छाया - भाग 04

Story Info
छाया अब मेरी मंगेतर। रिश्तों पर कुठाराघात छाया मेरी बहन?
12.1k words
4.46
1.4k
0

Part 4 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

नया घर नया रिश्ता

बेंगलुरु में आने के बाद मैंने एक पॉश कॉलोनी में दो फ्लैट बुक कर दिए थे. यह दोनों फ्लैट एक दूसरे के ठीक सामने थे. हर फ्लैट में दो बैडरूम एक हॉल और किचन था दोनों फ्लैट के हाल की मुख्य दीवार कॉमन थी. मैंने बिल्डर से बात करके वहां पर एक बड़ा दरवाजा लगा दिया था. उस दरवाजे को खोल देने पर दोनों फ्लैट एक हो जाते थे. घर पूरी तरह से बन चुका था. अब सिर्फ घर के साजो सामान सजाने थे. हर फ्लैट के मास्टर बेडरूम की डिजाइन बहुत खूबसूरत थी. कमरा भी काफी बड़ा था साथ में लगा बाथरूम भी काफी बड़ा था. ड्रेसिंग के लिए अलग जगह थी. मास्टर बैडरूम के साथ लगी हुई बालकनी से बेंगलुरु शहर बहुत खूबसूरत दिखाई देता था यह बिल्डिंग कुल दस वाले की थी और हमारा फ्लैट दसवें माले पर था. मैंने दो फ्लैट एक साथ लेकर यह सोचा था कि एक में खुद रहूंगा और दूसरे को अपने किसी मित्र या दोस्त को किराए पर दे दूंगा या जरूरत पड़ने पर दोनों फ्लैट को जोड़कर अपने ही प्रयोग में रखूंगा.

अभी तक इस घर के बारे में मैंने माया आंटी और छाया को नहीं बताया था. घर की चाबियां मिल जाने के बाद मैं उन्हें अचानक यह खबर देकर खुश करना चाहता था.

अंततः एक दिन मैं छाया को लेकर इस नए फ्लैट में गया फ्लैट का दरवाजा खुलते हैं छाया अंदर आई उसने फ्लैट को बहुत बारीकी से देखा. "इतना सुंदर फ्लैट?" बालकनी में जाकर वह चहकने लगी..

"किसका है यह फ्लैट?"

मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके गालों पर

चुम्बन करते हुए बोला

"हमारा" वह बहुत खुश हो गई.

वह फिर से मास्टर बेडरूम में गई और बोली

"मैं इस रूम को अपने मन से सजाऊंगी"

मैंने उससे कहा

"जरूर"

वह आकर मुझसे लिपट गई. उसने मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिये. वह एकांत का फायदा उठा लेना चाहती थी. कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे को सहलाने लगे. उसने मेरे राजकुमार को बाहर निकाल लिया तथा उसे आगे पीछे करने लगी. मैं भी उत्तेजित हो गया और उसके दोनों नितंबों को छूने लगा. वह पेंटी नहीं पहनी थी. कभी कभी जब वो मेरे साथ अकेले

बाहर आती थी तो पैंटी नहीं पहनती थी. मुझे उसके नंगे नितंब छूने में बहुत मजा आ रहा था अब मेरी आदतों में नितंबों के साथ-साथ उसकी दासी को छूना अच्छा लगता था. जैसे ही मेरी उंगलियां उसकी दासी पर जाती वह मेरी तरफ तीखी नजरों से देखती थी. मुझे उसकी यह अदा बहुत अच्छी लगती थी. कुछ ही देर में उसकी राजकुमारी का रस मेरी उँगलियों पर महसूस होने लगता था. यही वक्त होता था जब राजकुमार और राजकुमारी मिलने के लिए व्याकुल होते थे. छाया मुझे बालकनी में लगे एक प्लेटफार्म के पास ले गइ. वह उस प्लेटफार्म पर झुक गई. उसकी राजकुमारीपीछे से मुझे दिखाई देने लगी मैंने तुरंत ही अपने राजकुमार को उसके राजकुमारी के मुख पर रख दिया और उसकी भग्नासा पर रगड़ बनाने लगा.

