उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन! 02

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यह सुन कर सुनीता को कुछ तसल्ली हुई। वह फ़टाफ़ट अपनी सूटकेस खोलने में लग गयी और ज्योतिजी को धक्का देती हुई बड़े प्यार और विनम्रता से बोली, "ज्योतिजी अपने कमरे में जाइये और अपना स्विमिंग कॉस्च्यूम निकालिये ना, प्लीज? चलते हैं ना?"

ज्योतिजी सुबह से ही कुछ गंभीर सी दिख रही थीं। पर सुनीता की बचकाना हरकतें देख कर हँस पड़ी और बोली, "ठीक है भाई। चलते हैं। पर तुम मुझे धक्का तो मत मारो।"

सुनीलजी कल्पनाओं की उड़ान में खो रहे थे। वह सोच रहे थे ज्योतिजी जब स्विमींग सूट पहनेंगीं तो अपने स्विमिंग सूट में कैसी लगेंगी? उसदिन वह पहेली बार ज्योतिजी को स्विम सूट में देख पाएंगे। उनके मन में यह बात भी आयी की सुनीता भी स्विमिंग सूट में कमाल की दिखेगी। सुनीलजी सोच रहे थे की उनकी बीबी सुनीता को देख कर जस्सूजी का क्या हाल होगा? इस यात्रा के लिए सुनीलजी ने सुनीता को एक पीस वाला स्विम सूट लाने को कहा था। वह ऐसा था की उसमें सुनीता को देख कर तो सुनीता के पति सुनीलजी का लण्ड भी खड़ा हो जाता था तो जस्सूजी का क्या हाल होगा?

खैर, कुछ ही देर में यह सपना साकार होने वाला था ऐसा लग रहा था। बिना समय गँवाए दोनों जोड़ियाँ अपने तैरने के कपडे साथ में लेकर झरने की और चलदीं। बाहर मौसम एकदम सुहाना था। वातावरण एकदम निर्मल और सुगन्धित था।

सुनीलजी और जस्सूजी मर्दों को कपडे बदलने के रूम में चले गए। पर झरने के पास पहुँचते ही सुनीता जनाना कपडे बदलने के कमरे के बाहर रूक गयी और कुछ असमंजस में पड़ गयी। ज्योतिजी ने सुनीता की और देखा और बोली, "क्या बात है सुनीता? तुम रुक क्यों गयी?"

सुनीता ज्योतिजी के पास जाकर बोली, "ज्योतिजी, मेरा तैरने वाला ड्रेस इतना छोटा है। सुनीलजी ने मेरे लिए इतना छोटा कॉस्च्यूम खरीदा था की मुझे उसको पहन कर जस्सूजी के सामने आने में बड़ी शर्म आएगी। मैं नहाने नहीं आ रही। आप लोग नहाइये। मैं यहां बैठी आपको देखती रहूंगी। और फिर दीदी मुझे तैरना भी तो आता नहीं है।"

ज्योति जी ने सुनीता की बाहें पकड कर कहा, "अरे चल री! अब ज्यादा तमाशा ना कर! तूने ही सबको यहां नहाने के लिए आनेको तैयार किया और अब तू ही नखरे दिखा रही है? देख तूने मुझसे वादा किया था, की तू मेरे पति जस्सूजी से कोई पर्दा नहीं करेगी। किया था की नहीं? याद कर तुम जब मेरी मालिश करने आयी थी तब? तूने कहा था की तुम मेरे पति से मालिश नहीं करवा सकती क्यूंकि तूने तुम्हारी माँ को वचन दिया था। पर तूने यह भी वादा किया था की तुम बाकी कोई भी पर्दा नहीं करेगी? कहा था ना? और जहां तक तुझे तैरना नहीं आता का सवाल है तो जस्सूजी तुझे सीखा देंगे। जस्सूजी तो तैराकी में एक्सपर्ट हैं। मैं भी थोड़ा बहुत तैर लेती हूँ। मुझे पता नहीं सुनीलजी तैरना जानते हैं या नहीं?"

सुनीता मन ही मन में काँप गयी। अगर उस समय ज्योति जो को यह पता चले की सुनीता ने तो ज्योतिजी के पति का लण्ड भी सहलाया था और उनका माल भी निकाल दिया था तो बेचारी दीदी का क्या हाल होगा? और अगर यह वह जान ले की जस्सूजी ने भी सुनीता के पुरे बदन को छुआ था तो क्या होगा?

