होली का धमाल- २

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जमीला.
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agraj1007
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अब तक आपने पढ़ा ...

कैसे मुझ(अमिता) को आलम और उसके दोस्त ने रात भर चोदा था और हम सब वापस घर आ गए थे।

अब आगे...

मैं तो थकान के कारण दिन भर सोई रही।शाम को जमीला की पुकार ने मुझे जगाया। तब उसने मुझे रात को उसकी चुदाई की दास्तान सुनाई जिसे आप उसी की जबानी सुने।

जैसा कि घर से मैं सुदेश के साथ उसकी कार में और अमिता आलम और रियाज के साथ दूसरी कार में खेत की ओर निकले थे। तब मैं सुमित के बगल वाली सीट पर बैठी थी और सुमित ड्राइव कर रहा था। रास्ते मे बाजार में हमें गोपाल और सरोज को भी लेना था और कुछ खाने पीने का सामान भी लेना था जो कि उन्होंने पहले से ही खरीदा था। दोनों ने समान डिक्की में रखा तब तक मैं कार की पिछली सीट पर शिफ्ट हो गई। अब कार में गोपाल आगे सुदेश के बगल में बैठा और सरोज पीछे मेरी बगल की सीट पर।

कार के शहर की सीमा से बाहर निकलते ही सरोज ने मेरे बूब्स को कुर्ती के ऊपर से दबाने लगा। मैंने भी उसकी पेण्ट परसे ही उसके लण्ड को मसलने लगी। गोपाल ने बैक मिरर में जब हम दोनों को इस प्रकार मस्ती करते देखा तो उसने पीछे मुड़ कर मेरी जांघों को दबाने और मसलने लगा। कुछ ही देर में उसका हाँथ मेरी चूत को छूने लगा था।

उधर कार चलाते सुदेश का ध्यान हमारी इन हरकतों से (ड्राइव करते हुए) भटक रहा था। एक बार तो एक मोटर साइकिल से भिड़ते भिड़ते बचा। तब उसने गोपाल को ठीक से बैठने को बोला। लेकिन गोपाल कहाँ रुकने वाला था? उसके हाँथ मेरे बूब्स को मसलने में लगे थे। इस बीच सरोज ने मेरी कुर्ती को आगे से उठा कर मेरी चूचियों को बाहर निकल लिया था और एक को मुंह मे ले कर चूसने लगा था। मैंने भी उसके लण्ड को उसकी पेण्ट की जीप खोल कर बाहर निकाल कर मसल रही थी। गोपाल काफी उत्तेजित हो गया था। अचानक उसने मेरी कुर्ती को एक झटका दिया और कुर्ती चर्र से फट गई और मैं ऊपर से पूरी नंगी हो गई। मुझे गुस्सा आया और मैंने हाँथ बढ़ा कर गोपाल के आंड को पेण्ट के ऊपर से ही पकड़ कर जोर से दबादी। गोपाल दर्द के मारे छटपटाने लगा। उसकी आँखों में आँसू आ गए। तब जा कर मैंने छोड़ा और पेण्ट पकड़ कर एक जोरदार झटका दिया तो उसकी पेण्ट सामने से फट गई और उसका लण्ड बाहर निकल पड़ा।

यह सब देख कर सरोज ने मेरी कुर्ती को मेरे सिर के ऊपर से निकाल दिया और मेरे बूब्स को मसलने और चूसने लगा। अब तो गोपाल जैसे पागल ही हो गया। वह चलती कार में ही आगे से पीछे की सीट पर आ गया। अब कार के पीछे की सीट पर मैं बीच मे बैठी थी और मेरे अगल बगल सरोज और गोपाल बैठे थे। दोनों मेरे बदन से खेल रहे थे। इस बीच उन दोनों ने मिल कर मेरी सलवार भी निकाल दी थी। गनीमत थी कि सलवार फटी नही थी। मैंने भी सरोज की पेण्ट को खोल कर उसे नीचे से नंगा कर दिया था। गोपाल की पेण्ट पहले से फटी थी तो उसने खुद ही अपनी पेण्ट उतार दिया था।

