उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

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कुमार ने ताकत लगा कर दरवाजा खिंच कर खोला और नीतू के पीछे वह भी टॉयलेट में अंदर घुस गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। सुनीता जब पहुंची तो दोनों प्रेमी पंछी टॉयलेट में थे और अंदर से नीतू की गिड़गिड़ाने की आवाज आ रही थी। सुनीता ने नीतू को गिड़गिड़ाकर कहते हुए सूना, "कुमार प्लीज मुझे छोड़ दो। यह तुम क्या कर रहे हो? मेरे कपडे मत निकालो। मैं बाहर कैसे निकलूंगी? अरे तुम यह क्या कर रहे हो?"

फिर अंदर से कुमार की आवाज आयी, "डार्लिंग, अब ज्यादा ना बनो जानू, प्लीज। मुझे एक बार तुम्हारे बदन को छू लेने दो। प्लीज बस एक ही मिनट लगेगा। मैं तुम्हें परेशान नहीं करूंगा। प्लीज मुझे छूने दो।"

नीतू: "नहीं कुमार, देखो कोई आ जायेगा। मैं तुम्हें सब कुछ करने दूंगी, पर अभी नहीं, प्लीज" फिर कुछ देर तक शान्ति हो गयी। अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी।

सुनीता ने देखा की एक सज्जन टॉयलेट की और आने की कोशिश कर रहे थे। सुनीता ने टॉयलेट का दरवाजा जोर से खटखटाया और बोली, "नीतू,, कुमार दरवाजा खोलो।"

जैसे ही सुनीता ने दरवाजा खटखटाया की फ़ौरन कुमार ने दरवाजा खोल दिया। सुनीता ने देखा की नीतू की साडी का पल्लू गिरा हुआ था। नितुकी ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और वह ब्रा को सम्हाल कर कुमार को रोकने की कोशिश कर रही थी। नीतू के मस्त बूब्स लगभग पुरे ही दिख रहे थे। उसके स्तनोँ को उभार देख कर सुनीता को भी ईर्ष्या हुई। उसके स्तन ब्रा में से ऐसे उठे हुए अकड़ से खड़े दिख रहे थे। नियु की स्तनोँ के एरोला भी दिख रहे थे।

सुनीता ने फुर्ती से नीतू को अपनी बाँहों में लपेट लिया। नीतू की सूरत रोने जैसी हो गयी थी। नीतू को सुनीता ने माँ की तरह अपनी बाँहों में कुछ देर तक जकड रखा और उसके सर पर हाथ फिरा कर उसे ढाढस देने लगी।

कप्तान कुमार खिसिआनि सी शक्ल बना कर सुनीता की और देखता हुआ अपनी सीट पर जाने लगा तो सुनीता ने उसे रोक कर कहा, "देखो कुमार और नीतू। हालांकि मैं तुम्हारी माँ जितनी तो उम्र में नहीं हूँ पर एक बात तुम दोनों को कहना चाहती हूँ। तुम मेरे छोटे भाई बहन की तरह हो। मैं तुम्हें एक दूसरे से मस्ती करने से नहीं रोक रही। पर ऐसे काम का एक समय, मौक़ा और जगह होती है। जो तुम करना चाहते हो वह तुम बेशक करो, मैं तुम्हें मना नहीं कर रही हूँ, पर सही समय, मौक़ा और जगह देख कर करो। परदे के पीछे करो, पर यहां इस वक्त नहीं। अपनी इज्जत अपने हाथ में है। उसे सम्हालो।

कुमार की और देख कर सुनीता ने कहा, "देखो, नीतू की इज्जत सम्हालना तुम्हारा काम है। मर्द को चाहिए की जिस औरत को वह प्यार करता है उसकी इज्जत का ख़याल रखे।"

कुमार ने अपनी नजरें निचे झुका लीं और कहा, "सॉरी मैडम। आगे से ऐसा नहीं होगा।"

सुनीता ने कुमार का हाथ थाम कर कहा, "कोई बात नहीं। अभी तुम जवान हो। जोश के साथ होश से भी काम लो।"

कप्तान कुमार अपना सर झुका कर अपनी बर्थ पर वापस लौट गए। साथ में नीतू भी खिस्यानी सी लौट आयी और अपनी ऊपर वाली बर्थ पर चली गयी। कप्तान कुमार को अपने वर्तन पर भारी शर्मिंदगी हुई। उसे समझ में नहीं उन्होंने ऐसी घटिया हरकत कैसे की। जो हुआ था उससे कप्तान कुमार काफी दुखी थे।

सुनीता अपनी सीट पर वापस आ कर बैठी और जस्सूजी क पाँव उसने फिर अपनी गोद में रखा। सुनीलजी और ज्योतिजी गहरी नींद में थे। सुनीता के आने से जस्सूजी की नींद खुल गयी थी।

और एक बार फिर उन्हें द्लार से सहलाने लगी, दबाने लगी और हल्का सा मसाज करने लगी। सुनीता को कप्तान कुमार और नीतू की जोड़ी अच्छी लगी। उसे अफ़सोस हो रहा था की उसने उनकी प्रेम क्रीड़ा में बाधा पैदा की। सुनीता ने अपने मन में सोचा की कहीं उसे उन पर इर्षा तो नहीं हो रही थी? नीतू को उसका प्यार मिल रहा था और उसकी तन की सालों की भूख आज पूरी हो सकती थी अगर वह बिच में नहीं आती तो।

सुनीता को मन में बड़ा दुःख हुआ। वह चाहती थी की कप्तान कुमार नीतू की प्यार और शरीर की भूख मिटाये। नीतू उसकी हकदार थी। सुनीता को क्या हक़ था उन्हें रोकने का? सुनीता अपने आप को कोसने लगी। कुछ सोच कर सुनीता उठ खड़ी हुई और नीतू की ऊपर वाली बर्थ के पास जाकर उसने नीतू का हाथ पकड़ कर धीमे से हिलाया। नीतू ने आँखें खोलीं। सुनीता को देख कर वह बोली, क्या बात है दीदी?"

सुनीता ने नीतू के कान में कहा, "नीतू, मुझे माफ़ करना। मैं आप दोनों के प्यार के बिच में अड़ंगा अड़ाया। मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ।"

नीतू आश्चर्य से सुनीता को देखती रही। सुनीता ने कहा, "देखो नीतू, मुझे तुम दोनों की प्रेम लीला से कोई शिकायत नहीं है। देखो, बंद परदे में सब कुछ अच्छा लगता है। इसलिए मैंने तुम्हें सबके सामने यह सब करने के लिए रोका था। कहते हैं ना की "परदे में रहने दो पर्दा ना उठाओ। पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।" तो मेरे कहने का बुरा मत मानना। ओके?"

सुनीता यह कह कर चुपचाप अपनी बर्थ पर वापसआगई।

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