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Click hereआज की कहानी की शुरुआत हुई एक छुट्टी के दिन हुई थी। मेरी पत्नी उस दिन घर पर नहीं थी। वह अपने ऑफिस के काम से पाँच दिन के लिये बाहर गई हुई थी। मैं छुट्टी होने के कारण देर से उठा था। नाश्ता करने ही वाला था कि दरवाजे की घंटी बजी, लगा कि इस समय कौन होगा? दरवाजा खोला तो देखा कि पत्नी की कजिन नेहा खड़ी थी, उस के हाथ में सुटकेस भी था। उसे अंदर आने को कहा और दरवाजा बंद कर के उस के पीछे-पीछे घर के अंदर आ गया।
आप से नेहा का परिचय करा दूँ, नेहा मेरी पत्नी सुधा के चाचा जी की लड़की है जिस की शादी हमारे ही शहर में हुई है। इसी कारण से उस का अपनी बहन यानि मेरी पत्नी से ज्यादा लगाव है। आज उसे इस समय सुटकेस के साथ देख कर मैं हैरान था।
उस का चेहरा भी कुछ कह रहा था लेकिन मैं उस के मुँह से ही उसकी कहानी सुनना चाहता था, इस लिये उसे बिठा कर पानी लेने किचन में चला गया। पानी का गिलास लाकर नेहा को दिया तो वह पानी पीने लगी। पानी पीने के बाद जब वह आराम से बैठ गयी तो मैंने उस से पुछा कि क्या बात है, आज तुम इतनी सुबह सुटकेस के साथ, कुछ हुआ है क्या?
मेरा सवाल सुन कर नेहा सुबकने लगी। मैंने उस से कहा कि रोओ मत और मुझे सारी बात बताओ। कुछ देर बाद वह बोली कि आज सुबह मेरा इन से झगड़ा हो गया है और मैं घर छोड़ कर आ गयी हूँ। उस की यह बात सुन कर मुझे ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ क्योकि मैं जानता था कि नेहा को माँ बाप के लाड़ ने बिगाड़ रखा है। इस कारण से उस की अपने पति से अनबन होती ही रहती थी। वैसे नेहा बहुत आकर्षक और आधुनिक रहन-सहन वाली लड़की हैं। ऐसी किसी भी लड़की को कोई भी पुरुष अपनी पत्नी के रुप में पा कर अपने जीवन को धन्य ही मानता।
नेहा का पति रितेश बढ़िया लड़का है। लंबा चौड़ा, पढ़ा लिखा और अच्छी नौकरी में, शायद एक लड़की जो गुण अपने पति में चाहती है वह सब उस में थे। सारा परिवार उन दोनों को आदर्श जोड़े के रुप में देखता हैं। आज वही लड़की मेरे यहाँ, पति का घर छोड़ कर आ गयी है, यह सब मुझे समझ नहीं आ रहा था। लेकिन अभी इस के बारे में ज्यादा पुछताछ करने का समय नही था। इस लिये मैंने उस से और कुछ नहीं पुछा और कहा कि चाहे तो वह कपड़ें बदल ले, नहीं तो नाश्ता कर ले, मैं नाश्ता करने वाला हूँ।
मेरी बात सुन कर उस ने मेरे चेहरे को देखा और पुछा
दीदी कहाँ है?
तुम्हारी दीदी ऑफिस के काम से बाहर गयी हुई है
आप नाश्ता कैसे कर रहे है?
तेरी दीदी के पीछे मैं नाश्ता नहीं कर सकता?
