उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन! 02

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जस्सूजी ने देख लिया तो वह भी टिका टिपण्णी कर सकते थे। वह तो कुछ ख़ास नहीं कहेंगे पर यह जरूर कहेंगे की "यार किसी और की बीबी के साथ सोते तब तो समझते। तुमतो अपनी बीबी को ट्रैन में भी नहीं छोड़ते। भाई शादी के इतने सालों के बाद इतनी आशिकी ठीक नहीं।"

खैर, सुनीलजी डरते कांपते अपनी बर्थ से निचे उतर कर अपनी पत्नी की बर्थ के पास पहुंचे। उन्हें यह सावधानी रखनी थी की उन्हें कोई देख ना ले। यह देख कर उन्हें अच्छा लगा की कहीं कोई हलचल नहीं थी। ज्योतिजी और जस्सूजी गहरी नींद में लग रहे थे। उनकी साँसों की नियत आवाज उन्हें सुनाई दे रही थी।

सुनीलजी को यह शांति जरूर थीकि यदि कभी किसी ने उन्हें देख भी लिया तो आखिर वह क्या कह सकते थे? आखिर वह सो तो अपनी बीबी के साथे ही रहे थे न?

जब सुनीलजी अपनी बीबी सुनीता के कम्बल में घुसे तब सुनीता गहरी नींद में सो रही थी। सुनीलजी उम्मीद कर रहे थे की सुनीता जाग रही होगी। पर वह तो खर्रांटे मार रही थी। लगता था वह काफी थकी हुई थी। थकना तो था ही! सुनीता ने जस्सूजी के साथ करीब एक घंटे तक प्रेम क्रीड़ा जो की थी! सुनीलजी को कहाँ पता था की उनकी बीबी जस्सूजी से कुछ एक घंटे पहले चुदवाना छोड़ कर बाकी सब कुछ कर चुकी थी?

सुनीलजी उम्मीद कर रहे थे की उनकी पत्नी सुनीता उनके आने का इंतजार कर रही होगी। उन्होंने कम्बल में घुसते ही सुनीता को अपनी बाहों में लिया और उसे चुम्बन करने लगे। सुनीता गहरी नींद में ही बड़बड़ायी, "छोडो ना जस्सूजी, आप फिर आ गए? अब काफी हो गया। इतना प्यार करने पर भी पेट नहीं भरा क्या?"

यह सुनकर सुनीलजी को बड़ा झटका लगा। अरे! वह यहां अपनी बीबी से प्यार करने आये थे और उनकी बीबी थी की जस्सूजी के सपने देख रही थी? सुनीलजी के पॉंव से जमीन जैसे खिसक गयी। हालांकि वह खुद अपनी बीबी सुनीता को जस्सूजी के पास जाने के लिए प्रोत्साहित कर तो रहे थे पर जब उन्होंने अपनी बीबी सुनीता के मुंह से जस्सूजी का नाम सूना तो उनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उनके अहंकार पर जैसे कुठाराघात हुआ।

पुरुष भले ही अपनी बीबी को दूसरे कोई मर्द के से सेक्स करने के लिए उकसाये, पर जब वास्तव में दुसरा मर्द उसकी बीबी को उसके सामने या पीछे चोदता है और उसे उसका पता चलता है तो उसे कुछ इर्षा, जलन या फिर उसके अहम को थोड़ी ही सही पर हलकी सी चोट तो जरूर पहुँचती है। यह बात सुनीलजी ने पहली बार महसूस की। तब तक तो वह यह मानते थे की वह ऐसे पति थे की जो अपनी पत्नी से इतना प्यार करते थे की यदि वह किसी और मर्द से चुदवाये तो उनको रत्ती भर भी आपत्ति नहीं होगी। पर उस रात उनको कुछ तो महसूस जरूर हुआ।

सुनीलजी ने अपनी बीबी को झकझोरते हुए कहा, "जानेमन, मैं तुम्हारा पति सुनील हूँ। जस्सूजी तो ऊपर सो रहे हैं। कहीं तुम जस्सूजी से चुदवाने के सपने तो नहीं देख रही थी?"

अपने पति के यह शब्द सुनकर सुनीता की सारी नींद एक ही झटके में गायब हो गयी। वह सोचने लगी, "हो ना हो, मेरे मुंह से जस्सूजी का नाम निकल ही गया होगा और वह सुनील ने सुन लिया। हाय दैय्या! कहीं मेरे मुंहसे जस्सूजी से चुदवाने की बात तो नींद में नहीं निकल गयी? सुनील को कैसे पूछूं? अब क्या होगा?"

