बीबी की चाहत 04

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मैं उस रात दुबारा झड़ने की तैयारी में था। मैं अपनी उन्मत्तता के चरम शिखर पर पहुंचा हुआ था। अपनी उत्तेजना को नियंत्रण में न रख पाने के कारण मैंने हलके हलके गुर्राना शुरू किया। मेरी बीबी को यह इशारा थी की मैं तब मेरा फव्वारा छोड़ ने वाला था। पर दीपा थी की धीरे पड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। तब ऐसे लग रहा था जैसे मैं उसे नहीं, वह मुझे चोद रही थी। उसकी गति तो पहले से और तेज हो गयी। उसने अपनी चूत के बिच मेरा लण्ड सख्ती से जकड़ा था और वह अपनी पीठ को उछाल उछाल कर निचे से ही मुझे चोद रही थी। मैंने बड़े जोर से हुंकार करते हुए एकदम अपना फव्वारा छोड़ा और मेरी बीवी की चूत को मेरे वीर्य से भर दिया।

तब मेरे लण्ड पर मेरी बीवी की चूत की पकड़ कुछ ढीली पड़ी। मेरा माल पूरा निकल जाने पर मेरा लण्ड भी ढीला पड़ गया, जिसे मैंने धीरे से चूत में से निकालना चाहा। तब मैंने देखा की मेरी बीबी पर तो जैसे भूत सवार था। वह मेरा लण्ड छोड़ने को तैयार ही नहीं थी। मैंने जैसे तैसे मेरा लण्ड निकाला, और मैं दीपा पर पूरा लेट गया। मैंने अपने होंठ दीपा के होंठ से मिलाये और मैं अपनी पत्नी के होठों को चूमने लगा। तब मेरी बीबी ने मुझे मेरे कान में धीरेसे कहा , "जानूँ, मैं अब भी बहुत चुदाई करवाना चाहती हूँ। मुझे चोदो।"

जब दीपा ने देखा की मैं थोड़ा थका हुआ था और मेरे लण्ड को खड़ा होने में समय लगेगा, तब दीपा ने तरुण को अपनी और खींचा। जब तरुण ने दीपा के स्तनों से अपना मुंह हटाया तब मैंने देखा की मेरी बीबी के गोरे गोरे मम्मे लाल हो चुके थे। तरुण के दाँतों के निशान भी कहीं कहीं दिखते थे। दीपा की निप्पलेँ कड़क तनी हुयी थी। जैसे ही मैंने दीपा के इर्दगिर्द से मेरी टाँगें हटायीं और उसके दोनों पॉंव मेरे कंधे से उतारे, तो मेरी बीबी ने मेरे मित्र को अपने ऊपर चढ़ने का आह्वान दिया। तरुण का लण्ड तो जैसे इस का बेसब्री से इन्तेजार कर रहा था की कब मैं उतरूँ और कब वह अपनी पोजीशन दोबारा सम्हाले।

तरुण का घोडे के लण्ड के सामान लंबा और मोटा लण्ड तब मेरी बीबी की चूत पर रगड़ने लगा। तब भी वह अपने पूर्व रस झरने से गिला और स्निग्ध था। मेरी पत्नी की चूत भी मेरी मलाई से भरी हुई थी। शायद तरुण के मनमें यह बात आयी होगी की उसे अब वह आनंद नहीं मिलेगा जो पहली बार दीपा को चोदने में मिला था, क्योंकि दीपा की चूत मेरी मलाई से भरी हुयी थी। पर उसकी यह शंका उसके दीपा की चूत में अपने लण्ड का एक धक्का देने से ही दूर हो गयी होगी, क्योंकि जैसे ही तरुण ने अपना लण्ड मेरी बीबी की चूत में धकेला की मेरा सारा वीर्य दीपा की चूत से उफान मारता हुआ बाहर निकल पड़ा। दीपा के मुंह से तब एक हलकी सी सिसकारी निकल पड़ी। वह आनंद की सिसकारी थी या दर्द की यह कहना मुश्किल था।

