साथी हाथ बढ़ाना Ch. 01

Story Info
हम ने हमारे साथीयों से मिल कर, उनसे हाथ बढ़ा कर बहुत कुछ पाया.
25.3k words
4.92
159
6

Part 1 of the 5 part series

Updated 06/12/2023
Created 01/05/2023
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साथी हाथ बढ़ाना

यह कहानी वह मंजर की है जिसे हम छिपा कर रखना चाहते हैं और इस के कारण कई बार हम जिंदगी में सुनहरे मौके खो देते हैं। मैंने सुनहरे मौके को खोने नहीं दिया। मुझे मौक़ा मिला जब हमारी, माने मेरी (मेरा नाम राज है) और मेरी पत्नी टीना की जान पहचान हमारे पडोसी सेठी साहब और उनकी पत्नी सुषमा से हुई। जब साथी सही मिले तो एक दूसरे के हाथ बढ़ाने से कई बार बड़े जटिल मसले आसानी से हल हो सकते हैं।

यह कहानी तब शुरू हुई जब मैंने दिल्ली की एक डीडीए कॉलोनी में किराए पर ग्राउंड फ्लोर पर फ्लैट लिया। उसी समय मेरा तबादला लखनऊ से दिल्ली हुआ था। मैं एक आंतरराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करता था। जब मैंने पहली बार उस फ्लैट को देखा और मालिक मकान से किराया बगैरह तय किया तब मेरी मुलाक़ात हमारे होनेवाले पडोसी सेठी साहब और उनकी पत्नी सुषमा से हुई। उस समय उन दोनों से मिलकर मुझे बड़ा ही अपनापन महसूस हुआ। सेठी साहब का नाम था सतीश सेठी। वह पंजाबी थे पर उनका जनम और परवरिश ओडिशा में ही हुई थी। सेठी साहब की करीब एक साल पहले दिल्ली में नौकरी लग गयी थी। वह एक अर्ध सरकारी यात्रा कंपनी में मैनेजर थे। कंपनी में उनका बड़ा ओहदा और रुसूख़ था। उनके घर बाहर पार्किंग में हमेशा एक दो लक्ज़री कारें खड़ी होती थीं।

सेठी साहब का फ्लैट हमारे बिलकुल सामने वाले ब्लॉक में था। हमारे दोनों के फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर ही थे। दोनों फ्लैट के बिच का फासला कुछ पच्चीस तीस कदम होगा।

सेठी साहब और उनकी पत्नी सुषमा के व्यवहार में एक अद्भुत सा अपनापन था जो मैंने बहुत ही कम लोगों में देखा था। एक ही पंक्ति में कहूं तो वह दोनों पति पत्नी जरुरत से ज्यादा भले इंसान थे। फ्लैट का कब्जा लेते समय सेठी साहब ने मुझे कहा की अगर मैं उनको घर की चाभी दे दूंगा तो वह हमारे आ जाने से पहले घर में साफसूफ बगैरह करवाकर रखेंगे। मैंने फ़ौरन उनको घर की चाभी देदी और उनका फ़ोन नंबर ले लिया। वापस लखनऊ जा कर मैंने उन्हें हमारे दिल्ली पहुँचने का दिन और अंदाजे से समय भी बता दिया।

हम (मैं, मेरी पत्नी टीना और मेरा छोटा बेटा) लखनऊ से सुबह निकल कर करीब शाम को चार बजे दिल्ली हमारे फ्लैट पर पहुंचे। फ्लैट पर पहुंच कर जब हमने चाभी लेकर घर खोला तो घर एकदम साफ़ सुथरा पाया। हमारा घर गृहस्थी का सामान उसी दिन सुबह ही ट्रक में दिल्ली पहुँच चुका था। सेठी साहब ने पहले से ही दो मजदूरों का प्रावधान कर वह सामान को ट्रक में से निकलवाकर घर में रख रखा था। हम से बात करके ट्रक का बचा हुआ किराया भी उन्होंने अपनी जेब से चुकता कर दिया था। यह एक अनहोनी घटना थी। कोई पडोसी आजकल के जमाने इतना कुछ करता है क्या? हमें वहाँ पहुँच कर बस अपना सामन खोल कर घर को सजाना ही था। हमारी पड़ोसन श्रीमती सुषमा सेठी वहाँ पहुंची और मेरी पत्नी टीना से मिली और उन्होंने अपना परिचय दिया। साथ में ही उन्होंने हमारे लिए नाश्ता, रात के डिनर का और एक कामवाली का भी प्रबंध कर दिया था।

