छाया - भाग 04

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सीमा दीदी मेरी मार्गदर्शक रही है वह इंजीनियरिंग कॉलेज में आने से पहले गांव में आई थी. उस साल मानस गांव नहीं आए थे. मैं और सीमा दीदी ही अपना वक्त साथ में गुजारा करते. वह मुझे पढाई के साथ साथ कई बाते बताया करतीं. उनमें सेक्स को लेकर एक विशेष उत्सुकता थी. वह मुझसे भी जिद करती कि मैं अपने अंग उनको दिखाउ और बदले में वह अपने अंग मुझे दिखाएं. मुझे यह सब ज्यादा पसंद नहीं था. पर उनसे संबंध बनाए रखने के लिए कभी कभी उनकी बात मान लेती थी.

मैं और सीमा दीदी अक्सर मिलने लगे वह मुझे कॉलेज से ले लेती मुझे घुमातीं, खाना खिलाती और ढेर सारी बातें कर मुझे घर के लिए रवाना कर देती. उनके साथ मैंने कई शामें बिताई पर मानस से मिलवाने की बात पर मैं उन्हें टाल देती.

लड़कियों के मन में में एक विशेष किस्म का डर होता है मैं सीमा को मानस से शायद मैं इसी डर से नहीं मिलवा रही थी.

छाया का सपना

एक दिन ऑफिस में देर होने की वजह से मैं घर देर से पहुंचा. घर पर छाया सजी-धजी छाया मेरा इंतजार कर रही थी. वह बहुत खुश लग रही थी उसने खूब अच्छा खाना भी बनाया था. खाना खाने के बाद मुझे नींद आने लगी और मैं अपने बिस्तर पर सोने चला गया जब तक छाया आती तब तक मुझे नींद लग चुकी थी. सुबह लगभग 5:00 बजे मुझे कमरे में आह आह की कामुक आवाजें सुनाई दी. मुझे लगा मैं कोई स्वप्न देख रहा हूं. पर मेरी नींद खुल गई मैंने देखा छाया इस तरह की आवाज निकाल रही है. मैं समझ नहीं पा रहा था यह क्या हो रहा है. कितनी मासूम और प्यारी लड़की इस तरह की आवाज निकाल रही जैसे कोई ब्लू फिल्म की हीरोइन निकालती है. वह अपनी कमर भी हिला रही थी.

मैं बहुत देर तक उसका आनंद लेता रहा अचानक उसकी आंखें खुल गई. मैं हंस पड़ा वह बोली "अरे मैं कहां हूं"

मैंने कहा "तुम घर में हो मेरे पास" वह बार-बार अपनी आंखे मीच रही थी और मुझे छूने की कोशिश कर रही थी.

मैंने उसको पकड़ कर हिलाया. वह अब पूरी तरह जाग चुकी थी. मैंने पूछा..

"क्या हुआ"

वह बहुत ज्यादा शर्मा गई . मैंने उससे फिर कहा

"बताओ ना क्या हुआ"

वह बोली

"मैं आपको नहीं बता सकती"

मैंने उससे जिद की. तो उसने कहा अच्छा बताती हूं दो मिनट बाद वह बाथरूम से आइ और मेरी बाहों में आकर लेट गई उसने कहा

"मैंने एक सपना देखा"

"कौन सा सपना. तुम तो की ब्लू फिल्म तरह आवाजें ही निकाल रही थी."

"आपने बिल्कुल सही पकड़ा मैं वही सपना देख रही थी."

मैंने उससे कहा..

" विस्तार से बताओ ना क्या देखा"

छाया ने कहा...

"एक सुंदर सा होटल में कमरा था उस पर सिर्फ बिस्तर दिखाई दे रहा था अगल-बगल की स्थिति समझ पर बिस्तर बहुत खूबसूरत था. उस बिस्तर पर मैं नंगी थी. वहां पर आप भी थे. हम दोनों पूर्णतयः नग्न अवस्था में थे. मैं आपके लिंग को सहला रही थी तभी वहां पर दूसरा व्यक्ति आ गया. वह भी पूर्णतयः नग्न था. वह बार-बार मेरे शरीर को छूने का प्रयास कर रहा था. वह बार-बार अपने लिंग को मेरे हाथों मैं पकड़ा