खैर, सुनीता ने ज्योतिजी की और प्यार भरी नज़रों से देखा और हामी भरते हुए कहा, "हाँ दीदी आप सही कह रहे हो। मैंने कहा तो था। पर मुझे उस कॉस्च्यूम में देख कर कहीं आपके पति जस्सूजी मुझसे कुछ ज्यादा हरकत कर लेंगे तो क्या होगा? मैं तो यह सोच कर ही काँपने लगी हूँ। मेरे पति सुनीलजी भी ऐसे ही हैं। वह तो थोड़ा बहुत तैर लेते हैं।"

ज्योतिजी ने हँस कर कहा, "कुछ नहीं करेंगे, मेरे पति। मैं उनको अच्छी तरह जानती हूँ। वह तुम्हारी मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। अगर तुम मना करोगी को तो वह तुम्हें छुएंगे भी नहीं। पर खबरदार तुम उन्हें छूने से मना मत करना! और तुम्हारे पति सुनीलजी को तो मैं तैरना सीखा दूंगी। तू चल अब!"

सुनीता ने हँस कर कहा, "दीदी, मेरी टाँग मत खींचो। मुझे जस्सूजी पर पूरा भरोसा है। वह मेरे जीजाजी भी तो हैं।"

"फिर तो तुम उनकी साली हुई। और साली तो आधी घरवाली होती है।" ज्योतिजी ने सुनीता को आँख मारते हुए कहा।

सुनीता ने ज्योतिजी को कोहनी मारते हुए कहा, "बस करो ना दीदी!" और दोनों जनाना कपडे बदल ने के कमरे में चले गए।

जब सुनीता और ज्योतिजी स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर बाहर आयीं तब तक सुनीलजी और जस्सूजी भी तैरने वाली निक्कर पहन कर बाहर आ चुके थे।

सुनीता की नजर जस्सूजी पर पड़ी तो वह उन्हें देख कर दंग रह गयी। जस्सूजी शावर में नहा कर पुरे गीले थे। जस्सूजी के कसरती गठित स्नायु वाली पेशियाँ जैसे कोई फिल्म के हीरो के जैसे छह बल पड़े हुए पैक वाले पेट की तरह थीं। उनके बाजुओं के स्नायु उतने शशक्त और उभरे हुए थे की सुनीता मन किया की वह उन्हें सहलाये। जस्सूजी के बिखरे हुए गीले काले घुंघराले घने बाल उनके सर पर कितने सुन्दर लग रहे थे। जस्सूजी के चौड़े सीने पर भी घने काले बाल छाये हुए थे। अपने पति की छाती पर भी कुछ कुछ बाल तो थे, पर सुनीता चाहती थी की उसके पति की छाती पर घने बाल हों। क्यूंकि छाती पर घने बाल सुनीता को काफी आकर्षित करते थे।

पर जब सुनीता की नजर बरबस जस्सूजी की निक्कर की और गयी तो वह देखती ही रह गयी। सुनीता सोच रही थी की शायद उस समय जस्सूजी का लण्ड खड़ा तो नहीं होगा। पर फिर भी जस्सूजी की निक्कर के अंदर उनकी दो जाँघों के बिच इतना जबरदस्त बड़ा उभार था की ऐसा लगता था जैसे जस्सूजी का लण्ड कूद कर बाहर आने के लिए तड़प रहा हो। सुनीता को तो भली भाँती पता था की उस निक्कर में जस्सूजी की जाँघों के बिच उनका कितना मोटा और लंबा लण्ड कोई नाग की तरह चुचाप छोटी सी जगह में कुंडली मारकर बैठा हुआ था और मौक़ा मिलते ही बाहर आने का इंतजार कर रहा था। अगर वह खड़ा हो गया तो शामत ही आ जायेगी।

