नेहा का परिवार 08

Story Info
यह कहानी नेहा के किशोरावस्था से परिपक्व होने की सुनहरी दास्तान है।
8.6k words
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Part 8 of the 22 part series

Updated 06/08/2023
Created 11/03/2016
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नेहा का परिवार

लेखिका:सीमा

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CHAPTER 8

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गंगा बाबा हमारा इंतज़ार कर रहे थे. गंगा बाबा एक पहलवान के जिस्म के मालिक थे. उनका ६'१" ऊंचा शरीर अत्यंत चौड़ा और विशाल था. उनकी घनी मूंछें उनके असम सुन्दर चेहरे को और भी निखार देतीं थीं. गंगा बाबा ४२ साल के विधुर थे और अपनी अत्यंत सुंदर बेटी जानकी के साथ हमारे परिवार की विसायत के मैनेजर थे. दोनों हमारे परिवार की सारी जागीर की देखबाल करते थे. जानकी २१ साल के थोड़े भरे हुए शरीर की बेहद सुंदर स्त्री थी.

गंगा बाबा ने मुझे प्यार से गले लगा लिया.

रात का खाना और भी स्वादिष्ट था. बड़े मामा ने इटली की विंटेज लाल अंगूरी मदिरा, बरोलो, की बोतल खोली.

हम दोनों ने गंगा बाबा और जानकी दीदी के साथ खाना खाया. गंगा बाबा ने खाने के ठीक बाद सारे नौकरों को भगा दिया. जानकी दीदी ने मुझे गले लगा कर शुभरात्री की इच्छा व्यक्त की,"वैसे यदि रवि चाचा जैसे मर्द का लंड पास हो तो कोई भी रात शुभ ही होगी."

मेरी शर्म से आवाज़ बंद हो गयी,जानकी दीदी को कैसे पता चला? "दीदी आपको कैसे पता चला? क्या गंगा बाबा को भी पता है? "

"घबराओ नहीं, नेहा, पापा और रवि चाचू के बीच में कोई बात गुप्त नहीं रहती. पर घर की बात घर में ही रहेगी. रवि चाचू का लंड मैंने भी झेला है.पहली बार की चुदाई करीब साल ६-७ साल पहले थी. फिर पापा और रवि चाचू ने मिल कर मुझे सारी रात चोद। अगले दिन मैं मुश्किल से खड़ी हो पाई चलना तो बहुत दूर रहा।" जानकी दीदी ने मुझे प्यार से चूम कर आश्वासन दिया. बड़े मामा ने जानकी दीदी को भी चोदा था, इस विचार से ही मैं गरम हो गयी.

आखिर में नौ बजे तक घर में बड़े मामा और मैं फिर से अकेले थे. बड़े मामा ने स्कॉच के गिलास के साथ मुझे बाँहों में भर कर सिनेमाघर वाले कमरे में सेक्स की अश्लील चलचित्र लगाया.

"नेहा बेटा, यह सारे चलचित्र यथार्थ हैं और वास्तविक परिवारों के निजी जीवन की कहानियां हैं." बड़े मामा ने मुझे बताया.

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पहली फिल्म एक सुंदर परिवार में कौटुम्बिक व्यभिचार के बारे में थी. घर में अत्यंत सुंदर माँ और दो किशोर लम्बे तंदरुस्त बेटे थे. लड़कों की छुट्टी के दिन थे सो दोनों सुबह देर से उठे। माँ का नाम सुधा था। सुधा बड़े से रसोईघर एक सफ़ेद रंग की ढीली सी मैक्सी जैसा गाउन पहने नाश्ता तैयार कर रही थी। उसका गाउन के नीचे उसकी गुदाज़ भरी गोरी-गोरी जांघें, पिंडलियाँ और खूबसूरत छोटे-छोटे पैर किसी भी मर्द का संयम हिला सकते थे। सुधा अत्यंत सुंदर स्त्री थी। उसके दो ब्रा से मुक्त बड़े-बड़े गोल स्तन उसकी हर क्रिया पर बहुत आकर्षक तरह से हिल रहे थे। सुधा ने कई बार मुड़ कर देखा। उसे शायद अपने बेटों का देर से नीचे आना विचित्र लग रहा था।

