Loose Wife, Troubled Life

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Exploring the secrets of new successful wife.
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शादी के अगले दिन ही वो रीति रिवाज के अनुसार अपने घर वापस चली गयी। वो वहाँ एक हफ़्ते रहने वाली थी और मैं यहाँ उसके लोटने का बेतबी से इंतज़ार कर रहा था । पहली बार सेक्स करते वक़्त मुझे डर तो लगा पर अब उसी रात तो याद कर करके मुझे बहुत मज़ा आने लगा। मन कर रहा था की फिर से कब मौक़ा मिलेगा उसे चोदने का। मैं दिन रात ब्लू फ़िल्म देखता और सीखता की लड़की को किस तरह से पेला जाए। इंटर्नेट पे लेख पढ़ता की किस तरह से ज़्यादा से ज़्यादा डर तक अपना लंड खड़ा रखे और किस तरह से लड़की की चूत को चाटा जाए, जी हाँ मैं उसे ख़ुश और क़ाबू में करने के लिए उसकी चूत तक चाटने को तैयार था। दो दिन काटने के बाद मेरे दिल में विचार आया और मैंने घर वालों से कह दिया की अब से मैं अलग दूसरे घर में रहूँगा, और जितने वो नहीं आ जाती मैं समान पहुँचा देता हूँ और घर सेट कर लूँगा। इसका कारण ये था की मैं उसके साथ बेधड़क सेक्स करना चाहता था, मैं नहि चाहता था की हमें सबके सो जाने या रात होने का इंतज़ार करना पड़े। मैं ये चाहता था की हम दोनो दिन भर नंगे रहे और एक दूसरे की टांगो में टाँगे डालकर जनवरो की तरह चुदाई करे, मैं उसे गला फाड़ फाड़ कर चिल्लवाना चाहता था।
इसके लिए मेरे मन ने ठिकाना भी था। हमारे पास एक घर पहले से ही था जो की शहर से थोड़ा सा हट कर है। बीच में सिर्फ़ हमारा घर है, आस पास हमने ख़ुद ही lawn सा बना रखा था पर जिसकी बिलकुल भी ज़रूरत नहीं थी, क्यूँकि घर के चारों ओर वैसे ही जंगल था। जब हमने ये दो मंज़िल का घर ख़रीदा था तो उस समय वहाँ पर एक हाइवे प्रोजेक्ट पास हुआ था तो हमें लगा की आस पास का इलाक़ा डेवेलोप हो जाएगा और क़ीमत भी बढ़ जाएगी। पर घर ख़रीदने के हफ़्ते भर में वो प्रोजेक्ट ही रद्द हो गया और ये घर बीच जंगल से में ऐसा का ऐसा ही रह गया। हम काफ़ी समय से इसे बेचने की तक में लगे हुए है पर कोई ग्राहक ही नहि मिला पर अब ये घर मेरे काम आएगा।
मैंने उसी दिन से, अपना सामान उस घर में भेजना चालू कर दिया। मैं अपनी नोकारनी को लेकर गया और पहले दिन में वह सारी सफ़ाई करवा दी। मेरी अल्मारी, पलंग, कुछ बर्तन मैंने अगले दिन भिजवा दिए, मैने अपना सामान और कपड़े अलमरी में सेट कर दिए। और नए गैस कनेक्शन के लिए अप्लाई कर दिया।
“सच्ची! वाउ ” निशा फोने पे ही ख़ुशी से उछल पड़ी।
“हाँ, तुम जल्दी से घर तो आओ फिर हमें अपने लिए सामान भी ख़रीदना है” मैंने उसको कहा।
“हाँ, हाँ ठीक है पर तुम अपने आप कुछ मत ले आना! ” वो बोली।
“क्यूँ मेरी पसंद पे भरोसा नहि है क्या?” मैंने बड़े ही अन्दाज़ में उससे पूछा
