नेहा का परिवार 14

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"नेहा बिटिया आपके साथ तो सम्भोग करने का मौका तो खुदाई तोहफे जैसा होगा। पर क्या आप खुद चाहतीं है या सिर्फ सुशी भाभी के कहने पर ... " चाचू ने खत बिस्तर पर रखते धीरे से पूछा। मैंने उनके लफ़्ज़ों को बीच में ही टोक कर अपने होंठों से इनके होंठ बंद कर दिए। कुछ देर में ही मेरी जीभ उनके होंठों को लिए खोलने के लिए बेचैन हो गयी, "चाचू क्या हमारे होंठ आपके सवाल का जवाब नहीं दे रहें हैं?" मैंने अपने होंठों को चाचू सटा कर फुसफुआया।

अचानक जैसे चाचू के सारे संशय, हिचक दूर हो गये. उन्होंने मुझे बाँहों में कर मेरे होंठों को चूसने लगे। उनकी जीभ लपक मेरे मुंह में में घुस गयी।

अकबर चाचू के जीभ मेरे मुंह के हर कोने और मोड़ का स्वाद चखने लगी। चाचू के गीले चुम्बन में इतना कामुकता का भावावेश था कि मेरी साँसे तेज़ हो गयी। मैंने भी चाचू की जीभ से अपनी जीभ बीड़ा दी। चाचू के हाथ मेरे गुदाज़ लगे। मेरे मुंह में उनका मीठा थूक भर गया और मैंने उसे सटक कर अपनी मीठी लार से उनका मुंह भर दिया। मेरी चूत में खुलबुली मचलने लगी। मुझे लगा कि यदि मैंने चाचू थीम किया तो मेरा खुद का सयंत्रण ख़त्म हो जायेगा।

अचानक चाचू ने लपक कर मेरी ब्रा को ऊपर कर मेरे गड्कते उरोज़ों को मुक्त कर दिया। जब तक मैं कुछ बोल पति उन्होंने एक को अपने बड़े मज़बूत हाथ से मसलने के साथ साथ दुसरे के चुचूक को अपने गीले गर्म मुंह में ले कर चूसने लगे। मेरी हालत बाद से बदतर हो चली। मेरी चूत में रति रास की गंगा बहने लगी।

"चाचू अभी नहीं। नीचे जीजू और शानू कहने पर हमारा इन्तिज़ार कर रहें होंगें। कहने के बाद मैं आपके कमरे में आ जाऊँगी। साडी रात मसलना आप मुझे। बिलकुल उफ़ नहीं करूंगी। जो मन चाहे आप वो कीजियेगा मेरे साथ। देखिएगा मैं एक कदम भी पीछे हटूँ तो।" मैंने चाचू के बालों में उँगलियाँ फिराते हुए उन्हें मनाया।

"नेहा बेटा तुम और शानू तो जुड़वां बहनों की तरह हो। शानू तुम्हे अकेला नहीं छोड़ेगी। यही थोड़ा सा मौका है।" आकबर चाचू की आदिम भूख देख कर मेरा मन भी हुआ की सब भूल कर उनकी क्षुदा मिटा दूँ। पर मुझे पूरे तरतीब का ख्याल भी तो रखना था।

कुछ सोच कर मैं बोली ,"चाचू , अब नहीं, शानू मेरे से चिपकी रहेगी। जीजू ने उसकी सील तोड़ दी है। आज रात को उसे जीजू से सारी रात चुदवाने के ख्याल के अलावा कोई और ख्याल नहीं आयेगा दिमाग में।"

चाचू थोड़ा सा झिझके फिर खुल कर हंस दिए , "आखिर नन्ही साली आ ही गयी अपने जीजू के नीचे। "

" चाचू आप नहाइयेगा नहीं, मुझे सुगंध बहुत अच्छी लग रही है। रात में जब आप मुझे चोद कर पस्त कर देंगे तब इकट्ठे नहाएंगे।" मैंने चाचू को प्यार से चुम कर कहा।

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११४

*****

मैंने शानू और जीजू को चाचू के साथ हुए वार्तालाप का ब्यौरा खुलासे रूप में दे दिया। शानू पहले तो शर्म से लाल हो गयी पर फिर कहीं से हिम्मत जुटा कर चौड़ी हो कर बोली ,"अब्बू की खुशी के लिए मैं शर्म और लिहाज को थोकड़ मार सकती हूँ। "