सुनीता का सोया हुआ दिमाग अब डबल तेजी से काम करने लगा। सुनीता ने कहा, "मैं जस्सूजी ना नाम ले रही थी? आप का दिमाग तो खराब नहीं हो गया?" फिर थोड़ी देर रुक कर सुनीता बोली, "अच्छा, अब मैं समझी। मैंने आपसे कहा था, 'अब खस्सो जी, फिर मेरी बर्थ पर क्यों आ गये? क्या आप का मन पिछली रात इतना प्यार करने के बाद भी नहीं भरा?' आप भी कमाल हैं! आपके ही मन में चोर है। आप मेरे सामने बार बार जस्सूजी का नाम क्यों ले रहे हो? मैं जानती हूँ की आप यही चाहते हो ना की मैं जस्सूजी से चुदवाऊं? पर श्रीमान ध्यान रहे ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। अगर आपने ज्यादा जिद की तो मैं उनको अपने करीब भी नहीं आने दूंगी। फिर मुझे दोष मत दीजियेगा!"

अपनी बीबी की बात सुन कर सुनीलजी लज्जित हो कर माफ़ी मांगने लगे, "अरे बीबीजी, मुझसे गलती हो गयी। मैंने गलत सुन लिया। मैं भी बड़ा बेवकूफ हूँ। तुम मेरी बात का बुरा मत मानना। तुम मेरे कारण जस्सूजी पर अपना गुस्सा मत निकालना। उनका बेचारे का कोई दोष नहीं है। मैं भी तुम पर कोई शक नहीं कर रहा हूँ।"

बेचारे सुनीलजी! उन्होंने सोचा की अगर सुनीता कहीं नाराज हो गयी तो जस्सूजी के साथ झगड़ा कर लेगी और बनी बनायी बात बिगड़ जायेगी। इससे तो बेहतर है की उसे खुश रखा जाए।"

सुनीलजी ने सुनीता के होँठों पर अपने होँठ रखते हुए कहा, "जानूं, मैं जानता हूँ की तुमने क्या प्रण लिया है। पर प्लीज जस्सूजी से इतनी नाराजगी अच्छी नहीं। भले ही जस्सूजी से चुदवाने की बात छोड़ दो। पर प्लीज उनका साथ देने का तुमने वादा किया है उसे मत भुलाना। आज दोपहर तुमने जस्सूजी की टाँगे अपनी गोद में ले रक्खी थी और उनको हलके से मसाज कर रही थी तो मुझे बहुत अच्छा लगा था। सच में! मैं इर्षा से नहीं कह रहा हूँ।"

सुनीता ने नखरे दिखाते हुए कहा, "हाँ भाई, आपको क्यों अच्छा नहीं लगेगा? अपनी बीबी से अपने दोस्त की सेवा करवाने की बड़ी इच्छा है जो है तुम्हारी? तुम तो बड़े खुश होते अगर मैंने तुम्हारे दोस्त का लण्ड पकड़ कर उसे भी सहलाया होता तो, क्यों, ठीक कहा ना मैंने?"

सुनीलजी को समझ नहीं आ रहा था की उनकी बीबी उनकी फिल्म उतार रही थी या फिर वह मजाक के मूड में थी। सुनीलजी को अच्छा भी लगा की उनकी बीबी जस्सूजी के बारेमें अब काफी खुलकर बात कर रही थी।

सुनीलजी ने कहा, "जानूं, क्या वाकई में तुम ऐसा कर सकती हो? मजाक तो नहीं कर रही?"

सुनीता ने कहा, "कमाल है! तुम कैसे पति हो जो अपनी बीबी के बारे में ऐसी बाते करते हो? एक तो जस्सूजी वैसेही बड़े आशिकी मिजाज के हैं। ऊपर से तुम आग में घी डालने का काम कर रहे हो! अगर तुमने जस्सूजी से ऐसी बात की ना तो ऐसा ना हो की मौक़ा मिलते ही कहीं वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर ही ना रख दें! उनको ऐसा करने में एक मिनट भी नहीं लगेगा। फिर यातो मुझे उनसे लड़ाई करनी पड़ेगी, या फिर उनका लण्ड हिलाकर उनका माल निकाल देना पडेगा। हे पति देव! अब तुम ही बताओ ऐसा कुछ हुआ तो मुझे क्या करना चाहिए?"

