छाया - भाग 14

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जैसे-जैसे नायक नायिका करीब आते गए उनका लिंग आकार में बढ़ता गया और मेरी जाँघों का फैलाव भी। हम दोनों अपने अपने यौन अंगों पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे। मेरी मुनिया भी प्रेम रस छोड़ने लगी वह अपने लिंग को बीच-बीच में मेरी नजर बचाकर सहला देते। यही काम मैं अपनी मुनिया के साथ भी कर रही थी।

फिल्म की कामुकता अश्लीलता में बदल चुकी थी। नायक और नायिका पूरी तरह नग्न हो गए थे। इधर मेरी शर्ट भी मेरी कमर तक आ गई थी मेरी मुनिया पूरी तरह नग्न होकर ऊपर चल रहे पंखे की हवा खा रही थी। अचानक उनकी नजर मुझ पर पड़ी मुझे इस तरह अपनी देख कर वह उत्तेजित हो गए। कमरे में लाइट पहले ही कम थी उन्होंने भी अपना लिंग बाहर निकाल लिया। मेरी नजर बचाकर वह अपने लिंग को बार-बार सहलाने लगे।

मैं भी अपनी मुनिया को धीरे धीरे प्यार कर रही थी। मैंने अपनी शर्ट के बटन भी खोल दिए थे। अब वह मेरे स्तनों के सहारे ही मेरे शरीर पर ठीके हुए थे। थोड़ी भी तेज हवा का झोंका मेरे शर्ट को दो भागों में बांट देता। और वो ऊपर से पूरी तरह नग्न हो जाते।

सोमिल सर की हथेलियाँ अपने लिंग पर तेजी से चल रहीं थी। मैं धीरे-धीरे से सरकते हुए उनके बिल्कुल समीप आ गयी। वह मेरा सरकना महसूस कर रहे थे पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। कुछ ही देर में मेरे पैर उनके पैरों से सट रहे थे। उन्होंने अभी भी पैजामा पहन रखा था। मेरे पैरों का स्पर्श वह पूरी तरह महसूस नहीं कर पा रहे थे। उन्हें भी इस स्पर्श का इंतजार था। धीरे-धीरे उनका पैजामा नीचे की तरफ खिसकता गया और हमारी जाँघें एक दूसरे में सटने लगीं।

उनका हाथ अभी भी लिंग पर था मैंने करवट ली। और अपनी जाँघें उनके ऊपर रख दीं। मेरे जांघों का निचला हिस्सा उनके लिंग से छू राजा था। उन्होंने अपने हाथ लिंग से हटा लिये और मेरी जांघों को छूने लगे। मुझे अपनी सफलता पर गर्व होने लगा। मैंने अपनी हथेलियां आगे बढ़ायीं और उनके लिंग को सहला दिया।

उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। मैंने अपनी हथेलियों से रह रह कर उनके लिंग को छूना शुरु कर दिया था। वह अपने हथेलियों से मेरी जांघों को सहलाते सहलाते मेरे नितंबों तक आ गए। अचानक उन्होंने करवट ले ली और मेरी आंखों में देखा। मेरी आंखों में भी प्रेम की भूख थी। उन्होंने मुझे अपनी आगोश में खींच लिया।

मेरी शर्ट खुल चुकी थी। मेरे नग्न स्तन उनके सीने से सट रहे थे। मैंने उनकी हथेलियों को अपने नितंबों पर महसूस किया। मैंने भी उनके लिंग को अपने हाथों में ले लिया और उसे सहलाने लगी। उनकी हथेलियां मेरे नितंबों को छूते छूते मेरी रानी के मुख तक आ गयीं।

उन्होंने रानी के गीलेपन को अपनी उंगलियों पर स्पष्ट रूप से महसूस किया होगा। मैं उठ कर उनके ऊपर आना चाहती थी और यथाशीघ्र संभोग रत होना चाहती थी।

वह अभी मेरी योनि को अपनी उंगलियों से सहला रहे थे और मैं उनके लिंग को अपनी हथेलियों से उत्तेजित कर रही थी।

