुझे अकेलापन सा लग रहा था। लेकिन अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो जाने के कारण कुछ दिनों बाद मेरा अकेलापन खत्म सा हो गया। कॉलेज के दोस्तों के साथ में उषा को भुल सा गया। लेकिन मुझे हर दिन यह जरुर याद आता था कि मेरा कुँवारापन उस के साथ ही दूर हुआ था। इस लिये वह मेरे जीवन के साथ अभिन्न रुप से जुड़ गयी थी। अब उस का स्थान कोई और नही ले सकता था।

उषा से विवाह न होना

उषा के जाने के कुछ दिनों बाद एक दिन माँ ने मुझे बताया कि वह चाहती थी कि मेरी शादी उषा के साथ हो जाये। परिवार और लड़की जानी पहचानी है। लेकिन तुम्हारी दादी से इस संबंध के बारें में बात करी तो उन्होंने परिवार में पहले हुये इस तरह के विवाह का उदाहरण दे कर इस संबंध के लिये मना कर दिया। उषा के उम्र में तुम्हारें से बड़ी होने के कारण भी वह इस रिश्ते के खिलाफ है।

तुम्हें तो पता ही है कि उन के ना कर देने के बाद परिवार में कोई भी इस बारे में कुछ नही बोल सकता है। तुम क्या कहते हो? मैंने माँ से कहा कि इस संबंध में जैसा परिवार के बड़ें चाहते है वैसा ही मैं भी चाहता हूँ। मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो परिवार के बड़ों की राय के खिलाफ हो।

यह बात मैंने कह तो दी लेकिन मेरा मन जानता था कि मैं क्या चाहता था। लेकिन अपना सोचा हमेशा नहीं हो पाता है। मेरी माँ भी मेरी भावनायें समझती थी लेकिन वह भी इस संबंध में अब कुछ नहीं कर सकती थी । मैंने भी इस संबंध में अपनी हार मान ली।

माँ ने उषा से संबंध ना होने का कारण मामी जी को फोन करके बता दिया। मामी जी ने भी यह बात समझ ली। उषा के साथ मेरी शादी की बात यही खत्म हो गयी। मेरा उषा से मिलना इस घटना के बाद नहीं हो पाया। भाग्य क्या चाहता था, मुझे पता नहीं था। मैं यह भी जानता था कि मैं अब इस संबंध में अपनी तरफ से कुछ नहीं कर सकता हूँ।

उषा की शादी होना

कुछ महीनों के बाद जब मैं अपने ननिहाल में था। एक दोपहर मामा जी आये और मुझ से बोले कि तैयार हो जाओ, तुम्हें मेरे साथ किसी के यहाँ चलना है। ऐसा अक्सर होता ही रहता था सो मैं तैयार हो कर मामा जी के साथ चल दिया। हम जिस घर में पहुँचे तो पता चला कि यहाँ पर उषा के लिये लड़का देखने आये है। लड़के से बात करने की जिम्मेदारी मेरी थी, मैं अपना कर्तव्य निभा रहा था। लड़का सरकारी नौकरी में था। उसे उषा की फोटो पसन्द आयी थी। अब ना होने का कोई कारण नहीं था। इस लड़के के साथ उषा का विवाह पक्का हो गया।

उषा के विवाह में, मैं भी गया। शादी के कारण हम दोनों के मध्य कोई बात नहीं हुई। विवाह होने के बाद मैं जब अपने मामा जी के साथ ननिहाल वापस लौट रहा था तो मामा जी ने बताया कि उषा इस शादी के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार हुई थी। मैं उन की बात के तंज को समझ रहा था।

मैंने मामा जी को समझाया कि मामा जी मैं अभी पढ़ाई कर रहा हूँ, नौकरी पाने में काफी समय है। सरकारी नौकरी वाले वर को पा कर हर लड़की को खुशी होती है। उषा भी यह समझ गयी होगी।

मामा जी ने मेरी तरफ जिस नजर से देखा मैं उस का सामना नहीं कर सका और मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया। हम दोनों के संबंध के बारे में पुरे परिवार को पता था।

उषा की शादी के बाद उस के कई मौकों पर मिलना हुआ है, लेकिन उस ने मुझ से कभी भी बात नहीं की। अगर मैंने आगे बढ़ कर बात करने की कोशिश की तो उस ने मुझे कोई रिस्पोन्स नहीं दिया। उस की नाराजगी को मैं समझ सकता था लेकिन मैं उषा को यह नहीं समझा सकता था कि जो कुछ हुआ वह ही सबसे सही फैसला था सब के लिये।

परिवारिक समारोहों में अब भी उस से और उस के पति से मिलना होता है। उस के पति से मेरी जान-पहचान भी है लेकिन उषा का ठंड़ा व्यवहार नहीं बदला है।

इतने साल बीत जाने के बाद भी उषा की मेरे प्रति नाराजगी अभी तक दूर नहीं हुई है। अब मैं ही उस से दूर रहता हूँ।

समाप्त

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