सहेली की खातिर

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Anjaan
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वापस बिस्तर पर आकर कुछ देर तक दोनों मेरे एक-एक अँग से खेलते रहे और मेरी उसी नंगी हालत में अलग-अलग पोज़ में कईं फोटो खींचे। फिर मेरी चुदाई का दूसरा दौर चालू हुआ। यह दौर काफी देर तक चलता रहा। इस बार सुरेश ने मुझे अपने ऊपर बिठाया और अपना लंड अंदर डाल दिया। इस हालत में उसने मुझे खींच कर अपने सीने से सटा लिया। मेरे दोनों पैर घुटनों से मुड़े हुए थे और इसलिये मेरे चूत्तड़ ऊपर की और उठ गये। केशव ने मेरी चुदती हुई चूत में एक अँगुली डाल कर हमारे रस को बाहर निकाला और एक अँगुली से मेरी गाँड में अंदर तक इस रस को लगाने लगा।

मैं उसका मतलब समझ कर उठना चाहती थी मगर दोनों ने मुझे हिलने भी नहीं दिया। केशव ने अपनी अँगुली निकाल कर गाँड पर अपना लंड सटा दिया। मैं छटपटा रही थी। उसने जोर से अपना लंड अंदर ढकेला। ऐसा लगा मानो कोई मेरी गाँड को डंडे से फाड़ रहा हो। मैं "आआआआआआईईईईईईईईई ऊऊऊऊऊऊउउउउम्म्म आआआआहहहहह मुझे छोड़ दो...." जैसा कह कर रोने लगी। मगर उसके लंड के आगे का मोटा हिस्सा अब अंदर जा चुका था। मैंने दर्द से अपने होंठ काट लिये मगर वो आगे बढ़ता ही जा रहा था। पूरा अंदर डालने के बाद ही वो रुका। फिर दोनों मेरे चिल्लाने की परवाह किये बिना ही धक्के मारने लगे। ऊपर से केशव धक्का मारता तो सुरेश का लंड मेरी चूत में घुस जाता। जब केशव अपना लंड बाहर खींचता तो मैं उसके लंड के साथ थोड़ा ऊपर उठती और सुरेश का लंड बाहर की और आ जाता। इसी तरह मुझे काफी देर तक दोनों ने चोदा फिर एक साथ दोनों ने मेरे दोनों छेदों में अपने अपने वीर्य डाल दिये। मैं भी उनके साथ ही झड़ गयी।

रात भर कई दौर अलग-अलग पोज़ में हुए, मैं तो गिनती ही भूल गयी। लगभग चार बजे के करीब हम एक ही बिस्तर पर आपस में लिपट कर सो गये। सुबह सढ़े नौ बजे दरवाजे की घंटी बजने पर नींद खुली। मैंने पाया कि पूरा बदन दर्द कर रहा था। मैंने अपने शरीर का जायजा लिया। मैं बिस्तर पर आखिरी चुदाई के वक्त जैसे लेटी थी अभी तक उसी तरह ही लेटी हुई थी।

सुरेश शायद सुबह उठकर जा चुका था। केशव ने उठ कर दरवाजा खोला तो तेजी से रिटा अंदर आयी। बिस्तर पे मुझ पर नज़र पड़ते ही चीख उठी, "नीतू की क्या हालत बनायी है तुमने? तुम पूरे राक्षस हो। बेचारी के फूल से बदन को कैसी बुरी तरह कुचल डाला है।" वो बिस्तर पर बैठ कर मेरे चेहरे पर और बालों पर हाथ फेरने लगी।

