सहेली की खातिर

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दोनों मुझे इसी हाल में छोड़ कर अपने अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगे हो गये। मैं वहाँ लेटी-लेटी उनके नंगे बदन को निहार रही थी। दोनों के लंड काफी लम्बे और मोटे थे, केशव की तरह। दीपक बिस्तर पर चढ़ कर लेट गया और मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैंने अपनी टाँगें खोल कर उसके लंड को अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में ही दीपक का लंड अपनी चूत के अंदर ले लिया। थोड़ी सी तकलीफ हुई मगर चूत बुरी तरह गीली होने के कारण एक बार में ही लंड अंदर तक चला गया। अब मैं उसके लंड पर धीरे-धीरे उठने बैठने लगी। अब दिनेश बिस्तर पर चढ़ा और उस पर खड़ा होकर अपने लंड को मेरे होंठों से छुवाया। फिर मेरे मुँह को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा। मैंने होंठ खोल कर उसके लंड को ऊपर से नीचे तक जीभ फिरायी। उसकी गोटियों को मुँह में लेकर कुछ देर तक चूसीं और फिर उसके लंड के ऊपर के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगी। पहले अपने होंठों को थोड़ा सा खोल कर सिर्फ उसके लंड के ऊपर के सुपाड़े को तरह तरह से चूसा और फिर अपने मुँह को पूरी तरह खोल कर जितना हो सकता था उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ-साथ उसके लंड पर अपनी जीभ भी फिरा रही थी। दीपक मेरी चूंचियों को अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। मैं उसके लंड पर तेजी से उठा बैठ रही थी। पूरे लंड को एक दम बाहर तक निकालती और फिर तेजी से उसे पूरा अंदर तक ले लेती। उसने मेरे निप्पलों को मसल-मसल कर बड़े बड़े कर दिये थे। वो मुझे अपनी कमर उठा-उठा कर चोद रहा था।

कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से लिसड़ा हुआ चमक रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया। फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ-साथ मेरी चूत में डाल दीं। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गीला किया। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका।

उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं "आआआआहहहह" कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिये रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। "हहहहम्म्म्म्म्‌फफफफफ उउउउहहहहह उफफफफफ" जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गये। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रही मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे।

फिर दूसरे दौर के लिये तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गये। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गये। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिये किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे।

वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का-हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी-बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा, "अनिता कल यहाँ से कोई अस्सी किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है... सुबह वहाँ के लिये निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी"

बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, "नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।" मैंने पल भर के लिये दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिये निकल पड़े।

दो घंटे में वहाँ पहुँच गये। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिये एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये था। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के ग्लास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो ग्लास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी-बारी थिरक रहे थे और डाँस करते-करते कामुक्ता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके साथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते-करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के नाड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी। फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी-बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसरे लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिये वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।

तीनों अब मेरे शरीर से खेलने लगे। मैं भी बहुत गरम हो गयी थी। इन सब के बीच मेरा एक बार पानी निकल गया। सबसे पहले दीपक ने मेरी चूंचियों और चेहरे के ऊपर अपने लंड का पानी गिरा दिया। फिर बाकी दोनों ने मुझे उठा कर घोड़ी की तरह बनाया और पीछे की तरफ से मेरी चूत में बाबू ने अपना लंड डाल दिया। दिनेश के लंड को अभी भी मैं चूस रही थी। मैंने अपनी चूत का पानी दूसरी बार बाबू के लंड पर छोड़ दिया। दोनों काफी देर तक मुझे इसी तरह चोदते रहे और फिर दोनों एक साथ झड़ गये। बाबू के पानी ने मेरी चूत को भर दिया और दिनेश ने मेरे मुँह को अपने वीर्य से भर दिया। कुछ देर मेरे मुँह में स्खलित होने के बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाल लिया और बाकी ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर और मेरे चूंचियों पर गिरा दिया। तीनों थक कर पसर गये। मैं खुद को साफ करने के लिये उठना चाहती थी मगर उन्होंने मुझे उठने नहीं दिया और मुझे वैसे ही वीर्य से सने हुए पड़े रहने को कहा। इसी तरह आसन बदल-बदल कर रात भर और कईं दौर चले। दीपक और दिनेश तो दो दिन से काफी मेहनत कर रहे थे इसलिये मुझ में दो बार स्खलित हो कर थक गये। मगर बाबू ने मुझे रात भर काफी चोदा।

