उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

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उस के कुछ ही समय बाद कम्पार्टमेंट में साइड वाली निचे की बर्थ पर जिनका रिज़र्वेशन था वह युवा आर्मी अफसर (जिसके यूनिफार्म पर लगे सितारोँ से पता चला की वह कप्तान थे) दाखिल हुए और फिर उन्होंने अपना सामान लगाया। कर्नल की उम्र मुश्किल से पच्चीस या छब्बीस साल की होगी। लगता था की वह अभी अभी राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी से पास हुए थे। उनके सामने ही युवा लड़की नीतू बैठी हुई थी। दोनों ने एक दूसरे से "हेलो, हाय" किया।

ट्रैन ने स्टेशन छोड़ा ही था की कर्नल साहब, सुनील, ज्योति और सुनीता के सामने एक काला कोट और सफ़ेद पतलून पहने टी टी साहब उपस्थित हुए। हट्टाकट्टा बदन, फुले हुए गाल, लम्बे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और काफी लंबा कद। वह टी टी कम और कोई फिल्म के विलन ज्यादा दिख रहे थे। खैर उन्होंने सब का टिकट चेक किया। टी टी साहब कुछ ज्यादा ही बातें करने के मूड में लग रहे थे। उन्होंने जब सुनीलजी से उनका गंतव्य स्थान (कहाँ जा रहे हो?) पूछा तो कर्नल साहब ने और सुनीलजी ने कोई जवाब नहीं दिया। जब किसी ने कुछ नहीं बोला तो सुनीता ने टी टी साहब को कहा, "हम जम्मू जा रहे हैं।"

टी टी साहब फ़ौरन सुनीता की और मुड़े और बोले, "हां हाँ वह तो मुझे आप के टिकट से ही पता चल गया। पर आप जम्मू से आगे कहाँ जा रहे हैं?"

जब फिर सुनीलजी और कर्नल साहब से जवाब नहीं मिला तब टी टी ने सुनीता की और जिज्ञासा भरी नजरों से देखा। फिर क्या था? सुनीता ने उनको सारा प्रोग्राम जो उसको पता था सब टी टी साहब को बता दिया। सुनीता ने टी टी को बताया की वह सब आर्मी के ट्रेनिंग कैंप में जम्मू से काफी दूर एक ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे। सुनीता को जब टी टी ने उस जगह का नाम और वह जगह जम्मू से कितनी दुरी पर थी पूछा तो सुनीता कुछ बता नहीं पायी। सुनीता को उस जगह के बारे में ज्यादा पता नहीं था। चूँकि कर्नल साहब और सुनीलजी बात करने के मूड में नहीं थे इस लिए टी टी साहब थोड़े मायूस से लग रहे थे। उस समय ज्योतिजी नींद में थीं।

सुनील, सुनीता, कर्नल जसवंत सिंह और ज्योतिजी का टिकट चेक करने के बाद टी टी साहब दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए। उन्होंने उस समय और किसी का टिकट चेक नहीं किया।

टी टी के चले जाने के बाद सब ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया। साइड की निचे की बर्थ पर स्थित युवा अफसर कप्तान कुमार थे। वह भी ज्योतिजी, जस्सूजी, सुनील और सुनीता की तरह ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे।

देखते ही देखते दोनों युवा: कप्तान कुमार और नीतू खन्ना करीब करीब एक ही उम्र के होने के कारण बातचीत में मशगूल हो गए। नीतू वाकई में निहायत ही खूबसूरत और कटीली लड़की थी। उसके अंग अंग में मादकता नजर आ रही थी। कप्तान कुमार को मिलते ही जैसे नीतू को और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था। कुमार का कसरत से कसा हुआ बदन, मांसल बाज़ूओं के स्नायु और पतला गठीला पेट और कमर और काफी लंबा कद देखते ही नीतू की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी।