अपनी बीबी के मुंह से यह शब्द सुनकर सुनीलजी का लण्ड खड़ा हो गया। यह शायद पहेली बार था जब सुनीता ने खुल्लमखुल्ला जस्सूजी के लण्ड के बारेमें सामने चल कर ऐसी बात छेड़ी थी। सुनील ने अपना लण्ड अपनी बीबी के हाथ में पकड़ाया और बोले, "जाने मन ऐसी स्थिति में तो मैं यही कहूंगा की जस्सूजी सिर्फ मेरे दोस्त ही नहीं, तुम्हारे गुरु भी हैं। उन्होंने भले ही तुम्हारे लिए अपनी जान कुर्बान नहीं की हो, पर उन्होंने तुम्हारे लिए अपनी रातों की नींद हराम कर तुम्हें शिक्षा दी जिसकी वजह से आज तुम्हें एक शोहरत और इज्जत वाली जॉब के ऑफर्स आ रहे हैं। तो अगर तुमने उनकी थोड़ी गर्मी निकाल भी दी तो कौनसा आसमान टूट पड़ने वाला है?"

अपने पति की ऐसी उत्तेजनात्मक बात सुनकर सुनीता की जाँघों के बिच में से पानी चुना शुरू हो गया। उसकी चूत में हलचल शुरू हो गयी। पहले ही उसकी पेंटी भीगी हुई तो थी ही। वह और गीली हो गयी। अपने आपको सम्हालते हुए सुनीता ने कहा, "अच्छा जनाब! क्या ज़माना आ गया है? अब बात यहां तक आ गयी है की एक पति अपनी बीबी को गैर मर्द का लण्ड हिला कर उसका माल निकालने के लिए प्रेरित कर रहा है?" फिर अपना सर पर हाथ मारते हुए नाटक वाले अंदाज में सुनीता बोली, " पता नहीं आगे चलकर इस कलियुग में क्या क्या होगा?"

सुनील ने अपनी बीबी सुनीता का हाथ पकड़ कर कहा, "जानेमन, जो होगा अच्छा ही होगा।"

सुनीता की चूत में उंगली डाल कर सुनीलजी न कहा, "देखो, मैं महसूस कर रहा हूँ की तुम्हारी चूत तो तुम्हारे पानी से पूरी लथपथ भरी हुई है। जस्सूजी की बात सुनकर तुम भी तो बड़ी उत्तेजित हो रही हो! भाई, कहीं तुम्हारी चूत में तो मचलन नहीं हो रही?"

सुनीता ने हँस कर कहा, "डार्लिंग! तुम मेरी चूत में उंगलियां डाल कर मुझे उकसा रहे हो और नाम ले रहे हो बेचारे जस्सूजी का! चलो अब देर मत करो। मेरी चूत में वाकई में बड़ी मचलन हो रही है। अपना लण्ड डालो और जल्दी करो। कहीं कोई जाग गया तो और नयी मुसीबत खड़ी हो जायेगी।"

मौक़ा पाकर सुनीलजी ने सोचा फायदा उठाया जाये। वह बोले, "पर जानेमन यह तो बताओ, की अगर मौक़ा मिला तो जस्सूजी का लण्ड तो सेहला ही दोगी ना?"

सुनीता ने हँसते हुए कहा, "अरे छोडो ना जस्सूजी को। अपनी बात सोचो!"

सुनील को लगा की उसकी बात बनने वाली है, तो उसने और जोर देते हुए कहा, "नहीं डार्लिंग! आज तो तुम्हें बताना ही पडेगा की क्या तुम मौक़ा मिलने पर जस्सूजी का लण्ड तो हिला दोगी न?"

सुनीता ने गुस्से का नाटक करते हुए कहा, "मेरा पति भी कमाल का है! यहां उसकी बीबी नंगी हो कर अपने पति को उसका लण्ड अपनी चूत में डालने को कह रही है, और पति है की अपने दोस्त के लण्ड के बारे में कहे जा रहा है! पहले ऐसा कोई मौक़ा तो आनेदो? फिर सोचूंगी। अभी तो मारे उत्तेजना के मैं पागल हो रही हूँ। अपना लण्ड जल्दी डालो ना?"

