शबाना की चुदाई

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Anjaan
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वैसे तो शौहर के घर में मौजूदगी के वक्त पहले भी रमेश के साथ छत्त पर छिप कर रात-रात भर चुदवाती थी लेकिन शौहर के बिल्कुल सामने इस तरह बलराम का लंड चूसना जोखिम भरा था। मेरे मन में थोड़ा अंदेशा तो था लेकिन बलराम के हिंदू अनकटे लंड की चाहत और शराब के नशे में मैं बिल्कुल बे-हया होकर बलराम का लण्ड चूस रही थी। मैं कभी शौहर को देखती कभी बलराम के हिंदू लंड को चूसते हुए बलराम की आँखों में देखती। जब भी बलराम की आँखों में देखती तो वो मुझे “राँऽऽड! मुल्लनी, हिजाबी रंडी! छिनाल!” जैसी गालियाँ देता हुआ अपने अज़ीम लंड को मेरे मुस्लिम मुँह में घुसेड़ देता।

बलराम ने फिर मुझे उठा कर खड़ा किया। मैं नशे में झूमती हुई उसकी गर्दन में बाँहें डालें उससे चिपक कर खड़ी हो गयी। उसने मेरी कमीज़ को ऊपर से उतार दिया और फिर पैंटी को पहले तो हाथ से मेरे घुटनों तक नीचे खिसकाया और फिर अपने पैर से मेरी पैंटी को बिल्कुल नीचे कर दिया और फिर ब्रा के हूक खोले बगैर उसने ज़ोर से ब्रा खींच कर हुक तोड़ते हुए निकाल दी। मेरे मुँह से हल्के से निकला, “उफ़्फ़ अल्लाह! मर गयी!” अब मैं बस अपने पैरों में बलराम के तोहफे में दिये लाल रंग के ऊँची हील वाले सैंडल पहने हुए बिल्कुल नंगी थी। बलराम ने मुझे उसे नंगा करने का इशारा किया तो मैंने भी नशे में जूझते हाथों से मैंने उसकी शर्ट के कुछ बटन खोले और कुछ तोड़े और शर्ट उतार दी। फिर नंगी बैठ कर उसकी पैंट भी खोल दी। अब बलराम का हिंदू बदन भी नंगा था। मैं बलराम के हट्टे-कट्टे चौड़े हिंदू सीने से अपने मुस्लिम मम्मों रगड़ने लगी।

मुझे थोड़ी प्यास सी महसूस हुई तो मैंने हाथ बढ़ा कर पास ही रखी वो शराब की बोतल उठा ली। उसमें अभी भी थोड़ी शराब बाकी थी। “साली रंडी! पहले ही नशे में इतनी चूर है अब और कितना पियेगी!” मैंने भी बोतल से होंठ लगा कर एक घूँट पिया और फिर दो-तीन गानों के जुमले मिला कर धीरे से उल्टा-सीधा गुनगुनाने लगी, “नशा शराब में होता तो नाचती बोतल... हमें तो है जवानी का नशा... उसपे फिर नशा है तेरे प्यार का...!” और फिर बोतल मुँह से लगाकर पीने लगी। बलराम ने भी मेरी चूचियाँ चूसनी शुरू कर दीं और कुछ देर उसने मेरी मुस्लिम चूचियों को शौहर असलम के सामने ही चूसा।

“साली पियक्कड़ मुसल्ली राँड! नशे में ज्यादा शायराना हो रही है! बाद में तुझे लंड की कुदरती शराब पिलाउँगा आज!” वो मेरे निप्पल अपने दाँतों से कुतरते हुए धीरे से बोला। मैं उसका इशारा कुछ-कुछ समझ गयी थी लेकिन शक दूर करने के लिये पूछा, “तुम्हारा मतलब पे-पेशाब?” वो बोला, “हाँ साली कुत्तिया!” फिर मेरे हाथ से शराब की बोतल ले कर रख दी। “बहुत बड़े अव्वल दर्जे के पाजी हो तुम! अब क्या पेशाब पिलाओगे मुझे!” मैंने शरारती अंदाज़ में गुस्सा दिखाते हुए कहा! “एक बार चख लेगी तो रोज़-रोज़ पियेगी। तेरे जैसी चुदक्कड़ी मुस्लिम राँडें बहुत शौक से पिती हैं!” वो बोला।

