Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.
You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.
Click hereइस कहानी के सारे पात्र १८ वर्ष से ज्यादा आयु के हैं. ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और अगर इसके किसी पात्र या घटना किसी के वास्तविक जीवन से मिलती है तो उसे मात्रा के संयोग माना जायेगा.
यह कहानी मेरी पिछले कहानी "किस्मत का खेल - चुदक्कड़ परिवार" श्रृंखला के अगली कड़ी है, परन्तु अपने आप में एक पूरी कहानी है. आशा करता हूँ की पाठकों को पसंद आएगी.
*****
अध्याय - 9 - पापा ने तोड़ी गांड के सील
शाम के करीब साढ़े-सात या आठ बज रहे होंगे. मयूरी अशोक के कमरे में घुसते ही दरवाजा अंदर से बंद कर के अपने कपडे उतारकर फेंकने लगती है. उसको देखकर अशोक भी बिना वक्त गवाएं अपने कपडे उतार कर फेंक देता है.
मयूरी बड़े जोश में जाकर अपने एकदम आदमजात नंगे बाप को जाकर एक जोरदार चुम्बन देती है. दोनों के बिच कोई वार्तालाप नहीं होता पर जैसे दोनों को पता था की आगे क्या करना है. चुम्बन के साथ-साथ मयूरी अपने पापा का लंड अपने हाथ में लेकर उसको मसलने और आगे पीछे करने लगी. अशोक भी कहाँ पीछे रहने वाला था, उसने भी एक साथ उस उसकी चूचियों और दूसरे हाथ से कभी उसकी कोमल गांड तो कभी माखन जैसी जाँघे तो कभी मलाई जैसी चूत को मसलता रहा.
दोनों एक-दूसरे को उत्तेजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. करीब दस मिनट तक एकदूसरे पर इसी तारक प्रहार करने के बाद दोनों ने 69 की पोजीशन ली और अब मयूरी अपने पापा का लंड चूस रही थी और अशोक अपनी जवान बेटी की चुत को जोर-जोर से चाट रहा था. इसी तरह लगभग बीस मिनट तक एक-दूसरे को जोर जोर से चूसने और चाटने के बाद अशोक ने अपना लोहे जैसा खड़ा लंड अपने जवान बिनव्याही बेटी की चुत में डाला और जोर-जोर से पेलने लगा. काफी देर तक दोनों के बीच बहुत जोर को चुदाई चली. दोनों के मुँह से आवाज़ें निकल रही थी और दोनों बेपरवाह होकर एक दूसरे को चोदने में व्यस्त थे. फिर अंत में अशोक ने अपने लंड से निकले वीर्य को अपने बेटी की चुत में ही गिरा दिया और उसी वक्त मयूरी के चूत ने भी पानी छोड़ दिया.
दोनों बिस्तर पर तेज़-तेज़ हाँफते हुए गिर पड़े. फिर मयूरी ने बातचीत शुरू की:
मयूरी: "पापा... "
अशोक: "हाँ बेटा... "
मयूरी: "आपको अफ़सोस है ना की मैं आपको मेरी कंवारी चुत के साथ नहीं मिली... और आप मेरी चुत का सील नहीं तोड़ पाए?"
अशोक: "ऐसी बात नहीं है... पर हाँ, अगर ऐसा होता तो मुझे और मजा आता... "
मयूरी: "फिर आपके लिए एक खुशखबरी है पापा... "
अशोक: "और वो क्या है?"
मयूरी: "मेरी चुत तो आपको सील तोड़ने को नहीं मिली पर आप मेरी गांड का सील तोड़ सकते हैं... उसमे आजतक किसी का लंड नहीं गया... "
अशोक (ख़ुशी से): "क्या सच में?"
मयूरी: "हाँ मेरे चोदू पापा... सच में.. "
अशोक: "क्या बात है... "
मयूरी: "फिर कब तोड़ेंगे अपने मेरे गांड का सील पापा ...?"