रहा था और मेरे नितम्बों को सहला था. पता नहीं क्यों यह सब मुझे उत्तेजित कर रहा था. आप भी उसे रोक नहीं रहे थे. अचानक मैंने महसूस किया की अपरिचित आदमी का राजकुमार मेरी राजकुमारी में प्रवेश कर चुका है. और वह बार-बार अपने राजकुमार को अंदर बाहर कर रहा है. आश्चर्य की बात मुझे उस समय किसी दर्द का एहसास भी नहीं हो रहा था. बल्कि अत्यंत मजा आ रहा था और मैं तरह-तरह की आवाजें निकाल रही थी. मैं आपके लिंग को दोनों हाथों से हिला रही थी और वह अपने राजकुमार को मेरी राजकुमारी में पूरी तरह प्रविष्ट कराया हुआ था वह मेरे नितंबों पर अपनी पकड़ बनाए हुए था जैसे ही मेरी राजकुमारी स्खलित होने वाली थी मेरी नींद खुल गई."

मेरी हंसी छूट पड़ी मैंने मुस्कुराते हुए कहा...

" मेरी प्यारी छाया अब बड़ी हो गई है उसके सपने भी बड़े हो गए है लगता है मैं अकेले राजकुमारी की प्यास नहीं बुझा पाऊंगा."

उसने मेरी छाती पर दो मुक्के मारे और अपना सिर मेरी छाती में छुपा लिया. मैंने अपने हाथ उसके नितंबों की तरफ ले गए और उसकी नाइटी को ऊपर कर दिया. मैंने अपनी हथेली से राजकुमारी को सहलाया तथा उसके होठों के बीच में अपनी उंगलियां रख दी छाया पहले से ही बहुत ज्यादा उत्तेजित थे कुछ ही देर में मैंने उसके राजकुमारी के कंपन महसूस कर लिया वह मुझसे लिपट चुकी थी. मैं उसे गालों पर चुंबन देते हुए उसे वापस हकीकत में लाने की कोशिश कर रहा था.

ब्लू फिल्मों का छाया के मन पर गहरा असर पड़ा था यह बात मुझे अब समझ में आ रही थी.

कुठाराघात

मंजुला चाची का आगमन

मैं, छाया और माया आंटी अपने नए घर में बहुत प्रसन्न थे. शर्मा अंकल और माया आंटी के बीच भी कुछ मधुर रिश्ते पनप चुके थे. वह दोनों भी हमेशा खुश दिखाई पड़ते मैं और छाया दोनों एक ही कमरे में रहते थे. हमारा जीवन पति-पत्नी की भांति हो चला था. पर छाया ने अपनी कामुकता और विविधताओं से हमारे प्रेम संबंधों को रस से सराबोर रखा था.

पर हमारी यह खुशियां ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई. हमारा घर जिस सोसाइटी में था उस सोसाइटी में कई सारे टावर थे. यह बेंगलूर की एक प्रतिष्ठित सोसाइटी इसमें कुल पैतालीस सौ फ्लैट थे. यह सोसायटी एक छोटे शहर जैसी विकसित हो गयी थी. इस नए घर में आए हमें नौ महीने बीत चुके थे. एक दिन सोसाइटी के शॉपिंग मॉल में माया आंटी की मुलाकात मंजुला चाची से हो गइ. दोनों एक दूसरे को देख कर अत्यंत खुश हुयीं.

जब कोई अपना पूर्व परिचित किसी बड़े शहर में मिल जाता है तो उसे देख कर मन प्रसन्न हो उठता है.

माया आंटी उनसे घुल मिल कर बात करने लगी और बातों ही बातों में उन्होंने हमारे घर के बारे में उन्हें बता दिया. उन्होंने हमारे घर की बदली हुई परिस्थितियों को नजरअंदाज कर मंजुला चाची को घर बुला लिया.

मंजुला चाची यहां हमारे गांव के मुखिया मनोहर चाचा के लड़की की सगाई में आई थी. लड़के वालों ने भी इसी सोसाइटी में फ्लैट ले रखे थे. इस सोसाइटी में शादी विवाह के लिए उत्तम व्यवस्था थी. लड़के वाले बेंगलुरु के ही थे. उन्होंने ज़िद की थी कि शादी बेंगलुरु से ही करें. मेरे गांव के कई लोग इस सगाई में सम्मिलित होने बेंगलुरु आए हुए थे.

मनोहर चाचा ने हम लोगों को भी कार्ड भेजा था पर हम अपना घर बदल चुके थे इसलिए उनका निमंत्रण हम तक नहीं पहुंच पाया था.

