छाया - भाग 14

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छाया की मुसीबत खत्म और सम्भोग सुख और आंनद की प्रतीक्षा.
8.1k words
4.38
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Part 14 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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(मैं छाया)

शर्मा जी लगभग 8:00 बजे घर लौटे उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी. हम सभी ने उनका भव्य स्वागत किया. सच में आज उन्होंने डिसूजा को इस केस से हटवा कर हम सभी की इच्छा को पूरा कर दिया था. आज वह इस घर के मुखिया के रूप में दिखाई पड़ रहे थे. वह एक बार फिर मेरे पास आये और मेरे माथे को चूम लिया. मेरे दोनों गाल उनकी हथेलियों में थे उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में लेने की भी कोशिश की. मुझे उनका कल का आलिंगन याद था जिसमें मेरे स्तन उनके सीने से सट गए थे. आज सावधानी बरतते हुए मैं आगे झुक गई थी और सिर्फ अपने कंधों को उनके सीने से टकराने दिया.

उन्होंने फिर कहा

"कोई मेरे परिवार पर और खासकर मेरी छाया बेटी पर बुरी नजर डालेगा मैं उसे नहीं छोडूंगा." उनके उदघोष से मां का सीना गर्व से फूल गया था. उन्हें शर्मा जी को अपना जीवनसाथी चुनने पर आज अभिमान हो रहा था. मा ने उन पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. मां को इस खत की जानकारी नहीं थी इसलिए वह बहुत खुश थीं। हम तीनों के चेहरों पर अभी भी तनाव थे. यह बात हमने शर्मा जी से भी बताना उचित नहीं समझा.

(मैं माया)

दो-तीन दिन की तनाव भरी जिंदगी के बाद आज का दिन सुखद था। मेरी बेटी के चेहरे पर आज हंसी दिखाई पड़ी थी। शर्मा जी को मैंने आज अपने हाथों से खिलाया। आज मैं उन्हें हर तरह से खुश करना चाहती थी। मैंने अपनी अलमारी में उत्तेजक वस्त्रों की तलाश की पर मेरे मन मुताबिक कोई भी वस्त्र ना मिला। मैंने छाया की अलमारी से एक सुंदर नाइटी निकाल ली मेरी उम्र के हिसाब से वह कुछ ज्यादा ही कामुक थी। शर्मा जी भी कम कामुक न थे वह बार-बार मुझे ऐसे वस्त्र पहनने के लिए बोलते थे। आज मैंने उनकी मन की इच्छा पूरी करने की ठान ली थी। बच्चों के अपने-अपने कमरे में जाने के बाद मैं नहाने चली गई। जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर निकली शर्मा जी मुझे एकटक देखते रह गए। यह ड्रेस वास्तव में बहुत आकर्षक और कामुक थी। मेरा बदन छाया से लगभग मिलता-जुलता था मुझ में उतनी चमक और कोमलता तो नहीं थी पर बदन के उतार-चढ़ाव छाया से मिलते थे। वो मुझे एक टक देखते रह गए। उन्होंने कहा "तुमने छाया की ड्रेस पहनी है ना"

मैं मुस्कुराने लगी वह मेरी चोरी पकड़ चुके थे. उन्होंने उठकर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे बाल गीले थे मैंने उनसे कुछ समय मांगा पर वह सुनने को तैयार नहीं थे। जब तक मैं अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखा रही थी तब तक वह मेरे स्तनों और जांघों से खेलना शुरू कर चुके थे। आज उनकी हथेलियों में गजब की उत्तेजना थी। उनका ल** मेरी नितंबों से लगातार टकरा रहा था वह नाइटी के ऊपर से ही मुझे सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह उसके अंदर हाथ डाल कर मेरी जांघों को सहलाते। मैं भी उत्तेजित हो रही थी कुछ ही देर में हम दोनों बिस्तर पर थे। उन्होंने कहा

"तुमने छाया की नाइटी पहनी है उसे मालूम चल गया तो?"

