बीबी की चाहत 04

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मैंने दीपा के भरे तने बूब्स को मसलते हुए उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा, "देखो, भले ही तरुण तुम्हें पहले दिन से ही पसंद होगा या तुम उसे चुदवाने के लिए इच्छुक रही होगी, पर तरुण को आज यहां तक पहुँचने में कितना समय लगा और कितने पापड़ बेलने पड़े? क्या तुमने उसे आसानी से चोदने की इजाजत दी? वैसे ही अगर कोई इतना परिश्रम करता है और ऐसे ही पापड़ बेलता है और तुम्हारी और मेरी मर्जी से बात अगर आगे बढ़ती है तो भला मुझे क्या आपत्ति है?"

दीपा ने पीछे घूम कर मेरे होँठों को चूमते हुए कहा, "अरे मैं तो मजाक कर रही थी। मेरे लिए आजसे तुम दोनों हे मेरे पति के समान हो। तुम मेरा सर्वस्व हो और तरुण मेरे बदन का भोक्ता है। मुझे और कोई नहीं चाहिए। तुम दोनों ही काफी हो।"

दीपा ने तरुण का हाथ पकड़ा और तरुण को अपनी और खिंचा। तरुण दीपा के कूल्हों से अपना लण्ड सटाकर बैठ गया। दीपा की गरम चूत का स्पर्श होते ही धीरे धीरे मेरा लण्ड कड़क होने लगा। उसके वीर्य का फौवारा निकलने पर भी तरुण का लण्ड तो ढीला पड़ा ही न था। मैं तरुण की क्षमता देख हैरान रह गया। खैर, उस दिन का माहौल ही कुछ ऐसा था। मेरा लण्ड भी तो एक बार झड़ने के बाद फिर से कड़क हो गया था।

थोड़ी देर तक मेरी नंगी बीबी को चूमने के बाद मैंने उसे पलंग के किनारे सुलाया और उसे अपनी टांगें नीचे लटकाने को कहा। तरुण तो जैसे दीपा से चिपका हुआ ही था। जब दीपा पलंग के किनारे अपनी टाँगे नीचे लटका के पलंग के ऊपर लेट गयी तो तरुण उसकी छाती पर अपना मुंह रख कर लेट गया। मैं झट से पलंग के नीचे उतरा और अपनी बीबी की टांगो को फैला कर उसकी चूत चाटने लगा। मेरी जीभ जैसे ही दीपा की चूत में घुसी की दीपा छटपटाने लगी। मुझे पता था की दीपा की चूत चाटने से या उंगली से चोदने से वह इतनी कामान्ध हो जाती थी की तब वह बार बार मुझे चोदने के लिए गिड़गिड़ाती थी। आज मैं उसे हम दोनों से चुदवाना चाहता था। इसके लिए हमें उसे इतना उत्तेजित करना था की वह शर्म के सारे बंधन तोड़ कर हम दोनों से चुदवाने के लिए बाध्य हो जाए।

मेरी पत्नी की छटपटाहट पर ध्यान ना देते हुए मैंने उसकी चूत मैं एक उंगली डाल कर उसे उंगली से बड़ी फुर्ती और जोर से चोदना शुरू किया। दीपा के छटपटाहट देखते ही बनती थी। वह अपना पूरा बदन हिलाकर अपने कूल्हों को बेड पर रगड़ रगड़ कर कामाग्नि से कराह रही थी। उसका अपने बदन पर तब कोई नियंत्रण न रहा था। वह मुझे कहने लगी, "दीपक डार्लिंग, ऐसा मत करो। मुझे चोदो। अरे भाई तुम मुझे तरुण से भी चुदवाना चाहते हो तो चुदवाओ पर यह मत करो। मैं पागल हो जा रही हूँ।" मैं दीपा की बात पर ध्यान दिए बगैर, जोर शोर से उसको उंगली से चोद रहा था। तब दीपा ने तरुण का मुंह अपने मुंह पर रखा और उसे जोश चूमने लगी। मैंने उसे तरुण को यह कहते हुए सुन लिया, "तरुण अपने दोस्त से कहा, मुझे चोदे। आओ तुम भी आ जाओ आज मैं तुम दोनों से चुदवाऊंगी। तुम मुझे चोदने के लिए बड़े व्याकुल थे न? आज मैं तुमसे चुदवाऊंगी। पर दीपक को वहां से हटाओ"