कुमार का दिल भी नीतू का गठीला बदन और उसकी मादक आँखें देखते ही छलनी हो गया था। नीतू के अंग अंग में काम दिख रहा था। नीतू की मादक हँसी, उसकी बात करते समय की अदाएं, उसके रसीले होँठ, उसके घने काले बाल, उसकी नशीली सुआकार काया कप्तान को भा गयी थी। कप्तान कुमार की नजर नीतू के कुर्ते में से कूद कर बाहर आने के लिए बेताब नीतू के बूब्स पर बार बार जाती रहती थी। नीतू अपनी चुन्नी बार बार अपनी छाती पर डाल कर उन्हें छुपा ने कीनाकाम कोशिश करती पर हवाका झोंका लगते ही वह खिसक जाती और उसके उरोज कपड़ों के पीछे भी अपनी उद्दंडता दिखाते।

नीतू का सलवार कुछ ऐसा था की उसके गले के निचे का उसके स्तनोँ का उभार छुपाये नहीं छुपता था। नीतू की गाँड़ भी निहायत ही सेक्सी और बरबस ही छू ने का मन करे ऐसी करारी दिखती थी। बेचारा कुमार उसके बिलकुल सामने बैठी हुई इस रति को कैसे नजर अंदाज करे?

सुनीता ने देखा की कुमार और नीतू पहली मुलाक़ात में ही एक दूसरे के दीवाने हों ऐसे लग रहे थे। दोनों की बातें थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं। सुनीता अपने मन ही मन में मुस्काई। यह निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है। जब दो युवा एकदूसरे को पसंद करते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक सकती। सुनीता को लगा की कहीं यह पागलपन नीतू की शादीशुदा जिंदगी को मुश्किल में ना डाल दे।

कर्नल साहब और सुनील भी उन दो युवाओँ की हरकत देख कर मूंछों में ही मुस्कुरा रहे थे। उनको भी शायद अपनी जवानी याद आ गयी।

सुनील ज्योतिजी की बर्थ पर बैठे हुए थे। ज्योतिजी खिड़की के पास नींद में थीं। जस्सूजी भी सामने की खिड़की वाली सीट पर थे जबकि सुनीता बर्थ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी। कम्पार्टमेंट का ए.सी. काफी तेज चल रहा था। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट एकदम ठंडा हो गया था। सुनीता ने चद्दर निकाली अपने बदन पर डाल दी। चद्दर का दूसरा छोर सुनीता ने जस्सूजी को दिया जो उन्होंने भी अपने कंधे पर डाल दी। थोड़ी ही देर में जस्सूजी की आँखें गहरा ने लगीं, तो वह पॉंव लम्बे कर लेट गए। चद्दर के निचे जस्सूजी के पॉंव सुनीता की जाँघों को छू रहे थे।

कप्तान कुमार और नीतू एक दूसरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज में बात कर रहे थे। बिच बिच में वह एक दूसरे का हाथ भी पकड़ रहे थे यह सुनीता ने देखा। उन दोनों की बातों को छोड़ कम्पार्टमेंट में करीब करीब सन्नाटा सा था। ट्रैन छूटे हुए करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और टिकट निरीक्षक पुरे कम्पार्टमेंट का टिकट चेक करते हुए सुनीता, सुनील, जस्सूजी और ज्योति जी के सामने खड़े हुए और टिकट माँगा।

उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?"

टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, "अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे ए.सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में ए.सी. के छे डिब्बे हैं। इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?"

सुनीलजी ने कहा, "नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।"

टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, " चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये आ जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने।

सुनील ने जस्सूजी की और देखा। जस्सूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। सुनीता चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सुनीता ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा नीतू लड़की को "हाय" किया । उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजू में बिठाया और बातचित शुरू हुई। सुनीता ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर नीतू को दिए। नीतू ने एक संतरा लिया और सुनीता और नीतू बातों में लग गए।

सुनीता की आदत अनुसार सुनीता और नीतू की बहुत ही जल्दी अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। सुनीता को पता लगा की उसका नाम मिसिस नीतू खन्ना था। सब नीतू के बारे में सोच ही रहे थे की ऐसा कैसे हुआ की इतनी कम उम्र की युवा लड़की नीतू की शादी ब्रिगेडियर खन्ना के साथ हुई। सुनीता ने धीरे धीरे नीतू के साथ इतनी करीबी बना ली की नीतू पट पट सुनीता को अपनी सारी राम कहानी कहने लगी।

