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Click hereपूजा की कहानी पूजा की जुबानी - 11 (मैं और मेरा छोटा भाई)
पूजा मस्तानी
कैसे मेरा छोटा भाई ने मालिश के बहाने मुझे गर्म किया ।
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हेलो दोस्तों, में हूँ आपकी पूजा मस्तानी, एक बार फिर एक मदभरी एपिसोड के साथ आपके मनोरंजन के लिए। आओ मैं तुम्हे उस मस्ती भरी अनुभव की ओर ले चलूँ।
यह उस समय घटी थी जब मैं 22 साल की थी और मेरी शादी 8 महीने पहले हुयी थी। मेरे पति राकेश एक MNC में सेल्स एग्जीक्यूटिव के पद पर हैं। ईसीलिए अपना टारगेट पूरा करने के लिए मेरे पति को महीने में 18 से 20 दिन दौरा पर रहना पड़ता है। मेरी नई नई शादी हुई मुझे उनकी गैरहाजिरी बहुत खलती थी और मैं रात रात भर मेरी खुजलाती बुर को सहलाते सो जाती हूँ।
जिस घटना के बारे में मैं बात कर रही हूँ उस दिन से पहले ही वह अपने दौरे पर निकल गए है। घर मे मैं अकेली रह गयी और उस रात भी मेरे बुर को सहलती अंदर ऊँगली करती सो गयी। दोस्तों मैं दिखने में सिर्फ आकर्षक ही नहीं बल्कि एक कामुक औरत भी हूँ। हाँ... सही पढ़ा आपने; में एक कामातुर औरत हूँ। हमरा घर कंबाइंड फॅमिली का था इसी लिए एक न एक कमरे में सेक्स का माहौल बना ही रहता था। यहाँ तक की एक बार में छोटी चाची के कमरे मे सो रही थी और उस रात चाचा ने चाची को पेलते देखि थी। चाची न.. न कह रही थी लेकिन चाचा ने उनकी एक न सुनी और उन्हें लेते रहे। आंखे थोडा सा खोल कर उस बेड लाइट की मद्दिम रौशनी में उनकी चुदाई देख कर मैं बहुत उत्तेजित हुयी थी। यह था हमरा घर का माहौल।
तो उस दिन मेरे पति दौरे पर जाने के बाद मैं मेरे माइके आयी। मेरा मायिका हमारे यहाँ से को 3 मील दूरी पर है। उस समय शाम के 3 बजे होंगे। मुझे मालूम है की माँ और घर के अन्य सदस्य नानाजी से मिलने गांव गए है। घर में पापा अकेले रह गए है। वास्तव में मैं पापा से मिलने आयी थी। मिलने क्या उनके गोद में बैठ कर मस्ती करने आयी थी। बहुत दन गुजर गए पापा के गोद में बैठकर। तो सोची थी की आज मौका अच्छा है.. जी भर कर पापा से..." (पढ़िए पूजा की कहानी पूजा की जुबानी parts 1,2,3)
जब में दरवाजे कि घंटी बजायी तो मेरे सामने मेरा छोटा भाई जयंत ठहरा था। वह 19 का है और अपना डिग्री फर्स्ट ईयर hostel में रहकर पढ़ रहा है। वह घर आया यह बात मुझे नहीं मालूम थी।
"दीदी" कहते उसने बहुत जोरसे हग किया। इतना जोरसे की मेरे मस्तियाँ उसके घाटीले छाती पर दब गए है।
"अरे.... जयंत तू कब आया रे.." मैं उस से पूछी।
"जी दीदी में कल शाम को आ गया। मेरी एक्साम्स (Exams) ख़तम हुए है तो छुट्टी देदी गयी है..."