जब मैं फिर भी ना रुका तो एकदम दीपा के मुंह से दबी हुयी चीख सी निकल पड़ी, "आह... ह... ह... दीपक... तरुण... " ऐसे बोलते ही दीपा एकदम ढेर सी शिथिल हो कर झड़ गयी। मैंने आजतक दीपा को इतना जबरदस्त ओर्गास्म करते हुए नहीं पाया था। उसकी चूत में से जैसी एक फव्वारा सा छूटा और मेर हाथ और मुंह को उसके रस से भर दिया। वह दीपा का उस रात शायद चौथा ओर्गास्म था। मैं हैरान रह गया। मेरी बीबी आज तक के इतने सालों में मेरे साथ ज्यादा से ज्यादा एक रात में मुश्किल से दो बार झड़ी होगी।

मैं थम गया। मैंने देखा की दीपा थोड़ी सी थकी हुई लग रही थी। मैं उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था। मुझे तो उसको हम दोनों से चुदवाने के किये बाध्य करना था, सो काम तो हो गया। दीपा ने थोड़ी देर बाद अपनी आँखे खोली और मुझे और तरुण को उसके बदन के पास ऊपर से उसको घूरते हुए देखा। वह मुस्कुरायी।

उसने हम दोनों के हाथ अपने हाथों में लिए और अपनी पोजीशन बदल कर बिस्तर पर खिसक कर सिरहाने पर सर रख कर लेट गयी। उसने मुझे अपनी टांगों की और धक्का दिया। मैं फिर उसकी चूत के पास पहुँच गया। तब दीपा ने मुझे खिंच कर मेरा मुंह उसके मुंह से मिलाकर मेर लण्ड को अपने हाथ में लिया और अपनी टांगो को फिर ऊपर करके मेर लण्ड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी। वह मुझसे चुदवाना चाहती थी।

मैंने तरुण को अपनी और खींचा और मैं वहाँ से हट गया। अब तरुण दीपा की टांगो के बिच था। मेरी बीबी समझ गयी की मैं उसे पहले तरुण से चुदवाना चाहता हूँ। तरुण का मुंह मेरी बीबी के मुंह के पास आ गया। दोनों एक दूसरे की आँखों में झांकने लगे। तरुण झुक कर मेरी बीबी को बड़े जोश से चुम्बन करने लगा। तरुण उस वक्त कामाग्नि से जल रहा था। इतने महीनों से जिसको चोदने के वह सपने देख रहा था और सपने में ही वह अपना वीर्य स्खलन कर जाता था वह दीपा अब नंगी उसके नीचे लेटी हुयी थी और उससे चुदने वाली थी।

दीपा समझ गयी की अब क़यामत की घडी आ गयी है। तरुण का लटकता लण्ड दीपा की चूत पर टकरा रहा था। दीपा ने धीरेसे तरुण का मोटा और लंबा लण्ड अपने हाथों में लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। अचानक वह थोड़ी थम सी गयी और कुछ सोच में पड़ गयी। तरुण ने अपने होंठ दीपा के होंठ से हटाये और पूछा, "क्या बात है? क्या सोच रही हो? क्या अब भी आप शर्मा रही हो?"

दीपा ने कुछ शर्माते हुए कहा, "मैं शर्मा नहीं रही हूँ। मैंने तो तबसे तुमसे चुदवाने का प्लान बना लिया था जबसे मुझे यह यकीन हो गया था की तुम एक भरोसे मंद आदमी हो जिसको औरत की इज्जत का बहुत ही ज्यादा ख़याल होता है। तुमने मेरे साथ इतनी ज्यादा हरकतें की और मुझे इतना ज्यादा छेड़ा पर कभी मुझे नीचा नहीं समझा और नाही मेरे बारे में कोई ओछी बात बोली। शायद मेरे पति को भी तुमपर बहुत ही ज्यादा भरोसा है की हमारे बिच की बात तुम कभी बाहर जाहिर नहीं करोगे। इसी लिए वह भी मुझे तुमसे सेक्स करने के लिए उकसाते रहे।