नीतू के पिताजी ब्रिगेडियर खन्ना के ऑर्डरली थे। उनको ब्रिगेडियर साहब ने बच्चों की पढाई और घर बनाने के लिए अच्छा खासा कर्ज दिया था जो वह चुका नहीं पा रहे थे। नीतू भी ब्रिगेडियर साहब के घर में घर का काम करती थी। ब्रिगेडियर साहब की बीबी के देहांत के बाद जब वह लड़की ब्रिगेडियर साहब के घर में काम करने आती थी तब ब्रिगेडियर साहब ने उसे धीरे धीरे उसे अपनी शैया भगिनी बना लिया।

जब नीतू के पिताजी का भी देहांत हो गया तो वह लड़की के भाइयों ने घर का कब्जा कर लिया और बहन को छोड़ दिया। नीतू अकेली हो गयी और ब्रिगेडियर साहब के साथ उनकी पत्नी की तरह ही रहने लगी। उन के शारीरिक सम्बन्ध तो थे ही। आखिर में उन दोनों ने लोक लाज के मारे शादी करली।

सुनीता को दोनों के बिच की उम्र के अंतर का उनकी शादीशुदा यौन जिंदगी पर क्या असर हुआ यह जानने की बड़ी उत्सुकता थी। जब सुनीता ने इस बारे में पूछा तो नीतू ने साफ़ कह दिया की पिछले कुछ सालों से ब्रिगेडियर साहब नीतू को जातीय सुख नहीं दे पाते थे। नीतू ने ब्रिगेडियर साहब से इसके बारे में कोई शिकायत नहीं की।

पर जब ब्रिगेडियर साहब उनकी उम्र के चलते जब नितु को सम्भोग सुख देने में असफल रहे तो उन्होंने नीतू के शिकायत ना करने पर भी बातों बातों में यह संकेत दिया था की अगर नीतू किसी और मर्द उसे शारीरिक सुख देने में शक्षम हो और वह उसे सम्भोग करना चाहे तो ब्रिगेडियर साहब उसे रोकेंगे नहीं। उनकी शर्त यह थी की नीतू को यह सब चोरी छुपी और बाहर के लोगों को ना पता लगे ऐसे करना होगा। नीतू अगर उनको बता देगी या इशारा कर देगी तो वह समझ जाएंगे।

नीतू ने सुनीता को यह बताया की ब्रिगडियर साहब उसका बड़ा ध्यान रखते थे और उसे बेटी या पत्नी से भी कहीं ज्यादा प्यार करते थे। वह हमेशा नीतू को उसकी शारीरक जरूरियात के बारे में चिंतित रहते थे। उन्होंने कई बार नीतू को प्रोत्साहित किया था की नीतू कोई मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखना चाहे तो रख सकती थी। पर नीतू ने कभी भी इस छूट का फायदा नहीं लेना चाहा। नीतू ने सुनीता को बताया की वह ब्रिगेडियर साहब से बहुत खुश थी। वह नीतू को मन चाहि चीज़ें मुहैय्या कराते थे। नीतू को ब्रिगेडियर साहब से कोई शिकायत नहीं थी।

सुनीता ने भी अपनी सारी कौटुम्बिक कहानी नीतू को बतायी और देखते ही देखते दोनों पक्के दोस्त बन गए। बात खत्म होने के बाद नीतू वापस अपनी सीट पर चली गयी जहां कप्तान कुमार उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। सुनीता की ऑंखें भी भारी हो रहीं थीं। जस्सूजी की लम्बी टाँगें उसकी जाँघों को कुरेद रहीं थीं। सुनीता ने अपने पॉंव सामने की सीट तक लम्बे किये औरआँखें बंद कर तन्द्रा में चली गयी।

