उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

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ज्योति ने अचम्भे से सुनीता की और देखा और बोली, "अच्छा? इसका मतलब सुनील जी भी कर्नल साहब से कुछ कम नहीं है।"

सुनीता ने ज्योतिजी से पूछा "दीदी आप कह रही थीं ना की आपको बदन में काफी दर्द है तो आप अब लेट जाओ, मैं आपका थोड़ा हल्का फुल्का मसाज कर देती हूँ। "

सुनीता की प्यार भरी बात सुनकर ज्योतिजी बड़ी खुश हुई और बोली, "हाँ बहन अगर थोड़ी वर्जिश हो जायेगी तो बेहतर लगेगा। मैं सोच तो रही थी की तुझे कहूं की थोड़ी मालिश कर दे पर हिचकिचा रही थी।"

सुनीता ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, " जाइये, मैं आपसे बात नहीं करती। एक तरफ तो आप मुझे छोटी बहन कहती हो और फिर ऐसे छोटी सी बात के लिए हिचकिचाती हो? देखिये दीदी, जिस तरह से आपने मुझमें इतना विश्वास जताया है (सुनीता ने ज्योतिजी के नंगे बदन की और इशारा किया), की अब हम ना सिर्फ सहेलियां और बहनें हैं बल्कि हमारा रिश्ता उससे भी बढ़ कर है जिसका कोई नाम नहीं है। अब मुझसे ऐसी छोटी सी बात के लिए हिचकिचाना ठीक नहीं लगता दीदी।"

ज्योतिजी सुनीता की और देख कर मुस्कुरायी और बोली, "माफ़ करना बहन। मैंने ऐसा सोचा नहीं था। पर तुम ठीक कह रही हो। अब मैं ऐसा नहीं करुँगी।"

"अब आप चुपचाप उलटी लेट जाइये।" सुनीता ने अपना अधिकार जताते हुए कहा।

ज्योति आज्ञाकारी बच्ची की तरह पलंग पर उलटी लेट गयी। ज्योति के मादक कूल्हे और उनकी गाँड़ के दो गाल और उनके बिच की हलकी सी की दरार सुनीता ने देखि तो देखती ही रह गयी। ज्योतिजी का पूरा बदन पिछवाड़े से भी कितना आकर्षक और कमनीय लग रहा था! ज्योति जी की पीठ से सिकुड़ती हुई कमर और फिर अचानक ही कमर के निचे कूल्हों का उभार का कोई जवाब नहीं। गाँड़ की दरार ज्योति की दोनों जाँघों के मिलन के स्थान पर बदन के निचे ढकी हुई चूत का अंदेशा दे रही थी।

ज्योति की जाँघे जैसे विश्वकर्मा ने पूरा नाप लेकर एकदम सुडौल अनुपात में बनायी हो ऐसा जान पड़ता था। घुटनों के निचे की पिंडी और उसके निचे के पॉंव के तलवे भी रंगीले और लुभावने मन मोहक थे। सुनीता ने सोचा की इतनी प्यारी और लुभावनी कामिनी ज्योति भला यदि उसके के पति को भा गयी तो उसमें उस बेचारे का क्या दोष?

मालिश करने वाले तेल को हाथोँ पर लगा कर सुनीता ने ज्योतिजी के पॉंव की मालिश करनी शुरू की। ज्योति जी के करारे बदन के माँसल अंग अंग को छु कर जब सुनीता को ही इतना रोमांच हो रहा था तो अगर उसके पति सुनील को ज्योतिजी के करारे नंगे बदन को छूने का मौक़ा मिले तो उनका क्या हाल होगा यह सोच कर सुनीता का भी मन किया की वह भी कभी ना कभी अपने पति की इस कामिनी को चोदने की मनोकामना पूरी करने लिए सहायता करना चाहेगी।

फिर सुनीता सोचने लगी की अगर उसने ऐसा करने की कोशिश की तो फिर ज्योति जी भी चाहेगी की सुनीता को खुद को भी तो जस्सूजी से चुदवाना पडेगा। जस्सूजी से चुदवाने का यह विचार ही सुनीता के रोंगटे खड़ा करने के लिये काफी था।