"पापा नहीं है क्या...?" मैं पूछी।
"नहीं दीदी वाह अपने एक दोस्त की बेटी की शदी में गए है। आज रात नहीं आने को कह गए है.." वह बोला। उसकी बात सुन कर मैं मायूस हो गयी। हम दोनों अंदर आये और सोफे पर बैठ कर बातें करने लगे। मैं उसकी पढ़ाई और परीक्षएं के बारे में पूछ रही थी तो; और वह मेरे पति के बारे मे और सासुराल के बारे में। हम कोई 8, 10 मिनिट बैठ कर बातें करते रहे। अचानक वह उठा और बोला "तुम बैठो दीदी मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ"
"तू और चाय..." मैं हंस कर बोली "चल बैठ में चाय बनाती हूँ" कहते मैं किचन में आयी। वह भी मेरे पीछे किचन मे आया। मैं स्टोव जलाकर पानी चढ़ाई।
इतने मे जयंत मेरे संमीप आया और मेरे पीछे मुझसे सट कर ठहर गया।
"मैं पीछे मुड कर 'क्या है?' का इशारा आँखों से करि।
"तुम चाय बहुत टेस्टी बनाते हो दीदी; मैं भी तो देखूं तुम कैसे बनाते है.." कहते वह मुझसे और संमीप आकर सट कर ठहर गया और मेरे कन्धों पर हाथ रख कर हल्कासा दबाव देते कंधे के ऊपर से देखने लगा। पहले तो मैं ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन अब वह मुझसे पूरा सटकर खड़ा था और उसकी गर्म साँसे मेरे गालों पर पड रहे है। 'यह क्या?' मैं सोच ही रही थी की; मैंने महसूस किया की वह अपना चढ़ मेरे कुल्हों पर दबा रहा है। उसका सख्त चढ़ मेरे उभार दर नितम्बों पर गड़ने लगी। उस समय में सलवार कमीज में थी और मेरा चुन्नी हॉल में सोफे पर पड़ी है। अब मुझे याद आ रहा है की जब तक हम सोफे पर बैठ कर बातें करते रहे यह मुझे ही घूर रहा था; और जब दरवाजा खोला तो कितना जोरसे आलिंगन कीया था।
एक बार तो में सोची की उसे डांटूं, लेकिन फिर सोची 'देखूं तो यह क्या करता है' सोचकर खामोश रही। जब तक मैं चाय बना रही थी जयंत अपना डंडा मेरे बैक सीट पर दबाता रहा। अब में समझ गयी की उसके इरादे कुछ और हैं।
चाय लेकर हम फिरसे बाहर आ गये और सोफेपर बैठ कर चाय पीते बातें करने लगे।
मैं यह देखि की जयंत चोरी छुपे नजरों से मेरे उभारों को देख रह था। एक दो बार मैं किसी काम के लिए उठकर इधर उधर चली तो वह मेरी लचकति कमर को और उसके नीच मेरे गद्देदार नितम्बों को घूर रहा था। मैंने उसके आँखों में मेरे प्रति लालसा देखि। उसका ऐसा मुझे देखना और उसका डंडा मेरे गांड में चुभना यही कह रहे है की उसका नजर मेरे पर है।
मै भी उसको एक बार नीचेसे ऊपर तक देखि। जयंत; मेरा छोटा भाई मुझ से 3 साल छोटा है। मै उसे आखरी बार पिछले साल हॉस्टल जाते समय देखि थी। अब फिर एक साल बाद उसे देख रही हूँ। इस एक साल में वह बहुत ही बदल गया है। वह अच्छा खास बांका जवान बनगया है। वह 5 फ़ीट 10 इंच लम्बा है। घटिला बदन, चौड़ा सीना, उसके जीन्स के नीच उसके बलिष्ट जाँघे देख कर मेरी प्यासी बुर में सुर सुराहट सुराहट हुयी।