“अरे ऐसा कुछ नहि है। दरसल मेरे दोस्त, ऑफ़िस से वर्कर, बॉस वगेरह कुछ गिफ़्ट्स भेज रहे है तो उन्मे कुछ रोज़ मर्राह की बड़ी बड़ी चीज़ें भी है तो हमें वो नहि ख़रीदना पड़ेगा ना ” वो बोली।
“बड़ा बड़ा ऐसा क्या भेज दिया?” मैंने हैरान होकर पूछा
“जैसे की एक अवन है, TV भी है और काफ़ी सामान तो वो कह रहे है की वो अभी भेज रहे है। तुम पता दो तो मैं सीधा वही भिजवा दूँगी” उसने कहा, उसकी बोली में उतावलापन साफ़ सुनाई दे रहा था।
“इतने बड़े गिफ़्ट कान भेजता है?”, मैंने पूछा।
“अरे है कुछ रिश्तेदार, और एक दो चीज़ें बॉस की तरफ़ से भी है” उसने कहा।
“काश हमारा बॉस भी हमपे इतना महरबान होता तो मज़ा आ जाता” मैंने हँसते हुए कहा।
“क्या करे मैं काम ही इतना अच्छा करती ही की मुझे तो पुराने बॉस भी याद करते है। तुम भी दिल लगा कर काम करो तो तुम पर भी महरबान होंगे लोग” उसने इतराते हुए कहा।
“अच्छा ठीक है, पता लिखो” मैंने कहा और उसको पता लिखवा दिया।
“ठीक है। मैं अपने कपड़े और सामान भी भिजवा दूँगी। तुम चिंता मत करना मैं ख़ुद ही सेट कर लूँगी।” उसने कहा।
“ठीक है ठीक है। तुम्हें नींद नहि आती क्या?” मैंने घड़ी में समय देखा रात के ग्यारह बज रहे थे।
“कैसे आएगी बस तुम्हारे बारे में जो सोचती रहती हु” उसने कहा तो मैं मन ही मन ख़ुश हो गया।
“मुझे भी तुम्हारे बड़ी बड़ी चुचिया याद आती है।” मैंने उसको दबी आवाज़ में कहा
“रहने दो तुम भी ” उसने हँसते हुए जवाब दिया
“हालाँकि जितना मैंने सोचा था उससे ज़्यादा बड़ी है, क्या ब्रा साइज़ है तुम्हारा?” मैंने पूछा। गंदी बात करके मेरा लंड फिर से खड़ा हो रहा था। मैंने अपने लंड को फेंटते हुए उससे बातें चालू रखी।
“मेरा साइज़? डबल D है। बड़े ही मुश्किल से मिलती है मेरे साइज़ की ब्रा, और जो मिलती है बिलकुल भद्दी वाली। छोटी चुचीयो के लिए काफ़ी डिज़ाइनर और सेक्सी ब्रा आती है मार्केट में पर हमारे लिए कुछ नहि” वो मासूम से आवाज़ में बोली।
“अरे तुमको डिज़ाइनर ब्रा की क्या ज़रूरत है, तुम्हारे पास तो असली हथियार है लोगों को रिझाने का” मैंने उसको ख़ुश करने के लिए कहा।
“तुमको पसंद आए ना? बस बहुत है मेरे लिए ” उसने कहा तो मैं फिर से ख़ुश हो गया।
“तुमको तो कैसी भी ब्रा की ज़रूरत नहीं है। अपने आप ही इतने खड़े रहते है” मैंने भी उसकी चापलूसी से की।
“ऐसे ही थोड़े ही ना है। जब से रिश्ता तय हुआ है, रोज़ घंटे भर तेल से मालिश करती हु तब जाकर खड़े हुए है” उसने कहा।
“क़ोंसा तेल कैसा तेल?” मैंने पूछा। मैं उसंको ख़ुद की चुचीयो की मालिश करते हुए कल्पना करने लगा और मेरा लंड झड़ गया।
“अरे आता है, एक आयुर्वेदिक तेल” उसने बताया और कहा, “तुम भी ले लो अपने लिंग के लिए, उससे ज्यदा देर तक खड़ा रहेगा और लम्बा भी हो जाएगा”
ये सुनकर मुझे शर्मिंदगी सी हुई तो मैंने पूछा , “तुम्हें मेरा लंड छोटा लगता है, उस दिन तो कह रही थी की मैं तुम्हें मार ही डालूँगा क्या?”
