पृकृति का रहस्य - एक प्राचीन कथा

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A deep love story of Krishnavati and Lasha.
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ये कहानी शुरू होती है लगभग छह हजार साल पहले, उस दौर में लोग छोटे छोटे कबीले में रहते थे| उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था| जीवित रहना और सुरक्षित रहना लेकिन उनके दिमाग में ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था वो ये तो उनकी प्रकृति में ही समाहित था| डर उनके अन्दर सबसे बड़ा बल था उन्हें जीवत रहने के लिए समय पे समय पे नए उपकरण खोजने का संकेत देता रहता था वो जैसे ही किसी जानवर को देखते उनकी चेतना तुरंत आने वाले संकट की तयारी का सन्देश देती| कोई नही जानता था आखिर ऐसा क्यूँ होता है, यहाँ तक की क्यूँ शब्द भी उनके लिए अजनबी था वो मिल बांटकर शिकार करते और प्रेम से रहते ना कोई रंग का भेद, ना ही कोई जाति या धर्म| सब कुछ अपने आप में परिपूर्ण था| अभी रिश्ते नाते जैसी पहिचान विकसित नही हुई थी बस पहिचान थी तो सिर्फ इतनी की कौन किस कबीले का है| कबीले में कई लोग रहते थे बच्चे, बूढ़े , युवक, और युवतियाँ| कबीले की मुखिया एक महिला होती थी जोकि सबसे समझदार, तेज, मजबूत, शिकार करने में निपुण होती थी| कबीले में बच्चों को सिर्फ अपनी माँ का पता होता था बाप कोई भी हो सकता था, उसका अपना भाई भी| कोई भी किसी के साथ भी मथुन करता था और मैथुन आसानी से मिलने के कारण बहुत ही कम अवस्था से शुरू कर देते थे नए नए तरुण और तरुणियों में तो इतना उत्साह रहता था की दिन में चार बार तक मैथुन कर लेते थे| और तरुणियाँ बहुत जल्दी माँ बन जाती थी

इस कहानी के कबीले की मुखिया है जामवती जोकि करीब 26 वर्ष की मजबूत शरीर की महिला है जिसके अभी सिर्फ 7 बच्चे है 4 लड़के और 3 लड़कियां| कबीला कुल मिलाकर अभी 60 लोगों का निवास है जिनमें बच्चे भी शामिल है कबीले के सभी लोग जामवती को अम्मा बुलाते है जामवती से पहले इस कबीले की मुखिया उसकी ही माँ की ज्येष्ठ पुत्री कृष्णावती थी जोकि अब 40 बरस की सबसे सबसे सुन्दर महिला है जवानी के दिनों में कबीले सभी मर्द मैथुन करने के लिए उत्सुक रहते थे कृष्णावती अब शिकार पे नही जाती वो कबीले के बच्चों की देखभाल करती है बच्चों में जामवती का ज्येष्ठ पुत्र लशा, कृष्णावती को बहुत प्यारा है वो उसके कोमल अधरों को देख देख बहुत खुश होती है शिकार पे जाने योग्य होने के बाबजूद उसकी शिकार में कोई रूचि नही है जबकि लशा से छोटे तरुण जामवती के साथ शिकार पे जाने लगे थे जामवती लशा के इस स्वाभाव की वजह से बिलकुल पसंद नही करती और ना ही कबीले के और लोग लशा को पसंद करते|

लशा का व्यक्तित्व एक शिकारी पुरुष के बिलकुल विपरीत है कबीले में तेज शिकारी पुरुष बहुत सराहनीय है इससे कबीले को भोजन और सुरक्षा मिलती है हर पुरुष को शिकार में अपने जोहर दिखाने में बड़ी ख़ुशी मिलती है| पर लशा तो किसी और ही दुनिया में खोया रहता है| ना तो वो किसी से ज्यादा बात करता है और ना ही उसे इसकी परवाह है कि उसे कोई पसंद नहीं करता

उसके इस व्यवहार की वजह से अब तक किसी भी तरुणी या स्त्री ने उसके साथ मैथुन नहीं किया है और ना ही लशा, किसी की भी तरफ आकर्षित हुआ है|