वह कुछ ज्यादा ही उत्तेजितथी थोड़े से घर्षण से राजकुमारी कापने लगी. हम दोनों के प्रेम रस से पर्याप्त गीलापन आ चुका था. मेरा लावा भी फूटने वाला था. उसने मेरा उतावलापन पहचान लिया था. अचानक वह उठी और मेरी तरफ मुड़ कर दोनों हाथों में मेरे राजकुमार

को ले लिया. राजकुमार ने अपना लावा उसके हाथों में ही उड़ेल दिया. वह हाथों में मेरे वीर्य को लेने के बाद मास्टर बेडरूम की तरफ आई और उसकी एक दीवार पर मेरे वीर्य से ही एक दिल का निशान बनाया और उसमें एक तीर बना दिया. मैंने उससे पूछा...

"यह क्या कर रही हो"

आज हम दोनों ने पहली बार इस घर में प्रवेश किया यह हमें हमेशा इसकी याद दिलाएगा" हम फ्लैट बंद करके बाहर

आ चुके थे.मैं छाया को लेकर एक बड़े फर्नीचर शोरूम में गया. छाया ने वहां अपनी पसंद से घर के कई सारे फर्नीचर खरीदें. पलंग पसंद करते समय मैंने उसकी चुटकी ली. मैंने उससे कहा..

"पलंग मजबूत लेना तुम्हारे साथ इसी पर उछल कूद होनी है"

वह हंसने लगी उसकी यह मुस्कुराहट मुझे बहुत अच्छी लगती थी. उसने मोटे और मुलायम गद्दे भी लिए. उसने मुझसे कहा..

"छू कर देखिए ना कितने मुलायम हैं."

"तुम्हें गद्दे पर सोना है मुझे तुम पर. तुम से ज्यादा मुलायम तो नहीं है"

वो फिर हंसने लगी.

सुन्दर नवयौवना की हसीं अत्यंत मादक होती है.

कुछ ही देर में हमारी खरीदारी संपन्न हो गई. मैंने शॉपकीपर को अपने घर का पता दिया और दो दिनों बाद उसकी डिलीवरी सुनिश्चित कर ली. अब हम घर की तरफ वापस आ रहे थे. छाया की खुशी का ठिकाना नहीं था उसका यह नया घर मेरी मंगेतर बनने के उपलक्ष्य में एक उपहार जैसा लग रहा था. हालांकि यह घर मैंने पहले बनाया था पर छाया को यह घर देने या इस घर से रूबरू कराने का यह बेहतरीन मौका था. वह बहुत खुश थी. मैंने छाया से कहा था कि वह माया जी को इस बारे में कुछ भी ना बताएं. वह मान गई थी.

अगले दिन मैं माया आंटी को लेकर अपने दूसरे फ्लैट में गया. एक फ्लैट की सजावट उनकी बेटी छाया पहले ही कर चुकी थी दूसरा फ्लैट मैंने उनकी पसंद से सजाना चाहा. मैंने यह सोचा था कि दूसरा फ्लैट मैं शर्मा जी को दे दूंगा शर्मा जी के पास माया आंटी का आना जाना रहता ही है. उन्होंने मुझसे बार-बार कहा..

"बेटा छाया को ले आए होते तो अच्छा होता. वह अपनी पसंद से अपना घर सजा लेती."

"आप सामान पसंद कर लीजिए हम लोग घर सजाने के बाद उसे ले आएंगे. आप तो उसकी पसंद नापसंद जानती है."

हम फिर एक दूसरी फर्नीचर शॉप में गए और वहां से माया जी की पसंद के फर्नीचर खरीदें. माया जी भी घर देखकर बहुत खुश थी. उनको भी उस घर का बालकनी वाला एरिया बहुत पसंद आया था. अपनी बेटी के लिए पलंग पसंद करते समय उनके मन में जितने क्या ख्याल आये होंगे ये वही जानती होंगीं.

हम घर आ चुके थे. हमारे वर्तमान घर में सारा सामान कंपनी का दिया हुआ था. सिर्फ हमारे कपड़ों को छोड़कर इस घर में हमारा कुछ भी नहीं था. घर का राशन पानी ले जाने लायक स्थिति में नहीं था. उधर तीन-चार दिनों के अंदर ही मेरा नया फ्लैट सुसज्जित हो चुका था.