धीरे धीरे तरुण ने मेरी पत्नी को बड़े प्यार से दोबारा चोदना शुरू किया। दीपा को तो जैसे कोई चैन ही नहीं था। तरुण के शुरू होते ही दीपा ने अपने चूतड़ों को उछालना शुरू किया। वह तरुण की चुदाई का पूरा आनंद लेना चाहती थी। तरुण की चोदने रफ़्तार जैसे बढती गयी वैसे ही दीपा की अपने कूल्हों को उछाल ने की रफ़्तार भी बढ़ गयी। तरुण के हाथ तब भी मेरी बीबी के मम्मों को छोड़ने का नाम नहीं ले रहे थे। दीपा ने तरुण का सर अपने हाथों में लिया और चुदाई करवाते हुए दीपा ने तरुण को अपने स्तनों को चूसने को इशारा किया। मुझे ऐसा लगा की तरुण के दीपा के मम्मों को चूसना दीपा को ज्यादा ही उत्तेजित कर रहा था।

उनकी चुदाई देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था। मैं तब समझा की तरुण और दीपा कई हफ़्तों या महीनों से एक दुसरे को चोदने और चुदवाने के सपने देख रहे होंगे। ऐसा लग रहा था की दोनों में से कोई भी दूसरे को छोड़ने को राजी नहीं था। मुझे इन दोनों की चुदाई से इतनी उत्तेजना हो रही थी की मुझसे रहा नहीं गया और मैंने दीपा की चूत पर हाथ रखा और मेरे अंगूठे और तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) से तरुण के पिस्टन जैसे लण्ड को दबाया। तरुण अपने लण्ड को दीपा की चूत के अंदर घुसेड़ रहा था और निकाल रहा था। उसकी फुर्ती काफी तेज थी। जब मैंने अंगूठे और तर्जनी से उसके लण्ड को मुठ में दबाने की कोशिश की तो शायद तरुण को दो दो चूतो को चोदने जैसा अनुभव हुआ होगा। दीपा ने भी मेरा हाथ पकड़ा और वह मेरी इस चेष्टा से वह बड़ी खुश नजर आ रही थी।

अचानक तरुण थम गया। दीपा तरुण को देखने लगी की क्या बात है। तरुण ने दीपा की चूत में से अपना लण्ड निकाल दिया और मेरी बीबी की कमर को पकड़ कर उसे पलंग से नीचे उतरने का इशारा किया। दीपा पहले तो समझ न पायी की क्या बात है। पर जब तरुण ने उसे पलंग से सहारा लेकर झुक कर खड़ा होने को कहा वह समझ गयी की तरुण उसे डोगी स्टाइल में (जैसे कुत्ता कुतीया को चोदता है) उसे चोदना चाहता है। दीपा उस ख़याल से थोड़ा डर गयी होगी की कहीं तरुण उसकी गाँड़ में अपना लण्ड घुसेड़ न दे, क्योंकि उसने मेरी और भयभरी आँखों से देखा। उसके डर का कारण मैं समझ गया था। मैंने उसे शांत रहने को और धीरज रखने का इशारा किया।

शायद मेरा इशारा समझ कर वह चुपचाप पलंग पर अपने हाथ टीका कर आगे की और झुक कर फर्श पर खड़ी हो गयी। तरुण मेरी बीबी की खूबसूरत गाँड़ को अपने हाथों में मसलने लगा। आगे की और झुकी हुई और अपनी गाँड़ और चूत तरुण को समर्पण करती हुई मेरी पत्नी कमाल लग रही थी। ऐसे लग रहा था की कोई कुतिया अपने प्यारे कुत्तेसे चुदवाने के लिए उतावली हो रही थी। दीपा पूरी गर्मी में थी। उस पर तरुण से चुदवाने का जनून सवार था। उस समय यदि तरुण मेरी बीबी की गाँड़ में अपना लण्ड पेल देता तो वह दर्द से कराहती, जरूर खून भी निकलता और शोर भी जरूर मचाती पर शायद तरुण को छोड़ती नहीं और उससे अपनी गाँड़ भी मरवा लेती।

तरुण दीपा के पीछे आ गया और उसने थोड़ा झूक कर अपना लण्ड दीपा की गाँड़ पर और फिर उसकी चूत पर रगड़ा। फिर तरुण ने और झूक कर दीपा के मम्मों को दोनों हाथों में पकड़ा और उन्हें दबाने, मसलने और खींचने लगा। उसने अपने दोनों अंगूठे दीपा के स्तनों पर दबा रखे थे। फिर उसने अपना लण्ड बड़े प्यार से मेरी बीबी की गरमा गरम चूत में धीरेसे डाला। तरुण का स्निग्ध चिकनाहट भरा लण्ड मेरी बीबी की चूत में घुस तो गया, पर जैसे ही तरुण ने एक धक्का देकर उसे थोड़ा और अंदर धकेला तो दीपा दर्द से चीख उठी। उसने तरुण को पीछे हटाने की कोशिश की। तरुण ने अपना अंदर घुसा हुआ लण्ड थोडा सा वापस खिंच लिया। मेरी सुन्दर पत्नी ने एक चैन की साँस ली। पर तरुण ने फिर एक धक्का मारा और अपना लण्ड फिर अंदर घुसेड़ा। दीपा के मुंह से फिर चीख निकल गयी। फिर तरुण ने थोड़ा वापस लिया और फिर एक धक्का मार कर और अंदर घुसेड़ा।