मैं तुमसे उसी दिन चुदवाने के लिए राजी हो जाती जिस दिन तुम सुबह सुबह मेरे पति के कहने पर मेरे घर आये जब मैं आधी नंगी तौलिया पहन कर तुम्हारे सामने आयी। पर तुमने मेरे साथ मुझे चोदने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की वह मुझे बहोत अच्छा लगा। उस समय अगर तुम मुझ पर जबरदस्ती करते तो शायद एकाध बार तो मैं तुमसे चुदवा लेती पर बाद में तुम्हें मेरे पास फरक ने नहीं देती। पर अब तो मैं तुमसे बार बार चुदवाउंगी।"

तब दीपा तरुण के कानों में फुसफुसाई, " पर बाबा, यह तुम्हारा लण्ड इतना मोटा और लंबा एक घोड़े के लण्ड जैसा है। मेरी चूत का छेद तो छोटा सा है। उसमें कैसे डालोगे? अगर तुमने डाल भी दिया और जल्दबाजी की तो मैं तो मर ही जाऊंगी। ज़रा ध्यान रखना। मुझे मार मत डालना। और फिर दीपा ने तरुण को अपनी बाहों में इतना सख्त जकड़ा और इतने जोश से उसे चुबन करने लगी और तरुण की जीभ को चूसने लगी की मैं तो देखता ही रह गया।

तरुण ने तब दीपा को ढाढस देते हुए कहा, "आप ज़रा भी चिंता मत करो। मैं ध्यान रखूँगा।" उस बार मैंने अपनी पत्नी का पर पुरुष गामिनी वाला पहलु पहली बार देखा। तब तक मैं उसे निष्ठावान, पतिव्रता और रूढ़िवादी मानता रहा था। आज उसने मुझे अपने वह पहलु के दर्शन दिए जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पर हाँ, उसे यहां तक लाने में मेरा पूरा योगदान था।

तरुण खड़ा हो कर अपना लण्ड लहराता हुआ एक अलमारी की और गया और उसमें से उसने एक बोतल निकाली। बोतल में कोई आयल था। तरुण ने उसे अपने लण्ड पर लगाया और दीपा की चूत में भी उसे उदारता से लगाया। फिर बोतल को बाजू में टेबल पर रख कर तरुण ने ध्यान से अपने मोटे और लम्बे लण्ड को दीपा के प्रेम छिद्र के केंद्र में रखा। फिर उसे उसकी चूत के होठों पर प्यार से रगड़ने लगा। मेरी पत्नी की नाली में से तो जैसे रस की धार बह रही थी। तरुण का बड़ा घंटा भी तो रस बहा रहा था। तरुण का डंड़ा तब सारे रस से सराबोर लथपथ था। उसने धीरे से अपने लण्ड को दीपा की चूत में थोड़ा घुसाया। दीपा ने भी तरुण के लण्ड को थोड़ा अंदर घुसते हुए महसूस किया। उसे कोई भी दर्द महसूस नहीं हुआ। तरुण की आँखे हर वक्त दीपा के चेहरे पर टिकी हुयी थीं। कहीं दीपा के चहेरे पर थोड़ी सी भी दर्द की शिकन आए तो वह थम जाएगा, यही वह सोच रहा था।

तरुण ने तरुण ने थोड़ा और धक्का दे कर अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा। अब दीपा को तरुण के लण्ड की मोटाई महसूस होने लगी। फिर भी उसको ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था। तरुण ने जब अपना लण्ड थोड़ा और जोर से दीपा की चूत में धकेला तो दीपा के मुंह से आह निकल पड़ी।

दीपा की आह सुनकर तरुण थोड़ी देर थम गया। उसने धीरे से अपना लण्ड थोड़ा निकाला। दीपा को थोड़ी सी राहत हुयी। तब उसकी बात सुन कर मैं तो भौचका ही रह गया। उसने तरुण से कहा, "डालो अंदर। दर्द तो हो रहा है पर यह दर्द भी मीठा है।"

दीपा कि बात सुन कर मैं भौंचक्का सा हो गया। तरुण ने अपना पेंडू से थोड़ा धक्का दिया और अपने बड़े लण्ड को थोड़ा और घुसेड़ा। दीपा ने अपनी आँख सख्ती से भींच ली थी। उसको कितना दर्द हो रहा होगा यह दिख रहा था। पर वह कुछ नहीं बोली और अपने हाथ से तरुण की कमर को खिंच रही थी और यह इशारा कर रही थी की तरुण अपना लण्ड और अंदर डाले, रुके नहीं।