अशोक: "बेटा नेकी और पूछ-पूछ? अभी तोडूंगा... पर तुम्हे थोड़ा दर्द होगा... लेकिन बाद में बहुत मजा आएगा... ये मैं वादा करता हूँ... "
मयूरी: "पापा... आपकी ख़ुशी के लिए आपकी ये बेटी कुछ भी कर सकती है... "
अशोक: "फिर ठीक है... जा और जाकर तेल ले आ... "
मयूरी: "ओके पापा... "
और मयूरी वहीँ टेबल पर पड़े कटोरी में रखा तेल ले आती है. जाव वो वापिस आकर अपने बाप का लंड देखती है तब तक वो फिर से खड़ा हो चूका होता है. अशोक अपने बेटी को बिस्तर पर झुकता है और उसकी गांड को अपने जीभ से खूब चाटता है. मयूरी को अपने गांड चटवाने में बड़ा मजा आता है. फिर अशोक उसकी गांड की छेद पर बहुत सारा तेल लगाकर अपने ऊँगली से उसकी गांड की छेद को थोड़ा चौड़ा करता है. थोड़ी देर तक वो अपनी उंगली से मयूरी की गांड को चोदता है जिस से उसकी गांड का छेद थोड़ा खुल जाता है. मयूरी को अभी तक ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था. फिर अशोक फिर से उसकी गांड और अपने लंड पर बहुत सारा तेल लगाकर अपना लंड अपने बेटी की मखमल जैसी गांड पर रखकर सेट करता है और पूछता है:
अशोक: "तुम तैयार हो?"
मयूरी: "कब से पापा... मैं तो हमेशा से चाहती थी की आप मेरी गांड उसी तरह मारें जैसे आप मम्मी की मरते हो... "
अशोक: "ठीक है फिर... थोड़ा दर्द होगा... "
मयूरी: "आप डाल दो पापा... मैं सारे दर्द बर्दाश्त कर लुंगी... अगर मैं रोऊँ भी तो आप रुकना मत... आज मेरी गांड को अपने लंड से चोद दो पापा... "
और अशोक अपने दोनों हाथों से मयूरी की कमर पीछे से पकड़ लेता है और एक जोरदार झटका उसकी गांड पर मारता है. उसका लंड चिकनाई की वजह से झट से लगभग आधा मयूरी की गांड में चला जाता है. मयूरी दर्द के मरे बिलबिला पड़ती है, उसके आंख से आंसुओं की धारा निकल पड़ती है. पर अशोक अभी रुकने के मूड में नहीं था. वो एक और झटका मारता है और लंड जड़ तक मयूरी की चूत के अंदर चला जाता है. मयूरी को और दर्द होता है और वो डर से रो पड़ती है. पर अशोक तो जैसे निर्दयी हो चूका था. उसने अपना लंड थोड़ा बहार निकला और फिर से एक जोरदार झटका दिया. मयूरी दर्द कर मारे कराहती रही और फिर अशोक झटके पर झटका देता रहा. करीब पांच मिनट के बाद मयूरी की गांड अब चौड़ी हो चुकी थी और उसका दर्द काम चूका था. अब मयूरी को अपनी गांड मरवाने में मजा आने लगा और उसकी दर्द आनंद की आहों में परिवर्तित हो गयी.
मयूरी: "आ... ह... आह... पापा... "
अशोक (झटके मारते हुए): "हुम्म्म... हुम्म्म... हुम्म्म..."
मयूरी: "मजा आ रहा है पापा... आह... मुझे पता नहीं था की गांड मरनवाने में इतना मजा आता है... आह... "
पर अशोक तो जैसे कोई बात सुनने ही नहीं वाला था. वो जोरदार झटके पर झटके मयूरी की गांड पर तब तक मारता रहा जब तक की उसके लंड से वीर्य नहीं निकलने की स्थिति में आ गया. लगभग 15 मिनट तक अपने बेटी की कंवारी की मखमल जैसी कोमल को बड़ी ही निर्दयता की साथ चोद-चोद कर थकने के बाद जब उसका लंड पानी छोड़ने वाला था तो उसने अपना लंड उसकी गांड से निकला और मयूरी को पलट कर सीधा किया और अपना लंड सीधा अपने बेटी के मुँह में जबरदस्ती डाल दिया. मयूरी को अब अपनी गांड की महक और स्वाद के साथ अपने बाप का लंड का स्वाद आने लगा. थोड़ी ही देर में अशोक के लंड से वीर्य का बाढ़ निकला और मयूरी का मुँह उससे से भर गया.