सुनील ने जिद करते हुए कहा, "नहीं अभी बताओ। फिर मैं फ़ौरन डाल दूंगा।"

सुनीता ने नकली नाराजगी और असहायता दिखाते हुए कहा, "मैं क्या करूँ? मेरा पति हाथ धोकर मुझे मनवाने के लिए मेरे पीछे जो पड़ा है? यहां मैं मेरे पति के लण्ड से चुदवाने के लिए पागल हो रही हूँ और मेरा पति है की अपने दोस्त की पैरवी कर रहा है! ठीक है भाई। मौक़ा मिलने पर मैं जस्सूजी का लण्ड मसाज कर दूंगी, हिला दूंगी और उनका माल भी निकाल दूंगी, बस? पर मेरी भी एक शर्त है।"

सुनिजि यह सुन कर ख़ुशी से उछल पड़े और बोले, "बोलो, क्या शर्त है तुम्हारी?"

सुनीता ने कहा, "मैं यह सब तुम्हारी हाजरी में तुम्हारे सामने नहीं कर सकती। हाँ अगर कुछ होता है तो मैं तुम्हें जरूर बता दूंगी। बस, क्या यह शर्त तुम्हें मंजूर है?"

सुनील ने फ़ौरन अपनी बीबी की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए कहा, "मंजूर है, शत प्रतिशत मंजूर है।"

और फिर दोनों पति पत्नी कामाग्नि में मस्त एक दूसरे की चुदाई में ऐसे लग पड़े की बड़ी मुश्किल से सुनीता ने अपनी कराहटों पर काबू रखा।

सुनीलजी अपनी बीबी की अच्छी खासी चुदाई कर के वापस अपनी बर्थ पर आ रहे थे की बर्थ पर चढ़ते चढ़ते ज्योतिजी ने करवट ली और जाने अनजानेमें उनके पाँव से एक जोरदार किक सुनीलजी के पाँव पर जा लगी। ज्योतिजी शायद गहरी नींद में थीं। सुनीलजी ने घबड़ायी हुई नजर से काफी देर तक वहीं रुक कर देखना चाहा की ज्योतिजी कहीं जाग तो नहीं गयीं? पर ज्योतिजी के बिस्तर पर कोई हलचल नजर नहीं आयी। दुखी मन से सुनील वापस अपनी ऊपर वाली बर्थ पर लौट आये।

सुबह हो रही थी। जम्मू स्टेशन के नजदीक गाडी पहुँचने वाली थी। सब यात्री जाग चुके थे और उतर ने के लिए तैयार हो रहे थे।

जब कुमार जागे और उन्होंने ऊपर की बर्थ पर देखा तो बर्थ खाली थी। नीतू जा चुकी थी। कप्तान कुमार को समझ नहीं आया की नीतू कब बर्थ से उतर कर उन्हें बिना बताये क्यों चली गयी। सुनीता उठकर फ़ौरन कुमार के पास उनका हाल जानने पहुंची और बोली, "कैसे हो आप? उठ कर चल सकते हो की मैं व्हील चेयर मँगवाऊं?"

कप्तान कुमार ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा की वह चल सकते थे और उन्हें कोई मदद की आवश्यकता नहीं थी। जब उन्होंने इधरउधर देखा तो सुनीता समझ गयी की कुमार नीतू को ढूंढ रहे थे। सुनीता ने कुमार के पास आ कर उन्हें हलकी आवाज में बताया की नीतू ब्रिगेडियर साहब के साथ चली गयी थी। उस समय भी यह साफ़ नहीं हुआ की ब्रिगेडियर साहब नीतू के क्या लगते थे। यह रहस्य बना रहा।

ट्रैन से निचे उतर ने पर सब ने महसूस किया की ज्योतिजी का मूड़ ख़ास अच्छा नहीं था। वह कुछ उखड़ी उखड़ी सी लग रही थीं। जस्सूजी ने सबको रोक कर बताया की उन्हें वहाँ से करीब चालीस किलोमीटर दूर हिमालय की पहाड़ियों में चम्बल के किनारे एक आर्मी कैंप में जाना है। उन सबको वहाँ से टैक्सी करनी पड़ेगी। जस्सूजी ने यह भी कहा की चूँकि वापसी की सवारी मिलना मुश्किल था इस लिए टैक्सी वाले मुंह माँगा किराया वसूल करते थे।