कुछ ही देर में दो सुंदर लम्बे-तंदरुस्त किशोरावस्था के लड़के नीचे तेजी से धूम धड़का मचाते हुए रसोईघर में आये। सुधा के सुंदर मुख पर प्रसन्नता की मुस्कान छा गयी। दोनों के सुंदर चेहरों पर तब किसी मूंछ और दाड़ी आने का प्रमाण नहीं था।

सुनील और अनिल की उम्र में सिर्फ एक साल का फर्क था। दोनों सिर्फ शॉर्ट्स में थे। सनिल ने पीछे से अपनी माँ को अपनी बाँहों में भर लिया। सुधा मुस्करा के बोली, "बड़ी देर लगाई उठने में। क्या कल रात बहुत थक गए थे?"

सुनील ने अपने दोनों हाथ अपने माँ के गाउन के अंडर डाल कर उसके उभरे गोल पेट को सहलाना शूरू कर दिया, "मम्मी, हम आपसे प्यार कर के क्या कभी भी थके हैं?"

सुधा के मुंह से, अपने बेटे के हाथों से स्पर्श से एक मीठी सी सिसकारी निकल गयी। सुधा मुड़ कर अपने बेटे की बाँहों में समा गयी। सुनील छोटी उम्र में भी अपनी माँ से काफी लम्बा था। उसने अपना खुला मुंह अपनी माँ के मुस्कराते हुए मुंह पर रख दिया। सुधा की दोनों गुदाज़ भरी-भरी बाहें अपने बेटे की गर्दन के चरों तरफ कस गयी। सुनील ने अपनी जीभ अपनी माँ के मीठे मुंह में भर दी। सुधा ने भी अपनी जीभ से अपने बेटे की स्वादिष्ट जीभ भिड़ा दी। सुधा का मुंह शीघ्र अपने बेटे की मीथी लार से भर गया। सुधा ने जल्दी से उसे अमृत की तरह सटक लिया। सुनील के दोनों हाथ अपनी माँ के बड़े गुदाज़ स्थूल नितिम्बों को मसल रहे थे।

पीछे से अनिल की शिकायत आयी, "मम्मी आपका छोटा बेटा भी तो अपनी माँ को गुड-मोर्निंग कहना चाहता है।" सुनील ने नाटकीय अंदाज़ में मुंह बना कर अपने माँ को मुक्त कर दिया। सुधा तुरंत अपने छोटे बेटे की बाँहों में समां गयी। अनिल अपना मुंह बेसब्री से अपनी माँ के मुंह पर रख उसके मीथे होंठों को चूसने लगा। उसके हाथ उतनी हे बेसब्री से सुधा के चूतड़ों को रगड़ रहे थे।

सुनील ने सिसकारी भरती हुई अपनी माँ के पीछे जा कर उसका गाउन खोल दिया। सुनील ने अपने हाथ अपने भाई ओर माँ के शरीर के बीच में डाल कर अपनी माँ के दोनों उरोज़ों को अपने हाथों में भर लिया। माँ की एक और सिसकारी ने उसे और भी उत्साहित कर दिया। सुनील ने अपनी माँ की चूचियां मसलनी शुरू कर दीं। सुधा अपने छोटे बेटे की बाँहों में मचलने लगी। उसका मुंह अभी भी अपने बेटे के मुंह से चिपका हुआ था। अनिल ने सुधा का गाउन उसके कन्धों से गिर दिया। सुनील ने जल्दी से उसे अलग कर फर्श पर फेंक दिया और फिर से अपनी सिसकती माँ के उरोज़ों का मर्दन करने लगा।

सुधा को अपने दोनों बेटों के सख्त लंड आगे-पीछे चुभ रहे थे। वैसे तो दोनों अभी किशोर थे पर उनका शारीरिक विकास अपेक्षा से बहुत पहले ही बढ चला था।

"बेटा, चलो पहले नाश्ता कर लो," सुधा का शरीर अब अन्तरंग रूप से परिचित अग्नि में जल रहा था। पर माँ की ज़िम्मेदारी उसे स्त्री की वासना को दबाने के लिए बुला रही थी।