तब मैंने देखा की मेरी पत्नी अपनी आँखे जोर से बंद करके, अपने होठ भींच कर चुप रही। उसने कोई चीख नहीं निकाली, हालांकि उसे दर्द महसूस हो रहा होगा। दीपा के कपोल पर पसीने की बूंदें झलक रही थी। आज तक मेरा लण्ड कभी भी मेरी पत्नी की चूत की उस गहरायी तक नहीं पहुँच पाया था, जहाँ तक तरुण का लण्ड उस रात पहुँच गया था।

वैसे तो इस पोज़ में दीपा और तरुण को मैंने पहले भी देखा था जब बाथरूम में कपडे पहने तरुण पीछे आकर दीपा की गांड में अपना लण्ड घुसाने की कोशिश कर रहा था और आगे दीपा के पके फल जैसे बूब्स को उसके ब्लाउज के ऊपर से अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। उसके पहले रसोई में भी तरुण ने दीपा के निचे से दीपा की गांड में अपना लण्ड सटाया हुआ रखा था और अपने दोनों हाथों से वह दीपा के बूब्स मसल रहा था। पस उस रात का नजारा कुछ और था। इस बार दीपा खुद आगे झुक कर अपनी सुन्दर गाँड़ तरुण को अर्पण कर रही थी और तरुण बिना कपड़ों के व्यावधान के दीपा के पीछे खड़ा हो कर दीपा की चूत में अपना लण्ड बड़े ही प्यार भरे पर आक्रामक रवैये से पेले जा रहा था।

तरुण और मेरी सुन्दर पत्नी अब एक दूसरे से आनंद पाने की कोशिश कर रहे थे। धीरे धीरे दीपा का दर्द कम होने लगा होगा। क्योंकि अब वह दर्द भरे भाव उसके चेहरे पर नजर नहीं आ रहे थे। उसकी जगह वह अब तरुण के धक्कों के मजे ले रही थी। तरुण ने धीरे से अपनी चोदने की रफ़्तार बढ़ाई। साथ ही साथ वह मेरी बीबी के मम्मों को भी अपनी हथेली और अंगूठों में भींच रहा था। दीपा मेरे मित्र के इस दोहरे आक्रमण से पागल सी हो रही थी। तब मेरी बीबी को शायद थोड़ा दर्द, थोड़ा मजा महसूस हो रहा होगा। तरुण की बढ़ी हुयी रफ़्तार को मेरी बीबी एन्जॉय करने लगी थी।

तरुण के अंडकोष मेरी पत्नी की गाँड़ पर फटकार मार रहे थे। उनके चोदने की फच्च फच्च आवाज कमरे में चारो और गूंज रही थी। दीपा ने तब कामातुरता भरी धीमी कराहट मारना शुरू किया। वह तरुण के चोदने की प्रक्रिया का पूरा आनंद लेना चाहती थी। शायद कहीं न कहीं उसके मन में यह डर था की क्या पता, कहीं उसे तरुण से दुबारा चुदवा ने का मौका न मिले।

दीपा ने उंह्कार मारना शुरू किया तो तरुण को और भी जोश चढ़ा। अब वह मेरी बीबी की चूत में इतनी फुर्ती से अपना मोटा और लंबा लण्ड पेल रहा था की दीपा अपना आपा खो रही थी। उधर जैसे ही अपना लण्ड एक के बाद एक तगड़े धक्के देकर तरुण मेरी बीबी की चूत में पेलता था, तब अनायास ही के उसके मुंह से भी "ओह... हूँ... " की आवाजें निकलती जा रही थी। मेरी पत्नी और मेरा मित्र दोनों वासना के पाशमें एक दूसरे के संग में सारी दुनिया को भूल कर काम आनन्दातिरेक का अनुभव कर रहे थे। पुरे कमरे में जैसे चोदने की आवाजें और हम तीनों के रस और वीर्य की कामुकता भरी खुशबु फैली हुई थी।