मैं उठकर उनके ऊपर आ गयी और लिंग पर बैठने का प्रयास करने लगी। वह पूरी तरह उत्तेजित थे। जैसे ही मुनिया ने उनके लिंग को छुआ वह उठकर बैठने लगे। मैं अव्यवस्थित हो गई। उन्होंने अपने लिंग को मेरी मुनिया से दूर कर दिया था। अब वह हम दोनों के पेट के बीच में आ गया था। मेरे स्तन उनके सीने से सट रहे थे मैं उनकी गोद में आ चुकी थी वह मुझे सहलाए जा रहे थे।

मेरा चेहरा उनके चेहरे के बिल्कुल समेत था मैंने उनसे पूछा "सर क्या हुआ"

उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया और बोला "शांति मैं यह नहीं कर सकता मैंने अपनी प्रेमिका को वचन दिया था कि मैं पहला संभोग उसके साथ ही करूंगा। मुझे माफ कर देना। तुम्हारे जैसी सुंदरी के साथ संभोग को ठुकरा कर मैं अपराधबोध से ग्रसित हूँ। उम्मीद करता हूं तुम मुझे माफ कर दोगी।" मैं उनकी दुविधा समझ गयी।

मुझे पता था वह एक आदर्श पुरुष थे वह अपना वचन नहीं तोड़ेंगे। मैंने फिर कहा

"पर हम एक दूसरे को खुश तो कर ही सकते हैं" वह प्रसन्न हो गए. मैंने उन्हें होठों पर चुंबन लेने की कोशिश की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह दूसरे पुरुष थे जिन्हें मैंने होठों पर चुंबन दिया था. मेरे बॉयफ्रेंड ने जबरदस्ती मेरे होठों को मेरी किशोरावस्था में चुम्मा था. वह मेरे होठों को बेसब्री से चूमने लगे। मेरी हथेलियां एक बार फिर उनके लिंग को सहला रहीं थीं और वह अपनी उंगलियों से मेरे नितंबों के नीचे से मेरी मुनिया को सहला रहे थे। हमारी उत्तेजना चरम पर थी।हमें स्खलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।

उनके लिंग से निकली हुई वीर्य की धार हम दोनों को गीला कर गई थी। पर हमने उस पर बिल्कुल ध्यान नही दिया। हम एक दूसरे को प्यार करने में व्यस्त थे। हम दोनों उसी अवस्था में ही बिस्तर पर सो गए।

शनिवार

(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

सुबह उनके प्यारे लिंग को देखकर मेरे मन में एक बार फिर उत्तेजना पैदा हुई। मैंने अपने होठों से उसे मुखमैथुन देने की सोची। मैंने बिना उनकी सहमति के अपने होठों से उसे छूना शुरु कर दिया। सोमिल सर की आंखें खुल चुकी थी पर उन्होंने जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर लीं।

मेरे होठों ने अपनी प्यास बुझाना शुरू कर दिया था। सोमिल सर का लिंग एक बार फिर स्खलन के लिए तैयार था। मैं उनके अद्भुत लिंग के साथ बिताए पल को जी लेना चाहती थी । मेरे जीवन में वह एक अद्भुत पुरुष के रूप में आए थे मैं उनके साथ बिताए पलों को अपनी यादों में संजो लेना चाहती थी। लिंग के वीर्य स्खलन करने के पश्चात मेरा चेहरा और मुह उनके वीर्य से भर गया था। सोमिल सर ने मुझे एक बार फिर अपनी गोद में ले लिया वह मुझसे प्यार करने लगे थे।

मैंने उनसे कोई बात नहीं छुपाई और अपनी असलियत खुलकर बता दीं। वो बिल्कुल नाराज नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा शांति तुम एक अच्छी लड़की हो मैं शादीशुदा हूं। तुम्हारे साथ तीन-चार दिनों में मुझे नारी शरीर और उसके सुखद साथ का एहसास हुआ है मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूँ। मैं तुम्हारी खुशी के लिए जरूरत पड़ने पर तुम्हारी मदद कर सकता हूं। तुम मुझे अपना एक दोस्त मान सकती हो। मैं उनकी सादगी की कायल हो गयी और फिर एक बार उनसे चिपक गयी।