खाने की मेज़ पर मैं चाचू के नज़दीक बैठी और जीजू और शानू दूसरी दुसरे के साथ बैठे थे। मेरा एक हाथ मेज़पोश के नीचे चाचू की जांघ को सहला रहा था।

जैसा हमने सोचा था उसी तरह बातचीत धीरे धीरे थोड़ी सी अश्लीलता की ओर बाद चली। मैंने मौका देख कर चाचू से पूछा ,"चाचू आप बताइये क्या जीजू साली को कुछ छिपाने की ज़रुरत होती है? "

"अरे नहीं नेहा बिटिया। जीजू यदि साली को अकेला छोड़ दे तो बड़े शर्म के बात है। आदिल बेटा क्या तुम्हारी सालियां तुम्हारे काबू में नहीं हैं? " चाचू ने हंस कर आदिल को छेड़ा।

"मामू, अब तो काबू में हैं। नेहा का कमल है यह सब। "आदिल भैया ने भी हंस कर तीर फेंका।

"चाचू आज शानू जीजू ने टांका भिड़ा ही लिया। पता नहीं इस नादाँ लड़की ने जीजू को इतना इन्तिज़ार क्यों करवाया?"मैंने चहक कर कहा।

"चलो देर आयद दुरुस्त आयद। साली को यदि जीजू नहीं पकड़ेगा तो और कौन पकड़ेगा?" अपनी बेटी के शर्म से लाल मुंह को चिड़ा कर और भी लाल कर दिया।

"शानू तूने जीजू से आज रात का इंतिज़ाम तय कर लिया। " मैंने मौका देख कर वार्तालाप को और भी सम्भोग संसर्ग के नज़दीक ले आयी।

"नेहा आप हमारे और जीजू के बीच में जो भी इंतिज़ाम है उसे हमारे ऊपर छोड़ दें ," शानू शर्म से लाल हुई पड़ी थी।

चाचू खुल कर हँसे ,"भाई शानू बेटा की बात सुन कर हमें अपनी साली के याद आ गयी। छोटी साली शहाना भी शानू के जैसी थी। बड़ी मुश्किल और देर से हाथ आयी।"

"अब्बू पूरी बात बताइये न। "शानू ने भी मौका को दोनों हाथों में लपक लिया।

"अरे बेटा पुरानी बातें हैं। तुम्हे ऊबना नहीं चाहता। यदि तुम्हे ऊबने से नींद आ गयी तो आदिल मुझे माफ़ नहीं करेगा। " चाचू अब बिना झिझक शानू को चिड़ा रहे थे।

"अब्बू आप जीजू को नहीं जानते। वो जागने की कोई परवाह नहीं करेंगे। उनके पास जगाने के लिए बड़ा भारी औज़ार है। "शानू ने झट से कह तो दिया फिर शर्म से लाल हो गयी।

"चाचू बताइएं ना आपने पहले पहल कब शहाना मौसी को फंसाया?" मैंने भी शानू के साथ कांटा फेंका।

"चलो बता ही देंते हैं।" चाचू ने कहा।

"मामू खुल कर पूरा ब्यौरा दीजियगा। कोई सम्पादित या सेंसर्ड कहानी नहीं सुननी हमें। क्यों शानू, नेहा?" मैं तो जीजू की कला पर निहाल हो गयी।

"अब्बू मैं बच्ची नहीं हूँ। आप खुल कहानी सुनाएँ। मुझे अब सब समझ में आता है। " शानू ने भी चाचू को उकसाया।

"अरे भाई अब बच्चे सब जानते हैं तो क्या छुपाना? " चाचू ने बिलकुल ज़ाहिर नहीं होने दिया कि मेरा लंड को उनके पजामे के ऊपर से सहला रहा था।

*****

११५

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अकबर चाचू और शन्नो मौसी

***

हमारी और शानू की मम्मी का निकाह जब हुआ था तो वो उन्नीस साल की थीं। जैसा उस वक्त का दस्तूर था जब बेटी ससुराल रवाना होती तो छोटा भाई या बहन कुछ दिनों के लिए बेटी के साथ रवाना होती थी। शानू की मम्मी, रज्जो, का कोई छोटा भाई तो था नहीं सो उसकी सबसे छोटी बहन उनके साथ हमारे घर आयी। शहाना बड़ी चुलबुली लड़की थी। उसे प्यार सब शन्नो कहते थे। शन्नो और रज्जो के बीच में मझली बहन ईशा थी जो शन्नो से दो साल बड़ी थी। शन्नो सातवीं में थी और ईशा नवीं में दाखिल हो गयी थी।

