पृकृति का रहस्य - एक प्राचीन कथा

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पर बार बार उसके मन में तस्वीरें आ रही थी कि वो जामवती के स्तन चूस रहा है उसके नितंभ मसल रहा है कामवासना उसके सिर पे चढ़ चुकी थी| और कुछ ख्याल ही नहीं आ रहा था यहाँ तक वो विचार "दर्द हुआ था" अपनी उर्जा खोता हुआ दिख रहा था और धीरे धीरे वो भूल चूका था सम्भोग के उस बुरे अनुभव के बारे में "अब वो जामवती के साथ सम्भोग में लीन था"

उसका हाँथ उसके लिंग पे चल रहा था "जामवती की योनी में एक तेज धक्का मारता है", जिसका असर उसके हाँथ की तेजी पे हुआ, उसके शरीर में दर्द की लहर दौड़ जाती है क्यूंकि लिंग पिछले दिन ही तो छिला था|

दर्द के कारण नींद से जाग जाता है अपने लिंग को देखकर, मनहींन होता है उसके साथ क्या हो रहा है"

दर्द का उसे कोई उपचार नहीं सूझता है तो वो हड्डी के कटोरे में बकरी का दूध निकाल लेता है और अपने लिंग की मालिश शुरू कर देता है

हाँथ की मालिश से उसका लिंग तन जाता है उसके विचार फिर से जागने लगते है

"जैसे पहले सम्भोग करता था वैसा तो कर ही सकता हूँ उसमें तो अच्छा लगता था क्यूँ ना जामवती को जगाया जाये? नहीं लिंग मेरे लिंग में दर्द हो रहा है"

क्रन्थ, चलो चलो जल्दी चलो हम लोग वैसे भी बहुत देरी से है

कबीले की मुखिया, पर अन्य बुद्धिमानो का मानना है पानी यहाँ तक नहीं पहुंचेगा

क्रन्थ, फिर से, अम्मा वो सब निठल्ले वो कुछ भी करना चाहते है?

इसके जवाब में एक व्यक्ति खड़ा हुआ, "हम लोगों का अंदाजा एक दम सही है पानी यहाँ नही पहुंचेगा"

क्रन्थ, साथियों जिनको मेरा साथ देना है वो मेरे पीछे आए|

बुद्धिमानो ने विचार किया और जवाब दिया सभी लोग क्रन्थ के साथ जाओ|

क्रन्थ, तुम निठल्लों को भी चलना पड़ेगा वहां बहुत लोगों की जरुरत पड़ेगी

"ये मेरा काम नहीं है क्या तू ये नहीं जानता, ज्यादा लोगों की जरुरत है तो अन्य कबीलों से लोगों को बुलाओ"

क्रन्थ, साथियों चलना शुरू करो अगर पानी कबीले के पास तक पहुँच गया तो इन निठल्लों को उसी में फेंक के भाग चलेंगे

"सभी हंसने लगते है", बुद्धिमानों से बार बार बेज्जती बर्दाश्त नहीं हो रही थी

मुखिया ने आदेश दिया, आज कबीले से सभी लोगों को जाना पड़ेगा में पास के कबीलों से भी लोगों को इकठ्ठा करके ला रही हूँ

क्रन्थ, दौड़ता हुआ अपनी टोली लेके चल देता है नदी की तरफ कबीले और नदी के मध्य में सबको रुकने को बोलता है और सबसे पत्थर लाने को बोलता है अपने कबीले की 4 गुनी लम्बाई बराबर जगह पे पत्थर लगा देते है फिर उसके ऊपर मिट्टी और पेड़ डाल देते है

निठल्लों आज तो मेहनत करनी पड़ गयी क्यूँ?, क्रन्थ ने चिडाया

बुद्धिमान अपना गुस्सा पीकर वहीँ खड़े रहे तब तक अन्य कबीले के लोग भी आ गये उन्हें इन्ही के माध्यम से जानकारी हुयी थी की बाढ़ आने वाली है

उन्हें भी अपने कबीले की चिंता थी पानी वहां तक भी पहुँच सकता था वो बांध को देखते है जोकि काफी लम्बा व ऊँचा था

वो सभी इस कबीले को अपना आभार प्रकट करते है और सभी अपने अपने कबीले को लौटने लगते है

मुखिया, क्रन्थ अब हमे क्या करना चाहिए?