सुनीता ने देखा तो जस्सूजी भी उसे एकटक देख रहे थे। सुनीता को जस्सूजी की नजरें अपने बदन पर देख कर बड़ी लज्जा महसूस हुई। जब उसने कमरे में स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर आयने में अपने आप को देखा था तो उसे पता था की उसके करारे स्तन उस सूट में कितने बड़े बाहर की और निकले दिख रहे थे। सुनीता की सुआकार गाँड़ पूरी नंगी दिख रही थी। उसके स्विमिंग कॉस्च्यूम की एक छोटी सी पट्टी सुनीता की गाँड़ की दरार में गाँड़ के दोनों गालों के बिच अंदर तक घुसी हुई थी और गाँड़ को छुपाने में पूरी तरह नाकाम थी।

सुनीता जानती थी की उस कॉस्च्यूम में उसकी गाँड़ पूरी नंगी दिख रही थी। सुनीता की गाँड़ के एक गाल पर काला बड़ा सा तिल था। वह भी साफ़ साफ़ नजर आ रहा था। सुनीता की गाँड़ के गालों के बिच में एक हल्का प्यारा छोटा सा खड्डा भी दिखाई देता था। जस्सूजी की नजर उसकी गाँड़ पर गयी यह देख कर सुनीता के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। वह नारी सुलभ लज्जा के कारण अपनी जांघों को एक दूसरे से चिपकाए हुए दोनों मर्दों के सामने खड़ी क्या छिपाने की कोशिश कर रही थी उसे भी नहीं पता था।

आगे सुनीता की चूत पर इतनी छोटी सी उभरी हुई पट्टी थी की उसकी झाँट के बाल अगर होते तो साफ़ साफ़ दीखते। सुनीता ने पहले से ही अपन झाँटों के बाल साफ़ किये थे। सुनीता की चूत का उभार उस कॉस्च्यूम में छिप नहीं सकता था। बस सुनीता की चूत के होँठ जरूर उस छोटी सी पट्टी से ढके हुए थे।

सुनीता शुक्र कर रही थी वह उस समय पूरी तरह गीली थी, क्यूंकि जस्सूजी की जांघों के बिच उन का लम्बा लण्ड का आकार देख कर उसकी जाँघों के बिच से उसकी चूत में से उस समय उसका स्त्री रस चू रहा था। अगर सुनीता उस समय गीली नहीं होती तो दोनों मर्द सुनीता की जाँघों के बिच से चू रहे स्त्री रस को देख कर यह समझ जाते की उस समय वह कितनी गरम हो रही थी।

सुनीता ने अपने पति की और देखा तो वह ज्योतिजी को निहारने में ही खोए हुए थे। स्विमिंग कॉस्च्यूम में ज्योतिजी क़यामत सी लग भी तो रहीं थीं। ज्योतिजी की जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। उन दो जांघों के बिच की उनकी चूत के ऊपर की पट्टी बड़ी मुश्किल से उनकी चूत की खूबसूरती का राज छुपा रहीं थीं। उनकी लम्बी और माँसल जांघें जैसे सारे मर्दों के लण्ड को चुनौती दे रही थीं। वहीँ उनकी नंगी गाँड़ की गोलाई सुनीता की गाँड़ से भी लम्बी होने के कारण कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही थीं।

ज्योतिजी के घने और घुंघराले गीले बाल उनके पुरे चेहरे पर बिखरे हुए थे, उन्हें वह ठीक करने की कोशिश में लगी हुई थीं। उनकी पतली और लम्बी कमर निचे ज़रा सा पेट उसके निचे अचानक ही फुले हुए नितम्बोँ के कारण गिटार की तरह खूबसूरत लग रहा था। सुनीता और ज्योतिजी के स्तन मंडल एक सरीखे ही लग रहे थे। हालांकि ज्योतिजी का गिला कॉस्च्यूम थोड़ा ज्यादा महिम होने के कारण उनकी दो गोलाकार चॉकलेटी रंग के एरोला के बिच में स्थित फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ की झाँखी दे रहा था।

ज्योति की नीली आँखें शरारती होते हुए भी उनकी गंभीरता दर्शा रहीं थीं। सब से ज्यादा कामोत्तेजक ज्योतिजी के होँठ थे। उन होँठों को मोड़कर कटाक्ष भरी आँखों से देखने की ज्योतिजी की अदा जवाँ मर्दों के लिए जान लेवा साबित हो सकती थीं। जस्सूजी उस बात का जीता जागता उदाहरण थे।