दोनों बेटों ने कुनमुना कर कहा, "मम्मी, पहले हम दोनों पहले आपका नाश्ता करेंगें, फिर ही कुछ और खायेंगें।"

सुधा जानती थी की जब उसके बेटों को माँ के शरीर की भूख लग जाती है तो कुछ भी उन्हें अपने माँ को भोगने से नहीं रोक सकता था। सुधा ने अपना शरीर अपने बेटों के बाँहों में ढीला छोड़ दिया। सुनील ने अपनी माँ की चूचियों को ज़ोरों से मसलना और गूंदना शुरू कर दिया। सुधा के मुंह से दर्द और वासनामयी सीत्कारी उबल कर रसोई में गूँज रहीं थीं।

अब तक सुधा भी कामोन्माद में डूब गयी थी। उसके दोनों बेटे बहुत आसानी से अपनी माँ की वासना की अग्नि प्रज्ज्वलित कर सकते थे। और उस सुबह भी वही हुआ। सुधा ने बेसब्री से अनिल के शॉर्ट्स को नीचे करना शुरू कर दिया। उसका मुंह अभी भी अपने बेटे के मीठे मुंह से चिपका हुआ था। अनिल ने एक हाथ से अपनी माँ की मदद कर अपने शॉर्ट्स तो नीचे कर अपनी टांगों से दूर फ़ेंक दिया। सुधा का कोमल छोटा मुलायम हाथ अपने बेटे के स्पात जैसे सख्त, रेशम जैसे चिकने लंड से भर गया। सुधा के दोनों बेटों की तब तक झांटे नहीं उगी थी। उनके विशाल लंड और मोटे बड़े विर्यकोश से भरे अंडकोष भी झांटों के बिना बिलकुल मुंह में पानी लाने जैसे साफ़ और चिकने थे। उस छोटी उम्र में भी सुधा के दोनों बेटों के लंड अमानवीय रूप से बहुत लम्बे और मोटे थे। सुधा कुछ सालों से अपने बेटों से चुदवा रही थी पर अब भी हर साल उनका लंड और भी बड़ा और मोटा हो जाता था। दोनों बेटों की राय थी की वोह सब माँ को प्यार करना और रोज़ चोदने का पुरूस्कार था।

सुधा यह सब सोच आकर अनिल के मुंह में मुस्करा दी। उसके दोनों बेटे बहुत ही आज्ञाकारी, पढाई में अच्छे और भद्र लड़के थे।

सुधा ने अपने को अनिल से मुक्त कर फर्श पर घुटनों पर बैठ गयी। तब तक सुनील भी नग्न हो गया था। सुधा ने अनिल के मोटे लंड को अपने हाथों में ले आर उसके सेज जैसे सुपाड़े को अपने मुंह में ले लय। अपनी माँ के गर्म मुंह में अपना लंड जाते ही अनिल के मुंह से सिसकारी फूट पडी, "आह मम्मी ..."

सुधा के हाथ अपने बेटे के लंड की पूरी मोटाई को पकड़ने के लिया काफी छोटे थे। कुछ देर अनिल का लंड चूस कर सुधा ने अपने बड़े बेटे का लंड अपने मुंह में ले लिया सुनील का लंड अनिल से थोडा सा बड़ा था। उसके मुलायम हाथ बारी बारी से अपने दोनों बेटों के अंडकोष को सहला रहे थे।

सुनील ने थोड़ी देर में कहा, "मम्मी, मुझे अब आपकी चूत मारनी है।"

अनिल ने कुनमुना कर पर भलेपन और प्यार से शिकायत की, 'मम्मी सुनील को ही क्यों पहले आपकी चूत मिलेगी। मैं भी तो आपकी चूत मार सकता हूँ?"