"उसे कैसे मालूम चलेगा. मैं सुबह वापस रख दूंगी"

"पर इस नाइटी में तुम मुझे छाया जैसी दिखाई दोगी तो मैं तुमसे संभोग कैसे कर पाऊंगा"

"ठीक है लाइए मैं इसे उतार देती हूँ।" उन्होंने मेरे हाथ रोक लिए उन्होंने पूछा "छाया खुश तो है ना?"

"हां, आज वह बहुत खुश थी. और आपकी बहुत तारीफ कर रही थी"

"मैं भी उसे बहुत मानता हूं और उससे बहुत प्यार करता हूं" इतना कहकर उन्होंने मुझे दबोच लिया. उनके होंठ मेरे होठों को अपने बीच ले चुके थे। उनके लिंग का कड़ापन मेरे पेट को महसूस हो रहा था। उन्होंने फिर कहा

"आज तुम छाया की नाइटी पहन कर और भी जवान हो गई हो"

मेरी नाइटी मेरी कमर तक आ चुकी थी. मैंने उसे बाहर निकालने की कोशिश की पर शर्मा जी ने रोक दिया. वह उसी अवस्था में मेरे ऊपर आ गए और उनका लिंग मेरी योनि में टकरा गया.

आज मैं उन्हें भरपूर सुख देना चाहती थी यह बात सोचते हुए मेरी योनि में पहले से ही पर्याप्त गीलापन आ चुका था। शर्मा जी का लिंग के छूते ही मेरी प्यास बढ़ गई और शर्मा जी ने बिना देर करते हुए अपने लिंग को मेरी गहराइयों में उतार दिया। वह मेरे स्तनों को तेजी से मसल रहे थे और अपनी कमर से लगातार धक्के लगाए जा रहे थे। मैं भी उनकी उत्तेजना में उनका साथ दे रही थी कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं स्खलित हो जाऊंगी। शर्मा जी के रंग ढंग से ऐसा लग नहीं रहा था जैसे उन्हें पूरी संतुष्टि हुई हो। मैंने उन्हें नीचे आने का इशारा किया वह नीचे आ गए मैं उनकी कमर पर बैठकर अपनी योनि को आगे पीछे करने लगी। आज मैं स्वयं बहुत उत्तेजित थी और कुछ ही देर में मैं स्खलित होने लगी।

स्खलित होने के पश्चात उन्होंने मुझे अपने सीने से सटा लिया और मेरे माथे को चूमने लगे। मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए वह बार-बार बोल रहे थे

मेरी प्यारी माया और माथे पर झूम रहे थे। मैं हारी हुई खिलाड़ी की तरह उनके पेट पर लेटी हुई थी। मेरी पराजित योनि में उनका लिंग अभी भी गर्व से खड़ा था। वह बार-बार मुझे सहलाए जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने से उम्र में बड़े आदमी की सीने पर लेटी हुई हूं और वह मुझे बच्चों जैसा प्यार कर रहा है। पर जब मेरा ध्यान मेरी कमर के नीचे जाता मेरी नग्नता उस प्यार की परिभाषा बदल देती थी। शर्मा जी का लिंग अब मेरी योनि में धीरे-धीरे हिलना शुरू हो रहा था कुछ देर बाद शर्मा जी ने मुझे अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया। मैं वापस एक बार फिर पीठ के बल लेटने लगी। शर्मा जी बिस्तर से उठ कर नीचे खड़े हो गए वह मुझे डॉगी स्टाइल में आने का इशारा कर रहे थे। आज वह भी पूरे मूड में थे। मैं उन्हें खुश करने के लिए बिस्तर पर डॉगी स्टाइल में आ गई। शर्मा जी ने नाइटी को उठाया और मेरी कमर पर रख दिया मेरे दोनों नितम्ब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। नितंबों के बीच से झांक रही मेरी योनि के होंठ भी उन्हें अवश्य नजर आ रहे होंगे।

उनका मजबूत लिंग मेरे नितंबों पर टकरा रहा था। वह कामुक तरीके से मेरी पीठ सहला रहे थे और मेरे नितंबों को चूम रहे थे। अचानक ही उन्होंने मेरी योनि के होठों को चूम लिया मुझे उनसे यह आशा नहीं है आज यह पहली बार हुआ था मेरी योनि एक बार संभोग कर चुकी थी मुझे इस अवस्था में यह कार्य अनुचित लगा मैंने अपनी कमर हिला दी। शायद वह मेरा इशारा समझ गए थे वह वापस खड़े हो गए।