फिलहाल सुनीता ने ज्योति जी की मालिश पर ध्यान देना था। धीरे धीरे सुनीता के हाथ जब ज्योति के कूल्हों को मलने लगे और वह उनके कूल्हों के गालों को दबाने और सहलाने लगी तो ज्योति जी के मुंहसे हलकी सी "आह्हह..." निकल पड़ी। सुनीता के हाथोँ का स्पर्श ज्योतिजी की चूत में हलचल करने के लिए पर्याप्त था।

ज्योतिजी ने लेटे लेटे सुनीता से कहा, "मेरी चद्दर गीली करवाएगी क्या? तेरे हाथों में क्या जादू है? मेरी चूत से पानी ऐसे रिस रहा है जैसे मैं क्या बताऊं? मेरे पॉंव जकड से गए थे। अब हलके लग रहे हैं।"

सुनीता ने कहा, "मैंने मसाज करने की ट्रैनिंग ली है दीदी। आप बस देखते जाओ। आप रुकिए, क्या मैं आप के निचे यह प्लास्टिक का कपड़ा रख दूँ? इस से चद्दर गीली या तेल वाली नहीं होगी। वरना चद्दर और भी गीली हो सकती है।" ज्योतिजी ने एक प्लस्टिक की चद्दर की और इशारा किया जिसे सुनीता ने उठ कर ज्योतिजी के नंगे बदन के निचे रख दिया और फिर ज्योतिजी का मालिश करना जारी रखा।

सुनीता ने अच्छी तरह ज्योतिजी की गाँड़ के गालों को रगड़ा और अपनी एक उंगली गाँड़ की दरार में हलके से ऐसी घुसाई की सीधी निचे ढकी हुई चूत की पंखुड़ियों को छूने लगी। गाँड़ के ऊपर से ही धीरे धीरे सुनीता ने ज्योतिजी की चूत को भी सहलाना शुरू किया। हर औरत की यह अक्सर कमजोरी होती है जब उसकी चूत की संवेदनशील लेबिया को कोई स्पर्श करे या सहलाये तो उसे चुदवाने की प्रबल इच्छा इतनी जागरूक हो जाती है की उसका स्वयं पर कोई नियत्रण नहीं रहता। तब वह कोई भी हो उससे चुद वाने के लिए तैयार हो ही जाती है।

सुनीता ने महसूस किया की ज्योतिजी की चूत में तब भी जस्सूजी का थोड़ा सा वीर्य था जो सुनीता ने अपनी उँगलियों में महसूस किया। जस्सूजी के अंडकोषों में कितना वीर्य भरा होगा यह सोच में सुनीता खो गयी। जब वह इतने सुदृढ़, माँसल और ताकतवर थे तो वीर्य तो होगा ही।

सुनीता ने अपने हाथ हटा लिए और देखे तो उस पर जस्सूजी का कुछ वीर्य भी चिपका हुआ था। कपडे से हाथों को पौंछ फिर उसपर तेल लगा कर सुनीता ज्योतिजी की कमर और पीठ पर मालिश करने में लग गयी।

धीरे से सुनीता ने ज्योतिजी की पीठ का मसाज इतनी दक्षता से किया की ज्योतिजी के मुंह से बार बार आह... ओह... बहुत अच्छ लग रहा है, बहन। तेरे हाथों में कमाल का जादू है। बदन से दर्द तो नाजाने कहाँ गायब हो गया।" बोलती रही।

सुनीता ने कहा, "दीदी, अब जब कभी जस्सूजी आपको रात को जम कर चोदे और अगर बदन में दर्द हो तो दूसरी सुबह मुझे बेझिझक बुला लेना। मैं आपकी ऐसी ही अच्छे से वर्जिश भी करुँगी और पूरी रात की आप दोनों की काम क्रीड़ा की पूरी लम्बी दास्तान भी आपसे सुनूंगी। आप मुझे सब कुछ खुल्लमखुल्ला बताओगी ना?"

ज्योतिजी ने हँसते हुए कहा, "अरे पगली, मैं तो चाहती हूँ की तुझे हमारी चुदाई की दास्ताँ सुनाने की जरुरत ही ना पड़े। मैं ऐसा इंतजाम करुँगी की तुम हमें अपनी आँखों के सामने ही चोदते हुए देख सको।"

फिर सुनीता की और देख कर धीमे सुर में बड़े ही गंभीर लहजे में बोली, "पगली हमारी चुदाई तो देखना ही , पर मैं तुम्हें जस्सूजी की चुदाई का स्वअनुभव भी करवा सकती हूँ, अगर तुम कहो तो। बोलो तैयार हो?"