जस्सूजी, ज्योतिजी, सुनीता और सुनीलजी को बड़ा आनंद भरा आअश्चर्य तब हुआ जब एक व्यक्ति ने आकर सबसे हाथ मिलाये और सबके गले में फुलकी एक एक माला पहना कर कहा, "जम्मू में आपका स्वागत है। मैं आर्मी कैंप के मैनेजमेंट की तरफ से आपका स्वागत करता हूँ।"

फिर उसने आग्रह किया की सबकी माला पहने हुए एक फोटो ली जाए। सब ने खड़े होकर फोटो खिंचवाई। सुनील को कुछ अजीब सा लगा की स्टेशन पर हाल ही में उतरे कैंप में जाने वाले और भी कई आर्मी के अफसर और लोग थे, पर स्वागत सिर्फ उन चारों का ही हुआ था। फोटो खींचने के बाद फोटो खींचने वाला वह व्यक्ति पता नहीं भिडमें कहाँ गायब हो गया। सुनील ने जब जस्सूजी को इसमें बारेमें पूछा तो जस्सूजी भी इस बात को लेकर उलझन में थे। उन्होंने बताया की उनको नहीं पता था की आर्मी कैंप वाले उनका इतना भव्य स्वागत करेंगे।

खैर जब जस्सूजी ने टैक्सी वालों से कैंप जाने के लिए पूछताछ करनी शुरू की तो पाया की चूँकि काफी लोग कैंप की और जा रहे थे तो टैक्सी वालों ने किराया बढ़ा दिया था। पर शायद उन चारों की किस्मत अच्छी थी। एक टैक्सी वाले ने जब उन चारों को देखा तो भागता हुआ उनके पास आया और पूछा, "क्या आपको आर्मी कैंप साइट पर जाना है?"

जब सुनील ने हाँ कहा तो वह फ़ौरन अपनी पुरानी टूटी फूटी सी टैक्सी, के जिस पर कोई नंबर प्लेट नहीं था; ले आया और सबको बैठने को कहा। जब जस्सूजी ने किराये के बारे में पूछा तो उसने कहा, "कुछ भी दे देना साहेब। मेरी गाडी तो कैंप के आगे के गाँव तक जा ही रही है। खाली जा रहा था। सोच क्यों ना आपको ले चलूँ? कुछ किराया मिल जायेगा और आप से बातें भी हो जाएंगी।" ऐसा कह कर हम सब के बैठने के बाद उसने गाडी स्टार्ट कर दी।

जब जस्सूजी ने फिर किराए के बारे में पूछा तब उसने सब टैक्सी वालों से आधे से भी कम किराया कहा। यह सुनकर सुनीता बड़ी खुश हुई। उसने कहा, "यह तो बड़ा ही कम किराया माँग रहा है? लगता है यह भला आदमी है। यह कह कर सुनीता ने फ़ौरन अपनी ज़ेब से किराए की रकम टैक्सी वाले के हाथ में दे दी। सुनीता बड़ी खुश हो रही थी की उनको बड़े ही सस्ते किरायेमें टैक्सी मिल गयी। पर जब सुनीता ने जस्सूजी की और देखा तो जस्सूजी बड़े ही गंभीर विचारों में डूबे हुए थे।

कैंप जम्मू स्टेशन से करीब चालीस किलोमीटर दूर था और रास्ता ख़ास अच्छा नहीं था। दो घंटे लगने वाले थे। टैक्सी का ड्राइवर बड़ा ही हँसमुख था। उसने इधर उधर की बातें करनी शुरू की। ज्योतिजी का मूड़ ठीक नहीं था। कर्नल साहब कुछ बोल नहीं रहे थे। सुनील जी को कुछ भी पता नहीं था तब हार कर टैक्सी ड्राइवर ने सुनीता से बातें करने शुरू की, क्यूंकि सुनीता बातें करने में बड़ी उत्साहित रहती थी। टैक्सी ड्राइवर ने सुनीता से उनके प्रोग्राम के बारे में पूछा। सुनीता को प्रोग्राम के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं था। पर सुनीता को जितना पता था उसने ड्राइवर को सब कुछ बताया।

आखिर में दो घंटे से ज्यादा का थकाने वाला सफर पूरा करने के बाद हिमालय कीखूबसूरत वादियों में वह चारों जा पहुंचे।

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उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन! - 13