फिर इशारे से मुझे बाहर चलने को कहा। मैं झूमती हुई बाहर जाने लगी थी कि उसने पीछे मेरे चूतड़ों को पकड़ कर बेदर्दी से भींच दिया। मैंने पलट कर इशारे से पूछा, “क्या हुआ?” तो कान के पास आकर बलराम ने कहा, “साली शबाना राँड मुल्लनी! तेरी चूत का भोंसड़ा साली! कटेले की पियक्कड़ बीवी! हाथ में लौड़ा पकड़ और फिर बाहर चल हिजाबी कुत्तिया।” हिंदू बलराम का अनकटा बड़ा लंड पकड़ कर मैं नंगी नशे में झूमती डगमगाती कमरे से बाहर आ गयी। बाहर आते ही बलराम ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और बाहर से कुँडी लगा दी। मेरा नशा और परवान चढ़ने लगा था और मुझे झूमते देख बलराम मुझे सहारा दे कर बाहर दूसरे बेडरूम में ले जाने लगा! मैं भी हिन्दू बलराम के सहारे डगमगा कर चलती हुई उसके हिंदू लंड को लगातार पकड़े हुई थी और दबा रही थी।

दूसरे बेडरूम में पहुँचते ही उसने ज़ोर से मेरी चूची दबायी और बोला, “साली हिजाबी रंडी! तेरी रंडी चूत का चाँद आज मैं ईद के दिन हिंदू हलब्बी लंड से चोदुँगा!” फिर मुझे गोद में उठा कर बेड पर फेंक दिया और मेरी दोनों टाँगें फैला कर खोल दीं। मेरी मुस्लिम चूत का दरवाजा उसके कड़क हिंदू लंड के लिये बेकरारी से खुल गया। बलराम ने मेरी चूत के छेद पर अपना हिंदू लंड रखा और एक ज़ोर के झटके में तमाम गदाधारी हिंदू त्रिशूल लंड मेरी मुस्लिमा चूत में घुसेड़ दिया। मेरी तो जान ही निकल गयी और मुँह से एक चींख निकल गयी, “आआआईईईई मर गयीऽऽऽऽ! अल्लाऽऽह!” बलराम मेरी चूत के अंदर अपना लंड दाखिल करके रुक गया। मेरी आँखें दर्द के मारे फाट गयी थी और मुँह खुला हुआ था। मैं रमेश के आठ इंच लंबे मूसल जैसे हिंदू लंड से चुदने की आदी थी लेकिन बलराम का लण्ड तो उससे भी कहीं ज्यादा अज़ीम था।

फिर कुछ लम्हों के बाद मेरी चूत उसके घोड़े जैसे लंबे-मोटे लंड की आदी हो गयी तो मैंने बलराम की आँखों में देखा और कहा, “कटेले की मुस्लिम बीवी की छिनाल चूत में आपके हिंदू लंड को मैं सलाम करती हूँ! उफ़्फ़ अल्लाह! मेरे हिंदू खसम! मेरे हिंदू महबूब! बलराम जानू! मेरी कुत्तिया बनी हिजाबी रंडी चूत को चोदो मेरे हिंदू दिलबर!” बलराम ने मेरी मुस्लिम चूचियाँ हाथ में पकड़ीं और मेरे मुस्लिम होंठों पर अपने होंठ रख कर उन्हें चूसते हुए अपने हिंदू अनकटे त्रिशूल जैसे लंड को मेरी मुस्लिमा चूत में चोदने लगा। उसका भुजंग मोटा अनकटा हिंदू लंड मेरी मुस्लिमा चूत के होंठों को चीरते हुए अंदर बाहर हो रहा था। मैंने अपने हाथों से बलराम के चूतड़ दबाये हुए थे और मैं हिंदू बलराम के नीचे बुरी तरह चुद रही थी। बलराम ने मेरे होंठों से होंठ अलग किये और मेरी आँखों में देखा और अपना हिंदू गदा जैसा लंड आधा बाहर निकाला और बोला, “साली रंडी! हरामी… मुल्ले कटवे की हिजाबी बीवी! तेरी मुस्लिम चूत का भोंसड़ा!” ये कहते हुए मेरे होंठों पर फिर से होंठ रख कर ज़ोर के झटके मेरी मुस्लिम चूत में मारने लगा।

मेरी दोनों टाँगें हवा में खुली हुई थीं और लाल सैंडल वाले पैरों के तलवे छत्त की तरफ थे। मेरे गोरे जिस्म पर मानो जैसे बलराम का हिंदू बदन हुकुमत कर रहा था। उसके चूतड़ मेरी मुस्लिम चूत चोदने के वक्त कभी मेरे हाथों में उभरते तो जब कभी वो पूरा हिंदू लंड मेरी चूत में डालता तो सिकुड़ जाते। उधर शौहर असलम के खर्राटों की आवाज़ और इधर हिंदू बलराम और मेरी चूत की चुदाई की आवाज़।