क्रन्थ, आप लोग जाओ में यहीं जल का निरीक्षण करूँगा अगर खतरा जान पड़ा तो आगाह करूँगा

"तुम अकेले रहोगे?" तब तक तरुणी, अम्मा में रुक जाती हूँ यहाँ

अब वहां सिर्फ दो जन बांध के ऊपर अपने पैर लटकाए हुए बैठे थे

भद्रा बहुत कोशिश कर रहा था खुद से लड़ने की पर उसका लिंग तनता ही चला रहा था आखिर में वो हार मानकर जामवती के पास पहुँचता है उसके ऊपर लेते बच्चे को हटाकर जामवती की योनी में ऊँगली डाल देता है

जामवती तुरंत जगती है अपने पास भद्रा को खड़ा देखकर मुस्कराने लगती है

"यहाँ से कहीं और चलते है बच्चे सो रहे है"

भद्रा जामवती को अपनी पीठ पे लाद लेता है जामवती गले में गुम्फी डालकर अपने पैर भद्रा के कमर में फंसा लेती है

भद्रा उसे काफी दूर ले जाता है और एक पेड़ के सहारे जामवती को टिका कर बेसबरी से उसका उपरी होंठ अपने होंठ में लेके चूमने लगता है

अब जामवती पेड़ से हाँथ टिका कर खड़ी हो जाती है भद्रा उसके पीछे आकर अपना लिंग पूरी ताकत से योनी में डाल देता है

"आह आह दर्द से चीख जाती है"

पर भद्रा पीछे से धक्के पे धक्का मार रहा था बीच बीच में उसके निताम्भों तपे तेज थप्पड़ जड़ देता है कभी उसकी पीठ में नाखून गढ़ा देता वो दर्द से चिल्ला रही थी पर भद्रा की पकड़ भी बहुत मजबूत थी वो बच नहीं सकती थी भद्रा अब उसके पैर उठाकर अपनी कमर में फंसा लेता जामवती के हाँथ पेड़ पे टिके थे भद्रा पीछे से पूरी उत्तेजना के साथ धक्के मार रहा था

जामवती झड चुकी थी उसका शरीर अकड़ रहा था बाद में भद्रा जामवती को अपनी तरफ घुमाकर अपनी गोद में लटकाए हुए उसकी योनी में धक्का मार रहा था उसकी योनी नितंभ के साथ लिंग पे झूल रही थी

अब उसकी योनी से रक्त निकल रहा था उसकी चीखे और तेज हो रही थी वो बेहोश हो जाती है भद्रा फिर भी धक्के लगा रहा था अब कबीले के लोग चीखो से जाग गये थे वो चीखों का पीछा करते हुए आ रहे थे

अब भद्रा भी झड़ता है उसका वीर्य बहुत पतला था आज साथ में रक्त भी आया था झड़ने के बाद भद्रा को खुद पे बहुत गुस्सा आता है अपना सिर पेड़ पे पटकने लगता है उसे पता था आज का ये कृत्य बहुत महँगा पड़ेगा उसे कबीले की सजा का शिकार होना पड़ेगा वो निश्चय करता है और कबीले की दीवार फांदता है उसके पीछे कबीले के कुछ लोग दौड़ते है पर अँधेरा होने से वो सबकी आँखों से ओझल हो जाता है

सब भद्रा की निंदा करते है जामवती के लड़के का सीधा आदेश होता है भद्रा जहाँ कहीं भी मिले उसकी हत्या कर दी जाये

अब जामवती को बेहोशी की हालत में उठाकर लाया जाता है और उसके उपचार की शुरुआत हो जाती है सभी कामना करते है जामवती स्वस्थ हो जाये पर वो तो बेहोश पड़ी थी उसकी योनी का रक्त अभी भी थमा नहीं था

क्या लगता है जल यहाँ तक पहुंचेगा, तरुणी ने कहा

क्रन्थ, पता नहीं

"फिर तुमने लोगों से इतनी मेहनत क्यूँ करवाई?"