टीना तो उनके इस उपकार से बड़ी ही कृतज्ञ महसूस करने लगी। शाम को करीब साढ़े सात बजे जब हम दो कमरों को पूरी तरह सजा कर घर में कुछ देर विश्राम कर रहे थे तब सेठी साहब हमारे घर हमें भोजन के लिए बुलाने आ पहुंचे।

सेठी साहब अच्छे खासे हैंडसम और ऊँचे तगड़े नौजवान थे। वह हर हफ्ते शनिवार और इतवार को जरूर जिम में आधे घंटे से एक घंटे तक कसरत करते थे जिसके कारण उनके कंधे, छाती, बाजू, पेट, जाँघें, आदि सख्त और मांसल थे। सेठी साहब ने अपनी डिग्री के अलावा फ़िजिओथेरपी में भी डिप्लोमा कर रखा था। वह कुछ समय के लिए फिजियोथेरपी की प्रैक्टिस भी करते थे। उन्हें दुर्गा माँ में अटूट श्रद्धा थी और वह हर साल एक बार वैष्णोदेवी की यात्रा जरूर करते थे।

उस समय दिल्ली में एक यात्रा कंपनी में सेठी साहब काफी जिम्मेवार ओहदे पर थे और स्वभावतः गंभीर लगते थे। पर जैसे उनसे परिचय और करीबियां बढ़ीं तब मुझे लगने लगा की उनमें भी बचपन की चंचलता और जवानी का जोश काफी मात्रा में था जो सेठी साहब आसानी से नहीं उजागर होने देते थे। यह मेरी नज़रों से नहीं छिप पाया की मेरी कमनीय पत्नी टीना को पहली बार देखते ही उनकी नजरें मेरी पत्नी के बदन का मुआइना करते हुए टीना की छाती पर एक पल के लिए जैसे थम सी गयीं। पर फ़ौरन औचित्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी नजरें निचीं कर लीं और हम औपचारिक बातों में जुट गए। मेरी चालाक बाज शिकारी जैसी पैनी नजर ने वह एक पल के सेठी साहब के मन के भाव भाँप ने में देर नहीं की।

पहले दिन से ही मैंने सेठी साहब की आँखों में जो भाव देखे तो मैं समझ गया की टीना उनको भा गयी थी। जैसे जैसे बादमें परिचय बढ़ता गया और एक दूसरे से नजदीकियां बढ़ने लगीं और औपचारिकतायें कम होती गयी वैसे वैसे मेरा यह विचार दृढ होता गया। मौक़ा मिलते ही सेठी साहब जिस तरह चोरी छिपी कुछ पल के लिए टीना के पुरे बदन पर नजरें घुमा कर देख लेते थे, लगता था शायद वह टीना को अपनी आँखों से ही कपडे उतार कर नंगी देख रहे हों। टीना भी शायद सेठी साहब की आँखों के भाव समझ गयी होंगी। पर सेठी साहब ने कभी भी टीना को अपनी नजर या व्यवहार से शिकायत का कोई अवसर नहीं दिया। और फिर वैसे भी उससे पहले करीब करीब हर मर्द से सेठी साहब से कहीं ज्यादा बीभत्स नज़रों की टीना को आदत हो चुकी थी। सेठी साहब के मीठे और प्यार भरे वर्तन के कारण टीना भी शायद उनकी सराहना भरी नजर से नाराज होने के बजाय उन्हें पसंद करने लगी थी।

उस रात को जब हम सेठी साहब के वहाँ से डिनर कर वापस आये तब मैंने चुटकी लेते हुए टीना से कहा, "सेठी साहब वैसे तो बहुत ही भले इंसान हैं पर मुझे लगता है अपने जमाने में वह काफी रोमांटिक रहे होंगे। ख़ास कर तुम पर ख़ास मेहरबान लगते हैं। जब भी मौक़ा मिलता है तुम्हें ध्यान से देखना नहीं चूकते।"