"टेस्टी माल है" केशव ने होंठों पर जीभ फिराते हुए बेहुदगी से कहा। रिटा मुझे सहारा देकर बाथरूम में ले गयी। बाथरूम में मैं उससे लिपट कर रो पड़ी। उसने मेरे सैंडल उतार कर मुझे नहलाया। मैं नहा कर काफी ताज़ा महसूस कर रही थी। कपड़े बाहर बिस्तर पर ही पड़े थे। ब्रा और पैंटी के तो चीथड़े हो चुके थे। सलवार का भी उन्होंने नाड़ा तोड़ दिया था। मैंने बाथरूम में अपने सैंडल पहने और उसी हालत में मैं रिटा के साथ कमरे में आयी। अब इतना सब होने के बाद पूरी नग्न हालत में केशव के सामने आने में कोई शर्म महसूस नहीं हो रही थी। वो बिस्तर के सिरहाने पर बैठ कर मेरे बदन को बड़ी ही कामुक नज़रों से देख रहा था। जैसे ही मैंने अपने कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया, उसने मेरे कपड़ों को खींच लिया। हम दोनों की नज़र उसकी तरफ उठा गयी।

"नहीं... अभी नहीं," उसने मुस्कुराते हुए कहा, "अभी जाने से पहले एक बार और!"

"नहींईंईंईं" मेरे मुँह से उसकी बात सुनते ही निकल गया।

"अब क्या जान लोगे इसकी? रात भर तो तुमने इसे मसला है। अब तो छोड़ दो इसे।" रिटा ने भी उसे समझाने की कोशिश की। मगर उसके मुँह में तो मेरे खून का स्वाद चढ़ चुका था।

"नहीं इतनी जल्दी भी क्या है। तू भी तो देख अपनी सहेली को चुदते हुए।" केशव एक भद्दी तरह से हँसा। पता नहीं रिटा कैसे उसके चक्कर में पड़ गयी थी। अपने ढीले पड़े लंड की और इशारा करके रिटा से कहा, "चल इसे मुँह में लेकर खड़ा कर।"

रिटा ने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा लेकिन वो बेहुदी तरह से हँसता रहा। उसने रिटा को खींच कर पास पड़ी एक कुर्सी पर बिठा दिया और अपना लंड चूसने को बोला। रिटा उसके ढीले लंड को कुछ देर तक ऐसे ही हाथ से सहलाती रही और फिर उसे मुँह में ले लिया। केशव ने रिटा की कमीज़ और ब्रा उतार दी। ज़िंदगी में पहली बार हम दोनों सहेलियाँ एक दूसरे के सामने नंगी हुई थी। रिटा का बदन भी काफी खूबसूरत था। बड़े-बड़े बूब्स और पतली कमर। किसी भी लड़के को दीवाना बनाने के लिये काफी था। केशव मेरे सामने ही उसके बूब्स को सहलाने लगा।

केशव ने एक हाथ से रिटा का सिर पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पलों को मसल रहा था। चेहरे से लग रहा था कि रिटा गर्म होने लगी है। मैं बिस्तर पर बैठ कर उन दोनों की रास-लीला देख रही थी और अपने को उसमें शामिल किये जाने का इंतज़ार कर रही थी। मैंने अपने बदन पर नज़र दौड़ायी। मेरे दोनों बूब्स पर अनेकों दाँतों के निशान थे। मेरी चूत सूजी हुई थी। जाँघों पर भी दाँतों के निशान थे। निप्पल भी सूजे हुए थे। रिटा ने कोई पेन-किलर खिलाया था बाथरूम में जिसके कारण दर्द कुछ कम हुआ था। मैं उन दोनों का खेल देख-देख कर कुछ गर्म होने लगी थी।