में अपनी जिम्मेदारी निभाया हूँ में अपने कबीले को सुरक्षित देखना चाहता हूँ क्या पता बारिश भी हो जाये नदी के पानी का वेग और बढ़ जाये कोई व्यक्ति किस आधार पे कह सकता है कि पानी यहाँ नहीं पहुंचेगा

हमारे कबीले में अगर ऐसे ही दार्शनिक पैदा होते रहे तो अपना अंत बहुत नजदीक है, क्रन्थ ने तरुणी से कहा

अब वो दोनों नजदीक आ गये थे उनके बदन एक दुसरे से सटे थे

क्रन्थ, ये पत्ते हवा के चलने से आवाज कर रहे है क्यूँ ना इन्हें उतार दो

तरुणी, अपने सीने पे हाँथ रखकर तुम खुद क्यूँ नहीं हटा देते "हाय में तो कब से व्याकुल हूँ कि तुम मेरे पत्ते हटाओ"

क्रन्थ, गले की रस्सी छोर देता है तरुणी के स्तन अब हरे की जगह भूरे दिख रहे थे

उसके कपोल खिल रहे थे उसके केश बार बार उसकी सुन्दरता को ढकने की नाकाम कोशिश कर रहे थे क्यूंकि तरुणी उन्हें झटककर पीठ पे रख ले रही थी

क्रन्थ बहुत ही शांति से ये ये नजारा देख देख रहा था

तरुणी क्या निहार रहे हो, अपने स्तनों पे हाँथ रखकर

क्रन्थ तुरंत ही तरुणी की गर्दन पकड़ लेता है उसके होंठ चूमने लगता है

तरुणी की तो जैसे मनोकामना पूरी हो गयी वो भी साथ देने लगती है दोनों की गुलाब सी पंखुड़िया आपस में क्रीडा कर रही थी

क्रन्थ के हाँथ तरुणी की जांघ पर थे और तरुणी अपने हांथो से क्रन्थ की पीठ सहला रही थी

तरुणी क्रन्थ को वहीँ लिटाकर उसके ऊपर आ जाती है और उसके कान चूमने लगती है क्रन्थ अपने मुंह में स्तन भर लेता है और बहुत ही मस्ती के साथ स्तनों से प्रेम करने लगता है

अचानक से एक तेज आवाज "सर सर द दद दड सर सर" आती है

क्रन्थ तुरंत उठ खड़ा होता है प्रिय नदी अपने पूर्ण वेग से बहती हुयी जा रही है "हे इश्वर हमारे पास ना आए ऐसे ही बहती हुयी आगे निकल जाये"

जामवती को कुछ होश आता है भद्रा के इस व्यवहार को याद करके रोने लगती है सभी उसको चारो तरफ से घेर रखे थे

जामवती आंखे लाल करके, "भद्रा कहाँ है" वो भाग गया है उसे मारने का आदेश दिया जा चूका है, जामवती को जवाब मिला

लशा और कृष्णावती कबीले पहुंचकर अपने खाने की तयारी करते है

नदी का पानी अपना रास्ता बनाता हुआ बांध की तरफ बढ़ता है

क्रन्थ चिल्लाता हुआ कबीले की तरफ जा रहा था "भागो भागो पानी कुछ घंटों में बांध तक पहुँच जायेगा मिट्टी के घर खाली करके बाहर निकलो"

क्रन्थ बुरे तरीके से हांफ रहा था कबीले के लोग आने वाले संकट से परेशान थे कबीले की सभा निर्णय करती है सभी लोग बैठ के पृकृति से प्रार्थना करेंगे