यह सुनकर सुनीता को चक्कर आगये। ज्योतिजी यह क्या बोल रही थी? भला क्या कोई पत्नी किसी और स्त्री को अपने पति से चुदवाने के लिए कैसे तैयार हो सकती है? पर ज्योतिजी तो ज्योतिजी ही थी।

सुनीता की चूत ज्योतिजी की बात सुन कर फिर रिसने लगी। क्या ज्योतिजी सच में चाह रही थी की जस्सूजी सुनीता को चोदे? क्या ज्योतिजी सच में ऐसा कुछ बर्दाश्त कर सकती हैं? सुनीता ने ज्योतिजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। उसके मन में घमासान मचा हुआ था। वह क्या जवाब दे? एक तरफ वह जानती थी की कहीं ना कहीं उसके मन के एक कोने में वह जस्सूजी का मोटा लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए बेताब थी। दूसरी और अपना पतिव्रता होना और फिर उसमें भी अपनी राजपूती आन को वह कैसे ठुकरा सकती थी?

सुनीता ने बिना बोले चुपचाप ज्योतिजी की पीठ का मसाज करते हुए अपने हाथ निचे की और किये और ज्योतिजी के करारे, कड़क और फुले हुए स्तनों को हलके से एक बाजू से रगड़ना शुरू किया। सुनीता की चूत ज्योतिजी की गाँड़ को छू रही थी। सुनीता को तब समझ आया की क्यों मर्द लोग औरत की गाँड़ के पीछे इतना पागल हो रहे होंगें। ज्योतिजी की गाँड़ को अपनी चूत से छूने में सुनीता की चूत रिसने लगी।

ज्योति जी की नंगी गाँड़ पर वह पानी जब "टपक टपक" कर गिरने लगा तब ज्योति जी अपना मुंह तकिये में ही ढका हुआ रखती हुई बोली, "देखा सुनीता बहन! किसी प्यारी औरत की नंगीं गाँड़ को अपने लिंग से छूने में कितना आनंद मिलता है?"

सुनीता ने ज्योतिजी को पलटने को कहा। अब सुनीता को ज्योतिजी की ऊपर से मालिश करनी थी।

सुनीता फिर वही ज्योतिजी का प्यारा सुन्दर करारा बदन देखने में ही खो गयी। बरबस ही सुनीता के हाथ ज्योति जी के अल्लड़ स्तनोँ पर टिक गए। वह उन्हें सहलाने और दबाने लगी। ज्योतिजी भी सुनीता के हाथों से अपने स्तनोँ को इतने प्यार से सहलाने के कारण मचल ने लगी। सुनीता ने झुक कर ज्योतिजी के नंगे उन्मत्त, पके फल की तरह फुले हुए स्तनोँ को चूमा और उनपर तेल मलना शुरू किया। साथ साथ वह उनकी पूरी फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में दबाने और पिचका ने लगी।

सुनीता का गाउन सुनीता ने जाँघों के ऊपर तक उठा रखा था ताकि वह पलंग पर अपने पाँव फैलाकर ज्योति जी के बदन के दोनों और अपने पाँव टिका सके। ज्योतिजी को वहाँ से सुनीता की करारी जाँघें और उन प्यारी जाँघों के बिच सुनीता की चूत को छुपाती हुई सौतन समान कच्छी नजर आयी।

ज्योतिजी ने सुनीता का गाउन का निचला छोर पकड़ा और गाउन अपने दोनों हाथों से ही ऊपर उठाया जिससे उसे सुनीता की बाहों के ऊपर से उठाकर निकाला जा सके। सुनीता ने जब देखा की ज्योतिजी उसको नग्न करने की कवायद कर रही थी तो उसके मुंह और गालों पर शर्म की लालिमा छा गयी। वह झिझकती, शर्माती हुई बोली, "दीदी आप क्या कर रही हो?"

पर जब उसने देखा की ज्योतिजी उसकी कोई बात सुन नहीं रही थी, तो निसहाय होकर बोली, "यह जरुरी है क्या?"

