शबाना की चुदाई

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रमेश ने कहा, “अब तेरी मुस्लिम चूत पूरी तरह से आज़ाद है शबाना इज़्ज़त शरीफ! आज मेरे लंड ने तेरी इज़्ज़तदार शादीशुदा चूत को चोद कर तुझे राँड बना दिया।” मैंने रमेश के चूतड़ों को शरारत से दबाया और कहा, “तुम्हारे लंड को मेरा सलाम मेरे हिंदू राजा! जिसने मेरी इज़्ज़त को अपने हिंदू जज़्बे से चोद कर मुझे मज़े दिये!”

अब रमेश उठा और मेरी चूत से लंड निकाला। मैंने रमेश का लंड अपने नकाब से साफ़ किया और रमेश के अनकटे काले लंड के अपने होंठों से किस किया। रमेश मेरी जिस्म को देखता हुआ कपड़े पहनने लगा और मैं भी कपड़े पहनने लगी। दोनों ने कपड़े पहने और रमेश ने मेरे बुऱके का नकाब उठाया और बोला, “ये निशानी है मेरे पास कि तूने मेरा लंड चूसा है!” और अपनी जेब में रख लिया। अचानक मुझे लगा कि मेरे शौहर ने मुझे पुकारा! मैंने जल्दी से रमेश को कहा कि “अब मुझे इजाज़त दो” और मैंने झुक कर रमेश को सलाम किया। रमेश ने मेरा सर थोड़ा सा झुका कर अपनी पैंट पर ले गया। मैंने उसकी पैंट पर से उसके लंड को किस किया और फिर रमेश ने मेरा एक बूब और चूतड़ पकड़ कर मुझे किस किया और जाते हुए बोला, “अपनी चूत का खयाल रखना!” मैंने भी अपनी कमीज़ उठा कर सलवार के ऊपर से चूत पर हाथ रखा और कहा, “तेरी अमानत है रमेश! जैसे चाहे इस्तेमाल कर मेरे हिंदू चुदक्कड़!” जाते-जाते रमेश ने हाथों से चुदाई का इशारा किया और मैं हंसते हुए सीढ़ियों का दरवाजा खोल कर नीचे चली गयी। मेरा शौहर असलम अभी भी नशे में धुत्त सोफे पर पड़ा खर्राटे मार रहा था।

उस दिन के बाद तो मैं रमेश के हिंदू अनकटे लण्ड से अक्सर चुदवाने लगी। उसकी रखैल जैसी बन गयी थी मैं। वो भी मुझे शराब पिला-पिला कर बाज़ारू राँड की तरह चोदता था। मैं उसके लण्ड की इस कदर दीवानी हो गयी थी की अपनी पाकिज़ा गाँड भी उसे सौंप दी। दिन में जब मेरा शौहर दफ़्तर में होता तो रमेश मेरे बिस्तर में मुझे चोद रहा होता था। कईं बार तो असलम घर में नशे में चूर सो रहा होता था और मैं छत्त पर पानी की टंकी के पीछे रमेश का अनकटा लण्ड चूत में ले कर मज़े लूटती। असलम को इस बात की कभी शक नहीं हुआ कि उसकी नाक के नीचे ही मैं दिन-रात एक हिंदू गैर-मर्द के साथ अपनी चूत और गाँड मरवा कर इज़्ज़त निलाम कर रही हूँ।

रमेश के अनकटे लण्ड से अपनी चूत चुदवाते हुए दो साल निकल गये। एक दिन शौहर असलम इज़्ज़त शरीफ के साथ मैं कुछ खरीददारी करने गयी। वैसे तो हम कभी-कभार ही साथ में बाहर जाते थे लेकिन उस दिन असलम मियाँ को रिश्वत में कहीं से मोटी रकम मिली थी और वो काफी खूश और खर्चा करने के मूड में थे। मैंने भी पूरा फायदा उठाया और अपने लिये खूब खरीददारी की और शौहर असलम शरीफ ने भी कोई आनाकानी नहीं की। आखिर में मेरे लिये सेन्डल खरीदने हम लेडीज़ जूतों के शो-रूम में पहुँचे। वहाँ दुकान का मालिक और एक असिसटेंट मौजूद था।