उस वक्त शायद शन्नो शानू से दो एक साल छोटी होगी। पर उसका शरीर पकने लगा था। मैंने जब भी उस से छेड़ छाड़ की तो वो मटक कर नाराज़गी दीख देती। निकाह के बाद खाने हुआ और जब सोने का इंतिज़ाम शुरू हुआ तो मैंने शन्नो को अकेला पा कर उसे अपनी बाँहों में भींच लिया। जैस मैने बताया अभी उसे किशोरावस्था का पहला साल लगने में दो तीन महीने थे पर उसकी चूचियाँ बाहर निकल आईं थीं।

मैंने शन्नो को बाँहों में भींच कर उसके कुर्ती के ऊपर से उसके चूचियाँ मसलने लगा। शन्नो मचल कर दूर फटक गयी।

"जीजू मैं सब सालियों की तरह नहीं हूँ। जो जब जीजू चाहें उसे मसल दें। आप अपने हाथ रज्जो आपा के लिए हे रखें। " शन्नो ने हाथ नचा कर मुझे फटकारने लगी।

"साली साहिबा, जीजू तुम्हे नहीं मसलेगें तो तुम्हारी इज़्ज़त का क्या होगा। जब तुम्हारी सहेलियां पूछेंगीं कि जीजू से चुदी अर... जीजू ने दरवाज़ा खोला या नहीं तो तब क्या बोलोगी। " मैंने मुस्कुरा कर शन्नो को चिढ़ाया, "चलो अब अच्छी साली की तरह आ जाओ और फिर देखना जीजू कितना मज़ा देते हैं तुम्हें?"

शन्नो ने फिर से मटक कर कहा , "मज़ा आप आपा के लिए रख लें। हमें नहीं चाहिये आपका मज़ा। हमें पता हैं की मज़े के लिया आप हमारे साथ क्या करना चाहते हैं। "

तभी शानू के नानी जान, हमारी सासू और ईशा आ गयीं।

"क्या जीजू आप कहाँ छुपे है। हम सब तरफ आपको ढूंढ रहे हैं। आप बारात के साथ कल चले जायेंगे। फिर पता नहीं कब मिलेंगे।

वैसे भी तो आपा के ऊपर आप कल तक हमला नहीं बोल सकते तो हमने सोचा कि जीजू की हालत खराब न हो जाये चल कर उनका ख्याल रखतें है। और आप देखो न जाने कहाँ गायब हो गए। " ईशा के किशोरावस्था के दो सालों ने गज़ब का बदलाव आ गया था।

ईशा के उरोज़ उभर कर फट पड़ने जैसे लगने लगे थे। उसके नितिम्बों में औरताना भराव आ गया था। तीनों बेटियां अपनी मम्मी जैसी ख़ूबसूरत गदराये शरीर के मलिकाएँ थीं।

सासू अम्मी ने सर हिला कर और खुल कर मुस्करा कर अपने मझली बेटी ईशा की बात का साथ दिया।

" बड़ी साली साहिबा, हम तो अपनी छोटी साली को पटाने के कोशिश कर रहे थे पर ये हाथ ही नहीं रखने देतीं। ," मैंने शन्नो की शिकायत उसकी बड़ी बहन से लगाई। पर मैं शानू की नानीजान को असलियत में शिकायत लगा रहा था।

"अरे नासमझ जीजू को हाथ नहीं लगाने देगी तो क्या करेगी , किस मर्द से पटेगी तू? जीजू की खुशी में तो साली की खुशी है। देख ईशा और जीजू कितने फंसे हुए हैं। " सासू अम्मी ने हाथ हिला कर शन्नो को उलहना दिया। मैंने ईशा को खींच कर बांहों में भर लिया था। उसके चूचियाँ मेरे दोनों हाथों में भर गयी। मैंने उन्हें कस कर मसला तो ईशा कराह उठी।