उनके लिंग में आज अद्भुत उत्तेजना थी। कुछ ही देर में लिंग मेरी योनि के मुख से सट गया। मेरी योनि संवेदनशील हो चुकी थी। उसके मुख पर गीलापन अभी भी कायम था। शर्मा जी धीरे-धीरे अपने लिंग का दबाव बढ़ाते गए और वह मेरी योनि में प्रविष्ट होता चला गया। इस अवस्था में शर्मा जी का लिंग मुझे और भी मजबूत और मोटा महसूस हो रहा था। वह मेरे गर्भाशय के मुख तक पहुंच गया था। शर्मा जी अपनी कमर को आगे पीछे करने लगे वह बार-बार मेरी नाइटी को छूते और नाइटी के ऊपर से ही मेरी पीठ को सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह अपने हाथ नीचे कर नाइटी में ही कैद मेरे स्तनों को छूते। मुझे अद्भुत एहसास हो रहा था। मैं एक बार फिर उत्तेजित हो रही थी। कुछ ही देर में उनके कमर के धक्के बढ़ते गए उनकी लिंग के आने-जाने की गति में अद्भुत इजाफा हो गया था। वह काफी तेजी से अपने लिंग को मेरे योनि में आगे पीछे कर रहे थे। मैं उत्तेजना से कांपने लगी वह मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए थे कुछ ही देर में मैने उनके लिंग को अपनी योनि में फूलता पचकता हुआ महसूस करने लगी इस अद्भुत एहसास से मैं भी स्खलित होने लगी। उन्होंने मेरी कमर को पकड़कर तेजी से अपनी तरफ खींचा और अपने लिंग को पूरी ताकत से अंदर तक ले गए जो मेरे गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश कर रहा था। मैं उनके इस तीव्र उत्तेजना को पहचान गई थी मैंने उन्हें रोका नहीं । मेरी योनि में वीर्य वर्षा हो रही थी जिसकी मुझे अनुभूति भी हो रही थी शर्मा जी के पैर कांप रहे थे और उनका कंपन मुझे अपने नितंबों पर महसूस हो रहा था उनके मुख से धीमी आवाज आई।

छाया....................की नाइटी बहुत सुंदर है मायाजी आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजीए।

उनके मुंह से छाया शब्द सुनकर मैं अचानक डर गई पर पूरी बात सुनकर मैं संतुष्ट हो गई थी। छाया की यह नाइटी निश्चय ही उत्तेजक थी। इसने आज मेरी उत्तेजना में आग में घी का काम किया था। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि उनकी खुशी के लिए ऐसे कई सारे वस्त्र अपनी भी अलमारी में रखूंगी।

वह अपना लिंग बाहर निकाल चुके थे मैंने उनके चेहरे की तरफ देखा वह तृप्त लग रहे थे। उन्होंने मुझे एक बार फिर अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए मेरे माथे को चूम लिया।

मैं उनके आलिंगन में कुछ देर वैसे ही खड़ी रही। उन्होंने कहा तुमने और छाया ने मेरे जीवन में आकर मेरी वीरान जिंदगी में रंग भर दिए हैं। मैं भगवान से हमेशा तुम दोनों की खुशी मांगता हूँ और मानस की भी। उन्हें पता था, मानस भी हम दोनों को उतना ही प्यारा था।

(मैं शशिकांत शर्मा उर्फ शर्मा जी)

आज माया से संभोग करके मुझे जीवन का अद्भुत आनंद आया था. छाया की उत्तेजक नाइटी माया पर भी खूब खिल रही थी। यह पिछले 2 वर्षों से हो रहे हमारे मिलन से कुछ अलग था. आज माया ने पूरे तन मन से मुझे स्वीकार कर लिया था। आज उसका यह समर्पण मुझे अत्यंत आत्मीय लगा था और वह मेरे हृदय में आत्मसात हो गयी थी।