फिर दोनों बिस्तर पर फिर से हांफते हुए गिर गए. इस बार अशोक ने बातचीत शुरू किया:
अशोक: "और... मजा आया...? अपनी गांड मरवाकर...?"
मयूरी: "हाँ पापा... बहुत मजा आया... पर दर्द भी बहुत हुआ... "
अशोक: "वो तो मैंने पहले ही कहा था... की दर्द होगा... "
मयूरी: "पर पापा... आप पर तो जैसे बहुत सवार हो गया था... आपको मेरा दर्द दिखाई ही नहीं दे रहा था... "
अशोक: "बेटा... पहले बार गांड की चुदाई की वक्त थोड़ा बेरहम होना पड़ता है नहीं तो काम को अंजाम नहीं मिल पाता... "
मयूरी: "अच्छा... तो आपको मजा आया पापा... अपनी बेटी की गांड मारकर...?"
अशोक: "हाँ बेटा... बहुत ज्यादा मजा आया... इतना मजा तो तुम्हारी माँ की गांड मारकर भी कभी नहीं आया.... "
मयूरी: "थैंक यू पापा.... आई लव यू... "
और मयूरी अपने नंगे बाप से लिपट गयी. फिर थोड़ी देर बाद ऐसे ही चिपके रहने के बाद मयूरी बोली:
मयूरी: "पापा... "
अशोक: "हाँ बेटा... "
मयूरी: "आपको याद है ना की कल मेरा जन्मदिन है?"
अशोक: "हाँ बेटा... ये मैं केस भूल सकता हूँ?"
मयूरी: "तो फिर इस बार आप क्या तोहफा देने वाले है मुझे जन्मदिन पर...?"
अशोक: "आपको क्या चाहिए बेटा?"
मयूरी: "मैं जो बोलूंगी वो दिलाओगे आप?"
अशोक: "हाँ बेटा... आप जो बोलोगे वो दिला देंगे आपको.. "
मयूरी: "सोच लोग पापा, कहीं मुकर ना जाना फिर बाद में... "
अशोक: "अरे आप बोलो तो सही... दिला देंगे आपको..."
मयूरी (बच्चों की तरह जिद करते हुए): "पहले आप प्रॉमिस करो की मैं जो बोलूंगी आप दिलाओगे... "
अशोक (बड़े प्यार से उसका सर सहलाते हुए): "अच्छा प्रॉमिस... अब बताओ... "
मयूरी: "तो मुझे अपने जन्मदिन पर.... "
अशोक: "हाँ... बोलो... बोलो.... "
मयूरी: "अपने जन्मदिन पर घर के तीनो मर्दों का लंड एक साथ लेना है... एक का मुँह में, एक का चुत में और एक अपने गांड में... "
अशोक (आश्चर्य से): "क्या.....?"
मयूरी (शरारती मुस्कान के साथ): "हाँ... "
अशोक: "तू पागल हो गयी है क्या?"
मयूरी: "क्यूँ ...? क्या हुआ?"
अशोक: "मैं तुम्हे ये कैसे दिला सकता हूँ? वो दोनों तेरे अपने भाई हैं... और तू उनसे चुदवाना चाहती है?"
मयूरी: "पापा... आप कैसी बात कर रहे हो? आप तो मेरे पिता हो... और देखो अपने आप को... अभी मेरी गांड मरी है और नंगे चिपके पड़े हो मेरे साथ... और कह रहे हो की अपने भाई से कैसे चुदवा सकती हूँ?"
अशोक को अपने गलती का एहसास हुआ. वो अपने शब्दों को सँभालते हुए आगे कहता है:
अशोक: "अरे पर हमारी बात अलग है... आप हमसे से चुदवाना चाहती थी और हम आपको बड़े दिनों से चोदना भी चाहते थे. तभी ये मुमकिन हो पाया की आपके इस चुत में मेरा लंड गया... नहीं तो कैसी होता बताओ... "
मयूरी: "वो मुझे नहीं पता... आप उनसे बात करो और मुझे उनका लंड दिलवाओ... बस... "
अशोक: "मतलब मैं उनको जाके क्या बोलूं...? की चलो अपनी बहन को चोदना है तुम्हे.... वो भी एक साथ... मैं भी चोदुँगा साथ में... और ये तुम्हारी बहन के जन्मदिन का तोहफा है...?"