आज जामवती अपनी पूरी टोली के साथ शिकार पे निकली है-

जामवती -- "आज का मौसम सघन है ठंडी हवाएं और हलके कोहरे का मिले जुला भाव है बारिश होने की आशंका भी लग रही है पता नहीं अगले कितने दिन बारिश चले| कोई बडे से शिकार की आवश्यकता है पता नहीं कितने दिन शिकार अनुकूल मौसम ना मिले|

समूह का सबसे मजबूत युवक कृष्णावती का पुत्र भद्रा(21 वर्ष) आगे आता है अपनी तेज आँखों से जामवती के दहिने और निहारता हुआ शी शी मुंह पे ऊँगली रखके इशारा करता है, "अम्मा उधर देख कोई भेड़िया जान पड़ता है" जब सब सुनिश्चित कर लेते है यही हमारा शिकार है सब हमले की तयारी में जुट जाते है

जामवती -- "आज का शिकार बहुत बड़ा लग रहा है हमारे 15 दिनों का भोजन", चेहरे पे मुस्कान के भाव लाते हुए|

भद्रा -- अम्मा इस शिकार में तो हमे बहुत मेहनत लगेगी

जामवती -- मेहनत तो लगेगी ही तू कभी कृष्णावती के साथ शिकार पे नही गया? उसके अन्दर बहुत उर्जा और स्फूर्ति थी जब वो मुखिया थी तो मैंने उसने ने मिलके ऐसे ही एक तंदुरुस्त भेड़िया का शिकार किया था वो भी अकेले| जबकि हमारे साथ तो 14 जन है| इसकी प्रशंसा में कबीले के मर्दों हम दोनों से कई दिनों तक प्रेम किया था

भद्रा एक रस्सी से जामवती के स्तन बंधते हुए(ताकि दौड़ना ज्यादा सुगम हो)

भद्रा -- अपने समूह को 3 3 के उपसमूह में बाँट देता है और चारो दिशाओं में अग्रसर एक एक उपसमूह को अग्रसर होने का आदेश देता है और खुद जामवती के पीछे हो लेता है

भद्रा जामवती के पीछे चिपक के खड़ा होता है जामवती शिकार पे आक्रमण करने की तरकीब सोचती है

जामवती आगे की ओर झुक के खड़ी होती है भद्रा की नजर के उसके उठे हुए नितम्ब पे पड़ती है भद्रा का लिंग मैथुन के विचार से तन जाता है और उसका मन शिकार से हटकर मैथुन करने को करता है वो ज्यादातर तरुणीयों से मैथुन किया करता था पर पहली बार उसके अन्दर इतनी तीव्र इच्छा थी कि वो जामवती से मैथुन करे

अचानक चारो दिशाओं में छिपे सभी जन झाड़ी के पीछे से निकलकर भेड़िये पे हमला कर देते है जामवती भेड़िया के मुंह पे जोर से पेड़ की मजबूत पिंडी मारती है भेड़िया दर्द से भन्ना जाता है अब सब भेड़िया पे चढ़ जाते है और नुकीले डंडे से उसका पूरा शरीर घायल कर देते है भेड़िया वहीं ढेर होक पसर जाता है

इस पूरी घटना के दौरान भद्रा हरकत में नही आ पाया था उसका लिंग पूरी तरीके से तना था जामवती उसकी तरफ देखती है और सब कुछ समझ जाती है भेड़िया के मरने के बाद वो लोग एक पेड़ की पिंडी में भेड़िया के पैर बांध देते है और सभी लेटकर थकने के कारण हांफने लगते है

भद्रा अभी भी अपने चेहरे पे अपराध भाव लिए खड़ा था जामवती उसे अपने पास बुलाती है और उसके लिंग को हाँथ में लेके हसने लगती है और पूछती है , "क्या हुआ? कह रहे थे बड़ी मेहनत लगेगी शिकार में और फिर भी कोई मदद नही की?