मैंने भी डिसूजा को इस केस से हटाकर अपने दायित्व का निर्वहन किया था मैं भगवान को शुक्रिया अदा कर रहा था कि आज मेरे संबंधों की वजह से मैं माया और उसकी बच्ची छाया के लिए कुछ कर पाया था।

संभोग के उपरांत मेरी आंख लग गई

मैंने अपने आप को बादलों में पाया मेरे पैर बादलों में थे पर मैं गिर नहीं रहा था। मैं अपने पैरों से बादलों को हटाता और वह हटकर कुछ दूर चले जाते और अगल-बगल के बादल उस जगह को भरने आ जाते। मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था कभी मैं स्वयं को एक किशोर की भांति पाता कभी अपनी वर्तमान उम्र में। चारों तरफ पूर्ण सन्नाटा था पर उस दिव्य दृश्य को देखकर मैं आनंद में डूब गया था तभी अचानक मुझे एक दिव्य स्वरूप दिखाई दिया। मुझे बादलों से एक आकार अपनी तरफ आता हुआ दिखाई पड़ रहा था जैसे-जैसे का आकार मेरी तरफ आता मेरा कोतुहल बढ़ता जाता।

वह एक स्त्री थी जैसे जैसे वह करीब आ रही थी उसकी काया अब दिखाई पड़ने लगी थी पर वह अभी भी विशालकाय थी। सामान्य आकार से लगभग कई गुना विशाल। जैसे-जैसे वा मेरे करीब आती गई मुझे उसका आकार और बड़ा दिखाई पड़ने लगा यह निश्चय हो चुका था कि वह युवती की ही काया थी सफेद बादलों के बीच से गेंहुए हुए रंग की उसकी दिव्य काया अपना अद्भुत रूप दिखा रही थी। कामुक अंगो को बादलों ने घेर रखा था परंतु उस सुंदर काया की कामुकता को रोक पाने में बादल नाकाम हो रहे थे। उसके चेहरे , स्तन, नाभि प्रदेश और जाँघों के योग पर बादलों ने अपना आवरण दे दिया था। उस युवती के पूरे शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं था उसका मुख मंडल प्राकृतिक आभा से दमक रहा था। मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था वह मेरे काफी करीब आ चुके थी। अचानक उसके चेहरे पर से बादल हटे मुझे वह कोई देवी स्वरूप प्रतीत हुई । मुझे अपनी गंदी सोच पर घृणा हुई मैं इस दिव्य शक्ति की जांघों और स्तनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ था यह सोचकर मुझे शर्म और लज्जा आने लगी। मेरी गर्दन चुकी थी । तभी उस युवती की गूंजती हुई आवाज आई

"क्या हुआ आपने गर्दन क्यों झुका ली" मैं कुछ उत्तर न दे सका मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे व दिव्य शक्ति नाराज होकर मुझे कोई श्राप न दे दे। मैंने सर झुकाए हुए ही कहा

"मैं आपके दिव्य स्वरुप को नहीं पहचान पाया मेरा ध्यान भटक गया था मुझे क्षमा कर दीजिए"

"क्षमा मत मांगिए आपने कोई गलती नहीं की है जिस दृश्य को आप देखना चाहते थे आपने वही देखा. स्त्री शरीर के वही अंग आप को प्रभावित करते हैं जो आप पसंद करते हैं यदि आपने मेरे स्तनों और जांघों को देखने की चेष्टा की है तो निश्चय ही आपके मन में वासना ने जन्म लिया है. मैं तो स्वयं कामवासना की देवी रति हूं. धरती पर सभी वयस्क पुरुष मुझे ही ध्यान करते हैं कभी-कभी वह अपने साथी में मेरा स्वरूप पा लेते हैं। कभी पूर्ण तृप्त ना होने पर वह अपनी भावनाओं में मुझे याद कर लेते हैं। कभी मैं उनके समीप ही किसी और रूप में विद्यमान रहती हूँ। मैं उनकी कामवासना संतुष्ट करने में पूरी मदद करती हूं। जिन्हें कोई साथी नहीं मिल पाता वह मेरे ही अंगों पर ध्यान केंद्रित कर अपनी वासना की पूर्ति करते हैं और चरम सुख प्राप्त करते हैं"

मैं कामदेवी का विशाल हृदय देखकर गदगद हो गया. मैंने उन्हें प्रणाम किया उन्होंने फिर कहा

"यदि तुम इस प्रकार नतमस्तक रहोगे तो इस अद्भुत दिव्य दर्शन का आनंद कैसे ले पाओगे?"