मुझे पता है आप को कुछ भी बनाना नहीं आता है
सही है, ब्रेड सेंक कर रखी है, इतना तो मैं कर ही सकता हूँ
मेरी यह बात सुन कर उस के चेहरे पर मुस्कराहट आयी और वह बोली कि मैं नाश्ता बना देती हूँ
नाश्ता बना हूआ है, तुम बस मेज पर बैठों, मैं नाश्ता लगाता हूँ
मेरी बात सुन कर वह हाथ धोने के लिये वाशरुम में चली गयी। मैं किचन में नाश्ता लेने चला आया। ब्रेड और चाय एक प्लेट में लगा कर मैं जब कमरे में लौटा तो नेहा वहाँ वापस आ गयी थी। मैंने नाश्ता मेज पर उस के सामने रख दिया और उस के सामने कुर्सी खिसका कर बैठ गया। वह कुछ देर चुपचाप बैठी रही, फिर प्लेट से ब्रेड का पीस उठा कर कुतरने लगी। हम दोनों चुपचाप नाश्ता कर रहे थे। कोई कुछ बोल नही रहा था।
चाय खत्म करके हम दोनों ने नाश्ता खत्म कर लिया। मैं खाली प्लेटें उठाने लगा तो नेहा नें मुझे रोक कर कहा कि जीजा जी आप बैठे, मैं रख कर आती हूँ। यह कह कर वह नाश्ते की प्लेटें और चाय के कप ले कर किचन में चली गयी।
कुछ देर बाद वह किचन से वापस आ कर सोफे पर बैठ गयी। कमरे में शान्ति छाई हुई थी, मैंने ही उसे तोड़ा और पुछा कि नेहा अब विस्तार से बताओ क्या हुआ है? मेरी बात सुन कर वह बोली कि जीजा जी आप को क्या बताऊँ, आज सुबह-सुबह रितेश से मेरी बहुत बुरी तरह से लड़ाई हो गयी, मैंने बहुत कोशिश की कि बात बढ़े नहीं, लेकिन बात बहुत बढ़ गयी और मैं अपना सामान पैक करके घर से निकल गयी। रितेश ने मुझे एक बार झुठे को भी घर से जाने से नहीं रोका।
मैं और तो कही जा नहीं सकती थी, यहाँ मेरा दीदी के सिवा कौन है, इस लिये आप के पास चली आई। यह कहते-कहते वह फिर से रुआँसीं हो गयी। मैं उसे दूबारा रुलाना नहीं चाहता था सो उस से कहा कि नेहा अब तुम अगर नहाना चाहो तो नहा लो, आराम करो, यह भी तुम्हारा ही घर है।
मेरी बात सुन कर वह सुटकेस उठा कर बेडरुम में चली गयी। मैं ड्राइग रुम में बैठा हुआ सोचता रहा कि आगे क्या कँरु? पत्नी घर पर होती तो यह उस की समस्या होती लेकिन उस के यहाँ ना होने के कारण मुझे ही अब इस समस्या का सामना करना पड़ेगा। मैं यह सब सोच ही रहा था, तभी पत्नी का फोन आ गया। मैंने उसे नेहा के आने के बारे में सब कुछ बता दिया, वह यह सुन कर बोली कि कोई खास बात नही है, दोनों में कुछ हो गया होगा, थोड़े समय बाद सब शान्त हो जायेगा। आप चिन्ता मत करों, उस से अब इस बारें में बात मत करना। मैं खुद उस को फोन करके सब पता कर लुँगी।
तुम तो बस उस के खाने पीने का ध्यान रखना। उस की खातिरदारी में कोई कसर ना रहने पाये। मैंने पुछा कि यार बताओ, कैसी खातिरदारी करुँ तो वह हँस कर बोली कि साली है, उस का पुरा ध्यान रखो, इस से ज्यादा मैं क्या बताऊँ? यह कह कर उसने फोन काट दिया।
मैं समय काटने के लिये अखबार पढ़ने लग गया। कुछ देर बाद नेहा बेडरुम से आती दिखाई दी। उस ने कपड़ें बदल लिये थे। अब वह पिंक रंग के सुट में थी जो उस के ऊपर बहुत फब रहा था। मैं उसे देखता रह गया। वह आ कर मेरे साथ बैठ गयी। मैंने पुछा कि नहाना नहीं है तो वह बोली कि मैं सुबह ही नहा ली थी।
टीवी देखना है?
