उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

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वह गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी ज्योति को मिलने के लिए चल पड़ी। सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। स्कूल में छुट्टियां चल रही थीं।

ज्योति उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, "कौन है?"

जब सुनीता की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और सुनीता को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।

सुनीता ने नमस्ते किया तो ज्योतिजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, "अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।" फिर सुनीता का हाथ पकड़ ज्योतिजी उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और सुनील की पत्नी सुनीता को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया।

सुनीता तो ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में ज्योतिजी गजब का कमाल ढा रही थीं।

पलंग की और इशारा कर के ज्योतिजी बोली, "बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।"

सुनीता समझ गयी की पिछली रात जस्सूजी ने जरूर अपनी पत्नी ज्योतिजी की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर सुनीता के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जस्सूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जस्सूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर सुनील की पत्नी सुनीता काँप उठी। अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की सुनीता को ज्योति जी के पति जस्सूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा।

सुनीता ने पहली बार ज्योतिजी को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। सुनीता ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी ज्योतिजी जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं। वह सुनीता से करीब चार या पांच साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! सुनीता को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति सुनील जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी के पीछे पागल थे।

ज्योतिजी के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं। तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ ज्योति के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं। ज्योतिजी ने सुनीता को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो सुनीता को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध सुनीता ज्योतिजी के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे।

सुनीता का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर ज्योतिजी की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं ज्योतिजी सुनीता की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।

सुनीता को ज्योतिजी के पति जस्सूजी से इर्षा हुई जो ज्योतिजी के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले। जब ज्योति जी ने सुनीता की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। सुनीता ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर ज्योति के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी।

हायरे दैया!! जिस ढंग से ज्योतिजी अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया ज्योतिजी की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी।

ज्योतिजी की जाँघें देखकर सुनीता से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "ज्योतिजी आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जस्सूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवीके वह पति हैं।"

ज्योति ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर सुनीता, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। सुनीता भौंचक्का सी ज्योतिजी को देखती ही रही और वह ज्योतिजी की बाहों में उनसे जुड़ गयी। सुनीता को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब ज्योति ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ।

ज्योति जी ने अपना हाथ सुनीता के बदन पर सरकाते हुए सुनीता के कँधों को सहलाना शुरू किया। ज्योति ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"

सुनीता क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। सुनीता ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही। तब ज्योति बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"

सुनीता के हाथ में हाथ ले कर सुनीता के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"

सुनीता ने ज्योति के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"

ज्योति को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ज्योति ने पूछा, "मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?"

सुनीता तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और ज्योति के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जस्सूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती।

मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जस्सूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जस्सूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"

ज्योति ने सुनीता को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "सुनीता, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जस्सूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।"

ज्योति जी ने सुनीता को अपने और करीब खींचा और बोली, "सुनीता, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"

सुनीता ने कहा, "दीदी , मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"

ज्योति ने सुनीता की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, " मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ। देखो मेरी छोटी बहन सुनीता, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जस्सूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती है। वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" सुनीता ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी।

सुनीता के हाथ अपने हाथ में लेकर ज्योति बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"

सुनीता ने ज्योति जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"

तब ज्योति ने सुनीता की नाक पकड़ कर कहा, "देखो बहन, मैं जस्सूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।"

सुनीता ज्योति जी की बात सुनकर कुछ खिसियानी सी लग रही थी तब ज्योतिजी ने सुनीता के गले में अपनी बाँहें डाल कर सुनीता की आँखों में आँखें मिलाकर कहा, "देखो, शादी के कुछ सालों बाद मर्द लोग इधर उधर ताकते ही रहते हैं। हमारे पति तो फिर भी अच्छे हैं की ज्यादा इधर उधर ताँक झाँक नहीं कर रहे। और की भी तो वह हम पर ही की।

