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CHAPTER 8-छठा दिन
मामा जी और डॉक्टर
अपडेट-14
बलगम और पेशाब की जांच
मैं अभी भी बहुत असहज थी क्योंकि मैं अपनी पेंटी ठीक नहीं कर सकती थी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे मेरी पैंटी के सम्बंध में क्या करना चाहिए, मेरी पेंटी अभी भी मेरी साड़ी के नीचे मेरी जांघों के आसपास उलझी हुई थी। फिर मैंने सोचा कि अगर मैं जल्द ही इस एलर्जी से ठीक हो गयी, तो डॉ. दिलखुश निश्चित रूप से चले जायेंगे और मामा जी उसे छोड़ने जरूर जाएंगे और तब मैं आसानी से अपनी पैंटी ऊपर कर सकूंगी। मेरे पास अब शायद यही एकमात्र तरीका था क्योंकि मैं किसी भी तरह से इन मर्दों के सामने अपनी पैंटी को अपनी जांघों से ऊपर नहीं खींच सकती थी और अगर मैंने ऐसा करने की कोशिश भी की तो यह एक बहुत ही अश्लील दृश्य होगा। इसलिए मैंने बस सही समय का इंतजार किया। '
डॉ. दिलखुश: हम्म... 15 मिनट से ज्यादा समय बीत चुका है और मुझे लगता है कि मैडम को फर्क महसूस होना चाहिए।
मामा जी: ठीक है, ठीक है। बहूरानी, क्या आप अपनी पिछली स्थिति में उल्लेखनीय सुधार महसूस कर रही हैं?
मैं: हम्म... हाँ, बिल्कुल। खुजली पूरी तरह से ख़त्म हो गई है और अब मुझे कोई जकड़न भी महसूस नहीं हो रही है।
डॉ. दिलखुश: कोई सिरदर्द या कुछ और?
मैं: नहीं। नहीं डॉक्टर...!
डॉ. दिलखुश: बढ़िया! अब मुझे खून के थक्कों की जांच करनी है, मिसेज सिंह, मुझे एक बार आपकी बांह देखने दीजिए...!
मैंने अपनी बाहें डाक्टर की ओर आगे बढ़ा दीं और एक पल के लिए मेरी मुद्रा ऐसी हो गई मानो मैं उसे गले लगाने के लिए आमत्रित कर रही हूँ! मैंने तुरंत खुद को सुधारा और अपना बायाँ हाथ पीछे हटा लिया।
डॉ. दिलखुश ने एक-एक करके मेरी बाँहों की जाँच की, लेकिन उनके चेहरे पर उतनी ख़ुशी नहीं दिख रही थी!
डॉ. दिलखुश: पैर भी देख लूं...?
यह कहते हुए वह नीचे सरके और मेरी साड़ी को ढीला करके मेरे घुटनों तक ऊपर खींच दिया और मेरे पैरों की जाँच की। डॉ. दिलखुश ने इतनी सहजता से मेरी साड़ी उठाई कि मेरे मुँह से शर्म के मारे चीख निकलने ही वाली थी, लेकिन मैंने समय रहते खुद पर काबू पा लिया। ऐसा लग रहा था मानो मैं उसकी निजी संपत्ति हूँ!
डॉ. दिलखुश: हम्म... लगता है कि एलर्जी काफी गहरा गयी है, यह अभी भी काफी सक्रिय है...!
मैं: लेकिन डॉक्टर, मैं काफी बेहतर महसूस कर रही हूँ और...और जैसा कि मैंने कहा, कोई खुजली नहीं है।
डॉ. दिलखुश: हाँ, जाहिर है क्योंकि आप उस दवा के प्रभाव में हैं जो मैंने दी थी। यदि थक्के साफ हो गए होते तो मैं यह निष्कर्ष निकाल सकता कि अवशिष्ट एलर्जी घटक भी साफ हो गया है, लेकिन नहीं सब साफ़ नहीं हुआ है । (आहें) अब इसे चरण दर चरण साफ करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
मामा जी: मतलब?
डॉ. दिलखुश: मुझे बलगम और पेशाब की जांच करानी होगी। उनमें से किसी एक में अभी भी संक्रमित निकलेगा और इसे से मालूम होगा की थक्के ठीक नहीं होने के संकेत का क्या कारण है।
मामा जी: लेकिन वह तो प्रयोगशाला परीक्षण हैं और उनमे कम से कम एक दिन का समय लगेगा!