अब कार की पिछली सीट पर हम तीनों नीचे से नंगे थे। मैं तो पूरी नंगी थी। उधर सुदेश बैक मिरर में ये सब देख रहा था और उसका लण्ड भी पूरे जोश में तन गया था और पेण्ट फाड़ कर बाहर आने के लिए झटके मार रहा था। अब तक हम हाईवे पर पहुँच गए थे। मैं एक हाँथ से गोपाल के लण्ड को मसलते हुए उसके आण्डों को भी दबा रही थी, और दूसरे हाँथ से सरोज के लण्ड को मसल रही थी। फिर मैंने नीचे झुक कर सरोज के लण्ड पर एक चुम्मी देते हुये चाटि।

उसके लण्ड के सुपाडे पर चमकती प्री-कम की बूंदों को मैने चाटा फिर सुपाड़े पर जीभ फिराते हुए पूरे लण्ड को अपने मुँह में ले कर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। तभी हमारी कार रुकी और हमने देखा कि थोडी दूरी पर आलम की कार खड़ी है और वो हमें इसारे से सड़क के बाईं तरफ जाने वाली एक पतली सी सड़क दिखा कर गाड़ी मोड़ने को कहा रहा था।

मतलब हम अब अपने गंतव्य स्थान के निकट पहुँच गए थे। हमारी कार बाई ओर उस पतली सड़क पर आलम की कार के पीछे पीछे चल रही थी। कोई चार पांच किलोमीटर के बाद एक केनाल के पास गाड़ी रुकी और सभी कोई बाहर निकले। इस बीच मैंने जैसे तैसे अपनी कुर्ती और सलवार पहन ली थी। कुर्ती तो बूब्स के ऊपर से पूरी तरह से फट गई थी तो मेरे दोनों बूब्स बाहर झांक रहे थे। मैंने किसी प्रकार चुन्नी से उन्हें ढक लिया था। उधर गोपाल और सरोज ने भी अपनी अपनी पेण्ट पहन ली थी। लेकिन गोपाल की फटी पेण्ट के कारण उसका का लण्ड बाहर झूलता हुआ दिख रहा था।

आलम ने हमे कहा गाड़ियां यहीं छोड़ कर पैदल ही चलना पड़ेगा इन खेतों की पगडंडी पर गाड़ी नही जा सकती। तो हमने गाड़ी में रखे सामान निकाल कर अपने अपने हांथो में ले कर पगडंडी पर चलने लगे। कुछ दूर जब हमारी गाड़ियां ओझल हो गई तब एक जगह रुक कर सरोज ने बताया कि यहां से दोनों तरफ (दाईं और बाईं ओर) थोड़ी थोड़ी दूरी पर एक एक झोपड़ी है। हम दो ग्रुप में अलग अलग झोपड़ी में जा कर चुदाई करेंगे। फिर सुबह यहीं मिलेंगे। फिर तय हुआ कि जो जो जैसे कार में आये है वो वो वैसे ही ग्रुप में रहेंगे।

अब मैं सरोज, गोपाल और सुदेश के साथ एक ग्रुप में थी और अमिता आलम और रियाज के साथ एक में थी। फिर अमिता आलम और रियाज के साथ बाईं ओर कि झोपड़ी में चले गए, और मैं सुदेश, गोपाल और सरोज के साथ दाईं ओर की झोपड़ी में चले गए।