"दामाद बेटा अभी तो ईशा है यहाँ तुम्हारा ख्याल रखने के लिए। यह तुनक मिजाज़ तो तुम्हारे साथ ही जाएगी। पकड़ कर रगड़ देना इसे अपने घर में। कहाँ जाएगी बच कर?"सासु माँ ने बनावटी गुस्सा दिखाया , "देख तो शन्नो ईशा को कैसा मज़ा दे रहें है दामाद बेटा? यदि दामाद बेटा चाहें तो मैं भी उन्हें सब कुछ दे दूँ। " सासु माँ ने मुस्कुरा कर कहा।

"अम्मी जान आप जैसी खूबरूरत सासू तो खुदा की नियामत है किसी भी दामाद के लिए। मैं तो आपका शुक्र गुज़र हूँ की आपने अपनी हूर जैसी ख़ूबसूरत बेटी मुझे दे दी है। "

"बेटा मैंने तो एक बेटी नहीं खोयी पर एक बेटा पा लिया है ,"सासु माँ थोड़ी जज़्बाती हो गयीं। उन्होंने मेरी बला उतारते हुए मुझे चूमा और बोलीं, "बेटा मुझे बड़े काम हैं। मैं तुम्हारी सालियां तुम्हारे लिए तुम्हे छोड़ रहीं हूँ। "

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११६

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अकबर चाचू और शन्नो मौसी

***

सासु माँ के जाते ही मैंने ईशा को फिर से दबा लिया। उसके दोनों चुचों को मसलते हुए शन्नो को चिढ़ाया, "देखो छोटी साली साहिबा अपनी मझली आपा को, कितना मज़ा आ रहा है इन्हे । "

"तो आप दीजिये न उसे और मज़ा। मेरे पीछे क्यों पड़े है फिर। "शन्नो ने मटक कर कहा।

मैंने ईशा के कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिए। उसने हमेशा कि तरह अंगिया या चोली नहीं पहनी थी।

"जीजू उस खाली कमरे में चलिए, उसमे पलंग भी है । यहाँ भरोसा नहीं कब कोई ना कोई आ जाये ," मैंने ईशा के दोनों उरोज़ों को मसलते हुए शन्नो को नज़रअंदाज़ कर दिया। ईशा को धकेलते हुए मैं उसे कमरे में ले गया। देखा तो शन्नो भी धीरे धीरे अंदर आ रही थी।

"मैं सिर्फ अम्मी की वजह से यहाँ हुँ. उन्होंने हम दोनों को जीजू का साथ देने के लिए बोला था। लेकिन मुझसे कोई और उम्मीद नहीं रखियेगा?" शन्नो ने लचक कर हाथ मटकाए।

तब तक ईशा के हाथ मेरे सिल्क के पजामे के ऊपर से मेरे लंड को सहला रहे थे।

मैंने बेसब्री से ईशा का कुरता खींच कर उतार दिया। उसका सलवार के ऊपर का नंगा गोरा बदन बिजली में चमक रहा था।

"जीजू अभी तो मुझ से ही काम चला लीजिये। जब आप रज्जो अप्पा को देंखेंगे तो बेहोश हो जायेंगें।" ईशा ने सिसकारते हुए कहा, "अरे नासमझ निगोड़ी कम से कम थोड़ा दिमाग से काम ले और दरवाज़ा तो अच्छे बंद कर दे। " ईशा ने छोटी बहन को लताड़ा।

शन्नो ने जल्दी से दरवाज़ा बंद दिया।

मैंने ईशा को पलंग पर खींच अपनी गोद में बिठा कर उसके मीठे होंठों को चूसते हुए उसके कुंवारे उरोज़ों को मसल मसल कर लाल करने लगा। मैंने ईशा कई बार कपड़ों के ऊपर से मसला और रगड़ा था * पर उसे पूरा नंगा करने का कभी मौका नहीं मिला था।

उसके गोल गोल गदराये नितिम्ब मेरे लंड को रगड़ रहे थे।

शन्नो एक टक इस सम्भोग को देख रही थी।

अब मुझसे इन्तिज़ार नहीं हो पा रहा था। मैंने ईशा की सलवार खोल कर अपना हाथ उसकी जांघों के बीच में घुसा दिया। उसकी नन्ही से जाँघिया पूरी भीगी हुई थी , "हाय अल्लाह! जीजू देखो न मेरी चूत कितनी गीली है। यह सारा दिन आपके बारे में सोच सोच कर कितना पानी छोड़ चुकी है। "