“अरे फ़ोटो में थोड़ा ऐसा ही रहता है , वैसे भी मैं छोटा नहि कह रही, मैं कह रही हु की और भी बड़ा हो जाएगा” उसने बोला।
थोड़ी देर और बकवास करने के बाद मैं सो गया। अगले दिन सबसे पहले मैंने उसका बताया आयुर्वेदिक तेल मँगाया। मैं रोज़ दिन में दो बार अपने लंड की मालिश करने लगा और रोज़ नापता की कुछ फ़र्क़ पड़ा की नहि।
इसी बीच निशा का सामान भी आना शुरू हो गया। सूट्केस और डब्बो में उसके कपड़े और रोज़ मर्राह की चीज़ें मेरे नए घर पे डिलिवर होने लगी।
घर पे बड़े बड़े गिफ़्ट पैकिजेज़ भी आने लगे पर उसने सख़्त हिदायत दी थी कि उसके बिना मैं कुछ ना खोलूँ वो आकर ख़ुद ही अपना सामान सेट करेगी और गिफ़्ट भी हम एक साथ खोलेंगे।
एक रात मुझे नींद नहि आ रही थी। मैंने निशा को फोने मिलाया तो खली घंटी बजती रही पर उसने फ़ोन उठाया नहीं। मैंने लंड की तेल से मालिश की, उस दिन मुझे पहली बार लगा की हाँ तेल में कुछ असर तो है। वरना रोज़ तो मैं तेल लगाते लगाते ही अपना वीर्य छोड़ देता हु पर आज ऐसा कुछ नहीं हुआ, मालिश के बाद भी मेरा लंड सीधा खड़ा हुआ था, लम्बाई या मोटाई में कुछ फ़र्क़ नहि पड़ा।
मैंने सोचा की देखू की उसके सामान में क्या क्या है। मैंने बड़ी ही सावधानी उसके सूट्केस और डब्बे खोले ताकि मैं उनको फिर से ऐसे ही बंद कर सकू।
उसका cardborad का बॉक्स खोलते ही सबसे ऊपर उन्मे किताबें पड़े हुई थी। ज़्यादातर नॉवल और कविता की पर दो किताबें उन्मे ऐसे थी जिनको देखकर मैं बस मुस्कुरा दिया। दो किताबें एक दम गंदी कहानियो से भारी हुई थी, जिनमे तस्वीरें भी थी।
उसके सामान में उसके ख़ास शैम्पू, तेल, पर्फ़्यूम वगरह थे और एक बोतल उस तेल की जिसको वो अपनी चुचीयो पे मलती थी। उसने बीच में एक दो ऐसी क्रीम की बोतल छुपा रखी थी जो कि मुझे बस मिल ही गयी। ये थी चूत गोरा और टाइट करने की, इसका अंदाज़ा तो मैंने सुहागरात वाले दिन ही लगवा लिया था। पर एक दूसरी बोतल थी जिसने मेरे होश फ़ाख्ता कर दिए, वो anal lube की शीशी, पहले मुझे लगा की ये शायद मेरे लिए है ताकि मैं जब उसकी गांड मारू तो आराम से चढ़ जाए अंदर, पर मैंने थोड़ा गोर से देखा तो पाया की शीशी की सील टूटी हुई थी और बोतल कुछ ख़ाली भी थी।
मैंने वो डब्बा ध्यान से वैसे ही बंद कर दिया और उसका सूट्केस खोला, ख़ुशक़िस्मती से सूट्केस में कोई लॉक नहीं था। उसके कपड़े तो ऐसे थे जैसे हेरोईने फ़िल्मों में पहनती है, उसकी ड्रेस इतनी छोटी छोटी की मेरी मुट्ठी में समा जाए। एक सुनहरे रंग की ड्रेस तो ऐसी , जिसमें आगे और पीछे से लम्बा v आकर में कट था और जाँघो पे आकर ख़त्म हो जाती। उसके पास कई लांज़रे के सेट थे, जो की डोरियो से बने हुए थे, एक तो बिलकुल पारदर्शी पन्नी का बना हुआ, एक ब्रा बिलकुल चमकीली निली रंग की जो की कही से भी डबल D नहि लग रही थी। उसके कपड़ों में साड़ी और सूट तो गिनती के थे वो भी बिलकुल नए मानो ख़ास शादी के बाद के लिए ही ख़रीदे हो। कुछ उसने जींस और टॉप्स निकले वो भी जगह जगह से स्टाइलिश कट वाले। एक दो denim के निक्कर थे जो कि इतने छोटे थे की पोकेट का कपड़ा अंदर से बाहर दिखाई दे रहा था। मैंने वो सूट्केस भी सावधानी से बंद कर दिया और तीसरे वाले को खोला। मेरा दिल जानता था कि जितना मैं उसका समान देखूँगा उतना ही ज़्यादा मेरा दिमाग़ ख़राब होएगा।