मैंने अपनी नजरें उठा दीं वह मुस्कुराती हुई साक्षात मेरे सामने थीं। उनके इस विशाल रूप को देख पाने की मेरी क्षमता नहीं थी मैंने फिर एक बार कहा

"आपके इस दिव्य स्वरूप को मेरी आंखें देख पाने में नाकाम हो रही है. मेरी आंखें इस दिव्य रुप के चकाचौंध में दृष्टि हीन हो रहीं हैं कृपया अपना स्वरूप छोटा करें और मुझे दर्शन दें।"

उनका कद छोटा होता चला गया कुछ ही देर में वह सामान युवती की भांति मेरे सामने खड़ी थीं। चेहरे पर अद्भुत नूर था शरीर की बनावट आदर्श थी स्तनों को अभी भी बादल ने घेरा हुआ था पर उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था ऐसा लगता था सांची के स्तूपों को छोटा करके उनके दोनों स्तनों की जगह रख दिया गया हो।सीने से कमर तक आते आते हैं कमर की चौड़ाई अद्भुत रूप से कम हो गई थी और उसके तुरंत ही पश्चात वह बढ़ते हुए उनके नितंब का रूप ले रही थी।

उनकी जाँघें बेदाग और सुडोल थी ऐसी दिव्य काया को मैं ज्यादा देर नहीं देख पाया। मेरी आँखें फिर झुक गई। उन्होंने फिर कहा

"यदि आपकी तृप्ति से हो गई हो तो मैं अंतर्ध्यान ही जाऊं"

आपसे कोई आपसे कैसे तृप्त हो सकता है मेरी आंखें फिर खुल गई थी उनके चेहरे और शरीर से बादल हट चुके थे सुंदर सुडोल स्तन मेरी आंखों के सामने थे जांघों के जोड़ पर दो खूबसूरत होठ अपने बीच थोड़ी जगह बनाए हुए दर्शनीय थे। नाभि और जांघों के जोड़ के बीच की जगह एकदम सपाट और बेदाग थी। मैं उस अद्भुत काया को निहार रहा था। तभी मेरी नजर देवी के चेहरे पर गए मेरे मुख से निकल गया "छाया"

वह हंसने लगी

अचानक छाया का चेहरा गायब हो गया और वह चेहरा एक दिव्य स्वरुप में परिवर्तित हो गया. जब जब मैं अपना ध्यान चेहरे से हटाता और कामुक अंगो की तरफ लाता मेरे जेहन में कभी वह दिव्य चेहरा आता कभी छाया का चेहरा दिखाई पड़ता। मैंने एक बार फिर चेहरे की तरफ ध्यान लगाया और फिर छाया का ही चेहरा सामने आयाम

मैं इस दुविधा से निकल पाता तभी एक बार गूंजती हुई आवाज फिर आई

"आइए मेरे आगोश में आ जाइए. मैं धरती पर हर जगह अलग-अलग रूपों में उपलब्ध हूं. मेरी उपासना सारी मानव जाति करती है आप भी उनमें से एक हैं।"

मैं धीरे-धीरे उस अद्भुत काया की तरफ बढ़ने लगा। जैसे ही मैं उनके स्तनों को छु पाता मेरी नींद खुल गई।

मैं बिस्तर पर उठ कर बैठ गया। मैं मन ही मन डरा हुआ भी था पर अपने लिंग पर निगाह जाते हैं मेरा डर गायब हो चुका था। वह पूर्ण रूप से उत्तेजित था। शायद यह कामदेवी का ही आशीर्वाद था।

मैं माया जी की नाइटी हटाकर उनके कोमल नितंबों से अपने लिंग को सटा दिया और उन्हें अपने आगोश में लेकर सो गया। यश स्वप्न अद्भुत और अविश्वसनीय था उसने मेरे मन मे प्रश्न उत्पन्न कर दिया था.... क्या छाया कामदेवी रति की अवतार थी....???