कर्नल साहब तुम पर डोरे डाल रहे हैं तो तुम्हारे पति की नजर मुझपर है। मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है की तुम्हारे पति सुनीलजी मुझे बहुत पसंद हैं और अगर मौक़ा मिला तो मैं उनके साथ सोना भी चाहती हूँ। मेरे पति जस्सूजी को भी इस बारे में पता है, हालांकि हमारी साफ़ साफ़ बात नहीं हुई।"

ज्योति जी की ऐसी बेख़ौफ़ वाणी सुनकर सुनीता की आँखें फटी की फटी ही रह गयीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या बोले। एक भारतीय नारी इतनी खुल्लमखुल्ला कैसे अपने मन की बात बता रही थी? उनकी बात गलत तो नहीं थी। पर समझने में और बोलने में फर्क है। सुनीता ने भी तो ज्योति जी के पति जस्सूजी का लण्ड पकड़ा था? वह कैसे यह झुठला सकती थी?"

सुनीता ने अपना सर हिलाकर हामी भरी की वह समझ रही है।

ज्योति ने कहा, "देखो बहन, मैं जानती हूँ की हम मर्द की तरह इतने खुल कर वह सब नहीं कर सकते जो वह कर सकते हैं। एक मेरी निजी और गुह्य बात मैं तुमसे आज शेयर करना चाहती हूँ। क्या मैं तुमसे हमारी कुछ गुप्त बातें शेयर कर सकती हूँ?"

सुनीता ने कहा, "हाँ बिलकुल दीदी। मैं वादा करती हूँ की आपने अपने मन की बात कही है तो मैं उसे किसीके साथ भी शेयर नहीं करुँगी। यहां तक की आपने पति से भी नहीं। मैं भी आजसे आपको मेरे मन की हर एक बात बताउंगी और कुछ भी नहीं छुपाउंगी। हम एक दूसरे से अपनी कोई भी बात नहीं छुपायेंगे।"

ज्योति ने हँस कर कहा, " मेरे पति और तुम्हारे जस्सूजीने हमारी शादी से पहले कई महिलाओं को आकर्षित किया था और मैं जानती थी की उन्होंने कई स्त्रियों को चोदा भी था। तुम नहीं जानती की मैं मेरे पति यानी जस्सूजी से शादी से पहले हमारी दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवा चुकी थी। मैं उनसे एक क्लब मैं मिली थी और पहली ही मुलाक़ात में उनपर फ़िदा हो गयी थी। मैंने तब तय किया था की अगली मुलाक़ात में ही मैं जस्सूजी से जरूर चुदवाउंगी।"

सुनीता ज्योतिजी का यह रूप पहली बार देख रही थी। वह जानती थी की ज्योति जी साफ़ साफ़ बोलती हैं। पर वह इतना खुल्लमखुल्ला चोदना, चुदाई, लण्ड, चूत बगैरह इस तरह बेबाक बोलेंगी उसकी तो कल्पना भी सुनीता ने नहीं की थी।

ज्योतिजी बिना रुके बोले जा रही थीं। "दूसरी मुलाक़ात में मैंने जस्सूजी को साफ़ साफ़ कह दिया की मैं उनसे चुदवाना चाहती थी। जस्सूजी मुझे आँखें फाड़ कर देखते रहे! उन्हें तब तक मेरे जैसी मुंहफाड़ स्त्री नहीं मिली थी। वह क्या कहते? मुझ पर तो वह पहले से ही फ़िदा थे! बस हम दोनों ने उसी दिन उसी क्लब में कमरा ले कर पहली बार घमासान चुदाई की। और मैंने उनसे शादी से काफी पहले दूसरी मुलाक़ात में ही चुदवाया। जब मेरी उन्होंने जम कर चुदाई की तब मैंने वहाँ ही तय कर लिया था की मैं उनसे बार बार चुदवाना चाहती थी। मैं जस्सूजी से शादी करना चाहती थी। मैं उनके बच्चों की माँ बनना चाहती थी।