ज्योतिजी ने कहा, "अरे पगली, मुझसे क्या शर्माना? अब क्या हमारा रिश्ता इन कपड़ों के अवरोध से रुकेगा? क्या तुमने अभी अभी यह वादा नहीं किया था की हम एक दूसरे से अपनी कोई भी बात या चीज़ नहीं छुपाएंगे? मैंने तो पहले ही बिना मांगें अपना पूरा बदन जैसा है वैसे ही तेरे सामने पेश कर दिया। तो फिर आओ मेरी जान, मुझसे बिना कोई अवरोध से लिपट जाओ।"

सुनीता बेचारी के पास क्या जवाब था? ज्योतिजी की बात तो सही थी। वह तो पहले से ही सुनीता के सामने नंगी हो चुकी थीं। सुनीता ने झिझकते हुए अपने हाथों को ऊपर उठाये और गाउन उतार दिया। सुनीता ब्रा और पैंटी में ज्योतिजी को अपनी टाँगों के बीच फँसा कर अपने घुटनों के बल पर ऐसे बैठी हुई थी जिससे ज्योतिजी के बदन पर उसका वजन ना पड़े।

अब ज्योति जी को सुनीता को निर्वस्त्र करने की मौन स्वीकृति मिल चुकी थी।

ज्योतिजी ने सुनीता की ब्रा के ऊपर से उठे हुए उभार को देखा और उन कामुक गोलों को छूने के लिये और पूरा निरावरोध देखने के लिए बेताब हो गयी। ज्योतिजी थोड़ा बैठ गयी और धीरे से सुनीता की पीठ पर हाथ घुमा कर ज्योतिजी ने सुनीता की ब्रा के हुक खोल दिए। सुनीता के अक्कड़ स्तन जैसे ही ब्रा का बंधन खुल गया तो कूद कर बाहर आ गए।

सुनीता ने देखा की अब ज्योतिजी से अपना बदन छुपाने का कोई फायदा नहीं था तो उसने अपने हाथ ऊपर किये और अपनी ब्रा निकाल फेंकी। ज्योतिजी मन्त्र मुग्ध सी उन फुले हुए प्यारे दो अर्धगोलाकार गुम्बजों को, जिनके ऊपर शिखर सामान गुलाबी निप्पलेँ लम्बी फूली हुई शोभायमान हो रही थी; को देखती ही रही।

ज्योतिजी ने अपनी बाँहें फैलायीं और उपरसे एकदम नग्न सुनीता को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और प्यार भरा आलिंगन किया। दोनों महिलाओं के उन्नत स्तन भी अब एक दूसरे को प्यार भरा आलिंगन कर रहे थे।

फिर सुनीता के बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए बोली, "मेरी प्यारी सुनीता, कसम से मैंने आज तक किसी महिला से प्यार नहीं किया। आज तुझे देख कर पता नहीं मुझे क्या हो रहा है। मैं कोई लेस्बियन या समलैंगिक नहीं हूँ। मुझे मर्दों से प्यार करवाना और चुदवाना बहुत अच्छा लगता है, पर यार तूम तो गजब की कामुक स्त्री हो। मेरी पति जस्सूजी की तो छोडो, वह तो मर्द हैं, तुम्हारे जाल में फंसेंगे ही, पर मैं भी तुम्हारे पुरे बदन और मन की कायल हो गयी। आज तुमने मुझे बिना मोल खरीद लिया।"

ज्योतिजी ने सुनीता की छाती के स्तनों पर उभरी हुई और चारों और से एरोला से घिरी उन फूली हुई निप्पलों को अपने मुंह में लिया और उन्हें चूसने लगी। साथ साथ में सुनीता के गोल गुम्बज सामान स्तनों को भी जैसे ज्योतिजी अपने मुंह में चूसकर खा जाना चाहती हो ऐसे उनको भी अपने मुंह में प्यार से लेकर चूसने, चूमने और चाटने लगी। दूसरे हाथ से ज्योतिजी ने सुनीता के दूसरे स्तन को दबाया और बोली, "आरी मेरी बहन, तेरी चूँचियाँ तो बाहर दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा मस्त और रसीली हैं। इन्हें छुपाकर रखना तो बड़ी नाइंसाफी होगी।"

सुनीता उत्तेजना के मारे, "ओहहह... आहहह..." कराह रही थी। जब सुनीता ने ज्योतिजी की बात सुनी तो वह मुस्करा कर बोली, "दीदी, मेरी चूँचियाँ आपकी के मुकाबले तो कुछ भी नहीं।"

सुनीता ने पलंग पर ज्योतिजी का बदन अपनी टाँगों के बिच जकड कर रखा हुआ था। ज्योति जी ने जब अपनी आँखें खोली तो सुनीता की कच्छी नजर आयी। ज्योति ने सुनीता की कच्छी पर अपने हाथ फिराना शुरू किया तो सुनीता रुक गयी और बोली, "दीदी अब क्या है?"