दोनों कामिनियाँ अपने हुस्न की कामुकता के जादू से दोनों मर्दों को मन्त्रमुग्ध कर रहीं थीं। सुनीलजी तो ज्योतिजी के बदन से आँखें ऐसे गाड़े हुए थे की सुनीता ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें हिलाया और कहा, "चलोजी, हम झरने की और चलें?" तब कहीं जा कर सुनीलजी इस धराधाम पर वापस लौटे।

सुनीता अपने पति सुनीलजी से चिपक कर ऐसे चल रही थी जिससे जस्सूजी की नजर उसके आधे नंगे बदन पर ना पड़े। ज्योतिजी को कोई परवाह नहीं थी की सुनीलजी उनके बदन को कैसे ताड़ रहे थे। बल्कि सुनीलजी की सहूलियत के लिए ज्योति अपनी टांगों को फैलाकर बड़े ही सेक्सी अंदाज में अपने कूल्हों को मटका कर चल रही थी जिससे सुनीलजी को वह अपने हुस्न की अदा का पूरा नजारा दिखा सके।

सुनीलजी का लण्ड उनकी निक्कर में फर्राटे मारा रहा था। दोनों कामिनियों का जादू दोनों मर्दों के दिमाग में कैसा नशा भर रहा था वह सुनीलजी ने देखा भी और महसूस भी किया। सुनील बार बार अपनी निक्कर एडजस्ट कर अपने लण्ड को सीधा और शांत रखने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। ज्योतिजी ने उनसे काफी समय से कुछ भी बात नहीं की थी। इस वजह से उन्हें लगा था की शायद ज्योति उनसे नाराज थीं।

सुनीलजी जानने के लिए बेचैन थे की क्या वजह थी की ज्योतिजी उनसे बात नहीं कर रही थी। जैसे ही ज्योतिजी झरने की और चल पड़ी, सुनीलजी भी सुनीता को छोड़ कर भाग कर ज्योति के पीछे दौड़ते हुए चल दिए और ज्योतिजी के साथ में चलते हुए झरने के पास पहुंचे। सुनीता अपने पति के साथ चल रही थी। पर अपने पति सुनीलजी को अचानक ज्योतिजी के पीछे भागते हुए देख कर उसे अकेले ही चलना पड़ा।

सुनीता के बिलकुल पीछे जस्सूजी आ रहे थे। सुनीता जानती थी की उसके पीछे चलते हुए जस्सूजी चलते चलते सुनीता के मटकते हुए नंगे कूल्हों का आनंद ले रहे होंगे। सुनीता सोच रही थी पता नहीं उस की नंगी गाँड़ देख कर जस्सूजी के मन में क्या भाव होते होंगे? पर बेचारी सुनीता, करे तो क्या करे? उसी ने तो सबको यहाँ आकर नहाने के लिए बाध्य किया था।

सुनीता भलीभांति जानती थी की जस्सूजी भले कहें या ना कहें, पर वह उसे चोदने के लिए बेताब थे। सुनीता ने भी जस्सूजी के लण्ड जैसा लण्ड कभी देखा क्या सोचा भी नहीं था। कहीं ना कहीं उसके मन में भी जस्सूजी के जैसा मोटा और लंबा लण्ड अपनी चूत में लेनेकी ख्वाहिश जबरदस्त उफान मार रही थी। सुनीता के मन में जस्सूजी के लिए इतना प्यार उमड़ रहा था की अगर उसकी माँ के वचन ने उसे रोका नहीं होता तो वह शायद तब तक जस्सूजी से चुदवा चुदवा कर गर्भवती भी हो गयी होती।

आगे आगे ज्योतिजी उनके बिलकुल पीछे ज्योतिजी से सटके ही सुनील जी, कुछ और पीछे सुनीता और आखिर में जस्सूजी चल पड़े। थोड़ी पथरीली और रेती भरी जमीन को पार कर वह सब झरने की और जा रहे थे। सुनीलजी ने ज्योतिजी से पूछा, "आखिर बात क्या है ज्योतिजी? आप मुझसे नाराज हैं क्या?"

ज्योतिजी ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया, "भाई, हम कौन होते हैं , नाराज होने वाले?"