"इस से चुद्वावूं तो कैसा रहेगा..?' में सोची। वैसे मैं पापा से चुदवाने ही तो आयी हूँ। क्यों न आज एक चेंज तौर पर जयंत से.... अच्छा बलिष्ट तो है' में सोची। मेरा ऐसा सोचने भर से मेरी चूत में पानी रिसने लगी। मैंने महसूस किया की मेरी पैंटी गीली हो रही है। मेरी मस्तियाँ भारी हो रहें है।
'पहले इसका इरादा तो मालूम हो जाये.. फिर देखते है क्या करना...' सोची।
मैं इधर उधर की बातें करते उसके सामने झुकी तो पाया कि वह मेरी क्लीवेज को भूखी नजरों से देख रहा है। में अपने आप में हंसी। फिर मैं "आह्हः.." कर दर्द से कराहि और मेरे पैर की पिंडली पकड़ी।
"दीदी क्या हुआ... ऐसा क्यों कराह रही हो.." उसने पूछा।
"रास्ते में एक साइकिल वाले ने टक्क्रर मारी। शायद पैर और कमर पर चोट लगी है..आआह्ह्ह बहुत दर्द हो रहा है..." में फिर से कराही।
"क्या दीदी मालिश करूं क्या...?" वह पुछा।
"करेगा...?" मैं पूछी।
"हाँ दीदी मलिश करने से कुछ आराम मिलेगा..." वह बोला।
"ठीक है फिर, यहाँ ठीक नहीं, कमरे में चलते है कहते मैं मेरी बहन के कमरे में गयी। वह मेरे पीछे पीछे कमरे में आया। मैं उसे देखती बोली "मैं कुछ ढीला पहनती हूँ.. इस से तुम्हे मालिश करने मे इजी रहेगी.." बोली और मेरी बहन कि अलमारि खोलकर एक स्कर्ट, शर्ट निकाली और लंगडते बथरूम में घुसी।
अंदर मैंने अपने सालार कमीज उतारी और स्कर्ट और शर्ट पहनी। स्कर्ट मेरे घुटनों तक आ रही है। और शर्ट मेरे उभरों को छुपाने मे असफल है।
मैं बाहर आयी और कराहते चलकर बिस्तर पर बैठी और मेरे स्कर्ट को थोड़ा ऊपर उठाकर दर्द की जगह बताई। वह मेरे सामने बैठकर मेरे पिण्डलिको दबाने लगा।
"आआह्ह्ह्ह... जयंत जरा धीरे.. लग रहा है.." मैं दर्द का बहाना करते बोली।
"थोड़ा सहन करो दीदी.. दर्द कम हो जायेगा..." कहते उसने मेरे घुटने को और मोड़ा। जिस से स्कर्ट में गैप आयी और वह मेरी जांघो को अंदर चोरी छुपे झाँकने लगा।
मैं "आअह्ह्ह्हम्म्म्म..." कह मेरे पैर पकड़ी और उसे और थोड़ा चौड़ा की। जिस से अब मेरी पैंटी के अंदर की बुर की उभार की झलक उसे मिल रही होगी। मैंने देखा उसकी पेन्ट के अंदर कुछ हलचल हो रही है। कुछ देर वैसे ही वह मेरे मालिश करते अंदर मेरी बुर को देख रहा था और मैं उसे दिखा दिखा कर उसे रिझा रही थी।
कुछ देर बाद मैं बोली "जयंत कुछ आराम मिली है रे.. जरा मेरी कमर को भी दबा दे मेरे भाई प्लीज...." मैं बोली।
"ठीक है दीदी.."