सकड़ी सड़क से दाईं ओर करीब करीब दोसौ गज चलने के बाद हमे अंधेरे में एक झोपड़ी दिखी। झोपड़ी के आस पास की जगह पर ताजा ताजा हल चलाया हुआ था। पूरी जगज पानी से भीगी हुई थी। जैसे कि जगह अभी अभी पानी से सींची गई हो। जिसकी वजह से मिट्टी एकदम नर्म हो गई थी, जैसी की अखाड़े में रहती है। अभी मैं सोच ही रही थी कि अंदर खटिया है या जमीन पर ही चुदाई करनी पड़ेगी, की गोपाल ने कहा यहां इस गीली मिट्टी पर ठीक रहेगा। मेरे कुछ कहने से पहले ही सुदेश और सरोज एक साथ - "हाँ ये बढ़िया रहेगा, इस कीचड़ जैसी मिट्टी से चोट लगने का भी कोई खतरा नही रहेगा और यह नरम मिट्टी गद्दे का भी काम करेगी"

मैंने भी सोचा कि जब खेत मे चुदाई करनी है तो मिट्टी ही ठीक रहेगी तो मैं भी सहमत हो गई। अब मैंने कहा मैं तीनो से एक एक कर के तीनों से चुदवाऊंगी। तुम तीनो में जिसका लण्ड सबसे बड़ा होगा मैं पहले उसी से चुदवाऊंगी। तीनो ने अपने अपने कपड़े खोल दिये। चाँद की रोशनी मे तीनों के लण्ड को देखी तो उनमें गोपाल का लण्ड सबसे बड़ा था। मैं लपक कर गोपाल के लंड को चूसने लगी। उसने भी मेरे मुँह की चुदाई में मस्ती लेनी शुरू कर दी। कुछ देर की लंड चुसाई के बाद उसके लंड की मलाई बह निकली, जिससे मेरा पूरा मुँह भर गया और बाहर गिरने लगा। मैंने उंगलियों से उठा उठा कर उसका सारा लंड रस पी लिया।

इसके बाद उसने मुझे गीली जमीन पर लिटाया और मेरे ऊपर चढ़ गया। मैंने उसे रोका और अपने बैग से कंडोम के पैकेट से एक छतरी निकाल कर उसके लंड पर पहना दी। लंड पर चोला चढ़ने के बाद गोपाल ने मेरी टांगें खोल दीं और मेरी चूत पर लंड का सुपारा रगड़ दिया। मैंने नीचे से गांड उठाई तो उसने एक करारे धक्के के साथ पूरा लंड चुत में घुसा दिया। उसका लंड मेरी चुत में अन्दर तक चला गया था। मुझे तो मानो तरन्नुम मिल गई थी। अब वो ते तेज धक्कों के साथ मेरी चुत पेले जा रहा था। मैं उसे हल्के में ले रही थी, मगर वो बड़ा वाला चोदू निकला। उसने मेरी चुत के चिथड़े उड़ाने शुरू कर दिए थे।

कुछ ही देर में मेरी बहुत बुरी हालात होने लगी थी। पर मैं भी काम नहीं थी। बिल्कुल रंडी की तरह उछल उछल कर उसके लंड से चुद रही थी। अब उसने मुझे अपने ऊपर ले लिया और मेरी गांड पकड़ कर मुझे ऊपर नीचे करने लगा। मुझे बहुत मजा आ रहा था।

इधर सरोज को बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन मैंने उससे कहा- तुम भी अपना लंड हिला कर खड़ा कर लो, अगला नम्बर तुम्हारा ही है। कुछ देर में गोपाल झड़ गया और फ्री हो गया। हमने कुछ स्नेक्स जो साथ लाये थे खा कर थोड़ा रेस्ट किया। फिर मैंने सरोज की तरफ देखा और उसे आ जाने का इशारा किया। सरोज मुझ पर टूट पड़ा। उसने मुझे सीधा किया, मेरी टांगें चौड़ी कीं और अपने लंड को बिना कंडोम के चुत में घुसा दिया। मैं भी उसके लंड के मज़े लेने लगी। वो भी तेज रफ्तार से लंड पेल रहा था। मैं भी जोश में थी, पर तभी सुदेश ने उसे हटा दिया। सरोज ने कारण पूछा, तो सुदेश ने कहा- साले, पहले कंडोम तो लगा ले।