दीपा की उंह्कार तेज होने लगी। अब वह दर्द के मारे नहीं पर उत्तेजना और कामाग्नि के मारे हर एक धक्के पर कराह रही थी। जैसे जैसे वह अपने चरम शिखर पर पहुँच रही थी वैसे वैसे दीपा ने जोर से कराहना शुरू किया और फिर तरुण को और जोरसे चोदने के लिए कहने लगी। 'तरुण, मुझे और चोदो। और जोरसे। मेरी चूत का आज भोसड़ा बना डालो। रुकना मत। मैं अब झड़ने वाली हूँ। चोदो मुझे। हाय... आह... बापरे... ऑफ़... " ऐसे कराहते हुए मेरी बीबी उस रात पता नहीं शायद चौथी या पांचवी बार झड़ी।

दीपा के झड़ने से तरुण जैसे ही थम रहा था वैसे ही मेरी बीबी ने उसे लताड़ दिया। "अरे तुम रुक क्यों गए? मैं झड़ी हूँ पर अभी भी खड़ी हूँ। खैर, पीछे हटो। चलो अब मैं तुम्हें चोद्ती हूँ।" ऐसा कह कर मेरी बीबी ने तरुण का हाथ पकड़ कर उसे पलंग पर लेटाया। खुद वह तरुण के ऊपर चढ़ गयी और उसकी कमर के दोनों और अपनी दोनों टाँगों को फैला कर अपनी दोनों टांगों के बिच तरुण की कमर रख अपनी टांगों को टेढा कर अपने घुटनों पर बैठ गयी। धीरे से दीपा ने तरुण का तना और मोटा लण्ड अपनी चूत के अंदर डाला और उसे अपने शरीर को नीचे की और दबा कर अंदर घुसेड़ा।

धीरे धीरे जैसे दीपा अपने चूतड़ों को ऊपर निचे उठाने लगी, वैसे ही तरुण भी निचे से अपने कूल्हों को ऊपर उठाकर दीपा की चूत में अपने लण्ड को घुसेड़ रहा था। पर दीपा को कोई दर्द नहीं बल्कि उसके चेहरे पर एक अद्भुत आनंद की लहर दौड़ रही थी। वह उस रात हमारी सेक्स की स्वामिनी बनी हुई थी। तरुण और मैं हम दोनों जैसे दीपा के सेक्स गुलाम थे, और वह हमारी मलिका।

मैं हैरान इस बात पर था की कोई भी आसन में या पोजीशन में तरुण दीपा के मम्मों को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था। उसने मेरी बीबी के स्तनों पर जैसे अपना एक मात्र अधिकार जमा रखा था। मैं तरुण का दीपा के मम्मों के प्रति पागलपन को समझ सकता था। जब एक इंसान इतने महीनों से जिस के सपने देखता हो। जो इतने महीनो से जिसको पाने के लिए जीता हो और वह उसे मिल जाए तो भला उसे आसानी से कैसे छोड़ेगा?

मेरी पत्नी पर तो जैसे चुदने का बुखार चढ़ा था। वह उछल उछल कर तरुण को चोद रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह पूरी रात तरुण को नहीं छोड़ेगी। उनकी रफ़्तार इतनी तेज हो गयी थी की मैं डर रहा था की कहीं उसके शरीर पर उसका विपरीत असर न हो जाय। जैसे दीपा उछलती तो उसके मम्मे भी उछलते थे। और साथ में तरुण के हाथ जिसमें तरुण ने उन मम्मों को दबा के पकड़ रखा था। सारा दृश्य देखने लायक था। मैंने पहेली बार मेरी पत्नी को इतने जोश में चोदते देखा था।

जब दीपा मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चोद्ती थी, तब उसे भी और मुझे भी चुदाई में अनोखा आनंद मिलता था। दीपा भी बहुत उत्तेजित हो जाती थी, और मैं भी। हम दोनों जल्दी ही झड़ जाते थे। दीपा इन दिनों थक जाने का बहाना करके मेरे ऊपर चढ़ कर चोदने से बचना चाहती थी। पर उस रात की बात कुछ और ही थी। पता नहीं शराब का असर था या शबाब का। उस रात मेरी पत्नी के चेहरे पर थकान का नामो निशान नहीं था।