केशव लगातार रिटा के मुँह को चोद रहा था। केशव का लंड खड़ा होने लगा। उसे देख कर लगता ही नहीं था कि उसने रात भर मेरी चूत में वीर्य डाला है। मुझे तो पैरों को सिकोड़ कर बैठने में भी तकलीफ हो रही थी और वो था कि साँड की तरह मेरी दशा और भी बुरी करने के लिये तैयार था। पता नहीं कहाँ से इतनी गर्मी थी उसके अंदर। उसका लंड कुछ ही देर में एक दम तन कर खड़ा हो गया। अब उसने रिटा को खड़ा करके उसके बाकी के कपड़े भी उतार दिये। अब रिटा मेरी तरह ही सिर्फ अपने हाई हील सैंडल पहने हुए पूरी तरह नंगी थी। रिटा को वापस कुर्सी पर बिठा कर केशव ने उसकी चूत में अपनी अँगुली डाल दी। अँगुली जब बाहर निकली तो वो रिटा के रस से भीगी हुई थी। केशव ने उस अँगुली को मेरे होंठों से छूआ।

"ले चख कर देख... कैसी मस्त चीज है तेरी सहेली।" मैं मुँह नहीं खोल रही थी मगर उसने जबरदस्ती मेरे मुँह में अपनी अँगुली घुसा दी। अजीब सा लगा रिटा के रस को चखना। "पूरी तरह मस्त हो गयी है तेरी सहेली" उसने मुझ से कहा और अपना लंड रिटा के मुँह से निकाल लिया। उसका काला लंड रिटा के थूक से चमक रहा था।

फिर मुझे उठा कर उसने रिटा पर कुछ इस तरह झुका दिया कि मेरे दोनों हाथ रिटा के कँधों पर थे और मैं उसके कँधों का सहारा लिये झुकी हुई थी। मेरे बूब्स रिटा के चेहरे के सामने झूल रहे थे। केशव ने मेरी टाँगों को फैलाया और मेरी चूत में वापस अपना लंड डाल दिया। लंड जैसे-जैसे भीतर जा रहा था, ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी चूत की दीवारों पर रेगमाल (सैंड-पेपर) घिस रहा हो। मैं दर्द से "आआआआहहह" कर उठी। पता नहीं कितनी देर और करेगा। अब तो मुझ से रहा नहीं जा रहा था। वो मुझे पीछे से धक्के लगाने लगा तो मेरे बूब्स रिटा के चेहरे से टकराने लगे। रिटा भी उत्तेजना में कसमसा रही थी। वो पहली बार मुझे इस हालत में देख रही थी। हम दोनों बहुत पक्की सहेलियाँ जरूर थीं मगर लेस्बियन नहीं थी। केशव ने मेरा एक निप्पल अपनी अँगुलियों में पकड़ कर खींचा तो मैंने दर्द से बचने के लिये अपने बदन को आगे की और झुका दिया। उसने मेरे निप्पल को रिटा के होंठों से छुवाया। "ले चूस... चूस अपनी सहेली के मम्मों को।" रिटा ने अपने होंठ खोल कर मेरे निप्पल को अपने होंठों के बीच दबा लिया। केशव मेरे बूब्स को जोर-जोर से कुछ इस तरह मसलने लगा कि मानो वो उन से दूध निकाल रहा हो। मेरी चूत में भी पानी रिसने लगा।

मैं "आआआआहहहहह ऊऊऊऊहहहहह ऊऊऊऊईईईईईई माँआआआआआ उउउफ्फ्फ्फ" जैसी आवाजें निकाल रही थी। कमरे में चुसाई और चुदाई की "फच-फच" की आवाज गूँज रही थी। वो बीच-बीच में रिटा के बूब्स को मसल देता था। केशव ने मेरे बाल अपनी मुठ्ठी में भर लिये और अपनी तरफ खींचने लगा जिसके कारण मेरा चेहरा छत की तरफ उठा गया। कोई पँद्रह मिनट तक मुझे इसी तरह चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और हमें खींच कर बिस्तर पर ले गया। बिस्तर पर घुटनों के बल हम दोनों को पास-पास चौपाया बना दिया। फिर वो कुछ देर रिटा को चोदता तो कुछ देर मुझे। काफी देर तक इसी तरह चुदाई चलती रही। मैं और रिटा दोनों ही झड़ चुके थे। उसके बाद भी वो हमें चोदता रहा। काफ़ी देर बाद जब उसके झड़ने का समय हुआ तो उसने हम दोनों को बिस्तर पर बिठा कर अपने-अपने मुँह खोल कर उसके वीर्य को मुँह में लेने को बाध्य कर दिया और ढेर सारा वीर्य मेरे और रिटा के मुँह में भर दिया। हम दोनों के मुँह खुले हुए थे और उनमें वीर्य भरा हुआ था और मुँह से छलक कर हमारे बूब्स पर और बदन पर गिर रहा था।

वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक रिटा मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक मैं नॉर्मल चल सकने लायक ना हो गयी। फिर हम किसी तरह घर लौट आये। मैं अपने घर तो शाम को पहुँची क्योंकि होटल से सीधे रिटा के घर गयी थी। भगवान का शुक्र है किसी को पता नहीं चला।

रिटा ने अपने वादे के मुताबिक मेरे रिश्ते की बात अपने मम्मी पापा से चलायी और वो मान भी गये। साथ ही साथ उसका रिश्ता भी केशव के साथ पक्का हो गया। छः महीने में ही हम दोनों की शादी पक्की हो गयी - एक साथ। इन छः महीनों के दौरान केशव ने मुझे कई बार अलग-अलग जगह पर बुला कर चोदा। उसके पास मेरी मूवी थी जिसे एक दिन उसने हम दोनों को दिखाया। मैं तो शर्म से पानी-पानी हो गयी पर रिटा ने खूब चटखारे लिये। मैं अब केशव के चँगुल में पूरी तरह फँस चुकी थी। उसने मुझे अकेले में धमकी भी दे रखी थी की उसकी बात अगर मैंने नहीं मानी तो वोह ये फिल्म राज को दिखा देगा। खैर मैंने समझौता कर लिया।

शादी से कुछ ही दिन पहले केशव के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। इसलिये उनकी शादी स्थगित हो गयी। मेरी और राज की शादी निश्चित दिन को ही होनी थी। हमारे घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। रिटा केशव को भी हमारे घर ले आयी। दोनों की सगाई हो चुकी थी इसलिये किसी को किसी बात की चिंता नहीं थी। हल्दी की रस्म शुरू होनी थी और मेरे घर वाले उस में व्यस्त थे। मेरे कमरे में आकर रिटा मुझे लेकर बाथरूम में घुसी।

"अपने ये कपड़े खोल कर ये सूती साड़ी लपेट ले" उसने कहा तो मैं अपने कपड़े खोलने लगी। तभी दरवाजे पर नॉक हुई। कौन है पूछने पर फुसफुसाती हुई केशव की आवाज आयी। रिटा ने हल्के से दरवाजा खोला और वो झट से बाथरूम में घुस गया।

"मरवाओगे आप... इस तरह भरी महफ़िल में कोई देख लेगा तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी... जम कर जूते पड़ेंगे" रिटा ने कहा। मगर वो कहाँ इतनी जल्दी मान जाने वाला था। वैसे भी ये बाथरूम हमारे बेडरूम से अटेच्ड था। इसलिये किसी को यहाँ आने से पहले बेडरूम का दरवाजा खटखटाना पड़ता। केशव पहले से ही सारा इंतज़ाम करके आया था। उसने दरवाजा अंदर से बँद कर दिया था।

"आज तो अनिता बहुत ही सुंदर लग रही है," केशव ने कहा, "आज तो इसे मैं तैयार करूँगा... तू हट।"