सरोज ने झट से लंड पर कंडोम लगाया और मेरे ऊपर फिर से चढ़ गया। वो बड़े ही दमदार तरीके से मुझे चोद रहा था। मैं मस्ती से आवाज कर रही थी- आहह उहह सरोज मज़ा आ रहा है ... हां अन्दर बाहर करते रहो। उसके लंड के मैं पूरे मज़े ले रही थी। अब तक सरोज मेरी चुत के झड़ने के इंतज़ार में था। पर मैं एक बार झड़ चुकी थी तो मुझे अभी जल्दी नहीं थी। मगर सरोज जल्दी जल्दी चोदने के चक्कर में झड़ गया।

उसके हटते ही मैंने सुदेश को चढ़ने का इशारा किया। वो कंडोम लगा कर मेरे ऊपर आ गया। उसका लंड जब मेरी चुत में गया, तो मुझे महसूस हुआ कि उन सभी में शायद सुदेश का लंड सबसे मोटा था। मैंने उसके लंड को अन्दर लेकर गांड उछल कर उससे धक्का दिलवाया। सुदेश धीरे धीरे धक्के लगा रहा था। मैं भी बड़े मजे ले रही थी। अचानक से उसने स्पीड फ़ास्ट कर दी। उसके लंड की स्पीड एकदम राजधानी एक्सप्रेस जैसी थी।

एक बार को तो मैं भी चिल्ला उठी। मगर तेजी करने वालों का हश्र मुझे मालूम था। वही हुआ ... थोड़ी ही देर मैं वो भी झड़ गया। अब रात गहरा चुकी थी। मैं भी झड़ गई थी।

कुछ देर बाद मैं फिर से गर्म हो गई। तब गोपाल ने कहा- तो चलो जमीला रानी अब तुम्हारी चुदाई हम तीनो मिल कर करते हैं। मैंने भी ओके कह दिया। अब वो तीनो एक साथ मुझ पर चढ़ गए। मेरी चुत में गोपाल का लंड, गांड में सुदेश का, और मुँह में सरोज का लंड था।

सरोज का लंड मेरे चूचों पर धप धप कर रहा था, बीच बीच मे मैं रुक रुक कर चूस रही थी। इस तरह से वे तीनो लंड मुझे रांड की तरह चोद रहे थे। गालियों के साथ मेरी चटनी बंट रही थी।

'साली रंडी ... तेरी चुत का भोसड़ा बना दूँ ... माँ की लौड़ी ... तेरी गांड मैं डंडा घुसा दूँ..'

मुझे उनकी गालियाँ सुनकर बड़ा मजा आ रहा था। उनकी ये जबरदस्त चुदाई और गालियां मुझे बहुत सुकून दे रही थीं। वो तीनो अपनी जगह बदल बदल कर मुझे चोद रहे थे। मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी।

कुछ देर में ही वे एक एक करके तीनो मुझ पर झड़ने लगे। तीन लंड से चुदने के बाद अब मुझे जरा भी होश नहीं बचा था। मैं उन तीनो की जबरदस्त चुदाई से मदहोश पड़ी थी।

सुदेश ने मेरे मुंह पर पानी के छींटे मारकर मुझे होशमें लाया और बोला सबेरा होने वाला है, आलम चौराहे पर हमारा ईंतजार कर रहा होगा हमे चलना चाहिए। तब मैं थोड़ी होश में आई और ढूंढ कर अपनी सलवार कुर्ती पहनी लेकिन कुर्ती तो फटी थी तो मैंने उसपर दुपट्टा डाल कपङे बूब्स को ढकी और हम चौराहे पर आए। इसके बाद हम वापस आगये।

तो दोस्तो ये थी हमारी होली की मस्ती।

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