सुबह हम नहा धो कर तैयार होकर वापस आ गये। मैं थक कर चूर हो रही थी। बुआ ने मुझे पूछा, "क्यों रात को ढँग से सो नहीं पायी क्या?" मैंने सहमती में सिर हिलाया। दीपक मुझे देख कर मुस्कुरा दिया। अगले दिन तक राज ठीक हो गया था लेकिन तब तक मैंने काफी सैर कर ली थी। बहुत घुड़सवारी हो चुकी थी मेरी। उसके बाद भी मौका निकाल कर उन दोनों ने मुझे कईं बार चोदा। हफ्ते भर बाद हम वापस आ गये और उसके बाद उनसे मुलाकात ही नहीं हुई दोबारा।

मैं अपनी ससुराल में काफी खुश थी। मुझे बहुत अच्छा ससुराल मिला था। राज शेखर की बहुत ही अच्छी नौकरी थी। वो एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे। काफी अच्छी सैलरी और पर्क्स थे। मुझे मेरी प्यारी सहेली एक ननद के रूप में मिली थी। हम दोनों में खूब घुट्टी थी। केशव कभी-कभी आता था मगर मैं उससे हमेशा बचती थी। अब उसका साथ भी अच्छा लगने लगा था। उसने रिटा के प्रेगनेंनसी की बात झूठी सुनायी थी, जिससे कि मैं विरोध छोड़ दूँ। लेकिन केशव ने मुझे ग्रूप सैक्स का जो चस्का लगाया था उसे दीपक और दिनेश ने जम कर हवा दे दी थी। अब हालत यह थी कि मुझे एक से चुदवाने में उतना मजा नहीं आता था, लगता था सारे छेद एक साथ बींध दे कोई।

रिटा और केशव दोनों खूब चुदाई करते थे। राज कभी-कभी कईं दिनों तक बाहर रहता था और तब मुझे सैक्स की भूख बहुत सताती थी। मैं केशव को ज्यादा लिफ्ट नहीं देना चाहती थी। केशव की ज्वाईंट फैमिली थी। उसमे उसके अलावा दो बड़े भाई और दो बहनें थीं। दो भाई और एक बहन की शादी हो चुकी थी। अब केशव और सबसे छोटी बहन बची थी सिर्फ। रिटा की शादी एक साल बाद दिसंबर के महीने में तय हुई। उसकी शादी गाँव से हो रही थी। मैं पहली बार उसकी शादी के सिलसिले में गाँव पहुँची। वहाँ आबादी कुछ कम थी। पुराने तरह के मिट्टी के मकान थे। राज के परिवार वालों का पुशतैनी मकान अच्छा था। उसके ताऊजी वहाँ रहते थे।