तरुण बड़े असमंजस में था। उसने धीरे धीरे एक बार अपना लण्ड दीपा की चूत में थोड़ा अंदर घुसेड़ा तो थोड़ा बाहर निकाला। इस तरह धीरे धीरे और अंदर घुसाता गया। मैं समझता हूँ की उस समय दीपा की चूत की दिवार अपने चरम पर खिंच चुकी होगी।

तरुण का मोटा लण्ड लगभग आधा अंदर जा चूका था। मेरी बीबी की चूत के दोनों होठ पुरे फुले हुए थे और तरुण के लौड़े को बड़ी सख्ती से अपने में जकड़ा हुआ था। तरुण के लण्ड और दीपा की चूत के मिलन सतह पर चारों और उनके रस की मलाई फैली हुई थी। ऐसे लग रहा था जैसे एक पिस्टन सिलिंडर से अंदर बाहर होता है तब चारो और आयल फैला हुआ होता है।

मुझे तरुण के मोटे लौड़े को दीपा की छोटी सी चूत में जकड़ा हुआ देख कर आश्चर्य और उत्तेजना दोनों हुए। जैसे एक गुब्बारेको उसकी क्षमता से ज्यादा खिंच कर उंगली पर लपेटने से उसकी चमड़ी कितनी पतली हो जाती है और अगर और ज्यादा खींचा जाए तो फट जाती है, ठीक वैसे ही, मेरी प्यारी बीवी की चूत की चमड़ी एकदम पतली हो गयी हो ऐसे दिखती थी और मुझे डर था की कहीं वह फट न जाय और खून न बहने लगे।

तरुण ने एक और धक्का दिया और मेरे देखते ही देखते उसका तीन चौथाई लण्ड अंदर चला गया। दीपा के ललाट से पसीने की बूंदें टपकने लगीं। पर उस बार दीपा ने एक भी आह न निकाली। उसे काफी दर्द हो रहा होगा यह मैं उसके चेहरे के भाव अभिव्यक्ति से अनुभव कर रहा था। वैसे भी, दीपा जब मुझसे भी चुदाई करवाती थी तब भी हमेशा उसे थोड़ी सी परेशानी जरूर महसूस होती थी। खास कर तब जब वह मूड मैं नहीं होती थी, उसकी चूत सुखी होती थी और वह चुदाई करवाते परेशान हो जाती थी।

तरुण का लौड़ा तो मेरे से काफी मोटा था। परेशानी तो उसे जरूर हुयी होगी। पर उसकी चूत रस से सराबोर थी। उपरसे तरुण का लौड़ा भी चिकनाई से लथपथ था। उसे दर्द तो हुआ पर शायद उतना नहीं जितना हो सकता था। पर मैंने देखा की तरुण के मोटे और लंबे लण्ड के धीरे धीरे अंदर बहार होने से अब मेरी बीबी की कामुकता बढ़ रही थी और उसी अनुपात में उसका दर्द उसे मीठा लगने लगा था। धीरे धीरे अंदर बहार करते हुए तरुण ने जब देखा की अब दीपा काम क्रीड़ा के मज़े लेने लगी है तो एक थोड़े जोर का धक्का दे कर उस ने अपना पूरा लण्ड दीपा की संकड़ी चूत में पेल दिया।

मेरी प्यारी बीवी के मुंह से एक जोरों की चीख निकल गयी। तरुण एकदम रुक गया और जैसे ही अपना लौड़ा निकाल ने लगा था, की दीपा बोल पड़ी, "तरुण मत रुको। मुझे यह दर्द बहुत अच्छा लग रहा है। अब तुम मुझे बगैर रुके चोदो। मेरे दर्द की परवाह मत करो। मैं जानती हूँ यह दर्द जल्द ही गायब हो जायगा और अगर तुम थम गए तो मेरी कामाग्नि की भूख मैं सहन कर नहीं पाऊंगी। मैं बहोत गरम हो चुकी हूँ। सच कहती हूँ, जब जब तुम मुझे छेड़ते थे तो मैं बहोत गरम हो जाती थी। उस समय अगर तुमने और थोड़ी ज्यादा जबरदस्ती की होती तो मैं तुम्हें मुझे चोदने से नहीं रोक पाती। इस लिए नहीं की तुम मुझसे ज्यादा ताकतवर थे, पर इस लिए की तुम ने मुझे इतना गरम कर दिया था मैं सारी मर्यादाओं को तोड़कर तुमसे चुदवाने के लिए मजबूर हो जाती। अब जब कोई बंधन और मर्यादा नहीं है तो मैं तुमसे बिना थमे चुदना चाहती हूँ।"