शुरू में जस्सूजी मुझसे शादी करने के लिए इस लिए तैयार नहीं थे की मेरे साथ शादी करने से उनकी आझादी छीन जा रही थी। शादी के पहले उनपर कई लडकियां और औरतें ना सिर्फ फ़िदा थीं पर उनके साथ सोने के लिए मतलब चुदने के लिए भी आती थीं। पर मैंने भी तय किया था की मैं शादी करुँगी तो जस्सूजी से ही। नहीं तो शादी ही नहीं करुँगी। बहन तुम शायद यह भी ना मनो की जस्सूजी ने ही मेरा सील तोड़ा था।

हालांकि मैं कॉलेज मैं भी बड़ी बेबाक और उद्दंड लड़की मानी जाती थी और सारे लड़के मुझे मिलने या यूँ कहिये की चोदने के लिए पागल थे। मैं सबके साथ घूमती थी, कुछ लड़कों के साथ चुम्माचाटी भी करती थी। पर मेरी चूत में मैंने पहेली बार जस्सूजी का ही लण्ड डलवाया। मेरा सब कुछ मैंने पहली बार तुम्हारे जस्सूजी को ही दिया।

कोई और औरत उन्हें फाँस ले उससे पहले ही मैंने उनसे शादी करने का वचन ले लिया। तब मैंने उनसे वादा किया था की मेरे साथ शादी करने से उनकी आजादी नहीं छीन जायेगी। मैं उनको किसी भी औरत से मिलने या चोदने से नहीं रोकूंगी। इतना ही नहीं, मैंने उनसे वादा किया था की अगर उन्हें कोई औरत पसंद आए तो उसे मेरे पति के बिस्तर तक पहुंचाने में मैं उनकी सहायता करुँगी।"

सुनीता यह सुनकर अजूबे से ज्योति जी को देखती ही रही। ज्योति सुनीता का सर अपनी छाती पर रखती हुई बोली, " सुनीता, मेरे पति तुम्हारी कामना करते हैं। उन्होंने मुझे कहा तो नहीं पर मैं जानती हूँ की वह तुम्हारे साथ सोना चाहते हैं। साफ़ साफ़ कहूं तो वह तुम्हें प्यार करना और चोदना चाहते हैं। तो फिर मुझे उनकी मदद करनी पड़ेगी। उसके लिए मुझे तुम्हार सहमति चाहिए। तुम्हारा कमसिन बदन देख कर मैं ही जब विचलित हो जाती हूँ तो मेरे पति की तो बात ही क्या? वह तो एक हट्टेकट्टे जवान मर्द है? जहाँ तक तुम्हारे पति सुनील का सवाल है, वह तुम मुझ पर छोड़ दो।"

ज्योति जी की बेबाक बातें सुनकर सुनीता की तो बोलती ही बंद हो गयी थी। सुनीता बेचारी चौड़ी, फूली हुई आँखों से ज्योति जी बातें सुन रही थी।

सुनीता ने देखा की ज्योति जी का तौलिया खिसक गया था और उनके उन्नत स्तन सुनीता के सामने खुले हुए थे और उन स्तनों के शिखर पर गुलाबी फूली हुई निप्पलेँ इतनी मन को हरने वाली थीं की ना चाहते हुए भी सुनीता की कोहनी एक स्तन पर लग ही गयी।

सुनीता की आँखें उनके वक्ष स्थल पर ऐसी टिकी हुई थीं की हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। यह देख ज्योति बोली, "बहन देख क्यों रही हो? इन्हें अपने हाथोँ में महसूस करो। महसूस करना चाहती हो? सोचो मत। आओ बेबी, दोनों हाथों से पकड़ो और उन्हें महसूस करो। मैं पहली बार इतनी खूबसूरत स्त्री से मेरी चूँचियाँ मसलवाने का मौका पा रही हूँ। शादी के बाद आज तक इन पर मात्र जस्सूजी का ही अधिकार रहा है।"