भद्रा मासूम सा चेहरा बनाते हुए में आपको देख के बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गया था

जामवती -- तो तू मेरे साथ मैथुन करना चाहता है?

भद्रा -- हांमी भरता है

जामवती -- हंसती हंसती है

भद्रा कोई जवाब नही देता है| जामवती के पास आकर उसके स्तनों को रस्सी से आजाद करता हुआ दबाने लगता है| जामवती भी कसमसा जाती है| भद्रा अपनी दो ऊँगली जामवती की योनी में डाल देता है जामवती के मुंह से आह आह की घुटी हुयी आवाज निकलने लगती है उनके और साथी ये सुनके हंस पड़ते है

जामवती के स्तन तन जाते है जामवती सम्भोग के लिए पूर्णता तैयार थी वो उस जगल में ज्यादा देर नही रुक सकते थे किसी भी वक्त भेडियों का झुण्ड आ सकता था

जामवती अपनी बलिष्ट बाजुओं से भद्रा को अपने नीचे लिटाकर एक अजीब स्फूर्ति के साथ सीने पे चढ़ जाती है और बेतहाशा चूमने लगती है उसके दिमाग में जैसे ही भेडियों के आने का डर आता है वो उठ खड़ी होती है| भद्रा को भी खड़ा होना पड़ता है जामवती उसके लिंग को एक बार टटोलती है भद्रा भी उसकी योनी का मुआयना कर लेता है|

जामवती -- दोनों हाथों से भद्रा का चेहरा पकडती है और अपने होठो को उसके होठों के पास लती हुयी आँखों में आँखों में डालके कहती है प्रिय! यहाँ से चलते है मौसम ठंडा हो रहा है

हलकी हलकी बौछार गिरना शुरू हो गयी थी है "कबीले पहुँचते ही हम लोग सम्भोग रत हो जायेंगे" जामवती ने कहा

अब तो वो बस जल्द से कबीला पहुँचना चाहता वो ख़ुशी से खिल जाता है| भद्रा इस वक्त इतनी उर्जा से भरा है कि वो कुछ भी कर गुजर सकता है

जामवती सबको चलने का आदेश देती है सभी जन पिंडी उठाते है भेड़िया नीचे लटक जाता है पिंडी को कन्धों पे व्यवस्थित के चलने लगते है सबसे आगे जामवती ढाल बनके चल चल रही थी आज उसकी चाल में मादकता

बारिश की हल्कि हल्कि फुवारों ने उसके चेहरे की धूल को पोंछकर खिला दिया था उसके खुले बाल नितम्बों के निचे तक थे उसकी चाल से बीच बीच में उसकी वक्राकर कमर खुल जा रही थी बड़ा अनूठा दृश्य था|

समूह के लोग बारिश में गीत गाते हुए ठुमक ठुमक कर चल रहे थे एक तो शिकार की खुशी थी दूसरा मौसम भी बहुत ही सुहावना था

उधर कबीले में एक बच्चा रोने लगता हैं कृष्णावती एक हड्डी का टुकड़ा बच्चे को देके चुपाने लगती है बच्चा हड्डी को चूसते चूसते शांत हो जाता है जानवरों के डर की वजह से कोई भी अकेले जंगल नही जाता था जबकि लशा आज बहुत खुश था की मुखिया शिकार पे गयी है वो बुज्रुगों को चकमा देके कबीले के बाहर निकल जाता है आजाद पंक्षी की तरह जीने के लिए कबीले के बाहर भाग जाता है उसे किसी भी चीज से कोई भय थी पूर्ण रूप से अभय| वो खूंखार जानवरों के साथ भी बिना भय के क्रीडा करता| जानवर और पक्षी तो मानो हमेशा लशा की राह देखते रहते "कब वो मनुष्य आए और हमारे साथ खेले" कबीले के अन्य लोगों के लिए तो यह अनुमान लगाना भी असंभव था कि इन्सान और जानवरों के बीच ऐसे भी सम्बन्ध हो सकते है