ज्योति ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "अरे कमाल है, क्या मैं तुम्हारे इस कमसिन, करारे बदन की सबसे खूबसूरत नगीने को छू नहीं सकती? मैं देखना चाहती हूँ की मेरी अंतरंग प्यारी और बला की खूबसूरत दोस्त की सबसे प्यारी चीज़ कितनी खूबसूरत और रसीली है।

सुनीता शर्म से सेहम गयी और बोली, "ठीक है दीदी। मुझे आदत नहीं है ना किसी और से बदन को छुआने की और वह भी वहाँ जहां आप ने छुआ, इसलिए थोड़ा घबरा गयी थी।"

ज्योतिजी ने भी जवाब में हँसते हुए काफी सन्दर्भ पूर्ण और शरारती इशारा करते हुए कहा, "अरे पगली आदत डालले! अब कई और भी मौके आएंगे किसी और से बदन को छुआने के। अब तुझे मेरा संग जो मिल गया है।" ऐसा कह कर ज्योति जी ने सुनीता की कच्छी (पैंटी) को सुनीता के घुटनों की और निचे खिसकाया। सुनीता ने अपने दोनों पांव एक तरफ कर कच्छी को निचे की और खिसका कर निकाल फेंकी।

दोनों स्त्रियां पूरी तरह निर्वस्त्र थीं। इन्सान जब भी इस दुनिया में आता है तो भगवान् उसे उसके शरीर की रक्षा के लिए मात्र चमड़ी के प्राकृतिक आवरण में ढक कर भेजते हैं। इन्सान उसी बदन को अप्राकृतिक आवरणों में छिपा कर रखना चाहता है, जिससे पुरुष और स्त्री का एक दूसरे के अंग देखने का कौतुहल बढे जिससे और ज्यादा कामुकता पैदा हो।

दोनों स्त्रियां कुदरत की भेंट सी किसी भी अप्राकृतिक आवरण से ढकी हुई नहीं थीं।

सुनीता फिर अपनी मूल पोजीशन में वापस आ गयी। ज्योतिजी सुनीता की टाँगों के बिच स्थित सुनीता की चूत पर हाथ फेर कर उसे सहलाने और दबाने लगीं।

सुनीता अपनी गाँड़ इधर उधर कर मचल रही थी। उसके जीवन में यह पहला मौक़ा था जब किसी महिला ने सुनीता बदन को इस तरह छुआ और प्यार किया हो। सुनीता इंतजार कर रही थी की जल्द ही ज्योतिजी की उंगलियां उसकी चूत में डालेंगीं और उसे उन्माद से पागल कर देंगीं। और ठीक वही हुआ।

सुनीता की चूत के ऊपर वाले उभार पर हाथ फिराते ज्योतिजी ने धीरेसे अपनी एक उंगली से सुनीता की चूत की पंखुड़ियों को सहलाना शुरू किया। सुनीता की यह कमजोरी थी की जब कभी उसके पति सुनीता को चुदवाने के लिए तैयार करना चाहते थे तो हमेशा उसकी चूत की पंखुड़ियों को मसलते और प्यार से रगड़ते। उस समय सुनीता तुरंत ही चुदवाने के लिए तैयार हो जाती थी।

ज्योतिजी ने धीरे से वही उंगली सुनीता की चूत में डालदी। धीरे धीरे ज्योतिजी सुनीता की चूत की पंखुड़ियों के निचे वाली नाजुक और संवेदनशील त्वचा को सहलाने और रगड़ने लगी। सुनीता इसे महसूस कर उछल पड़ी। उसे ताज्जुब हुआ की ज्योतिजी को महिलाओं की चूत को उत्तेजित करने में इतने माहिर कैसे थे। ज्योतिजी की सतत अपनी उँगलियों से सुनीता की चूत चोदने के कारण सुनीता की चूत में एक अजीब सा उफान उठ रहा था। सुनीता का पति सुनील सुनीता को उंगली डालकर उसे चोदते थे। पर जो निपुणता और दक्षता ज्योतिजी की उंगली में थी वह लाजवाब थी।