सभी आंखे बंद करके बैठ जाते है सभा से एक बुजुर्ग बोला क्रन्थ जल्दी से प्राथना में शामिल हो

क्रन्थ साफ इंकार कर देता है "में पानी का निरीक्षण करूँगा"

लशा और कृष्णावती प्रेम से खाना ख़तम करते है फिर उन्हें कबीले की सारी घटनाओं के बारे में पता चलता है कृष्णावती को अपनी पुत्री बैकुंठी के बारे में सुनकर बहुत बुरा लगा हालाँकि उसे कबीले के नियमों पे संदेह हो चला था उसका मानना था ये नियम पुराने हो चुके है आज की परिश्थितियों के अनुकूल नहीं है तब भी उसे अपने बेटी के साथ अछूत वाला व्यवहार ही करना था

लशा और कृष्णावती एक दुसरे की तरफ करवट लेके बराबरी में लेट जाते है कृष्णावती "आज जंगल का अनोखा स्वरुप देख के मुझे सब कुछ अलग दिख रहा है मानो मुझे नये नेत्र मिले हों"

लशा कृष्णावती के नाभि में ऊँगली घुमाता हुआ मुस्कराता है

कृष्णावती को लशा का मुस्कराता हुआ मसूस चेहरा बड़ा प्यारा लगता है उसे मुंह चूमे बिना रहा नहीं गया लशा भी आँखे बंद करके चुम्बनों का साथ देने लगता है

भद्रा जंगल में भटकता हुआ अपने लिए निवास खोज रहा था उसके मन में अपराध भाव भी था "मेरी अच्छी जिन्दगी गुजर रही थी सारी स्त्रियाँ मुझे प्रेम करती थी पर ये क्या से क्या होता चला गया" आज की रात वो पेड़ पे चढके गुजारने की सोचता है

क्रन्थ पानी के बलबूले देखकर मन में ठानता है कुछ भी हो जाये पानी तुझे अपने कबीले तक नहीं पहुँचने दूंगा उसका मनोबल इतना तीव्र था कि वो पानी को रोकने के लिए कुछ भी कर गुजर सकता है अब बारिश भी अपने जोरों पे थी मोटी मोटी बुँदे सिर पे कंकडो के भांति चोट कर रही थी हवाएं इतनी तेज के छोटे पेड़ों की डालियाँ जमीन छू जा रही थी

क्रन्थ बांध से अपने कबीले की तरफ भयंककर गति से दौड़ता है उसे मन में ऐसा लग रहा था जैसे वो हवाओं से आगे चल रहा हो

कबीले को, सभा के लोगों के साथ, अब तक डर से प्रार्थना में डूबे रहने से क्रन्थ का खून खोल जाता है वो ताव में आकर सभा के लोगों पे मिट्टी के डेले बरसाने लगता है सब चिल्लाते हुए बिखरना शुरू हो जाते है "क्रन्थ पागल हो गया है..आज इसने अपनी हदें पार कर दी अब ये इस कबीले में नही रह सकता"

क्रन्थ चीखते हुए "हाँ में पागल हो गया हूँ वो भी तुम निकम्मों की वजह से बुद्धिमानो पे कुछ जिम्मेदारी होती है हमारे पूर्वजो ने दिन रात मेहनत करके एक सभ्यता की नीव डाली थी हमारी ख्याति दूर दूर तक है फिर तुम लोग पैदा हुए जड बुद्धि, खुद तो निकम्मे हो ही पूरे कबीले को निकम्मापन सिखा रहे हो और तुम लोग लो..तुम भी लो..डेले खाओ..खाओ डेले तुम्हे पका पकाया ज्ञान खाने की आदत है खूब अँधा अनुसरण करते हो सभा का...लो..और लो..."