सुनीता ने अपनी टाँगें सामने की बर्थ पर रखीं थीं। जैसे ही सुनीता ने अपने बदन को थोड़ा सा फैला दिया और आमने सामने की बर्थ पर थोड़ी लम्बी हुई की उसे जस्सूजी के पॉंव का अपनी जाँघों के पास एहसास हुआ। जस्सूजी अपने लम्बे कद के कारण थोड़ा सा पॉंव लंबा करने में कष्ट महसूस कर रहे थे। सुनीता ने जब यह देखा तो जस्सूजी के दोनों पाँव अपनी गोद में ले लिए। जस्सूजी ने अपनी चप्पल निचे उतार रखी थीं। सुनीता प्यार से जस्सूजी की टाँगों को अपनी गोद में रख कर उस पर हाथ फिरा कर हल्का सा मसाज करने लगी। उसे जस्सूजी की पाँव अपनी गोद में पाकर अच्छ लग रहा था। वह उन दिनों को याद करने लगी जब वह अपने पिताजी के पॉंव तब तक दबाती रहती थी जब तक वह सो नहीं जाते थे।

पाँव दबाते हुए सुनीता जस्सूजी की और सम्मान और प्यार भरी नज़रों से देखती रहती थी। उसे जस्सूजी के पाँव अपनी गोद में रखने में कोई भी झिझक नहीं महसूस हुई। सुनीता ने भी अपनी टांगें लम्बीं कीं और अपने पति सुनीलजी की गोद में रख दीं। सुनीलजी खर्राटे मार रहे थे। कुछ पल के लिए वह उठ गए और उन्होंने आँखें खोलीं जब उन्होंने अपनी पत्नी की टाँगें अपनी गोद में पायीं।

उन्होंने सुनीता की और देखा। उन्होंने देखा की जस्सूजी की टाँगें उनकी पत्नी सुनीता की गोद में थीं और सुनीता उन्हें हलके से मसाज कर रही थी। सुनीता ने देखा की वह कुछ मुस्काये और फिर आँखें बंद कर अपनी नींद की दुनिया में वापस चले गए।

ज्योतिजी तो पहले से ही एक तरफ करवट ले कर सो रही थीं। शायद वह रात को पूरी तरह ठीक से सो नहीं पायीं थीं। ज्योतिजी ने अपनी टाँगें लम्बीं और टेढ़ी कर रखीं थीं जो सुनीलजी की जाँघों को छू रही थीं।

सुनीता आधी नींद में थी। उसे कुमार और नीतू की कानाफूसी आधीअधूरी सुनाई देती थीं। सुनीता समझ गयी थी की कुमार नीतू को फाँसने की कोशिश में लगा था। नीतू भी उसे थोड़ी सी ढील दे रही थी। दरअसल नीतू और कुमार साइड वाली बर्थ लम्बी ना करके बर्थ को ऊपर उठा कर दो कुर्सियां बना कर आमने सामने बैठे थे। नीतू और कुमार का परिचय हो चुका था। पर शायद नीतू ने अपनी पूरी कहानी कुमार को नहीं सुनाई थी। नीतू ने यह नहीं जाहिर किया था की वह शादी शुदा थी।

वैसे भी नीतू को देखने से कोई यह नहीं कह सकता था की वह शादीशुदा थी। नीतू ने अपने चेहरे पर कोई भी ऐसा निशान नहीं लगा रखा था। हम उम्र होने के अलावा एक दूसरे से पहली नजर से ही जातीय आकर्षण होने के कारण वह दोनों एक दूसरे से कुछ अनौपचारिकता से बातें कर रहे थे। सुनीता को जो सुनाई दिया वह कुछ ऐसा था।

कुमार: "नीतू, आप गजब की ख़ूबसूरत हो।"

नीतू: "थैंक यू सर। आप भी तो हैंडसम हो!"

कुमार: "अरे कहाँ? अगर मैं आपको हैंडसम लगता तो आप मेरे करीब आने से क्यों झिझकतीं?"

नीतू: "कमाल है? मैं आपके करीब ही तो हूँ।"

कुमार ने अपनी टांगों की नीतू की टांगों से मिलाया और बोला, "देखो हमारे बिच इतना बड़ा फासला है।"

नीतू: "फासला कहाँ है? आप की टाँगें मेरी टाँगों को टच तो कर रहीं हैं।"

कुमार: "सिर्फ टाँगें ही तो टच कर रहीं है। हमारे बदन तो दूर हैं ना?"