रिटा मेरे पास से हट गयी और केशव उसकी जगह आ गया। उसने मेरे कुर्ते को ऊँचा करना चालू किया और मैंने भी हाथ ऊँचे कर दिये। अब तक मैं इतनी बार केशव की हम-बिस्तर हो चुकी थी की अब उसके सामने कोई शर्म बाकी नहीं बची थी। सिर्फ़ किसी के आ जाने का डर सता रहा था। उसने मेरे कुर्ते को बदन से अलग कर दिया। फिर मुझे पीछे घुमा कर मेरी ब्रा के हुक ढीले कर दिये। फिर दोनों स्ट्रैप पकड़ कर कँधे से नीचे उतार दिये और मेरी ब्रा खुलकर उसके हाथों में आ गयी। उसने उसे मेरे बदन से अलग करके अपने होँठों से चूमा और फिर रिटा को पकड़ा दी। फिर उसने मेरी सलवार के नाड़े को पकड़ कर उसे ढीला कर दिया। सलवार टाँगों से सरसराती हुई नीचे ढेर हो गयी। फिर उसने मेरी पैंटी के इलास्टिक को दो अँगुलियों से खींच कर चौड़ा किया और अपने हाथ को धीरे-धीरे नीचे ले गया। छोटी सी पैंटी बदन से केंचुली की तरह उतर गयी। मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी हो गयी थी। उसने खींच कर मुझे शॉवर के नीचे कर दिया। फिर मेरे बदन को मसल मसल कर नहलाने लगा। रिटा ने रोकना चाहा कि अभी नहीं। लेकिन उसने कहा "तुम दोबारा नहला देना।" मुझे नहलाने के बाद उसने मेरे सारे बदन को पोंछ-पोंछ कर सुखाया।

"लो अनिता को ये साड़ी पहनानी है। देर हो रही है उसे हल्दी लगवानी है।" रिटा ने एक साड़ी केशव की तरफ बढ़यी।

"पहले मैं इसे अपने रस से नहला दूँ... फिर इसे कपड़े पहनाना।" कह कर केशव ने मुझे बाथरूम में ही झुकने को मजबूर कर दिया। पहले केशव की इन बदतमीजियों से मुझे सख्त नफ़रत थी मगर आजकल जब भी वो मुझे विवश करता था तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता था। मैं चुपचाप उसके कहे अनुसार काम करने लगती थी... मानो उसने मुझे किसी मोहपाश में बाँध रखा हो। उसने पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और मेरे बूब्स को मसलता हुआ धक्के मारने लगा।

"जल्दी करो... लोगबाग खोजते हुए यहाँ आते होंगे" रिटा ने केशव से कहा। वो मुझे धक्के खाते हुए देख रही थी। "मेरी सहेली को क्या कोई रंडी समझ रखा है तुमने... जब मूड आये टाँगें फैला कर ठोकने लगता हो।"

केशव काफी देर तक मुझे इस तरह चोदता रहा और फिर मेरी एक टाँग को ऊपर कर दिया। उस वक्त मैं दीवार का सहारा लिये हुए खड़ी थी और मेरा एक पैर जमीन पर था और दूसरे को केशव ने उठा कर अपने हाथों में थाम रखा था। वोह मेरी फैली हुई चूत में अपना लंड डाल कर फिर चोदने लगा। मगर इस स्थिति में वो ज्यादा देर नहीं चोद सका और मेरी टाँग को छोड़ दिया। फिर उसने मुझे रिटा का सहारा लेने को मजबूर कर दिया और फिर शुरू हो गया। मैंने उसकी इस हरकत से तड़पते हुए अपने चूत-रस की वर्षा कर दी। वो भी अब छूटने ही वाला था। उसने अचानक अपना लंड बाहर निकाल लिया और मुझ घुटनों के बल झुका कर मेरे बदन को अपने वीर्य से भिगो दिया। मेरे चेहरे पर, बूब्स पर, पेट, टाँगों और यहाँ तक कि बालों में भी वीर्य के कतरे लगे हुए थे। कुछ वीर्य उसने मेरी ब्रा के कप्स में डाल दिया। केशव ने फिर एक बार अपना लंड मसल कर मेरे बदन पर अपने वीर्य का लेप चढ़ा दिया। पूरा बदन चिपचिपा हो रहा था। फिर उसने मुझे उठा कर अपने वीर्य से भीगी हुए ब्रा मुझे पहना दी। उसने फिर मुझे बाकी सारे कपड़े पहना दिये और मैं बाथरूम से बाहर आ गयी। फिर रिटा ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और हम बाहर निकल गये। केशव दरवाजे के पीछे छिप गया था और हमारे जाने के कुछ देर बाद जब वहाँ कोई नहीं था तो चुपचाप निकल कर भाग गया। उसकी हरकतों से मेरा दिल तो काफी देर तक जोर-जोर से धड़कता रहा। रिटा के माथे पर भी पसीना चू रहा था। हल्दी की रस्म अच्छी तरह पूरी हो गयी और फिर कोई घटना नहीं हुई।