"औंधा लेटती हूँ, तुझे सहूलियत रहेगी"..." कह कर मैं औंधा मेरे पेट के बल लेटी और मेरे स्कर्ट को कमर तक ऊपर उठायी। अब मेरे पैंटी में छुपे मेरे गोल गोल नितम्ब मेरे भाई के आँखों के सामने। मेरी गोरी टाँगे और जाँघे देखकर उसके मुहं में पानी भर आया। मैं देखि की वह उस पानी को निंगल गया। कुछ देर तक मैं उसका कोई हरकत मेरे शरीर पर नहीं हुई। मैं मेरा सर घुमाकर देखि तो वह मेरी जांघों को ही एक टक देख रहा था।
"जयंत क्या हुआ रे...ऐसा क्या देख रहा है...?" में उसे देखती पूछी।
"दी.... तुम्हारे टाँगे और जाँघे और पिंडलियाँ इतने सॉफ्ट है दीदी...जी चाह रहा है की देखता ही रहू.. बस एकदम तराशे हुए संगमरमर की तरह...." कहते उसने मेरे जांघो पर अपना हाथ फेरा.. उसके टच इतना नर्म (सॉफ्ट) था की जैसे मोर की पंख की टच की तरह... मेरा सारा शरीर सिहर उठी उसकी इस हरकत से।
"ह्ह्हआआ..." में एक सिसकार लेकर बोली..." चल बसकर, अब ज्यादा हो गया..जो काम करना है वह जल्दी कर..." मैं बोली। मैं यह नहीं बोली की मेरे कमर दबा; पर बोली जो करना है वह कर..एक डबल मीनिंग वाला शब्द उससे किया।
"शरू करूँ दीदी..?" वह पूछा।
"हाँ...हाँ..जल्दी करना....क्यों वेट कर रहा है...?" मैं उसे उकसाई।
"दी...अगर तुम घटनो पर आये तो मुझे करने में इजी रहेगा..." वह बोला... साला वह भी डबल मीनिंग शब्द प्रयोग कर रहा है।
"ठीक है.." कह कर में अपने पंजों और घटनों पर आयी और मेरे चूतड़ को ऊपर उठायी।
वह मेरे पीछे आया और एक बार मेरे कमर पर हाथ फेरकर मेरे पैंटी को निचे खींचने लगा.."
"अरे! जयंत यह क्या कर रहा है..? कमर दबाने के लिये पैंटी क्यों उतार रहा है...?" मैं पूछी।
"कमर तो दबाऊंगा दी..लेकिन तुम्हरा शरीर इतना चिकना है की सोचा एक बार पैंटी के निचे भी देखूं...प्लीज दी..एक बार दिखादो न..." वह रिक्वेस्ट कर रहा था।
"साले... हरामी...सीधा सीधा कहना की दीदी की चूत देखनी है.. कैसा बेशर्म हैरे तू..वैसे शरम नहीं अति दीदी की देखने में.."
"शर्म क्यों दीदी.. इतनी प्यारी चीज तो किसी को भी पसंद आएगी ही...फिर मैंभी तो एक आम लड़का हूँ.. ऊपर से जवान, और तुम इतना हॉट हो.. प्लीज दीदी...." मैं उसकी आँखों में मदभरी लालसा देखि।
"अच्छा तो दीदी को देखना चाहता है...?" मैं पूछी।
उसने 'हाँ' में सर हिलाया और फिर बोला "प्लीज दी..एक बार..."
उसमे सस्पेंस पैदा करने के लिए मैं कुछ क्षण खमोश रही और फिर बोली "ठीक है..खींच ले पैंटी को नीचे तू भी क्या याद करेगा..की 'दी' कितनी दिलवाली निकली" मैं बोली। मेरा ऐसा बोलने की देरी थी की जयंत ने मेरी पैंटी को घटनों तक खींच डाला और मेरे नंगे मुलायम कूल्हों को देखने लगा। अब मेरा गोल और मुलायम कूल्हे और उनके बीच की दरार और निचे मेरी उभरी बुर के चिकने फांके मेरे छोटे भाई के आँखों के सामने...
"वाह...कितना स्मूथ है दी..तुम्हारी गांड..." कह कर वह मेरे चूतडों पर दोनों हाथ फेरने लगा। मेरे शरीर में हजारों चींटिया रेंगने जैसे अनुभूति हुयी।
"आआह... जयंत ..मममम...साले यह क्या कर रहा है...?" मैं मेरी गांड को पीछे धकेलते पूछी।
"कितना प्यारी है दी तुम्हारी..यह.." वह कहा और झट आगे झुक कर मेरी सुलगती चूत पर अपने होंठ चिपका कर मेरे बुर के होंठो को चूसने लगा।
"aammmmaaaaammmmmaaaaa" मेरे मुहं एक सीत्कार निकली।
उस पर मेरी सिसकर का कोई असर नहीं पड़ा और वह मेरा बुर को चाटने चूसने लगा.."