मेरा कटाक्ष समझने में मेरी पत्नी को ज़रा भी देर ना लगी। टीना ने तपाक से पलटवार करते हुए कहा, "क्यों नहीं? अरे सेठी साहब जरूर मुझे देखते हैं, पर तुम क्या करते हो? मैं देख रही थी की तुम तो बेशर्मों की तरह सुषमाजी को घूरने से बाज ही नहीं आते। जहां तक सेठी साहब का सवाल है, बेचारे नजरें चुरा कर ही देखते ही हैं, तुम्हारी तरह बेशर्म बनकर आँखें फाड़ फाड़ कर वह मेरी नंगी कमर के निचे तो नहीं घूरते। और फिर मैं तो इतना जानती हूँ की आज एक ही दिन में हमारा घर उन्हीं के कारण सेट हो गया। शादी के बाद अभी तक हमारी इतनी ट्रांसफर हुई, पर क्या ऐसा कभी हुआ है की हमारा घर पहले ही दिन सेट हो गया और हमें कोई परेशानी भी नहीं हुई?"

टीना ने तो मेरी बोलती ही बंद कर दी। एक ही झटके में उसने मुझे दो नसीहत दी। पहली यह की मैं सेठी साहब के बारे में उलटी सीधी टिपण्णी ना करूँ और दूसरे यह की उसने मेरा सुषमा को ताड़ना पकड़ लिया था। यह सच था की सुषमाजी ने पहली नजर में ही मुझे घायल कर दिया था। ना चाहते हुए भी मैं उनकी साड़ी ब्लाउज के बिच के नंगे हिस्से को घूर कर देखे बिना रह नहीं सकता था। बार बार मेरी नजर वहाँ जाती और मन में यह इच्छा होती की काश उनकी साड़ी जो नाभि के काफी निचे तक पहनी हुई थी, थोड़ी निचे की और खिसके। यह बात बीबियों से कहाँ छिपती हैं? जब कोई खूबसूरत औरत आसपास हो तो वह तो अपने पति की नजर पर कड़ी निगरानी रखती हैं।

वह बात वैसे तो वही ख़तम हो गयी, पर वास्तव में हमारी पहली रोमांटिक अंदाज वाली बात वहाँ से

शुरू हुईं।

मेरी बीबी टीना करीब ३२ साल की थी। उसकी जवानी पूरी खिली हुई थी। उसके काले घुंघराले लम्बे बालों की लट उसके कानों पर लटकती हुई उसकी खूबसूरती में चारचाँद लगा देती थी। टीना के खूबसूरत स्तनमंडल उसके ब्लाउज में समा नहीं पा रहे थे। स्तनोँ का काफी उभरा हुआ हिस्सा गर्दन के निचे से दिखता था जिसे टीना सलवार या पल्लू से ढकने की नाकाम कोशिश करती रहती थी। टीना की कमर बड़ी ही लुभावनी लगती थी। ख़ास कर उसकी नाभि के आसपास का उतार चढ़ाव। साडी नाभि से काफी नीची पहनने के कारण टीना की नाभि के निचे का उभार और फिर एकदम ढलाव जो दिखता था वह गजब का होता था। टीना बिलकुल सही कद की थी। ना उसका जीरो फिगर था ना ही वह तंदुरस्त लगती थी। टीना के कूल्हे काफी आकर्षक थे। गोल माँसल थे पर ज्यादा भी उभरे हुए नहीं की भद्दे लगे।

सेठी साहब की पत्नी सुषमा टीना से थोड़ी कम लम्बाई की थी पर नाक नक़्शे में वह टीना से बिलकुल कम नहीं थी। थोड़ी कम ऊंचाई के कारण वह उम्र में भी एकदम छोटी लगती थी। सुषमा का चेहरा भी जिसे बेबी डॉल कहते हैं, ऐसा था। बदन पतला पर स्तन भरे हुए, कमर पतली पर कूल्हे आकर्षक, धनुष्य से लाल होंठ, लम्बी, गर्दन और पतली मांसल जांघें, किसी भी मर्द की की नजर में देखते ही समा जाती थीं। सुषमाजी की बोली मीठी थी। कभी हमने उनको किसी की निंदा करते हुए या इधर उधर की बात करते हुए नहीं सुना। पर हाँ, वह कोई लागलपेट के बिना एकदम सीधा बोलती थी। अगर उनको कुछ कहना है तो वह साफ़ साफ़ बहुत ही सीधी पर शिष्ट भाषा में बोल देती थी। पहली बार ही जब मैंने सुषमा को देखा तो मुझे अनायास ही सेठी साहब से मन ही मन इर्षा होने लगी। ऐसी नक्शेकारी की मूरत जिसके साथ रोज सोती हो वह मर्द तक़दीर वाला ही कहलायेगा।