फिर बलराम ने मेरी चूत में मुसलसिल झटके मारते हुए मुझसे कहा, “अब तैयार हो जा रंडी छिनाल! तेरी मुसल्ली चूत में हिंदू लंड का पानी गिरने वाला है!” मैंने भी दोनों टाँगें और ज्यादा खोल लीं और बलराम की आँखों में देखने लगी। वो मेरी आँखों में देख कर मेरी मुस्लिमा चूत में अपने अनकटे लंड से ज़ोर-ज़ोर के झटके मारने लगा। अब बलराम का चेहरा हल्का सा लाल होने लगा और वो कुछ गुस्सैले अंदाज़ में मेरी आँखों में देखने लगा। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए अपनी मुस्लिमा चूत को उससे चिपकाने की कोशिश की। “राँऽऽऽड मुल्लानीऽऽऽ साऽऽली कटीऽऽली छीनाऽऽल! मुल्ले की राँऽऽऽड बीवी! तेरी मुस्लिमा चूत का मुस्लिम भोंसड़ाऽऽऽ शबानाऽऽ मुस्लिमाऽऽ ले साऽऽली। ले अपनी छिनाल चूत में मेरा पानी! भोंसड़ी की!” कहता हुआ झटकों से मेरी हिजाबी मुसिल्मा चूत में अपना पानी डालने लगा। उफ़्फ़ उसके अनकटे लण्ड का सारा पानी मेरी मुस्लिम चूत में था और एक आखिरी झटके के साथ वो मेरी मुस्लिम चूचियाँ अपने सीने से दबाते हुए मेरे मुस्लिम जिस्म पर लेट गया। फिर कुछ देर मेरी चूत में अपने अनकटे लंड को आराम देकर उसने बाहर निकाला और मेरे ऊपर ही लेटा रहा। मेरे सुर्ख गुलाबी होंठों में अपने मर्दाना होंठ रख कर चूसने लगा। मेरा पूरा गोरा पाक मुस्लिमा जिस्म बलराम के हिंदू मर्दाना बदन के नीचे दबा हुआ था।

फिर उसने बैठ कर अपना हिंदू लंड मेरे चेहरे के सामने ला कर मेरे होंठों पर रख दिया। मैंने शरारत से उसकी आँखों में देखते हुए अपने होंठ खोल कर उसका अनकटा लंड जो कि मेरी चूत और उसके खुद के पानी से सना हुआ था, अपने मुँह में ले लिया। उसके मर्दाना हिंदू लंड में अभी भी काफी सख्ती बरकरार थी। मुझे अपनी चूत और उसके लण्ड के पानी का मिलाजुला स्वाद बहुत ही लज़ीज़ लग रहा था। मेरे चूसने से उसका लण्ड फिर फूलने लगा और उसने झटके मारते हुए मेरा मुँह चोदना शुरू कर दिया।

अचानक उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाला। उसका हिंदू अज़ीम लंड फिर से पूरा सख्त हो कर फूल गया था। “चल साली मुसल्ली राँड! घोड़ी बन जा! अब तेरी मुस्लिमा नवाबी गाँड की धज्जियाँ उड़ाउँगा!” उसने कहा। रमेश अक्सर अपने आठ इंच लंबे मोटे लंड से मेरी नवाबी गाँड मारता था और मुझे भी बेहद मज़ा आता था लेकिन बलराम का लंड तो उससे कहीं ज्यादा लम्बा मोटा था। इसलिये मुझे थोड़ी हिचकिचाहट तो हुई लेकिन इतना अज़ीम अनकटा लण्ड अपनी गाँड में लेने के ख्याल से सनसनी भी महसुस होने लगी। मैंने बलराम को देखते हुए कहा, “नहीं! नहीं! तुम्हारा ये गदाधारी लण्ड-ए-अज़ीम तो मेरी गाँड फाड़ डालेगा!” लेकिन मेरी आवाज़ मुस्तकिल नहीं थी और मेरी आँखों और चेहरे के जज़्बातों से भी बलराम समझ गया कि मैं सिर्फ नखरा कर रही हूँ।