लशा के साथ सबसे ज्यादा कृष्णावती वक्त बिताती थी कृष्णावती को लशा से सच्चा प्रेम था लशा भी तो, था ही ऐसा सबसे अलग सबसे अनूठा| उसके चेहरे का तेज बृह्म स्वरुप था कृष्णावती बचपन से ही जानती थी लशा अनूठे स्वाभाव का है लशा को वो एक पल के लिए भी दूर नही होने देना चाहती थी पर लशा तो जंगल में भटकना पसंद था जैसे उसे किसीकी तलाश है कृष्णावती अभी भी लशा में उसके बालस्वरूप को देखती थी

लशा कभी भी कृष्णावती की नजरों से बच नही सकता था आज भी जब लशा कबीले के बाहर निकला था कृष्णावती की तेज निगाहों ने तुरंत पकड़ लिया था की अब लशा बाहर जाने वाला है लेकिन कृष्णावती ने उसे टोका नही क्युकि वो जानती थी की लशा को बाहर घूम के ख़ुशी मिलती है

जब कबीले के लोगों को पता चलता की लशा बाहर गया था तो उसपे बहुत डांट पड़ती कृष्णावती उसे कबीले के अन्य लोगों से तो बचा लेती पर उसकी माँ जामवती के सामने कुछ नही बोल पाती आखिर माँ तो माँ होती उसे दूसरों से कहीं ज्यादा अपने बच्चे की फिकर होती है चाहे वो कितना ही बुरा हो

ऐसा भी नही है कि कृष्णावती को लशा की फिकर नही होती बस वो तो लशा को खुश देखना चाहती है| लशा के इतनी बार बाहर घूम के सुरक्षित आ जाने से उसे विश्वास हो चला था कि इतने मासूम तरुण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा

लशा को किसी भी चीज से कोई मोह नही है और ना ही कोई चीज उसे सुख या दुःख का अहसास कराती है वो तो सिर्फ प्रकृति के रहस्य को खोजने में सारी उर्जा लगाता इसके विपरीत कबीले के अन्य लोग मांस खाते और सुरा पीके नशे में मस्त रहकर नृत्य करते और फिर कबीले की किसी स्त्री के साथ सम्भोग करके सो जाते उनके प्रितिदिन का यही क्रम था

कबीले के सारे पुरुष और स्त्री प्रतिदिन सम्भोग करते लेकिन कृष्णावती को कोई भी पुरुष नही भाता वो किसी के साथ सम्भोग नही करती वो तो रात दिन लशा के ख्यालों में डूबी रहती उसका लशा के प्रति आकर्षण मातृत्व व ईश्वरीय प्रेम का मिश्रित रूप है

कृष्णावती बच्चों के बीच बैठी थी आज लशा समूह के वापस आने से पहले ही कबीले में आ गया था कृष्णावती यह देख के बच्चों की जिम्मेदारी एक बूढी औरत को सोंप के लशा को लेके अन्दर कुठरिया पहुँचती है अँधेरा होने की वजह से लकड़ियाँ जलाती है उजाले में लशा के मुख को चूम के अपने छाती से चिपका लेती है और बालों में ऊँगली फिराती है जैसे ही उसका हाँथ लशा के सिर से जुड़ता है कृष्णावती को ठंडक का अहसास होता है लशा पूरा भीगा रखा था उसका लिंग ठण्ड से सिकुड़ा हुआ था

कृष्णावती -- तू तो बहुत ठंडा रखा है, आखिर बाहर क्यूँ जाता है?

लशा -- मुझे प्रकति का रहस्य जानना है? हम कौन है? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? मरने के बाद क्या होता है?