मैं पिछले वर्ष गांव गया था और सब से मुलाकात कर वापस आया था गांव से थोड़ा बहुत संबंध बना कर रखना आवश्यक था क्योंकि वहां पर हमारी जमीन जायदाद थी. मनोहर चाचा मेरे स्वर्गीय पिता जी के पारिवारिक मित्र थे.

घर आने के बाद माया आंटी ने मुझे मंजुला चाची के बारे में बताया. माया आंटी यह बात भूल चुकी थी की हमारे घर में रिश्ते नए सिरे से परिभाषित हो गए थे. यह बात मंजुला चाची और किसी अन्य गांव वालों को पता नहीं थी. मंजुला चाची का अप्रत्याशित आगमन यदि हमारे घर में होता तो मेरे और छाया के संबंध शक के दायरे में आ जाते. हम उनकी नजरों में अभी भी भाई बहन ही थे चाहे हमारे संबंध

अच्छे हो या खराब. माया आंटी को जब यह बात समझ में आई तो वह बहुत उदास हो गइ.

हम लोगों ने आनन-फानन में घर को नए सिरे से व्यवस्थित किया छाया के कपड़े उसके अलग कमरे में शिफ्ट किए गए. संयोग से शर्मा जी कुछ दिनों के लिए बाहर गए हुए थे. इसलिए एक तरफ से हम निश्चिंत थे. घर को व्यवस्थित करने के बाद हम इसी उधेड़बुन में फंसे थे की मंजुला चाची और गांव वालों का यहां बेंगलुरु में आना और खासकर इसी सोसाइटी में आना एक इत्तेफाक था या कुछ बड़ा होने

वाला था.

अगले दिन मंजुला चाची मनोहर चाचा की पत्नी और एक अन्य महिला के साथ हमारे घर पर आ गई. मैं और छाया भी संयोग से घर पर ही थे. हम दोनों ने उनके पैर छुए उन्होंने हमें आशीर्वाद दिया और कहा..

"दोनों भाई बहन हमेशा खुश रहो"

मंजुला चाची मेरी तारीफ के कसीदे पढ़ने लगीं.

"मानस जैसा लड़का भगवान सबको दे पापा के जाने के बाद इसमें पूरे परिवार को संभाल लिया अपनी बहन छाया को पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बना दिया. जब माया और सीमा गांव पर आए थे तो यह उन लोगों से बात भी नहीं करता था परंतु समय के साथ इसने अपनी जिम्मेदारी समझीं और इन दोनों को संभाल लिया."

उनकी बातें सुनकर मैं खुश होऊ या दुखी यह समझ नहीं पा रहा था. जिस रिश्ते को भूल कर ही हम तीनों खुश थे वही रिश्ते पर मंजुला चाची जोर दे रहीं थी. मैं अपने मन में चीख चीख कर यह कह रहा था की छाया मेरी बहन नहीं है. वह माया जी की लड़की है जिसे मैं प्रेम करता हूँ. पर यह बात मेरे मन के अंदर ही चल रही थी. मंजुला चाची की बातों में बाकी दोनों महिलाएं भी साथ दे रही थी.

उन्होंने छाया का भी हालचाल लिया और बोली बेटा तुम तो बहुत सुंदर हो गइ हो.तुम्हारी पढाई पूरी हो जाए तो मैं तुम्हारे लिए एक सुंदर सा लड़का देखूंगी. तुम तो इतनी सुंदर हो की तुम्हारे पीछे लड़कों की लाइन लग जाएगी कहकर वह तीनों मुस्कुराने लगी.

वह सब आपस में खुलकर बातें कर रही थी. मैं वहां से हट कर बाहर आ गया. मैं उनके आगमन से थोड़ा घबराया हुआ था मुझे इस बात का डर था की मेरे और छाया के बीच वर्तमान संबंधों पर कोई आंच ना आ जाए.

मन में जब आशंकाएं जन्म लेती हैं तो उनके घटने की संभावनाएं कुछ न कुछ अवश्य होती है. बिना कारण ही कोई आशंका स्वयं जन्म नहीं लेती.

जितना ही इस बात पर मैं सोचता उतना ही दुखी होता पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. इन तीनों के जाने के बाद छाया और मेरे मन में भूचाल मचा हुआ था. माया आंटी उन लोगों को छोड़ने नीचे गई हुई थी वापस आते ही वह भी हमारे साथ बातों में शामिल हो गई. उनका भी ध्यान मंजुला चाची द्वारा बताए गए भाई बहन के संबंधों पर ही था. मैंने

माया आंटी से कहा

"आखिर एक ना एक दिन लोगों को इस बात का पता चलना ही है तो क्यों ना इसकी शुरुआत मंजुला चाची से ही की जाए "

मेरे और छाया के बीच में बने इस नए संबंध के बारे में जानने के बाद उनकी प्रतिक्रिया ही हमारा आगे का मार्ग प्रशस्त करेगी.