मेरे शौहर तो हमेशा की तरह दुकान के काऊँटर के पास ही सोफे पर बैठ गये क्योंकि उन्हें तो मेरे कपड़े-लत्ते सैंडल वगैरह पसंद करने में कोई दिल्चस्पी थी ही नहीं। दुकान का असिसटेंट सैंडलों के डब्बे निकाल- निकाल कर लाने लगा और दुकान का मालिक मेरे पैरों में बहुत ही इत्मिनान से नये-नये सैंडल पहना कर दिखाने लगा। मैंने बुऱका पहना हुआ था और हमेशा की तरह नकाब हटा रखी थी। दुकान का मालिक बुऱके में से ही मेरे उभरे हुए ३६-सी के मम्मे और ३८ की गाँड को लुच्ची नज़रों से घूर रहा था और सैंडल पहनाते हुए मेरे गोरे-नर्म पैर सहला रहा था। मुझे भी उसकी इस हरकत से मज़ा आ रहा था और मेरी चुप्पी से उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। वो बहुत ही प्यार से मेरे पैरों में सैंडल पहनाते हुए पैरों से ऊपर मेरी टाँगों को भी छूने लगा। बीच-बीच में सेल्ज़मन्शिप के बहाने मेरी तारीफ भी कर देता, “ये वाली सैंडल में तो आप करीना-कपूर लगेंगी… ये पाँच इंच की पेंसिल हील के सैंडल तो आपके खूबसूरत पैरों में कितने जंच रहे हैं…!” मैं एक जोड़ी सैंडल खरीदने आयी थी और अब तक दो जोड़ी पसंद करके अलग रखवा चुकी थी।

दुकान के मालिक की पैंट में से उसके लण्ड का उभार मुझे नज़र आने लगा था। उसकी हरकतों और बातों से मेरी चूत भी रिसने लगी थी। रमेश के लंड से चुदवाते-चुदवाते मैं भी ठरकी और बे-शर्म हो गयी थी लेकिन शौहर की मौजूदगी का भी एहसास था। इसी बीच में दुकान के मालिक ने एक सैंडल पहनाते हुए मेरा पैर अपने लंड के उभार पर रख दिया तो मैंने भी शरारत से सैंडल उसके लंड पर दबा दी। उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं धीरे से मुस्कुरा दी। आखिर में मैंने चार जोड़ी ऊँची हील वाली सैंडलें पसंद किये और दुकान मालिक के साथ बाहर काऊँटर पर आ गयी।
“बेगम ले ली आपने सैंडल!” शौहर का मिजाज़ कुछ उखड़ा हुआ सा लग रहा था पर मैंने ज्यादा त्वज्जो नहीं दी और दुकान के मालिक के हाथों में मौजूद डब्बों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हाँ... मुझे पसंद आ गयीं तो चार जोड़ी ले लीं!” शौहर ने दुकन मालिक से पूछा, “कितने पैसे हुए?” तो दुकान मालिक ने बताया “नौ हज़ार तीन सौ पचास! बहुत ही हाई-क्लास पसंद है मोहतरमा की!” मेरे शौहर ने पैसे निकाल कर उसे दिये और इतने में मेरा मोबाइल फोन बजने लगा तो मैं अपनी सहेली असमा से बात करने लगी। इतने में मुझे एहसास हुआ कि मेरे शौहर और दुकान मालिक में झगड़ा शुरू हो गया है। मैंने जल्दी से मोबाइल बंद किया और शौहर को समझाते हुए बोली कि, “महंगे हैं तो एक जोड़ी कम कर देती हूँ!”

लेकिन वो झगड़ा पैसे का नहीं बल्कि इस बात का था कि मेरे शौहर ने दुकान मालिक को मेरे बुऱके में से मेरे जिस्म को मज़े लेकर घुरते हुए देख लिया था। मेरे शौहर असलम शरीफ चिल्लाते हुए दुकान मालिक को औरतों के साथ तमीज़ से पेश आने की बात कह रहे थे। अब दुकान मालिक काऊँटर छोड़ कर बाहर आ गया और दोनों एक दूसरे को धक्का देने लगे लेकिन वो दुकानदार काफी तगड़ा था। उसने शौहर असलम को इतनी ज़ोर से धक्का दिया के वो ज़मीन पर गिर गये।