तीसरे वाले सूट्केस में उसके ऑफ़िस के कपड़े थे, जिनको मैं कलर देख कर ही पहचान गया था। ज़्यादातर सफ़ेद क़मीज़ें और काली, ग्रे और निली स्कर्ट्स, मैंने उसे बंद करने ही वाला था की मेरी नज़र उसकी स्कर्ट की पोकेट पे पड़ी। जिसमें कुछ समान होने की वजह से कुछ उठी हुई सी थी। मैं वो स्कर्ट उठाई तो उसकी लम्बाई तो आधा फ़ुट भी नहि होगी। मैंने पॉकेट में हाथ डालकर समान निकल तो घबराहट के मारे मेरे हाथ से उसकी स्कर्ट नीचे गिर गयी। उसकी जेब में से मुझे इस्तेमाल किया हुआ condom मिला। मैंने उसकी और स्कर्ट देखी जिनमे से ज़्यादातर तो छोटी छोटी थी, किसी में तो एक टाँग का कपड़ा बिलकुल ग़ायब था। उसकी क़मीज़ें तो और भी ग़ज़ब, एक दम टाइट, और पारदर्शी जिसमें से कोई अंधा भी आर पार देख ले, corset वाली क़मीज़ें जिसमें से चुचिया ख़ासतोर पे और बढ़ी दिखे। कई फ़ोर्मल सफ़ेद कोर्सेट भी थे, बिना किसी शोल्डर्ज़ के, जो की बस इतने ही बड़े थे की आधी चुचि को निप्पल तक धक़ ले बस। हालाँकि और किसी जेब में कुछ नहि निकला पर इतना सब कुछ काफ़ी था मेरी नींदे उड़ाने के लिए। मेरी बीवी ना जाने किस किस से चुदाई करती फिरती है। मुझे AC में लेटे लेटे पसीने आने लगे, मुझे चाचा, मामा और बाक़ी घरवालों की बातें याद आने लगी, पर अब तो कुछ नहि हो सकता था। मैं तो किसी से शिकायत भी करने लायक नहि था, सब लोग कहंगे की जब हमने समझाया तब तो माना नहि, तब तो अपनी ही चलाए जा रहा था, और अब एक ही हफ़्ते में ये हालत हो गयी।
मैं बस ये प्रार्थना करने लगा की काश ये सब इसका पास्ट हो और अब ये सुधर जाए और सिर्फ़ मेरी होकर रहे।
अगले दिन दरवाज़े पे दस्तक हुई तब जाकर मैं जगा और तब भी मुझे तब भी पसीने आ रहे थे। रात भर सपने भी ऐसे दिखाई दे रहे थे की, हमारा तलाक़ हो गया और वक़ील मेरे से सामने मेरी बीवी से सेक्स कर रहा है। मेरे घरवाले भी वही खड़े है और मुझपर हंस रहे है।
मैंने दरवाज़ा खोला एक आदमी हाथ में एक रेजिस्टर लेकर खड़ा था और पास में एक गाड़ी भी खड़ी थी।
“निशा जी के लिए समान आया है ” उसने बिना मुझपे नज़र डाले ही बोला।
“जी यही पे उतार दो ” मैंने कहा।
उन लोगों ने दो बड़े और भारी भारी गिफ़्ट के गिब्बे मेरे घर में उतार दिए, जिनको में देख कर ही समझ गया था की इसमें split AC है। मैंने नाम पढ़ा तो उसपे लिखा था।
-From your ex boss ;), E solution still misses you dearly-
ये उसके पुराने बॉस की तरफ़ से था। मैं समझ गया की इतना बड़ा गिफ़्ट क्यूँ भेजा गया है। वैसे भी वो तो अब Quality Papers, में काम करती है। ये वाली कम्पनी छोड़ने के बाद तो उसने और भी कई जगह से जॉब बदल ली है।