मेरी शर्मीली पत्नी का रम्भा रूप या अभद्र भाषा में कहें तो छिनाल रूप तब मैंने देखा। अब तरुण से मेरी बीबी बेझिझक चुदना चाहती थी। यह मेरी वही पत्नी थी जो तरुण के नजदीक आने से भी डरती थी और एक नागिन की तरह तरुण को अपना गुस्सा और फुंफकार दिखा कर उसे दूर रखती थी।

दीपा के चूत में तरुण के लण्ड का घुसना और बादमें अंदर बाहर होने का दृश्य मेरे लिए कोई अद्भुत दृश्य से कम नहीं था। एक बड़ा रबर का चिकनाहट से लोथपोथ गोरे रंग का मोटा और लंबा रस्सा जैसे मेरी बीबी की चूत के अंदरबाहर हो रहा था और दीपा की चूत की त्वचा उस रस्से के आसपास सख्ती से चिपकी हुई थी और तरुण के लण्ड के अंदर बाहर होने से चूत की गहराइयों में कभी वह चूत के अंदर चली जाती थी तो कभी तरुण के लण्ड के वापस बाहर निकालने के समय बाहर निकल आती थी। मैंने पहले कभी किसी मर्द औरत को चुदाई करते हुए देखा नहीं था। मेरे लिए यह पहला मौक़ा था। और मैं अपनी पत्नी को ही मेरे ही दोस्त से चुदाई करवाते हुए देख रहा था।

जैसे जैसे तरुण ने अपनी चोदने की गति बढ़ायी वैसे ही दीपा का दर्द उसकी कामाग्नि में जल कर राख हो गया अब वह अग्नि दीपा के बदन को वासना से जला रही थी। मेरी पत्नी की चुदाई की भूख बढ़ती ही जा रही थी। वह उँह... उँह...की उंह्कार देती हुयी चुदवाने का मजा ले रही थी। जैसे ही तरुण दीपा की चूत में जोर का धक्का देता था वैसे ही दीपा के मुंह से अनायास ही उँह की आवाज निकल जाती थी। अचानक दीपा ने तरुण को थमने का इशारा किया और मुझे एक तकिया अपने कूल्हे के नीचे रखने को कहा।

मैंने फ़टाफ़ट एक तकिया मेरी बीबी की गाँड़ के नीचे रखा। दीपा ने तरुण का मुंह अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसका लण्ड अपनी चूत में रखे रहते हुए तरुण को पुरे जोश से अपनी बाँहों में लिया। उसने तरुण के होठों से अपने होंठ भिड़ा दिए और एक अगाढ़ चुम्बन मैं तरुण और दीपा जकड गए। तरुण की जीभ को दीपा ने अपने मुंह में लिया और उसे चूसने लगी। उसने फिर तरुण को उसकी जीभ अपने मुंह में अंदर बाहर करने का इशारा किया। मुझे ऐसे लगा जैसे दीपा अपना मुंह भी तरुण की जीभ से चुदवाना चाहती थी। तरुण को तो जैसे सातवाँ आसमान मिल गया। वह अपने लण्ड से दीपा की चूत के साथ साथ दीपा का मुंह अपनी जिह्वा से चोदने लगा।

धीरे धीरे तरुण ने दीपा की चूत में हलके से धक्के मारने के बजाय जोर से धक्के मारने शुरू किये। तरुण का लंड दीपा की चूत में कोई ज्यादा कष्ट नहीं दे रहा था। जैसे जैसे वह आसानी से दीपा की चूत में घुस रहा था वैसे तरुण के झटके और शक्ति शाली होते गए। लगभग तीन चौथाई लण्ड डालने के बाद तरुण एक ऐसा जबरदस्त धक्का मार कर अपना लण्ड दीपा की चूत में जोर से घुसाता था की दीपा का पूरा बदन हिल जाता था। पर दीपा तरुण के ऐसे धक्कों को बहुत एन्जॉय कर रही थी ऐसा उसके चेहरे से लगता था।