वैसे ही दिन बीतते गए और सेठी साहब और सुषमा के साथ हमारे रिश्ते दिन ब दिन करीबी होते चले गए। मेरी नौकरी में मुझे काफी टूर करना पड़ता था। मैं महीने में कई दिन घर से दूर रहता था। टीना को जब भी कोई समस्या होती या काम होता और सेठी साहब को पता लगता तो बगैर समय गँवाए सेठी साहब फ़ौरन उसे हल कर देते। मध्यम वर्ग और सिमित आय वाली गृहिणीं को रोज कई समस्याओं से झूझना पड़ता है। पानी, दूध, गैस, बिजली, कामवाली, सफाई, बच्चे, स्कूल, और पता नहीं क्या क्या नयी नयी समस्याएं रोज होती हैं। अगर कोई इन्हें भाग कर सुलझाले तो जिंदगी काफी आसान हो जाती है। टीना सेठी साहब के ऐसे व्यवहार से उनकी कायल हो गयी। जब कोई कामाकर्षक मर्द आपके लिए इतना सब कुछ ख़ुशी ख़ुशी करे तो कोई भी औरत उस मर्द की लोलुप नजरों को बुरा नहीं मानती।

सुषमा और सेठी साहब का स्वभाव ही कुछ ऐसा था की हम चाहते हुए भी उनसे अछूते नहीं रह सकते थे। उनकी रसोई में अगर कुछ भी नयी वानगी बनी तो सुषमाजी जरूर एक छोटे से पतीले में वह हमें भिजवातीं। वैसे ही टीना भी करती। सेठी साहब और सुषमा हमारे पडोसी नहीं एक तरह से फॅमिली जैसे ही बन गए। कई बार उनका लंच या डिनर हमारे यहां होता तो कभी हम उनके यहाँ लंच या डिनर कर लेते। जब मैं घर पर होता था तो मैं और सेठी साहब अक्सर ड्रिंक हफ्ते में एक बार जरूर साथ में बैठ कर करते। या तो हमारे घर या फिर उनके घर।

मैं हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बड़ा ही शौक़ीन हूँ। मेरे घर में दीवारों पर कई जानेमाने शास्त्रीय संगीत के उस्तादों की तस्वीर देख कर एक दिन सुषमाजी काफी उत्तेजित हो कर मुझसे शास्त्रीय संगीत के बारे में पूछने लगीं। सुषमाजीका पूरा खानदान शास्त्रीय संगीत में रचापचा था। सुषमा के पिता शास्त्रीय संगीत के जाने माने गायक थे। उनके खानदान में कई बड़े कलाकार हुए थे। उस दिन हम करीब एक घंटे तक टीना और सेठी साहब से अलग बैठ कर शास्त्रीय संगीत के बारे में चर्चा करते रहे। सुषमाजी शास्त्रीय संगीत में मेरी रूचि देख कर और मेरी बातें सुन कर इतनी खुश हो गयीं की उन्होंने मुझसे वादा किया की अगर मौक़ा मिला तो वह मुझे एक दिन उनके मायके जरूर ले जायेगी और उनके पापा, चाचा बगैरह से मिलवायेगीं। टीना ने बिज़नेस मैनेजमेंट किया था, सो उस समय दरम्यान टीना भी सेठी साहब के साथ बैठ कर बिज़नेस और फाइनांस के बारे में बात करती रही।

कई बार मैं कुछ ना कुछ बहाना कर सेठी साहब के घर चला जाता और अगर सेठी साहब ना होते तो सुषमा के साथ गपशप मारने की कोशिश करता रहता। सुषमा मेरी नियत से वाकिफ थीं या नहीं, मुझे नहीं पता; पर जब भी मैं जाता था तब सुषमाजी भी कामकाज छोड़कर मुझसे बात करने बैठ जाती और हमारी बातें चलती रहतीं। सुषमाजी मेरी लोलुप नज़रों का जवाब हँस कर देतीं। मुझे पूरा सपोर्ट देतीं। जब भी मैं सुषमाजी को ताड़ते हुए पकड़ा जाता तो सुषमाजी ही उसे कुछ शरारत भरी मुस्कान दे कर नजर अंदाज कर देतीं। इससे मेरे मन में कई बार विचार आया की क्यों नहीं इस बात को आगे बढ़ाया जाए। मैं और आगे बढ़ने से झिझकता था क्यूंकि मुझे पक्का भरोसा नहीं था की अगर मैंने कुछ आगे कदम बढ़ाया तो कहीं सुषमाजी या सेठी साहब बुरा ना मानें और हमारे संबंधों में कोई दरार ना पैदा हो।