मैं शाम को छः बजे ब्यूटी-पॉर्लर से मेक-अप करवा कर लौटी थी। ब्यूटीशियन ने बहुत मेहनत से साँवारा था। मैं वैसे भी बहुत खूबसूरत थी इसलिये थोड़ी मेहनत से ही एक दम अप्सराओं की तरह लगने लगी। सुनहरी रंग की लहँगा-चोली और सुनहरी रंग के ही हाई हील सैंडलों में एकदम राजकुमारी सी लग रही थी। रिटा हर वक्त साथ ही थी। काफी देर से केशव कहीं नहीं दिखा था। शादी के लिये एक मैरिज हाल बुक किया गया था। उसके फर्स्ट फ्लोर पर मेरे ठहरने का स्थान था। मैं अपनी सहेलियों से घिरी हुई बैठी थी। रात को लगभग नौ बजे बैंड वालों का शोर सुनकर पता चला कि बारात आ रही है। मेरी सहेलियाँ दौड़ कर खिड़की से झाँकने लगी। वहाँ अँधेरा होने से किसी की नजर ऊपर खिड़की पर नहीं पड़ती थी।

अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एक-एक कर के खिसक गयीं। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दुल्हा और बारात देखने के लिये भाग गयी। मैं कुछ देर के लिये बिल्कुल अकेली पड़ गयी। एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और केशव अंदर आया। मैं इस वक्त उसे देख कर एक दम घबरा गयी। उसने आकर बाहर के दरवाजे को बँद कर दिया।

"केशव अब कोई गलत हर्कत मत करना... किसी को पता चल गया तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जायेगी... सब थूकेंगे मुझ पर और मैं किसी को मुँह दिखाने के भी काबिल नहीं रह जाऊँगी।" मैंने अपने हाथ जोड़ दिये और वो चुप रहा। "देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना... जहाँ चाहे बुला लेना मगर आज नहीं। आज मुझे छोड़ दो।"

"अरे मैं कोई रेपिस्ट थोड़ी हूँ जो तेरा रेप करने चला हूँ। आज इतनी सुंदर लग रही हो कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दो।"

वो आकर मुझसे लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। डर था सारा मेक-अप खराब नहीं हो जाये। मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे बूब्स पर हल्के से हाथ फिराये। शायद उसे भी मेक-अप बिगड़ जाने का डर था। "आज तुझे इस वक्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ" कहकर उसने मेरे लहँगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहँगे को कमर तक उठा दिया। फिर उसने मेरी पिंक रंग की पारदर्शी पैंटी को खींच कर निकाल दिया और उसे अपनी पैंट की जेब में भर लिया। फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में ठेल दिया। मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे चोद रहा था।

सामने बारात आ रही थी और उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी। और मैं - दुल्हन - किसी और से चुद रही थी। अँधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र वहाँ नहीं पड़ रही थी वरना गज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम किसी और काम में। कुछ देर में उसने ढेर सार वीर्य मेरी चूत में झाड़ दिया। मेरा भी उसके साथ ही चूत-रस निकल गया। बारात अंदर आ चुकी थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। केशव झपट कर बगल वाले कमरे की और लपका। मैंने उसके हाथ को थाम लिया। "मेरी पैंटी तो देते जाओ।" मैंने कहा।