जब से हमने नए घर में जाने का फैसला किया था तब से माया आंटी थोड़ा चिंतित रहती थी. कहीं न कहीं उनके मन में कोई चिंता अवश्य थी. जिसे वह खुलकर नहीं बताती थी. हमारे प्रेम संबंधों की स्वीकार करने के बाद शर्मा जी से उनकी मुलाकात ज्यादा होती थी. जब इन मुलाकातों के दौरान वो घर से बाहर रहतीं तो मैं और छाया अपनी कामुकता को संतुष्ट कर बहुत खुश होते.

एक दिन तो छाया ने मुझसे कहा...

"अच्छा होता मम्मी शर्मा जी से शादी कर लेती"

शायद छाया जा जान गई थी की माया आंटी को शर्मा जी के साथ वक्त बिताने में अच्छा लगता था. एक दिन माया आंटी ने मुझसे कहा शर्मा जी कह रहे थे कि आप लोगों के जाने के बाद मैं फिर से अकेला हो जाऊंगा. मैं सारी परिस्थिति को पहले ही समझ चुका था. मैंने सिर्फ इतना कहा..

"वह अकेले नहीं रहेंगे आप खुश हो जाइए." माया आंटी के चेहरे पर खुशी आ गई. मैं समझ चुका था कि शर्मा जी से उनके संबंध प्रगाढ़ हो चुके हैं और दोनों का एक साथ रहना ही उनके लिए अच्छा है.

माया आंटी खुश तो हो गयीं पर उन्हें

समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे होगा. हम अपने नए घर में जा रहे थे. वहां रहने वाले लोगों से अभी मेरा परिचय नहीं था परंतु वहां जाने के बाद उनसे परिचय अवश्य होता. मैंने माया आंटी से बात की मैंने उनसे कहा...

"आप शर्मा अंकल को कहिए कि वह भी हमारे साथ उसी सोसाइटी में चलें. माया आंटी शर्मा गई. आप दोनों का मिलना जुलना है और दोनों साथ में समय व्यतीत करते हैं इसमें कोई बुराई नहीं है. शर्मा जी वहां हमारे साथ में रहेंगे तो अच्छा ही रहेगा उनके लिए भी और हमारे लिए भी. मैंने अपने फ्लैट के सामने एक फ्लैट देखा है हम उसे भी किराए पर ले लेंगे."

मैंने माया आंटी से कहा..

"शर्मा जी से आप ही बात कर लीजिए हम नवरात्रि के बाद नए घर में चलेंगे"

आखिरकार हम अपने नए घर में पहुंच गए. पहले हम सब उस फ्लैट में गए जिसमें माया जी ने सजावट कराई थी.

उनका शयन कक्ष बहुत ही खूबसूरत लग रहा था. शयनकक्ष में पहुंचते ही उन्होंने छाया से कहा..

"बेटी मानस के कहने पर मैंने अपनी पसंद से तेरा कमरा सजाया है उम्मीद करती हूं तुझे पसंद आएगा"

अब यहां पर मुझे बोलना पड़ा..

"आंटी यह कमरा आपका है"

"पर छाया कहां रहेगी" मैं उन्हें दूसरे फ्लैट में ले गया. हॉल से जाते समय उन्होंने यह पहचान लिया की पिछली बार उन्होंने आधा घर ही देखा था. अब हम छाया के कमरे में थे. वह बहुत खुश हो गयीं. छाया ने भी अपना कमरा बहुत अच्छे से सजाया था. माया आंटी ने कहा बेटा इतना बड़ा घर. मैंने उनसे कहा..

"यह हम सब के लिए ही है. आप सब लोग अपना अपना सामान व्यवस्थित कर लें." शर्मा अंकल भी घर के अंदर आ चुके थे.

मैंने माया आंटी से कहा..

" हम सोसाइटी के लोगों को यही कहेंगे आप और शर्मा जी पति पत्नी है तथा छाया आपकी बेटी है. मैंने यह घर आप लोगों को किराए पर दिया हुआ है."