एक बार मैं वैसे ही एक छुट्टी के दिन सुबह कुछ जल्दी उठ गया। मौसम सुहाना था सो मैं बाहर ताज़ी हवा खाने निकला। सुबह होने में थोड़ा वक्त था। मैंने देखा की सेठी साहब के ड्रॉइंग रूम की बत्तियां जल रहीं थीं। उसके अगले दिन ही सुषमाजी उनके ताऊ के घर गयीं थीं। सुषमाजी के ताऊजी और बुआ दिल्ली में ही रहते थे। महीने दो महीने में एकाध बार सुषमाजी उनसे मिलने चली जातीं थीं। उस दिन सेठी साहब घर में अकेले ही थे। मैं उनके घर के नजदीक पहुंचा तो सूना की अंदर से कुछ आवाजें आ रही थीं। मैंने उत्सुकता से सेठी साहब के घर की घंटी बजाई। पर शायद बेल काम नहीं कर रही थी। मैंने दरवाजे को धक्का मारा तो पाया की दरवाजा खुला था। शायद दूध वाले से दूध लेने के बाद सेठी साहब दरवाजा बंद करना भूल गए होंगे।

मैं अंदर जैसे ही दाखिल हुआ और जो दृश्य मैंने देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गयीं। सेठी साहब सिर्फ निक्कर पहने हुए टीवी देख रहे थे। टीवी पर कोई पोर्न वीडियो चल रहा था। सेठी साहब अपना लण्ड निक्कर में से निकाल कर हिला रहे थे। सेठी साहब का लण्ड देख कर मैं भौंचक्का सा रह गया। छे सात इन्च से तो ज्याद ही लंबा होगा और काफी मोटा सख्त खड़ा चिकनाहट से लिपटा हुआ उनका लण्ड देख कर मुझे विश्वास नहीं हुआ की किसी इंसान का इतना बड़ा लण्ड भी हो सकता है। सेठी साहब का बदन पसीने से तरबतर था। लगता था जैसे अभी वह सुबह का व्यायाम कर फारिग हुए हों।

मेरे आने की आहट होते ही सेठी साहब ने मुड़कर मुझे देखा तो एकदम झेंप गए। मैं सेठी साहब को इस हाल में देख कर खुद बड़ा ही शर्मिन्दा हो गया। मैंने पीछे घूम कर कहा, "सेठी साहब आई ऍम सॉरी, बेल शायद बजी नहीं और दरवाजा खुला था तो मैं अंदर चला आया। मुझे नोक करके आना चाहिए था। मैं बाद में आता हूँ।" यह कह कर मैं जब बाहर निकलने लगा तो सेठी साहब ने खड़े हो कर मेरा हाथ थाम लिया और मुझे घर के अंदर खिंचते हुए बोले, "चलो अब तुम आ ही गए हो और तुमने सब देख ही लिया है तो अब आओ और बैठो। अब मुझसे क्या शर्माना?"

उस समय बड़ी ही अजीब सी स्थिति थी। सेठी साहब ने टीवी बंद कर दिया। मैं बिना कुछ बोले चुपचाप बैठ सेठी साहब को देखता रहा।

कुछ देर चुप्पी के बाद सेठी साहब धीरे से बोले, "देखो अब तुमने तो मुझे देख लिया है तो तुमसे कुछ भी क्या छिपाना? बात यह है की तुम्हारी भाभी सुषमा और मेरी आजकल ठीकठाक पटती नहीं है।" यह कह कर सेठी साहब ने अपनी दास्तान सुनाई। सेठी साहब ने जो कहा वह सुनकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। सेठी साहब ने कहा की वह पहले से ही सेक्स में काफी आक्रमक रहे हैं। उनकी शादी हुई तो सुषमाजी के साथ वह दिन रात लगे रहते थे। सेठी साहब के अनुसार, वह सुषमाजी को २४ घंटे में कम से कम चार बार रगड़ते थे। दिन में दो बार और रात में दो या तीन बार।