मयूरी: "हाँ... एकदम सही... "
अशोक: "तुम सच में पागल हो गयी हो?"
मयूरी: "पर अपने वादा किया था?"
अशोक: "पर ये कैसे...? मुझे लगा की तुम कुछ महँगा सामान मांगोगी तो दिला दूंगा...?"
मयूरी (मुस्कुराते हुए): "अच्छा एक बात सुनो आप... "
अशोक: "हाँ बोलो... "
मयूरी: "आपको याद है मैंने बताया था की मैं पहले से अपनी चुत चुदवा चुकी हूँ वो भी दो लोगो से...?"
अशोक: "हाँ... याद है... अब क्या उनको भी बुलाना है आपको चोदने के लिए?"
मयूरी: "आप बात तो सुनो... आज आपको बहुत सारी बातों का पता चलेगा और ये सारे आपके जीवन के बड़े रहस्य हैं... जो आपको जरूर पता होना चाहिए... "
अशोक: "अच्छा? बताइये... "
मयूरी: "क्या आप जानना नहीं चाहते की वो कौन लोग हैं जिन्होंने आपकी बेटी की जवान चुत का भेदन किया और उसकी सील तोड़ दी...?"
अशोक: "हाँ... जरूर जानना चाहूंगा... बताइये... कौन हैं वो लोग?"
मयूरी: "वो दो लोग आपके अपने दोनों बेटे हैं... "
अशोक (आश्चर्य से): "क्या.....????"
मयूरी: "हाँ... मैंने पहली बार अपने दोनों भाइयों से ही चुदवाया था... वो भी एक साथ... "
अशोक: "कैसे?"
फिर मयूरी ने अशोक को अपने और रजत एवं विक्रम के साथ हुई चुदाई की सारी बात बताई बस बताया कुछ इस तरह की लगे की सब अपने आप हुआ हो और इसमें मयूरी की कोई प्लानिंग नहीं थी.
अशोक मयूरी की अपने भाइयों से चुदाई की पूरी कहानी बड़े ध्यान से सुनता है और उसको अपने बच्चों की आपसी चुदाई की कहानी सुनने में बड़ा रोमांच और आनंद महसूस होता है. पूरी बात सुनने के बाद अशोक के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहता. वो मयूरी से पूछता है:
अशोक: "तो मेरे घर में मेरे तीनो बचे मेरी नज़रों के निचे चुदाई कर रहे थे और मुझे पता भी नहीं चला?"
मयूरी: "आपको तो कुछ भी पता नहीं चलता पापा?"
अशोक: "मतलब?"
मयूरी: "आपकी नज़रो के निचे इस घर में और क्या क्या हुआ और आपको कुछ भी नहीं पता...?"
अशोक: "और क्या-क्या हुआ?"
मयूरी: "बताती हूँ... जब मैंने अपने दोनों भाइयों में अपना हुश्न रोज़ बाँट रही थी तो एक दिन मैंने सोचा की ये मैं क्यूँ कर रही हूँ?"
अशोक: "फिर?"
मयूरी: "फिर मुझे बहुत सोचने पर ये समझ आया की शायद ये मेरे उम्र और शरीर की मांग है... और आपकी और आपके इस घर-परिवार की इज्जत को बहार नीलाम नहीं कर सकती थी, इसलिए मैंने अपने घर में ही अपने लिए लंड का इंतजाम किया... और मेरे भाइयों के साथ भी शायद ऐसा ही हुआ हो... "
अशोक (बड़ी ही उत्सुकता से): "हाँ फिर?"
मयूरी: "फिर मुझे लगा की अगर ऐसा है तो फिर तो मेरे इस खूबसूरत शरीर पर आपका भी हक़ होना चाहिए और उस मायने में आपको भी ये शरीर और ये हुश्न मिलना चाहिए..."