दीपा अपने कूल्हे को उठा उठा कर तरुण के लण्ड के एक एक धक्के को अपने अंदर पूरी तरह से घुसड़वा रही थी। उसदिन दीपा तरुण के लण्ड को अपने बदन की वह गहराईयों तक ले जाना चाहती थी जहां उसका पति भी नहीं पहुँच पाया था। अपनी वासना की धधकती आग में जलते हुए मेरी बीबी ने तब तरुण को मेरे सुनते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा, "तरुण आज पूरी रात तुम मुझे एक रंडी की तरह चोदो। यह मत सोचो की मैं तुम्हारी भाभी हूँ। तुम यह सोचो की मैं तुम्हारी चोरी छुपी से मिलने वाली प्रियतमा हूँ, जिसे तुम सालों से चोदना चाहते थे। आज अचानक मैं तुम्हारे हाथ लग गयी हूँ और तुम मुझे ऐसा चोदो की जैसा तुमने टीना को कभी नहीं चोदा।"

बस फिर क्या था। तरुण दीपा को ऐसे जोर जोर से धक्के पेलने लगा की मुझे डर लग रहा था की कहीं वह मेरी पत्नी की चूत को फाड़ न दे। पर मेरी बीबी भी कोई कम थोड़ी ही थी। वह भी तरुण के नीचे अपने चूतड़ ऐसे उछाल रही थी जैसे उसपर कोई भूत सवार हो गया हो। तरुण का मोटा लण्ड तब उसे अद्भुत मीठा आनंद दे रहा था।

जब तरुण एक जोरदार धक्का मारता था तो मेरी बीबी दीपा का पूरा बदन इतना हिल जाता था की उसके सख्त स्तन भी इधर उधर फ़ैल कर हिलते थे जैसे कोई गले में डाली हुई माला हिल रही हो। तरुण उन स्तनोँ को हिलते देख कर उनको अपने हाथों में जकड लेता था और उन्हें दबा कर ऐसे निचोड़ने की कोशिश करता था जैसे वह दूध निकालने वाला है। कई बार दीपा तरुण के मोटे लंड के बार बार घुसने के दर्द से नहीं पर तरुण के उसके स्तन इस तरह जोर से मसलने से होते हुए दर्द के कारण कराह उठती थी।

तरुण जब काफी जोर से धक्का मारता था तो दीपा को उसका लण्ड उसकी चूत की नाली में बिलकुल अंदर तक घुसा हुआ महसूस होता था जो उसके बदन में कामुकता की ऐसी आग पैदा करता था की वह आँखें बंद कर तरुण के लण्ड की मोटाई और लम्बाई अपने बदन में महसूस कर आनंद के उन्माद से काँप उठती थी।

एक मर्द को मोटा और लंबा लण्ड घुसने से एक स्त्री के जहन में और उसके बदन में कैसे भाव और उन्माद पैदा होते हैं वह हम मर्द कभी नहीं समझ सकते। उस समय वह औरत अपने सारी परेशानियां और दुःख दर्द भूल कर उस लण्ड की उसकी चूत में जो घर्षण के कारण उन्माद पैदा होता है उसका आनंद पूर्ण अनुभव करने में ही उसका पूरा ध्यान होता है।

भगवान ने औरत की चूत कैसी स्थितिस्थापक लचीली बनायी है की थोड़ा मोटा लण्ड घुसाने में भी उसे दिक्कत होती है, पर वही चूत में से लण्ड की मोटाई से कहीं मोटा बच्चा जनम के समय निकल जाता है। हाँ औरत को दोनों बार काफी दर्द झेलना पड़ता है। पर इसी दर्द का कमाल है की वह बच्चा औरत को अपनी जान से भी ज्यादा प्यारा होता है।

जैसे तरुण दीपा की चूत में एक जोर का धक्का देता, वैसे ही तरुण के अण्डकोश मेरी बीबी की गाँड़ पर फटकार मार रहे थे। उन दोनों के चोदने से फच्च फच्च और फट्ट् फट्ट की आवाज उस बैडरूम में चारों और गूंज रही थी। साथ ही साथ मैं मेरी बीबी जोर जोर से हर एक गहरे धक्के के साथ ऊँह ऊँह कराहती हुयी मेरे दोस्त के धक्के के मुकाबले में बराबर खरी उतर रही थी। दीपा तरुण को सामने से धक्का दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों के बिच चोदने की प्रतिस्पर्धा लगी थी। आज की मेरी बीबी की उत्तेजना वैसी थी जैसी हमारी शादी के बाद जब उसकी शुरुआत की शर्म मिट चुकी थी तब चुदवाने के समय होती थी।