शुरू में तो सुषमाजी ने उनका काफी साथ दिया और खूब चुदवाया, पर वह थक जाती थी। उनके लिए सेठी साहब की ताकत और जोश के साथ कदम से कदम मिलाना कठिन था। धीरे धीरे वह तंग होने लगी। सुषमाजी चुदाई एन्जॉय तो करती थी पर इतनी रफ़ नहीं। वह चाहती थी की चुदाई प्यार से धीरे से होनी चाहिए। पर सेठी साहब को रफ़ चुदाई के बगैर चैन नहीं पड़ता था। सेठी साहब जब चिपक पड़ते थे तो चाटना, काटना, गाँड़ पर चपेट मारते रहना इत्यादि किये बगैर उन्हें संतुष्टी नहीं होती थी। सुषमाजी बेचारी जब फारिग होती थी तब गाल, स्तन, पेट, हाथ, जांघें आदि लाल लाल हो जाते थे और उन पर सेठी साहब के दांतों के निशान होते थे। कई बार तो बेचारी सुषमाजी चलने की हालात में भी नहीं होती थीं।

सेठी साहब ने कहा, "अब यह हाल है की सुषमा मुझे रातको पलंग में अवॉयड करने की कोशिश करती है। आजकल हमारे बिच कुछ ऐसा पेंच फँसा हुआ है की पता नहीं कैसे निकलेगा।" यह कह कर कुछ देर सेठी साहब चुप हो गए। फिर मेरी और देख कर बोले, "हो सकता है तुम मेरी कुछ मदद कर सको।" सेठी साहब ने बिना बताये की क्या पेच फंसा है बात को वहीँ ख़त्म कर दिया।

मैंने पूछा, "सेठी साहब, ऐसा क्या पेंच फँसा हुआ है और मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूँ? बताइये ना, प्लीज?"

सेठी साहब ने कहा, "तुम्हारा कहा सुषमा मानती है। मैंने देखा है की तुम्हारी संगीत, कला बगैराह बातों से उसका मूड काफी अच्छा हो जाता है। कई बार वह मुझे तुम्हारी मिसाल देती है। तुम्हारे प्रति वह काफी सम्मान की नज़रों से देखती है। तुम जब कुछ कहते हो तो वह तुम्हारी बात ध्यान से सुनती है। पर हमारे साथ कुछ उलटा ही है। मैं कुछ कहता हूँ तो सुषमा उसका उलटा ही अर्थ निकलती है और हमारे बिच में वाद विवाद शुरू हो जाता है। मैं भी सुषमा की बेतुकी बात से गुस्सा हो जाता हूँ और कुछ ना कुछ उटपटांग बोल देता हूँ और फिर बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती। कई दिनों तक आपस में हम बोलते नहीं।"

मेरी समझ में यह नहीं आया की सेठी साहब मुझसे क्या चाहते थे। मैंने पूछा, "सेठी साहब बताइये ना मैं क्या कर सकता हूँ?"

सेठी साहब ने कहा, "कुछ ख़ास नहीं, बस तुम रोज थोड़ी देर सुषमा से बातचीत कर कोशिश करो की उसका मूड ठीक रहे। उसे ड्राइविंग सीखना है। मैंने पहले भी उसे सिखाने की कोशीश की थी। पर वह ऐसी बेवकूफी भरी गलतियां करती है की मैं गुस्सा हो जाता हूँ और उसे डाँट देता हूँ। इसके कारण हमारे बिच लड़ाई हो जाती है। आप मेरी कार ले जाओ और थोड़ा समय निकाल कर सुषमा को ड्राइविंग सिखाओ। इसके बारे में अगर आपको लगता है की टीना कुछ कहेगी तो मैं टीनाजी से बात करूंगा की मैंने आप को कहा है। आजकल मेरे दफ्तर में कुछ टेंशन चल रहा है। थोड़ा तनाव में रहने के कारण ज़रा ज़रा सी बात में मैं सुषमा से उलझ पड़ता हूँ और बात बिगड़ जाती है।"

सेठी साहब की बात मुझे बड़ी मीठी लगी। मैं तो सुषमाजी के करीब जाने की लिए बहाने ढूंढता था। फ़ौरन सेठी साहब का हाथ थाम कर कहा, "सेठी साहब ऐसा हर कपल के बिच होता है। हमारा भी यही हाल है। टीना और मैं भी अक्सर भीड़ जाते हैं। आप को रिक्वेस्ट करने की कोई जरुरत नहीं। आखिर दोस्त होते किस लिए हैं? मैं जरूर सुषमाजी के साथ कुछ समय बिताऊंगा और उन्हें ड्राइविंग भी सिखाऊंगा। पर बदले में आप टीना को सम्हालियेगा। टीना भी आपकी बड़ी इज्जत करती है। वह भी मुझे आपकी मिसाल देती है।" इस तरह पता नहीं अनायास ही मुझे और सेठी साहब हम दोनों को एक दूसरे की बीबी के करीब जाने की बिना मांगे ही इजाजत मिल गयी।