माया आंटी को मेरी बात ठीक लग रही थी. वहां की सोसाइटी के लोग हमें जानते नहीं थे अतः इस नए रिश्ते के साथ वहां रहने में कोई बुराई नहीं थी. शर्मा जी का साथ रहने से हम दोनों के लिए अच्छा ही था.

शर्मा जी भी मान गए थे माया आंटी ने उन्हें हमारे घर की सारी परिस्थितियों से अवगत करा दिया था. वह जान गए थे कि मैं और छाया प्रेमी प्रेमिका है और माया आंटी ने उनका रिश्ता स्वीकार कर लिया है. उन्होंने माया आंटी को आश्वस्त किया था की वह जरूरत पड़ने पर हर स्थिति संभालने में उनकी मदद करेंगे और हमेशा उनके साथ रहेंगे.

उन दोनों के बीच में एक ऐसा संबंध बन गया था जो पति-पत्नी जैसा ही था बस विवाह नहीं हुआ था. मेरी और छाया की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही थी.

मैं और छाया अपना सामान अपने बेडरूम में लगाने लगे. हम दोनों यही बात कर रहे थे की क्या माया आंटी और शर्मा अंकल एक ही कमरे में रहेंगे या अलग अलग. यह एक ऐसा प्रश्न था जिसका उत्तर कुछ घंटे बाद ही मिलना था. थोड़ी देर बाद माया. आंटी की आवाज आई वह हमें चाय के लिए बुला रहीं थी.

हम हॉल में गए. छाया अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाई और और यह देखने गई कि शर्मा अंकल ने अपना सामान कहां लगाया है. मास्टर बेडरूम के बाथरूम से आ रही शर्मा जी की आवाज ने सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया. हमने इस पर आगे कोई चर्चा नहीं की. हमें माया आंटी की खुशी ज्यादा ज्यादा प्यारी थी. शर्मा जी के साथ उनका रहना उनके जीवन का नया अध्याय था. लगभग अड़तीस वर्ष की उम्र में माया आंटी लिव इन रिलेशनशिप में रहने जा रहीं थी. माया आंटी एक समझदार महिला थी. उन्होंने अपने वाले फ्लैट में एक कमरे में छाया का कुछ सामान रख दिया था.

आखिरकार वह उनकी बेटी थी किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में वह उस कमरे में जाकर रह सकती थी. हम लोगों ने यह निर्णय किया था की जरूरत पड़ने पर हम हॉल का दरवाजा बंद कर देंगे. शर्मा अंकल और माया आंटी यही कहेंगे कि मैंने अपने फ्लैट का वह हिस्सा उन लोगों को किराए पर दिया हुआ है. छाया के लिए अब दो कमरे बन चुके थे. माया आंटी वाले फ्लैट का कमरा उसका मायका बन गया था और मेरा बेडरूम उसकी भावी ससुराल.

जब वह मेरे कमरे में रहती मेरी मंगेतर बनकर रहती और जरूरत पड़ने पर वह अपने घर के अपने कमरे में भी रह सकती थी. घर पूरी तरह से व्यवस्थित हो गया था. अब हम इन नए संबंधों के साथ नए घर में खुश थे.

नियति ने हमारे नए घर में दो नए रिश्तों को जीने का पूरा मौक़ा दे दिया था. दोनों ही जोड़े प्यार के लिए तरस रहे थे और एकांत उन्हें प्रिय था.

माया आंटी और शर्मा जी.

{मैं माया}

मेरे मन में दिन पर दिन शर्मा जी के प्रति स्नेह बढ़ता जा रहा था वह मेरा बहुत ख्याल रखते थे. मैं उनके साथ कभी अंतरंग तो नहीं हो पाई थी परंतु हमने अपने जीवन के बारे में सारी बातें एक दूसरे से साझा कर ली थी. वह मेरी पति की अकाल मृत्यु पर बहुत दुखी थे. उन्होंने तो अपना वैवाहिक जीवन अपनी पत्नी के साथ लगभग 10 - 15 वर्षों तक जी लिया था और वह उससे काफी संतुष्ट भी लगते थे परंतु वह मेरे लिए सोच सोच कर दुखी होते कि कैसे युवावस्था में ही मुझे अपने पति के बिना रहना पड़ा और अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं अपने जीवन का सुख नहीं ले पाइ. परंतु हम दोनों में से सेक्स के लिए कभी किसी ने पहल नहीं की.