“मुझे पता है मुसल्ली राँड! तेरी मोटी गाँड में भी बहुत खुजली है! एक बार मेरा लंड अपनी छिनाल मुस्लिमा नवाबी गाँड में ले लेगी तो हर रोज़ गाँड मरवाने के लिये भीख माँगेगी!” वो बोला और मुझे बिस्तर से उठाकर ज़मीन पर खड़ा किया और मुझे बिस्तर पर झुकने को कहा। “चल मुसल्ली छिनाल! खड़ी-खड़ी ही बिस्तर पर हाथ रख कर झुक जा!” जैसे ही मैं बिस्तर पर झुकी, बलराम ने मेरे चूतड़ों पर दो-तीन थप्पड़ मारे और फिर मेरी गाँड के छेद पर अपने लंड का गदा जैसा सुपाड़ा टिका दिया और फिर धीरे-धीरे मेरी गाँड में घुसेड़ने लगा।

“आआईईईईऽऽऽ! अल्लाहऽऽऽऽ मर गयी!!!” मैं दर्द बर्दाश्त करते हुए चिल्लायी। उसने बिना तवज्जो दिये मेरी गाँड में अपना खंबे जैसा हिंदू मर्दाना लंड घुसेड़ना ज़ारी रखा। “हायऽऽ अल्लाहऽऽऽ! नहींऽऽऽ अल्लाह!” मेरी आवाज़ दर्द और वासना दोनों मौजूद थीं। दर्द भी इस कदर था कि मैं खुद को छटपटाने से रोक नहीं पा रही थी और तड़प कर ज़ोर-ज़ोर से अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम ने फिर मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ मारे और फिर झुक कर मेरे छटपटाते जिस्म को अपनी मजबूत बाँह में कस कर पकड़ लिया और अपना बाकी का हिंदू ना-कटा लंड मेरी गाँड में ढकेलने लगा।

धीरे-धीरे मेरा दर्द काफूर होने लगा और मुझे और मज़ा आने लगा। मेरी गाँड बलराम के हिंदू लण्ड पर चिपक कर कस गयी और मैं उसके नीचे दबी हुई उसका लंड अपनी गाँड में और अंदर लेने की कोशिश में अपने चूतड़ उछालने लगी। कुछ ही लम्हों में उसका तमाम लण्ड मेरी गाँड में दाखिल हो गया। अब बलराम ज़ोर-ज़ोर से झटके मारने लगा और उसके मर्दाना पुट्ठे मेरे चूतड़ों पर टकराने लगे। “चोदो मेरे हिंदू राजा! मेरी मुस्लिमा नवाबी गाँड में अपना शाही लण्ड ज़ोर-ज़ोर से चोदो!” मैं मस्ती में बोलते हुए अपने चूतड़ हिलाने लगी। बलराम अब इतनी ज़ोर-ज़ोर से झटके मार कर अपना लण्ड मेरी छिनाल कसी हुई नवाबी गाँड में पेल रहा था कि मैं ऊँची हील के सैंडल में अपने पैरों पर खड़ी नहीं रह सकी और अपने पैर और टाँगें ज़मीन से हवा में उठा कर बिस्तर पर पेट के बल सपाट झुक गयी। अब मेरी चूत भी नीचे से बिस्तर पर रगड़ रही थी। करीब दस मिनट तक बलराम ने मेरी गाँड अपने हिंदू अज़ीम लंड से मारी और मेरी चूत ने तीन बार पानी छोड़ा। फिर बलराम भी मेरी कमर पर झुका और तमाम हिंदू लण्ड मेरी गाँड में ठाँस कर रुक गया और फिर मेरी गाँड अपने पानी से भर दी।

हम दोनों कुछ देर इसी तरह पड़े हाँफते रहे और पिर धीरे-धीरे बलराम ने अपना हिंदू अनकटा लंड मेरी मुसलिमा गाँड में से बाहर निकाला। फिर वो खड़ा हुआ तो मैं भी पलट कर उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराने लगी।

मैं बैठ कर अपने खुले हुए बाल बाँधने लगी तो बलराम झुक कर मेरी मुस्लिम चूचियाँ पकड़ कर आहिस्ता से दबाने लगा। उसका लण्ड अब ढीला पड़ गया था लेकिन फिर भी छः-सात इंच का था। मेरे शौहर असलम शरीफ की लुल्ली तो सख्त होकर भी मुश्किल से तीन-चार इंच की होती थी। बलराम का हिंदू लंड अपने पानी से सना हुआ चिपचिपा रहा था। मैंने उसे पकड़ अपने मुँह में भर लिया और चूसते हुए साफ करने लगी। बलराम जी के हिंदू लंड को चूसते हुए मुझे सिर्फ लंड के पानी का ही लज़ीज़ स्वाद नहीं बल्कि अपनी गाँड का भी हल्का-हल्का सा जाना-पहचाना ज़ायका आ रहा था। इससे पहले भी कईं बार मैंने रमेश से गाँड मरवाने के बाद उसके लण्ड से ये मज़ेदार ज़ायका लिया था।

इतने में बलराम ने कहा, “शबाना बेगम! आओ तुम्हें अपने लंड की शराब पिलता हूँ!”