मुझे खुली-खुली हवा में सोंधी-सोंधी मिट्टी की खुशबू बहुत अच्छी लगी। कमरे कम थे इसलिये एक ही कमरे में जमीन पर बिस्तर लगता था। शाम को जिसे जहाँ जगह मिलती सो जाता। एक रात को मैं काम निबटा कर सोने आयी तो देखा कि मेरे राज के पास कोई जगह ही नहीं बची। वहाँ कुछ बुजुर्ग सो रहे थे। बाकी सब सो चुके थे, सिर्फ मैं और माताजी यानि मेरी सास बची थी। वो भी कहीं जगह देख कर लुढ़क पड़ी। मैंने दो कमरे देखे मगर कोई जगह नहीं मिली। फिर एक कमरे में देखा कि बीच में कुछ जगह खाली है। सर्दी के कारण सब रजाई ओढ़े हुए थे और रोशनी कम होने के कारण पता नहीं चल रहा था कि मेरे दोनों तरफ़ कौन-कौन हैं। मैं काफी थकी हुई थी इसलिये लेटते ही नींद आ गयी। मैं चित्त होकर सो रही थी। बदन पर एक सूती साड़ी और ब्लाऊज़ था। सोते वक्त मैं हमेशा अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर सोती थी। अभी सोये हुए कुछ ही देर हुई होगी कि मुझे लगा कि कोई हाथ मेरे बदन पर साँप की तरह रेंग रहा है। मैं चुपचाप पड़ी रही। वो हाथ मेरी चूंची पर आकर रुके। उसने धीरे से मेरी साड़ी हटा कर मेरे ब्लाऊज़ के अंदर हाथ डाला। वो मेरे निप्पलों को अपनी अँगुलियों से दबाने लगा। मैं गरम होने लगी उसकी हर्कतों से। मैंने कोशिश की जानने की कि मेरे बदन से खेलने वाला कौन है। मगर कुछ पता नहीं चला क्योंकि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। वो काफी देर तक मेरे निप्पलों से खेलता रहा। उसकी हर्कतों से मेरे निप्पल सख्त हो गये और मेरी चूंची भी एक दम ठोस हो गयी। अब उसके हाथ मेरी नंगे पेट पर घूमते हुए नीचे बढ़े। उसने अपना हाथ मेरी साड़ी के अंदर डालना चाहा लेकिन नाड़ा कस कर बँधा होने के कारण वो अपना हाथ साड़ी के अंदर नहीं डाल पाया। उसने मेरी साड़ी उठानी शुरू कर दी। साड़ी कमर तक उठ गयी तो उसके हाथ अब मेरी टाँगों के जोड़ पर फिरने लगे। बाद में जब मेरी चूत पर हाथ फिरने लगा तो मैंने बहुत धीरे से अपनी टाँगें कुछ खोल दीं। उसकी एक अँगुली अंदर मेरी चूत पर फिरने लगी। मैं बुरी तरह गरम हो गयी थी। उसने अपना लंड मेरे बदन से सटा दिया और मेरे बदन पर अपना लंड रगड़ने लगा। मुझे लग रहा था की वो अपने लंड को मेरे अंदर कर दे मगर मैं शरम से चुप थी और वो भी शायद पकड़े जाने से डर रहा था। उसने मेरे बदन से अपना लंड रगड़ते हुए अपना वीर्य छोड़ दिया। फिर वो अलग हट कर सो गया मगर मेरी नींद उड़ गयी थी। मुझे पता नहीं चल पा रहा था कि क्या करूँ। मैंने अपनी ब्लाऊज़ के बटन खोल लिये। कुछ देर तक अपनी अँगुलियों से ही अपनी चूत को दबाती रही मगर गर्मी बर्दाश्त के बाहर हो गयी तो मैं अपने दूसरी तरफ सो रहे आदमी के रजाई में घुस गयी और उसके बदन से अपना बदन रगड़ने लगी। बगल में जो भी सो रहा था कुछ ज्यादा उम्र का था मगर बदन से गठीला था। मैं अपने बदन को उसके बदन पर रगड़ने लगी मगर वो शायद गहरी नींद में था इसलिये उसके शरीर में कोई हर्कत नहीं हुई। मैंने अपने होंठ उसके निप्पल पर रख दिये और जैसे कोई किसी लड़की के निप्पल चूसता है उसी तरह उसके निप्पलों को चूसने लगी। अपने होठों को अब मैं उसके घने बालों से भरे सीने पर फिराने लगी। मुझे वैसे ही बालों से भरा बदन अच्छा लगता है। मैंने अपना हाथ उसके बदन पर फिराते हुए धीरे से लंड के ऊपर रखा। उसने एक धोती पहन रखी थी। मैं उसकी धोती को एक तरफ करके अंदर से उसके लंड को निकाल कर सहलाने लगी। उसका लंड ढीला था।

मैं उसे कुछ देर तक हाथ से सहलाती रही। सहलाने से उसके लंड में हल्की सी हर्कत हुई। मुझसे नहीं रहा जा रहा था। मैं किसी बात की परवाह किये बिन उठा कर बैठ गयी और उसके ढीले लंड को अपने मुँह में भर लिया। उसके लंड को जीभ से और होंठों से चाटने लगी। उसका लंड अब खड़ा होने लगा। मैं उत्तेजना में अपने चूंचियों को अपने हाथों से मसल रही थी। मेरी चूत से पानी रिस रहा था। जब मैंने देखा कि उसका लंड पूरी तरह तन गया है तो मैं ऊपर उठी और उसके कमर के दोनों ओर अपने पैरों को फैला कर बैठ गयी। मैंने अपने हाथों से उसके लंड को पकड़ कर अपनी गीली चूत पर सैट किया और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फाँक को फैला कर लंड के सामने के सुपाड़े को अंदर किया। फिर अपने हाथों को वहाँ से हटा कर उसके सीने पर रखा और अपने बदन का बोझ उसके लंड पर डाल दिया। उसका लंड काफी मोटा था। वो मेरी चूत की दीवरों को रगड़ता हुआ पूरा अंदर चला गया। मैं उसके लंड पर बैठ गयी थी। मेरी इस हर्कत से उसकी नींद खुल गयी। मैं उसके शरीर में हर्कत देख कर झट उसके सीने पर झुक गयी और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये जिससे कि वो अचानक नींद से उठ कर कुछ बोल नहीं पड़े। मगर मैंने देखा कि वो चुप ही रहा। उसके हाथ मेरे बदन पर फिरने लगे और फिर उसके हाथों ने मेरी दोनों चूंचियों को थाम लिया। मैंने उसके सीने का सहार लेकर अपनी कमर ऊपर नीचे करने लगी। वो भी मेरे चूंचियों को मसलता हुआ हर धक्के के साथ अपनी कमर ऊपर उठा रहा था। मेरी चूंचियों को जोर जोर से चूसते हुए अपने दाँतों से काट रहा था। दाँतों से काटने की वजह से काफी दर्द हो रहा था मगर मैं अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा कर मुँह से कोई भी आवाज निकलने से रोक रही थी।