मैंने जाकर उसके दूसरे गिफ़्ट पे से नाम पढ़े, बड़े बड़े गिफ़्ट तो कम्पनी के नाम से थे और छोटे छोटे गिफ़्ट पे मैंने ध्यान से देखा तो, उनपे चिट के ठीक ऊपर दूसरी चिट चिपकी हुई थी, जिनपे सिर्फ़ लड़कीयो के नाम लिखे हुए थे, बिना किसी last name या बिना किसी पते के। पता तो छोड़ो उनपे तो ये भी नहि लिखा था कि दिल्ली से है की पटना से। मै समझ गया की उसने असली नाम छुपाए हुए है पर मैं एकदम बेबस, वही खड़ा रहा मैं और कर भी क्या सकता था।
एक हफ़्ता बड़ी जल्दी कट गया, जिस दिन वो आने वाली थी उस दिन मैं जल्दी ही उठ गया। कहाँ मुझसे उसके बिना एक सेकंड भी नहीं कट रहा था और कहा अब ऐसा लग रहा था की वो काश आए ही ना।
मेरे घरवाले भी मेरे घर पे सुबह नो बजे आ गए और निशा और उसके घरवाले दस बजे तक। निशा के साथ उसके चाचा और कज़िन थे। निशा ने लाल रंग की साड़ी और ठीक सा ब्लाउस पहन रखा था। हम सब वह बैठे बातें की।
“इसमें क्या लेकर आइ हो?”मैंने निशा के हाथ में सूट्केस देखकर कहा।
“इसमें कपड़े है” उसने थोड़ा सा धीमी आवाज़ में जवाब दिया।
“तुम्हारे कपड़े ही ख़त्म नहि हो रहे है! इतने तो मैंने ज़िंदगी में ना पहने होंगे ” मैंने मज़ाक़ में बोला।
“अरे बेटा तुम्हें पता नहि है, इसके कपड़ों से ही तुम्हारा घर भर जाएगा” उसके चाचा हँसते हुए बोले।
हम सब भी हँसे। मैं भी सबके सामने झूट ही हंस रहा था, मैं किसी की जताना नहि चाहता था की मुझे मेरे फ़ैसले का अफ़सोस है।
शाम को सब अपने अपने घर चले गए। मैं दरवाज़ा लॉक करके वापस अंदर आया तो आवाज़ लगाई, “निशा! सामान सेट करो अपना, ऊपर वाले कमरे में रखा है”
“सामान तो सेट हो जाएगा, तुम अंदर आओ पहले” मेरे बेडरूम से आवाज़ आइ।
मैं अंदर गया तो निशा एकदम नंगी खड़ी थी। उसकी साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउस सब नीचे पड़ा था। उस समय में मैं सब कुछ भूल गया था, साली जैसी भी है, है तो मेरी बीवी ही, इसकी चूत का मज़ा तो लूट ही लू, कल जो होना हैं वो तो होकर ही रहेगा।
मैंने अपने कपड़े उतार कर फेंक दिए। उसने आज मुँह में नहि लिया और बेड पे लेट गयी, उसकी चूत आज भी एकदम चिकनी थी।
मैंने सीधा उसकी चूत पे थूका और अपना लंड टिका दिया। मैंने उसके बड़े बड़े मम्मो को पकड़ और एक ही झटके में लंड अंदर कर दिया। मैं उसकी बेतहाशा मरने लगा, thump thump की आवाज़ आने लगी वो ज़ोर ज़ोर से आह भरने लगी और सी सी करने लगी की जैसे जलन हो रही हो। मुझे पता था की ड्रामे कर रही है, आज ये सोच कर की ये किसी रंड़ी से ऊपर कुछ नहि है, मुझे ज़रा भी घबराहट नहि हुई। 3-4 मिनट में मैंने अपना रस उसकी चूत में छोड़ दिया। मेरे लिए इतना समय बहुत था।
निशा ने ख़ुद ही खाना ऑर्डर किया। हमने खाना खाया और सो गए।
अगला दिन इतवार का था, हमें बहुत काम था, हमें निशा का सामान सेट करना था। मैं जब जगा तो पाया की उसने तो मेरे जागने से पहले ही सामान सेट कर लिया, वो बिलकुल भी मुझे अपने कपड़े नहि दिखाना चाहती थी। अल्मारी में ऊपर ऊपर तो उसने साधारण कपड़े रखे हुए थे जो की वो शायद अपने नए सूट्केस में लाई हो। ऊपर सूट, पजामे, नोर्मल T शर्ट्स, वगरह थे। अपनी भद्दी ड्रेसें ना जाने उसने कहा छुपा दी।
तभी दरवाज़े पे दस्तक हुई, निशा ख़ुद ही जवाब देने गयी। कुछ मिनट बाद मैं आँखे मलता हुआ बाहर गया तो देखा की दो लोग एक 55” का शानदार LCD TV घर में उतार रहे है।