मैं मेरी बीबी की मेरे प्यारे दोस्त से चुदाई देखने में इतना मशगूल हो गया था, की जब दीपा ने मेरा हाथ पकड़ा और दबाया तब मैं अपनीं तरंगों की दुनिया से बाहर आया और मैंने दीपा को अपनी चरम पर देखा। वह उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी थी और कामातुरता की उन्नततम अवस्था में अपने रस भण्डार के दरवाजे खोल ने वाली थी। अर्थात तब वह झड़ ने की स्थिति में पहुँच गयी थी। उसने एक लम्बी कामुक आवाज में आह... ह... ह... ह... ...ह भरी और झड़ गयी। मैं उस की चूत में से निकलते रस को तरुण के लण्ड और मेरी पत्नी की चूत के बिच में से चूते हुए देख रहा था।

दीपा को झड़ते देख तरुण कुछ देर तक रुक गया। उसका लण्ड तब भी पुरे तनाव में था। बल्कि दीपा को झड़ते देख तरुण की उत्तेजना और बढ़ गई होगी। पर फिर भी उसने धीरेसे अपना लण्ड मेरी बीबी की चूत से निकाला। मैं आश्चर्य से उसके पथ्थर जैसे कड़क लण्ड को ऊर्ध्वगामी (ऊपर की तरफ सर उठाते हुए) दिशा में खड़ा देखता ही रहा। दीपा ने तरुण के नीचे से तरुण को पूछा "डार्लिंग, तुम रुक क्योँ गए? मैं अभी बिलकुल नहीं थकी हूँ। मेरे झड़ने से मेरी चुदवाने की तड़प कम नहीं हुयी, उलटी बढ़ गयी है। प्लीज अब रुको नहीं मुझे चोदते रहो जब तक तुम में दम है।"

तरुण ने मेरी और देखा और मुझे दीपा पर चढ़ने के लिए आवाहन दिया। मेरा दोस्त मुझे मेरी पत्नी को चोदने का आमंत्रण दे रहा था। आप लोग सोचिये, ऐसे होते हुए देख कर कोई भी पति को कैसा लगता होगा। पर मुझे अच्च्छा लगा। इस हालात में शायद ही कोई चुदक्कड़ पूरी तरह झड़े और अपना माल निकाले बिना दीपा के उपरसे नीचे उतरेगा। दीपा ने मेरी और देखा। वह समझ गयी की तरुण तब खुद झड़ना नहीं चाहता था। दीपा मेरी और मुड़ी और मुझे खिंच अपने उपर चढ़ने को इशारा करते हुए बोली, "तुम इतने महीनों से तरुण के साथ मिलकर मुझे चोदने का प्लान कर रहे थे। आज मैंने भी तय कर लिया था की मैं आज तुम्हारी वह इच्छा भी पूरी कर दूंगी। तरुण को मुझे चोदते हुए तो तुमने देख ही लिया है। अब तरुण के सामने तुम मुझे चोदो। अब तरुण को भी हमारी चुदाई देखने का मजा लेने दो।"

मैं तो इंतेजार ही कर रहा था की कब मेरा नंबर लगे। मैं तरुण को मेरी बीबी की चुदाई करते देख अपने लोहेकी छड़ के सरीखे तने हुए लण्ड को सहला कर अपनी कामुकता को शांत करने की कोशिश कर रहा था।

जैसे ही तरुण दीपा के ऊपर से हट कर दीपा के बाजू में आया, मैंने मेरी बीबी की खूबसूरत टाँगों के बीचमें अपनी पोजीशन ले ली। दीपा ने फिर अपनी दोनों टांगें घुटनों को टेढ़ा कर मेरे सर के दोनों और मेरे कन्धों पर रख दी। अपने लण्ड को अपने ही हाथ से सहलाते हुए मैंने प्यार से मेरी बीबी की चूत के छिद्र के साथ रगड़ा। दीपा ने उसके कई सालों के चुदाई साथीदार को अपने हाथों में लिया और धीरेसे अपनी चूत के छिद्र पर केंन्द्रित करते हुए अपने हाथसे मेरे लण्ड को अपनी चूत में घुसेड़ा। मेरे एक धक्का देते ही मेरा लण्ड मेरी बीबी की चूत में घुस गया। तरुण के मोटे और लंबे लण्ड से इतनी देर चुदने के बाद मेरे लण्ड को अंदर घुसाने में दीपा को कोई परेशानी नहीं हुई।