सुनीलजी ने पीछे देखा तो सुनीता और जस्सूजी रुक कर कुछ बात कर रहे थे। सुनील ने एकदम ज्योतिजी का हाथ थामा और रोका और पूछा, "क्या बात है, ज्योतिजी? प्लीज बताइये तो सही?"

ज्योतिजी की मन की भड़ास आखिर निकल ही गयी। उन्होंने कहा, "हाँ और नहीं तो क्या? आपको क्या पड़ी है की आप सोचें की कोई आपका इंतजार कर रहा है या नहीं? भाई जिसकी बीबी सुनीता के जैसी खुबसुरत हो उसे किसी दूसरी ऐसी वैसी औरत की और देखने की क्या जरुरत है?"

सुनीलजी ने ज्योतिजी का हाथ पकड़ा और दबाते हुए बोले, "साफ़ साफ़ बोलिये ना क्या बात है?"

ज्योति ने कहा, "साफ़ क्या बोलूं? क्या मैं सामने चल कर यह कहूं, की आइये, मेरे साथ सोइये? मुझे चोदिये?"

सुनीलजी का यह सुनकर माथा ठनक गया। ज्योतिजी क्या कह रहीं थीं? उतनी देर में वह झरने के पास पहुँच गए थे, और पीछे पीछे सुनीता और जस्सूजी भी आ रहे थे। ज्योति ने सुनील की और देखा और कहा, "अभी कुछ मत बोलो। हम तैरते तैरते झरने के उस पार जाएंगे। तब सुनीता और जस्सूजी से दूर कहीं बैठ कर बात करेंगे।"

फिर ज्योति ने अपने पति जस्सूजी की और घूम कर कहा, "डार्लिंग, यह तुम्हारी चेली सुनीता को तैरना भी नहीं आता। अब तुम्हें मैथ्स के अलावा इसे तैरना भी सिखाना पडेगा। तुमने इससे मैथ्स सिखाने की तो कोई फ़ीस नहीं ली थी। पर तैरना सिखाने के लिए फ़ीस जरूर लेना। आप सुनीता को यहाँ तैरना सिखाओ। मैं और सुनीलजी वाटर फॉल का मजा लेते हैं।"

यह कह कर ज्योतिजी आगे चल पड़ी और सुनीलजी को पीछे आने का इशारा किया।

ज्योतिजी और सुनीलजी झरने में कूद पड़े और तैरते हुए वाटर फॉल के निचे पहुँच कर उंचाइसे गिरते हुए पानी की बौछारों को अपने बदन पर गिरकर बिखरते हुए अनुभव करने का आनंद ले रहे थे। हालांकि वह काफी दूर थे और साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था पर सुनीता ने देखा की ज्योतिजी एक बार तो पानी की भारी धार के कारण लड़खड़ाकर गिर पड़ी और कुछ देर तक पानी में कहीं दिखाई नहीं दीं। उस जगह पानी शायद थोड़ा गहरा होगा। क्यूंकि इतने दूर से भी सुनीलजी के चेहरे पर एक अजीब परेशानी और भय का भाव सुनीता को दिखाई दिया। सुनीता स्वयं परेशान हो गयी की कहीं ज्योतिजी डूबने तो नहीं लगीं।

पर कुछ ही पलों में सुनीता ने चैन की साँस तब ली जब जोर से इठलाते हँसते हुए ज्योतिजी ने पानी के अंदर से अचानक ही बाहर आकर सुनीलजी का हाथ पकड़ा और कुछ देर तक दोनों पानी में गायब हो गए। सुनीता यह जानती थी की ज्योतिजी एक दक्ष तैराक थीं। यह शिक्षा उन्हें अपने पति जस्सूजी से मिली थी।

सुनीता ने सूना था की जस्सूजी तैराकी में अव्वल थे। उन्होंने कई आंतरराष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता में इनाम भी पाए थे। सुनीता ने जस्सूजी की तस्वीर कई अखबारों में और सेना और आंतरराष्ट्रीय खेलकूद की पत्रिकाओं में देखि थी। उस समय सुनीता गर्व अनुभव कर रही थी की उस दिन उसे ऐसे पारंगत तैराक से तैराकी के कुछ प्राथमिक पाठ सिखने को मिलेंगे। सुनीता को क्या पता था की कभी भविष्य में उसे यह शिक्षा बड़ी काम आएगी।