मेरे बाल मेरे चेहरे पर खुल कर बिखर गये थे। अँधेरे में पता ही नहीं चल रहा था कि मैं किस का लंड अपनी चूत के अंदर ले रखी हूँ। शायद उसे भी खबर नहीं होगी। कुछ देर तक इसी तरह उसे ऊपर से धक्के लगाने के बाद मेरी चूत ने पानी चोड़ दिया मगर मेरी चूत की प्यास अभी नहीं बुझी थी। उसने अब मुझे नीचे लिटा दिया और मेरे टाँगों को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ लिया। अब वो अपना लंड मेरी चूत से सटा कर धक्का लगाने लगा। फिर से धक्के शुरू हुए। काफी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे उठाकर अपनी गोद में पैर फैला कर बिठा लिया और मैं उसकी गोद में बैठ कर कमर उचकाने लगी। उसने मेरे निप्पलों को मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। मैंने अपने हाथों से उसके मुँह को अपने सीने पर दबा दिया। वो मेरी चूंचियों को मुँह में भर कर चूसने लगा। मेरे निप्पलों को दाँतों से दबा रहा था। कुछ देर तक इस तरह करने के बाद मुझे वापस बिस्तर पर लिटा कर मेरे टाँगों को अपने कँधे पर रख लिया और फिर जोर जोर से चोदने लगा। अब वो झड़ने के करीब था। मैं उसकी उत्तेजना को समझ रही थी। वो अब मेरे चूंची के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहा था। उसकी अँगुलियाँ मेरी नाज़ुक चूंचियों को बुरी तरह मसल रही थी। दर्द के कारण कईं बार मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा लिया। उसने एक जोर का धक्का लगाया और उसके लंड से गरम गरम फ़ुहार मेरी चूत के अंदर पड़ने लगी। मैंने उसे खींच लिया और उसके होंठों और चेहरे पर कईं चुंबन दिये। उसी के साथ मैं भी तीसरी बार झड़ गयी। मैंने उत्तेजना में अपने लम्बे नाखून उसकी नंगी पीठ पर गड़ा दिये। वो थक कर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब उसका लंड ढीला पड़ गया तो वो मेरे सीने से उतर कर मुझसे लिपट कर सो गया। मैं भी तीन बार स्खलित होके उसके होंठों से अपने होंठ लगाये हुए सो गयी।

मैं सुबह पाँच बजे उठ जाती हूँ। आज जब उठी तो कमरे में अँधेरा था। मैं अपने बगल वाले से चिपकी हुई थी। दूसरी तरफ वाला भी अपनी एक टाँग मेरे ऊपर चढ़ा रखा था। मैंने अपने को उन दोनों से छुड़ाया और धीरे-धीरे उनके नीचे से अपने कपड़ों को खींच और फिर अँधेरे में ही उन्हें पहन कर कमरे से बाहर निकलने लगी। तभी खयाल आया कि एक बार देखूँ तो सही कि कौन थे रात को मेरे साथ। मैंने लाईट जलायी तो उन्हें देखते ही चौंक गयी। वहाँ एक तरफ तो नैनीताल वाले फ़ुफ़ा-ससुर सोये हुए थे और मुझे रात भर चोदने वाला और कोई नहीं मेरे अपने ससुर जी थे यानी रिटा और राज के पिताजी। मैं तुरंत लाईट बँद करके वहाँ से भाग गयी।

मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं ये सोच कर अपने दिल को तसल्ली दे रही थी कि शायद उन्हें पता नहीं चला है कि रात को उन्होंने किसके साथ चुदाई की है। मैंने एक सलवार कुर्ता पहन रखा था, जिसका गला काफी खुला हुआ था। मैं सुबह अपने ससुर को चाय देने के लिये जब झुकी तो मेरा गला और ज्यादा खुल गया। उठते हुए मेरी नज़र उनसे मिली वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैंने अपनी चूंचियों की तरफ देखा। खुले गले से लाल-लाल दाँतों से बने निशान उनकी आँखों के सामने रात की कहानी का ब्योरा दे रहे थे। मैं शर्मा कर अपनी नज़र झुका कर वहाँ से भाग गयी। उस दिन शाम को उन्होंने अकेले में मुझे पकड़ लिया। मैं तो एक दम घबड़ा गयी थी। उन्होंने मेरी चूंचियों को मसल कर कहा "अब रोज हमारे साथ ही सोया कर। तेरे नैनीताल वाले ससुर जी भी यही कह रहे थे।" "धत्त" कह कर मैं अपने आप को छुड़ा कर वहाँ से भाग गयी लेकिन हर दिन मैं वहीं सोयी। उन दोनों बुढ्ढों के बीच। दोनों के साथ खूब खेली कुछ दिनों तक। शादी वाले दिन बारात के साथ सुरेश आया था। मैं उसे देख कर शर्मा गयी। उससे नज़र बचा कर थोड़ा अलग हो गयी। मगर उसकी निगाहें तो मुझे ही ढूँढ रही थी। शादी घर से कुछ दूर हो रही थी। एक बार मैं किसी काम के लिये शादी के मंडप से घर आ रही थी। गाँव में जैसा होता है... रास्ते में अँधेरा था। अचानक भूत की तरह सुरेश सामने आया।

"अनिता" उसने आवाज लगायी। मैं रुक गयी। "क्या बात है मुझे बहुत जल्दी भूल गयी लगता है"

"कौन है तू... मेरा रास्ता छोड़ नहीं तो अभी आवाज लगाती हूँ... तेरी ऐसी हजामत होगी कि खुद को आईने में नहीं पहचान पायेगा" मैंने नासमझ बन कर कहा।

"नो बेबी तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी..." उसने कड़कते हुए कहा, "मेरे पास तेरी सी.डी अभी भी है... बोल चला दूँ क्या तेरे ससुराल वालों के सामने... कहीं भी मुँह नहीं दिख पायेगी।"

यह सुनते ही मैं सकपका गयी। "क्या चाहते हो तुम? देखो मैं वैसी लड़की नहीं हूँ... एक अच्छे घर की बहू हूँ... तुम मुझे जाने दो।" मैंने उससे कहा।

"तो हम भी कौनस तुझे कुछ कहने वाले हैं। इतने दिनों बाद मिली हो... बस एक बार हमारे ग्रुप का मन रख लो... फिर तुम अपने घर हम अपने घर।" उसने मुझे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

"देखो मैं अगर लेट हो गयी तो लोग मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ जायेंगे... छोड़ो मुझे।"

"ठीक है अभी तो छोड़ देते हैं लेकिन तुझे रात को आना पड़ेगा... नहीं तो उस फ़िल्म की कॉपियाँ तेरी ससुराल में सबको फ़्री में बँटवा दुँगा" कहकर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं छूटते ही भागी तो उसने पीछे से आवाज लगायी "हमें इशारा कर देना कि कहाँ चलना है... जगह ढूँढना तेरा काम है"

मैं भाग गयी वहाँ से लेकिन एक टेंशन तो घुस ही गयी दिमाग में। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कैसे मकड़ी के जाल में उलझती जा रही हूँ। इसका कोई अँत ही नहीं दिख रहा था। लेकिन इतना तो मालूम था कि वो झूठ नहीं बोल रहा था। केशव के साथ होटल में हुई पहली मुलाकत में उसने मूवी कैमरे से सब कुछ खींचा था। अब अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझे बदनाम कर देगा। इसलिये मैंने उससे मिल ही लेने का विचार किया। सुबह तीन बजे फेरे थे, इसलिये मैंने सुरेश को इशारा किया। वो मेरे पीछे हो लिया। मैं अपनी सासू माँ को कुछ देर घर से हो कर आने को कह कर वहाँ से निकल गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे और ज्यादा तर लोग सो चुके थे। जो मंडप में थे वो ही सिर्फ़ जागे हुए थे। इसलिये पकड़े जाने का कोई सवाल ही नहीं था। सुरेश के साथ तीन और आदमी थे। मैं उन्हें घर ले गयी। छत पर अँधेरा था और मैं उन्हें वहाँ ले गयी।