अशोक: "अच्छा?"
मयूरी: "हाँ..."
अशोक: "फिर?"
मयूरी: "फिर मैंने ये निश्चय किया की मैं आपको आपका हक़ जरूर दूंगी अगर आप की मर्ज़ी हुई तो... "
अशोक: "अच्छा...? फिर?"
मयूरी: "और फिर मुझे लगा की अगर मैंने ऐसा किया तो माँ के साथ बड़ी नाइंसाफी हो जाएगी... "
अशोक: "कैसे?"
मयूरी: "देखो... मेरे दोनों भाइयों को मेरी चूत मिल रही थी?"
अशोक: "हाँ...?"
मयूरी: "मैं आपको अपनी चुत देने वाली थी?"
अशोक: "हाँ...?"
मयूरी: "और मुझे घर के दो लंड पहले से ही मिल रहे थे और एक और मिलने वाला था और वो लंड मेरी माँ के सुहाग का था.?"
अशोक: "हाँ...?"
मयूरी: "मतलब घर में सबको चुदाई के लिए कुछ ना कुछ नया मिलने वाला था सिवाय माँ के?"
अशोक: "फिर?"
मयूरी: "फिर मैंने सोचा की क्यूँ ना माँ के लिए भी नए लंड का बंदोबस्त किया जाये?"
अशोक: "फिर... क्या किया तुमने?"
मयूरी: "अरे... घबराओ नहीं पापा... आपकी इज्जत घर के अंदर ही है... घर के बाहर जब मैंने अपनी चूत नीलाम नहीं की तो माँ की कैसे करवा देती?"
अशोक: "मतलब?"
मयूरी: "माँ को अपने दोनों बेटों का लंड दिलवा दिया?"
अशोक: "क्या????"
मयूरी: "हाँ मेरे चोदू पापा... माँ अपने बेटों से चुदवा रही है... "
अशोक: "क्या बक रही हो?"
मयूरी: "क्यूँ? आप अपनी बेटी को चोद सकते हो तो वो अपने बेटों से नहीं चुदवा सकती?"
अशोक: "म... मतलब वो कैसे?"
मयूरी: "माँ ने तो एक बार मेरे साथ भी सेक्स किया था... लेस्बियन..."
अशोक: "मतलब त... तुम माँ-बेटी...?"
मयूरी: "हाँ पापा... "
और फिर मयूरी ने अपनी माँ और अपने बिच हुई चुदाई से लेकर उनके दोनों बेटों से चुदाई की पूरी दास्ताँ सुना दी. पूरी बात सुनने में अशोक शुरू में तो थोड़ा अजीब लगा फिर मजा आने लगा... फिर भी उसको विस्वाश नहीं हुआ और उसने पूछा:
अशोक: "मुझे तुम्हारी इन बातों पर यकीन नहीं हो रहा... "
मयूरी: "अच्छा... अगर आपको आपकी बीवी को आपके बेटों से छुड़वाते हुए दिखा दूँ तो? तो कर लोगे यकीन?"
अशोक: "हाँ... "
मयूरी: "ठीक है.. चलो फिर?"
अशोक: "कहाँ?"
मयूरी: "बहार... वो अभी भी चुदाई कर रहे हैं... "
अशोक: "मतलब?"
मयूरी: "पापा...? आपको क्या लगता है हम बाप-बेटी यहाँ आराम से चुदाई करेंगे और घर में लोग काम कर रहे होंगे. वो भी चुदाई कर रहे है इसीलिए किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता... "
अशोक: "अभी?"
मयूरी: "हाँ.. आप चलो मैं दिखाती हूँ?"
अशोक: "कपडे पहन लूँ?"
मयूरी: "जरुरत नहीं है? हम उनको बताएँगे नहीं की हम उनको देख रहे हैं..."
अशोक: "मतलब...?"
मयूरी: "मतलब हम उनको चुपके से देखेंगे....?"
अशोक: "पर मुझे ऐसे नंगे बाहर जाने में अजीब लग रहा है?"