"मम्मम्म....जयंत.. यह क्या कर रहा है...?" में फिर से पूछी
"दीदी कितना अच्छा चॉकलेट है दीदी तुम्हारा..वेरी वैरी टेस्टी.." मेरा छोटा भाई मुझे मस्ति में भरता बोला।
"क्यारे तेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं ही क्या.. वह तुझे चखने नहीं देती क्या...?" मै पूछी। मुझे पता है की उसकी एक, दो GF है।
"चखने तो देती दी.. लेकिंन वह इतना जयेकेदार नहीं होते.. तुम्हारी तो.. लाजवाब है..."
"जयंत.. तू बहुत हरामी है रे..आखिर दीदी को ही...पटाने लगा.." मै मेरी बुर को उसके मुहं पर दबाती बोली। और फिर पूछी "क्या तू तुम्हरे GF का सिर्फ चखता है या..फिर..." मैं बात को अधूरा छोड़ दी।
"क्या दी... तुम भी.. चखने के बाद... बाकि का काम भी करना पडता है.."
"अच्छा.. क्या करता है रे...?" मैं उसे उलाहना देती पूछी।
"यह भी कोई पूछने की बात है क्या.. वही जो जीजू तुम्हारे साथ रात को बिस्तर पर करते हैं"
उस से ऐसे बात करने में मुझे बहुत मजा आ रहा था।
"तो क्या तू मुझे भी अपने GF की तरह करेगा..?"
मेरी इस बात से और पहले के हरकतों से वह भी समझ गया की मैं उस से चुद सकती हूँ...तो वह बोला..अगर तुम चाहो तो दीदी...एक बार चांस देके देखो... खुश कर दूंगा...न करूँ तो बोलना..."
"तो देखता क्या है.. चोदना अपनी दीदी को... देखती हूँ मैं भी कितना दमदार है मेरा छोटा भाई.." मैं सीधा ग्रीन सिग्नल देदी।
में ऐसा बोलने की देरी थी की वह अपना ट्रॉउज़र और अंडरवेर उतार फेंका..अभी तक भी वह ट्रॉउज़र में ही था। अब तक मैं भी उसका लंड नहीं देखि। वह मेरे पैंटी को मेरे घुटनों से निकाल फेंका और मेरी कमर पकड़ कर अपना डंडा मेरी फांकों पर रगड़ा... "aaaaaahhhhhhh...mmmmm..." मेरे मुहाँ से एक लंबी सिसकार निकली।
एक दो बर अपना डंडा मेरे फांकों पर रगड़ कर उसने अपने डंडे से एक जोर सा दबाव दिया। "aammmmaaaammmmaaaaa.... में मरी..." उसे जोश में लेन के लिए मै चीखी। मुझे दर्द तो नहीं हुयी.. हाँ.. मस्ती भरगयी है मुझमें। मेरा छोटा भाई का लंड बिलकुल मेरे पति की लंड जैसे ही है। उसका मोटा लंड का सुपाड़ा मेरी बुर के फांकों को चीरते अंदर घुस गयी।
"साले... बहन चोद ..पूरा एक ही बार में दाल दिया...?" मैं बोली।
"पूरा कहाँ दी.. सिर्फ सूपड़ा ही तो घुसा है.." वह अपना लैंड का दबाव् देता बोला।
"क्या ..? सिर्फ नाब (KNOB) ही गया है.. हाय क्या लंड है रे तेरा.. इतने से ही मेरी जान निकल गयी..." मै नखरे करती बोली लेकिन दर्द बहाना करते मैं मेरी चूत को उसके लंड पर दबायी।
मैं बातों में ही थी की उसने एक और दक्का जोर से दिया... "बापरे..." मैं फिर से चीखी। मेरी समझमे आगया की उसका पूरा का पूरा मेरे में समां गयी।
"ओफ्फो दी...तुम तो इसे चिल्ला रही ही जैसे कुंवारी बुर चुदवा रही हो..जीजु से करवा तो रही है..." वह एक और दक्का देते बोला..