जब मैंने छाया और मानस को एक साथ रंगे हाथों पकड़ा था उस दिन उन दोनों की तस्वीर मेरी आंखों में कैद हो गयी थी. इन दोनों को नग्न देखकर मेरा मन विचलित हो गया था. बिस्तर पर बैठे हुए थे और दोनों के गुप्तांगों पर तकिया रखा हुआ था पर पूरा शरीर नग्न था. उन दोनों की छवि को देखकर मेरे मन में बहुत दिनों बाद कामुकता आई. यह बहुत दिनों बाद हो रहा था जब मैं किसी स्त्री पुरुष को नग्न देखी थी. छाया को देखकर ऐसा लगा जैसे मैं अपनी युवावस्था में आ गई थी. छाया काफी हद तक मेरे ऊपर ही गई थी उसकी शारीरिक संरचना लगभग मेरे जैसी थी पर वह युवा थी और मैं युवती हो चुकी थी. उन दोनों को नग्न देखने के बाद जब मैं एकांत में होती मेरे मन में कामुकता जन्म लेती और कई कई बार मैं अपनी योनि में गीलापन महसूस कर रही होती.

शर्मा जी का साथ होने पर यह कामुकता और तीव्र होती. नए घर में आने के बाद मानस और छाया एक ही कमरे में चले गए. मैं और शर्मा जी भी अपने कमरे मैं आ गए बातों ही बातों में शर्मा जी ने यह बात बोली मानस और छाया एक आदर्श जोड़ी हैं वह दोनों इतने सुंदर हैं जैसे कामदेव और रति. भगवान उन दोनों का प्रेम हमेशा बनाए रखें.

शर्मा जी द्वारा कहे गए यह वाक्य मेरी अपनी सोच से मिलते थे. एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मैं और शर्मा जी एक ही दिशा में सोच रहे हैं. अचानक उन्होंने कहा "छाया तुम पर ही गई है" मैंने हंसकर कहा..

"किस मायने में." वह मुस्कुरा दिए. मैंने फिर पूछा

"बताइए ना"

उन्होंने कहा

"हर तरह से. तुम्हारे शरीर की बनावट उससे काफी मिलती है"

"क्या मिलता है"

तुम दोनों का रंग. शरीर की बनावट आदि"

मैं चाहती थी कि वह मुझसे खुलकर बात करें पर वह बहुत ही संभल कर बातें कर रहे थे फिर अचानक ही उन्होंने मुझसे पूछा..

"क्या कभी भी तुम्हारे मन में कामुकता जन्म नहीं

लेती?"

"जब मनुष्य का मन प्रसन्न हो और उसके शरीर में कोई कष्ट ना हो तो युवावस्था में यह स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है. साथी उपलब्ध न होने की दशा में हम उसे दबा ले जाते हैं"

उन्होंने हंसते हुए कहा..

"पर आज तो साथी भी है यह कहते हुए वह मुस्कुरा दिए"

मैं उनका इशारा समझ चुकी थी बाथरूम में नहाते समय मैंने अपने आपको आईने में देखा मेरे स्तन पूर्णतयः उभरे हुए थे पर उनमे अब थोड़ा झुकाव आ चुका था. रतिक्रिया के लिए इनका उपयोग तो हुआ था पर सिर्फ कुछ ही वर्षों तक. मेरा शरीर अभी भी सुंदर था. ग्रामीण परिवेश में लगातार रहने और कार्य करने से मेरे शरीर गठीला हो गया था. आप अपनी परिकल्पना के लिए स्वर्गीय स्मिता पाटिल को याद कर सकते हैं. मेरा शरीर लगभग उनके जैसा था सिर्फ रंग गोरा था. मैंने

अपने कमर के नीचे अपनी योनि को देखा मुझे सिर्फ अपने बाल ही दिखाई दे रहे थे. आज पता नहीं क्यों मुझे इन्हें काटने की इच्छा हुई मैंने वहीं पड़े शर्मा जी की शेविंग किट से उन्हें साफ कर लिया. कई दिनों बाद अपनी योनि पर लगातार हाथ लगने से वह गीली हो चली थी. रेजर को बार-बार उसके होठों पर लगाने से एक अलग तरह की अनुभूति हो रही थी.