वह जैसे ही एक धक्का मार कर तरुण के लण्ड को अपनी चूत की गहराईयों में घुसेड़ ती तो उसके साथ एक कामुकता भरी आवाज में "ऊम्फ..." की आवाज निकालती। जैसे महिला खिलाडी टेनिस के मैच में जब गेंद को रैकेट से मारकर कराहते हैं, बिलकुल वैसे ही। मेरी प्यारी और सेक्सी बीबी दीपा बहुत जल्द झड़ने वाली थी। उसके चेहरे का उन्माद बढ़ने लगा था। उसका पूरा ध्यान उसकी जननेन्द्रिय पर हो रहे सम्भोग के आनंदातिरेक पर था। वह तरुण को शारीरिक सम्भोग का पूरा आनंद देना चाहती थी और तरुण से पूरा शारीरिक सम्भोग का आनंद लेना चाहती थी।

हाँ मैं यह जानता था की अब वह तुरंत अपना फव्वारा खोलने वाली थी। उसके कपोल पर तनी लकीरों से और चेहरे के भाव से यह स्पष्ट था की वह अब अपनी सीमा पर पहुँचने वाली है। दीपा ने तरुण के निप्पलों को अपनी उँगलियों में जोर से भींचा और कामुकता भरी दबी आवाज में बोल पड़ी, "हाय... तरुण... दीपक... ऑफ़... ओह... मैं अब अपना रस छोड़ने वाली हूँ।" ऐसे कहते हुए दीपा ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई।

मैंने महसूस किया की तरुण भी तब अपनी कामुकता की चोटी पर पहुँच रहा था। वह मेरी बीबी के मम्मों को कस कर अपनी हथेलियों में भींचते हुए बोल पड़ा, "दीपा, मैं भी छोड़ने वाला हूँ। क्या मैं इसे बाहर निकाल लूँ?"

दीपा ने उसकी छाती पर एक सख्त चूँटी भरते हुए कहा, "नहीं तरुण, आज मैं सुरक्षित हूँ। तुम अपना सारा वीर्य मेरी चूत में भर दो। मैं आज तुम दोनों के वीर्य को अपनी चूत में सारी रात भर के रखना चाहती हूँ। तुम खुल कर मेरी चूत भर दो।"

अचानक मैंने देखा की तरुण और मेरी बीबी एक दूसरे से चिपक गए। दोनों ने एक दूसरे को अपनी आहोश में इतना कस कर भींच लिया जैसे वह एक ही हो जाना चाहते हों। उनके मुंह एक दूसरे ऐसे चिपके थे की उन दोनों के मुंह में क्या हो रहा था वह सोचा ही जा सकता था। तरुण शायद उस समय मेरी पत्नी को न मात्र अपने लण्ड से बल्कि वह दीपा को अपनी जीभ से भी चोद रहा था। जैसे ही दोनों ने एक साथ अपना रस छोड़ा तो दोनों की कामुक कराहट से सारा कमरा गूंज उठा। मैंने इस से पहले ऐसा दृश्य ब्लू फिल्मों में भी नहीं देखा था।

मैंने तरुण के स्निग्ध लण्ड, जो तब भी मेरी बीबी की चूत में था और अपना घना और घाड़ा वीर्य दीपा की चूत में उँडेल रहा था; अपनी मुठी मैं लेकर दबाया और मेरी एक उंगली मेरी बीबी की चूत में डाली। मेरी उंगली तरुण के वीर्य से लथपथ थी। दीपा ने मुझे भी तरुण के साथ साथ अपनी बाँहों में जकड लिया।

अब दीपा शर्म का पर्दा पूरी तरह से फाड् चुकी थी। उसने तरुण का और मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और बोली, "तुम दोनों बहुत चालु हो। तुम दोनों ने मिलकर यह मुझे चोदने का प्लान बनाया। हाय माँ मैं भी कितनी गधी निकली की मुझे यह समझ में नहीं आया। डार्लिंग, आज मैं प्रेम मय सेक्स (लविंग सेक्स) का सच्चा मतलब समझ रही हूँ। तुम दोनों ने आज मुझे वह दिया जो शायद मैं कभी पा ने की उम्मीद भी कर नहीं सकती थी। दीपक आप न सिर्फ मेरे प्राणनाथ पति हो। आप एक सच्चे मित्र और जीवन साथी हो। मैं आज यह मानती हूँ की मेरे जहन में कहीं न कहींतरुण से चुदने की कामना थी। पर शर्म और मर्यादा के आगे मैंने अपनी यह कामना दबा रखी थी। शायद दीपक यह भांप गया था। तरुण तो मेरे पीछे पहले से ही पड़ा था। यह तो बिलकुल साफ़ था की वह मुझे चोदना चाहता था।