अरे मेरे भाई.. तेरा लगता है तेरे जीजू से बड़ा है..आआह्ह्ह्ह.. दर्द हो रहा है...मममममम..." मैं मेरे गांड को ऊपर उठाती बोली। मैं यह बात बोल ही रही थी उसने एक और शॉट जोर से दिया.. "aammmaaaaa" मैं फिर से चिल्लाई। मैंने महसूस किया की उसका क्रोच (crotch) मेरे क्रोच(crotch) से रगड़ रही है तो में पूछी....
""जयंत .... क्या पूरा चला गया क्या...?"
"हाँ दीदी; पूरा चला गया...आह क्या चूत है तुम्हरी पूरा क पूरा इस मदभरी बिल में घुस गयी.." कहते वह अपना औजार को आगे पीछे करने लगा।
अब तक के हरकतों से मेरी बुर अपना लस लसा छोड़ने लगी और जयंत के औजार को चिपड़ने लगी। देखते ही देखते उसका डंडा मेरे रस से चिकना होगयी और अब उसका मेरी तंग बिल में आसानी से अंदर बहार होने लगी।
अब मुझे भी मजा आने लगी। में अपनी कूल्हों को पीछे उसके लंड पर ठोकर दे रही थी।
"आअह.... दी... ममम... क्या मस्त है दीदी तुम्हारी.. सच मैं तो स्वर्ग में हूँ.." वह मेरी कमर को पकड़ कर दकके पे दकके देता बोला।
"हाँ है.. जयंत... मार और जोर से मार मेरी चूत को.. बहुत प्यासी है वह.. मेरा लाडला भाई अपनी दी की प्यास बुझा मेरे भाई..." कहते में भी अपनी कमर उछाल उछाल क्रर उस से चुदने लगि। मैं नहीं सोची थी की मेरा भाई जो सिर्फ उन्नीस वर्ष का है मुझे इतना योन सुख देगा.. लगता है वह इस में माहिर है...
पूरा पंद्रह मिनिट के ऊपर हो गए वह मुझे लेते हुए लकिन अभी तक वह झड़ने का नाम नहीं ले रहा है..अब तक मैं दो बार झड़ी। में चौपया बानी थी तो मेरे घुटने जवाब देने लगे। अब मेरे से घुटनों पर ठहरा नहीं जा रहा है।
"में बोली..."जयंत मेरे राजा.. मेरे घुटनों में दम खतम हो गयी है... अब तू मुझे सीधा हि ले... ठहर अपनी दी को सीधा होने दे.. निकाल अपना.. मुस्तंड .." में बोली।
"ठीक है दीदी..." कहता उसने अपना मेरी बुर से बाहर खींचा... 'फ्लॉप' की साउंड से वह बाहर निकली। मैं पलट कर चित लेटी और उस देखि। 'बापरे कितना बड़ा है उसका...साला उन्नीस का है और इतना बड़ा.. मेरे पति से ज्याद बड़ा है.. उसका लिंग मेरे रस से चिपुड़ा चमक रहीथी। मैंने एक बार मेरे पति की नपी थी वह 7 इंच लम्बा और 2 1/2 इंच मोटा है.. लेकिन मेरे भाई का तो.. लगता है पुरा 8 इंच का तो होगा ही..और मोटापा भी.. ज्यादा ही है।
में सोच ही रहीथी की उसने मेरे जांघों में आया और मेरी बूर को पैला कर अपना लिंग का शिश्न फांकों पर रगड़ने लगा। "आअह्ह्ह... जयंत अजा मेरे राजा... अब मत तड़पा अपने दी... को.." मैं बोली।
उसने एक शॉट दिया और अब की बार उसका पूरा एक ही झटके में मेरे अंदर समाँ गयी। "ममम... हहहआ" मैं चीत्कारी मार कमर को उसके दकके मुताबिक ऊपर उठयी।
अब वह दाना दन चोदने लगा और पहली बार मेरी चूचियों को मींज रहा है..और उनके कड़क निप्पल को पिंच करते चुसने भी लगा।
"जयंत.. हां.. मेरी खलास होने वाली है.. जल्दी कर.." मेरी कूल्हों को ऊपर उठायी।
'हाँ दीदी.. में भी खलास होने वाला हूँ.. कहाँ छोड़ूँ..." वह दक्का देते पुछा...