कृष्णावती -- अपने आंशु पोंछती हुयी बसकर, और लशा के माथे को चूम लेती है| "खुद पे भी ध्यान दिया कर कितना ठंडा रखा है सवालों के जवाब जानने के लिए पहली जरुरत तो ये है कि जिन्दा रहना", "खा मेरी कसम आगे से खुद पे ध्यान देगा"

कृष्णावती अपने हाँथ आग से गरम करके उसके माथे व चेहरे पे काफी देर तक रगडती है ;फिर धीरे धीरे शरीर के निचले भाग पे जाती है और उसके लिंग पे गरम हाँथ रगडती है इससे उसका लिंग तनने सा लगता है|

कृष्णावती मुस्कुराकर, "अब शरीर में गर्मी आ रही है और जोर जोर से खिलखिलाने लगती है" लशा के लिए ये पहला अनुभव था जब उसका लिंग खड़ा हुआ| कृष्णावती बैठके उसके सर को अपनी गोद में रखने लगती है लशा का मुंह कृष्णावती के स्तनों के बिलकुल करीब था और उसका लिंग पूरी तीव्रता के साथ आसमान की तरफ था लशा के सूची में एक और रहस्य जुड़ गया था जो उसके लिये समझना जरुरी था

लशा ने अपना सर उठाया और उसका मुंह कृष्णावती के स्तनों से लग गया

कृष्णावती लेटकर, अपने ऊपर आने का इशारा करती है और लशा भी उसके ऊपर लेट जाता है लशा के दिमाग में अजीब सी बैचैनी थी आज की इस घटना की वजह से| हालाँकि उससे उम्र में छोटे काफी पहले से सम्भोग करने लगे थे लशा अब तक पृकृति के सबसे प्रभावशाली आकर्षण से अपरिचित था

कृष्णावती लशा के चेहरे को अपने स्तनों पे रख लेती है और उसके बालों में ऊँगली फिराने लगती है लशा का लिंग अब तक बैठा था कृष्णावती के स्पर्श के जादू से फिर खड़ा होने लगा

कृष्णावती भी कई सालों से किसी मर्द से सम्बन्ध नही बनायीं थी वो भी उत्तेजित होने लगी थी कृष्णावती लशा के चेहरे को उठा के अपने चेहरे के सामने लाती है और अपने स्तनों की तरफ नजर डालके पूछती है पीना है लशा भी अपनी पलके निचे झुकाकर हामी भरता है कृष्णावती उसके होंठों की छोटी सी चुम्मी लेकर और स्तन की घुंडी लशा के मुंह में प्रवेश करा देती है लशा के दिमाग में अचानक से मानो एक लकीर गुजरती है और काँप जाता है बचपन की मिलीजुली यादों के साथ जोर जोर से स्तनपान करने लगता है

तब तक कुठरिया में एक बुढिया आती है और पूछती है तुम लोगों को भूख लगी है? लशा मुंह उठाकर बुढिया के स्तनों की और देखता है उसके स्तन पूरे तरीके से सूख चुके थे

लशा फिर से कृष्णावती के स्तन चूसने लगता है कृष्णावती बुढिया को जवाब देती है हाँ अम्मा! भूख लगी है|

बुढिया रक्त और मांस का सूप एक कटोरेनुमा खोपड़ी में दे जाती है

कृष्णावती -- उठो प्रिय कुछ खा लो

लशा -- मुझे नही खाना किसी की हत्या का भोजन

कृष्णावती -- तो क्या खायेगा? भूखा रहेगा?

लशा -- हाँ

कृष्णावती -- खा लो प्रिय ये तो प्रकृति का नियम है सभी जीव किसी तरीके से पेट भरते है सबके लिए कुछ ना कुछ भोजन है इससे हम लोग बच नहीं सकते है

लशा -- एक तरीका है! " आज में जब जंगल गया था तो बन्दर कुछ खा रहे थे मैंने भी खाया बड़ा स्वादिष्ट था और हाँ मांस नही था"

कृष्णावती मन में सोचकर हंसती है कितना अजीब है कुछ दिन पहले तक ये यही मांस खाता था अब देखो कैसी बाते कर रहा है

कृष्णावती -- लेकिन अभी तो खा क्या कल तक भूखा ही रहेगा? अगर आज समूह शिकार के साथ आया तो 10 दिन तक तू बाहर नही निकल पायेगा

लशा -- जिद करते हुए, नहींहीं.. में नही खाऊंगा

कृष्णावती -- समझ गयी ये आदर्शवादी तरुण ऐसे नही मानेगा उसने कहा चाल ठीक है मत खा| लेकिन उसे चिंता भी थी की ये कैसे भूखा रहेगा उसने एक तरकीब सोची और मुस्कराने लगी