भाई बहन

[मैं मानस ]

दो दिनों के बाद मनोहर चाचा की लड़की की सगाई का कार्यक्रम था. हम तीनों समय से कार्यक्रम में पहुंच गए. कार्यक्रम शुरू होने में अभी देर थी माया आंटी मंजुला चाची से बात करने के लिए उत्सुक थी. उनकी अधीरता उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रहे थी. कुछ ही देर में उन्होंने मंजुला चाची को एकांत में पाकर उनसे बात छेड़ दी और कहा

" मंजुला मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है"

" हां बोलिए ना"

" मानस और छाया के भी संबंध वैसे नहीं है जैसा तुम समझ रही हो"

" क्या मतलब"

" वह दोनों एक दूसरे को भाई-बहन नहीं मानते"

" क्या मतलब यह कैसे हो सकता है"

" अरे वह दोनों शुरू से ही एक दूसरे से बात नहीं करते थे और एक बार जब बातचीत शुरू हुई तो उन दोनों ने लड़के लड़कियों वाले संबंध बना लिए. मुझे यह कहते हुए शर्म भी आ रही है कि दोनों अभी तक इन संबंधों में लगे हुए हैं. मेरे समझाने के बाद भी वह दोनों एक दूसरे को भाई बहन नहीं मानते. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं"

माया आंटी ने खुद को निर्दोष रखते हुए सारी बातें एक साथ कह दी.

मंजुला चाची समझदार महिला थी उन्होंने कहा..

" मैं भी समझती हूं की छाया मानस की अपनी बहन तो है नही. और वैसे भी उन दोनों की मुलाकात युवावस्था में हुई है. इस समय लड़का और लड़की में शारीरिक परिवर्तन हो रहे होते हैं जिससे वह दोनों करीब आते हैं . मुझे लगता है छाया इतनी सुंदर थी की मानस उसके करीब आ गया होगा. और दोनों में इस तरह के संबंध बन गए होंगे. पर क्या छाया अब कुंवारी नहीं है?

"नहीं नहीं वह पूरी तरह कुंवारी है"

"तब तो चिंता की कोई बात ही नहीं है. युवावस्था में लड़के लड़कियों के बीच ऐसे संबंध बन ही जाते हैं वैसे भी छाया उसकी सगी बहन तो थी नहीं इसलिए वो दोनों पास आ गये होंगे. तुम इन बातों को दिमाग से निकाल दो वह भी इस बात को समझते होंगे."

"अरे नहीं वह दोनों तो एक दूसरे से विवाह करना चाहते हैं मुझसे बार-बार इस बात के लिए अनुरोध करते हैं"

" यह कैसे संभव होगा? तुम यह बात कैसे सोच भी सकती हो. गांव वालों के सामने क्या मुंह दिखाओगी. सब लोग यही कहेंगे की माया ने अपनी बेटी को मानस को फासने के लिए खुला छोड़ रखा होगा. मां-बेटी ने मानस जैसे शरीफ लड़के को अपने जाल में फांस लिया ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके. छाया इतनी समझदार लड़की है और काबिल भी, क्या तुम दोनों इस अपमान के साथ जीवन गुजार पाओगी."

मंजुला आंटी की बातें माया आंटी को निरुत्तर कर गयीं. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोलूं.

मंजुला आंटी फिर बोलीं ..

" गांव में तुम्हारे परिवार की बड़ी इज्जत है. सभी लोग गर्व से मानस का नाम लेते हैं और कहते हैं कितना अच्छा लड़का है पिता के जाने के बाद अपने परिवार को पूरी तरह संभाल लिया. अपनी बहन छाया को पढ़ाया लिखाया. भगवान ऐसा लड़का सबको दे. तुम इन दोनों के विवाह के बारे में सोच कर अपनी और अपने बच्चों की आने वाली जिंदगी हमेशा के लिए बर्बाद कर दोगी. यह बात अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल दो"

इतना कहकर उन्होंने माया आंटी की पीठ पर हाथ रखा और बोला चलो सगाई का कार्यक्रम शुरू हो रहा है.