मैंने सुनील सर से कहा

"मुझे आपसे एक बात करनी है पर मुझे शर्म आ रही है"

"बेशक कहो अब हमारे तुम्हारे बीच में कोई पर्दा नहीं है"

"मैं आपसे एक बार संभोग करना चाहती हूं यह मेरी और मेरी मुनिया की दिली इच्छा है"

मैंने अपनी जाँघों के बीच इशारा कर दिया। वो मुस्कुराने लगे।

"मुझे पता है आप यह आज नहीं करेंगे पर अपने वचन पूरा करने के बाद क्या आप मेरी इच्छा का मान रखेंगे?.

उन्होंने कहा

"एक ही शर्त पर यदि तुम मुझसे वादा करो कि किसी भी पुरुष से संभोग तभी करोगी जब तुम्हारी अंतरात्मा और तुम्हारी इस प्यारी सी मुनिया का मन होगा। किसी लालच या प्रलोभन में नहीं। तुम्हारी मुनिया प्रकृति का दिया हुआ अनुपम वरदान है इसे पैसों के लालच में व्यर्थ प्रताड़ित मत करना। इसकी संवेदना और प्यार ही जीवन का रस है।"

मैं उनकी बात समझ चुकी थी।

मैंने कहा "मैं आपसे मिलन की प्रतीक्षा करूंगी"

सोमिल सर द्वारा कही गई बात मेरे दिलो-दिमाग पर छा गई थी वह कुंवारे होने के बावजूद यह बात कैसे जानते थे कि मुनिया सिर्फ और सिर्फ प्रेम से ही उत्तेजित होती है पैसों से नहीं। उनका यह गूढ़ ज्ञान मेरी समझ से परे था पर मैंने मन ही मन यह ठान लिया था कि भविष्य में कभी भी लालच और पैसों के लिए मुनिया को तंग नहीं करूंगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की कि एक बार मेरी मुनिया को सोमिल सर से संभोग सुख प्राप्त हो, और मुस्कुराती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी।

शानिवार, मानस का घर 6.00 बजे

(मैं मानस)

लक्ष्मी का पता चलते ही मैंने इंस्पेक्टर रॉबिंन से बात की वह बहुत खुश हो गए। हम सुबह सुबह 7:00 बजे ही उस लड़की के घर जाने के लिए निकल गए। वह बेंगलुरु शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर रहती थी।

अचानक आई पुलिस को देख कर लक्ष्मी के घर से निकलकर एक आदमी भागने लगा। रॉबिन की टीम ने उसे दौड़ाकर पकड़ लिया। कुछ ही देर की पिटाई में उसने शांति बनी लक्ष्मी को पहचान लिया और सोमिल के बारे में भी साफ-साफ बता दिया।

पुलिस टीम ने उसे अपने साथ ले लिया और हम सोमिल को कैद की गयी जगह के लिए निकल पड़े। मेरे चेहरे पर खुशी थी। सोमिल मिलने वाला था। मैंने फोन लगाकर छाया को इस बात की सूचना देनी चाही पर तब तक हम नेटवर्क से बाहर आ चुके थे। छाया उस समय निश्चित ही तनाव में होगी। अब से चंद घंटों बाद उसे उस अपरिचित आदमी की हवस मिटाने होटल में जाना था। मुझे धीरे-धीरे यह विश्वास हो चला था कि उस समय से पहले ही हम अपराधी का पता लगा लेंगे।

एक-दो घंटे के सफर के पश्चात हम सोमिल के ठिकाने पर आ गए थे। पुलिस ने बाहर खड़े दोनों गार्डों को अरेस्ट कर लिया। बाहर हुई हलचल से सोमिल और शांति सहम गए थे।

हम अंदर आ चुके थे। लक्ष्मी ने शरीर पर चादर ओढ़ रखी थी। सोमिल सिर्फ पायजामा पहने खड़ा हुआ था। उसका शरीर का ऊपरी भाग नग्न था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह दोनों नग्न अवस्था में एक-दूसरे को बाहों में लिए सो रहे थे और बाहर की हलचल से उठ खड़े हुए थे। शांति ने अपने शरीर पर चादर लपेट ली थी और सोमिल बमुश्किल अपना पजामा पहन पाया था।