नीतू: "कमाल है, कप्तान साहब! अभी हमें मिले दो घंटे भी हुए नहीं और आप हमारे बदन एक दूसरे से करीब आये यह ख्वाब देख रहे हो?"

कुमार: "क्यों भाई? क्या ख्वाब देखने पर की कोई प्रतिबन्ध है? और मान लो हमें मिले हुए एक दिन पूरा हो गया होता तो क्या होता?""

नीतू: "नहीं कप्तान साहब ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। आप जरूर ख्वाब देखिये। जब ख्वाब ही देखने है तो कंजूसी कैसी? और जहां तक मिलने के एक दिन के बाद की बात है तो वह तो एक दिन बीतेगा तब देखेंगे। अभी तो सिर्फ शुरुआत है। अभी से इतनी बेसब्री क्यों?"

कुमार: "क्या मतलब?"

नीतू: "अरे जब ख्वाब ही देखने हैं तो फिर ख्वाब में सब कुछ ही देखिये। खाली बदन एक दूसरे से करीब आये यही क्यों रुकना भला? ख्वाब पर कोई लगाम लगाने की क्या जरुरत है? हाँ ख्वाब के बाहर जो असली दुनिया है, वहाँ सब्र रखना जरुरी है।"

कुमार: "मोहतरमा, आप कहना क्या चाहती हो? मैं ख्वाब में क्या देखूं? जहां तक सब्र का सवाल है तो मैं यह मानता हूँ की मुझमें सब्र की कमी है।"

नीतू: "कमाल है कप्तान साहब! अब मुझे ही बताना पडेगा की आप ख्वाब में क्या देखो? भाई देश आजाद है। जो देखना हो वह ख्वाब में देख सकते हो। मुझे क्या पता आप ख्वाब में क्या देखना चाहते हो? पर ख्वाब की दुनिया और असलियत में फर्क होता है।"

कुमार: "मैं बताऊँ मैं ख्वाब में क्या देखना चाहता हूँ?''

नीतू: "फिर वही बात? भाई जो देखना चाहो देखो। बताओ, क्या देखना चाहते हो?"

कुमार: "अगर मैं सच सच बोलूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगे?"

नीतू: "कमाल है! आप ख्वाब देखो तो उसमें मुझे बुरा मानने की क्या बात है? कहते हैं ना, की नींद तुम्हारी ख्वाब तुम्हारे। बताओ ना क्या ख्वाब देखना चाहते हो?"

कुमार: "हाँ यह तो सही कहा आपने। तो मैं ख्वाब देखना चाहता हूँ की आप मेरी बाँहों में हो और मैं आपको खूब प्यार कर रहा हूँ।"

नीतू: "अरे! अभी तो हम ढंग से मिले भी नहीं और आप मुझे बाँहों में ले कर प्यार करने के ख्वाब देखने लगे?"

कुमार: "आपने ही तो कहा था की ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है? जहां तक ढंग से मिलने का सवाल है तो बताइये ना हम कैसे ढंग से मिल सकते हैं?"

नीतू: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"

कुमार: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"

नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। नीतू की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। कुमार को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह नीतू को चुपचाप देखता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी देख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़ करना नीतूजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"

नीतू ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"

कुमार: "नीतूजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"

नीतू ने बात को मोड़ दे कर कुमार के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"

नीतू ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह कुमार को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।

कुमार: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे सिर्फ कुमार कह कर ही बुलाइये।"

नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। क्या वह कुमार के साथ आगे बढे या नहीं? उसे अपने पति से कोई दिक्क्त नहीं थी। उस ने अपने मन में सोचा सब्र की ऐसी की तैसी। जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? फिर तो अँधेरी रात है ही।

नीतू ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"

कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"

जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी नीतू का इस तरह हाथ नहीं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना देखती ही रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। नीतू को अक्सर सपने में वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे सातवें आस्मां पर उठा लेता था।

नीतू ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं कुमार की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था। कुमार ने देखा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई विरोध नहीं किया और नीतू अपने ही विचारो में खोयी हुई कुमार के चेहरे की और एकटक देख रही थी तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, नीतू? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"