फिलहाल सुनीता की आँखें अपने पति और ज्योतिजी की जल क्रीड़ा पर टिकी हुई थीं। उनदोनों के चालढाल को देखते हुए सुनीता को यकीन तो नहीं था पर शक जरूर हुआ की उस दोपहर को अगर उन्हें मौक़ा मिला तो उसके पति सुनीलजी उस वाटर फॉल के निचे ही ज्योतिजी की चुदाई कर सकते हैं। यह सोचकर सुनीता का बदन रोमांचित हो उठा। यह रोमांच उत्तेजना या फिर स्त्री सहज इर्षा के कारण था यह कहना मुश्किल था।

सुनीता के पुरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी। सुनीता भलीभांति जानती थी की उसके पति अच्छे खासे चुदक्कड़ थे। सुनीलजी को चोदने में महारथ हासिल था। किसी भी औरत को चोदते समय, वह अपनी औरत को इतना सम्मान और आनंद देते थे की वह औरत एक बार चुदने के बाद उनसे बार बार चुदवाने के लिए बेताब रहती थी। जब सुनीता के पति सुनीलजी अपनी पत्नी सुनीता को चोदते थे तो उनसे चुदवाने में सुनीता को गझब का मजा आता था।

सुनीता ने कई बार दफ्तर की पार्टियों में लड़कियों को और चंद शादी शुदा औरतों को भी एक दूसरी के कानों में सुनीलजी की चुदाई की तारीफ़ करते हुए सूना था। उस समय उन लड़कियों और औरतों को पता नहीं था की उनके बगल में खड़ीं सुनीता सुनीलजी की बीबी थी।

शायद आज उसके पति सुनीलजी उसी जोरदार जस्बे से ज्योतिजी की भी चुदाई कर सकते हैं, यह सोच कर सुनीता के मन में इर्षा, उत्तेजना, रोमांच, उन्माद जैसे कई अजीब से भाव हुए।

सुनीता की चूत तो पुरे वक्त झरने की तरह अपना रस बूँद बूँद बहा ही रही थी। अपनी दोनों जाँघों को एक दूसरे से कस के जोड़कर सुनीता उसे छिपाने की कोशिश कर रही थी ताकि जस्सूजी को इसका पता ना चले।

सुनीता झरने के किनारे पहुँचते ही एक बेंच पर जा कर अपनी दोनों टाँगे कस कर एक साथ जोड़ कर बैठ गयी। जस्सूजी ने जब सुनीता को नहाने के लिए पानी में जाने से हिचकिचाते हुए देखा तो बोले, "क्या बात है? वहाँ क्यों बैठी हो? पानीमें आ जाओ।"

सुनीता ने लजाते हुए कहा," जस्सूजी, मुझे आपके सामने इस छोटी सी ड्रेस में आते हुए शर्म आती है। और फिर मुझे पानी से भी डर लगता है। मुझे तैरना नहीं आता।"

जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, "मुझसे शर्म आती है? इतना कुछ होने के बाद अब भी क्या तुम मुझे अपना नहीं समझती?"

जब सुनीता ने जस्सूजी की बात का जवाब नहीं दिया तो जस्सूजी का चेहरा गंभीर हो गया। वह उठ खड़े हुए और पानी के बाहर आ गए। बेंच पर से तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछते हुए कैंप की और जाने के लिए तैयार होते हुए बोले, "सुनीता देखिये, मैं आपकी बड़ी इज्जत करता हूँ। अगर आप को मेरे सामने आने में और मेरे साथ नहाने में हिचकिचाहट होती है क्यूंकि आप मुझे अपना करीबी नहीं समझतीं तो मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ। मैं यहां से चला जाता हूँ। आप आराम से ज्योति और सुनीलजी के साथ नहाइये और वापस कैंप में आ जाइये। मैं आप सब का वहाँ ही इंतजार करूंगा।"

यह कह कर जब जस्सूजी खड़े हो कर कैंप की और चलने लगे तब सुनीता भाग कर जस्सूजी के पास पहुंची। सुनीता ने जस्सूजी को अपनी बाहों में ले लिया और वह खुद उनकी बाँहों में लिपट गयी। सुनीता की आँखों से आंसू बहने लगे।

सुनीता ने कहा, "जस्सूजी, ऐसे शब्द आगे से अपनी ज़बान से कभी मत निकालिये। मैं आपको अपने आप से भी ज्यादा चाहती हूँ। मैं आपकी इतनी इज्जत करती हूँ की आपके मन में मेरे लिये थोड़ा सा भी हीनता का भाव आये यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। सच कहूं तो मैं यह सोच रही थी की कहीं मुझे इस कॉस्च्यूम में देख कर आप मुझे हल्कट या चीप तो नहीं समझ रहे?"

जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाहों में कस के दबाते हुए बड़ी गंभीरता से कहा, "अरे सुनीता! कमाल है! तुम इस कॉस्च्यूम में कोई भी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो! इस कॉस्च्यूम में तो तुम्हारा पूरा सौंदर्य निखर उभर कर बाहर आ रहा है। भगवान ने वैसे ही स्त्रियों को गजब की सुंदरता दी है और उनमें भी तुम तो कोहिनूर हीरे की तरह भगवान की बेजोड़ रचना हो।

अगर तुम मेरे सामने निर्वस्त्र भी खड़ी हो जाओ तो भी मैं तुम्हें चीप या हलकट नहीं सोच सकता। ऐसा सोचना भी मेरे लिए पाप के समान है। क्यूंकि तुम जितनी बदन से सुन्दर हो उससे कहीं ज्यादा मन से खूबसूरत हो। हाँ, मैं यह नहीं नकारूँगा की मेरे मन में तुम्हें देख कर कामुकता के भाव जरूर आते हैं। मैं तुम्हें मन से तो अपनी मानता ही हूँ, पर मैं तुम्हें तन से भी पूरी तरह अपनी बनाना तहे दिल से चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों के बदन एक हो जाएँ।

पर मैं तब तक तुम पर ज़रा सा भी दबाव नहीं डालूंगा जब तक की तुम खुद सामने चलकर अपने आप मेरे सामने घुटने टेक कर अपना सर्वस्व मुझे समर्पण नहीं करोगी। अगर तुम मानिनी हो तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। तुम मुझे ना सिर्फ बहुत प्यारी हो, मैं तुम्हारी बहुत बहुत इज्जत करता हूँ। और वह इज्जत तुम्हारे कपड़ों की वजह से नहीं है।"

जस्सूजी के अपने बारे में ऐसे विचार सुनकर सुनीता की आँखों में से गंगा जमुना बहने लगी। सुनीता ने जस्सूजी के मुंह पर हाथ रख कर कहा, "जस्सूजी, आप से कोई जित नहीं सकता। आप ने चंद पलों में ही मेरी सारी उधेङबुन ख़त्म कर दी। अब मेरी सारी लज्जा और शर्म आप पर कुर्बान है। मैं शायद तन से पूरी तरह आपकी हो ना सकूँ, पर मेरा मन आपने जित लिया है। मैं पूरी तरह आपकी हूँ। मुझे अब आपके सामने कैसे भी आने में कोई शर्म ना होगी। अगर आप कहो तो मैं इस कॉस्च्यूम को भी निकाल फैंक सकती हूँ।"

जस्सूजी ने मुस्कुराते हुए सुनीता से कहा, "खबरदार! ऐसा बिलकुल ना करना। मेरी धीरज का इतना ज्यादा इम्तेहान भी ना लेना। आखिर मैं भी तो कच्ची मिटटी का बना हुआ इंसान ही हूँ। कहीं मेरा ईमान जवाब ना दे दे और तुम्हारा माँ को दिया हुआ वचन टूट ना जाए!"