यह मेरे मन की सोच थी। पुलिस ने लक्ष्मी को अरेस्ट कर लिया। सोमिल ने उसे रोकना चाहा। लक्ष्मी रो रही थी उसने अपनी कहानी फिर दोहरा दी।

रॉबिन ने कहा आप लोग चिंता मत कीजिए यदि यह निर्दोष है में तो मैं इसे छोड़ दूंगा सोमिल ने शांति से कहा।

"तुम परेशान मत हो तुम सच्ची हो तो तुम्हें निश्चय ही न्याय मिलेगा" वह संतुष्ट हो गयी और बाथरूम की तरफ कपड़े पहनने चली गई। मैंने उसकी खूबसूरती एक नजर में ही पहचान ली थी। वह सच में छाया का कुछ अंश अपने अंदर संजोये हुए थी।

कुछ ही देर में हम वापस बेंगलुरु के लिए निकल गए। मैंने छाया को इस बात की सूचना दे दी। सोमिल के सकुशल मिल जाने पर घर में खुशी का माहौल था बस एक ही कष्ट था कि छाया को कुछ घंटे बाद उस अनजान आदमी से संभोग करने के लिए जाना था। उसके पास सिर्फ एक ही सहारा था वह खत में लिखी हुई भाषा जिससे उस अनजान व्यक्ति का छाया के प्रति प्यार झलकता था। उससे ऐसा प्रतीत होता था जैसे छाया द्वारा किया गया एक बार का संभोग हमारे सब राज गुप्त रखने के लिए पर्याप्त था पर ये हमे स्वीकार नही था। यही सब बातें सोचते हुए मैं खिड़की के बाहर देख रहा था।

बेंगलुरु शहर अब कुछ दूर ही रह गया था तभी मेरे फोन पर घंटी बजी

"हां कुछ पता चला क्या?"

उत्तर सुनकर मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। मैंने रॉबिन से बात की उन्होंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी। उन्होंने थाने से फोन कर कुछ और पुलिस फोर्स मंगा लिया। मेरे कहने पर उन्होंने सोमिल को घर भेज दिया। मैं नहीं चाहता था कि छाया के इस कदम की जानकारी उसको अभी हो।

लक्ष्मी और उसके भाई को अपनी दूसरी टीम को हैंड ओवर कर रोबिन और मैं उनके विश्वस्त सिपाहियों के साथ होटल मानसरोवर की तरफ बढ़ चले। यह वही होटल था जहां उस अनजान व्यक्ति ने मेरी छाया को संभोग के लिए बुलाया था।

मानस का घर (सुबह 9 बजे)

(मैं सीमा)

छाया के मोबाइल पर मैसेज आ चुका था मानसरोवर होटल, दोपहर 1:00 बजे। वह रोते हुए मेरे पास आयी।

आखिर वह दिन आ ही गया था जब छाया को उस अनजान व्यक्ति के पास संभोग के लिए जाना था. नियति के इस निष्ठुर प्रहार से छाया का मन मस्तिक आहत हो चुका था। वह समाज में कुत्सित विचार के लोगों के प्रति अत्यधिक क्रोधित थी जो अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए इस तरह का गलत कार्य करते थे। छाया को कामुकता ऊपर वाले ने स्वभाविक रूप में दी थी। जिसे उसका भोग करना था वह उससे प्यार करता और उसके मन मस्तिष्क पर काबिज हो जाता छाया अपनी कामुकता और अपने यौवन के साथ उसकी बाहों में चली आती। उसका तो जन्म ही पुरुषों की कामुकता शांत करने के लिए हुआ था। पर बिना उससे प्रेम किये इस तरह उसे डरा कर संभोग करना सर्वाधिक अनुचित था। मैं मन ही मन उस दुष्ट व्यक्ति को कोस रही थी।