"और नहीं रहना है मुझे इस कबीले में, जब कबीला ही नहीं रहेगा तो में रह के क्या करूँगा"

सभा की प्रतिक्रिया "निकम्मा तो क्रन्थ खुद है हमारे ऊपर वैसे ही संकट है इसे इतनी भी समझ नहीं है कि इस समय लोगों को परेशान न करे"

क्रन्थ वक्ता के सिर पे डेले का निशाना साधता है सभा, "ये नहीं सुधर सकता मारो इसे"

मुखिया किसी को भी अपने जगह से हिलने की चेतावनी देती है "क्रन्थ शांत होकर बताओ तुम क्या चाहते हो"

"प्रार्थना में समय व्यर्थ न करके बांध को और ऊँचा बनाया जाये नही तो पानी बहुत जल्द कबीले तक आकर मिट्टी की दीवारे धसा देगा"

एक तरुणी बोलती है अम्मा क्रन्थ सही कह रहा है मेरे भी दिमाग में यही आ रहा था पर सभा के डर से...आखिर मेरा काम ये नही है..

कई और कबीले भी इस कबीले में आकर शामिल हो जाते है

मुखिया सबको तैयार होने को कहती है "सभी पुरुष व सभी नारी अपने शरीर के पत्ते हटा दे वो आंधी में दिक्कत देंगे" "आज में पहली बार एक नया कदम उठाने जा रही हूँ, जब तक इस संकट का निवारण न हो जाये तब तक कबीले में कोई सभा न रहेगी, सबसे बड़ी बात अब से इस कबीले का और अन्य कबीलों का मुखिया क्रन्थ है जो कबीले इस बात से सहमत हों वो रुके रहे बाकी के चले जाये"

कबीलों को क्रन्थ पे यकीन था उनका मानना था कि क्रन्थ थोडा अजीब जरुर है पर उसमे कुछ बात है जबकि उसके अपने कबीले की सभा और उसके बुद्धिमान लोग हमेशा उसके खिलाफ रहते थे

आज क्रन्थ के मनोबल से एक नई चीज उपजी एक गीत एक संगीत जो किसी को भी प्रेरणा दे सके "ॐ" वो इस शब्द से गीत बना के अपने मन से तरह तरह के संगीत निकालकर चिल्ला रहा था

ये गीत संगीत सभी के मन को ख़ुश करते हुए एक ऊर्जा का सुहावना अहसास दिला रहा था लोग बांध पे एक पत्थर रख न पाते दुसरे के लिए उत्साहित हो जाते पानी बांध तक पहुंच चूका था और तेजी से बांध की ऊंचाई की तरफ बढ़ रहा था

क्रन्थ अपने सगीत व गीत के शब्दों से लोगों के मनोवल को साधे हुए था पूरी रात सभी ने जमकर मेहनत की भोर के समय एक करिश्मा हुआ घनघोर बारिश बौछारों में तब्दील हो गयी आंधी का तो नाम भी जाता रहा पानी बांध को पार करके कबीले की सीमाओं से दस कदम की दूरी पे ही रुककर वेग की ऊर्जा खो दिया

अब सभी ख़ुशी और थकान से कबीले में लेटे थे सभी की आंखे क्रन्थ की अहसानमंद थी "अगर क्रन्थ न होता तो कबीला बह चूका होता हमारे बच्चे भटक रहे होते"

क्रन्थ अभी भी पानी पे निगाहें टिकाये था

भूतपूर्व मुखिया "क्रन्थ अब आराम कर लो"

क्रन्थ "तुम लोग करो में पानी को देखता हूँ किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है"

सभी कबीले के मुखिया क्रन्थ के मनोबल की दाद देते है

जारी रहेगी...

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6 Comments
junamjunamover 2 years ago

ग़ज़ब कहानी! धन्यवाद!

AnonymousAnonymousabout 4 years ago
wow. just wow

it's a lovely story

not only sex but all the feelings are there

Plz complete this story dear

AnonymousAnonymousover 4 years ago

Beautifully written i loved to read , i think you are writing a lot deeper works now . Share your stories more and keep writing . Good luck !!

AnonymousAnonymousabout 6 years ago
amazing

very amazing story dear. please continue.

AnonymousAnonymousabout 6 years ago
continue pls

very fresh story. one of the best erotica I've ever read.

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