मैं मेरी बीबी की बात सुन कर हैरान था। मेरी शर्मीली बीबी आज खुल कर बोल रही थी। मैं दीपा को बड़े ध्यान से सुन रहा था। वह बोली, "पर डार्लिंग, यह मत समझना की मैं आज आखरी बार तरुण से चुदवा रही हूँ। तरुण गजब का चुदक्कड़ है। मैं उससे बार बार चुदना चाहती हूँ। तुम्हें मुझे इसकी इजाजत देनीं होगी। जब तुम मुझे तरुण से चुदवानेका प्लान बना रहे थे तब मैंने तुम्हें इसके बारे में आगाह किया था। और हाँ, मैं यह भी जानती हूँ की तुम टीना को चोदना चाहते हो। शायद इसिलए तुम दोनों ने मिलकर यह धूर्त प्लान बनाया। तुम ने सोचा होगा की दीपा को पहले फांसेंगे तो टीना बेचारी को तो हम तीनों मिलकर फांस ही लेंगे। यदि तुमने यह सोचा था तो सही सोचा था। अब मैं तुम्हारे साथ हूँ। जब मैं तुम दोनों से चुद गयी तो टीना कैसे बचेगी? आज मैं भी तुम्हारी धूर्त मंडली में शामिल हो गयी।"

दीपा ने मुझे और तरुण को अपने बाहु पाश में ले लिया। उस रात और उस के बाद कई रातों में हम दोनों ने मिलकर दीपा को खूब चोदा और चोदते रहे। जब तक टीना नहीं आयी तब तक दीपा हम दोनों से जोश से चुदवाती रहीं। कई बार ऐसा भी हुआ की जब तरुण का दीपा को चोदने का बड़ा मन होता था तो वह मेरी गैर हाजरी में तरुण घर पहुँच जाता था और दीपा और तरुण दोनों जमकर चुदाई करते थे। पर यह सब मेरी सहमति से और मुझे बता कर होता था। ज्यादातर तो तरुण और मैं मिलकर ही दीपा को चोदते थे।

टीना कुछ हफ़्तों में वापस आ गयी। हम तीनों ने मिलकर टीना को भी अपने जाल में आखिर फांस ही लिया। पर उसमें हमें काफी मशक्कत भी करनी पड़ी। पर वह फंसने वाली तो थी ही। और फँसी भी। और जब टीना फँसी तो उसने हमें दो मर्दों से एक साथ चुदवाने की एक नयी रीत सिखाई। उसको डी.पी. कहते हैं। डी.पी. मतलब डबल पेनिट्रेशन मतलब औरत के दोनों छिद्र गाँड़ और चूत दोनों में एक साथ एक एक लण्ड लेना। मतलब एक ही साथ दो मर्द एक औरत को चॉद सकते हैं। एक गाँड़ चोदेगा और दुसरा चूत।

वह कैसे फँसी, हमें उसको फाँसने के लिए क्या क्या करना पड़ा, वह एक अलग ही कहानी है। उसके बाद दोनों मर्दों ने मिलकर एक दूसरे की बीबी को खूब चोदा। खूब मजे किये। समय को कोई रोक नहीं सकता। समय बीतता गया। तरुण और टीना कहीं दूर चले गए। हम भी वहाँ से शिफ्ट हो गए। अब तो सिर्फ उनदिनों की याद ही बाकी है। पर हम उन्हें अभी भी भूले नहीं।

मैं मेरे इस अनुभव को छोटी सी सीमा में बाँधना नहीं चाहता। था पर शायद यह कहानी कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी है। मैं उम्मीद रखता हूँ की आप भी इसे पढ़कर उतना ही आनंद पाएंगे जितना मुझे लिखने में मिला।

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3 Comments
AnonymousAnonymousover 3 years ago
Wow...awesome

Bhai aur likhiye is story ko. Main soch raha tha ki Tarun aur deepak Deepa ko unke manager se bhi chudvayenge...majboor kar ke. Pls age likhte rahiye... ye kahani bohot hi romanchak hai

TheMaskEditorTheMaskEditorover 3 years ago

You are a very good writer. You know very well to hold the nerves of readers. It is creatively erotic and addictive.

It becomes very difficult to stop reading it in between, I have read all the 4 parts in couple of days.

AnonymousAnonymousover 4 years ago

Waiting for next part

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