नहीं, मन नहीं कर रहा है
सोना है तो जा कर आराम कर लो
नहीं, नींद भी नहीं आयेगी
तब तो टीवी पर कुछ देख ले, थोड़ा मन लग जायेगा। यह कह कर मैंने टीवी का रिमोट कंट्रोल उस के हाथ में थमा दिया। मैं अखबार पढ़ने का ढ़ोग करने लगा। लेकिन कनखियों से मैं नेहा को देख रहा था। नेहा ने टीवी ऑन किया, दो-तीन चैनल देखे लेकिन उस का मन कुछ भी देखने में नहीं लग रहा था। हार कर उस ने रिमोट कॉफी टेबल पर रख दिया।
उस की आँखें फिर से पनीली हो रही थी। वह रोना चाहती थी, लेकिन वह आँसुओं को रोकने की कोशिश कर रही थी। उस की यह कोशिश सफल नहीं हुई और वह फिर से रोने लगी। उस की बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों से आँसु झरने लगे। कुछ देर तक मैं उसे रोता देखता रहा, मैं चाहता था कि वह अपने मन का दर्द, रो कर निकाल दे। वह रोती रही और मैं बैठा हुआ उसे देखता रहा।
काफी देर तक जब वह चुप नहीं हुई तो मुझे उठना पड़ा। मैं उठा और उस के पास पहुँच कर उस के चेहरे से आँसुओं को अपने हाथों से पोंछ दिया। मेरे ऐसा करने से वह चुप हो गयी। मैं उस के सामने खड़ा रहा। फिर कमरे से बाहर निकल गया। वापस आया तो मेरे हाथ में टॉवल था।
उसे नेहा के हाथ में देकर कहा कि तुम काफी रो ली हो, अब चेहरे को साफ कर लो। रोने से कुछ नहीं होगा। तुम चाहों तो मैं रितेश से बात करुँ, मेरी बात सुन कर वह बोली कि आप उस से कोई बात नहीं करोगे। मुझे उस की शक्ल भी नहीं देखनी है।
मैंने उस के कंधें थपथपायें और कहा कि मैं रितेश से बात नहीं करता लेकिन तुम अब रोना बंद कर दो। रोने से इस बात का कोई हल नहीं निकलेगा। मैं चाहता था कि नेहा का दिमाग अपनी समस्या से हट जाये, इस लिये मैंने उस से पुछा कि कही घुमने चलना है? उस ने चेहरा उठा कर मेरे को देखा तो मैंने मुस्करा कर कहा कि बाहर चलते है तुम्हारा मन भी बहल जायेगा और बाहर कुछ मनपसन्द खा कर पेट भी भर लेगे। मेरी इस बात से नेहा सहमत नजर आयी और उस के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। वह उठ कर कपड़ें बदलने चली गयी।
कुछ ही देर में वह साड़ी पहन का आ गयी। हम दोनों कार ले कर घर से निकल गये। शहर के मशहुर मॉल पर पहुँच गये। छुट्टी के कारण आज मॉल में बहुत भीड़ थी। मुझे घर का कुछ सामान भी खरीदना था। मैं नेहा को ले कर उसे खरीदने में लग गया। वह भी खरीदारी में मेरी सहायता करने लगी। हम दोनों शॉपिग में व्यस्त हो गये। मुझे ऐसा लगा कि नेहा के मन से अवसाद की छाया उस समय के लिये हट गयी थी।
खरीददारी करने के बाद हम दोनो को बहुत तेज भुख लग गयी इस लिये मॉल के सबसे ऊपरी मंजिल पर बने फुड कोर्ट में चले आये। हम दोनों अपने पसन्द का खाना ढुढ़ने लग गये। फिर दोनों नें मनपसंद खाना ऑर्डर किया और खाना लेकर एक कोने की मेज पर खाना खाने बैठ गये।
दोनों को ही बहुत तेज भुख लगी थी इस लिये दोनों खाने पर टुट पड़ें। जल्दी ही हम दोनों नें खाना खत्म कर लिया। फिर मीठा खाने के लिये कुछ ढुढ़ने लगे। कुछ और तो मिला नहीं, इस लिये आइस्क्रीम खा कर ही काम चला लिया। इस के बाद घर के लिये वापस निकल गये। जब घर पहुँचे तो शाम घिर आयी थी। हम दोनों घर पर आ कर कपड़ें बदलने के बाद आराम करने लगे।
रात को हम दोनों में से किसी ने खाना नहीं खाया। मैंने नेहा के लिये अलग कमरे में इंतजाम कर दिया ताकि वह आराम से सो सके और उस से कहा कि वह अब जा कर सो जाये। नेहा बोली कि आप को रात को दूध पीना होता है। मैंने कहा कि तुम चलों मैं तुम्हारें लिये दूध लाता हूँ तो वह बोली कि आप मुझे कोई काम क्यों नहीं करने दे रहे है?