शुक्रवार (पांचवा दिन)

(सोमिल का कैदखाना)

(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

यहां आने से पहले मेरे मन में भी इस बात का डर था की जिस व्यक्ति के साथ मुझे रहना था वह किस स्वभाव का होगा। मैंने पैसों के लालच में हा तो कर दिया था पर मैं डरी हुई थी। मैंने इससे पहले एक या दो बार ही अपरिचित मेहमानों से सेक्स किया था। वह भी उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। उनके साथ सेक्स कर कर मुझे स्वयं को कोई अनुभूति नहीं हुई थी। मैंने सेक्स का आनंद अपने पुराने बॉयफ्रेंड के साथ ही लिया था जो अब दुबई भाग गया था।

भगवान ने मुझे खूबसूरत और हसीन बनाया था पर मेरी गरीबी ने मुझे ऐसे कार्य करने पर बाध्य किया था। मेरी पढ़ाई अब पूरी हो चुकी थी। पैसों के लालच में मैंने आखरी बार यह कार्य करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया था।

मुझे मेरे भाई ने बताया था जो व्यक्ति यहां आ रहा है वह उस रात सुहागरात मनाने वाला था और उसे उसी अवस्था से किडनैप कर लिया गया है। तुम्हें उसका ख्याल रखना है और उसे अगले कुछ दिनों तक उत्तेजित कर उसका मन लगाए रखना है। यदि तुम उसके साथ संभोग कर लेती हो तो यह तुम्हारी विजय मानी जाएगी। इसके लिए तुम्हें उचित इनाम भी दिया जाएगा। पर तुम्हें यह बात ध्यान रखनी होगी कि वह एक सभ्य इंसान है यदि उसे तनिक भी भ्रम हो गया कि तुम एक कॉल गर्ल हो तो वह तुम्हारे पास भी नहीं आएगा।

यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम उसे किस तरह प्रभावित करती हो पर यदि तुमने उसके साथ संभोग कर लिया तो निश्चय ही तुम्हारे ईनाम की राशि बढ़ा दी जाएगी। मैं मन ही मन इस अनोखे चैलेंज को स्वीकार कर चुकी थी। सोमिल सर को देखने के बाद मैं उनकी मर्दानगी की कायल हो गई थी। लंबा चौड़ा शरीर और चेहरे पर आकर्षण एक लड़की को संभोग के लिए जो कुछ भी चाहिए था सोमिल सर में कूट कूट कर भरा था।

मैं उनसे पहली नजर में ही प्रभावित हो गई थी। मुझे मेरे भाई द्वारा दिया गया चैलेंज मेरा खुद का चैलेंज बन गया था। मुझे वियाग्रा की कुछ गोलियां भी दी गई थी जिन्हें निश्चित अंतराल पर मुझे सुनील सर को देना था। मैंने दर्द निवारक दवाओं के साथ उस गोली को भी उन्हें देना शुरू कर दिया था। जिससे उनके लिंग में हमेशा उत्तेजना कायम रहती थी। उनका अंडरवियर हम लोगों ने जानबूझकर हटा दिया था तथा मेरी नाइटी के गायब होने की कहानी भी मैंने स्वयं ही गढ़ ली थी।

उनकी सफेद शर्ट में जब मैं बाहर निकली तो मुझे उनकी उत्तेजना का एहसास हो गया था उनके पजामे से उनके लिंग का आकार स्पष्ट दिखाई पड़ता था। उन्हें उत्तेजित करते-करते मैं स्वयं उत्तेजित होने लगी थी। बीती रात मैंने बिस्तर पर सोते हुए हर जतन किए कि वह मेरी चू** को देखकर मुझसे संभोग का मन बना लें। मैं चाहती थी वह मुझे अपनी बाहों में खींच ले और जी भर कर अपनी और मेरी प्यास बुझाएं। पर वह निहायत ही शरीफ थे। मैंने कुछ सफलता तो अवश्य पाई जब वो मेरे सामने ही हस्तमैथुन कर रहे थे। उनकी आंखें बंद थी पर मैं खुली आंखों से उनके सभ्य और सुसंस्कृत ल** को उनकी हथेलियों में हिलते देख रही थी। मेरी इच्छा हो रही थी कि मैं उसे अपने हाथों में ले लूं और स्वयं उन्हें स्खलित कर दूं पर मुझे सब्र से काम लेना था।