उन दिनों मेरा टूर पर जाना अक्सर हुआ करता था। मैं मार्केटिंग डिवीज़न में था और काफी बड़ा एरिया मेरे अंडर में था तो महीने में कम से कम पंद्रह दिन तो मैं बाहर ही रहता था। मेरी गैर हाजिरी में सेठी साहब दिन में एक बार जरूर घर आकर टीना को पूछते की कोई दिक्कत तो नहीं। वैसे अक्सर सुषमा जी और टीना दोनों एक दूसरे के घर करीब रोज आते जाते ही रहते थे।

जैसे जैसे आपसी परिचय बढ़ता गया, वैसे वैसे सेठी साहब टीना को कभी कबार टीना के करीब जाकर टीना के कानोंमें या कई बार तो हमारे सामने ही, "हाय, ब्यूटीफुल! हेलो जानेमन", बगैरह बोल देते थे। मेरी पत्नी शुरु शुरू में ऐसी खुली तारीफ़ तारीफ़ सुनकर कुछ अजीब महसूस करती थी।

एक बार ऐसे ही इतवार दोपहर को लंच के समय जब हम इकठ्ठा हुए तब अचानक ही सेठी साहब ने टीना की नंगी कमर में हाथ डाल कर अपने करीब खिंच लिया और उसे एकदम करीब खिंच कर हम सब के सामने ही टीना के गालों को चुम कर बोले, "हाय माय ब्यूटीफुल गर्ल फ्रेंड! आई लव यू।"

सेठी साहब का इस तरह अचानक ही ऐसा व्यवहार देख मेरी बीबी के चेहरे पर तोते उड़ने लगे। शादी के बाद किसी गैर मर्द ने पहली बार सबके सामने उसे इस तरह उसे गर्ल फ्रेंड कह कर बुलाया था और खुला खुला प्यार का इजहार किया था।

टीना के चेहरे का बिगड़ा हुआ हाल देख कर सुषमा आगे आयी और टीना से बोली, "सेठी साहब हैं ही ऐसे। कोई खूबसूरत औरत देखि की शरू हो गए लाइन मारने।"

फिर वह अपने पति की और घूम कर बोली, "अरे बेचारी को थोड़ा वक्त तो दीजिये आपको पहचानने का! इस तरह उस पर टूट पड़ोगे तो टीना आपके बारे में क्या सोचेगी?"

फिर मेरी और घूम कर सुषमा बोली, "वैसे राजजी, आप अपनी खूबसूरत बीबी को मेरे पति से जरूर बचा कर रखिये। सेठी साहब बड़े माहिर हैं, खूबसूरत औरतों का दिल जितने में। पता नहीं कब आपकी बीबी को उड़ा कर ले जाए! फिर यह मत कहना की भाभी आपने सावधान नहीं किया।"

मैंने भी हँसते हुए कहा, "भाभीजी मुझे टीना की कोई चिंता नहीं। अगर सेठी साहब ने इधर उधर कुछ किया तो आप तो हैं ही मेरा इन्शुरन्स। मैं फिर आपको उड़ा कर ले जाऊँगा।"

सुषमा ने वही शरारती अंदाज में कहा, "राजजी ऐसी कोई ग़लतफहमी में मत रहियो। मैं कोई आसानी से फंसने वाली चिड़िया नहीं हूँ।"

तब मैंने कहा, "मुझे आजतक कहाँ जिंदगी में कुछ आसानी से मिला है?

मैंने बौखलाई हुई टीना का हाथ थाम कर कहा, "अरे जानेमन क्या हुआ? ऐसे घबरा नहीं जाते। यह तो एक मिलने का अंदाज है। वैसे आज कल इन चीजों का कोई बुरा नहीं मानता। तुम भी उनको उसी लहजे में जवाब दो ना? बोलो थैंक यू। शुक्रिया!"