कृष्णावती लशा को अपने पास खींच लेती है और अपने गले से लगा के प्रेम करती है फिर उसके मुंह को अपने चेहरे के पास लाके चूम लेती है लशा को बहुत अच्छा लगता है

फिर वो उसे अपने गले से लगाकर उसका मुख अपने पीठ से सता लेती है और वो जल्दी से खोपड़ी का कटोरा उठा के मुंह में मांस का सूप भरकर कटोरा रख देती है लशा इससे अनभिज्ञ था अब कृष्णावती लशा अपने होंठों के पास लाती है लशा को होंठ खोलने का इशारा करके पूरा सूप उसके मुंह में उलटकर उसके होंठ जकड लेती है लशा खुद को छुड़ाने की कोशिश करता है पर बलशाली कृष्णावती के आगे उसका बल नाकाम रहता है और फिर लशा को भूख भी लगी थी वो पूरा गटक जाता है

कृष्णावती -- और पिओगे

लशा -- थोडा गुस्से का भाव चेहरे पे लाता हुआ नहीं लेकिन उसका मन कर रहा था कि कृष्णावती थोडा जोर डाले तो वो खा ले

कृष्णावती -- लशा के चेहरे के भाव पड लेती है और बनाबटी ढंग से, "अब नहीं पिएगा "

लशा -- अब थोड़े कम प्रतिरोध के साथ नहीं "उसके चेहरे पे मुस्कान थी"

कृष्णावती फिर से अपने मुंह में भरती है और उसके पास अपने होंठ ले जाती हैं लशा अबकी बार खुद पहल करके सारा जूस पी जाता है इस तरह से दोनों मिलके पूरा सूप ख़तम करते है

कृष्णावती लशा के पूरे चेहरे को चाट के साफ़ करती है और दोनों फिर से लेट जाते है कृष्णावती अपनी दोनों बाहें फैलाकर लशा को अपने अघोष में ले लेती है

दोनों के दिमाग बिलकुल शून्य हो जाते है| ध्यान और प्रेम के मेल से दोनों लोक परलोक में ईश्वरीय प्रेम का लुप्त उठा रहे होते है जिसकी कोई सीमा नही

भद्रा और जामवती अपने समूह के साथ कबीले की ओर बढ़ रहे थे समूह की एक महिला बोलती है जामवती हम लोग थक गये है थोड़ा आराम कर लें?

जामवती सबको आदेश देती है कि भेड़िये को नीचे रखकर आराम कर लो सब वैसा ही करते है जामवती बारिश से भीगी अपनी लटाओ को बार बार अपने चेहरे से हटा थी सुहावने मौसम से उसका शरीर रोमांचित हो गया था आज भद्रा से सम्भोग की कल्पना से उसके स्तन तन चुके थे सम्भोग के आवाहन से उसका पेट गदगद हो रहा था उसकी योनी में खुजला रही थी

भद्रा जामवती के पास आता है और उसके कानों के नीचे हाथ लेजाकर चेहरा उठाता है जामवती उसकी आँखों में देखते हुये अपने होंठ उसके होंठों से मिला देती और दोनों भीसड चुम्बन में जुट जाते है भद्रा हाँथ भी व्यस्त थे एक हाँथ जामवती के नितम्ब को मसलने में जबकि दूसरा हाँथ उसके भारी भरकम सौंदर्य से परिपूर्ण स्तनों का आकार माप रहा था भद्रा की आंखे जामवती से सम्भोग की स्वीकृति मांगती है जामवती भी भद्रा से मिलन के लिए उत्साहित थी पर कबीले के नियम उसको आगे बढ़ने से रोक रहे थे कबीले में मान्यता थी की सूर्य देवता के छिपने से पहले का सम्भोग अपसगुन होता है इससे उनपे संकट आ सकता है