सुधा को पता था की दोनों भाइयों के एक-दूसरे के लिए प्यार की कोई सीमा नहीं थी पर वो दोनों मीठी लड़ाई करने से नहीं रुकते थे।

सुधा ने उठ कर अनिल को प्यार से चूमा और अपने माँ होने का एहसास कराया, "बड़े भाई का माँ पे पहला हक होता है। अनिल बेटा ये तो तुम्हे अच्छे से पता है।"

अनिल ने अपनी माँ के सुंदर नाक की नोक को प्यार से काट कर धीरे से 'सौरी' बोल दिया।

अनिल जल्दी से डाइनिंग टेबल पर जांघें फैला कर बैठ गया। उसका माहकाय लंड तनतना कर अपनी माँ को आकर्षित कर रहा था।

सुधा ने अपने दोनों हाथ अनिल के जांघों के दोनों तरफ डाइनिंग टेबल पर रख, झुक कर घोड़ी की तरह बन गयी।

सुनील ने अपनी माँ के गोरे विशाल रेशम से मुलायम कूल्हों को प्यार से सहलाया और फिर अपनी माँ की जांघों को चौड़ा कर फैला दिया।

सुधा ने अनिल के लंड को अपने नाजुक हाथों से सहला कर उसके सुपाड़े को चुम्बन देना शुरू कर दिया।

सुनील अपनी माँ के गुदाज़ गांड को चूमने के बाद उसके गीली घुंगराले झांटों से ढकी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा। सुधा की सिसकारी की ऊँची आवाज़ उसके बेटों के लिए जलतरंग का संगीत था। अपनी माँ की चूत रस से भरी पा कर सुनील ने अपना विशाल वृहत लंड अपनी माँ के फड़कती हुई चूत के द्वार पे लगा दिया। इसी तंग संकरी मखमली सुरंग से दोनों भाई इस दुनिया में अवतरित हुए थे। अब सुनील फिर से अपने जन्मस्थान में प्रवेश होने वाला था।

माँ और बेटे के संसर्ग से बड़ा शायद कोइ और कामुक और वर्जित संसर्ग नहीं होता।

सुनील ने अपने मोटे सुपाड़े को जोर से अपनी माँ की चूत की तंग योनि में धकेल दिया। सुधा अपने छोटे बेटे के लंड के पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से सता रही थी। उसकी चूत इतने सालों के बाद भी बेटों के लम्बे मोटे लंड लेते हुए तड़प जाती थी।

सुधा की सिसकारी ने दोनों बेटों के लंड को और भी सख्त कर दिया।

सुनील ने अपने मजबूत हाथों से अपनी माँ के कूल्हों को कस के पकड़ कर एक बेदर्द भीषण धक्का लगाया। उसका मोटा मूसल जैसा लंड एक ही धक्के में लगभग चार इंच उसकी माँ की चूत में दाखिल हो गया। सुधा दर्द से बिखल उठी, "सूनी ...ई ...ई ... आहह मर गयी बेटा।

अनिल ने अपनी सुंदर माँ का खुला मुंह अपने लंड से भर दिया। सुनील ने अपनी माँ के बिलखने की परवाह किये बिना तीन और चार भयंकर धक्कों से अपना पूरा लंड माँ की चूत में डाल दिया।

सुनील ने अपने लंड को आधा भार खींच कर बिना रुके हचक कर फिर से अपनी माँ के जननी-सुरंग में धकेल दिया। अनिल अपनी माँ के घुंघराले घने लटों को मुठी में भर कर उसका मुंह अपने मोटे गोरे चिकने लंड के उपर नीचे करने लगा। सुधा के मुंह से 'गों ..गों 'की आवाज़ निकलने लगी। अनिल बेरहमी से अपनी माँ के मुंह में ज़्यादा से ज़्यादा लंड डालने की कोशिश कर रहा था।

सुनील ने अपनी माँ की चूत को लम्बे ताकतवर धक्कों से चोदने लगा। रसोई में सुधा की घुटी-घुटी सिस्कारियां गूँज उठी। उसमे दो बेटों की घुरघुराहट की आवाज़े भी शामिल थीं। सुनील और अनिल जानते थे की उनकी माँ को उनका उसे बेदर्दी से चोदना अच्छा लगता था। सुधा की चूत अपने बेटे के लंड को व्याकुल हो कर ले रही थी। उसकी फूली विपुल गांड अपने बेटे के हर धक्के से थरथरा जाती थी। सुनील को अपनी माँ के चूतड़ों का फिरकना बहुत उत्तेजित कर देता था। वोह और भी ताकत लगा कर अपनी माँ की चूत में धक्के लगाने लगा।