मयूरी: "पापा...? आपने अभी अपने बेटी जी जबरदस्त चुदाई की है और कल से घर में सब लोग नंगे ही रहने वाले हैं... अब वक्त बदलने वाला है... आप शर्माना छोड़िये... चलिए बाहर... "
अशोक: "ठीक है... "
और दोनों बाप-बेटी घर में बेशर्मों की तरह नंगे ही दरवाजा खोलकर बहार निकलते हैं और मयूरी की कमरे की तरफ बढ़ते हैं. फिर उस कमरे की खिड़की के पास जाते ही अंदर का सुहाना दृश्य दिखाई देने लग जाता है. अंदर विक्रम अपनी माँ की चुत में और रजत अपनी माँ की गांड में लंड डालकर जोरदार चुदाई कर रहे होते हैं. शीतल को अपने दोनों बेटों से एकसाथ चुदवाते हुए बड़ा मजा आ रहा था. रजत ने शीतल की एक टाँग को उठाया हुआ था और विक्रम उसकी चुदाई के साथ- साथ उसकी चूचियों को जोर-जोर से मसल भी रहा था.
अशोक को अपने आँखों पर यकीन नहीं होता. वो एकटुक उनको देखता ही रह जाता है. पर थोड़ी ही देर में उसको अपने बेटों को मादरचोद बनते हुए देखकर बड़ा आनंद आने लग जाता है और वो उसका लंड खड़ा हो जाता है. मयूरी को भी ये दृश्य देखकर उसकी कामाग्नि जाग जाती है. वो वही पर खड़े अपने पिता के लंड की ओर देखती है जो किसी वृक्ष के तने की भांति तना हुआ था. वो झट से बैठ जाती है और अशोक के लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लग जाती है.
अशोक के मन में ये ख्याल आता है की वो अभी उनके कमरे में जाए और उनको रंगे हाथ पकड़ ले फिर वही पर सब के साथ जोरदार चुदाई करे. वो मयूरी से कहता है:
अशोक: "मयूरी, अंदर चलें बेटा...?"
मयूरी: "क्यूँ पापा?"
अशोक: "इनको रंगे हाथ पकड़ते हैं और फिर जोरदार चुदाई करेंगे... खुल्ले में... सबके साथ... "
मयूरी: "आज नहीं पापा... कल... यही तो मेरे जन्मदिन का तोहफा होगा... भूल गए?"
अशोक: "अच्छा, चलो फिर कमरे में... तुम्हे तो चोद लूँ जी भर के... ये सब देखकर मेरा लंड उफान मार रहा है... "
मयूरी: "अवश्य पापा... चलिए... "
और फिर अशोक मयूरी को अपनी बाँहों में उठाता है और उसको उठाकर अपने कमरे में लाकर अपने बिस्तर पर पटक देता है और अपना लंड झटाक से मयूरी की चूत में पेल देता है.
मयूरी: "आह... पापा... "
अशोक: "मेरी रंडी बेटी... ले अपने बाप का लंड... और ले... हुह.... और ले... आह... "
मयूरी: "जोर से चोदो पापा अपनी बेटी को... आह... और जोर से... "
और फिर दोनों लगभग 15 मिनट तक जोरदार चुदाई करने के बाद एक-दूसरे पर गिर जाते है और जोर-जोर से हांफने लगते है. चुदाई के बाद मयूरी बोलती है:
मयूरी: "पापा?"
अशोक: "हाँ बेटा...?"
मयूरी: "मैं आपसे चुदवाती हूँ, अपने भाइयों से भी चुदवाती हूँ और अपनी माँ के साथ लेस्बियन सेक्स भी किया है पर मैं रंडी नहीं हूँ पापा... मैं तो इस घर की लाड़ली हूँ... अगर मुझे सिर्फ अपनी चुत मरवाने का ख्याल होता तो मैं घर के बहार किसी को भी पता सकती थी. दुनिया का कोई भी इंसान मेरे हुश्न को दीदार करने के बाद मुझे चुदाई के लिए मन नहीं कर सकता था. पर मुझे लगा की अगर मुझे अपना हुश्न लुटाना ही है तो अपने घर के बाहर क्यूँ , अपने घर ले लोगों में ही बाँट देती हूँ... मैंने तो बस सारे घरवालों के बारे में सोचा पापा... "
अशोक: "अ... अरे... मैं... तो वो बस जोश-जोश में बोल गया मेरी जान... मेरा वैसा कोई मतलब नहीं था. मुझे माफ़ कर दो... तुम रंडी नहीं हो... तुम तो मेरी लाड़ली हो... और तुम्हारा इस घर के लोगों के बारे में इतना सोचना मेरे हिसाब से काफी सराहनीय है. तुम्हे बहुत बहुत धन्यवाद... नहीं तो तुम्हरा ये मखमली जिस्म मुझे भोगने और चोदने को कैसे मिलता...?"