कभी कभी मेरे मन में छाया और मानस के बीच चल रही अठखेलियों

का ध्यान आ जाता. आज वह दोनों भी अपने कमरे में अकेले थे. उनके बारे में सोचते हुए कभी मुझे यह शर्मनाक भी लगता.

कामुकता के समय हमारे ख्याल वश में नहीं होते वो किसी भी दिशा में किसी भी हद तक जा सकते हैं इसमें रिश्तों को कोई भूमिका रह नहीं जाती.

कुछ ही देर में मेरी योनि पूरी तरह चमकने लगी थी. उसके सारे बाल साफ हो गए थे. मैंने अपना नहाना धीरे-धीरे खत्म किया और एक सुंदर सी नाइटी पहन कर बाहर आ गई. शर्मा जी बिस्तर पर बैठे-बैठे टीवी देख रहे थे. मुझे देखते ही वह बोले...

"अरे वाह आज तो आप अत्यंत सुंदर लग रही हैं." मैं अपने बाल सुखा रही थी और पीछे मुड़कर कहा..

"ठीक है पर अपनी नजरें दूर ही रखिए." कुछ ही पलों में मैं भी बिस्तर पर आ चुकी थी उन्होंने लाइट बंद कर दी. कुछ ही देर में मैंने उनके हाथों को अपनी कमर पर महसूस किया जैसे वह मुझे अपनी तरफ खींच रहे हैं. मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ मुड़ गइ वह मेरे और करीब आ गए. कुछ ही देर में उन्होंने मुझे आलिंगन में ले लिया. अभी भी हमारे वस्त्र पूरी तरह सही सलामत थे. वह अपना चेहरा मेरे पास लाए और बोले

"माया तुम बहुत अच्छी हो तुम्हारे साथ रहते हुए चार-पांच महीने कैसे बीत गए पता ही नहीं चला क्या हम जीवन भर साथ नहीं रह सकते" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया. मैं थरथर काँप रही थी. आज कई वर्षों के बाद किसी पुरुष ने मुझे छुआ था. वह मेरे जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे. इस दौरान वह निरंतर अपने चुम्बनों की बारिश

मेरे गालों और माथे पर कर रहे थे. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हुआ. मैंने अपने हाथ उनकी पीठ पर रख दिए. कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह उनके आलिंगन में थी मेरे स्तन उनकी छाती से टकराने लगे. धीरे-धीरे उनका दाहिना पैर मेरी कमर पर आ चुका था. और हमारे अंग प्रत्यंग एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब हो गए थे.

शर्मा जी धीरे-धीरे मेरी नाइटी को कमर तक ले आए अब उनके हाथ मेरी जाँघों और नितंबों सहला रहे थे कई वर्षों बाद किसी पुरुष का हाथ मुझे इस प्रकार छू रहा था. मेरी योनि पूरी तरह गीली हो चुकी थी धीरे धीरे वो कब निर्वस्त्र हो गए यह मुझे पता भी न चला. मुझे एहसास तब हुआ जब शर्मा जी ने नाइटी हटाने के लिए मेरे दोनों हाथों को ऊपर करने करने लगे. कमरे में अंधेरा अभी भी कायम था. खिड़की से बैंगलोर शहर दिखाई पड रहा था. उसकी कुछ रोशनी हमारे कमरे में भी आ रही थी. हम दोनों एक दूसरे को कुछ हद तक देख पा रहे थे. उनके आलिंगन में आने पर मुझे उनके लिंग का एहसास

अपनी पेट पर हो रहा था. मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि मैं उस लिंग को छू लूं. मन में कहीं न कहीं अपराध बोध भी अपनी जगह स्थान बनाया हुआ था.

पर आज कामुकता प्रबल थी अपराधबोध बहुत कम. कामुकता

अपना प्रभाव जमाते जा रही थी.