तुम्हारी दीदी का आदेश है कि उसकी छोटी बहन को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये
घर का काम करने में क्या परेशानी?
काम तो तुम रोज ही करती होगी, आज आराम कर लो
वह चुपचाप कमरे में चली गयी और मैं किचन में दूध गर्म करने चला गया। दूध का गिलास लेकर नेहा के कमरे में पहुँचा तो वह नाइट सुट में आ गयी थी। मैंने उस के हाथ में दूध का गिलास थमाया और कहा कि दरवाजा बंद करके सो जाये। वह यह सुन कर मेरी तरफ देखने लगी, मैंने कहा कि आज तुम अकेली मेरे साथ हो तो दरवाजा अंदर से बंद कर लेना। उस ने मेरे को अजीब सी निगाह से देखा और दूध पीने लगी। मैं कमरे से बाहर निकल गया।
सारे दिन व्यस्त रहने के कारण मैं भी काफी थक गया था इस लिये बेड पर लेटते ही मेरी आँख लग गयी। मेरी नींद दरवाजे पर हो रही खटखटाहट से खुल गयी। उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कि नेहा खड़ी है। वह बोली कि मुझे वहाँ अकेले डर लग रहा है और नींद नहीं आ रही है, क्या मैं आप के पास सो सकती हूँ? मैं उस की यह बात सुन कर असमंजस में पड़ गया लेकिन मैंने उसे कमरे में आने का रास्ता दे दिया और तकिया उठा कर बाहर जाने लगा तो वह बोली कि आप कहाँ चल दिये?
बाहर बड़ें कमरे में जा रहा हूँ।
मैं डर रही हूँ इस लिये आप के पास आयी हूँ आप बाहर जायेगे तो काम कैसे चलेगा?
तुम्हारा मेरा एक बेड पर सोना सही नहीं है
मुझ से डर लगता है
तुम किसी की पत्नी हो
आप की कुछ नहीं हूँ
तभी तो यह सब कह रहा हूँ
आप कही नहीं जा रहे है, यही पर सोयेगे, तभी मैं भी सो पाऊँगी
जैसी तुम्हारी मर्जी
यह कह कर मैं बेड पर लेट गया। नेहा भी बेड के दूसरे किनारे पर लेट गयी। थका होने के कारण मैं फिर से सो गया। अब की बार मेरी नींद किसी की सिसकियों से खुली। आँख खोली तो देखा कि नेहा सुबक रही है। मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उसका कंधा थपथपाया और पुछा कि नेहा क्या बात है?