मयूरी: "अच्छा ये सब छोडो... एक और जरुरी बात... "
अशोक: "हाँ बोलो... "
मयूरी: "घर में सबको सबकी चुदाई के बारे में नहीं पता... "
अशोक: "मतलब?"
मयूरी: "मतलब की देखो... माँ ये जानती है की आप मुझे चोद रहे हो... इसलिए वो सुकून से अपने घर में आपकी मौजूदगी में अपने बेटों से चुदवा रही है... "
अशोक: "है... ठीक है... "
मयूरी: "पर, माँ को पूरी बात नहीं पता... "
अशोक: "कौन सी बात नहीं पता शीतल को?"
मयूरी (मुस्कुराते हुए): "माँ को ये नहीं पता की मैंने अपने भाइयों से पहले से चुदवाया हुआ है... "
अशोक: "अच्छा...?"
मयूरी: "हाँ, और मेरे भोले भाइयों को तो कुछ भी नहीं पता..."
अशोक: "मतलब...?"
मयूरी: "मतलब की उनको ना ये पता है की मैंने अपनी माँ से लेस्बियन सम्बन्ध स्थापित किया है और ना ही ये की मेरे ही कहने पर आज उनकी माँ उनसे चुदवा रही है... और तो और, उनको ये भी नहीं पता की आप भी मुझे चोदते हैं... "
अशोक: "कमाल है बेटा... तुमने तो पुरे घर को अपनी मुठी में ले रखा है... "
मयूरी: "पर आपको सबके बारे में सबकुछ पता है पापा... "
अशोक: "मैं तुम्हे इसके लिए और हर चीज़ के लिए धन्यवाद देता हूँ... क्यूँ की तुम्हारी वजह से ही घर के हर सदस्य को आज चोदने और चुदाने के लिए किस्मत से बहुत ज्यादा मिल पाया है. जैसी की तुम मेरी बांहों में अभी नंगी लेती और मैं अब तुम्हारी चुत चाटूँगा... "
मयूरी: "जैसी आपकी मर्ज़ी पापा... "
और फिर थोड़ी देर तक रंगरलियां मानाने के बाद बाप-बेटी अपने कपडे पहन लेते है. फिर कुछ ही देर में शीतल भी अंदर आती है और सबको खाने के लिए बुलाती है. सब खाना खाकर सो जाते है. अब कल इस घर में जश्न होने वाला था - पुरे परिवार के बिच सामूहिक चुदाई का जश्न...!!
-- आगे पढ़िए कैसे घर में मयूरी के जन्मदिन पर कैसे की पुरे परिवार के साथ चुदाई
लेखक से:
ये मेरी जिंदगी की पहली रचना "चुड़क्कड़ परिवार" श्रृंखला की अगली कड़ी है. मैं सेक्स और चुदाई के कहानियो का बचपन से शौक़ीन रहा हूँ. विशेष रूप से रिश्तो में चुदाई की कहानियों का बड़ा प्रशंसनीय रहा हूँ. मुझे अपनी इस श्रृंखला की ये कड़ी को लिखने में बहुत वक्त लग गया, पर ये बहुत ही रोमांच से भरी हुई कहानी तैयार हुई है. मेरी पाठकों से आग्रह है की आपको ये कहानी कैसी लगी, आप अपनी राय मुझे मेरे ईमेल आईडी पर जरूर दें ताकि मैं इसकी दूसरी कड़ी भी लिख पाऊँ.
Indeed she is, she made a master plan to put everyone in her family on bed on top of her licking her pussy and melons.