ज्योति ने कहा, "शादी के बाद से आज तक इन पर तुम्हारे जस्सूजी का सम्पूर्ण अधिकार रहा था। पर हाँ तुम्हारे पति सुनील ने भी इन्हें महसूस किया है और मसला भी है। बहन तुमने कसम ली है की तुम सुनीलजी से कुछ नहीं कहोगी, और बुरा भी नहीं मानोगी। उसमें जितने वह दोषी हैं, उससे ज्यादा मैं गुनेहगार हूँ।"

ज्योतिजी ने सुनीता का हाथ अपने हाथों में लिया और पकड़ कर अपनी छाती पर रखा। ज्योति जी का तौलिया वैसे ही खुल गया और ज्योतिजी सुनीता के सामने ही सम्पूर्ण नग्न अवस्था में सुनीता की बाँहों में थीं। सुनीता के लिए यह अपने जीवन की एक अद्भुत और अकल्पनीय घटना थी। कई बार सुनीता के मन में कोई ना कोई मर्द के बारे में, उसके लण्ड के बारे में या उसको नंगा देखने के बारे में विचार हुए होंगें। सुनीता ने पहले नग्न औरतों की तस्वीरों को भी देखा था। पर यह पहली बार था की सुनीता साक्षात किसी औरत को ऐसे निर्वस्त्र देख रही थी और वह भी स्वयँ एक रति के सामान बला की कामुक और खूबसूरत ज्योति जी जैसी स्त्री उसकी नजर के सामने नंगी प्रस्तुत थी।

सुनीता ने ज्योति जी के उन्नत स्तनों पर अपना हाथ फिराते हुए कहा, "ना बहन, मैं कुछ नहीं कहूँगी। बल्कि मुझे उस बात का काफी कुछ अंदेशा था भी।"

सुनीता फिर कुछ खिसियानी सी हो गयी और उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने थोड़ा सम्हल कर कहा, "दीदी मैं आज आप से भी एक गुनाह कुबुल करती हूँ की आपके पति जस्सूजी को मैंने भी मेरे बूब्स छूने दिया था। यह उस दिन सिनेमा हॉल में हुआ था। दीदी मैं अपने आपको रोक नहीं पायी थी और ना ही जस्सूजी। मैंने उनको कई जगह से छुआ भी था। आप भी अपने पति जस्सूजी से इस बारेमें कुछ मत कहियेगा।"

यह सुन कर ज्योति जी ने अपने होँठ सुनीता के होँठ पर रख दिए और सुनीता के होठोँ का रस चूसती हुई बोली, "पगली! तू क्या सोचती है? यह सब मुझे पता नहीं? अरे मैंने ही तो सब के मन की बात जानने के लिए यह खेल रचा था। अब तक जो हम सब के मन में था उस दिन सब बाहर आ गया।"

सुनीता ने झिझकते हुए पूछा, "पर दीदी क्या यह सब सही है?"

ज्योति ने कहा, "देखो मेरी बहन। शादी के कुछ सालों बाद सब पति पत्नी एक दूसरे से थोड़े बोर हो जाते हैं। हमारी चुदाई में कोई नवीनता नहीं रहती। कोई अनअपेक्षित रोमांच नहीं रहता। पति और पत्नी दोनों का मन करता है की कुछ अलग हो, कुछ एक्साइटमेंट हो। इस लिए दोनों ही अपने मन में तो किसी और मर्द या औरत की कामना करते हैं पर डर के मारे या फिर सही पार्टनर ना मिलने के कारण कुछ कर नहीं पाते।

कई मर्द या औरत चोरी छुपी अपने पति पति अथवा पत्नी की पीठ के पीछे किसी और मर्द या स्त्री से रिश्ते करते हैं या चोदते हैं। यह सब स्वाभाविक है। पर इस में एक मर्यादा रखनी चाहिए की अपना पति अथवा पत्नी अपनी है और दूसरी का पति अथवा पत्नी उस की ही है। उसे हथियाने की कोशिश कत्तई भी नहीं करनी चाहिए।