वह कुछ नहीं बोली और रोती रही। मैंने उसे अपनी तरफ पलट लिया। नेहा का चेहरा आँसुओं से भरा हुआ था। मुझे कुछ नहीं सुझा या कहे कि भावनाओं में बह कर मैंने उसे अपने से चिपका लिया। उस के आँसुओं को हाथ से पोंछ दिया। वह भी मेरे सीने में दुबक गयी।
मेरे हाथ भी उस के ऊपर कस गये। मुझे कुछ सुझ नहीं रहा था। लेकिन उस समय नींद में होने के कारण जो मैं कर रहा था, वह सही है या गलत मुझे पता नहीं था। जो नहीं होना चाहिये था, वह हो रहा था। मैं अपनी पत्नी की चचेरी बहन के साथ जो पति से लड़ कर मेरे घर आयी थी, आलिंगनरत था। अब जो दो स्त्री-पुरुष के बीच होता है वही होना था।लेकिन हम दोनों की अक्ल उस समय काम नहीं कर रही थी।
कुछ देर बाद नेहा ने रोना बंद कर दिया। वह चुप हो गयी। मैंने भी अपनी बाँहों का घेरा उस के ऊपर से हटा लिया। नेहा ने अपना चेहरा मेरी छाती से नहीं हटाया। उस के होंठ अब मेरी आँसुओं से गिली छाती को चुम रहे थे। वह अपने ही आँसुओं को चाट रही थी। उस के हाथों ने मेरी टी शर्ट ऊपर कर दी और उस के होंठ मेरे निप्पलों को चुमने लगे। कुछ देर तक वह मुझे इसी तरह से भड़काती रही। उस की इस हरकत के कारण मेरे शरीर में वासना की आग भड़क रही थी।
जितना मैं उसे दबाने का प्रयास कर रहा था, उतना ही नेहा उसे भड़का रही थी। वह शायद कुछ ज्यादा ही कामातुर थी। पति के विछोह के कारण ऐसा हो रहा था या कोई और कारण था, यह मैं नहीं जानता था। उस के होंठों नें मेरी गरदन पर अपनी छाप लगानी शुरु कर दी। अब मुझ से अपने आप कर कंट्रोल नही हो पा रहा था। शायद नेहा यही चाहती थी कि मैं उसका साथ दूँ।
ऐसा ही हुआ और मैंने उस का चेहरा अपने हाथ से उठा कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिये। वह शायद यही चाहती थी, नेहा के होंठ मेरे होंठों से चिपक से गये। हम दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये। काफी देर बाद चुम्बन खत्म हुआ। इस चुम्बन के कारण दोनों के शरीर में कामाग्नि बुरी तरह से भड़क गयी। उस के हाथ मेरी पीठ सहला रहे थे और मेरे हाथ उस के नाइटसूट के अंदर उस के बिना ब्रा के मांसल स्तनों को मसल रहे थे। मैं भी दो-तीन दिनों से अपनी पत्नी से दूर था।
एक बार फिर से हम दोनों एक-दूसरे को चुमने लग गये। चेहरा, गरदन, छाती कोई जगह नहीं बची जहाँ चुमा ना गया हो। इस के बाद दोनों के कपड़ें उतर गये। पुरी तरह से नग्न हम एक-दूसरे में समाने का प्रयास करने लगे। मैंने उस के D साईज के स्तनों को होंठों में लेकर पीना शुरु कर दिया। पहले एक का नंबर लगा फिर दूसरा उसने स्वयं ही उत्तेजना वश मेरे मुँह पर लगा दिया।
मैं भी उस की भरपुर भरी हुयी जवानी के रस का पान करने लगा। मेरा हाथ उस के पायजामे के अंदर जा कर उस की जाँघों के जोंड़ पर पहुँच गया। उस ने पेंटी नहीं पहनी हुई थी। उस की उभरी हुई योनि बिल्कुल सफाचट थी। मैं उसे सहलाता हूआ उस की जाँघों को सहलाने लगा।