“तुम मुझे अपना पेशाब पिलाये बगैर मानोगे नहीं!” मैं मुस्कुराते हुए अदा से बोली। “एक बार पी कर देख फिर तू खुद ही पेशाब पिये बगैर मानेगी नहीं!” उसने हंसते हुए जवाब दिया। फिर उसने मुझे बिस्तर से उतार कर नीचे ज़मीन पर बैठने को कहा तो मैं उसकी टाँगों के बीच में घुटने मोड़ कर बैठ गयी। अब तो मैं भी उसका पेशाब चखने के लिये मुतजस्सिस थी और गर्दन उठा कर मैं बलराम की आँखों में झाँकते हुए अदा से अपने होंठों पर जीभ फिराने लगी और बोली, “अब जल्दी से पिला दो अपने लण्ड की शराब! मैं भी देखूँ कितना नशा है इसमें!”

उसने मेरे मुलायम सुर्ख होंठों पर अपना लंड टिकाया तो मैंने होंठ खोल कर उसके लंड का आधा सुपाड़ा मुँह में ले लिया। एक लम्हे बाद ही बलराम आहिस्ता-आहिस्ता मेरे मुँह में पेशाब करने लगा। जब मेरा मुँह उसके गरम पेशाब से भर गया तो उसने अपना लंड मेरे होंठों से पीछे हटा लिया। मैंने मुँह में भरे फेशब को धीरे-धीरे मुँह में ही घुमाया और फिर आहिस्ता से अपने हलक में उतार दिया। मेरे मुँह में एक साथ कितनी ही तरह के ज़ायके एक-एक करके फूट पड़े। नमकीन, कसैला, थोड़ी सी खट्टास, थोड़ी सी कड़वाहट और फिर हल्की सी मिठास। उफ्फ अल्लाह! क्या कहुँ! इतने सारे ज़ायकों का गुलदस्ता था। फिर बलराम ने इसी तरह मेरे मुँह में सात-आठ बार अपना पेशाब भरा और हर बार मैं मुँह में पेशाब घुमा-घुमा कर पीते हुए आँखें बंद करके एक साथ इतने सारे ज़ायकों की लज़्ज़त लेने लगी। बलराम के पेशाब का आखिरी कतरा पीने के बाद मैं अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बलराम की आँखों में देखते हुए बोली, “शुक्रिया मेरे हिंदू सरताज़! मुझे पेशाब के मज़ेदार ज़ायके से वाकिफ कराने के लिये! वाकय में बेहद लज़िज़ और नशीली शराब है ये!”

उसके बाद हम नंगे ही उस बेडरूम में गये जहाँ मेरा शौहर असलम शरीफ खर्राटे मार कर नशे में धुत्त सो रहा था। क्योंकि हमारे कपड़े उसी कमरे में थे। मेरा नशा इतनी देर में ज़रा भी कम नहीं हुआ था और मैं बलराम के मर्दाना हिंदू जिस्म के सहारे ही लड़खड़ाती हुई चल रही थी। कमरे में आ कर बलराम अपने कपड़े पहनने लगा और मैं नशे में झूमती हुई नंगी ही बिस्तर पर बैठ कर उसे देखने लगी। शौहर असलम मेरे पास ही लेटा हुआ खर्राटे मार रहा था । अपने कपड़े पहनते हुए बलराम बोला, “ज़रा अपने शौहर का लंड कितना बड़ा है मुझे भी बता!” बलराम की बात सुनकर मैं हंस पड़ी और शौहर असलम के पास खिसक कर मैं आहिस्ते से शौहर का पजामा खोलने लगी। उसने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी तो मैंने आहिस्ता से पजामा खींच कर नीचे कर दिया और उसकी लुल्ली की तरफ इशारे करके हंसने लगी। बलराम ने देखा तो वो भी ज़ोर से हंसने लगा।