मैंने और छाया दोनों ने आज सुबह से ही व्रत रखा हुआ था। हम भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि हे प्रभु मेरी छाया की रक्षा करना। उसकी कोमल रानी किसी अपरिचित के साथ संभोग के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। छाया का रोम रोम हमेशा खिला रहता था उसके स्तन और यौनांग हमेशा खुश और खिले खिले दिखाई पड़ते थे। जब मैं छाया की रानी को अपने होठों से झूमती तुम मुझे अपने होंठ हमेशा खुरदुरे लगते। छाया के शरीर और यौनांगो में गजब की कोमलता थी।

छाया की हरदम खुश रहने की आदत उसकी कामुकता का प्रमुख कारण थी पर आज छाया दुखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी पौधे को कई दिनों से पानी न दिया गया हो। उसने स्नान किया और सादे वस्त्र पहन लिए। उसकी मायूसी देखकर मेरी आंखें भर आयीं थी। एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे छाया को फांसी पर लटकाया जा रहा है।

मेरी अंतरात्मा रो रही थी। मुझे लग रहा था मैं चीख चीख कर इस दुनिया से कह दूं छाया और मानस एक दूसरे के लिए ही बने हैं इन्हें अलग मत करो। जब मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो समाज को क्यों आपत्ति होनी चाहिए। छाया को ब्लैकमेल करना सर्वाधिक अनुचित था।

धीरे-धीरे समय हो चला था मैं और छाया उस अनजान को कोसते हुए उससे मिलने निर्धारित स्थल की ओर चल पड़े थे।

(मैं मानस)

हम मानसरोवर होटल पहूच चुके थे। पुलिस ने बिना हल्ला गुल्ला किए होटल के सारे दरवाजे सील कर दिए। छाया और सीमा चौथी मंजिल पर अनजान व्यक्ति के एसएमएस का इंतजार कर रहे थे। छाया मुझ से लगातार संपर्क मे थी। कमरा नंबर का मैसेज उसके फोन पर आते ही उसने हमें सूचित कर दिया। मैंने और रोबिन की टीम ने उस कमरे को घेर लिया। छाया कमरे के अंदर चली गई जैसे ही उस व्यक्ति ने छाया को छुआ, छाया ने मोबाइल से टाइप किया मैसेज भेज दिया जो उसने पहले से टाइप किया हुआ था।

हमें स्पष्ट इशारा मिल चुका था कि वह व्यक्ति छाया के बिल्कुल करीब है। हमारे साथ आए सिपाही ने एक जोरदार लात दरवाजे पर मारी और दरवाजा खुल गया। अंदर मेरी छाया थी और वह आदमी। उसे देख कर मैं हतप्रभ था।

वह आदमी अश्विन था, मनोहर चाचा का दामाद। साथ आई टीम ने उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया। छाया मेरे से सट गयी थी। वह एक छोटे बच्चे को तरह सुबक रही थी। उसके स्तन मेरे सीने पर सट रहे थे और छाया के बच्ची ना होने का एहसास दिला रहे थे। मैं उसकी पीठ सहला रहा था। रोबिन हमें देख कर मुस्कुरा रहे थे।

पोलिस स्टेशन पहुचने के बाद

(मैं अश्विन)

मैंने छाया को पहली बार अपने विवाह में ही देखा था। इतनी सुंदर लड़की मैंने अपने जीवन में आज तक नहीं देखी थी वह मेरी साली थी। उसका चेहरा हमेशा के लिए मेरे दिमाग मे कैद हो गया था। अपने विवाह के दौरान भी।हर समय मेरा ध्यान उस पर ही था.

छाया के प्रति मेरी ललक बढ़ती चली गई. मैं उसे देखने के लिए घंटों उसके कॉलेज के सामने रहता। मुझे उससे मिल पाने की हिम्मत तो नहीं थी पर उसे देखने का सुख में नहीं त्यागना चाहता था. शुरू शुरू में मैं मानस के घर जाया करता जिसका मुख्य कारण छाया को देखना होता था परंतु धीरे-धीरे मेरा उनके घर आना जाना बंद हो गया मेरी पत्नी ने साफ मना कर दिया था. मेरी पत्नी को मेरे छाया के प्रति इस कामुक प्रेम की खबर लग चुकी थी. कई बार संभोग के दौरान मेरे मुंह से छाया शब्द निकल आया था जिसे मेरी पत्नी ने तुरंत ही पकड़ लिया था.