ईशा ने होंठ मेरे होंठो से चिपका कर मेरी जीभ से अपनी जीभ भिड़ा दी। उसने अपने आप अपनी जांघे चौड़ा कर मेरे हाथ को पूरी इजाज़त दे दी अपनी चूत को सहलाने की।

ईशा के चूत पर उस वक्त सिर्फ कुछ रेशमी रोयें ही उग पाये थे। मैंने उसके गुलाब के कलियों जैसे फांकों को खोल कर उसकी कुंवारी चूत के दरवाज़े को सहलाते हुए उसकी चूत की घुंडी को रगड़ते हुए मैंने ईशा के होंठो को दांतों से काटने लगा।

"जीजू , अब नहीं रहा जाता। जीजू अब चोद दीजिये हमें। " ईशा कुनमुना कर सिसकारते हुए बोली।

मैंने जल्दी से अपने कपड़े उतार कर दूर किये।

"अल्लाह, जीजू आपका घोड़े जैसा है। यह तो हमारी चूत फाड़ देगा ," ईशा बुदबुदाई।

"दर्द तो होना ही है ईशा रानी। बताइये चुदवाना है की नहीं? "

मैंने बोलते ईशा की सलवार को एक झटके से उतार कर दूर फैंक दी। उसकी नहीं सी जाँघिया उसके चूत के रस से लबालब गीली थी।

मैंने ईशा की जांघो को फैला कर उनके बीच में घुटनों पर बैठ गया।

मैंने अपने लंड के मोटे सुपाड़े को उसकी कुंवारी चूत ले रगड़ते हुए ईशा से पूछते हुए कहा, "सासु माँ ने कुछ समझाया या नहीं?"

"जीजू हाँ मम्मी ने जब रज्जो आपा को समझाया की पहली चुदाई कैसे दर्दीली होती है तो मैं भी वहां थी। मुझे पता है की पहली चुदाई में दर्द तो होना ही है। पर उन्होंने औसतन लंड का नाप बताया था उस नाप से से तो आपका लंड मोटा है। लगभग दढाई गुना या तिगना लम्बा और मोटा है। ऐसा लंड तो मैंने सिर्फ घोड़े के नीचे देखा है। " ईशा कसमसा रही थी। उसके चूतड़ खुदबखुद ऊपर मेरे लंड की तरफ हिल रहे थे।

"तो साली साहिबा मैं आपको चोदूँ या नहीं, " मैंने बेददृ से नन्ही कमसिन ईशा को चिढ़ाया। मुझे मालूम था की उस तक ईशा का बदन वासना से गरम हो गया था। उसका मेरे लंड के लम्बे मोटे होने के डर की झिझक उसके गर्मी से हार मान लेगी।

"जीजू आप चोदिये। अल्लाह रहमत करेगा। चूत फटनी है तो फटेगी ही ," ईशा की चूत से एक रस की धार बह रही थी।

मैंने सुपाड़े को ईशा की कुंवारी कमसिन चूत की तंग सुरंग के मुहाने में फंसा कर अपने पूरे वज़न से उसके ऊपर लेट गया। मैंने होंठों को अपने होंठों से दबा कर एक ज़बरदस्त धक्का लगाया। मेरा लंड सरसरा कर उसकी चूत में घुस गया। ईशा का बदन कांप उठा।

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११७

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अकबर चाचू और शन्नो मौसी

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ईशा की चीख़ यदि मैंने अपने मुंह से नहीं दबाई होती तो सारे दालान में गूँज जाती। मैंने ईशा के बिलबिलाने की परवाह नहीं करते हुए एक के बाद एक तूफानी धक्के लगाते हुए अपना सारा लंड उसकी कुंवारी चूत में जड़ तक ठूंस दिया।

मैंने ईशा के चूचियाँ मसली और उसके सुबकते मुंह को अपने मुंह से दबाये रखा। थोड़ी देर उसे आराम देने के बाद मैंने अपना लंड आधा बाहर निकला और फिर से ईशा की चूत में ठूंस दिया।। ईशा की चूत से उसकी कुंवारी चूत के पहली बार लंड से खुलने की वजह से फट गयी । ईशा के कुंवारेपन के खात्मे की फतह लगा उसकी चूत से बहती लाल धार बिस्तर पर फ़ैल कर सफ़ेद चादर को लाल कर उसके औरत बनने का रंग फैला रही थी ।