वो दुकानदार फिर से शौहर को मारने के लिये आगे बढ़ा पर मैं बीच में आ गयी और वो मेरे जिस्म से टकरा गया। मेरे बीच में होने की वजह से मेरे बुऱके में उभरी हुई गोल मखमली चूचियाँ उस दुकानदार से कईं बार टकरा कर दब गयीं। फिर मैंने मिन्नतें की तब जाकर दुकानदार ने कहा, “ले जाओ मोहतरमा इस साले को वरना इसकी गाँड पर इतना मारुँगा कि साला फिर पतलून कभी नहीं पहन सकेगा।”

शौहर असलम को गुस्सा करते हुए मैं बाहर ले जाने लगी। जैसे ही दरवाजे से उनको बाहर किया और मैं भी सैंडलों की थैलियाँ ले कर बाहर जाने वाली थी कि दुकानदार ने ज़ोर से मेरे चूतड़ों को दबा दिया। “ऊँह अल्लाहऽऽ!” मेरे मुँह से निकला और मैं बाहर आ गयी और भूरी नशीली आँखों से पलट कर दुकानदार को देखकर शरारत से मुस्कुरा दी। फिर शौहर को लेकर घरगर आ गयी।

इस वाक्ये के बाद दो हफ़्ते गुज़रे थे कि एक दिन सुबह-सुबह मैं नहाने के बाद गीले कपड़े सुखाने छत्त पर गयी। अचानक मेरी नज़र अपनी बगल वाले मकान की छत्त पर पढ़ी। अरे ये क्या! इस मकान में तो दो-तीन सालों से कोई नहीं रहता था। अब ये कौन एक मर्द जिस्म पर धागा बाँधे और सिर्फ़ धोती पहने मेरी तरफ़ पीठ किये हुए सूर्य नमस्कार कर रहा है। मैं कुछ देर खड़े होकर कपड़े सुखाते हुए उसे देखने लगी लेकिन जब वो मेरी तरफ़ पलटा तो हैरत की कोइ इंतेहा नहीं थी। ये तो वही दुकानदार था जिसके साथ मेरे शौहर असलम ने झगड़ा किया था और इसने मेरे चूतड़ों को कितनी बेरहमी से दबाया था। मुझे देखकर वो मेरी तरफ़ बढ़ा तो मैं घबरा कर जल्दी से नीचे आ गयी। उधर देखा कि शौहर असलम सो रहे हैं। मैं परेशान थी कि शायद फिर ये कमबख्त शौहर उस दुकानदार से झगड़ा न शुरू कर दे। दूसरी परेशानी ये थी कि अब मुझे छत्त पर रमेश के साथ चुदाई के वक्त एहतियात बरतनी पड़ेगी। दोनों छत्तें सटी हुई थीं और इतने सालों से वो मकान खाली होने की वजह से पुरी प्राइवसी थी और हम बे-खौफ होकर रात को छत्त पर चुदाई करते थे।

दोपहर को मैं शौहर असलम के साथ बुऱका पहने बाहर निकली कि बाजू के मकान से वो दुकानदार भी बाहर निकला और असलम ने उसे देखते ही नज़र फेर ली। मैंने सोचा चलो बला टली कि दोनों ने झगड़ा नहीं किया। वो हिंदू भी अपनी हीरो होंडा हंक बाइक स्टार्ट करके जाने लगा लेकिन जाते-जाते उस हिंदू मर्द ने मेरी तरफ़ देख कर मुँह से किस किया और हंसता हुआ चला गया। उफ़्फ़्फ़ अल्लाह! अब ये क्या! मेरे जिस्म में मिठी सी सिहरन दौड़ गयी और मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी।

अगले कुछ दिनों में मैंने देखा कि वो हिंदू मर्द बाजू वाले मकान में अकेला ही रहता है और सुबह जल्दी निकल जाता है और फिर रात को ही वापस आता है। मैंने रमेश को कुछ नहीं बताया और हमारी ऐय्याशी बिना किसी दिक्कत के वैसे ही ज़ारी रही। कुछ दिनों में ईद आ गयी। सुबह-सुबह मैं नहा कर कपड़े सुखाने ऊपर गयी ताकि जल्दी से काम हो जाये और मैं जल्दी से शीर-खोरमा और खाना वगैरह बना लूँ। जैसे ही मैं ऊपर गयी तो बाजू वाली छत्त पर वो हिंदू मर्द मेरी तरफ़ पीठ किये हुए मौजूद था। मुझे लगा कि शायद सूर्य-नमस्कार कर रहा होगा। मुझे जल्दी थी लेकिन फिर भी जाने क्यों मैंने जल्दी नहीं की और उसे देखते हुए आहिस्ता-आहिस्ता कपड़े सुखाने लगी। कुछ लम्हों बाद जब वो पलटा जो मेरी छिनाल मुस्लिम चूत के तो होश उढ़ गये।