जामवती भद्रा को अलग करके एक जीव की उपस्थिति के बारे में कहती है भद्रा के अन्दर एक नयी स्फूर्ति थी वो तुरंत घोड़े के बच्चे पे झपट पड़ता है बच्चा अपने पूरे वेग से दौड़ पड़ता है भद्रा भी अपनी नुकीली लाठी लेके हवा के साथ दौड़ने लगता है उसके समूह के लोगों ने भद्रा को कभी इस वेग से दौड़ते नही देखा यहाँ तक कि भद्रा ने खुद कभी नही सोचा था की कोई मनुष्य इतने वेग को प्राप्त कर सकता है

भद्रा बीच जंगल में था वो पेड़ की डालियों को सामने से हटाता हुआ बच्चे का पीछा कर रहा था आखिर में घोड़े का बच्चा हांफ कर गिर गया भद्रा नुकीले डंडे को बच्चे के पेट में घूस देता है| भद्रा अब हांफ रहा था वो बिना आराम किये बच्चे को अपने सिर के ऊपर, खड़ी भुजाओं पे टांग लेता है और अपने समूह की ओर तेजी से चल पड़ता है जैसे ही उसकी सांसें सामान्य होती है वो फिर से दौड़ने शुरू कर देता है

समूह के लोग भद्रा को आता हुआ देखते है भद्रा, चौड़ी छाती मांसल जांघे, जांघों के बीच लटकता हुआ गेंहुआ लिंग, उसका पूरा सौन्दर्य किसी देवता के समतुल्य था उसका ये रूप देखके समूह की सारी स्त्रियाँ और युवतियाँ भद्रा को अपने अन्दर महसूस करने के लिए उत्तेजित थी पर भद्रा की नजरें आज सिर्फ जामवती पे टिकी थी भद्रा जामवती के सामने आता है और मर्दानी अकड के साथ घोड़े के बच्चे को जामवती के पैरों के पास पटक देता है "धडाम की आवाज होती है" जामवती अपने ठोड़ी पे ऊँगली रखके मुस्कुरा देती है

जामवती मन में सोचती है काम उर्जा में इतनी शक्ति?, कि मनुष्य एक असंभव काम भी कर सकता है

जामवती खुद पे गर्व करती है कि आज रात के सम्भोग के लिए उसने सही पुरुष चुना है वो सबको चलने का इशारा करती है

समूह कबीले के पास पहुँचता है वहां से कबीले की दिवारें दिखती है जोकि तरा ऊपर पत्थरों के संयोजित करने से बनी थी

समूह शिकार को नीचे रखकर कबीले के गेट पे लगे पत्थर और पेड़ की पिंडियों को हटाने लगता है अन्दर लोगों को गेट के पास किसी की उपश्थिति का अहसास होता है सभी हथियार लेके आ जाते और चिल्लाते है कौन है? बाहर भद्रा यकीन दिलाता है की वो लोग उसके ही साथी है

गेट खुलता है सभी लोग शिकार देखके झूमने लगते है और अपनी ख़ुशी जताते है अन्दर पहुँचते है तो बच्चे घोड़े के बच्चे को देख के ख़ुशी के गीत गाने लगते है

समूह के लोग आराम करते है और बाकी के लोग शाम के भोजन और मदिरा का इंतजाम करते है दोनों शिकारों से आज के लिए टुकड़े काट लिए गए और बाकी के भाग को पेड़ के पत्तों से ढक कर रख दिया गया| घोड़े का मांस सिर्फ छोटे बच्चों के लिए था

जामवती थोड़े आराम वास्ते लेट जाती है उसका बच्चा(11 माह) का आता है जामवती के ऊपर चढ़ कर स्तन पकड़ता है दूध पीने की कोशिश करने लगता है जामवती अपने स्तन को ठीक से पोंछती है और उसकी निप्पल अपने बच्चे के मुंह में दे देती है आहिस्ता आहिस्ता शरीर पे हाँथ फिराकर'बच्चे को लाड करने लगती है इस तरह से समूह की सभी स्त्रियाँ अपने बच्चों को स्तनपान कराती है