ईशा के कंवारी चूत से निकले खून ने मेरे लंड को चिकना कर दिया । मैंने सुपाड़े तक लंड को बाहर निकाल दो तूफानी धक्कों से जड़ तक उसकी चूत में फिर से डाल दिया।

ईशा का पूरा बदन कांप रहा था। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। उसकी सुब्काइयां मेरे मुंह के अंदर ताल बजा रहीं थीं। मैंने अब उसकी चूत मारनी शुरू कर दी।

एक धक्के के बाद एक मैं आधा या पूरा लंड निकला कर ईशा की चूत में पूरी ताकत से ठूंस रहा था। करीब दस बारह मिनटों के बाद ईशा की सुब्काइयां और घुटी घुटी चीखें सिस्कारियों में बदल गयीं। अब उसकी आँखों में आंसुओं के अलावा एक औरताना चमक थी। उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन पे डाल कर मुझसे कस कर लिपट गयी।

"जीजू ... आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ... उउउन्न्न्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह आअरर्र्र्र्र ... ज्ज्जीईई जूऊऊऊऊओ ...," ईशा की सिस्कारियां मेरे लंड को और भी सख्त और बेताब बना रहीं थी।

मेरा लंड अब सटासट ईशा की चूत मार रहा था। ईशा ने अचानक हल्की सी चीख मार कर मुझसे और भी ताकत से लिपट गयी, "जीजूऊऊ मैं झड़ गयी। अल्लाह कितना लम्बा मोटा है आपका लंड। चोदिये मुझे जीजूऊऊओ ... उउन्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह ... आअन्न्न्न्ग्घ्ह्ह्ह ... ,"ईशा की सिस्कारियां शुरू हुईं तो बंद ही नहीं हुई।

मैंने उसकी चूत के चूडी के रफ़्तार और भी तेज़ कर दी। मेरा लंड अब उसकी कुंवारी चूत में रेलगाड़ी के इंजिन तरह पूरे बाहर आ जा रहा था। मैंने लगभग घंटे भर ईशा की कुंवारी चूत बेदर्दी और हचक कर मारी । ईशा न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। उसकी उम्र ही क्या थी। जब ईशा आखिरी बार भरभरा के झड़ी तो कामुकता की त्तेजना से बेहोश हो गयी । मेरा लंड उस की चूत में उबल उठा। मैंने ईशा की कमसिन चूत को अपने गर्म वीर्य से भर दिया।

जब मैंने ईशा की चूत से अपना लंड बाहर निकला तो मेरे वीर्य, ईशा की चूत के रस उसकी कुंवारी चूत के फटने का खून भी बहने लगा। शन्नो की आँखे फटी हुई थी। उसने हिचकिचाते हुए पूछा , "जीजू ईशा, आप ठीक तो हैं ना?"

"शन्नो घबराओ नहीं। जब कुंवारी लड़की की हचक के लम्बी चुदाई हो और वो कई बार झड़ जाये तो कभी कभी उस बेहोशी तारी हो जाती है ।

जैसे मुझे सही साबित करने के लिए जैसे ईशा ने सही वक्त चुना। उसने अपनी आँखे फड़फड़ाईं और मुझसे लिपट गयी।

"मेरे जीजू। मेरे अच्छे जीजू। कितना मज़ा दिया आपने। अम्मी ने बताया था की दर्द के बाद कितना मज़ा आता है पर मुझे नहीं पता था की इतना मज़ा आएगा। जीजू जब मैं रज्जो आपा को आपके लंड के बारे में बताऊँगी तो वो बेसब्री से आपसे चुदने का इन्तिज़ार करेंगी।" ईशा की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था।

" जीजू आप मुझे और चोदेंगे?" ईशा ने बचपन के भोलेपन से पूछा।

'साली जी इस लंड को देखिये और फिर पूछिए यह सवाल ,"मैंने उसका हाथ अपने फिर से तन्नाये लंड के ऊपर रख दिया।

मैंने ईशा को बिस्तर पर धकेल कर एक बार फिर से उसकी चूत में अपना लंड जड़ तक ठूंस कर उसकी चूत लगा।