वो सूर्य-नमस्कार नहीं बल्कि मेरा ही इंतज़ार कर रहा था। हाथ में एक सैंडल का डब्बा था और धोती से अनकटा हिंदू लंड बाहर निकल कर अकड़ कर खड़ा था। वो खड़े नंगे लंड को लेकर दोनों छत्तों के दर्मियान दीवार के पास आया और मुस्कुराते हुए बोला, “ईद मुबारक! और ये आपके लिये तोहफा... उम्मीद है आपको पसंद आयेंगे!” और वो सैंडल का डब्बा मेरी तरफ बढा दिया। मेरी मुस्लिम भूखी चूत जो शौहर के नकारा छोटे लंड से मायूस और रमेश के हिंदू लण्ड के चुद-चुद कर छिनाल बन गयी थी, अब इस दूसरे हिंदू के खड़े अनकटे बड़े लंड को देख कर जोश खाने लगी। इसके लण्ड की बनावट रमेश के काले अनकटे लण्ड जैसी ही थी लेकिन ये अनकटा लण्ड तो उससे भी मोटा और बड़ा था और काफी गोरा था। मैंने शर्मीले अंदाज़ में उसके लंड को एक बार हसरत से देख कर अपनी नज़रें नीचे कर लीं और उसके हाथ से सैंडल का डब्बा लेते हुए बोली, “शुक्रिया! आपको भी बहुत-बहुत ईद मुबारक!”

उसने लंड को पकड़ कर कहा, “आज दूध का शीर-खोरमा नहीं पिलाओगी मुझे?” मैंने शरारती अंदाज़ में ताना मारते हुए कहा, “आप मेहमान बन कर आओ... फिर पिला दुँगी, बहुत गुस्ताख़ और मग़रूर हैं आप और आपका खड़ा हुआ ये मूसल जैसा मोटा... हाय अल्लाह!” मैं इतना बोल कर हंसते हुए नीचे भाग गयी। मैं नीचे आयी तो शौहर नहाकर तैयार हो रहा था। “बेगम शबाना! जल्दी से टोपी वगैरह दे दो नमाज़ अदा करके आता हूँ!”

मैंने टोपी दी, वो बाहर चला गया और उसके जाते ही मैं ऊपर भाग कर गयी लेकिन वो हिंदू ऊपर नहीं था। फिर मैं नीचे आ गयी और उसके दिये सैंडलों का डब्बा खोल कर देखा। उसमें लाल रंग के ऊँची पेन्सिल हील के बहुत ही खूबसूरत और कीमती सैंडल थे। मैंने वो सैंडल बाहर निकाल कर पहन कर देखे तो बिल्कुल मेरे नाप के थे लेकिन तभी मुझे अपने पैरों में कुछ गीलेपन का एहसास हुआ। मैंने सैंडल उतार कर छू कर देखा तो खुशबू और चिपचिपाहट से पल भर में समझ गयी कि ये उस हिंदू के लण्ड का पानी है। मैंने मुस्कुराते हुए फिर से वो सैंडल पहन लिये और घर के काम में लग गयी। मेरी चूत तो बुरी तरह चुनमुनाने लगी थी।

अल्लाह ने जैसे मेरे मन की बात सुन ली और इतने में रमेश ने घंटी बजायी। “अभी तेरे निखट्टू शौहर को बाहर जाते देखा तो सोचा तुझे और तेरी चूत और गाँड को ईद मुबारक दे दूँ!” कहते हुए उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। “शुक्रिया मेरे राजा! मेरी चूत भी तेरे लंड को ईद मुबारक देने के लिये बेकरार हो रही थी!” मैंने उसकी पैंट के ऊपर से उसका लण्ड सहलाते हुए कहा। “बस चूत ही बेकरार है और गाँड मेरे लण्ड से गले नहीं लगेगी?” वो मेरे चूतड़ों पर मारते हुए बोला। “रमेश! आज बहुत काम है और शौहर असलम भी नमाज़ अदा करके जल्दी आने वाला है! इस वक्त तो तू सोच ले कि तेरे लण्ड को मेरी चूत से गले मिलना है या गाँड से! वो भी ज़रा जल्दी-जल्दी…” कहते हुए मैंने उसकी पैंट के बटन खोल दिये।