मैंने उस की भग को मसला और सहलाया और इसके बाद उस की कसी हुई योनि में अपनी उँगली घुसेड़ दी। वहाँ पर भरपुर नमी थी। मेरी उँगली आराम से अंदर बाहर होने लगी। मुझे उस का जीस्पाट मिल गया था। मैं उसे रगड़ कर नेहा को उत्तेजित कर रहा था। मेरी उँगली की हरकत के कारण नेहा ने उत्तेजित हो कर मेरे होंठ अपने दाँतों से काट लिये। मुझे समझ आ गया कि नेहा अब संभोग के लिये बिल्कुल तैयार है।
अब मैं उस के ऊपर आ गया और मैंने उस की टाँगों को अपने हाथ की सहायता से फैला दिया। मेरा लिंग कठोर होकर तन गया था। वह सीधा खड़ा था। मैंने उसे नेहा की योनि पर रख कर दबाया और लिंग उस की योनि में घुस गया। दूसरे ही प्रहार में मेरा आधा लिंग नेहा की योनि में था। तीसरी बार जोर से धक्का दिया तो लिंग पुरा योनि में समा गया।
नेहा ने आहहहह उहहहहह किया, लगा कि लिंग ने बच्चेदानी के मुँह पर चोट मारी थी। मैं थोड़ा रुका और फिर धीरे-धीरे धक्कें लगाने लग गया। कुछ देर बाद नेहा भी कुल्हें उठा कर मेरा साथ देने लग गयी। हम दोनों एक ही रफ्तार में अपने कुल्हों को हिला रहे थे। लिंग नेहा कि योनि में अंदर बाहर हो रहा था। कमरे में फच-फच की आवाज भर रही थी।
कुछ देर बाद मैंने करवट बदली और नेहा को अपने ऊपर कर लिया। अब वह मेरे ऊपर थी और मेरी कमर पर बैठ कर अपने कुल्हों को ऊपर-नीचे कर के मेरे लिंग को अपनी योनि में अंदर बाहर करने लगी। उस के कुल्हों के प्रहार भी बहुत तेज थे। कुछ मिनटों बाद ही वह थक कर नीचे आ गयी।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे, फिर मैंने उसे पीठ की तरफ से अपने से चिपका कर उस की योनि में पीछे से अपना लिंग डाल दिया और हाथों से उस के उरोजों को सहलाना शुरु किया। उस ने अपना मुँह मेरी तरफ किया और हम दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये। नीचे से हमारे शरीर संभोग का मजा ले रहे थे।
हमारा संभोग काफी लंबा हो गया था, हम दोनों पसीने से भीग गये थे। शरीर जल से रहे थे लेकिन चरमोत्कर्ष अभी दूर था। मैं ने नेहा को सीधा किया और उस की योनि के अंदर लिंग डाल दिया और अपना शरीर एक लकीर में सीधा करके जोर-जोर से धक्का देने लग गया।
नीचे से नेहा के मुँह से आहहहहहहहहहह.... उहहहहहह... निकल रहा था। मेरा शरीर भी अब थक चला था। कुछ देर बाद मेरी आँखें बंद हो गयी और मेरे लिंग के मुँह पर आग सी लग गयी। मैं पस्त हो कर नेहा के ऊपर गिर गया।
जब मैं होश में आया तो नेहा के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया। दोनों की साँसें फुली हुई थी। लंबें संभोग के कारण दोनों बुरी तरह से थक गये थे। थकान के कारण कब दोनों की आँख लग गयी यह पता ही नहीं चला।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो बगल में लेटी नेहा को देख कर सारी स्थिति समझ में आ गयी, मैंनें फौरन उठ कर अपने कपड़ें पहनें और कमरे से बाहर निकल गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रात को जो कुछ हुआ था, उस का क्या परिणाम होगा। मेरी पत्नी को जब यह पता चलेगा तो हम दोनों के संबंधों का क्या होगा? नेहा क्या सोचेगी?