"अंदर नहीं मेरे राजा.. निकाल बाहर.. अपनी दी... की चूची पर डालदे अपना काम रस" में बोली। तब तक में एक बार और झड़ी।
मेरा ऐसा बोलते ही वह अपना बाहर खींचा और मेंरे चूची की घुंडी पर अपना सुपाड़ा दबाया... और फिर उसके गर्म गर्म लावा जैसा उसके घाड़ा सफेद वीर्य मेरी चूचीयों को सेखते हुए मेरे चूचियों से नीचे को बहने लगी।
में निढाल होकर आंखे बंद करली और मेरा छोटा भाई भी थक कर मेरे ऊपर गिरा...
मालूम नहीं कितना समय बीत गया है। आंख खुली तो शामके 6 बज रहे थे।
में उठी और उसे उठायी और दोनों बाथरूम में घुसे।
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पापा नहीं आ रहे थे तो मेरे भाई ने पुछा, "दी..." रत को रुक जाओ... प्लीज..."
"क्यों दिल नहीं भारी क्या..?" मैं मुस्कुराते पूछी।
'आअह ...इतनी मदभरी चीज है, एक दिन में दिल भरेगा क्या,...?"
"चल ठीक है, मैं मेरे राजा भाई के लिये रुक जाती हूँ..." कही और उसके गाल को चूमि।
"थैंक्यू दी.." कहा और मेरे बूब्स को दबाया।
में हंसी "चल मस्का मत लगा... उठ खाना बनानी है" मैं उसे जबरदस्ती मेरे से उठायी और फ्रेश होकर खाना बनाने लगी।
वह मेरे पीछे ठहर कर मुझे चूमते, मस्तियों से खिलवाड करता रहा।
उस रात उसने मुझे दो बार और ली। मेरे छोटे भाई की चुदाई से में इतना खुश हुई की दूसरे दिन में उससे पूछी.. "जयंत तेरी छुट्टियां कब तक है रे...?"
"पंद्रह दिन और है दीदी..."
"चल' एक काम कर, तू आपने छुट्टियां मेरे यहाँ बिता। तुम्हारे जीजा तो टूर पर है और घर पर मैं अकेली रहती हूँ... मैं मम्मी पापा से बोल देती हूँ..." में बोली।
मेरे पेरेंट्स आने के बाद में उनसे कह कर मेरे भाई को मेरे यहाँ ले आयी। फिर क्या था... यह पंद्रह दिन मेरा छोटा भाई मुझे जन्नत का सैर करवाया।
तो दोस्तों कैसी रही मेरा अनुभव; मेरे छोटे भाई मे साथ, आपको मजा आया है तो कमेंट कीजिये जल्दी ही एक और मस्ती भरी अनुभव मे साथ अपके समक्ष हाजिर होवुंगी। तब तक के लिए आपकी इस पूजा मस्तानी को इजाजत दीजिये। मेरे सभी मेल पाठकों को मेरा प्यार उस पर और फिमेल पाठकों को उनके रसीली बुरों पर...
फिर मिलते है
सायोनारा पूजा मस्तानी
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