इस बार चीखें सिर्फ कुछ धक्कों के बाद ही सिस्कारियों में बदल गयीं।

मैंने उसे एक और लम्बी चुदाई से कई बार झाड़ा। जब मैं दूसरी बार उसके चूत में झड़ा तो उसने मुझे चूम चूम कर मेरा सारा से गीला कर दिया।

उस रात मैंने ईशा की चूत दो बार और मारी। जब उसने लड़खड़ाते हुए कपड़े पहने तो मैंने उसे चूम कर कहा, "ईशा रानी अगली बार आपकी गांड का ताला खोलेंगे। "

"अल्लाह आपके फौलादी घोड़े के लंड ने मेरी चूत का यह हाल कर दिया है तो मेरी गांड की तो तौबा ही बोल जाएगी।" ईशा ने ऊपर से तो ना नुकर की पर उसकी आँखे कुछ और ही कह रहीं थीं।

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११८

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अकबर चाचू और शन्नो मौसी

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अगले दिन जब ईशा टाँगे फैला कर अजीब से चल रही थी तो सासु और रज्जो दोनों मेरी ओर देख कर मुस्कुरायीं।

"दामाद बेटा कैसी रही ईशा के साथ बातचीत? " सासु माँ बड़ी ही हसमुख थीं।

"अम्मी ईशा के साथ बातचीत बहुत हे रसीली थी। आखिर बेटियां किसकी हैं?"मैंने सासु को चूम लिया। उन्होंने मेरी बालाएं उतारीं।

"मैंने रज्जो को समझा दिया है। वो शन्नो को या तो मना लेगी नहीं तो पकड़ के दबा देना अपने नीचे। एक बार खाने के बाद कभी भी मना नहीं करेगी। " मैंने सासु अम्मी का हाथ दबा कर उनके अहसान के लिए शुक्रिया अदा किया।

वापसी में लिमोज़ीन में रज्जो, शन्नो और मैं थे। बीच में काला शीशा था। मैंने रज्जो के चूचियों को मसलना शुरू कर दिया।

"हाय अल्लाह, कुछ तो सबर कीजिये। घर पहुँच कर आप मुझे छोड़ थोड़े ही देंगे। वैसे भी कल रात ईशा के साथ सारी रात चुदाई की थी आपने। " रज्जो ने मुझे चूमते हुए कहा। उसका एक हाथ मेरे लंड को निकाह के चूड़ीदार पजामी के ऊपर से सहला रहा था।

"रज्जो रानी तुम्हरी मझली बहन का तो जवाब ही नहीं है। उसकी रसीली कुंवारी चूत मारके के लगा की जन्नत में पहुँच गया । अब तो मेरा दिमाग तुम्हारी चूत की चाहत से बेचैन है। " मैंने बेगम के बड़े बड़े बड़े भारी उरोज़ों को उसके सिल्क के निकाह के कुर्ते के ऊपर से मसला।

"आखिर बेटी तो अम्मी की है।"रज्जो ने शन्नो की तरफ देख कर कहा , "सुना शन्नो तूने जीजू को बिलकुल मना कर दिया मस्ती करने से?"रज्जो ने सिसकारते हुए कहा। मेरी उँगलियाँ उसकी चूत को कपड़ों की कई परतों के ऊपर से रगड़ रहीं थीं।

"आपा मुझे नहीं मस्ती करवानी अभी। मैं तो इन्तिज़ार करूंगी और। आप और ईशा करिये मस्ती जीजू के साथ," नन्ही शन्नो बिलकुल भी मान के नहीं दे रही थी।

"आप फ़िक्र ना करें यदि शन्नो खुद नहीं मानी तो उसे पकड़ के ज़बरदस्ती रगड़ दीजियेगा। आपको अम्मी के खुली छूट है ,"रज्जो ने सिसकते हुए अपनी सबसे छोटी बहन को घूर कर देखा। शन्नो ने जीभ निकल कर चिढ़ाया।

*

घर पर हमारा सुहागरात का कमरा फूलों से सजा हुआ था। रज्जो के साथ पहली चुदाई मुझे कभी भी नहीं भूलेगी। उस रात हम दोनों ने सारी रात दनादन चुदाई की।