"नहीं ये मेरे पास रहेगी।" कह कर वो भाग गया। दोबरा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। दो-तीन सहेलियाँ अंदर आयीं।

"क्या हुआ?" उन्होंने पूछा

"कुछ नहीं... आँख लग गयी थी... थकान के कारण।" मैंने बात को टाल दिया मगर रिटा समझ गयी कि दाल में काला है। मैंने उसे अपने को घूरते पाया और मैंने अपनी आँखें झुका लीं।

"चलो चलो। बारात आ गयी है। आँटी अंकल जय माला के लिये बुला रहे हैं" सब ने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे-धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। केशव का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था। पैंटी नहीं होने के कारण दोनों जाँघें चिपचिपी हो रही थी। मैंने उसी हालत में शादी की। पूरी शादी में जब भी केशव नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी पिंक पैंटी झाँकती हुई मिली। एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्तिथि थी।

खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक। दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिये वहाँ पहुँचे। रास्ते में राज की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो राज का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिये तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। राज ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा। मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। दिनेश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिये अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था।

केशव ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के एक्सपोज़र से दोनों को एक्साइट करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे। कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सरे बदन में करंट जैसा बहने लगता।

अगले दिन भी राज की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसके बार-बार कहने पर मैं दिनेश और दीपक भैया के साथ घूमने निकली। मैंने भरपूर मेक-अप किया। दोनों के पास कार थी मगर उसे नहीं लेकर दोनों ने एक टैक्सी बुक की थी। इसका कारण तो मुझे बाद में पता चला कि दोनों असल में मेरे नज़दीक रहना चाहते थे। कोई भी ड्राईव नहीं करना चाहता था। पीछे की सीट पर मेरी दोनों तरफ में दोनों भाइ सट कर बैठे थे। अब दोनों की शायद ड्राईवर से पहले से ही कुछ बात हो चुकी होगी क्योंकि वो काफी तेज़ चला रहा था। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर हर मोड़ पर मैं कभी दिनेश के ऊपर गिरती तो कभी दीपक के ऊपर। दोनों मुझे संभालने के बहाने मेरे बदन को इधर-उधर से छू रहे थे। मैं भी उनके साथ खिलखिला रही थी। इससे उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी। उन्होंने अपनी कुहनियों से मेरी एक-एक चूंची को भी दबाना शुरू किया। हम इसी तरह मस्ती करते हुए कईं जगह घूमे और घूमते घूमते दोपहर हो गयी।

अचानक बात करते-करते दिनेश ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख कर दबाया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथ को वहाँ से हटा दिया। मगर कुछ देर बाद जब वापस उसने अपना हाथ मेरी जाँघों पर रखा तो मैंने कुछ नहीं बोला। उसे देख कर दीपक ने भी अपना हाथ मेरी दूसरी जाँघ पर रख दिया और दोनों मेरी जाँघों पर हाथ फिराने लगे।

"क्या कर रहे हो? ड्राइवर देख रहा होगा। मैं तुम्हारे भाई की बीवी हूँ।" मैंने उन्हें रोकते हुए कहा।

"अपना ही आदमी है... कुछ नहीं सोचेगा और रही बात राज की तो वोह तो रोज ही तुम्हारे पास रहेगा... हम को तो कभी कभार मौके का फायदा उठा लेने दो।" कहकर दीपक ने एक कम्बल निकाल कर हम तीनों के ऊपर ओढ़ा दिया और अब तो दोनों को खुली छूट मिल गयी। हम तीनों ने अपने-अपने बदन को कम्बल में छिपा लिय। दोनों मेरे बूब्स को अपने हाथों से मसलने लगे। मैं कसमसा रही थी। साड़ी छातियों पर से हट चुकी थी। मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने के लिये दोनों के हाथ आपस में लड़ने लगे और मेरे ब्लाऊज़ के सारे बटन खोल दिये। इसी काम के दौरान दो बटन तो टूट ही गये। मुझे आगे की और झुका कर उन्होंने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरी चूंचियाँ फ़्री हो गयी। दोनों उन पर टूट पड़े और जोर-जोर से मसलने लगे। मैं कभी उनको देखती और कभी सामने ड्राइवर को देखती घबड़ा रही थी मगर ड्राइवर चलाने में मगन था। दीपक के हाथ मेरी साड़ी को ऊँचा करने में लगे थे। फिर दिनेश ने अपना हाथ मेरे पेटीकोट के अंदर डाल कर मेरी पैंटी पर फिराया।