“चलो अभी तो चूत और लण्ड की ही ईद मिलनी कर लेते हैं।” वो बोला और मेरी कमीज़ उतारने लगा। एक दूसरे को चूमते हुए हम दोनों नंगे हो गये। मैंने इस वक्त भी उस दुकानदार से तोहफे में मिले वो लाल सैंडल पहन हुए थे और मेरे पैरों में उसके लण्ड के पानी का गीला और चिपचिपा एहसास मौजूद था। रमेश ने मुझे वहीं ज़मीन पर लिटा दिया और मेरी चूत में अपना काला अनकटा लण्ड पेल कर दनादन चोदने लगा। करीब पंद्रह बीस मिनट तक उसने मुझे खूब चोदा और मेरी चूत ने कईं बार पानी छोड़ा। फिर उसने भी मेरी चूत को अपने लण्ड का शीर-खोरमा पिला दिया।

मैंने उसे जल्दी से रुखसत किया और अपने कपड़े पहन कर रसोई में काम निपटने लगी। मैंने शीर-खोरमा और खाना वैगैर बना लिया और फिर एक बार नहा कर लाल रंग का नया सलवार-कमीज़ पहन लिया और साथ में वही तोहफे में मिले लाल ऊँची हील के सैंडल पहन लिये। कुछ देर बाद असलम की आवाज़ बाहर से आने लगी। शायद किसी से बात कर रहे थे। मैं बाहर गयी और दरवाजा खोल कर देखा तो ये क्या? वो हिंदू दुकानदार मेरे शौहर असलम से बात कर रहा था।

दोनों हंसकर बातें कर रहे थे। मुझे समझ नहीं आया कि ये क्या माजरा है। शौहर की पीठ मेरी तरफ़ थी। मैं पीछे से जैसे ही आयी तो शौहर ने कहा, “बेगम देखो! मैंने और बलराम ने पहले की बातों को भुला दिया है। आज ईद के दिन हमारा झगड़ा खतम!” वो भी शरारती अंदाज़ में आगे बढ़ा और शौहर असलम से बोला, “अब तो गले मिल लो असलम साहब!” और गले मिलते ही उसने मुझे देख कर आँख मारी और अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरी मुस्लिम चूची को नीचे से हल्के से मार कर उछाला और इशारे से उसने आँखें मटकायीं।

मैं समझ गयी कि जो ताना मैंने मारा था ये उसका जवाब है। उफ़्फ़ हिंदू मर्दाना! फिर उसने आँखों से ही मेरे पैरों में उसके लाये सैंडलों की तरफ इशारा किया और आँख मार दी। मैं हंसते हुए उसे देख कर अंदर चली गयी। दोनों अंदर आये और वो भी आकर बैठ गया। “बेगम शबाना बलराम और हमारे लिये शीर-खोरमा लाओ भाई!” शौहर ने हुक्म सुनाया। मैंने भी ओढ़नी सर पर डाली लेकिन उभरे हुए एक मम्मे का नज़ारा खुला रहने दिया।

शीर-खोरमा मैंने पहले शौहर को डाल कर दिया फिर बलराम को शीर-खोरमा डालते हुए चोर नज़र वाले अंदाज़ में मैंने उसे देखा। उसने मेरी झुकी हुई चूची को देखा और अपनी ज़ुबान शरारत से बाहर निकाल दी। मैंने भी दाँतों में अपने होंठ दबाये और उसे अपना शरारती गुस्सा दिखाया। वो थोड़ा हंसा और शौहर की तरफ़ देख कर बोला, “क्या असल्म साहब! आप तो शीर-खोरमा पीने में मसरूफ हो गये, वैसे आपके यहाँ का ये दूधवाला शीर-खोरमा तो राम कसम बहुत मज़ेदार है!” मैं किचन में जाकर पर्दे के पीछे से थोड़ा पर्दा हटाकर शौहर असलम के पीछे से झाँक कर बलराम को देखने लगी। “हाँ जनाब! हमारे यहाँ तो ईद का शीर-खोरमा माशा अल्लाह बहुत मशहूर है!” “हाँ हाँ असलम साहब!” बलराम ने बात मिलाते हुए कहा, “सच कहा आपने! ईद के दिन मुस्लिम घरों में ताज़े दूध को कढ़ा कर उसमें सेंवई और उस पर लाल रंग की स्ट्राबरी सजाकर पेश करते हैं!” और फिर मेरी तरफ़ देख हंस दिया। असलम ने बात काट कर कहा, “अरे जनाब! वो स्ट्राबरी नहीं… वो तो खजूर होता है काला वाला!” बलराम ने असलम के ऊपर मन ही मन में हंसते हुए कहा, “हाँ हाँ वही!” फिर असलम ने कहा कि “चलो खुदा ने आपको हिदायत दी के आप और हम आज ईद के दिन मिल जायें!” बलराम बोला, “सच कहा आपने! मैंने आज सुबह-सुबह ईद का चाँद देखा और फिर मैंने फैसला किया कि आज झगड़ा खतम और देखिये मैं आ गया आपके घर का ये मज़ेदार दूधवाला शीर-खोरमा पीने के लिये असलम साहब!” मैं भी अपने ही आप दिल में हंस रही थी। वो कुछ देर बैठा और चला गया।