शर्मा जी ने मेरे स्तनों को अपने होठों से छूना शुरू कर दिया. मैं पहले ही काफी उत्तेजित थी. मुझसे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी. मैंने भावावेश में आकर अपने हाथ उनके लिंग पर रख दिए तथा उसे महसूस करने लगी. शर्मा जी का लिंग मेरे अनुमान से बड़ा था. उसकी लंबाई तो लगभग मेरी हथेलियों के बराबर थी पर उसकी मोटाई कुछ ज्यादा लग रही थी. मैंने अपने अंगूठे और तर्जनी से उसे पकड़ना चाहा पर सफल न हो सकी. शर्मा जी अब मेरे दाहिने स्तन का निप्पल अपने मुंह में लेकर चुभला रहे थे. मैं उनके लिंग को हाथों में लेकर आगे पीछे करने लगी.

हमारी कामेच्छा अब चरम पर पहुंच चुकी थी. शर्मा जी के हाथ लगातार मेरे नितंबों पर घूम रहे थे. कभी-कभी उनके हाथ नितंबों के रास्ते मेरे योनि तक पहुंचने की कोशिश करते पर मेरी जांघों का दबाव

आते ही वह वापस हो जाते. शर्मा जी ने मुझे धीरे धीरे अपने ऊपर ले लिया. शर्मा जी पीठ के बल बिस्तर पर लेटे हुए थे और मैं अब उनके ऊपर आ चुकी थी. जैसे ही मैंने अपना दाहिना पैर उनकी कमर के दूसरी तरफ किया मैं उनके नाभि पर बैठी गयी. उनका लिंग मेरे नितंबों से टकरा रहा था उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों को अपने होठों में ले लिया. मेरे होठों को चूमने वाले वह दूसरे पुरुष थे.

इन चुम्बनों के दौरान कब मेरी कमर पीछे होती गयी मुझे कुछ भी पता नहीं चला.

अचानक मुझे शर्मा जी का लिंग अपनी योनि के मुख पर महसूस हुआ. मेरे योनि से निकला प्रेम रस उस लिंग को अपनी सही जगह तक ले

आया था. उनके लिंग की अनुभूति मेरी योनि को अत्यंत उत्तेजक लग रही थी. आज लगभग 10 वर्षों के बाद मुझे यह सुख प्राप्त हो रहा था. मैं इससे पहले कुछ करती लिंग का अगला भाग मेरी योनि में प्रवेश कर चुका था. शर्मा जी ने मुझे एक बार फिर जोर से किस किया और अपनी कमर ऊंची करते गए. लिंग मेरी योनि में लगभग आधे से ज्यादा प्रवेश कर गया. योनि पूरी तरह गीली थी.इतने वर्षों बाद योनि में लिंग प्रवेश से मुझे अजीब सी अनुभूति हुयी. शर्मा जी का लिंग थोड़ा मोटा था इस वजह से मुझे हल्का दर्द भी महसूस हुआ. परंतु शर्मा जी के लगातार होंठ चूसने की वजह से वह दर्द ना के बराबर था मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई थी.

मैंने अपनी कमर पूरी तरह नीचे कर दी शर्मा जी का लिंग मेरे अंदर पूरी तरह प्रवेश कर चुका था पर अभी भी मेरी भग्नाशा उनसे सट नहीं रही थी. अपनी कमर को इससे ज्यादा पीछे ले पाना मेरे लिए संभव नहीं था. मुझे लगता था अभी भी लिंग का कुछ हिस्सा बाहर था. भग्नाशा की रगड़ बनाने के लिए लिंग को पूरी तरह अंदर लेना अनिवार्य था. मैंने एक बार फिर प्रयास किया अब मेरी भग्नासा उनसे सट चुकी थी. उनका लिंग मेरी योनि में पूरी तरह फंसा हुआ था. मुझे अंदर हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा था . मैं इस स्थिति में कुछ देर यूं ही पड़ी रही. शर्मा जी के हाथ लगातार मेरे नितम्बों को सहला रहे थे. जैसे मुझे शाबाशी दे रहे थे कि अंततः मैंने लिंग को पूरी तरह अन्दर ले लिया.