दुसरे दिन हम हनीमून के लिए गोवा गये। जैसा तय था शन्नो हमारे साथ चली। हमारे ' हनीमून सुइट' के साथ शन्नो का कमरा था। पर रज्जो ने ईशा को अपने सुइट में हे रखा। आखिर उस सुईट में तीन कमरे थे।

पहली रात रज्जो ने मेरा लंड चूसते हुए शन्नो दिखाया कि लंड कैसे चूसा जाता है।

शन्नो ने आखिर में झिझकते हुए मेरा लंड अपने नन्हे हाथों में थाम लिया। रज्जो ने उसे बहला फुसला कर मना लिया और शन्नो ने मेरा लंड अपने हाथो से अपनी आपा की चूत में डालने को तैयार हो गयी।

रज्जो ने धीरे धीरे उसके कपड़े उतरवा दिए। फिर जब मैं घोड़ी बना कर शानू की अम्मी को चोद रहा को खींच कर रज्जो ने अपनी नाबालिग अल्पव्यस्क कमसिन नन्ही बहन शन्नो अपने सामने लिटा लिया और उसकी अविकसित नन्ही चूत को चूसने चाटने लगी। अब कमरे में दो लड़कियों की सिस्कारियां गूंजने लगीं।

शन्नो को पहली बार झड़ने के मज़े का अहसास हुआ।

शन्नो एक ही रात में बिना शर्म के मेरे लंड से खेलने लगी। मैंने जब रज्जो की गांड का उद्घाटन किया तो शन्नो ने मेरे साथ अपनी बड़ी बहन की गांड मन लगा कर चूसी।

जब रज्जो कुंवारी गांड मरवाते हुए चीखी चिल्लाई और बिलबिला कर लंड निकलने की गुहार मचा रही थी तो शन्नो इस बार ईशा की चुदाई के जैसे घबराई नहीं। बल्कि वो रज्जो को चूमने लगी और उसके चूचियों को मसलने लगी।

आखिर रज्जो भी गांड के दर्द कम होने के बाद हचक कर अपनी गांड चुदवाने लगी।

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११९

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अकबर चाचू और शन्नो मौसी

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मैंने रज्जो की गांड मारने के बाद अपने लंड को शन्नो के मुंह में ठूंस दिया। मुझे एतबार ही नहीं हुआ शन्नो में कितना बदलाव आ गया बिना ज़ोर ज़बरदस्ती किये। उस दिन रज्जो ने उसे मेरे लंड को चूसने के लिए मना लिया। अब हम दोनों को पता था कि किला फतह होने में देर नहीं है।

हमने उस दिन शन्नो को खूब खरीदारी कराई। हमने खाने के जगह भी उसकी पसंद पर छोड़ दी थी।

उस रात शन्नो खुद ही अपने कपडे उतार कर हमारे बिस्तर में चली आयी।

मैंने और रज्जो ने उसकी चूचियों और चूत को चूस कर उसे बहुत गरम किया पर झड़ने नहीं दिया। बेचारी तड़प तड़प कर झड़ने के लिए बेताब हो गयी।

"शन्नो यदि झड़ना है तो जीजू के लंड चुदवा ले ,"रज्जो ने उसकी उगती चूचियों की घुंडियों को मसलते हुए कहा।

मैं उसकी चूत की घुंडी को मसल रहा था।

आखिर में शन्नो ने वासना की आग में जलते हुए हामी भर ली। मैंने इशारा किया और रज्जो ने अपने भारी जांघे शन्नो के सर के दोनों ओर रख केर उसके मुंह को अपनी चूत से दबा लिया , "मेरी छुटकी बहन यदि मेरे खाविंद के लंड से चुदवाओगी तो कम से कम मेरी चूत तो चाट लो। "

मैंने सही मौका देख कर शन्नो की चूत के ऊपर धावा बोल दिया। बेचारी के किशोरावस्था लगने में अभी कुछ महीनों के देरी थी। पर उसके कमसिन गरम चूत के गर्माहट मेरे लंड को जला रही थी।

मेरा लंड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही उसकी कुंवारी चूत में दाखिल हुआ तो बिलबिला उठी शन्नो दर्द से। पर रज्जो ने उसे दबा कर मुझसे कहा ," रुक क्यों गए आप। बिना रुके ठोक दीजिये पूरा लंड इसकी चूत में। दर्द तो होना ही है। जितनी जल्दी सारे दर्द का अहसास इसे हो जाये उतना अच्छा। "