फिर कुछ देर बाद कईं लोग ईद मिलने आये और दोपहर के बाद तक घर काफी बिज़ी रहा। जब सब जा चुके तो, असलम गले मिलते मिलते थक चुका था। अब वो बेडरूम में जाकर बोतल खोलकर बैठ गया और मुझे भी बुला लिया, “आओ बेगम शबाना! दो-दो जाम हो जायें इस मुबरक मौके पर!” मैंने देखा कि आज कोई बहुत ही महंगी इंपोर्टेड शराब की बोतल थी जो शायद उसे किसी ने रिश्वत में दी थी। अगले आधे घंटे में मैंने भी दो पैग पी गयी। वाकय में बेहद उमदा शराब थी। शौहर असलम भी इतने में चार-पाँच पैग गटक चुका था। फिर हमेशा की तरह मेरी हसरतों की ज़रा भी परवाह किये बगैर मेरे खुदगर्ज़ नामर्द शौहर ने मुझे अपना लण्ड चूसने का हुक्म दिया। मैंने भी फ़र्ज़ी तौर पर उसका लण्ड चूस कर उसका पानी पिया। फिर मैंने अपने लिये तीसरा पैग ग्लास में डाल लिया और पीने लगी। आमतौर पर मैं दो पैग से ज्यादा नहीं लेती पर शराब माशा अल्लाह बेहद उमदा थी और बलराम के बारे में सोचते-सोचते मैं चौथा पैग भी पी गयी। पहले तो हल्का सा ही सुरूर था पर फिर अचानक तेज़ नशा महसूस होने लगा और मैं हवा में उड़ने लगी। शौहर असलम के भी कुछ ही देर में टुन्न होकर खर्राटे भरने शुरू हो गये।

मैं आज बहुत हसीन लग रही थी। हाथों में मेहंदी, लाल रंग का कीमती सलवार सूट, लाल रंग के ही पैरों में ऊँची पेंसिल हील के खूबसूरत सैंडल और मेरी हसीन मुस्लिम नशीली अदायें! बलराम की आज की हरकत ने मेरी मुस्लिम चूत को पहले ही बहुत जोश दे रखा था। अब शराब के नशे में तो मेरी आँखों के सामने उसका अनकटा गोरा हलब्बी हिंदू लण्ड नाचने लगा और मेरी चूत में चिंगारियाँ उठने लगीं। नशे में झूमती हुई मैं उठी तो चलते हुए ऊँची हील की सैंडल में मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे पर मुझे तो कोई होश या परवाह नहीं थी। मैं नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर जाने लगी इस उम्मीद में कि शायद बलराम से छत्त पर मुलाकात हो जाये। लेकिन हाय अल्लाह ये क्या! वो तो पहले से ही मेरे घर की ऊपर वाली सीढ़ियों पर बैठा हुआ था। मैंने नशे में बहकी आवाज़ में कहा, “जनाब पहले से मौजूद हैं! बड़े बेकरार लग रहे हो?” और खिलखिला कर हंस पड़ी।
“मोहतरमा भी खूब नशे में बदमस्त हैं! लगता है शराब की पुरी बोतल ही खाली करके आ रही हैं!” बलराम ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा तो मैं बलखा कर बलराम की हिंदू गोदी में जा गिरी। उफ़्फ़! बलराम की हिंदू साँसें मेरे मुस्लिम कानों में थीं। मैं बहकी आवाज़ में गाना गुनगुनाने लगी, “थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो नहीं की है!” फिर मैंने इठलाते हुए नशीली आँखों से बलराम की आँखों में देखा और नशे में फिर हंसने लगी। “शराब से भी ज्यादा तो नशा तो तुम्हारे उस नज़राने ने किया है जो तुमने इन सैंडलों में छिपा कर दिया था! अब तक उसकी मस्त खुशबू मेरे ज़हन में महक रही है!” मैं फिर हंसते हुए बोली। “मैं तो उस दिन दुकान में ही समझ गया था कि तू एक नंबर की मुसल्ली राँड है!” उसने कहा और कमीज़ के ऊपर से मेरा एक मम्मा मसल दिया!