मॉस पक कर तैयार होता है सबको पत्तों पे परोसा जाता है मांस खाकर सभी एक बूढ़े के पास जाते और खोपड़ी का कटोरा उठाते बुढा उसमे सूरा कर देता सब पीकर नशे में झूमते हुए आगे बढ़ते जाते|

भोजन के पश्चात् सभी एक जगह इकट्ठे होकर गीत और नृत्य के माध्यम से खुशियाँ मनाने लगते है भद्रा हड्डियों और लकड़ियों से संगीत निकाल रहा था

इसी बीच सभी मर्द और पुरुष रात के लिए साथी चुनते है

कृष्णावती और लशा अभी भी एक दुसरे को गुथ्थे हुए गहरी नींद में सो रहे थे उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ये हमेशा के लिए सो गये पर असल में उन दोनों को आज समाधि की झलक लग गयी थी

नृत्य के बाद बूढ़े और बच्चे उस जगह से दूरी बना लेते है या सो जाते है बाकी के लोग रातभर प्रेमलीला करते है

भद्रा की आंखे जामवती को खोज रही थी उधर जामवती लशा के छोटे भाई के साथ रति क्रिया में व्यस्त हो चुकी थी यह देखकर भद्रा गुस्से से भन्ना जाता है पर वो कुछ कह नही सकता था क्यूंकि जामवती कबीले की मुखिया थी

जामवती तरुण के साथ सम्भोग करते हुये घुटी घुटी आवाजें निकाल रही थी आह आह! आह! थोडा तेज ...आह आह....जामवती आसन बदलती है और आसमान की तरह अपने नितंभ उठा लेती है जिससे उसकी योनी का द्वार और खुल जाता है उसका तरुण लह के साथ अपनी जामवती की योनी में लिंग अन्दर बाहर कर रहा था और हांथो नितंभ भी मसल रहा था

भद्रा के सारे अरमानो पे पानी फिर जाता है वो दुखी होकर किसी और से प्रेम करने की सोचता है उसकी नजर बैकुंठी पे पड़ती है बैकुंठी मैथुन करने लायक हो चुकी थी कई पुरुषों ने उसके साथ सम्भोग की करने की कोशिश की है पर वो कौमार्य भंग होने के दर्द से डर जाती इसलिए उसने कभी भी किसी मर्द को अपने पास नहीं आने दिया पर उसे सम्भोग देखेने में बढ़ा रस आता था वो यहाँ सम्भोग में विलीन जोड़ों को टुकुर टुकुर देख रही थी

भद्रा जाता है बैकुंठी के स्तन मसल देता है बैकुंठी के शरीर में दर्द की लहर दौड़ जाती है और वो रूआसी सी होकर बच्चों के पास भाग जाती है भद्रा को यहाँ पर भी मायूसी हाँथ लगी उसका मन बहुत बैचेन था अब उसने किसी और महिला के पास ना जाने की सोची और वही अपने लिंग को पकड़कर बैठ गया

उधर तरुण की रफ़्तार बढ़ गयी थी और कुछ छड बाद सारा वीर्य जामवती के योनी में उढ़ेल देता है और वही लेटकर हांफने लगता है जामवती उठती है अपने बालों को पीठ पर डाल कर तरुण के ऊपर आती है और उसके मुंह को बेतहाशा चूमती हुई उसपे ढेर हो जाती है दोनों मीठे मीठे दर्द की अनुभूति से नीद में चले जाते है अब तक लगभग सभी लोग सो गये थे आखिर में भद्रा मन मरोर कर लेट गया उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी आज बहुत तेज अन्धिरिया थी सन्नाटे से सी सी की आवाज हो रही थी

एक बच्ची जोकि पेशाब के लिए थोड़ी दूर गयी और बैठकर पेशाब करने लगी पेशाब करने के बाद जैसे ही खड़ी हुयी एक जानवरों के गुर्राने की तेज आवाज आयी वो लड़की डरकर रोने लगी सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे सिवाय भद्रा के|

भद्रा रोने की आवाज सुनकर बच्चे के पास पहुँचता है और गले से चिपकाकर पूंछता है क्या हुआ?

बच्ची -- रोती हुयी, डर लग रहा है