शौहर असलम की लुल्ली छोटी होने की वजह से ठीक से नज़र भी नहीं आ रही थी। मैंने हंसते हुए बलराम को इशारे से अपनी दो उंगलियाँ फैला कर बताया कि जब असलम की लुल्ली खड़ी होती है तो तीन इंच की होती है। बलराम ने पास आकर अपने हिंदू बड़े कड़क मूसल जैसे लंड पर मेरा हाथ रखा और मसलते हुए बड़ा करने लगा और मेरी आँखों में देखने लगा। उसकी हिंदू अदायें मेरी मुस्लिम चूत को शर्मिंदा कर रही थी लेकिन मैं अपनी चूत और गाँड में उसके हिंदू लंड का पानी लेकर चुदक्कड़ हो चुकी थी।

उसने अपने सारे कपड़े पहन लिये और मैं नंगी ही नशे झूमती उसके साथ फिर से बाहर हॉल में आ गयी। हम दोनों अभी भी मेरे शौहर का मज़ाक उड़ाते हुए हंस रहे थे। बाहर हॉल में आ कर फिर हम दोनों ने कुछ देर किस किया और मैंने उसकी पैंट की चेन खोलकर अपना एक हाथ अंदर डाल कर उसका लंड पकड़ लिया। मेरे होंठों को चूमते हुए बलराम बोला, “लगता है शबाना बेगम का अभी भी मन नहीं भरा!”

“ऊँहुँ!” मैंने ना में सिर हिलाया और फिर बोली, “वादा करो मुझे हर रोज़ इसी तरह चोदोगे!” वो हंसने लगा और पिर बोला, “तेरी मुस्लिमा चूत और गाँड कि तो हर रोज़ रात को छत्त पर अपने हिंदू लण्ड से चुदाई करुँगा मुसल्ली राँड!” फिर उसकी पैंट में आगे से हाथ डाले हुए मैं उसका हिंदू लंड पकड़ कर दरवाजे तक ले जाकर अलविदा कहा।

दूसरे दिन सुबह-सुबह मैं रिश्तेदारों से मिलने जाने के लिये बुऱका पहने शौहर असलम के साथ निकली। बलराम भी बाहर खड़ा सिगरेट पी रहा था। असलम मिय़ाँ अपनी पुरानी गाड़ी स्टार्ट करने लगे और मैं खड़ी होकर बलराम से इशारे लड़ाने लगी। कभी वो किस करने का इशारा करता कभी असलम की छोटी लुल्ली पर हंसकर हाथ से बताता। मैं भी बाहर खड़ी होकर कभी अपनी मुस्लिम चूची उभार कर दिखाती और कभी हवा में किस करती कभी अपना अंगुठा मुँह में डाल कर लंड चूसने का इशारा करती। फिर गाड़ी स्टार्ट हुई तो मैं पीछे बैठ कर जाते हुए बलराम को अपना हिजाब हटा कर किस करती हुई चली गयी।

उस दिन से मेरी ज़िंदगी ही बदल गयी। शुरू-शुरू में मैंने रमेश और बलराम दोनों को एक -दूसरे के बारे में नहीं बताया। मुझे डर था कि उन दोनों में से कहीं कोई नाराज़ ना हो जाये और मैं उन दोनों में से किसी को भी खोना नहीं चाहती थी। मैंने रमेश से बहाना बना दिया कि मेरे शौहर को हमारे तल्लुकात के बारे में शक हो गया है और इसलिये मैं उससे रात को छत्त पर नहीं मिल पाउँगी। दिन में वो जब चाहे मुझे चोद सकता है। उधर बलराम से मैं रात को ही मिल सकती थी क्योंकि दिनभर वो अपने शोरूम में होता था। अब मैं दिन में शौहर के जाने के बद रमेश के हिंदू लंड की रखैल बन कर चुदती। फिर रात को असलम मियाँ के नशे में चूर हो जाने के बाद मैं भी शराब पी कर छत्त पर बलराम के मूसल हिंदू से चुदने पहुँच जाती और आधी रात के बाद तक उसके साथ चुदवा कर नशे में झूमती हुई वापस नीचे आती।