तरुण को मेरी बीबी को चोदते हुए देख मेरी महीनों की या यूँ कहें की सालों की छुपी इच्छा उसदिन फलीभूत हुयी थी। इस वजह से मैं कामुकता के वह स्टेज पर पहुँच गया था की अब मेरी बीबी को चोदने में अनोखा नशा मिल रहा था।

मेरी बीबी को तरुण से चुदवाने के बाद जब मैं मेरी बीबी पर चढ़ा तो वह तो मुझपर इतनी मेहरबान हो गयी की मैं हैरान रह गया। उसने मेरा सर अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने सर के साथ लगाया। मेरे होठ अपने होठ पर चिपका कर वह मुझे जोरों से चुम्बन करने लगी। जैसे उसने तरुण से अपना मुंह चुदवाया था, वैसे ही वह मुझसे भी अपना मुंह चुदवाना चाहती थी।

मैं मेरी बीबी का मुंह चोदने को तैयार हो रहा था, तब उसने मुझे थोड़े से ऊँचे आवाज में कहा जिसे तरुण भी सुन सके। उसने कहा, "मैं वास्तव में दुनिया की सबसे भाग्यशाली बीबी हूँ के मुझे आप जैसे पति मिले। मैं जान गयी थी की आप मुझे तरुण के साथ मिलकर चोदना चाहते हो। खैर यह तो आपने ही मुझे बताया था। तब मैं आपका विरोध करती रही। एक कारण तो यह था की मुझे भरोसा न था, की आप वास्तव में अगर तरुण ने मुझे चोदा तो आप उसको देख पाओगे और उसको सह पाओगे। पर अब मैं देख रही हूँ की आप भी मेरे साथ बहुत एंजॉय कर रहे हो। आप को तरुण से कोई ईर्ष्या नहीं है। और आप मुझसे अब भी उतना ही प्यार कर रहे हो। ऐसा पति कोई कोई पत्नी को भाग्य से ही मिलता है।"

"जैसे की पहले आप ने मुझसे कहा था, चलो हम तीनों साथ मिल कर इस होली के त्यौहार का आनंद उठाएं। मैं आज आप दोनों से खूब चुदना चाहती हूँ। आज तुम दोनों मिलकर मुझे ऐसे चोदो की मैं ये कभी न भूल पाऊँ। मैं भी आप दोनों से इतना चुदवाऊँगी और इतना आनंद देना चाहती हूँ की हम सब इसे जिंदगी भर याद रखें और यह रात हमारी जिंदगी की सबसे यादगार रात बने।"

बस और क्या था। मैं उस वक्त यह भूल गया की मैं दीपा का पति था और वह मेरी पत्नी थी। मेरे जहन में तो बस यही था की मैं अपनी प्रेमिका को, किसी और की पत्नी को चोरी छुपी से चोद रहा हूँ। मैं उस समय ऐसा उत्तेजित था, जैसे शादी तय होने के बाद शादी से सात दिन पहले मैंने दीपा को बड़ी मुश्किल से पटा कर पहली बार चोदा था तब था। मैं नर्वस था पर बहोत जोश में था। मैं जोश में चोदने लगा। दीपा भी मुझे उछल उछल कर सामने से धक्के मार कर मेरा पूरा साथ दे रही थी।

तरुण का मुंह मेरी पत्नी की चूँचियों पर जैसे चिपका हुआ था। वह दीपा के मम्मों को मुंहसे निकाल ही नहीं रहा था। उसकी जीभ दीपा की निप्पलों को चूस रही थी। कभी कभी वह उन निप्पलों को अपने होठों के बिच जोरसे दबा कर चूसता हुआ खींचता था। दीपा के हाथमें तरुण का तना हुआ लण्ड था, जिसे वह बड़े प्यार से सहला और हिला रही थी। कभी कभी वह तरुण के बड़े गोटों (अंडकोषों) को इतनी नजाकत और प्यार से सहला रही थी और दुलार कर रही थी तो कभी वह तरुण के लण्ड को थोड़ी सख्ती से दबा देती थी। तरुण की बंद आँखें भी तरुण के मन की उनमत्तता को प्रदर्शित कर रही थी। बिच बिच में वह अपनी आँखे खोल कर मुझे दीपा को चोदते हुए देख लेता था और उसके मुंह पर मुस्कान छा जाती थी।