जब ज्योतिजी ने देखा की सुनीता अपनी चूत की ज्योतिजी की उँगलियों से हो रही चुदाई के कारण उन्मादित हो कर अपने घुटनों के बल पर ही मचल रही थी। तब ज्योतिजी ने सुनीता के बाँहें पकड़ कर उसे अपने साथ ही लेटने का इशारा किया। सुनीता हिचकिचाते हुए ज्योतिजी के साथ लेट गयी तब ज्योति जी बैठ गयी और थोड़ा सा घूम कर अपनी दो उँगलियों को सुनीता की चूत में घुसेड़ कर सुनीता की चूत अपनी उँगलियों से फुर्ती से चोदने लगीं।

अब सुनीता के लिए यह झेलना बड़ा ही मुश्किल था। सुनीता अपने आप पर नियंत्रण खो चुकी थी। पहली बार सुनीता की चूत किसी खबसूरत स्त्री अपनी कोमल उँगलियों से चोद रही थी। सुनीता की चूत से तो जैसे उन्माद का फव्वारा ही छूटने लगा। सुनीता की सिसकारियाँ अब जोर शोर से निकलने लगीं। सुनीता की, "आह... ओह... दीदी यह क्या कर रहे हो? बापरे..." जैसी उन्माद भरी सिसकारियोँ से पूरा कमरा गूंज उठा।

जैसे जैसे सुनीता की सिसकारियाँ बढ़ने लगीं, वैसे वैसे ज्योतिजी ने सुनीता की चूत को और तेजी से चोदना जारी रखा। आखिर में, "दीदी, आअह्ह्ह... उँह... हाय... " की जोर सी सिसकारी मार कर सुनीता ने ज्योतिजी के हाथ थाम लिए और बोली, "बस दीदी अब मेरा छूट गया।" बोल कर सुनीता एकदम निढाल होकर ज्योतिजी के बाजू में ही लेट गयी और आँखें बंद कर शांत हो गयी।

सुनीता की जिंदगी में यह कमाल का लम्हा था। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की वह कभी किसी स्त्री की उँगलियों से अपनी चूत चुदवाएगी। वही हुआ था। उस दिन तक सुनीता ने कभी इतना उन्माद का अनुभव नहीं किया था। काफी समय से अपने पति से चुद तो रही थी, चुदाई में आनंद भी अनुभव कर रही थी, पर सालों साल वही लण्ड, वही मर्द और वही माहौल के कारण चुदाई में कोई नवीनता अथवा उत्तेजना नहीं रही थी। उस दिन सुनीता ने वह उत्तेजना महसूस की।

उत्तेजना सिर्फ इस लिए नहीं थी की सुनीता की चूत किसी सुन्दर महिला ने अपनी उँगलियों से चोदी थी, पर उसके साथ साथ जो जस्सूजी के बारे में उन्मादक बातें हो रही थीं उसने आग में घी डालने का काम किया था। जस्सूजी का लण्ड, उनसे चुदवानिकी बातें जस्सूजी की बीबी से ही सुनकर सुनीता के जहन में कामुकता की जबरदस्त आग लगी थी।

उस सुबह सुनीता और ज्योतिजी के बिच की औपचारिकता की दिवार जैसे ढह गयी थी। सुनीता ने तो अपनी उन्मादक ऊँचाइयों को छू लिया था पर सुनीता को ज्योतिजी को उससे भी ऊँची ऊंचाइयों तक ले जाना था।

सुनीता ने थोड़ी देर साँस थमने के बाद फिर ज्योतिजी को पलंग पर लिटा दिया और फिर वह घुटनों के बल पर उनपर सवार हो गयी और बोली, "दीदी अब मेरी बारी है। आज आपने मुझे कोई और ही जन्नत में पहुंचा दिया। आज का मेरा यह अनुभव मैं भूल नहीं सकती।"

यह सुनकर ज्योतिजी मुस्करादीं और बोली, "अभी तो मैंने तुझे कहा उतनी ऊंचाइयों पर पहुंचाया है? अभी तो मैं और मेरे पति तुझे अकल्पनीय ऊंचाइयों तक ले जाएंगे।"