मैंने मानस के विवाह में उसके और छाया के बीच में चल रही छेड़छाड़ को कई बार देखा था। उसी दौरान मैंने छाया की नग्न जाँघों के बीच मानस को उसकी योनि को चूमते देखा। मुझे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था की छाया और मानस के बीच ऐसे संबंध हो सकते हैं। मुझे यह अत्यंत कामुक लगा था। मेरे मन ही मन में यह उम्मीद जाग गई थी की छाया के साथ आसानी से संबंध बनाए जा सकते हैं। उसे एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध बनाने में कोई विशेष समस्या नही होगी ऐसा मेरा अनुमान था. पर यह बात छाया से कर पाने की मेरी हिम्मत कभी नहीं थी और ना ही कभी इसका मौका मिल रहा था।

इस बार जब छाया का विवाह हो रहा था तो मुझे उसे नग्न देखने और उसके साथ संभोग करने की इच्छा जागृत हो गई। उसका होने वाला पति सोमिल मेरे दोस्त लक्ष्मण की कंपनी में काम करता था। मैंने और लक्ष्मण ने मिलकर यह प्लान बनाया। लक्ष्मण ने मुझे पैसों का लालच दिया उसने एक कंप्यूटर हैकर हायर किया।

मैं छाया के विवाह में बढ़-चढ़कर योगदान कर रहा था। विवाह मंडप की व्यवस्था में भी मेरा योगदान था। मैंने छाया के कमरे के बाथरूम में एक स्पाई कैमरा इंस्टॉल कर दिया जिससे मैं बाथरूम में छाया को नग्न अवस्था में देख पाता था।

वह होटल जहां पर छाया और सोमिल की सुहागरात होनी थी वहां पर विवाह में आए कई और गेस्ट भी रुके हुए थे। उनकी व्यवस्था भी मेरे ही जिम्मे थी। मेरा होटल में आना जाना सामान्य बात थी। मैं उस दिन कंप्यूटर हैकर को लेकर शाम 9:00 बजे ही सोमिल के कमरे में घुस गया था। लक्ष्मण ने उस दौरान लॉबी के सीसीटीवी कैमरे पर अपना रुमाल डाल दिया था। ताकि हम सोमिल के कमरे में घुसते हुए ना देखे जा सकें। हम छाया और सोमिल का इंतजार कर रहे थे। वह दोनों लगभग 9:30 बजे कमरे में प्रवेश किये मैं और वह हैकर बाथरूम में इंतजार कर रहे थे। हमने सोचा था कि कमरे में सोमिल और छाया आएंगे पर कमरे में 2 से अधिक व्यक्तियों के होने की आवाज आयी। मुझे मानस की भी आवाज सुनाई दी। फिर अचानक ही कमरे से कुछ लोगों के बाहर जाने की आवाज आई और कमरे में शांति हो गयी।

लक्ष्मण ने फोन करके सोमिलको बाहर बुला लिया।

हमने सोचा था की जब छाया कमरे में अकेले रहेगी मैं और मेरा साथी उसे बेहोश कर देंगे उसके पश्चात कंप्यूटर हैकर सोमिल के अकाउंट को हैक कर ओटीपी की मदद से पैसे ट्रांसफर कर देगा। इसके पश्चात कंप्यूटर हैकर को वहां से चले जाना था और मुझे बेहोश हो चुकी छाया को अपने काबू में कर संभोग करना था और वापस आ जाना था।

लक्ष्मण को सोमिल को बाहर निकलने के बाद सीसीटीवी कैमरे को तोड़ देना था और सोमिल को कुछ दिनों के लिए गायब करना था इसकी व्यवस्था लक्ष्मण ने अपने हाथ में ले ली थी।