मेरी निजी टिपण्णी

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जब मेरी यह कहानी अभी चल ही रही थी तब मुझे मेरी एक महिला पाठक, जिनका डिजिटल नाम "चंचल चंचु" है, उन्होंने मुझे सिर्फ एक लाइन का ईमेल लिखा।

"हाई, मैं एक ___ साल की लड़की हूँ। मैं आपकी कहानी को बहुत पसंद करती हूँ। लिखने के लिए शुक्रिया।"

यह एक सीधा सादा ईमेल मेरे दिल को छू गया। इस एक लाइन में मेरी प्यारी पाठक ने कितना सारा लिख दिया। मैं ऐसे पाठकों के लिए ही लिखता हूँ। मैं ख़ास तौर से अपनी महिला पाठकों को यह कहना चाहता हूँ, की आप को भगवान् ने जो ह्रदय दिया है और उसमें जो भाव दिए हैं उनको मैं बार बार नमन करता हूँ। हमारी माँ, बहन, बेटी, प्रियतमा, पत्नी, और कई रूप में आप हम नालायक पुरुषों को झेलतीं हैं और उनको ना सिर्फ जन्म देती हैं और लालन पालन करती हैं बल्कि उनको ढेर सारा प्यार देती हैं। आपके इस ऋण को हम पुरुष लोग कभी अदा नहीं कर सकते। आप के कारण ही हमारा जीवन सफल बना है।

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जम्मू स्टेशन से कैंप की और टैक्सी चला कर ले जाते हुए पुरे रास्ते में सुनीलजी को ऐसा लगा जैसे टैक्सी का ड्राइवर "शोले" पिक्चर की "धन्नो" की तरह बोले ही जा रहा था और सवाल पे सवाल पूछे जा रहा था। आप कहाँ से हो, क्यों आये हो, कितने दिन रहोगे, यहां क्या प्रोग्राम है, बगैरा बगैरा। सुनीता भी उस की बातों का जवाब देती जा रही थी जितना उसे पता था।

जिसका उसे पता नहीं था तो वह जस्सूजीको पूछती थी। पर जस्सूजी थे की पूरी तरह मौन धरे हुए किसी भी बात का जवाब नहीं देते थे। सुनीता ड्राइवर से काफी प्रभावित लग रही थी। वैसे भी सुनीता स्वभाव से इतनी सरल थी की उसे प्रभावित करने में कोई ख़ास मशक्कत करने की जरुरत नहीं पड़ती थी। सुनीता किसीसे भी बातों बातों में दोस्ती बनानेमें माहिर तो थी ही।

आखिर में जस्सूजी ने ड्राइवर को टोकते हुए कहा, "ड्राइवर साहब, आप गाडी चलाने पर ध्यान दीजिये। बातें करने से ध्यान बट जाता है। तब कहीं ड्राइवर थोड़ी देर चुप रहा। सुनीता को जस्सूजी का रवैया ठीक नहीं लगा। सुनीता ने जस्सूजी की और कुछ सख्ती से देखा। पर जब जस्सूजी ने सुनीता को सामने से सीधी आँख वापस सख्ती से देखा तो सुनीता चुप हो गयी और खिसियानी सी इधर उधर देखती रही।

काफी मशक्कत और उबड़ खाबड़ रास्तों को पार कर उन चार यात्रियों का काफिला कैंप पर पहुंचा। कैंप पर पहुँचते ही सब लोग हिमालय की सुंदरता और बर्फ भरे पहाड़ियों की चोटियों में और कुदरत के कई सारे खूबसूरत नजारों को देखने में खो से गए। सुनीता पहली बार हिमालय की पहाड़ियों में आयी थी। मौसम में कुछ खुशनुमा सर्दी थी। सफर से सब थके हुए थे।

सारा सामान स्वागत कार्यालय में पहुंचाया गया। जस्सूजी ने देखा की टैक्सी का ड्राइवर मुख्य द्वार पर सिक्योरिटी पहरेदार से कुछ पूछ रहा था। फ़ौरन जस्सूजी भागते हुए मुख्य द्वार पर पहुंचे। वह देखना चाहते थे की टैक्सी ड्राइवर पहरेदार से क्या बात कर रहा था। जस्सूजी को दूर से आते हुए देख कर चन्द पल में ही ड्राइवर जस्सूजी की नज़रों से ओझल हो गया। जस्सूजी ने उसे और उसकी टैक्सी को काफी इधर उधर देखा पर वह या उसकी टैक्सी नजर नहीं आये।