ज्योतिजी के गूढ़ार्थ से भरे वाक्य सुनकर सुनीता चक्कर खा गयी। उसे यकीन हो गया की ज्योतिजी जरूर उसे जस्सूजी से चुदवाने का सोच रही थी।

ज्योतिजी की बात का जवाब दिए बिना सुनीता अपने एक हाथ से ज्योतिजी की चूत के ऊपर का उभार सहलाने लगी और झुक कर सुनीता ने अपने होँठ ज्योतिजी के स्तनोँ पर रख दिए। सुनीता ने दुसरा हाथ ज्योतिजी के दूसरे स्तन पर रखा और वह उसे दबाने और मसलने लगी। अब मचलने की बारी ज्योतिजी की थी। सुनीता ने अपनी उँगलियाँ अपनी चूत में तो डाली थीं पर कभी किसी और स्त्री की चूत में नहीं डाली थीं।

उस दिन, पहली बार ज्योतिजी की चूत को सहलाते पुचकारते हुए सुनीता ने अपनी दो उंगलियां ज्योतिजी की चूत में डाल दीं। ज्योतिजी ने जैसे ही सुनीता की उँगलियों को अपनी चूत में महसूस किया तो वह भी मचलने लगी। सुनीता एक साथ तीन काम कर रही थी। एक तो वह ज्योतिजी की चूत अपनी उँगलियों से चोद रही थी, दूसरे उसका मुंह ज्योतिजी के उन्मत्त स्तनोँ को चूस रहा था और तीसरे वह दूसरे हाथ से ज्योतिजी का दुसरा स्तन दबा रही थी और उनकी निप्पल को वह उँगलियों में भींच रही थी।

सुनीता ने ज्योति से उनको उँगलियों से चोदते हुए धीरे से उनके कानों में कहा, "दीदी, एक बात पूछूं?"

ज्योतिजी ने अपनी आँखें खोलीं और उन्हें मटक कर पूछने के लिये हामी का इशारा किया।

सुनीता ने कहा, "दीदी सच सच बताना, क्या आप मेरे पति को पसंद करती हो?"

सुनीता की भोली सी बात सुनकर ज्योति हँस पड़ी और बोली, "मैंने तुझे पहले ही नहीं कहा? मैं उन्हें ना सिर्फ पसंद करती हूँ, पगली मैं उनके पीछे पागल हूँ। तुम बुरा मत मानना। वह तुम्हारे ही पति हैं और हमेशा तुम्हारे ही रहेंगे। मैं उनको छीनने की ना ही कोशिश करुँगी ना ही मेरी ऐसी कोई इच्छा है। पर मैं उनकी इतनी कायल हूँ की मैं सारी मर्यादाओं को छोड़ कर उनसे खुल्लमखुल्ला चुदवाना चाहती हूँ। मैंने आज तुझे मेरे मन की बात कही है। और ध्यान रहे, मैं अपने पति से भी कोई धोखाधड़ी नहीं करुँगी, क्यूंकि मैंने उनको भी इस बात का इशारा कर दिया है।"

सुनील के बारे में ऐसी उत्तेजक बातें सुनकर ज्योति के जहन में भी काम की ज्वाला भड़क उठी। ज्योतिजी ने सुनीता से कहा, "बहन, तू भी बहुत चालु है। तू जानती है की मुझे कैसे भड़काना है। मैं तेरे पति के बारे में सोचती हूँ तो मेरी चूत में आग लग जाती है। उनकी गंभीरता, उनकी सादगी और उनकी शरारती आँखें मेरी चूत को गीली कर देती हैं। मैं जानती हूँ की आग दोनों तरफ से लगी है। अब तो तू मेरी बहन और अंतरंग सहेली बन गयी है ना? तो तू कुछ ऐसा तिकड़म चला की उनसे मेरी चुदाई हो जाए!"