"देखो जो करना है जल्दी करो... अभी शादी का माहौल है... कभी भी कोई आ सकता है" मैंने कहा।

चारों ने मुझे पकड़ लिया और मेरे बदन से लिपट गये। मेरे कपड़ों पर हाथ लगते ही मैंने कहा, "इन्हें मत उतारो... मैं साड़ी उठा देती हूँ ... तुम्हें जो करना है कर लो। मेक-अप बिगड़ गया तो कोई भी समझ जायेगा"

"तू यहाँ चुदवाने आयी है या हम पर एहसान कर रही है... साली रंडी कितने ही मर्दों से चुदवा चुकी है... अब सती-सावित्री बन रही है। उतार साली अपने कपड़े" उसने दहाड़ कर कहा। मैंने भी देखा कि चारों मानने वाले हैं नहीं, इसलिये मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। साड़ी उतार कर मैंने उनसे फिर मिन्नतें की "प्लीज़ ऐसे ही जो करना है कर लो मेरे सारे कपड़े मत उतारो" मैंने सुरेश को कहा।

"नहीं ब्लाऊज़ और पेटीकोट तो उतारना ही पड़ेगा"

मैंने धीरे-धीरे अपना ब्लाऊज़ और पेटीकोट उतार दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा-पैंटी और हाई हील सैंडल पहने ठंडी रात में छत पर उन चारों के सामने खड़ी थी। फिर उनकी तरफ देखते हुए अपनी ब्रा के स्ट्रैप कँधे सी नीचे सरका दी। मैंने हुक नहीं खोला लेकिन ब्रा से चूंचियों को आजाद कर दिया। अब चारों ने झपट कर मुझे पकड़ लिया और मेरे अँगों को सहलाने लगे। एक मेरे होंठों को चूस रहा था और मेरे होंठों से लिपस्टिक का स्वाद चख रहा था। दूसरा मेरी चूंचियों को मसल रहा था। एक मेरे पैरों के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे खिसका कर मेरे चूत के ऊपर अपनी जीभ फिरा रहा था। चौथे आदमी को जगह नहीं मिल रही थी इसलिये मैंने उसे भी शामिल करने के लिये हाथ बढ़ा कर उसके लंड को थाम लिया और हाथ से उसे प्यार करने लगी।

चारों मुझे खींच कर मुँडेर पर ले गये और मुझे वहाँ मुँडेर की रेलिंग पकड़ कर आगे झुका कर सुरेश ने मेरे पीछे से अपना लंड अंदर डाल दिया और तेजी से अंदर बाहर करने लगा। उन लोगों का उतावलापन देख कर मुझे मजा आ रहा था।

"ठहरो थोड़ा रुको" मैंने कहा "इस तरह एक-एक को संतुष्ट करने में सारी रात लग जायेगी... समय नहीं है ज्यादा... चारों एक साथ आ जाओ।"

मुझे इस तरह गरम बातें करते देख बाकी तीनों मस्त हो गये। मैंने एक को जमीन पर लेटने को कहा। अब मैंने किसी बात की परवाह किये बिना अपनी पैंटी अपनी टाँगों से निकाल दी और ब्रा का भी हुक खोल कर के उतार दी और अब मैं सिर्फ हाई पेन्सिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी थी। चुदाई की गरमी के कारण मुझे मौसम की सर्दी का एहसास नहीं हो रहा था। वहाँ एक दरी का इंतज़ाम करके एक तो उस पर लेट गया। मैंने अपने पैर फैला कर उसके लंड को अपनी चूत में सटा कर उसे अपने अंदर ले लिया। मेरे मुँह से एक "हुम्म्म्फफ" की आवाज निकली और मैं उसके लंड पर बैठ गयी । मैंने अपने शरीर को दो चार बार ऊपर-नीचे किया। चूत-रस से लंड गीला हो जाने के कारण कोई तकलीफ नहीं हुई। फिर मैं उसके ऊपर झुक गयी और मैंने अपने पैर फैला कर सुरेश को पीछे से आने को कहा। सुरेश ने मेरे चूत्तड़ों को खोल कर गाँड के मुहाने पर अपना लंड सटा कर एक जोर का झटका लगाया। "ऊऊऊऊऊऊईईईईईईईई मैं मरररर गयीईईईईई," मैं चींख उठी, "अरे इसे कुछ गीला तो करो काफी दर्द हो रहा है।"