नीतू अपनी तंद्रा से जाग उठी और कुमार की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"

कुमार: "तो फिर मेरे करीब तो बैठो। देखो अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"

नीतू: "अरे कमाल है। यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"

कुमार: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर आप को कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना नीतू की हाँ का इंतजार किये कुमार उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थ को निचा करना चाहा। मज़बूरी में नीतू भी उठ खड़ी हुई। कुमार ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा किया।

नीतू ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो कुमार ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"

नीतू और खिसक कर ठीक बैठी तो उसने महसूस किया की उसकी जाँघें कुमार की जाँघों से घिस रहीं थीं। कम्पार्टमेंट का तापमान काफी ठंडा हो रहा था। कुमार ने धीरे से नीतू को अपने और करीब खींचा तो नीतू ने उसका विरोध करते हुए कहा, "क्या कर रहे हो? कोई देखेगा तो क्या कहेगा?"

कुमार समझ गया की उसे नीतू ने अनजाने में ही हरी झंडी दे दी थी। नीतू ने कुमार का उसे अपने करीब खींचने का विरोध नहीं किया था बल्कि कोई देख लेगा यह कह कर उसे रोका था। यह इशारा कुमार के लिए काफी था। कुमार समझ गया की नीतू को यह डर था की कहीं उन्हें कोई देख ना ले।"

कुमार ने फ़ौरन खड़े हो कर पर्दों को फैला दिया जिससे उनकी बर्थ पूरी तरह से परदे के पीछे छिप गयी। अब कोई भी बिना पर्दा हटाए उन्हें देख नहीं सकता था। जब नीतू ने देखा की कुमार ने उन्हें परदे के पीछे ढक दिया तो वह बोल पड़ी, "कुमार यह क्या कर रहे हो?"

कुमार: "पहले आपने कहा, कोई देख लेगा। मैं वही कर रहा हूँ जो आप चाहते हो। अब हमें कोई नहीं देख सकता। बोलो अब तो ठीक है?"

नीतू को महसूस हुआ की उसकी जाँघों के बिच में से उसका स्त्री रस चुने लगा था। उसकी निप्पलेँ फूल कर बड़ी हो गयीं थीं। नीतू अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उस पर कुछ अजीब सा नशा छा गया था। नीतू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा था। जो आजतक उसने अनुभव नहीं किया था वह सब हो रहा था।

कुमार ने देखा की उसकी जोड़ीदार कुछ असमंजस में थी तो कुमार ने नीतू को अपनी और करीब खींचा और नीतू के कूल्हों के निचे अपने दोनों हाथ घुसा कर नीतू को ऊपर की और उठाया और उसे अपनी गोद में बिठा दिया।

जैसे ही कुमार ने नीतू को अपनी गोद में बिठाया की नीतू मचलने लगी। नीतू ने महसूस किया की कुमार का लण्ड उसकी गाँड़ को टोंच रहा था। उसकी गाँड़ की दरार में वह उसके कपड़ों के उस पार ऐसी ठोकर मार रहा था की नीतू जान गयी की कुमार का लण्ड काफी लंबा, मोटा और बड़ा था और एकदम कड़क हो कर खड़ा हुआ था।

नीतू से अब यह सब सहा नहीं जा रहा था। नीतू की चूत गीली होती जा रही थी। उसकी चूत में से रिस रहा पानी थमने का नाम नहीं ले रहा था। उसे यह डर था की कहीं उसकी पेंटी भीग कर उसके घाघरे को गीला ना कर दे, जिससे कुमार को नीतू की हालत का पता लग जाए। साथ साथ नीतू को अपनी मर्यादा भी तो सम्हालनी थी। हालांकि वह जानती थी की उसे अपने पति का समर्थन जरूर मिलेगा पर फिर भी वह एक शादीशुदा औरत थी।

नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।

नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।

नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।

फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"

और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर टॉयलेट में घुस गयी और उसने टॉयलेट का दरवाजा बंद करना चाहा। कुमार ने भाग कर अपने पाँव की एड़ी दरवाजे में लगादी जिस कारण नीतू दरवाजा बंद नहीं कर पायी।