यही सब सोचता हुआ मैं बाहर के कमरे में टहलने लग गया। पता नहीं कितनी देर तक टहलता रहा।
मेरी तंद्रा नेहा की आवाज से टुटी, वह पुछ रही थी कि जीजा जी चाय पीयेगे? मैंने उस की तरफ देखा तो उस का चेहरा सपाट था। मैंने सर हिला कर हाँ कहा तो नेहा चाय बनाने किचन में चली गयी।
मैं अपना मुँह धोने वाशरुम चला आया। यहाँ आ कर कपड़ें उतार कर देखा तो नीचे का सारा शरीर यौन द्वव्यों के सुखने से चिपचिपा रहा था। उसे पानी से धोया और फिर मुँह धो कर बाहर आया। कमरे में नेहा चाय लेकर खड़ी थी। उस ने पुछा कि कहाँ चले गये थे? चाय ठंडी हो रही है।
मैंने उस के हाथ से चाय का कप ले लिया और सोफे पर बैठ गया। वह भी मेरे सामने के सोफे पर बैठ गयी। उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, या वह अपने भावों को छुपाने में माहिर थी। हम दोनों चाय पीने लगे। चाय पीने के बाद मैंने कुछ कहने के लिये मुँह खोला तो नेहा बोली कि कल रात को जो कुछ हुआ था, उसे लेकर आप परेशान ना हो, इस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। आप मेरे पर विश्वास कर सकते है। उस की इस बात से मुझे बहुत चैन मिला।
हम दोनों अपने अपने कामों में लग गये। नेहा नहा कर नाश्ता बनाने में लग गयी। मैं भी नहा कर तैयार होने लग गया। नेहा नाश्ता बना कर ले आयी और हम दोनों नाश्ता करने बैठ गये। दोनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी।
मैंने नेहा से पुछा कि उस की अपनी बहन से बात हुई है तो वह बोली कि कल दीदी का फोन आया था, मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया था। वह जब वापस आ जायेगी तभी रितेश से बात करेगी। मैंने पुछा कि घर पर कोई बात हुई तो वह बोली कि नहीं घर पर मैंने कोई बात नहीं की है। दीदी ही आ कर जैसा कहेगी मैं वैसा ही करुँगी। उस की बात सुन कर मैं चुप हो गया। मेरे सारे सवालों का जवाब मुझे मिल गया था।
दिन भी ऐसे ही गुजर गया। रात को मुझे लगा कि आज, कल जैसा कुछ ना हो इस लिये पुरी सावधानी बरतनी होगी। इसी लिये मैंने अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मुझे लग रहा था कि जो मैं कर रहा हूँ वह गलत है लेकिन मेरे मन में डर था, अपनी पत्नी से धोखा करने का, नेहा के भविष्य का। कल पत्नी ने आ जाना था, इस लिये आज कुछ ना हो यही सब के लिये अच्छा रहेगा। रात भी बिना किसी घटना के बीत गयी।
सुबह सुधा यात्रा से वापस आ गयी। वह जब घर में घुसी तो सामान एक तरफ रख कर मुझे देखते ही मेरे गले से लग गयी। हम दोनों पति पत्नी चुम्बन में लग गये। हम कुछ देर के लिये यह भी भुल गये कि घर में हम दोनों के अलावा नेहा भी है।
उस ने अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिये खाँसा तो हम दोनों को उस की उपस्थिति का भान हुआ। यह भान होते ही हम दोनों अलग हो गये। पत्नी ने नेहा को देखा और दोनों बहनें गले मिलने लग गयी। नेहा की आँखों से आँसु बहने लगे। मैं पत्नी का सुटकेस ले कर कमरे में रखने चला गया।
काफी देर तक दोनों बहनें गले मिलती रही। फिर दोनों बैठ कर धीरे-धीरे बात करने लग गयी। मैं उन दोनों के बीच नहीं पड़ना चाहता था, इस लिये बेडरुम में चला आया।