सुधा अपने छोटे बेटे के लंड को जितना हो सकता था उतने कौशल से चूस रही थी। उसकी लार मुंह से निकल अनिल के लंड को नेहला रही थी।

पांच दस मिनट के बाद सुधा का सार बदन अकड़ गया। दोनों बेटे समझ गए की उनकी माँ झड़ रही थी।

सुनील और अनिल अब अपनी माँ की लम्बी चुदाई के लए तैयार थे।

सुनील ने आगे झुक कर अपनी माँ के लटके हुए विशाल उरोज़ों को मसलना शुरू कर दिया। उसके लंड की हर टक्कर उसकी माँ के सारे शरीर को हिला देती थी।

सुधा के दोनों बेटे उसका मुंह और चूत प्यार भरी निर्ममता से चोद रहे थे। सुधा तीन बार झड़ चुकी थी। उसे पता था की उसके दोनों बेटे रति-संसर्ग में निपुड़ थे। जैसे ही उन्हें लगा की वो झड़ने वाले थे उन्होंने अपनी जगह बदल ली। अब अनिल अपनी माँ की चूत को अपने साड़े-सात इंच के लंड से चोद रहा था और अनिल का आठ इंच का लंड उनकी माँ के मुंह में समाया हुआ था।

दोनों बेटों ने तीन बार अदला बदली कर एक घंटे तक अपनी माँ को चोद कई बार झाड दिया था। आखिर में स्त्री ही जीतती है। दोनों बेटों के लंड माँ के मुंह और चूत में फट पड़े। सुधा का मुंह अपने बड़े बेटे के गर्म गाढ़े वीर्य से भर गया। अनिल ने भी अपनी माँ की चूत को अपने जनक्षम पानी से भर दिया। उसका लंड सुधा के गर्भाशय से लग कर अपने वीर्य से नहला रहा था।

तीनो धीरे-धीरे अलग हुए और सुधा ने दोनों बेटों को नाश्ता परोसा सुनील ने अपनी माँ को अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और प्यार से उसे भी नाश्ता खिलाने लगा।

सुधा बार बार नाश्ते को अपने मुंह से चबा कर अपने बेटों के मुंह में डाल देती थी। सुनील और अनिल भी अपनी माँ के मुंह में कुचला चब्या हुआ खाना प्यार से डाल कर अपनी माँ को आधे चबाये हुए खाने को निगलते हुए देख कर प्रसन्न हो रहे थे।

तीनो की हंसी और खिलखिलाते हुए वार्तालाप से रसोई गूँज रही थी।

नाश्ते के बाद भी बेटों की कामाग्नी शांत नहीं हुई थी।

दोनों बेटे सुधा के स्तनों को मसल कर उसे बारी-बारी से चुम्बन देने लगे। अनिल की उंगलिया माँ की गीली चूत में दाखिल हो गयी। अनिले अपने अगुंठे से अपनी माँ के भग-शिश्न [ क्लिटोरिस ] को रगड़ और मसल रहा था। सुधा का शरीर फिर से अपने बेटों के लंड की भूख से जगमगा उठा। अनिल इस बार भोजन मेज पर चित लेट गया।

उसकी टांगें मेज के किनारे पर लटकी हुईं थी। सुधा सुनील की मदद से मेज पर चढ़ गयी और अपनी दोनों विपुल जांघों को अनिल की जांघों के दोनों तरफ रख कर उसके लोहे के समान सख्त लंड को मुश्किल से सीधा कर अपनी चूत के दहाने से लगा लिया। उसकी आँखे स्वतः अत्यंत आनंद के प्रभाव से आधी बंद हो गयीं। उसका मुंह वासना के ज्वार से थोडा सा खुला हुआ था और उसके सुंदर नथुने गहरी साँसों से फड़क रहे थे।

सुधा ने अपने भारी आकर्षक गांड को अपने बेटे के मोटे लंड के के सुपाड़े को अपनी चूत में फसा कर नीचे दबाने लगी। अनिल का मोटा लंबा लंड इंच-इंच कर उसकी माँ की गीली रसभरी चूत के अंदर गायब हो गया। सुधा ने अपने छोटे बेटे का पूरा लंड अपनी चूत में छुपा लिया। उसका सुंदर मुंह वासना भरे दर्द और आनंद के मिश्रण के प्रभाव से आधा खुला हुआ था।