कुछ देर बाद मैंने अपनी कमर को आगे पीछे करना प्रारंभ कर दिया. भग्नाशा पर होने वाली रगड़ बढ़ती जा रही थी. लिंग अपना काम कर रहा था जैसे ही लिंग बाहर की तरफ होता ऐसा लगता जैसे मेरे शरीर में एक अजीब सा खालीपन आ गया आ गया है. जब वो अंदर की तरफ आता तो एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती और शरीर पूरा भराव महसूस करता. मैं इस प्रक्रिया में अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे करने लगी थी. योनि के अंदर शर्मा जी के लिंग के कंपन महसूस हो रहे थे. शर्मा जी लगातार नितंबों को सहलाते जा रहे थे. कभी-कभी वह अपने चहरे को उठा कर मेरे स्तनों को अपने मुह में ले लेते. योनि के अंदर लिंग के उछलना लगातार महसूस हो रहा था.

मेरी योनि अब स्खलित हो रही थी. मैं शर्मा जी के ऊपर लगभग गिर सी गयी. मेरी कमर चलाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी. शर्मा जी ने यह महसूस करते ही स्खलित हो रही योनी में के बीच में अपने लिंग को तेजी से आगे पीछे करने लगे. यह एक अद्भुत अनुभव था इस क्रिया में उनके लिंग ने भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था. हम दोनों के एक साथ स्खलित हो रहे थे.

स्त्री की योनि को स्खलित होने में कुछ समय लगता है परंतु पुरुष का स्खलन अपेक्षाकृत जल्दी होता है.

मैं शर्मा जी के उपर कुछ मिनटों तक पड़ी रही. मेरा चेहरा उनके बगल में था. हम दोनों एक दूसरे के देख तो नहीं पा रहे थे पर दोनों के आनंद को महसूस जरूर कर पा रहे थे. हमारी धड़कने तेज थी. छाती पर पसीना आ गया था. मैंने अपनी कमर को आगे किया और शर्मा जी लिंग धीरे से बाहर आ गया. हम मुझे उनका वीर्य अपनी योनि से निकलता हुआ महसूस हुआ जो शायद शर्मा जी के ऊपर ही गिरा होगा. मैं हाल ही में रजस्वला हुयी थी मुझे गर्भाधान का डर नहीं था.

हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले उसी अवस्था में सो गए सुबह उठकर मैंने देखा तो शर्मा जी उसी तरह नग्न पड़े हुए थे. मैंने उनके ऊपर चादर डाली और मैं बाथरूम में चली गई. शर्मा जी ने मुझे जो सुख दिया था वह एक यादगार सुख था मैंने अपने स्वर्गीय पति से इस कार्य के लिए क्षमा मांगी.

जीवन में आया यह बदलाव सही था या गलत मैं नहीं जानती पर मैं आज बहुत खुश थी. मानस को मैंने दिल से आशीर्वाद दिया और किचन में नाश्ता बनाने चली गयी.

हमारी यादगार रात.

[मैं मानस ]

खाना खाने के बाद मैं बिस्तर पर बैठा छाया का इंतजार कर रहा था. आज हमारी नए घर में पहली रात थी. मैं इस रात को यादगार बनाना चाहता था. छाया आने में विलंब कर रही थी. मैं अधीर हो रहा था. तभी मैंने छाया को आते देखा उसने एक सुर्ख लाल रंग की नाइटी पहनी हुई थी. नाइटी बहुत ही खूबसूरत थी तथा हल्की पारदर्शी भी थी. छाया के पीछे पीछे माया आंटी भी हमारे बेडरूम तक आ गई थीं. मैं बिस्तर पर पायजामा कुर्ता पहन कर लेटा हुआ था. मैं उठ कर बैठ गया उन्होंने छाया का हाथ मेरे हाथ में देते हुए बोला मैं तुम दोनों के प्रेम संबंधों को स्वीकार कर चुकी हूं. छाया तुम्हारी प्रेयसी है. पर जिस तरह से तुमने इसका ख्याल रखा है विवाह तक उसी तरीके से इसका ख्याल रखना. तुम्हारा दिया गया वचन मुझे बहुत भरोसा दिलाता है. उन्होंने छाया की तरफ भी देख कर कहा...