फिर ज्योतिजी ने सोचा की उनकी ऐसी उटपटांग बात सुनकर कहीं सुनीता नाराज ना हो जाए, इस लिए वह थोड़ा सम्हाल कर सुनीता के सर पर हाथ फिराते हुए बोली, "बहन, मुझे माफ़ करना। मेरी बेबाकी में मैं कुछ ज्यादा ही बक गयी। मैं तुझे तेरे पति के बारे में ऐसी बातें कर परेशान कर रही हूँ।"

सुनीता ने जवाब में कहा, "दीदी, मैं जानती हूँ, मेरे पति आप पर फ़िदा हैं। और मैं उसे गलत नहीं समझती। आप जैसी कामुक बेतहाशा खूबसूरत कामिनी पर कौन अपनी जान नहीं छिड़केगा? अब तो हम दोनों ऐसे मोड़ पर आ गए हैं की क्या बताऊँ? मुझे ज़रा भी बुरा नहीं लगा दीदी, क्यूंकि मैं जानती हूँ की आप अपने पति जस्सूजी से बहुत प्यार करते हो। यही तो कारण है की आप मुझे उनसे चुदवाने के लिए ऐसे वैसे बड़ी कोशिश कर प्रोत्साहित कर रहे हो। कौन पत्नी भला अपने पति से चुदवाने के लिए किसी स्त्री को तैयार करेगी, जब तक की उसे अपने पति से बहुत प्यार ना हो और उन पर पूरा विश्वास ना हो?"

सुनीता की ऐसी कामुकता भरी बातें सुनकर ज्योतिजी गरम हो रहीथी। वैसे भी सुनीता के उँगलियों से चोदने से काफी गरम पहले से ही थी। ज्योतिजी की साँसे तेज चलने लगीं.. उन्होंने कहा, "सुनीता, मैं अब झड़ने वाली हूँ।"

सुनीता ने उँगलियों से चोदने की फुर्ती बढ़ाई और देखते ही देखते ज्योतिजी एक या दो बार पलंग पर अपने कूल्हे उठाके, "आह... ऑफ़... हायरे... " बोलती हुई उछली और फिर पलंग पर अपनी गाँड़ रगड़ती हुई एकदम निढाल हो कर चुप हो गयी। उसकी साँसे तेज चल रही थी। ज्योतिजी का छूट गया और वह शांत हो गयी। परन्तु उनके मन में से अपन पति से सुनीता को चुदवाने का विचार अभी गया नहीं था। वह इस बात को पक्का करना चाहती थी।

साँस थमने ज्योतिजी ने सुनीता का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, "मेरी प्यारी बहन, तू क्या बोलती है? जब तुझे सारी बातें साफ़ है तो फिर कुछ करते हैं जिससे तू जस्सूजी के लण्ड का अनुभव कर सके।"

ज्योति जी की बात सुनकर सुनीता थोड़ी सकपका गयी, क्यूंकि वह जो बोलने वाली थी उससे ज्योतिजी काफी हतोत्साहित हो सकती थी। सुनीता ने दबे स्वर में बड़ी ही गंभीरता से कहा, "दीदी मैं आपसे माफ़ी मांगना चाहती हूँ। पर दीदी, मैं आपसे एक बात बताना चाहती हूँ की ऐसा हो नहीं पाएगा। ऐसा नहीं है की मैं जस्सूजी को पसंद नहीं करती। मैं ना सिर्फ उन्हें पसंद करती हूँ बल्कि दीदी मैं आज आपसे नहीं छुपाउंगी की मैं मैं जब भी उनको देखती हूँ तब मैं उनपर वारी वारी जाती हूँ।

अगर आप की शादी उनसे नहीं हुई होती और अगर मैं उनसे पहले मिली होती तो मैं जरूर उनको आपके हाथों लगने नहीं देती। जैसे आपने उनको और स्त्रियों से छीन लिया था ऐसे मैं भी कोशिश करती की मैं उनको आपके हाथों से छीन लूँ और वह मेरे हो जाएं । पर अब जो हो चुका वह हो चुका। वह आपके हैं और हमेशा आपके रहेंगे। पर मेरी मजबूरी है की मेरी कितनी भी इच्छा होते हुए भी मैं आपकी मँशा पूरी नहीं कर सकती।"

सुनीता की बात सुनकर ज्योतिजी को बड़ा झटका लगा। उन्हें लगा था की सुनीता तो बस अब फँसने वाली ही है, पर यह तो सब उल्टापुल्टा हो रहा था। ज्योतिजी ने पूछा, "पर क्यों तुम ऐसा नहीं कर सकती? क्या तुम्हें अपने पति से डर है? या फिर लज्जा, या कोई धार्मिक आस्था का सवाल है? आखिर बात क्या है?"

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