सुनील के ऊंचाई अपनी माँ की गांड मारने के लियी बिलकुल ठीक थी। सुनील नीचे झुक कर माँ के गांड को चुम्बन कर अपनी जीभ से कुरेदने लगा। सुधा की आँखे कामवासना से बंद होने लगीं। उसके एक बेटे का मोटा लम्बा लंड अपने माँ की चूत में धंसा हुआ था और उसका दूसरा बेटा अपनी जीभ से अपनी माँ के गुदा-छिद्र को प्यार से कुरेद कर उसे अपने विशाल लंड के लिए तैयार कर रहा था। एक चुदासी माँ की उत्तेजना को भड़काने के लिए इससे ज़्यादा और क्या चाहिए।

सुधा की सिसकारी उसके आनंद को घोषित कर रही थी। सुनील ने अपना दानवीय लंड अपनी माँ की गुदा के छोटे से छिद्र पर लगा कर जोर से अंदर डालने की उत्सुकता से दबाने लगा। सुधा ने आने वाले दर्द के पूर्वानुमान से अपने होंठ दांतों से दबा लिए।

सुनील ने अपनी माँ के विपुल, गोल भरी कमर को कस कर पकड़ एक भीषण धक्के से अपने लंड का सुपाडा अपनी माँ के गुदा-द्वार के अंदर घुस दिया। सुधा के मुंह से न चाहते हुए भी चीख निकल पड़ी , "सुनील आह ... धीरे ... ऊउन्न्न्न्न कितना मोटा है बेटा तुम्हारा लंड। सुनील ने अपनी माँ की गोर सुकोमल कमर को चुम्बन दे कर अपने विशाल लंड को भयंकर धक्कों से अपनी माँ की गांड में अपना पूरा आठ इंच का मोटा लंड जड़ तक डाल दिया।

सुधा के चीखों ने रसोई को गूंजित कर दिया। अनिल अपनी माँ के लटके हुए कोमल विशाल चूचियों को मसल कर उसके दर्द को कम करने का प्रयास करने लगा। अनिल ने माँ के तने हुए चूचुक को मसल कर खीचने लगा। सुधा की चींखे सित्कारियों में बदल गयीं। उसके दोनों बेटे अपनी माँ को काम वासना का आनंद देने में बहुत परिपक्व हो गए थे।

सुनील और अनिल ने अपने माँ की चूत और गांड मारना प्रारंभ कर दिया।

उनके मोटे लम्बे लंड उनकी माँ की दोनों सुरंगों का प्यारभरी बेदर्दी से मर्दन कर रहे थे। सुधा ने अपने शरीर को अपने बेटों के शक्तिशाली हाथों में छोड़ दिया। अनिल अपनी मजबूत कमर को उठा अपना लंड अपनी माँ की चूत में जोर से धक्का दे कर धकेल रहा था। उसका बड़ा भाई उतनी ही ताकत से अपनी माँ की गांड मार रहा था।

सुनील का लंड शीघ्र ही अपनी माँ के मलाशय के रस से सराबोर हो कर और भी आसानी से सुधा की गांड में अंदर-बाहर हो रहा था। रसोई में सुधा की गांड की सुगंध फ़ैल गयी। उस सुगंध ने हमेशा की तरह उसके बेटों की कामोत्तेजना को और भी बढ़ा दिया। सुधा के दोनों बेटे जोर से धक्के लगा कर सिस्कारती हुई माँ को चोदने लगे।

सुधा जल्दी ही चरमावस्था के सन्निकट पहुँच गयी। अनिल ने अपनी माँ के झड़ने के स्तिथी भांप कर जोर से उसके निप्पल को मसलने लगा। सुनील ने अपना हाथ माँ के नीचे डाल कर उसका क्लिट कस कर मसला और फिर उसे अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर निर्ममता से मरोड़ने लगा। सुधा जोर से चीख मार कर झड़ गयी।

उसके दोनों बेटे बिना थके और धीरे हुए अपनी माँ की चूत और गांड को भीषण धक्कों से चोदने लगे। सुधा अपने बेटों के विशाल लंड पर अटकी सिस्कारती हुई बार-बार झड़ कर फिर से कामोन्माद के पर्वत पर चढ़ जाती थी।