जब कर्नल साहब ने पहरेदार से पूछा की टैक्सी ड्राइवर क्या पूछ रहा था तो पहरेदार ने कहा की वह कर्नल साहब और दूसरों के प्रोग्राम के बारेमें पूछ रहा था। पहरेदार ने बताया की उसे कुछ पता नहीं था और नाही वह कुछ बता सकता था। कुछ देर तक बात करने के बाद ड्राइवर कहीं चला गया। जब कर्नल साहब ने पूछा की क्या वह पहरेदार उस ड्राइवर को जानता था। तब पहरेदार ने कहा की वह उस ड्राइवर को नहीं जानता था। ड्राइवर कहीं बाहर का ही लग रहा था। जब कर्नल साहब ने और पूछा की क्या आगे कोई गांव है, तो पहरेदार ने बताया की वह रास्ता कैंप में आकर ख़तम हो जाता था। आगे कोई गाँव नहीं था।

कर्नल साहब बड़ी उलझन में ड्राइवर के बारेमें सोचते हुए जब रजिस्ट्रेशन कार्यालय वापस आये तब सुनीलजी ने जस्सूजी को गहरी सोच में देखते हुए पाया तो पूछा की क्या बात थी की जस्सूजी इतने परेशान थे?

जस्सूजी ने कहा की ड्राइवर बड़े अजीब तरीके से व्यवहार कर रहा था। ड्राइवर ऐसे पूछताछ कर रहा था जैसे उसको कुछ खबर हासिल करनी हो। कर्नल साहब ने यह भी कहा की जम्मू स्टेशन पर उनको जो मालाएं पहनाई गयीं और फोटो खींची गयी, वैसा कोई प्रोग्राम कैंप की तरफ से नहीं किया गया था। जस्सूजी की समझ में यह नहीं आ रहा था की ऐसा कौन कर सकता है और क्यों? पर उसका कोई जवाब नहीं मिल रहा था।

सुनीलजी ने तर्क किया की हो सकता है की कोई ग़लतफ़हमी से ऐसा हुआ। जस्सूजी ने सोचते सोचते सर हिलाया और कहा, "यह एक इत्तेफाक या संयोग हो सकता है। पर पिछले कुछ दिनों में काफी इत्तेफ़ाक़ हो रहे हैं। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। मैं उंम्मीद करता हूँ की यह इत्तेफ़ाक़ ही हो। पर हो सकता है की इसमें कोई सुनियोजित चाल भी हो। सोचना पडेगा।" कर्नल साहब यह कह कर रीसेप्प्शन की और कमरे की व्यवस्था करने के लिए चल पड़े।

सुनीलजी और सुनीता की समझ में कुछ नहीं आया। सब रिसेप्शन की और चल पड़े।

जस्सूजी ने दो कमरे का एक सूट बुक कराया था। सूट में एक कॉमन ड्राइंग रूम था और दोनों बैडरूम के बिच एक दरवाजा था। आप एक रूम से दूसरे रूम में बिना बाहर गए जा सकते हो ऐसी व्यवस्था थी। दोनों बैडरूम में अटैच्ड बाथरूम था। कमरे की खिड़कियों से कुदरत का नजारा साफ़ दिख रहा था। सुनीता ने खिड़की से बाहर देखा तो देखती ही रह गयी। इतना खूबसूरत नजारा उसने पहले कभी नहीं देखा था।

सुनीता ने बड़ी ही उत्सुकता से ज्योतिजी को बुलाया और दोनों हिमालय की बर्फीली चोटियों को देखने में मशगूल हो गए। सुनीलजी पलंग पर बैठे बैठे दोनों महिलाओं की छातियोँ में स्थित चोटियों को और उनके पिछवाड़े की गोलाइयोँ के नशीले नजारों को देखने में मशगूल थे। जस्सूजी उसी पलंग के दूसरे छोर पर बैठे बैठे गहराई से कुछ सोचने में व्यस्त थे।

सुनीता ने ज्योतिजी कैंप के बिलकुल नजदीक में ही एक बहुत ही खूबसूरत झरना बह रहा था उसे दिखाते हुए कहा, "ज्योतिजी यह कितना सुन्दर झरना है। यह झरना उस वाटर फॉल से पैदा हुआ है। काश हमलोग वहाँ जा कर उसमें नहा सकते।"