“ये क्या है?” मैंने पूछा।
“अरे कुछ नहि ये मेरी कम्पनी की क्लाइयंट कम्पनी की तरफ़ से शादी का गिफ़्ट है” वो बहिचक बोली।
“चलो हम गिफ़्ट्स खोलते है” मैंने कहा।
“अरे गिफ़्ट्स अभी कैसे खोलोगे। कितना काम पड़ा है” वो बोली। वो मेरे सामने गिफ़्ट्स नहि खोलना चाहती थी की पता नहि अंदर से क्या निकल जाए पर मैंने ज़ोर दिया।
“क्या काम करना है? सामान सारा सेट हो ही चुका है। बर्तन कपड़े तो करने है नहीं, क्या काम है भला?” मैंने कहा और ख़ुद ही एक गिफ़्ट का डब्बा उठा लिया।
“अच्छा ठीक है पर दो मिनट रुको ज़रा मैं पानी लेकर आती हु बड़ी प्यास लगी है” निशा ने कहा और सरपट रसोई की ओर भागी।
मैं गिफ़्ट के ढेर की ओर देख रहा था। हो सकता है की आज शादी के एक हफ़्ते के बाद ही हमारा विवाहिक जीवन तबाह हो जाए। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था और मेरे मन में एक आवाज़ थी जो कि मुझे ही इसके लिए ज़िम्मेदार ठहरा रही थी। अगर मैंने ज़िद की तो इसका परिणाम भी मुझे ही भुगतना होगा, मेरा परिवार बदनामी और परेशानी क्यों झेले।
गिफ़्टो के ढेर में सबसे छोटा पैकेट एक पन्नी में लिपटी हुई सीडी थी जिस पर कोई नाम नहीं था बस लिखा हुआ था, OUR MEMORIES TOGETHER।
मैंने निशा के आने से पहले वो सीडी छुपा ली, निशा जब पानी लेकर आयी तो मेरे माथे पे भी पसीने आए हुए थे। मैंने एक साथ दो ग्लास पानी पी गया। निशा मेरे साथ ही बैठ गयी, उसके चेहरे पे कोई शिकन नहि थी पर मुझे पता था की ये अंदर ही अंदर घबरा रही है। ऐसे में भी अगर ये इतनी शांत से, बिना बोखलाए रह सकती है तो इसका मतलब ये बहुत शातिर झूठी भी है।
हमने गिफ़्ट खोलन शुरू किया पहले बड़े बड़े पैकेट खोले जिनमे हमें दो microwave ovens, एक और LCD TV ,कई tosters, एक refridgerator डिलिव्री का कूपन जिसमें हमें बस कोल करके कोड बताना था और फ़्री फ़्रिज हमारे घर पे आ जाएगा, मिक्सी, एलेट्रोनिक कुकर और ना जाने क्या क्या नहीं था। रसोई की एक भी चीज़ नहि थी जो हमें ना मिली हो और कई तो एक से भी ज़्यादा थी। घरेलू सामान में भी AC, TV, फ़्रिज सब ही कुछ मिल गया था। मैं मन ही मन हिसाब लगाए जा रहा था और सारा सामान मिला करके क़रीब तीन लाख से भी ज़्यादा का होगा, इतना तो हमें दहेज में भी ना मिलता। ज़्यादातर सामान उसके दोस्तों और कम्पनी वालों या bosses की तरफ़ से था। रिश्तेदारों ने एक दो चीज़ें भेज दी होंगी वो भी छोटी छोटी, जैसे की toster या मिक्सी।
“अब बस करे क्या?” निशा ने पानी सटकते हुए बोला।
“अरे अभी छोटे वाले भी तो है? इनका भी काम तमाम कर लेते है वरना मैं कल से ऑफ़िस जाना शुरू कर दूँगा फिर टाइम नहि मिलेगा” मैंने ज़ोर दिया। ये सुनकर निशा ने एक ग्लास पानी और पी लिया।
हमने फिर छोटे डब्बे खोलना शुरू किया। डब्बे छोटे थे पर इसका मतलब ये नहि की सस्ते थे, उलटा छोटे डिब्बों में ज़्यादा महंगा सामान था। ज़्यादातर डब्बो पे, चिट के ऊपर चिट लगी हुई थी जिन पे लड़कीयो के नाम लिखे हुए थे, किसी में सोने की चूड़ियाँ निकल रही थी तो किसी में सोने के कान के झूमके, दो तो बड़े बड़े हार भी निकले। हर ऐसे डिब्बों पे मेरी आँखे फटी की फटी रह जाती, मैं उससे पूछता रहता की ये किसकी तरह से है तो वो तरह तरह के जवाब देती।