सुधा जानती थी की दोनों उसे इस तरह बड़ी देर तक चोद सकते थे। आधे घंटे के बाद सुधा जब चौथी बार झड़ रही थी तो भाईयों ने माँ के छेद बदलने का इशारा किया। सुधा के मुंह के सामने उसके बड़े बेटे का लंड था जो उसकी गांड के रस से लिपा हुआ था। सुधा ने सुनील की मनोकामना समझ के उसका लंड चूस और चाट कर साफ़ कर दिया। अनिल ने बेसब्री से अपना खूंटे जैसा सख्त लंड अपनी माँ के अब गांड के ढीले और खुले छेद में दाल कर तीन जानदार धक्कों से पूरा लंड अंदर डाल दिया।

सुधा की सिसकारी अनिल के प्रयासों का इनाम थी। सुनील ने अपनी माँ के शरीर के नीचे सरक कर अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया। अनिल ने थोड़ा रुक कर अपने भाई को माँ की चूत भरने का अवसर दिया।

कुछ देर बाद दोनों बेटे एक बार फिर से अपनी माँ को दोनों छेदों को जोर से चोदने लगे। सुधा के सिस्कारियां और घुटी-घुटी चीखें उसके परमानद की घोषणा कर रहीं थीं। दोनों बेटों में अपनी माँ की प्रबल चुदाई से बिलकुल क्षीण कर दिया। सुधा इतनी बार झड़ चुकी थी की उसने गिनना ही छोड़ दिया। सुधा का आखरी रति-निष्पति इतनी तीव्र थी की उसकी चीख रसोई में गूँज उठी, "अह अह ह ह ...अब मेरी गांड और चूत में आ जाओ। अपने लंड अपनी माँ की चूत और गांड में खोल दो बेटा।"

उसके आज्ञाकारी बेटों ने सुधा की चूचियों को मसल कर अपने लंड पूरी ताकत से उसके शरीर में धक्के से अदर तक डाल कर स्खलित हो गए।

तीनो बड़ी देर तक शिथिल लिपटे हुए पड़े रहे। सुनील ने अपना लंड अपनी माँ की नर्म दहकती हुई गांड से बाहर निकाल लिया।उसने माँ का हाथ पकड़ उसे अनिल के लंड से उठ कर उतरने में मदद की।

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सुधा ने थके हुए होते भी सुनील के लंड तो चाट के साफ़ कर दिया। तीनो पसीने से तरबतर थे। सुधा ने स्नान-गृह में नहाने का निर्देश दिया। दोनों बेटों ने अपनी माँ को पेशाब करते हुए देखा। सुनील ने माँ के मीठे मूत्र को ओख में भर कर पी लिया। अनिल ने भी माँ के सुनहरे प्रसाद को प्यार से चखा। बेटों ने अपनी माँ के देवियों जैसे सुंदर शरीर को शावर में भी अकेला नहीं छोड़ा।

बेटों की अठखेलियों से तीनो फिर से वासना के समुन्द्र में गोते लगाने लगे। इस बार दोनों ने बारी बारी से माँ को दीवार से लगा कर चोदा। सुधा जब तीन बार झड़ गयी तो सुनील ने माँ को अपनी मजबूत बाँहों में उठा कर उसकी चूत को अपने लंड पर टिका कर नीचे गिरा दिया। सुधा की लम्बी घुटी चीख ने उसकी चूत में उसके बेटे के लम्बे मोटे लंडे के प्रवेश की घोषणा कर दी।

अनिल ने अपनी माँ की गांड में उतनी ही तेजी से अपना लंड डाल दिया। दोनों ने अब अपने स्वार्थ के लिए माँ को चोदा। सुधा फिर भी दो बार झड़ गयी। दोनों ने भी एक बार फिर से अपने गर्म गाढ़े वीर्य की बौछार से अपनी माँ की गांड और चूत को ठंडक प्रदान की।

तीन घंटे की चुदाई के बाद माँ और बेटे अस्थायी संतुष्टी से भर गए.