हम दोनों छाया का इंतजार कर रहे थे।कुछ देर बाद दरवाजा खुला पर छाया की जगह सीमा ने प्रवेश किया था कंप्यूटर हैकर घबरा गया। उसने उसके सर पर प्रहार कर दिया। वह बेहोश हो गई। हैकर को बेहोशी की दवा सुंघा कर छाया को बेहोश करना था पर उसने सीमा को देखकर हड़बड़ी में गलती कर दी।

छाया को कमरे में ना पाकर मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। मैं जिस निमित्त यहां तक आया था वह अब संभव नहीं था। तभी कंप्यूटर हैकर ने पैसे ट्रांसफर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। सोमिल के फोन पर आया हुआ ओटीपी लक्ष्मण ने मेरे फोन पर भेज दिया। उस ओटीपी की मदद से कंप्यूटर हैकर ने लक्ष्मण के द्वारा बताए गए विदेशी अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर दिए।

तभी मेरे फोन पर एक मैसेज आया जिसमें मेरे खाते में ₹ ₹50 लाख ट्रांसफर रुपए आने की सूचना थी। लक्ष्मण ने मुझे फोन किया मैंने तुम्हारे अकाउंट में मैं ₹50, लाख डाले हैं। तुम उस कंप्यूटर हैकर को गोली मार दो मैं तुम्हें 5 करोड़ रुपए दूंगा। तुम मेरी बात का विश्वास करो कमरे में तकिए के नीचे साइलेंसर लगी हुई बंदूक रखी हुई है।

मुझे पैसों की बहुत आवश्यकता थी मुझे अपनी पैथोलॉजी का विस्तार करना था मुझे यह पता था कि लक्ष्मण ने ज्यादा पैसों का गबन किया है और वह मुझे निश्चय ही 5 करोड़ दे सकता है। मुझे उस पर पूरा विश्वास था मैंने तकिए के नीचे से रिवाल्वर निकाली और उस हैकर को मार दिया। उसे कमरे में छोड़कर मैंने लैपटॉप उसका मोबाइल और वह रिवाल्वर तीनों उसी के बैग में रखा और कमरे से बाहर आ गया।

मैं अपनी छाया के साथ संभोग तो नहीं कर सका था पर मेरी पैसों की चाह पूरी हो गई थी। मैंने छाया के साथ संभोग के सपने को कुछ दिनों के लिए टाल दिया। 2 दिनों के बाद डिसूजा का आदमी मेरे पैथोलॉजी लैब पर आया उसने मुझे फोन किया मैं मानस छाया और सीमा का नाम सुनकर खुश हो गया। वह तीनों मेरी क्लीनिक पर आए थे उन्होंने अपना ब्लड सैंपल दिया और उसकी जांच रिपोर्ट मैन भी देखी। उनकी जांच रिपोर्ट आने के बाद मैंने डिसूजा से बात की थी मुझे यह बात मालूम चल चुकी थी उस रात दूसरे कमरे में छाया और मानस ने सुहागरात मनाई थी।

मैं एक बार फिर छाया से संभोग करने का प्लान बनाने लगा। छाया की नग्न तस्वीरें मेरे पास पहले से ही थीं। मैने इन्हीं फ़ोटो को दिखाकर छाया को ब्लैकमेल कर सम्भोग के लिए होटल बुलाया था। रॉबिन के सिपाही उसे लातों से मारे जा रहे थे।

लक्ष्मण ने भी अपना अपराध कबूल कर लिया था।

प्रिय पाठकों हर लेखक को पाठकों की प्रतिक्रिया का इंतजार होता है।

आपकी प्रतिक्रिया या कमेंट लेखक के मन में कथा जारी रखने के लिए एक प्रेरणा का काम करता है। कथा कहानी लिखने में लेखक का समय और ऊर्जा दोनों ही खर्च होते हैं मैं उम्मीद करता हूं कि पाठकों को अपने कमेंट लिखने में निश्चय ही कम ऊर्जा खर्च होगी पर वह मेरे लिए प्रोत्साहन का कार्य करेगा। आपसे उम्मीद है की अपनी राय अवश्य व्यक्त करें ताकि आने वाले भागों में मैं कहानी को और भी परिमार्जित कर सकूं आपके कमेंट की प्रतीक्षा में।।।।

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