बस चाह पूरी की फिर भले ही आप उसे प्यार करो पर उस पर अपना हक़ नहीं जमा सकते। यह मर्यादा अगर रख पाएं तो यह सही है। और इसमें एक और बात भी है। ऐसे में पति और पत्नी की सहमति जरुरी है, चाहे वह समझानेसे या फिर उकसाने से आये। और पति को पत्नी की सहमति तभी ही मिल सकती है जब पत्नी को अपने पति में पूरा विश्वास हो।"

ज्योतिजी ने सुनीता को होठोँ पर काफी उत्कट और उन्माद भरा चुम्बन किया। दोनों महिलाये एक दूसरे के मुंह में जीभ डालकर एक दूसरे के मुंह की लार चूस रहीं थीं।

सुनीता तब तक ज्योति के साथ काफी तनावमुक्त महसूस कर रही थी। सुनीता ने देखा की ज्योतिजी के बदन से तौलिया सरक गया था और ज्योतिजी को उसकी कोई चिंता नहीं थी। वैसे तो सुनीता को भी उस बात से कोई शिकायत नहीं थी क्यूंकि वह भी तो ज्योतिजी के करारे और उन्मादक बदन की कायल थी।

ज्योति ने सुनीता की ललचायी नजर अपने बदन पर फिसलते देखि तो वह मुस्कुरायी और सुनीता की ठुड्डी अपनी हथेली में पकड़ कर बोली, "अरे बहन देखती क्या है। महसूस कर। ज्योति ने सुनीता के सर पर हाथ दबाया जिससे सुनीता को बरबस ही आना सर नीचा करना पड़ा और उसक मुंह ज्योति जी उन्मत्त स्तनों तक आ पहुंचा। सुनीता के होँठ ज्योति जी की फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को छूने लगे। सुनीता के होँठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते ज्योति जी की निप्पलेँ सुनीता के मुंह में गायब हो गयीं।

सुनीता ने जैसे ही ज्योतिजी की करारी निप्पलोँ को अपने होठोँ के बिच में महसूस किया तो उसके रोंगटे खड़े होगये। सुनीता ने कभी यह सोचा भी नहीं था की कभी उसे कोई स्त्री के बदन को छूने के कारण इतनी उत्तेजना पैदा होगी। सुनीता के बदन में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया। उसके बदन में सिहरन हो उठी। अचानक उसे ऐसा लग जैसे उस का सर घूम रहा हो। उसने महसूस किया की उसकी चूत में से स्त्री रस चू ने लगा। उसकी पैंटी उसे गीली महसूस हुई।

सुनीता ने ज्योति जी को धीरे से कहा, "दीदी, आप यह क्या कर रही हो? देखो मेरी हालत खराब हो रही है। मेरी पैंटी गीली हो रही है।

ज्योति ने कहा, "मेरी बहन सुनीता, आज मुझे भी तुम पर बहुत प्यार आ रहा है। तुम मेरी गोद में आ जाओगी?" जब सुनीता ने कोई जवाब नहीं दिया तो ज्योति ने सुनीता को ऊपर उठाकर धीरे से अपनी गोद में बिठा दिया। सुनीता भी चुपचाप उठकर ज्योति जी की गोद में बैठ गयी। सुनीता को भी अपनी दीदी पर उस दिन न जाने कैसा प्यार उमड़ रहा था।

ज्योति जी ने सुनीता के ब्लाउज में अपना हाथ डाला और बोली, "तुम्हारे बूब्स इतने मुलायम और फिर भी इतने सख्त हैं की उनपर हाथ फिरते मेरा ही मन नहीं भरता।"

ज्योति जी की हरकत देख कर सुनीता थोड़ी घबड़ा गयी। उसे डर लगा की कहीं ज्योति जी समलैंगिक कामुक स्त्री तो नहीं है?"