काफी देर बाद पत्नी उठ कर कमरे में आ गयी और बोली कि अभी नाश्ता तो नहीं किया होगा? मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि नेहा नाश्ता बना रही है पहले नाश्ता करते है फिर तुम से जरुरी काम है, मेरे चेहरे पर आश्चर्य के भाव देख कर वह आँख मार कर बोली कि तुम से प्यार करना है।
उसकी यह बात सुन कर मैं मुस्करा कर रह गया। हम दोनों बड़े कमरे में आ कर नाश्ता करने बैठ गये। नेहा नाश्ता मेज पर सजा रही थी। तीनों नाश्ता करने लगे।
पत्नी ने नेहा से पुछा कि मेरे पीछे तेरे जीजा जी ने तेरी आवभगत सही तरीके से करी है या नही? पत्नी के इस सवाल पर नेहा बोली कि जीजा जी ने तो मुझे कोई काम नही करने दिया। उस के इस बात पर पत्नी बोली कि मैंने तेरे जीजा जी को फोन पर ही कह दिया था कि मेरे पीछे मेरी बहन को कोई असुविधा नहीं होनी चाहिये। नेहा मुस्करा कर बोली कि जीजा जी ने मुझे कोई परेशानी नहीं होने दी है। मेरा पुरा ख्याल रखा है।
नाश्ता करने के बाद मैं बेडरुम में आ गया। कुछ देर बाद पत्नी मेरे पास आयी और मेरे गले में हाथ डाल कर बोली कि मेरी प्यास कब बुझेगी? मैंने उस के कान में कहा कि रात होने में अभी समय है। वह बोली कि मेरे से रात तक इंतजार नहीं हो सकेगा।
मैंने कहा कि घर में नेहा है तो वह बोली कि नेहा कौन सी बाहर वाली है। पत्नी के अनुरोध को ठुकराना मेरे बस की बात नही थी। हम दोनों गहरे चुम्बन में डुब गये। पत्नी और मैं पाँच दिन के विरह से व्यथित थे। इस लिये मिलन के लिये मरे जा रहे थे।
दोनों के कपड़ें उतर कर कमरे में इधर-उधर बिखर गये और हम दोनों एक दूसरे में समाने के लिये आतुर हो कर लिपट गये। चुम्बन का एक लम्बा दौर फिर से चला और फिर कपड़ों के अंतिम हिस्से भी हमारे शरीरों से अलग हो गये। दोनों कामातुर थे इस लिये फोरप्ले की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी।
इस लिये मैं पत्नी के ऊपर आ गया और उस की योनि में अपना तना हुआ लिंग डाल दिया। उस ने आहहहहह की और पहली बार में ही मेरा पुरा लिंग अपनी योनि में समा लिया। इस के बाद उस के कुल्हें और मेरे कुल्हें एक साथ ऊपर नीचे होने लगे। हम दोनों के प्रहार बड़े तेज थे।
कुछ देर बाद पत्नी मेरे ऊपर आ गयी और वह मेरी जाँघों पर बैठ कर मेरे लिंग को अंदर बाहर करने लगी और मैं उस के उरोजों को जीभ से चाँटने लग गया। हम दोनों के शरीर में लगी आग अब चरम पर पहुँच गयी थी वह किसी भी क्षण विस्फोट कर सकती थी। ऐसा ही हुआ और मेरे लिंग पर आग सी लग गयी, पत्नी के पाँव भी मेरी कमर पर कस गये। हम दोनों ही एक साथ स्खलित हो गये।
कुछ देर मैं पत्नी के ऊपर पड़ा रहा फिर उस के बगल में लेट गया। वह मेरी तरफ पलट कर बोली कि अब जा कर मन भरा है नहीं तो तुम्हें इतने दिन बाद देख कर रुका ही नहीं जा रहा था। वह उठी और कपड़ें पहनने लगी। मैं भी उठ कर कपड़ें पहनने लग गया।
फिर मैं बेडरुम से बाहर निकल गया। बाहर नेहा ने मुझे देख कर रहस्यमयी मुस्कान मेरी तरफ फेंकी और अपने कमरे में चली गयी। कुछ देर बाद पत्नी भी बाहर मेरे पास आ गयी। उस ने मुझ से पुछा कि नेहा कहाँ है? मैंने नेहा के कमरे की तरफ इशारा कर दिया। वह बहन से मिलने उस के कमरे में चली गयी।
मैं टीवी चला कर बैठ गया। दोनों बहनें काफी देर बाद बाहर आयी। बाहर आने के बाद मेरी पत्नी किसी को फोन करने लगी। काफी देर फोन पर बात करने के बाद उस के चेहरे पर संतोष सा दिखायी दिया। वह मुझ से कुछ नहीं बोली और कुछ काम करने लगी।
।। समाप्त ।।