डॉ. दिलखुश: अरे...नहीं सर! ये वह रूटीन टेस्ट नहीं हैं। मेरे पास यहाँ परीक्षण किट हैं, इसलिए इन्हें यहीं आसानी से किया जा सकता है-अभी।
मामाजी: ओह्ह! मैंने सोचा हमे प्रोग्शाला जाना होगा जांच के लिए!
डॉ दिलखुश: चिंता मत कीजिये सर। (उसने अपना ब्रीफकेस खोला और एक पैकेट निकाला) ये रहे दाग सूचक कार्ड। महोदया, यह बहुत सरल है, आप एक संकेतक कार्ड लें, मेरा मतलब कागज का यह टुकड़ा है और इसे पूरी तरह से चाटें... मेरा मतलब है कि आपकी लार को इसे सोखना चाहिए और मुझे तुरंत पता चल जाएगा कि आपकी लार में एलर्जी है या नहीं।
मामा जी: लेकिन... लेकिन कैसे डॉक्टर?
डॉ. दिलखुश: मैंने आपको बताया था कि ये विशेष स्टरलाइज्ड दाग संकेतक हैं। उनका सामान्य रंग लाल होता है (डाक्टर ने कागज का एक टुकड़ा निकाला और मुझे और मामा-जी को दिखाया) जैसा कि आप देख सकते हैं और यदि आपकी लार संक्रमित है, तो जब आप इसे चाटेंगे, तो यह नारंगी हो जाएगा।
मामा जी: सच में!
डॉ. दिलखुश: मैं दिखाता हूँ! मुझे इसे दिखाने दो! महोदया, कृपया ध्यान से देखें।
डाक्टर ने अपने हाथ में रखा वह इंडिकेटर कार्ड चाटा, वह इंडिकेटर कार्ड आयताकार आकार में लगभग 2"x4" आकार का था और लगभग एक मिनट तक चाटने के बाद उसने हमें वह कागज दिखाया, कागज का रंग नहीं बदला था।
डॉ. दिलखुश: तो सर, मैं निष्कर्ष निकाल सकता हूँ की मेरी लार मैडम वाले एलर्जिक वायरस से संक्रमित नहीं है!
मामा जी: ठीक है!
डॉक्टर दिलखुश ने मुझे एक इंडिकेटर कार्ड दिया और मैं एक आज्ञाकारी छात्र की तरह उसे चाटने लगी । मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और अपनी लार से कागज को चाटने लगी। कागज के एक लंबे टुकड़े को ऐसे चाटते हुए मैं बहुत अशोभनीय लग रहा थी, लेकिन मैं इसके बारे में कुछ नहीं कर सकती थी। कागज छत्ते हुए मेरा सिर तेजी से और लयबद्ध रूप से इधर-उधर घूम रहा था-मुझे ऐसा लग रहा था मानो जैसे कि मैं अपने पति के लिंग की लंबाई चाट रही हूँ! हाय रे!
यह सोच ही मेरी ब्रा के अंदर मेरे निपल्स खड़े कर रही थी! मामा जी और डॉ. दिलखुश मुझे यह कृत्य करते हुए बड़े ध्यान से देख रहे थे और मेरे जैसी परिपक्व महिला को जीभ बाहर निकालकर यह कृत्य करते देख हर पल उन्हें बहुत अच्छा लग रहा होगा!
मैं: (कार्ड थमाते हुए) मुझे लगता है... यह... हो गया।
डॉ. दिलखुश: (गीला कागज लेते हुए) हाँ, हाँ मैडम। उत्तम!
कुछ ही क्षणों में एक अत्यंत आश्चर्यजनक घटना घटी; संकेतक कार्ड ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया! लाल रंग धीरे-धीरे पीला पड़ रहा था और एक नारंगी रंग उस कार्ड की पूरी सतह पर छा रहा था और अंततः उस कार्ड का रंग चमकीले नारंगी रंग में बदल गया! यह किसी प्रकार के जादू जैसा था!
डॉ. दिलखुश: तो... देखिए मैडम आपकी लार अभी भी बहुत संक्रमित है।
मामा जी: वाह! यह बहुत आसान और निर्णायक लगता है!
स्वाभाविक रूप से मैं पूरे घटनाक्रम से बिल्कुल भी खुश नहीं थी क्योंकि मुझे लगा अब शायद और अधिक दवाओं लेने की जरुरत त पड़ने वाली थी या इसका मतलब था कि मेरा इलाज अभी कुछ देर और चलेगा।
डॉ. दिलखुश: मैं बस यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ की इन्फेक्शन कितना गहरा है और आप जानते हैं कि अब हमे मूत्र परीक्षण भी करना पड़ेगा।
मामा जी: हाँ, हाँ सर। आगे बढ़ो... जैसा आप ठीक समझे!