अरे ये मेरी दूर की मौसी की बेटी की तरफ़ से है, ये हमारी बुआ की तरफ़ से है वो बहुत अमीर है पर हम उनके यह ज़्यादा आते जाते नहि, ये वाला तो मेरी ऑफ़िस की दोस्त ने भेजा है। कहानिया बनाने से पहले वो ज़रा भी नहि झिजकती थी, ऐसा लगता था की काफ़ी लम्बे समय से प्रैक्टिस कर रही हो इसी दिन की।
मीडीयम साइज़ के डब्बो में तो ऐसी ऐसी चीज़ें निकली जिनको देखकर मुझे लगा की अब तो ये फ़सी, इसका क्या जवाब देगी ये, पर मैं ग़लत निकला।
एक डिब्बे में गुलाबी रंग का dildo निकला, ये किस नालायक ने भेज दिया, मैं थोड़े अखरे स्वर में बोला, “अरे मेरी फ़्रेंड है पुरानी एक, हम अक्सर ऐसे प्रैंक खेलते रहते है एक दूसरे पर”।
एक डिब्बे में तो एक बिलकुल ही होश उड़ा देने वाली lingerie सेट निकला, काले और पारदर्शी कपड़े से बना हुआ जगह जगह से उसमें कतरन निकली हुई। इससे पहले की वो कोई कहानी बनाती मैंने झट से नाम पढ़ लिया, ये भी उसके मोजुदा बॉस की तरह से था।
“ये क्या है? इतना inappropriate गिफ़्ट कैसे कोई अपनी सेक्रेटेरी को भेज सकता है?” मैंने कहा।
“अरे बाबा कोई बात नहीं। हमारे बॉस बड़े ही jolly nature के इंसान है। मज़ाक़ करते रहते हैं उनका कोई बुरा भी नहि मानता” उसने मुझे ऐसे समझाया की मानो डिब्बे में से पुराना सामान निकल गया हो।
इसके अलावा भी कई सेक्सी ड्रेस और night robes निकले, अनगिनत पैरों की महंगी महंगी, ऊँची हील की stylish sandals निकली। हर बार वो किसी ना किसी फ़्रेंड का नाम ले लेती या कहानी बना देती। गिफ़्टो को देख कर मेरे भी पसीने छूट रहे थे, जब जब मैं उससे कोई सवाल पूछता तो मेरे दिल में धक़ धक़ होती की क्या होगा अगर ये कोई जवाब ना दे पायी तो, ऐसे में मैं क्या करूँगा, दो तीन बार बाद तो मुझे भी उसके जवाब सुनने में मज़ा आने लगा।
मेरा फ़ोन बजा और मैं उठकर फोने सुनने लगा, मैंने आँखों के किनारों से उसको कुछ डिब्बों के नाम पढ़ते और उनको छुपाते देखा। हमने बाक़ी गिफ़्ट भी खोले और छुपाए हुए गिफ़्ट के बारे में मैंने कुछ नहि पूछा, सिर्फ़ और सिर्फ़ शांति बनाने की ख़ातिर। इस क्रिया में हमें पूरा दिन लग गया। सारे गिफ़्ट खोलने के बाद निशा ने लम्बी से सास ली और पीछे की और लेट गयी।
“अच्छा हुआ हमने गिफ़्ट्स खोल लिए वरना मैं खामखां कुछ ले आता और पता चलता की इसकी तो ज़रूरत ही नहि थी तो कितना नुक़सान हो जाता” मैंने उसको ये जताया की मेरा फ़ैसला सही था।
“हम्म” उसने आवाज़ निकली पर कुछ बोला नहीं।
“बस हमें एक सोफ़ा ही लाना पड़ेगा घर के लिए बस”, मैंने कहा।
“रहने दो। जीजा जी कह रहे थे की वो एक सोफ़ा सेट शादी पे गिफ़्ट करेंगे एक हफ़्ता इंतज़ार करलो हो सकता है की वो भी ना ख़रीदना पड़े ” उसने खड़े होते हुए कहा।
“मैं खाने में क्या ऑर्डर करूँ?” मैंने पूछा।