"नहीं प्लीज़... यहाँ नहीं।" मैं फुसफुसा कर बोली।

"कुछ नहीं होगा" दिनेश ने कहा।

"आआआआआप दोनों क्या कर रहे हो... मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ," मैंने कहा, "मैं बर्बाद हो जाऊँगी... प्लीज़ छोड़ दो मुझे।"

"ठीक है।" दीपक ने कहा और फिर ड्राइवर से बोला "गाड़ी सन-व्यू होटल की तरफ ले चलो"

ड्राइवर ने कुछ देर में होटल के पोर्च में ले जाकर कार रोकी। मैं तब तक अपने कपड़े वापस पहन चुकी थी। उनकी बाँहों में समाये मैं लाऊँज में पहुँची। दीपक ने अलग हो कर काऊँटर पर जा कर कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर बोला कि चलो रूम नम्बर एक सौ अस्सी में।

दोनों मुझे लेकर फर्स्ट फ्लोर पर बने एक सौ अस्सी नम्बर कमरे में आ गये। दोनों अंदर घुसते ही मुझ पर टूट पड़े। कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह नंगी थी। दोनों इतने उतावले थे कि मुझे अपने सैंडल भी नहीं उतारने दिये और मुझे फटाफट उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी टाँगें फैला दीं। दोनों अभी तक पूरे कपड़ों में थे। दिनेश ने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाये और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा। दीपक मेरे गालों पर अपने होंठ फिराने लगा। एक जाड़ी होंठ टाँगों की तरफ से मेरी चूत की तरफ बढ़ रहे थे तो दूसरी जोड़ी होंठ मेरे माथे से फिसलते हुए गालों पर, कानों के पीछे से दोनों बाँहों को चूमते हुए मेरे होंठों पर आकर रुके। पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी। मुझे लग रहा था कि दोनों देर क्यों कर रहे हैं... मुझे पकड़ कर अब तो बस मसल दें। दीपक ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और अपनी जीभ को सारे मुँह में फिराने लगा। दूसरे की जीभ मेरे नीचे वाले मुँह में घूम रही थी। मैंने उत्तेजना में दिनेश का सिर अपने हाथों से अपनी चूत पर दबा दिया और उसकी जीभ को अपनी चूत के और अंदर लेने के लिये मैं अपनी कमर उचकाने लगी। मेरी टाँगें उठकर उसकी पीठ पर आपस में जुड़ कर उसके सिर को दबा रही थी। उधर दीपक के होंठ मेरे होंठों को छोड़ कर धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए पहले मेरे गले पर और फिर धीरे-धीरे मेरी चूंचियों के ऊपर फिरने लगे। मेरी पूरी चूंची को होंठों से नापने के बाद मेरे निप्पलों पर धीरे-धीरे फिरने लगे। मैं उत्तेजना में पागल होने लगी। मुँह से "आआआआआहहहहह नहींईईईई ऊऊऊऊहहहहह" जैसी आवाजें निकलने लगी। बिना किसी का लंड अपने अंदर लिये और दोनों ने कपड़े उतारे बिना मुझे जोर से स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। मैं गर्मी से हाँफ रही थी। मेरी बड़ी-बड़ी चूंचियाँ हर साँस के साथ उठा गिर रही थीं।

Anjaan
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