मेरा मन कार्यक्रम में नहीं लग रहा था. छाया भी कुछ लड़कियों के साथ गुमसुम बैठी थी. कार्यक्रम के बाद हमने गाँव से आए सभी लोगों से मुलाकात की. मनोहर चाचा के पैर छूते समय वह भावुक हो गए और बोले..

"मानस बेटा तुम्हें देख कर बहुत अच्छा लगा. तुमने पापा के जाने के बाद अपनी बहन छाया और इनकी मां को अपना लिया. यह एक बहुत बड़ा कदम है. तुम्हारे इस अच्छे काम की सराहना आस पास के गांवों में भी होती है. सभी लोग अपने बच्चों को तुम से प्रेरणा लेने को बोलते हैं और तुम्हारे जैसा बनने की अपेक्षा रखते हैं. भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे."

मनोहर चाचा ने यह भी कहा कि "तुम्हें और छाया को साल में एक बार गांव अवश्य आना चाहिए. वहां तुम लोगों की संपत्ति है तुम्हारे पापा ने संपत्ति के कुछ हिस्से छाया के साथ साझा किए हैं. अपनी जमीन को व्यवस्थित और अपने प्रभाव क्षेत्र में रखने के लिए साल में एक दो बार गांव आना उचित होगा. मुझे पता है तुम्हारी नौकरी में व्यस्तता ज्यादा रहती होगी पर दायित्व निर्वहन भी जरूरी है. उन्होंने चलते चलते फिर से आशीर्वाद दिया तुम दोनों भाई बहन हमेशा खुश रहो यही मेरी भगवान से प्रार्थना है."

कार्यक्रम से वापस आने के बाद मैं और माया आंटी बहुत दुखी थे. माया आंटी के चेहरे पर उदासी यह स्पष्ट कर रही थी कि उन्हें मंजुला चाची का समर्थन नहीं मिला है. सारे गांव वालों द्वारा हम भाई बहन की तारीफों ने और इस सामाजिक ताने बाने ने हमारे मन में चल रहे विचारों पर कुठाराघात किया था.

कुठाराघात

माया आंटी ने मुझे अपने पास बुलाया और सारी बाते बतायीं और बोला..

" बेटा मानस अब तुम्हें ही छाया को समझाना होगा. तुम दोनों के बीच में चल रहे प्रेम संबंधों को यहीं पर विराम देना होगा. तुम दोनों का विवाह होना असंभव लग रहा है. कोई भी इस बात को स्वीकार करने को राजी नहीं है कि तुम दोनों भाई बहन नहीं हो. बल्कि तुम दोनों को आदर्श भाई बहन की संज्ञा दी जा रही है. गांव में तुम लोगों की इतनी तारीफ होती है यह बात मुझे लगभग हर व्यक्ति ने कही. जब उन्हें यह पता चलेगा की तुम दोनों विवाह कर रहे हो वह इसे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे. और समाज में हमारी बड़ी बेइज्जती होगी. तुम दोनों एक दूसरे को प्रेम करते हो मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी. मैं समझती हूं परंतु विवाह होना यह शायद संभव नहीं हो पाएगा.

तुम छाया को समझा लो अभी तक उसका कौमार्य सुरक्षित है यह एक अच्छी बात है. तुम दोनों ने एक दूसरे के साथ अभी तक जो भी किया है वह उचित है या अनुचित इस बारे में न सोचते हुए इस संबंध को यहीं पर विराम दे दो. कुछ ही महीनों में छाया की पढ़ाई पूरी हो जाएगी. उसके बाद हम लोग उसका विवाह कर देंगे. विवाह के पश्चात वह स्वयं इन सब चीजों को भूल जाएगी.

तुम दोनों के बीच जो प्रेम संबंध बने हैं वह बने रहे. यह आवश्यक नहीं कि उसमें कामुकता ही प्रधान रहे तुम दोनों बिना कामुकता के भी एक दूसरे के प्रति प्रेम भावना रखते हुए आगे का जीवन व्यतीत कर सकते हो. मैं उम्मीद करती हूं तुम दोनों के जीवन साथी भी तुम लोगों की तरह ही खूबसूरत और समझदार होंगे. ताकि तुम दोनों उनके साथ अपनी अपनी इच्छाओं को पूरा कर सको. यही एकमात्र उपाय है"

इतना कहकर माया आंटी उठ गई. इन बातों के दौरान छाया कब हमारे पीछे आ चुकी थी यह मैं नहीं देख पाया था. उसने भी वह सारी बातें सुन ली थी वह पैर पटकती हुई मेरे कमरे में चली गई और बिस्तर पर पेट के बल लेट कर उसके दोनों हांथों से सर पकड़ लिया था. मैं उसे उठाने की चेष्टा करने लगा. उसकी आंखें भीगी हुई थीं

वह मुझसे लिपट कर रोते रोते बोली

" क्या यह सच में नहीं हो पाएगा"

मैं निरुत्तर था. मैं उसकी पीठ सहलाता रहा और बालों पर उंगलियां फिरता रहा. मेरे पास कुछ कहने को शब्द नहीं थे मैं स्वयं भी रो रहा था.