मेरी एक गलती भी उन्हें मेरी हकीकत का एहसास दिला देती और मैं चैलेंज हार जाती। उनके वीर्य की धार जब मेरे स्तनों पर पड़ी तब मुझे अद्भुत एहसास हुआ। मेरी योनि पूरी तरह चिपचिपी हो गई थी। बिस्तर पर बैठे रहने की वजह से उस से निकला प्रेम रस चादर पर अपने निशान बना चुका था। जब वह करवट लेकर सो गए तो मैं बिस्तर से उठी और उस निशान को देख कर मुस्कुराने लगी। मैंने बाथरूम में जाकर अपनी उत्तेजना शांत की और उनके बगल में आकर सो गयी। मेरे पास कुछ ही दिन शेष थे मुझे उनके साथ संभोग करना था यह मेरे लिए चैलेंज कम मेरी दिली इच्छा ज्यादा थी।

आज सुबह नहाने के बाद मुझे उनकी शर्ट उतारने पड़ी। यह शर्ट मेरी कामुकता में चार चांद लगा रही थी। मैं नहाकर नाइटी पहन कर बाहर आ गई। इस नाइटी में मैं चाह कर भी अपने सुनील सर को आकर्षित नहीं कर पा रही थी।

छाया और सीमा के प्रयास

(मैं मानस)

छाया और सीमा ने अपने कॉलेज के दोस्तों और फ्रेंड सर्किल में उस अनजान लड़की की तस्वीरें प्रसारित कर दीं थीं। छाया ने उस फोटो में से सोमिल की फोटो हटाकर सिर्फ उस लड़की की फोटो रखी थी वह समझदार तो थी ही।

हॉस्टल की लड़कियों का नेटवर्क जबरदस्त था। उन्होंने उस खूबसूरत लड़की की तस्वीर अपने सभी फ्रेंड्स को भेज दी यह सिलसिला चलता गया और अंततः हमें यह मालूम चल चुका था कि वह लड़की लक्ष्मी थी जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुकी थी। वह पैसों के लिए कभी-कभी वह हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल बन कर कामुक गतिविधियां भी किया करती थी।

हमें जबरदस्त सफलता हाथ लगी थी छाया और सीमा अपनी इस सफलता से खुश थे। हमें सोमिल जल्द ही मिलने वाला था।

मैंने विवाह भवन के मैनेजर से मुलाकात कर उस बाथरूम को देखना चाहा। उसने मुझे बताया कि कल ही कोई आदमी उस कैमरे के बारे में पूछता हुआ यहां आया था। हम लोगों ने बाथरूम में चेक करवाया वहां पर कोई कैमरा नहीं था। हालांकि अभी परसों से ही उस लाइन के कमरों की पेंटिंग शुरू हुई है। हो सकता है पेंटर ने उसे निकाल कर कहीं रखा हो। कल पेंटर नहीं आया था मैं आज उससे बात करता हूं। मैंने वहीं इंतजार करना उचित समझा। कुछ देर बाद वह पेंटर आया और मुझे ले जाकर एक तरफ रखा हुआ वह कैमरा दिखाया। मैंने वह कैमरा ले लिया। मैंने होटल मैनेजर को धन्यवाद देते हुए वहां से बाहर आ गया। यह कैमरा एक वाईफाई कैमरा था जिसकी फोटो को दूर बैठे कंप्यूटर पर देखा जा सकता था। इस तरह का कैमरा बेचने वाले बेंगलुरु में कई दुकानें पर जिस एरिया में हम थे वहां पर सिर्फ दो दुकाने थीं। थोड़ा ही प्रयास करने पर मुझे इस कैमरा खरीदने वाले का नाम मालूम चल गया। यह कैमरा हमारे विवाह भवन में प्रवेश करने के ठीक एक दिन पहले खरीदा गया था और हो सकता है उसी दिन उसे इंस्टॉल भी किया गया हो।