टीना ने मेरी और मुस्कुरा कर देखा और सेठी साहब की और घूम कर कुछ शर्माते हुए बोली, "शुक्रिया सेठी साहब। सुषमाजी कह रही हैं, आप मुझे उड़ा कर ले जाओगे? मेरे पति ने मुझे आज तक कोई हवाई जहाज में बिठाया नहीं। आप मुझे उड़ा कर ले जाओगे तो इसी बहाने मुझे उड़ने का मौक़ा तो मिलेगा।"

सेठी साहब थोड़ा सा सहम गए और कुछ क्षोभित से बोले, "टीना मुझे माफ़ करना। क्या करूँ? रूमानी दिल है। खूबसूरत लड़की को देख कर आपे से बाहर हो जाता हूँ।"

सेठी साहब की सख्सियत से मेरी पत्नी टीना तब तक काफी वाकिफ हो चुकी थी। उनका जो स्वाभाविक ही अपनेपन का अहसास दिलाने का स्वभाव टीना बहुत पसंद करती थी। इसी कारण सेठी साहब और शर्मिंदा ना हो इस उद्देश्य से टीना ने कहा, "चलिए सेठी साहब इस बहाने आप जैसे हैंडसम मर्द ने मेरे जैसी एक बच्चे की माँ को गर्ल फ्रेंड बनाया और मुझे खूबसूरत तो समझा। चाहे वह मुझे दिलासा देने के लिए की गयी मिथ्या प्रशंषा ही क्यों ना हो।"

मेरी पत्नी ने कहने के लिए तो यह कह दिया पर उसे इस घटना की चिंता होने लगी, क्यूंकि कोई भी पत्नी अपने सामने ही अपने पति से किसी परायी स्त्री की ऐसी भुरीभूरी प्रशंशा आसानी से बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। सुषमा जी क्या सोचती होंगी? यह चिंता टीना को खाये जा रही थी। उस के मन में सेठी साहब और सुषमाजी के बिच में जो मनमुटाव जैसा दिख रहा था उसकी गहराई में जाने की स्त्री सहज जिज्ञासा भी थी जिसे वह रोक नहीं पा रही थी। उस दिन सुबह मेरा सेठी साहब से जो सामना हुआ था उसके बारे में मैंने टीना को नहीं बताया था। और दूसरे उसे चिंता थी की जिस तरह सेठी साहब उसे सुषमा के सामने ही ताड़ रहे थे, लाइन मार रहे थे और कुछ ज्यादा ही रोमांटिक रुख अपनाये हुए थे उससे कैसे निपटे। कहीं इसके कारण टीना और सुषमाजी के बिच कोई मनमुटाव पैदा ना हो।

उस चिंता से निजात पाने के लिए टीना ने तय किया की वह सुषमाजी से सीधी बात करेगी और अपनी समस्या बताएगी। दूसरे दिन दोपहर सारा काम निपटा कर टीना सेठी साहब के घर पहुंची।

शुरुआत की औपचारिक बातों के बात टीना ने सुषमाजी को अपनी उलझन बतायी। टीना ने कहा की वह सेठी साहब की बड़ी इज्जत करती है, पर जब सेठी साहब उसके साथ कुछ ज्यादा ही छूट ले लेते हैं तो टीना को समझ नहीं आता वह क्या करे? उनकी रंगीली हरकतों और छेड़खानी से टीना कैसे निपटे? कहीं ऐसा ना हो की सुषमाजी इन से आहत हों। कहीं टीना तो उनके मनमुटाव का कारण नहीं थी?

टीना की बात सुनकर सुषमाजी हँस पड़ीं। उन्होंने टीना को बड़े प्यार से अपने पास बैठाया। सुषमा और टीना के बिच काफी लम्बी और सौहार्दपूर्ण बात हुई। सुषमाजी ने टीना से कहा, "देखो टीना, यह तुम्हें सोचना है की तुम सेठी साहब का छेड़ना पसंद करती हो या नहीं। अगर तुम्हें यह पसंद नहीं की सेठी साहब तुमसे कोई छूट लें, तो तुम सेठी साहब को साफ़ साफ़ बतादो की तुम्हें उनका छेड़छाड़ करना पसंद नहीं। मैं तुम्हें गारण्टी देती हूँ की वह आगे से तुमसे कोई छेड़छाड़ नहीं करेंगे। अगर तुम्हें सेठी साहब की छेड़छाड़ से ज्यादा कोई परेशानी नहीं तो फिर तुम मेरे पास क्यों आयी हो? मुझे सेठी साहब तुम्हारे साथ क्या छूट लेते हैं नहीं लेते हैं उससे कोई मतलब नहीं।"

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