“ऑर्डर क्यूँ ? मैं कुछ बना देती हु, तुम बस कुछ चीज़ें ले आओ”उसने मुझसे कहा और मुझे एक लिस्ट थमा दी।
“तुम्हें खाना बनाना आता है?” मैंने हैरान होकर पूछा। ये दूसरी चीज़ थी जिसकी मुझे ज़रा भी उम्मीद नहि थी इस्स शादी से।
“मैं इतना बेहतरीन खाना बनती हु की तुम ज़िंदगी में कही ओर कुछ खाओगे ही नहीं” उसने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा। मैं भी उसके खाने का अब स्वाद चखने को आतुर था। मैं तुरंत बाहर गया और सामान और सब्ज़ी ले आया। मार्केट घर से दूर थी पर फिर भी मैं पंद्रह मिनट में वापस आ गया, घर में जहाँ जगह जगह, पन्नी, डिब्बे और सामान फैला हुआ था वो सब बस एक जगह बड़े ही तरीक़े से लगा हुआ था। रसोई की कई चीज़ें उसने उसी दिन इस्तेमाल में ले आइ।
उसकी बात शत प्रतिशत सच निकली। मुझे लगा की ठीक ठाक बना लेती होगी और अपने आप को बहुत कुछ समझती होगी पर उसका खाना बनाना तो दूर परोसने का तरीक़ा भी किसी five star होटेल के शेफ़ से काम नहि था। मुझे ये भी नहि पता चला की मैं क्या खा रहा हूँ।
“मेरी दादी कहती थी की आदमीयो के दिल का रास्ता उनके पेट से होकर जाता है, इसीलिए मैंने खाना बनाने को कभी भी हल्के में नहीं लिया ”, वो मुझे प्यार से देख कर बोली, मैं बस आँख बंद करके और बिना कुछ बोले खाए जा रहा था।
इसने आदमीयो के ख़ुश करने का कोई तरीक़ा नहि छोड़ा, मैंने मन ही मन सोचा।
और इस तरह से हमारा वैवाहिक जीवन शुरू हो गया, हम दोनो बिस्तर में रोज़ के रोज़ नंगे सोते और एक दूसरे के शरीर का सुख लेते, ऐसे में भी मुझे शर्म सी आती क्यूँकि मेरी जगह जगह से हड्डियाँ निकली हुई थी कई बार उसके लग भी जाती थी पर मुझे वो बेतहाशा मज़े देती थी, मुँह में क्या और चूत में क्या, रोज़ रात को वो अपनी चुचि और चूत पे तेल मल कर सोती ताकि अगले दिन छेद लूस ना हो जाए, या कही चुचि का कड़पन ख़त्म ना हो जाए। उसकी सीडी मेरे पास ही थी पर मैंने सोचा की इसके एक मौक़ा दिया जाए हो सकता है शादी के बाद ये ठीक हो जाए, शादी तक तो ये सब चलता है, इसीलिए मैंने उसकी सीडी को बिना देखे ही अपने पास छुपा कर रख लिया।
मैं असल में सच्चाई से भाग रहा था, मैं शरीर से पतला और कमज़ोर तो था ही, मैं दब्बू भी बहुत था। मुझे किसी का सामना करना बिलकुल अच्छा नहि लगता था, confrontration में में मैं कभी जीता ही नहि। कभी किसी से बहस भी हो जाती तो, उसकी ग़लती होने के बावजूद भी वो मुझ पर आसानी से हावी हो जाते थे, मेरे दिमाग़ में तर्क सूझने बंद हो जाते थे और बाद में मुझे सारे तर्क याद आते जिनको में दिमाग़ में दोहरा दोहरा कर torture होता रहता था।
उसी हफ़्ते मैं एक दिन ऑफ़िस से जल्दी घर आ गया तो देखा की निशा के जीजा घर पे आए हुए थे और उसके जीजा रसोई की दीवार में सामान टाँगने ले लिए छेद कर रहे थे उन्होंने मेरा निक्कर डाला हुआ था और मेरी ही बनियान। घर में एक बिलकुल नया आलीशान सुनहेरे रंग का सोफ़ा पड़ा हुआ था और साथ में मैचिंग की मेज़ और ड्रेसिंग टेबल भी। पूरा सेट ऐसा लग रहा था मानो किसी रजवाड़े के घर से आए हो।

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