हर रोज़ सुबह-सुबह मैं उसका ताज़ा पेशाब पीने छत्त पर पहुँच जाती। उस वक्त शौहर असलम मियाँ नीचे तैयार हो रहे होते थे। मुझे पेशाब पीने की इतनी लत्त लग गयी कि जब मैं रमेश के साथ होती तो उसका पेशाब भी पीने लगी और यहाँ तक कि कुछ ही दिनों में अपना खुद का पेशाब भी पीना शुरू कर दिया। अब तो आलम ये है कि जब कभी भी मुझे मूतना होता है तो मैं बाथरूम जाने की बजाय एक बड़े गिलास में ही पेशाब करती हूँ और फिर मज़े ले-ले कर पीती हूँ।

बलराम मुझे बहुत ही ज़लील तरीके से रंडी की तरह चोदता था। मुझसे हमेशा नयी-नयी ज़लील और ज़ोखिम भरी हरकतें करवा कर मुझे गरम करता था और मुझे भी इसमें बेहद मज़ा आता था और मैं भी उसकी हर फरमाइश पुरी रज़ामंदी से पूरी करती थी। बलराम हर हफ्ते मुझे नये-नये फैशन की ऊँची हील वाली सैंडल की एक-दो जोड़ी तोहफे में देता था। एक बार उसने बहुत ही कीमती और खूबसुरत ऊँची हील के सैंडलों की जोड़ी दिखाय़ी और बोला कि अगर मुझे चाहिये तो उसके शो-रूम पर आकर लेने होंगे लेकिन मुझे सिर्फ बुऱका पहन कर आना होगा। पैरों में सैंडलों के आलावा बुऱके के नीचे कुछ भी पहनने से मना कर दिया। अगले ही दिन मैंने सिर्फ बुऱका और ऊँची हील के सैंडल पहने और बिल्कुल नंगी रिक्शा में बैठ कर बाज़ार पहुँच गयी। फिर वैसे ही भीड़भाड़ वाले बज़ार में भी करीब आधा किलोमितर पैदल चल कर बलराम के शो-रूम पर पहुँची।

ऐसे ही करीब चार महीने निकल गये। इस दौरान मैंने चुदक्कड़पन की तमाम हदें पार कर दीं। रात को तो मैं अब असलम मियाँ की शराब में नींद की गोलियाँ मिला देती ताकि सुबह तक खर्राटे मार कर सोता रहे। मैं अब छत्त से होकर बलराम के घर में उसके बिस्तर में पुरी-पूरी रात गुज़रने लगी। कईं बार बलराम रात को हमरे घर आ जाता और हम दोनों शौहर असलम मियाँ की मौजूदगी में रात भर ऐय्याशी करते। फिर एक दिन रमेश को मेरे और बलराम के रिश्ते के बारे में पता चल गया। पहले तो थोड़ा नाराज़ हुआ पर फिर मैंने प्यार से उसे मना लिया और बलराम को भी रमेश से अपने ताल्लुकतों के बारे में बता दिया। फिर तो दोनों हिंदू मर्द मिलकर अक्सर रात-रात भर मुझे चोदने लगे। कभी छत्त पर तो कभी बलराम के घर में और कभी मेरे ही घर में। दोनों एक साथ मेरी गाँड और चूत में अपने-अपने हिंदू हलब्बी मर्दना लण्ड डाल कर चोदते तो मैं मस्ती में चींखें मार-मार कर दोहरी चुदाई का मज़े लेती।

ये सिलसिला करीब एक साल तक चला। फिर एक दिन अचानक मेरी ज़िंदगी में फिर से अंधेरा छा गया। मेरे शौहर असलम शरीफ का तबादला दूसरे शहर में हो गया। जिस्मनी तस्कीन और अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिये मैं फिर बैंगन और मोमबत्ती जैसी बेजान चीज़ों की मातहत हो गयी। लेकिन अब इस तरह मेरी प्यास नहीं बुझती थी। मुझे तो रमेश और बलराम के लंबे मोटे हिंदू हलब्बी मर्दाना लौड़ों से दिन रात चुदने और दोहरी चुदाई की इतनी आदत हो गयी थी कि मैं कितनी भी कोशिश करती और घंटों अपनी चूत और गाँड में मोटी-मोटी मोमबत्तियाँ और दूसरी बेजान चीज़ें घुसेड़-घुसेड़ कर चोदती लेकिन करार नहीं मिलता। इसी दौरान हमारे घर से थोड़ी दूर एक मदरसे में उस्तानी की ज़रूरत थी तो मैंने दरख्वास्त दे दी और मेरा इन्तखाब भी हो गया। अब मैं सुबह दस बजे से दोपहर में दो बजे तक मदरसे में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी। इस वजह से अब कम से कम आधा दिन तो अब मैं मसरूफ रहने लगी।