मैं तुरंत सख्त हो गयी । अगर मुझे मूत्र परीक्षण कराने की आवश्यकता है, तो मुझे शौचालय जाना होगा, लेकिन मेरी वर्तमान स्थिति में, मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ? मैं अपने पैर ठीक से फैला भी नहीं पा रही थी क्योंकि मेरी पैंटी मेरी ऊपरी जाँघों पर बहुत ही भद्दे ढंग से लुढ़की हुई और चिपकी हुई थी। मैं इस अवस्था में सामान्य रूप से उठ नहीं सकती थी और चल भी नहीं सकती थी।
मैं: मामा जी, अगर आप मुझे कुछ मिनट दे सकें... सॉरी! मेरा मतलब है कि मैं बस... करना चाहती हूँ, मैं बस अपनी साड़ी को थोड़ा ठीक करना चाहती हूँ और... यह बहुत अस्त व्यस्त हो गई है और....!
मामाजी: ओह्ह! (उनकी कामुक नज़रें मेरे सुडौल शरीर पर घूम रही थीं जैसे मेरी साड़ी में वह मेरे अंग देख रहे हों) हाँ, हाँ बहूरानी...तुम इसे ठीक कर लो। डॉक्टर, मेरा मतलब है... क्या हम... क्या हम बस बाहर इंतजार कर सकते हैं ताकि वह...!
डॉ. दिलखुश: बिल्कुल! बिलकुल! महोदया, कृपया अपना समय लें। आप मुझेये मूत्र संकेतक सौंपने दीजिए... यह रहा... बस अपने मूत्र प्रवाह पर इस कार्ड को पकड़ें...बस! अगर इन्फेक्शन होगा तो रंग बदल जाएगा, नहीं तो कुछ नहीं होगा ठीक है मैडम?
मैं: हाँ, हाँ, ठीक है।
दोनों पुरुष मुझसे दूर हो गए और कमरे से बाहर चले गए। मामाजी इतने दयालु थे कि बाहर निकलते ही उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया। मुझे ऐसा महसूस हुआ, बहुत राहत मिली। मैं तुरंत कांपती हुई मुद्रा में बिस्तर से उठी क्योंकि मैं बिस्तर पर अपने पैर भी नहीं फैला पा रही थी और जैसे ही मैं स्वाभाविक रूप से खड़ी हुई, मेरी साड़ी और पेटीकोट मेरी कमर से लगभग नीचे की और जा रहे थे क्योंकि वे बहुत ढीले ढंग से मेरे अंगो से लिपटे हुए थे। मैंने अपनी साड़ी और पेटीकोट को फर्श पर गिरने दिया और जल्दी से अपनी पैंटी ऊपर उठाई और अपनी बालों वाली योनि को ढक लिया।
मैं थोड़ी देर के लिए अपनी पैंटी के बीच से अपनी चूत में उंगली करने से खुद को रोक नहीं पाई क्योंकि मैं अभी भी बहुत उत्साहित अवस्था में थी, खासकर उस संकेतक कार्ड को चाटने के बाद! हालाँकि यह सिर्फ एक कागज को चाटना था, लेकिन इसे दो पुरुषों के सामने करना और जिस तरह से मुझे कागज की पूरी लंबाई पर अपनी जीभ को घुमाना था, उसने मुझे काफी उत्तेजित कर दिया।
मैंने फर्श से अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाया और शौचालय की ओर भागी। वास्तव में मुझे थोड़ी चिंता महसूस हुई क्योंकि दरवाज़ा अभी बंद था और कुण्डी बंद नहीं यही और मैं बिल्कुल खुली अवस्था में खड़ी थी और अगर वह लोग दरवाजा खोल देते तो मैं ऐसे भद्दी अवस्था में अध् नंगी पायी जाती ।
चूँकि मुझे मूत्र परीक्षण करना था, इसलिए मैंने अपनी साड़ी और पेटीकोट को दीवार के हुक पर रखा और एक हाथ में इंडिकेटर पेपर पकड़कर, अपने दूसरे हाथ से अपनी पैंटी को घुटनों तक नीचे खींच लिया और फिर पेशाब करने के लिए बैठ गई।
हइससससससससससू...!
जैसे ही मेरा गर्म मूत्र शौचालय के फर्श पर बह गया, मैंने कागज के टुकड़े को धारा पर रखा और कुछ ही क्षणों में वह पूरी तरह से भीग गया। मैंने अपना मूत्र त्याग पूरा किया और कागज को सूखी साफ जगह पर रख दिया और अपने हाथ धोए और फिर से कपड़े पहनना शुरू कर दिया। उसके बाद कपड़े पहन कर, मैं वापिस कमरे में आ गयी ।
मामाजी: बहूरानी, तुम्हारा काम हो गया क्या?