गांव वालों ने आकर हमें हमारी कल्पना से हमें वापस जमीन पर पटक दिया था.

छाया से वियोग.

अंततः यह सुनिश्चित हो चुका था कि मेरा और छाया का विवाह संभव नहीं है. छाया बहुत दुखी थी, पर वह स्थिति की गंभीरता को समझती थी. माया आंटी ने छाया से उसके सारे कपड़े अपने नए कमरे में लाने के लिए कहा. छाया का नया कमरा माया आंटी के शयन कक्ष के बगल वाल था. छाया जब अपने कपड़े और सामान मेरे कमरे से बाहर ले कर जा रही थी तो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे जीवन से सारी खुशियां एक साथ बाहर जा रहीं है. मेरी आँखे भर आयीं थी. इतना मजबूर मैं कभी नहीं था.

छाया को मैंने आज तक कभी अपनी बहन नहीं माना था और न ही भविष्य में कभी मान सकता था पर परिस्थितियां ऐसी बन गई थी कि मैं उसे अपनी प्रेमिका या प्रेयसी नहीं बना सकता था. हमारे सपने खंडित हो चुके थे.

हम दोनों ने कई दिनों तक एक दुसरे से बात नहीं की. जब भी वह मुझसे मिलती अपना सर झुकाए रखती थी. हम क्या बातें करें यह हमें खुद भी नहीं समझ में आता था. घरेलू बातों के लिए माया आंटी ही मेरा ध्यान रखती. मेरे कमरे में चाय खाना या किसी अन्य तरह की सहायता के लिए वही आती. मुझे छाया से यह सब काम बोलने में शर्म आती थी. जब भी मेरे से उसकी नजरें मिलतीं उसकी नजरों में एक अजीब सी उदासी रहती.

मैंने इतनी प्यारी लड़की से जैसे अन्याय कर दिया हो. इसकी आत्मग्लानि मुझे हमेशा रहती. मुझे लगता जैसे मैं उसकी भावनाओं और शरीर के साथ पिछले तीन वर्षों से खेल रहा था. इस आत्मग्लानि ने मेरा भी सुख चैन छीन लिया था.

नियति में जो लिखा होता है उसे आप बदल नहीं सकते. हमारे प्रेम में हम दोनों की साझेदारी बराबरी की थी पर उम्र में बड़ा होने के कारण मैं इस आत्मग्लानि से ज्यादा व्यथित था.

समय सभी घावों को भर देता है इसी उम्मीद के साथ हम अपनी गतिविधियों में व्यस्त होने का प्रयास कर रहे थे. लगभग दो महीने बीत गए थे. घरेलू कार्यों के लिए की गई बातों को दरकिनार कर दें तो मैंने और छाया ने आपस में कभी भी एक दूसरे से देर तक बात नहीं की थी . अब वह मुझे बिल्कुल पराई लगने लगी थी. माया आंटी मेरी केयरटेकर बन चुकी थी. छाया मुझसे दूर ही रहती और पता नहीं क्यों मैं भी उससे बात करने में कतराता था.

मेरे मन की कामुकता जैसे सूख गयी थी.

[शेष भाग दो में]

मेरा विवाह हो चूका था. छाया की अपनी भाभी से बहुत बनती थी. हम तीनों घनिष्ठ दोस्त बन गए थे. अंततः छाया का विवाह भी हुआ पर उसके साथ सुहागरात उसके प्यार ने ही मनायी ... छाया का देखा हुआ स्वप्न भी साकार हुआ. छाया मेरी बहन तब भी नहीं थी और अब भी नहीं है. जिनके लिए हम भाई बहन थे उनके लिए आज भी हैं. माया आंटी ही हमें समझ पायीं थी की हम दोनों एक दुसरे के लिए ही बने थे. ...वह भी कामदेव ओर रति के रूप में ...

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1 Comments
AnonymousAnonymousover 3 years ago
Great

Loved it. Hope for more stories from you. I love this theme

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