जिस आदमी ने यह कैमरा खरीदा था मैं उससे भली भांति जानता था पर अभी उसका फोन नहीं लग रहा था। हम इस साजिशकर्ता के काफी करीब थे बस कुछ समय का इंतजार था।

उधर पुलिस स्टेशन में इस केस के नए इंचार्ज इंस्पेक्टर रॉबिन 30-32 वर्ष का नया और तेज नवयुवक था। वह डिसूजा का असिस्टेंट था जिसे अब इस केस का प्रभारी बना दिया गया था। डिसूजा के अब तक किए गए जांच के बारे में उसे पूरी जानकारी थी। उसने लक्ष्मण को पकड़ने की कोशिश तेज कर दी थी। उसे लक्ष्मण का सुराग भी मिल चुका था सिर्फ उसे पकड़ना बाकी था। सोमिल की खबर उसे नहीं लग पाई पर एक बार लक्ष्मण पकड़ में आ जाता तो सारी बातें स्वयं ही सामने आ जाती रॉबिन यह बात जानता था। मुझमे छाया और सीमा में कामुक संबंध है यह बात भी उसे मालूम थी पर वह जानता था की वयस्कों के बीच में इस तरह के संबंध होना सामाजिक अपराध तो हो सकता है पर कानूनी नहीं। वह इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था।

उसने डिसूजा की जांच की इस दिशा को वहीं पर रोक दिया था। वह सिर्फ और सिर्फ कातिल तक पहुंचना चाहता था और पैसों के गबन करने वाले को पकड़ना चाहता था। गुप्तचर की सूचना के अनुसार लक्ष्मण मुंबई में था। रोबिन और उसकी टीम ने उसे मुंबई से गिरफ्तार कर लिया और हवाई जहाज से बेंगलुरु ले आए। शर्मा जी के दबाव की वजह से डीआईजी ने रोबिन को फ्री हैंड दे दिया था।

रॉबिन ने लक्ष्मण से पूछताछ शुरू कर दी थी।

सोमिल का कैदखाना

( मैं शांति उर्फ लक्ष्मी )

आज मैंने सोमिल सर से दिन भर तरह-तरह की बातें की और उन्हें खुश करती रही। आज शाम को स्नान किया और वापस वही शर्ट पहन लिया। मैं उनसे संभोग करने के लिए आतुर हो चुकी थी मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैंने शाम को फिर उन्हें शराब पीने के लिए आमंत्रित किया पर आज उन्होंने मना कर दिया। मैंने आज हल्का खाना बनाया और उन्हें आज भी वियाग्रा एक डोज फिर से दे दिया।

आज मैं हर हद तक जाना चाहते थी। मैंने मन ही मन सोच लिया था चाहे मेरी असलियत ही क्यों न सामने आ जाए पर मैं आज उनसे संभोग कर करके ही रहूंगी।

मैं कल रात उनके साथ बिस्तर पर सो चुकी थी मुझे पता था मुझे आज भी बिस्तर पर ही सोना है। किचन का काम निपटाने के बाद मैं वापस सोफे पर सोने जाने लगी। उन्होंने कहा शांति यही ऊपर सो जाओ। मैंने थोड़ी है ना नुकुर की और कुछ ही देर में बिस्तर पर आ गयी। मैन कहा

"सर टीवी ऑन कीजिए ना"

"अरे उसमें सब उन्होंने बकवास फिल्में रखी हैं"

"कोई बात नहीं लगाइए तो"

मैने रिमोट अपने हाथों में ले लिया और कोई उचित वीडियो की तलाश में लग गयी। मुझे एक इंग्लिश फिल्म दिखाएं पड़ गई मैंने उसे प्ले कर दिया। फिल्म के शुरुआती दृश्यों में कोई नग्नता नहीं थी। हम दोनों फिल्म देखने लगे। मैंने उनसे कहा कुछ फिल्में अच्छी भी होती है। वह मुस्कुरा रहे थे धीरे धीरे फिल्म में कामुकता आने लगी। जैसे-जैसे हीरो हीरोइन पास आ रहे थे सुनील सर के पाजामे में हरकत हो रही थी। मैंने भी अपनी चादर हटा दी। मेरी जाँघें अब नग्न थीं पर मेरी योनि अभी ढकी हुई थी।

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