“बेहद पाज़ी हो तुम! वैसे सैंडल हैं बेहद खूबसूरत… हैं भी बहुत कीमती!” मैंने अपना एक पैर उठा कर हवा में हिलाते हुए कहा। “अरे तेरे जैसी हसीना के लिये तो मेरी दुकान में मौजूद हर सैंडल की जोड़ी निसार है!” वो बोला तो मैं फिर हंसते हुए इठला कर बोली, “हाय सच! बेहद शौकीन हूँ मैं ऊँची हील के सैंडलों की! ज़ेवरों से भी ज्यादा… और शौहर की ऊपरी कमाई का बेशतर हिस्सा सैंडल पर खर्च करती हूँ!” उसने भी हंसते हुए कहा, “तू चिंता मत कर! अपनी दुकान समझ और जब चाहे मेरी दुकान पर आकर अपनी पसंद के सैंडल ले जा!”

“सोच लो बलराम जी! लुट जाओगे!” मैंने शरारत से हंसते हुए कहा। नशे में मैं बात-बात पर हंस रही थी। बलराम बोला, “लुटुँगा मैं नहीं बल्कि तेरा शौहर! तेरे शौहर की तो खैर नहीं है आज!” मैंने हल्के से शरारती अंदाज़ में बलराम के सीने पर मार कर कहा, “क्या मतलब है आपका बलराम जी!” वो बोला, “साला हरामी मुझसे झगड़ता है… उसका बदला मैं तेरी मुस्लिम चूत को चोद कर लुँगा! तुझे अपनी रखैल बना लुँगा!”

मैं जोर से हंसी और बोली, “पहले ज़रा शीर-खोरमा तो ले आऊँ… तुम्हें जो ताना मारा था मैंने, तुम्हारी मर्दानगी को पिला ही दुँगी शीर-खोरमा!” मैं बलराम की गोदी से झूमती हुई उठी। “संभल कर जा मुसल्ली राँड! नशे में लुढ़क ना जाना!” मुझे नशे में लहराते देख बलराम हंस कर बोला। मैं भी ज़ोर से खिलखिला कर हंश दी और बोली, “लुढ़क भी गयी तो तुम हो ना मुझे संभालने के लिये!” मैं फिर उसी गाने के टूटे-फूटे से जुमले गुनगुनाती हुई और बीच-बीच में हंसती हुई सीड़ियों की हैंड-रेल पकड़ कर नशे में झूमती लहराती नीचे जाने लगी।

“थोड़ी सी जो पी ली है... चोरी तो... कोई तो संभालो... कहीं हम गिर ना पड़ें.... कैसे ना पियूँ प्यासी ये रात है... कहीं हम गिर ना पड़ें... थोड़ी सी... पी ली...!”

नीचे बेडरूम में झाँक कर देखा तो असलम के खर्राटे अभी भी उरूज पर थे। फिर डगमगाती हुई किचन में जा कर मैंने अबड़-धबड़ किसी तरह शीर-खोरमा कटोरे में डाला क्योंकि नशे में हाथ भी बेतरतीब चल रहे थे। फिर नशे में झूमती लड़खड़ाती हुई ऊपर सीढ़ियों में जाकर बलराम की गोद में जा गिरी और फिर गाँड टिका कर बैठ गयी।