सुनीता अब पूरी तरह आश्वस्त हो गयी की उसे जस्सूजी से किसी भी तरह का पर्दा, लाज या शर्म रखने की आवश्यकता नहीं थी। जब तक सुनीता नहीं चाहेगी, जस्सूजी उसे छुएंगे भी नहीं। और फिर आखिर जस्सूजी से छुआ ने में तो सुनीता को कोई परहेज रखने की जरुरत ही नहीं थी।

सुनीता ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "जस्सूजी, मुझे तैरना नहीं आता। इस लिए मुझे पानी से डर लगता है। मैं आपके साथ पानी में आती हूँ। अब आप मेरे साथ जो चाहे करो। चाहो तो मुझे बचाओ या डूबा दो। मैं आपकी शरण में हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा तैरना सीखा दोगे तो मैं तैरने की कोशिश करुँगी।"

जस्सूजी ने हाथमें रखा तौलिया फेंक कर पानी में उतर कर मुस्कुराते हुए अपनी बाँहें फैला कर कहा, "फिर आ जाओ, मेरी बाँहों में।"

दूर वाटर फॉल के निचे नहा रहे ज्योति और सुनीलजी ने जस्सूजी और सुनीता के बिच का वार्तालाप तो नहीं सूना पर देखा की सुनीता बेझिझक सीमेंट की बनी किनार से छलांग लगा कर जस्सूजी की खुली बाहों में कूद पड़ी। ज्योति ने फ़ौरन सुनील को कहा, "देखा, सुनीलजी, आपकी बीबी मेरे पति की बाँहों में कैसे चलि गयी? लगता है वह तो गयी!"

सुनीलजी ने ज्योतिजी की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। दोनों वाटर फॉल के निचे कुछ देर नहा कर पानी में चलते चलते वाटर फॉल की दूसरी और पहुंचे। वह दोनों सुनीता और जस्सूजी से काफी दूर जा चुके थे और उन्हें सुनीता और जस्सूजी नहीं दिखाई दे रहे थे।

वाटर फॉल के दूसरी और पहुँचते ही सुनीलजी ने ज्योतिजी से पूछा, "क्या बात है? आप अपना मूड़ क्यों बिगाड़ कर बैठी हैं?"

ज्योतिजी ने कुछ गुस्से में कहा, "अब एक बात मेरी समझ में आ गयी है की मुझमे कोई आकर्षण रहा नहीं है।"

सुनीलजी ने ज्योतिजी की बाँहें थाम कर पूछा, "पर हुआ क्या यह तो बताइये ना? आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं?"

ज्योति ने कहा, "भाई घर की मुर्गी दाल बराबर यह कहावत मुझ पर तो जरूर लागू होती है पर सुनीता पर नहीं होती।"

सुनीलजी: "पर ऐसा आप क्यों कहते हो यह तो बताओ?"

ज्योतिजी: "और नहीं तो क्या? अपनी बीबी से घर में भी पेट नहीं भरा तो आप ट्रैन में भी उसको छोड़ते नहीं हो, तो फिर में और क्या कहूं? हम ने तय किया था इस यात्रा दरम्यान आप और मैं और जस्सूजी और सुनीता की जोड़ी रहेगी। पर आप तो रात को अपनी बीबी के बिस्तरेमें ही घुस गए। क्या आपको मैं नजर नहीं आयी?"

ज्योतिजी फिर जैसे अपने आप को ही उलाहना देती हुई बोली, "हाँ भाई, मैं क्यों नजर आउंगी? मेरा मुकाबला सुनीता से थोड़े ही हो सकता है? कहाँ सुनीता, युवा, खूबसूरत, जवान, सेक्सी और कहाँ मैं, बूढी, बदसूरत, मोटी और नीरस।"

सुनीलजी का यह सुनकर पसीना छूट गया। तो आखिर ज्योतिजी ने उन्हें अपनी बीबी के बिस्तर में जाते हुए देख ही लिया था। अब जब चोरी पकड़ी ही गयी है तो छुपाने से क्या फायदा?

सुनीलजी ने ज्योतिजी के करीब जाकर उनकी ठुड्डी (चिबुक / दाढ़ी) अपनी उँगलियों में पकड़ी और उसे अपनी और घुमाते हुए बोले, "ज्योतिजी, सच सच बताइये, अगर मैं आपके बिस्तर में आता और जैसे आपने मुझे पकड़ लिया वैसे कोई और देख लेता, तो हम क्या जवाब देते? वैसे मैं आपके बिस्तर के पास खड़ा काफी मिनटों तक इस उधेड़बुन में रहा की मैं क्या करूँ? आपके बिस्तर में आऊं या नहीं? आखिर में मैंने यही फैसला किया की बेहतर होगा की हम अपनी प्रेम गाथा बंद दीवारों में कैद रखें। क्या मैंने गलत किया?"

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