फिर एक महीने बाद मेरे शौहर किसी काम से एक हफ्ते के लिए दफ्तर के काम से बाहर गये। मैं भी दोपहर में मदरसे से लौटते हुए बुऱका पहने अपनी प्यासी मुस्लिम चूत लेकर शॉपिंग के लिये बाज़ार गयी। अभी मैं मदरसे से निकल कर चलते हुए बीस मिनट का रास्ता ही तय कर पायी थी कि सामने से एक औरत बुऱका पहने मेरी ही तरह ऊँची हील की सैंडल में शोख अंदाज़ में आ रही थी। उसने भी चेहरे से नकाब हटा रखा था। जब वो पास आयी तो मैंने पहचाना के ये तो नाज़िया है। “हाय अल्लाह! नाज़िया तू!” मैंने खुशी से कहा। “तू शबाना... शब्बो तू?” नाज़िया भी हंसते हुए मुझसे लिपट गयी। हम दोनों खुशी से गले मिले और बातें करने लगे कि अचानक एक बाइक तेज़ी से आयी। हम लोग जल्दी से एक तरफ़ हट गये और उस लड़के ने जल्दी से अपनी बाइक दूसरी तरफ़ मोड़ ली और गुस्से से जाते-जाते बोला, “रंडियाँ साली! देख कर चलो सालियों!” और कहता हुआ चला गया। उसकी गालियाँ सुनकर मुझे रमेश और बलराम की याद आ गयी और जिस्म में एक सनसनी फैल गयी। अपने जज़्बात छिपाने के लिये मैंने नज़रें झुका लीं। फिर नाज़िया की तरफ़ देखा तो उसने शरारत भरे अंदाज़ में कहा, “लगता है ये हज़रत हिंदू लंड वाले हैं!” और कहकर ज़ोर से हंसते हुए बोली, “चल छोड़ ना शब्बो! बता कि यहाँ कैसे आयी?” मुझे हैरत हुई कि नाज़िया जो कॉलेज की सबसे अव्वल दर्जे की तालिबा थी, उसके मुँह से हिंदू लंड सुनकर मेरी आँखें खुली रह गयीं। मैंने कहा, “बेहया कहीं की! चुप कर!”

फिर वो मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गयी। फिर हम दोनों ने अपने बुऱके उतारे। जैसे ही नाज़िया ने अपना बुऱका उतारा तो मेरे मुँह से निकला, “सुभान अल्लाह नाज़िया!” उसका जिस्म बहुत गदराया हुआ था। गहरे गले की कसी हुई कमीज़ से उसके मुस्लिमा मम्मे उभरे हुए नज़र आ रहे थे और उसके गोल-गोल चूतड़ भी ऊँची हील के सैंडल की वजह से उभरे हुए थे। उसने मेरी चूचियों को देखते हुए कहा, “सुभान अल्लाह क्या? खुद को देख माशा अल्लाह है माशा अल्लाह!” इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया। नाज़िया ने दरवाजा खोला और एक शख्स कुर्ता पजामा पहने अंदर आया। “ये कौन मोहतरमा हैं?” वो बोला तो नाज़िया ने कहा, “जी आपकी साली समझें! ये मेरी कॉलेज की सहेली है शबाना इज़्ज़त शरीफ!” वो अंदर चला गया और नाज़िया ने शरारत से कहा, “ये दाढ़ी वाला बंदर ही मिला था मुझे शादी करने के लिये!” मैंने नाज़िया की बाजू पर मारते हुए कहा, “चुप कर!” फिर थोड़ी देर बाद नाज़िया का शौहर बाहर निकल कर जाने लगा और बोला, “आज काम है... शायद लौटते वक्त देर हो जायेगी!” और कहते हुए चला गया।

नाज़िया ने मुझे बिठया और पूछा, “बता क्या पियेगी?” “कुछ भी चलेगा!” मैंने कहा तो वो चहकते हुए बोली, “कुछ भी?” मैंने कहा, “हाँ कुछ भी जो तेरा मन हो!” फिर वो थोड़ा हिचकते हुए बोली, “यार मेरा मन तो एकाध पैग लगाने का हो रहा है... तू... पता नहीं... पीती है कि नहीं!” मैं तो उसकी बात सुनकर खुश हो गयी और बोली, “क्यों नहीं! इसमें इतना हिचक क्यों रही है... ज़रूर पियुँगी! अपनी सहेली के साथ शराब पीने में तो मज़ा अ जायेगा!”

Anjaan
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