ज्योति जी सुनीता के मन की बात समझ गयीं और बोली, "सुनीता यह मत समझना की मैं समलैंगिक स्त्री हूँ। मुझे तुम्हारे जस्सूजी से चुदवाने में अद्भुत आनंद आता है। पर हाय री सुनीता! मैं वारी वारी जाऊं! तेरा बदन ही ऐसा कामणखोर है की मेरा भी मन मचल जाता है। क्या तुझे कुछ नहीं होता?"

सुनीता बेचारी चुपचाप ज्योति जी के कमसिन बदन को देखने लगी। ज्योति जी के उन्नत स्तन सुनीता के मुंह के पास ही थे। ज्योति जी के बदन की कामुक सुगंध सुनीता के तन में भी आग लगाने का काम कर रही थी।

ज्योति जी सुनीता के कान में अपना मुंह दबा कर बोली, "सुनीता, मेरे पति का लण्ड बहोत बड़ा है और (ज्योति जी अपनी उँगलियाँ बड़ी चौड़ी फैला कर बोली) इतना मोटा है। जो कोई उनसे एक बार चुदवाले वह उनसे चुदवाये बगैर रह नहीं सकता। अरे मैंने शादी भी तो मेरे पति का लण्ड देख कर ही तो की थी? एक बात कहूं बहन बुरा तो नहीं मानोगी?"

सुनीता ने सर हिला कर ना कहा तो ज्योति ने कहा, "मेरी बहन सुनीता! मेरे पति से तू भी एक बार अगर चुदवा लेगी ना, तो फिर तू उनसे बार बार चुदवाना चाहेगी।"

सुनीता आश्चर्य से ज्योति की और देखने लगी। ज्योति ने सुनीता का एक हाथ अपनी चूत पर रख दिया। सुनीता ने महसूस किया की ज्योतिजी की चूत से भी उनका स्त्री रस रिस रहा था। अब सुनीता की मर्यादा और झिझक का बाँध टूटने लगा था। वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रही थी। सुनीता ने ज्योतिजी के पास पड़े तौलिये को हटाकर उनकी चूँचियों को चूसते हुए कहा, "दीदी सच बोलिये, रात को जस्सूजी और आपने मिलकर खूब सेक्स किया था ना?"

ज्योति जी ने सुनीता के भरे हुए स्तनों को सहलाते और निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में दबाते हुए कहा, "अरे पगली बहन, सेक्स सेक्स मत बोल। पूछ की क्या तुम्हारे जस्सूजी ने मुझे जम कर चोदा था या नहीं? हाँ अरे बहन उन्होंने तो मेरी जान निकाल ली उतना चोदा। मैं क्या बताऊँ? इसी लिए तो आज सुबह से मैं थकी हुई हूँ। वह जब चोदते हैं तो माँ कसम, इतने सालों के बाद भी मजा आ जाता है। चुदाई में जस्सूजी का जवाब नहीं। पर तू बता, सुनील जी तुम्हें कैसे चोदते हैं?"

सुनीता ज्योतिजी की बात सुन कर थोड़ा असमंजस में पड़ गयी। पर तब तक वह काफी रिलैक्स्ड महसूस कर रही थी। सुनीता ने कहा, "दीदी मुझे अब भी थोड़ी सी झिझक है पर मैंने आप से वादा किया है तो मैं खुलमखुल्ला बताउंगी की सेक्स, सॉरी मतलब, चुदाई करने में सुनीलजी भी बड़े माहिर हैं। मुझे पता नहीं की उनका वह मतलब लण्ड जस्सूजी के जितना बड़ा है या नहीं, पर फिर भी काफी बड़ा है। बखूबी की बात यह है की जब वह चोदते हैं तो मैं जब तक झड़ ना जाऊं तब तक चोदते ही रहते हैं।"

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