जस्सूजी ने यह सुन कर कहा, "हम बेशक वहाँ जा कर नहा सकते हैं। वहाँ नहाने पर कोई रोक नहीं है। दर असल कई बार आर्मी के ही लोग वहाँ तैरते और नहाते हैं। वहाँ कैंप वालों ने एक छोटा सा स्विमिंग पूल जैसा ढ़ाँचा बनाया है। आप यहां से घने पेड़ों की वजह से कुछ देख नहीं सकते पर वहाँ बैठने के लिए कुछ बेंच रखे हैं और निचे उतर ने के लिए सीढ़ियां भी बनायी हैं। आपको एक छोटा सा कमरा दिखाई रहा होगा। वह महिलाओं और पुरुषों का कपडे बदलने का अलग अलग कमरा है। वहाँ वाटर फॉल के निचे और झरने में हम सब नहाने जा सकते हैं।"

जस्सूजी ने सुनीलजी को आंख मारते हुए कहा, "अक्सर, वाटर फॉल के पीछे अंदर की और कई बार कुछ कपल्स छुपकर अपना काम भी पूरा कर लेते हैं! पर चूँकि यह कैंप की सीमा से बाहर है, इस लिए कैंप का मैनेजमेंट इस में कोई दखल नहीं देता। हाँ, अगर कोई अकस्मात् होता है तो उसकी जिम्मेदारी भी कैंप का मैनेजमेंट नहीं लेता। पर उसमें वैसे भी पानी इतना ज्यादा गहरा नहीं है की कोई डूब सके। ज्यादा से ज्यादा पानी हमारी छाती तक ही है।"

सुनीता यह सुनकर ख़ुशी के मारे कूदने लगी और ज्योतिजी की बाँहें पकड़ कर बोली, "ज्योतिजी, चलिए ना, आज वहाँ नहाने चलते हैं। मैं इससे पहले किसी झरने में कभी भी नहीं नहायी। अगर हम गए तो आज मैं पहेली बार कोई झरने में नहाउंगी।"

फिर ज्योतिजी की और देख कर शर्माते हुए सुनीता बोली, "ज्योतिजी, प्लीज, मैं आपकी मालिश भी कर दूंगी! प्लीज जस्सूजी को कह कर हम सब उस झरने में आज नहाने चलेंगे ना?"

ज्योतिजी ने अपने पति जस्सूजी की और देखा तो जस्सूजी ने घडी की और देखते हुए कहा, "इस समय करीब बारह बजे हैं। हमारे पास करीब दो घंटे का समय है। डेढ़ से तीन बजे तक आर्मी कैंटीन में लंच खाना मिलता है। अगर चलना हो तो हम इस दो घंटे में वहा जाकर नहा सकते हैं।"

सुनीता जस्सूजी की बात सुनकर इतनी खुश हुई की भागकर छोटे बच्चे की तरह जस्सूजी से लिपटते हुए बोली, "थैंक यू, जस्सूजी! हम जरूर चलेंगे। फिर अपने पति की और देख कर सुनीता बोली, "हम चलेंगे ना सुनीलजी?"

सुनीलजी ने सुनीता का जोश देखकर मुस्कुरा कर तुरंत हामी भरते हुए कहा, "ठीक है, आप इतना ज्यादा आग्रह कर रहे हो तो चलो फिर अपना तौलिया, स्विम सूट बगैरह निकालो और चलो।"

स्विमिंग सूट पहनने की बात सुनकर सुनीता कुछ सोच में पड़ गयी। उसने हिचकिचाते हुए ज्योतिजी के करीब जाकर उनके कानों में फुसफुसाते हुए पूछा, "बापरे! स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर नहाते हुए मुझे सब देखेंगे तो क्या होगा?"

ज्योतिजी सुनीता की नाक पकड़ कर खींची और कहा, "अभी तो तुम जाने के लिए कूद रही थी? अब एकदम ठंडी पड़ गयी? हमें नहाते हुए कौन देखेगा? और मानलो अगर देख भी लिया तो क्या होगा? भरोसा रखो तुम्हें कोई रेप नहीं करेगा। अभी वहाँ कोई नहीं है। बस हम चार ही तो हैं। फिर इतने घने पेड़ चारों और होने के कारण हमें वहाँ नहाते हुए कोई कहीं से भी नहीं देख सकता। इसी लिए तो जस्सूजी कहते हैं की यहां कई प्यार भरी कहानियों ने जन्म लिया है।"

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