मैं: हाँ, हाँ। आप अंदर आ सकते हैं।
डॉ. दिलखुश और मामा जी दोबारा कमरे में दाखिल हुए और मैं उस भीगे हुए कागज को हाथ में लेकर खड़ी था। मुझे आश्चर्य हुआ कि कागज ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया!
डॉ. दिलखुश: हम्म दुर्भाग्य से मैडम, संक्रमण आपके मौखिक और जननांग प्रणाली दोनों में है।
मैं: अब क्या होगा डॉक्टर?
स्वाभाविक रूप से मैं काफी चिंतित थी और थोड़ा उदास भी थी क्योंकि मेरे शरीर में अभी भी रोगाणु मौजूद थे।
डॉ. दिलखुश: मिसेज सिंह देखिये! यह थोड़ा जटिल रोग है और रोगाणु को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए मुझे आपको अस्पताल में भर्ती कराना होगा।
मैं और मामाजी: क्या? (एक साथ में!)
डॉ. दिलखुश: अरे! मेरा मतलब क्या हुआ? क्या मैंने कुछ अजीब कहा?
मैं और मामा जी: हाँ! (फिर से कोरस!)
डॉ. दिलखुश: लेकिन अस्पताल में भर्ती होने में इतना डरने वाली बात क्या है?
मैं: बिलकुल नहीं! बिलकुल नहीं डॉक्टर! मैं वहाँ नहीं जा सकती!
मामा जी: हाँ, हाँ। बिलकुल नहीं!
डॉ. दिलखुश: लेकिन... लेकिन कृपया आप स्थिति को समझें कि मेरे पास यहाँ इस स्थिति का इलाज करने के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं हैं और यह सिर्फ आधे दिन की बात है और मैडम मेरा मतलब है कि आपको हॉस्पिटल में आधे दिन के लिए भर्ती होना होगा और आज शाम को ही आपको छुट्टी दे दी जाएगी!
मैं: सवाल ही नहीं उठता डॉक्टर! मुझे आज शाम तक वापस जाना है!
डॉ. दिलखुश: वापस? वापस कहाँ जाना है?
मामा जी: सुनो... सुनो डॉक्टर, मेरी बहूरानी कहि गयी हुई थी और उसे वापस उसी जगह लौटना है । वह जगह यहाँ से काफी दूर है और उस शेड्यूल को किसी भी हालत में बदला नहीं जा सकता।
डॉ. दिलखुश: ओ! अच्छा ऐसा है! (डाक्टर काफी आश्चर्यचकित दिख रहा था) लेकिन... मेरा मतलब यह है कि इस एलर्जी की स्थिति से निपटने के लिए मेरे पास यहाँ पर सीमित संसाधन ही हैं। क्या आपको वह बात समझ में आयी?
मैं: डॉक्टर... प्लीज़ कुछ करो। सचमुच मेरे पास अस्पताल में भर्ती होने के लिए इतना समय नहीं है... मेरा विश्वास करो! मेरे पास उस समय सीमा के भीतर वापस आने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है... लेकिन हाँ, मैं स्पष्ट रूप से उससे पहले पूरी तरह से ठीक होना चाहती हूँ।
इस घटनाक्रम के कारण मानो मेरी धड़कनें बढ़ने लगी थीं और यह सब मेरे लिए बहुत अप्रत्याशित था!
डॉ. दिलखुश: देखिए मिसेज सिंह, अस्पताल के अतिरिक्त इस रिएक्शन को यहीं पर दूर करना बहुत आसान नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा कि यह असंभव है, लेकिन आप समझ लीजिये कि यह बहुत बोझिल होगा...!
मामा जी एक छोटे लड़के की तरह खुशी से उछल पड़े और डॉ. दिलखुश का हाथ पकड़ लिया!
मामा जी: डॉक्टर अगर आप कह रहे हैं कि यह असंभव नहीं है... तो आप कृपया यहीं इलाज करें। हमारे पास वास्तव में अस्पताल जाने का विकल्प नहीं है। आप बस ये इलाज यहीं कीजिये!
डॉ. दिलखुश: ठीक है, लेकिन मैं वास्तव में यहाँ मैडम के इस संक्रमण का इलाज करने में सहज नहीं हूँ क्योंकि इसके लिए आवश्यक और अपेक्षित नैदानिक उपकरण और दवाएँ यहाँ उपलब्ध नहीं हैं!
जारी रहेगी