“हाय अल्लाह! ये क्या है?” मैं अचानक चिहुक पड़ी तो वो ज़ोर से हंसा, “तेरी मुस्लिम गाँड और मेरा अनकटा लौड़ा है शबाना राँऽऽड!” मैंने झट से चम्मच भर कर शीर-खोरमा बलराम के मुँह में डाला और बोली, “मेरे हिंदू दिलबर लो पियो अब!” उसे शीर-खोरमा पिलाते हुए बीच-बीच में नशे में लहकते मेरे हाठ से थोड़ा मेरी चूचियों पर भी ढलक जाता था। बलराम ने थोड़ा ही शीर-खोरमा पीया और फिर बोला, “राँड! क्या अब मेरे मुँह में ही डालती रहेगी?” और कहते हुए उसने अपना हिंदू त्रिशूल पैंट से बाहर निकाला और मुझे गोद से उठा कर सीढ़ी पर बिठा दिया। फिर वो कटोरा लेकर मेरे सामने नंगा हिंदू लंड लेकर खड़ा हो गया। उसने चम्मच निकाल कर बाजू में रख दिया और शीर-खुरमे में अपना अनकटा हिंदू लंड डाल दिया। “हाय तौबा ये क्या करा...?” अभी मैं बोल ही रही थी कि बलराम ने अपने लंड को शीर-खुरमे में भिगोया और मेरे मुँह में डाल दिया।

अब तक रमेश के हिंदू लंड से कितनी ही बार उसकी मलाई पी थी मैंने… लेकिन इस तरह लंड से पहली बार इस तरह कुछ पी रही थी थी। मैंने मुस्लिमा अंदाज़ में बलराम के लंड से शीर-खोरमा चूसा और फिर पीते हुए बोली, “शीर-खुरमे से ज़्यादा तो शीर-खुरमे का गोश्त मज़ेदार है!” बलराम ने हंसते हुए फिर से लंड को कटोरे में डाला और मेरे मुँह में दे दिया। “इससे निकलने वाला शीर-खोरमा भी तो मेरे इस शीर-खुरमे से ज्यादा मज़ेदार है!” मैं फिर बोली और वो शीर-खुरमे में अपना लंड डुबो-डुबो कर चुसवाने लगा। उसके अनकटे गोरे हलब्बी लंड का गुलाबी सुपारा भी आलूबुखारे जैसा मोटा था।

फिर बलराम ने अचानक मुझे अपनी मजबूत बाँहों में उठाया और सीढ़ियों से नीचे ले गया। नीचे आकर सीधे मेरे बेडरूम में उसने मुझे सोते हुए शौहर असलम शरीफ के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। उफ़्फ़ खुदा! मेरा शौहर सामने नशे में धुत्त सो रहा है और मैं खुद भी ईद के दिन शराब के नशे की हालत में सजी धजी एक हिंदू मर्द के साथ चिपकी हुई हूँ जिसने अपना अनकटा मोटा हिंदू लंड पैंट से निकल कर खड़ा किया हुआ है। बलराम ने मेरी कमीज़ को नीचे किया और हाथ डाल कर ब्रा में कैद मेरी गोल खूबसुरत बड़ी बड़ी मुस्लिम चूचियों को बाहर निकाला और फिर मेरी कमीज़ ऊपर उठा कर मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। मेरी सलवार मेरे सोते हुए शौहर के सामने नीचे गिर गयी और मैंने भी अपने सैंडल वाले पैर उसमें से निकाल कर सलवार को ठोकर से एक तरफ खिसका दिया।

बलराम ने मेरी दोनों मुस्लिम चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से मेरे कान में कहा, “तूने जो ताना मारा था ना... देख अब तेरे ही घर में तेरे ही कटवे मुल्ले के सामने हमेशा बुऱके में छुपे रहने वाले तेरे जिस्म को मैंने नंगा कर दिया!” फिर मेरे कंधे पर दोनों हाथ रख कर मुझे नीचे बिठा दिया और लंड को मेरे चेहरे के आसपास फेरने लगा। मैंने ज़रा सा सहमते हुए अंदाज़ में एक बार शौहर की तरफ़ देखा और फिर बलराम का हिंदू कड़क गदाधारी लंड अपने मुँह में ले लिया और आहिस्ते-आहिस्ते चूसने लगी। मैं बिना सलवार और कमीज़ में से छोटी सी ब्रा में से झाँकती मुस्लिम चूचियाँ बाहर निकाले हुए… खर्राटे मारकर सो रहे शौहर असलम शरीफ के सामने बलराम का हिंदू लंड चूस रही थी।