दोनों थकी लगती माँ को नहाने के टब में सुगन्धित पानी में बिठा कर तैयार हो दोस्तों के साथ खेलने के लिए निकल पड़े।

सुधा कौटुम्बिक सम्भोग के बाद थकन भरी संतुष्टी का आनंद लेते हुए टब में लेती रही। उसके सुंदर चेहरे पर मातृत्व प्रेम की मुस्कान थी जो उसे और भी सुंदर बना रही थी।

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आखिर आधे घंटे बाद सुधा टब से निकली और उसने अपना गदराया हुआ बदन मुलायम तौलिया से पौंछ कर सुखाया।

जब सुधा का ध्यान अपने शरीर को तौलिया से सुखाने पर था तब उसके ससुर चुप चाप से उसके शयनकक्ष में दाखिल हो गए। उनकी आँखें अपनी बहु के गदराये सुंदर नग्न शरीर को देख कर चमक उठीं। सुधा के ससुर हौले-हौले चलते हुए अपनी बहु के पीछे तक पहुँच गए।

उसके ससुर छः फुट ऊँचे भारीभरकम पुरुष थे। उन्होंने सुधा के नग्न शरीर को अपनी बाँहों में भर लिया।

सुधा अपने आप को अपने ससुर की शक्तिशाली बुझायों में पा कर खिलखिला कर हंस दी, "बाबूजी, मेरे ससुर जी ने चोरों की तरह कबसे अपनी बहु को पकड़ना शुरू कर दिया?"

सुधा प्यार से कुनमुनाई और पलट कर अपने ससुर की मजबूत बाँहों में समा गयी।

सुधा के ससुर ने उसे प्यार से कई बार चूम कर उसे खुशखबरी दी, "सुधा बेटा तुम्हारे पापा आज आज शाम को आने वाले हैं." सुधा खुशी से खिलखिला उठी.

उसके ससुर खुश बहु के थिरकते हुए भारी विशाल उरोजों को सहलाने लगे। उनका भीमकाय लंड पतलून के भीतर कसा हुआ सख्त होने लगा। अपनी सुंदर बहु का नग्न गुदाज़ शरीर देख कर हमेशा उनका लंड कुछ ही क्षड़ों में फूल जाता था।

"सुधा बेटी, मेरे पोतों ने अपनी माँ को चोद कर थका तो नहीं दिया?" सुधा के ससुर ने अपनी बहु के होंठों को प्यार से चूसते हुए कहा।

"बाबूजी आपके पोतों ने अपने माँ की चूत और गांड सुबह बुरी तरह से तो मारी है ।" सुधा ने भी अपने मर्दाने ससुर के होंठों को वापस चूसा।

"इसका मतलब है कि मेरी थकी बहु अपने ससुर से चुदवाने के लिए अभी तैयार नहीं है," सुधा के ससुर ने उसके एक निप्पल की जोर से चुटकी भर दी।

"ऊईई .. बाबूजी," सुधा की दर्द भरे आनंद से सिसकारी निकल गयी, "आपकी बहु क्या कभी भी आपसे चुदवाने के लिए तैयार नहीं मिली?" सुधा का मुलायम हाथ ने अपने ससुर के विशाल लंड को उनकी पतलून के ऊपर से सहलाया।

ससुर के चेहरे पे अपनी बहु के प्यार को देख कर खुशी की मुस्कान छा गयी। उनका दूसरा हाथ अपनी बहु की घुंघराली झांटों से ढकी छोट पर चला गया। उनकी उँगलियों ने उन्हें अपनी बहु की गीली तैयार चूत की सूचना दे दी। उन्होंने अपनी नंगी बहु को अपनी बाँहों में उठा कर पलंग पर पटक दिया।

सुधा के ससुर बच्ची की तरह खिलखिला के हंसती हुई बहु को एकटक देखते हुए अपने कपडे बेसब्री से उतारने लगे।

सुधा की साँसे तेज़ तेज़ चलने लगीं। उसकी आँखे अपने ससुर के वृहत लंड को कच्छे से बाहर आने के लिए उत्सुक थीं। शीघ्र ही उसके ससुर का भीमकाय दस इंच लम्बा बोतल के जैसा मोटा लोहे की तरह सख्त लंड उनके घने बालों से भरे मर्दाने बदन की शान बड़ा रहा था।